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मतदान

सूची मतदान

मतदान एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। मतदान (Voting) निर्णय लेने या अपना विचार प्रकट करने की एक विधि है जिसके द्वारा कोई समूह (जैसे कोई निर्वाचन क्षेत्र या किसी मिलन में इकट्ठे लोग) विचार-विनिमय तथा बहस के बाद कोई निर्णय ले पाते हैं। मतदान की व्यवस्था के द्वारा किसी वर्ग या समाज का सदस्य राज्य की संसद या विधानसभा में अपना प्रतिनिधि चुनने या किसी अधिकारी के निर्वाचन में अपनी इच्छा या किसी प्रस्ताव पर अपना निर्णय प्रकट करता है। इस दृष्टि से यह व्यवस्था सभी चुनावों तथा सभी संसदीय या प्रत्यक्ष विधिनिर्माण में प्रयुक्त होती है। अधिनायकवादी सरकार में अधिनायक द्वारा पहले से लिए गए निर्णयों पर व्यक्ति को अपना मत प्रकट करने के लिये कहा जा सकता है, परंतु अपने निर्णयों को आरोपित करने के अधिनायक के विभिन्न ढंग इस प्रकार के मतदान को केवल औपचारिक प्रविधि तक सीमित कर देते हैं। जनतंत्रात्मक सरकार में ही मतदान को प्रमुख क्षेत्र तथा महत्व प्राप्त होता है। .

सामग्री की तालिका

  1. 5 संबंधों: चुनाव, निर्वाचन प्रणालियाँ, प्राचीन भारत, मताधिकार, अनिवार्य मतदान

  2. चुनाव

चुनाव

चुनाव पेटी चुनाव या निर्वाचन (election), लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनता (लोग) अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। चुनाव के द्वारा ही आधुनिक लोकतंत्रों के लोग विधायिका (और कभी-कभी न्यायपालिका एवं कार्यपालिका) के विभिन्न पदों पर आसीन होने के लिये व्यक्तियों को चुनते हैं। चुनाव के द्वारा ही क्षेत्रीय एवं स्थानीय निकायों के लिये भी व्यक्तिओं का चुनाव होता है। वस्तुतः चुनाव का प्रयोग व्यापक स्तर पर होने लगा है और यह निजी संस्थानों, क्लबों, विश्वविद्यालयों, धार्मिक संस्थानों आदि में भी प्रयुक्त होता है। .

देखें मतदान और चुनाव

निर्वाचन प्रणालियाँ

एकल हस्तान्तरणीय मत '''मिश्रित प्रणाली''' प्रतिनिधियों के चुनाव के अनेक तरीके हो सकते हैं। लाटरी के टिकट निकाल कर बिना समझे बूझे प्रतिनिधियों का चुनाव कर लेना तो एक ऐसा तरीका है जिसकी लोकतंत्र में कोई गुंजाइश नहीं है। दूसरे तरीके सामान्यत: निर्वाचन की मतदान प्रणाली पर ही आधृत हैं,। यद्यपि ये तरीके भी पूर्णत: निर्दोष ही हों यह आवश्यक नहीं; पदप्राप्ति के इच्छुक प्रत्याशी प्राय: मतदाताओं को घूस देकर अथवा डरा धमकाकर कर जोरजबर्दस्ती से उनका मत प्राप्त कर लेते हैं। विभिन्न प्रकार के अल्पसंख्यक वर्ग उचित प्रतिनिधित्व से वंचित रह जाते हैं। राजनीतिक तथा अन्य प्रकार के दल कभी कभी चुनाव के लिए किसी अयोग्य उम्मीदवार को खड़ा कर देते हैं। ऐसी हालत में उस दल के लोगों को चाहे-अनचाहे उसी को अपना मत देना पड़ता है। इन दोषों को दूर अथवा कम करने और मतदान को स्वतंत्र एवं निष्पक्ष बनाने के लिए समय-समय पर निर्वाचन की विभिन्न प्रणालियों का विकास किया गया है। .

देखें मतदान और निर्वाचन प्रणालियाँ

प्राचीन भारत

मानव के उदय से लेकर दसवीं सदी तक के भारत का इतिहास प्राचीन भारत का इतिहास कहलाता है। .

देखें मतदान और प्राचीन भारत

मताधिकार

vote ASBS।मताधिकार संम्पादन। https://commons.wikimedia.org/wiki/ राज्य के नागरिकों को देश के संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार चलाने के हेतु, अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को मताधिकार (फ्रैंचाइज) कहते हैं। जनतांत्रिक प्रणाली में इसका बहुत महत्व होता है। जनतंत्र की नीवं मताधिकार पर ही रखी जाती है। इस प्रणाली पर आधारित समाज व शासन की स्थापना के लिये आवश्यक है कि प्रत्येक व्ययस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार प्रदान किया जाय। जिस देश में जितने ही अधिक नागरिकों को मताधिकार प्राप्त रहता है उस देश को उतना ही अधिक जनतांत्रिक समझा जाता है। इस प्रकार हमारा देश संसार के जनतांत्रिक देशों में सबसे बड़ा है क्योंकि हमारे यहाँ मताधिकारप्राप्त नागरिकों की संख्या विश्व में सबसे बड़ी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद (आर्टिकल) 325 व 326 के अनुसार प्रत्येक वयस्क् नागरिक को, जो पागल या अपराधी न हो, मताधिकार प्राप्त है। किसी नागरिक को धर्म, जाति, वर्ण, संप्रदाय अथवा लिंग भेद के कारण मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के "गवर्नमेंट ऑव इंडिया ऐक्ट" के अनुसार केवल 13 प्रति शत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तें थीं। केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थितिवाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था1 इसमें विशेषतया वे ही लोग थे जिनके कंधों पर विदेशी शासन टिका हुआ था। अन्य पश्चिमी देशों में, जनतांत्रिक प्रणाली अब पूर्ण विकसित हो चुकी है, एकाएक सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार नहीं प्रदान किया गया था। धीरे धीरे, सदियों में, उन्होंने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया है। कहीं कहीं तो अब भी मताधिकार के मामले में रंग एवं जातिभेद बरता जाता है। परंतु भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानते हुए और व्यक्ति की महत्ता को स्वीकारते हुए, अमीर गरीब के अंतर को, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के अंतर को, तथा स्त्री पुरुष के अंतर को मिटाकर प्रत्येक वयस्क नागरिक को देश की सरकार बनाने के लिये अथवा अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिये "मत" (वोट) देने का अमूल्य अधिकार प्रदान किया है। संविधान लागू होने के बाद पिछले वर्षों में भारतीय जनता ने अपने मताधिकार के पवित्र कर्त्तव्य का समुचित रूप से पालन करके प्रमाणित कर दिया है कि उसे जनतंत्र में पूर्ण आस्था है। इस दृष्टि से भी भारतीय जनतंत्र का विशेष महत्व है। .

देखें मतदान और मताधिकार

अनिवार्य मतदान

अनिवार्य मतदान का अर्थ है कि कानून के अनुसार किसी चुनाव में मतदाता को अपना मत देना या मतदान केन्द्र पर उपस्थित होना अनिवार्य है। यदि कोई वैध मतदाता, मतदान केन्द्र पहुंचकर अपना मत नही देता है तो उसे पहले से घोषित कुछ दण्ड का भागी बनाया जा सकता है। .

देखें मतदान और अनिवार्य मतदान

यह भी देखें

चुनाव

मत, वोट के रूप में भी जाना जाता है।