लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

सौर पाल

सूची सौर पाल

सौर पाल (solar sail), जिसे प्रकाश पाल (light sail) या फ़ोटोन पाल (photon sail) भी कहते हैं सौर प्रकाश को बड़े दर्पणों से किसी अंतरिक्ष यान पर लगे बड़े आकार के परावर्तक पाल पर दाग़कर उस से बनने बाले विकिरण दाब द्वारा करे गये अंतरिक्ष यान प्रणोदन (गतिमान करने की क्रिया) को कहते हैं। जिस प्रकार कोई पालनौका पवन के प्रहार से चल पड़ती है, उसी प्रकार विचार है कि अंतरिक्ष यानों को प्रकाश के प्रहार से चलाया जा सकता है। वैज्ञानिकों की सोच है कि इस सिद्धांत से बनाये गये यानों पर ख़र्च कम होगा क्योंकि उन्हें अपने साथ ईन्धन ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी। कुछ प्रस्तावों में सौर प्रकाश के स्थान पर पथ्वी या चंद्रमा पर लेज़र किरणों का स्रोत लगाकर उन्हें पाल पर चमकाने का सुझाव दिया गया है। पृथ्वी की कक्षा के पास स्थित ८०० मीटर चौड़े और ८०० मीटर लम्बे सौर पाल पर सूरज की किरणों का बल लगभग ५ न्य्यूटन के बराबर पड़ेगा। यह एक हल्का बल है। लेकिन जहाँ आज के राकेट कुछ अरसे तक चलकर ईन्धन समाप्त होने पर रुक जाते हैं वहाँ सौर पाल यान को महीनों, वर्षों, दशकों या शताब्दियों तक लगातार अधिक गतिशील कर सकता है। विकिरण दाब एक वास्तविकता है और बिना पाल वाले अंतरिक्ष यानों पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। .

11 संबंधों: परावर्तन (भौतिकी), पाल, पालनौका, पवन, पृथ्वी, बल (भौतिकी), रॉकेट, लेसर किरण, ईन्धन, विकिरण दाब, अंतरिक्ष यान प्रणोदन

परावर्तन (भौतिकी)

चिकने तल से प्रकाश का परावर्तन झील के जल में पर्वत का प्रतिबिम्ब, परावर्तन का परिणाम है। जब कोई प्रकाश की किरण किसे माध्य्म से टकराकर पुनः उसे मार्ग में वापस लौट जाती है तो इस घटना को प्रकाश का परावर्तन कहते है। दो माध्यमों के मिलान तल पर पहुंचकर किसी तरंग का पुनः उसी माध्याम में पीछे लौट जाना परावर्तन कहलाता है। उदाहरण के लिये, जल की तरंगों, ध्वनि, प्रकाश तथा अन्य विद्युतचुम्बकीय तरंगों का परावर्तन। दर्पण में हम अपना जो प्रतिबिम्ब देखते हैं वह परावर्तन के कारण ही बना होता है। ध्वनिविज्ञान में, ध्वनि के परावर्तन के कारण प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है जो सोनार में उपयोग में लायी जाती है। भूविज्ञान में भूकम्प तरंगों के अध्ययन में परावर्तन उपयोगी है। रेडियो प्रसारण तथा राडार के लिये अत्युच्च आवृत्ति (VHF) एवं इससे भी अधिक आवृत्तियों का परावर्तन महत्वपूर्ण है। .

नई!!: सौर पाल और परावर्तन (भौतिकी) · और देखें »

पाल

पाल या बादबान पवन की शक्ति द्वारा किसी वाहन को जल, हिम या धरती पर आगे धकेलने के एक साधन को कहते हैं। आमतौर पर पाल कपड़े या अन्य किसी सामग्री से बनी एक सतह होती है जो वाहन में जड़े हुए मस्तूल (mast) कहलाने वाले एक सख़्त खम्बे के साथ लगी हुई होती है। जब पाल पर वायू प्रवाह का प्रहार होता है तो पाल फूल-सा जाता है और आगे को धकेला जाता है। यह बल मस्तूल द्वारा यान को प्रसारित होता है। कुछ पालों का आकार ऐसा होता है जिनपर पवन एक ऊपर की ओर उठाने वाला बल भी प्रस्तुत करती है। इस से भी वाहन को आगे धकेलने में असानी होती है। पाल और पतंग दोनों में पवन के बल का प्रयोग वस्तुओं को गति देने के लिये होता है। .

नई!!: सौर पाल और पाल · और देखें »

पालनौका

बादबानी (sailboat), जिसे पालनौका (sail+boat) भी कहा जा सकता है, ऐसी नौका होती है जिसे गति देने का प्रमुख साधन एक या अनेक पाल (sail) होते हैं जो पवन पकड़कर नौका को आगे घकेलने का काम करते हैं। औद्योगिक युग से पहले नौकाओं को चलाने का यही प्रमुख साधन था। .

