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भारतीय रेल
यार्ड में खड़ी एक जनशताब्दी रेल। भारतीय रेल (आईआर) एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क तथा एकल सरकारी स्वामित्व वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह १६० वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है, जिसके १३ लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। यह न केवल देश की मूल संरचनात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है अपितु बिखरे हुए क्षेत्रों को एक साथ जोड़ने में और देश राष्ट्रीय अखंडता का भी संवर्धन करता है। राष्ट्रीय आपात स्थिति के दौरान आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने में भारतीय रेलवे अग्रणी रहा है। अर्थव्यस्था में अंतर्देशीय परिवहन का रेल मुख्य माध्यम है। यह ऊर्जा सक्षम परिवहन मोड, जो बड़ी मात्रा में जनशक्ति के आवागमन के लिए बड़ा ही आदर्श एवं उपयुक्त है, बड़ी मात्रा में वस्तुओं को लाने ले जाने तथा लंबी दूरी की यात्रा के लिए अत्यन्त उपयुक्त है। यह देश की जीवनधारा है और इसके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए इनका महत्वपूर्ण स्थान है। सुस्थापित रेल प्रणाली देश के दूरतम स्थानों से लोगों को एक साथ मिलाती है और व्यापार करना, दृश्य दर्शन, तीर्थ और शिक्षा संभव बनाती है। यह जीवन स्तर सुधारती है और इस प्रकार से उद्योग और कृषि का विकासशील त्वरित करने में सहायता करता है। .
देखें भारतीय रेल हड़ताल, १९७४ और भारतीय रेल
हड़ताल
औद्योगिक माँगों की पूर्ति कराने के लिए हड़ताल (general strike) मजदूरों का अत्यंत प्रभावकारी हथियार है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में हड़ताल की परिभाषा करते हुए लिखा गया है कि औद्योगिक संस्थान में कार्य करनेवाले कारीगरों द्वारा (जिनकी नियुक्ति कार्य करने के लिए हुई है) सामूहिक रूप से कार्य बंद करने अथवा कार्य करने से इनकार करने की कार्यवाही को हड़ताल कहा जाता है। हड़ताल के अविभाज्य तत्वों में-औद्योगिक मजदूरों का सम्मिलित होना, कार्य का बंद होना अथवा कार्य करने से इन्कार करना और समान समझदारी से सामूहिक कार्य करने की गणना होती है। सामूहिक रूप से कार्य पर से अनुपस्थित रहने की क्रिया को भी हड़ताल की संज्ञा दी जाती है। हड़ताल के अंतर्गत उपर्युक्त तत्वों का उसमें समावेश है। आम तौर पर मजदूरों ने मजदूरी, बोनस, मुअत्तली, निष्कासनआज्ञा, छुट्टी, कार्य के घंटे, ट्रेड यूनियन संगठन की मान्यता आदि प्रश्नों को लेकर हड़तालें की हैं। श्रमिकों में व्याप्त असंतोष की अधिकतर हड़तालों का कारण हुआ करता है। इंग्लैंड में श्रमिक संघों के विकास के साथ साथ मजदूरों में औद्योगिक उमंग अर्थात् उद्योगों में स्थान बनाने की भावना तथा राजनीतिक विचारों के प्रति रुचि रखने की प्रवृत्ति भी विकसित हुई। परंतु संयुक्त पूँजीवादी प्रणाली (Joint stock system) के विकास ने मजदूरों में असंतोष की सृष्टि की। इस प्रणाली से एक ओर जहाँ पूँजी के नियंत्रण एवं स्वामित्व में भिन्नता का प्रादुर्भाव हुआ, वहीं दूसरी ओर मालिकों और श्रमिकों के व्यक्तिगत संबध भी बिगड़ते गए। फलस्वरूप द्वितीय महायुद्ध के बाद मजदूरी, बोनस, महँगाई आदि के प्रश्न हड़तालों के मुख्य कारण बने। इंग्लैंड में हड़तालें श्रमसंगठनों की मान्यता एवं उद्योग के प्रबंध में भाग लेने की इच्छा का लेकर भी हुई हैं। वर्तमान काल में, हड़ताल द्वारा उत्पादन का ह्रास न हो, अत: सामूहिक सौदेबाजी (Collective bargalring) का सिद्धांत अपनाया जा रहा है। ग्रेट ब्रिटेन में श्रमसंगठनों को मालिकों द्वारा मान्यता प्राप्त हो चुकी है तथा सामूहिक सौदेबाजी के अंतर्गत जो भी समझौते हुए हैं उनको व्यापक बनाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रमसंगठन की रिपोर्ट के अनुसार अमरीका में गैर-कृषि उद्योगों में कार्यरत एक तिहाई मजदूरों के कार्य की दशाएँ "सामूहिक सौदेबाजी" के द्वारा निश्चित होने लगी हैं। स्विटजरलैंड में लगभग आधे औद्योगिक मजदूर सामूहिक अनुबंधों के अंतर्गत आते हैं। आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, जर्मन गणराज्य, लुकजंबर्ग, स्केंडेनेवियन देशों तथा ग्रेट ब्रिटेन के अधिकांश औद्योगिक मजदूर सामूहिक करारों के अंतर्गत आ गए हैं। सोवियत संघ और पूर्वीय यूरोप के प्रजातंत्र राज्यों में भी ऐसे सामूहिक करार प्रत्येक औद्योगिक संस्थान में पाए जाते हैं। प्रथम महायुद्ध से पूर्व भारतीय मजदूर अपनी माँगोंको मनवाने के लिए हड़ताल का सुचारु रूप से प्रयोग करना नहीं जानते थे। इसका मूल कारण उनकी निरक्षरता, जीवन के प्रति उदासीनता और उनमें संगठन तथा नेतृत्व का अभाव था। प्रथम महायुद्ध की अवधि तथा विशेषकर उसके बाद लोकतंत्रीय विचारों के प्रवाह ने, सोवियत क्रांति ने, समानता, भ्रातृत्व और स्वतंत्रता के सिद्धांत की लहर ने तथा अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने मजदूरों के बीच एक नई चेतना पैदा कर दी तथा भारतीय मजदूरों ने भी साम्राज्यवादी शासन के विरोध, काम की दशाओं, काम के घंटे, छुट्टी, निष्कासन आदि प्रश्नों को लेकर हड़तालें की। .
