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बेगूँ किसान आंदोलन

सूची बेगूँ किसान आंदोलन

बेगूँ किसान आंदोलन चित्तौड़गढ़ में सन १९२१ में आरम्भ हुआ। इसकी शुरूआत बेगार प्रथा के विरोध के रूप में हुई थी। आंदोलन की शुरूआत रामनारायण चैधरी ने की, बाद में इसकी बागड़ोर विजयसिंह पथिक ने सम्भाली थी। इस समय बेगूँ के ठाकुर अनुपसिंह थे। 1922 में अनुपसिंह और राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारयण चैधरी के मध्य एक समझौता हुआ जिसे 'वोल्सेविक समझौते' की संज्ञा दी गई। यह संज्ञा किसान आंदोलन के प्रस्तावों के लिए गठित ट्रेन्च आयोग ने दी थी। 13 जुलाई,1923 को गोविन्दपुरा गांव में किसानों का एक सम्मेलन हुआ, सेना के द्वारा किसानों पर गोलियाँ चलाई गयी। जिसमें रूपाजी और कृपाजी नामक दो किसान शहीद हुए। अन्त में बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया। यह आन्दोलन विजयसिंह पथिक के नेतृत्व में समाप्त हुआ था। .

2 संबंधों: चित्तौड़गढ़, बेगार प्रथा

चित्तौड़गढ़

पद्मिनी महल का तैलचित्र चित्तौड़गढ़ राजस्थान का एक शहर है। यह शूरवीरों का शहर है जो पहाड़ी पर बने दुर्ग के लिए प्रसिद्ध है। चित्तौड़गढ़ की प्राचीनता का पता लगाना कठिन कार्य है, किन्तु माना जाता है कि महाभारत काल में महाबली भीम ने अमरत्व के रहस्यों को समझने के लिए इस स्थान का दौरा किया और एक पंडित को अपना गुरु बनाया, किन्तु समस्त प्रक्रिया को पूरी करने से पहले अधीर होकर वे अपना लक्ष्य नहीं पा सके और प्रचण्ड गुस्से में आकर उसने अपना पाँव जोर से जमीन पर मारा, जिससे वहाँ पानी का स्रोत फूट पड़ा, पानी के इस कुण्ड को भीम-ताल कहा जाता है; बाद में यह स्थान मौर्य अथवा मूरी राजपूतों के अधीन आ गया, इसमें भिन्न-भिन्न राय हैं कि यह मेवाड़ शासकों के अधीन कब आया, किन्तु राजधानी को उदयपुर ले जाने से पहले 1568 तक चित्तौड़गढ़ मेवाड़ की राजधानी रहा। यहाँ पर रोड वंशी राजपूतों ने बहुत समय राज किया। यह माना जाता है गुलिया वंशी बप्पा रावल ने 8वीं शताब्दी के मध्य में अंतिम सोलंकी राजकुमारी से विवाह करने पर चित्तौढ़ को दहेज के एक भाग के रूप में प्राप्त किया था, बाद में उसके वंशजों ने मेवाड़ पर शासन किया जो 16वीं शताब्दी तक गुजरात से अजमेर तक फैल चुका था। अजमेर से खण्डवा जाने वाली ट्रेन के द्वारा रास्ते के बीच स्थित चित्तौरगढ़ जंक्शन से करीब २ मील उत्तर-पूर्व की ओर एक अलग पहाड़ी पर भारत का गौरव राजपूताने का सुप्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ का किला बना हुआ है। समुद्र तल से १३३८ फीट ऊँची भूमि पर स्थित ५०० फीट ऊँची एक विशाल (ह्वेल मछ्ली) आकार में, पहाड़ी पर निर्मित्त यह दुर्ग लगभग ३ मील लम्बा और आधे मील तक चौड़ा है। पहाड़ी का घेरा करीब ८ मील का है तथा यह कुल ६०९ एकड़ भूमि पर बसा है। चित्तौड़गढ़, वह वीरभूमि है जिसने समूचे भारत के सम्मुख शौर्य, देशभक्ति एवम् बलिदान का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारारुपी तीर्थ में स्नान किया। वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किये। इन स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर रह गयी है। यहाँ का कण-कण हममें देशप्रेम की लहर पैदा करता है। यहाँ की हर एक इमारतें हमें एकता का संकेत देती हैं। .

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बेगार प्रथा

मूल्य चुकाए बिना श्रम कराने की प्रथा को बेगार कहते हैं। इसमें श्रमिकों की इच्छा के बिना काम लिया जाता है। सामंती, साम्राज्यवादी और अफ़सरशाही प्रायः समाज के कमज़ोर लोगों से बेगार करवाती है। ब्रिटिशकालीन भारत में तो यह आम बात थी। किंतु स्वतंत्र भारत में भी इस तरह की घटनाओं का सर्वथा अभाव नहीं है। यह प्रथा अंगरेजों के खिलाफ आम जनता के असंतोष की एक बड़ी वजह थी। .

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