नई!!: सौर पाल और पालनौका · और देखें »

पवन

पवन की दिशा बताने वाला यन्त्र पवनवेगदर्शी गतिशील वायु को पवन (Wind) कहते हैं। यह गति पृथ्वी की सतह के लगभग समांतर रहती है। पृथ्वी से कुछ मीटर ऊपर तक के पवन को सतही पवन और २०० मीटर या अधिक ऊँचाई के पवन को उपरितन पवन कहते हैं। जब किसी स्थान और ऊँचाई के पवन का निर्देश करना हो तब वहाँ के पवन की चाल और उसकी दिशा दोनों का उल्लेख होना चाहिए। पवन की दिशा का उल्लेख करने में जिस दिशा से पवन बह रहा है उसका उल्लेख दिक्सूचक के निम्नलिखित १६ संकेतों से करते हैं: अधिक यथार्थता (precision) से पवन की दिशा बताने के लिए यह दिशा अंशों में व्यक्त की जाती है। जब पवन दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में परिवर्तित होता है (जैसे उ से उ पू और पू), तब ऐसे परिवर्तन को पवन का दक्षिणावर्तन और वामावर्त दिश में परिवर्तन (जैसे उ से उप और प) का विपरीत पवन कहते हैं। वेधशाला में पवनदिक्सूचक नामक उपकरण हवा की दिशा बताता है। इसका नुकीला सिरा हमेशा उधर रहता है जिधर से हवा आ रही होती है। पवन का वेग मील प्रति घंटे, या मीटर प्रति सेकंड, में व्यक्त किया जाता है। सतह के पवन को मापने के लिए प्राय: प्याले के आकार का पवनमापी काम में आता है। पवनवेग का लगातार अभिलेख करने के लिए अनेक उपकरण काम में आते हैं, जिनमें दाबनली एवं पवनलेखक (Anemograph) महत्वपूर्ण एवं प्रचलित है। भिन्न भिन्न ऊँचाई के उपरितन पवन का निर्धारण करने के लिए हाइड्रोजन से भरा गुब्बारा उड़ाया जाता है और ऊपर उठते हुए तथा पवनहित बैलून की ऊँचाई और दिगंश (azimuth) ज्ञात करने के लिए इसका निरीक्षण सामान्य थियोडोलाइट (theodolite) या रेडियो थियोडोलाइट से करते हैं। तब बैलून की उड़ान का प्रक्षेपपथ (trajectory) तैयार किया जाता है और प्राय: बैलून के ऊपर उठने के वेग की दर की कल्पना करके, प्रक्षेपपथ के विभिन्न बिंदुओं से बैलून की संगत ऊँचाई की गणना की जाती है। प्रक्षेपपथ से, इच्छित ऊँचाई पर, पवन की चाल और दिशा ज्ञात की जाती है। .

नई!!: सौर पाल और पवन · और देखें »