देखें भारतीय रेल हड़ताल, १९७४ और हड़ताल
जॉर्ज फ़र्नान्डिस
जॉर्ज फ़र्नान्डिस (जन्म 3 जून 1930) भारतीय राजनेता हैं। वे श्रमिक संगठन के भूतपूर्व नेता, तथा पत्रकार थे। वे राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। उन्होने समता पार्टी की स्थापना की। वे भारत के केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में रक्षामंत्री, संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री आदि के रूप में कार्य कर चुके हैं। आजकल उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और वे एकाकी जीवन जी रहे हैं। चौदहवीं लोकसभा में वे मुजफ़्फ़रपुर से जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर सांसद चुने गए। वे 1998 से 2004 तक की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की केन्द्रीय सरकार में रक्षा मंत्री थे। 1977 में, आपातकाल हटा दिए जाने के बाद, फर्नांडीस ने अनुपस्थिति में बिहार में मुजफ्फरपुर सीट जीती और उन्हें इंडस्ट्रीज के केंद्रीय मंत्री नियुक्त किया गया। केंद्रीय मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने निवेश के उल्लंघन के कारण, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों आईबीएम और कोका-कोला को देश छोड़ने का आदेश दिया। वह 1989 से 1990 तक रेल मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कोंकण रेलवे परियोजना के पीछे प्रेरणा शक्ति थीं। वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार (1998-2004) में रक्षा मंत्री थे, जब कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान और भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किए एक अनुभवी समाजवादी, फर्नांडीस को बराक मिसाइल घोटाले और तहलका मामले सहित कई विवादों से डर लगता है। जॉर्ज फर्नांडीस ने 1967 से 2004 तक 9 लोकसभा चुनाव जीते। .
देखें भारतीय रेल हड़ताल, १९७४ और जॉर्ज फ़र्नान्डिस
यह भी देखें
भारत इतिहास आधार
- 1991 पंजाब हत्याएं
- 1991 रुद्रपुर बम विस्फोट
- अग्निमित्र
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- अश्मक
- अहिरवाड़ा
- इंक़लाब ज़िन्दाबाद
- इंदु बंगा
- उपग्रह प्रक्षेपण यान
- कम्ल्लाह
- काम्पिल्य
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- गरम दल
- चंदावर का युद्ध
- जम्मू का युद्ध
- जसदण राज्य
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- ज्ञान प्रकाश
- डी॰ पी॰ अग्रवाल
- तिमण गढ़
- तुलुव राजवंश
- दशरूपकम्
- दिनेशचंद्र सरकार
- धमारा घाट रेल दुर्घटना
- नूहानी वंश
- पाई (मुद्रा इकाई)
- पुलिंद
- प्रबोध चन्द्र सेनगुप्त
- फ्रांसीसी भारतीय रुपया
- बेगार प्रथा
- बेगूँ किसान आंदोलन
- भारतीय रेल हड़ताल, १९७४
- महमूद तुग़लक़
- राँढीया (अमरेली)
- राधा कुमुद मुखर्जी
- लक्ष्मण सेन
- वज़ीर खान (सरहिंद)
- विश्वरूप सेन
- शांति सेना
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- सुलुव राजवंश
- सोनबरसा राज
- हकीम खाँ सूरी
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- २०१७ सुकमा आक्रमण
स्वतंत्र भारत का इतिहास
- अक्साई चिन
- आपातकाल (भारत)
- कश्मीर विवाद
- गणतन्त्र दिवस (भारत)
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- नियति से साक्षात्कार
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- भारत का विभाजन
- भारत का संविधान
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- भारत पाकिस्तान युद्ध
- भारत में आर्थिक सुधार
- भारत में शरणार्थी
- भारत में सामूहिक विनाश के हथियार
- भारतीय अधिराज्य
- भारतीय पुनर्नामकरण विवाद
- भारतीय रेल हड़ताल, १९७४
- भूदान आन्दोलन
- राष्ट्रपति शासन
- लद्दाख़
- वास्तविक नियंत्रण रेखा
- संघ सूची
- समवर्ती सूची
- सम्पूर्ण क्रांति
- हरित क्रांति (भारत)
- हिन्दू राष्ट्रवाद
- १९९१ का भारत का आर्थिक संकट