पृथ्वी

पृथ्वी, (अंग्रेज़ी: "अर्थ"(Earth), लातिन:"टेरा"(Terra)) जिसे विश्व (The World) भी कहा जाता है, सूर्य से तीसरा ग्रह और ज्ञात ब्रह्माण्ड में एकमात्र ग्रह है जहाँ जीवन उपस्थित है। यह सौर मंडल में सबसे घना और चार स्थलीय ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है। रेडियोधर्मी डेटिंग और साक्ष्य के अन्य स्रोतों के अनुसार, पृथ्वी की आयु लगभग 4.54 बिलियन साल हैं। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण, अंतरिक्ष में अन्य पिण्ड के साथ परस्पर प्रभावित रहती है, विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा से, जोकि पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह हैं। सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान, पृथ्वी अपनी कक्षा में 365 बार घूमती है; इस प्रकार, पृथ्वी का एक वर्ष लगभग 365.26 दिन लंबा होता है। पृथ्वी के परिक्रमण के दौरान इसके धुरी में झुकाव होता है, जिसके कारण ही ग्रह की सतह पर मौसमी विविधताये (ऋतुएँ) पाई जाती हैं। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे आते है, यह पृथ्वी को इसकी अपनी अक्ष पर स्थिर करता है, तथा इसकी परिक्रमण को धीमा कर देता है। पृथ्वी न केवल मानव (human) का अपितु अन्य लाखों प्रजातियों (species) का भी घर है और साथ ही ब्रह्मांड में एकमात्र वह स्थान है जहाँ जीवन (life) का अस्तित्व पाया जाता है। इसकी सतह पर जीवन का प्रस्फुटन लगभग एक अरब वर्ष पहले प्रकट हुआ। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के लिये आदर्श दशाएँ (जैसे सूर्य से सटीक दूरी इत्यादि) न केवल पहले से उपलब्ध थी बल्कि जीवन की उत्पत्ति के बाद से विकास क्रम में जीवधारियों ने इस ग्रह के वायुमंडल (the atmosphere) और अन्य अजैवकीय (abiotic) परिस्थितियों को भी बदला है और इसके पर्यावरण को वर्तमान रूप दिया है। पृथ्वी के वायुमंडल में आक्सीजन की वर्तमान प्रचुरता वस्तुतः जीवन की उत्पत्ति का कारण नहीं बल्कि परिणाम भी है। जीवधारी और वायुमंडल दोनों अन्योन्याश्रय के संबंध द्वारा विकसित हुए हैं। पृथ्वी पर श्वशनजीवी जीवों (aerobic organisms) के प्रसारण के साथ ओजोन परत (ozone layer) का निर्माण हुआ जो पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र (Earth's magnetic field) के साथ हानिकारक विकिरण को रोकने वाली दूसरी परत बनती है और इस प्रकार पृथ्वी पर जीवन की अनुमति देता है। पृथ्वी का भूपटल (outer surface) कई कठोर खंडों या विवर्तनिक प्लेटों में विभाजित है जो भूगर्भिक इतिहास (geological history) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान को विस्थापित हुए हैं। क्षेत्रफल की दृष्टि से धरातल का करीब ७१% नमकीन जल (salt-water) के सागर से आच्छादित है, शेष में महाद्वीप और द्वीप; तथा मीठे पानी की झीलें इत्यादि अवस्थित हैं। पानी सभी ज्ञात जीवन के लिए आवश्यक है जिसका अन्य किसी ब्रह्मांडीय पिण्ड के सतह पर अस्तित्व ज्ञात नही है। पृथ्वी की आतंरिक रचना तीन प्रमुख परतों में हुई है भूपटल, भूप्रावार और क्रोड। इसमें से बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है और एक ठोस लोहे और निकल के आतंरिक कोर (inner core) के साथ क्रिया करके पृथ्वी मे चुंबकत्व या चुंबकीय क्षेत्र को पैदा करता है। पृथ्वी बाह्य अंतरिक्ष (outer space), में सूर्य और चंद्रमा समेत अन्य वस्तुओं के साथ क्रिया करता है वर्तमान में, पृथ्वी मोटे तौर पर अपनी धुरी का करीब ३६६.२६ बार चक्कर काटती है यह समय की लंबाई एक नाक्षत्र वर्ष (sidereal year) है जो ३६५.२६ सौर दिवस (solar day) के बराबर है पृथ्वी की घूर्णन की धुरी इसके कक्षीय समतल (orbital plane) से लम्बवत (perpendicular) २३.४ की दूरी पर झुका (tilted) है जो एक उष्णकटिबंधीय वर्ष (tropical year) (३६५.२४ सौर दिनों में) की अवधी में ग्रह की सतह पर मौसमी विविधता पैदा करता है। पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा (natural satellite) है, जिसने इसकी परिक्रमा ४.५३ बिलियन साल पहले शुरू की। यह अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा समुद्री ज्वार पैदा करता है, धुरिय झुकाव को स्थिर रखता है और धीरे-धीरे पृथ्वी के घूर्णन को धीमा करता है। ग्रह के प्रारंभिक इतिहास के दौरान एक धूमकेतु की बमबारी ने महासागरों के गठन में भूमिका निभाया। बाद में छुद्रग्रह (asteroid) के प्रभाव ने सतह के पर्यावरण पर महत्वपूर्ण बदलाव किया। .

नई!!: सौर पाल और पृथ्वी · और देखें »

बल (भौतिकी)

बल अनेक प्रकार के होते हैं जैसे- गुरुत्वीय बल, विद्युत बल, चुम्बकीय बल, पेशीय बल (धकेलना/खींचना) आदि। भौतिकी में, बल एक सदिश राशि है जिससे किसी पिण्ड का वेग बदल सकता है। न्यूटन के गति के द्वितीय नियम के अनुसार, बल संवेग परिवर्तन की दर के अनुपाती है। बल से त्रिविम पिण्ड का विरूपण या घूर्णन भी हो सकता है, या दाब में बदलाव हो सकता है। जब बल से कोणीय वेग में बदलाव होता है, उसे बल आघूर्ण कहा जाता है। प्राचीन काल से लोग बल का अध्ययन कर रहे हैं। आर्किमिडीज़ और अरस्तू की कुछ धारणाएँ थीं जो न्यूटन ने सत्रहवी सदी में ग़लत साबित की। बीसवी सदी में अल्बर्ट आइंस्टीन ने उनके सापेक्षता सिद्धांत द्वारा बल की आधुनिक अवधारणा दी। प्रकृति में चार मूल बल ज्ञात हैं: गुरुत्वाकर्षण बल, विद्युत चुम्बकीय बल, प्रबल नाभकीय बल और दुर्बल नाभकीय बल। बल की गणितीय परिभाषा है: जहाँ \vec बल, \vec संवेग और t समय हैं। एक ज़्यादा सरल परिभाषा है: जहाँ m द्रव्यमान है और \vec त्वरण है। .

नई!!: सौर पाल और बल (भौतिकी) · और देखें »

रॉकेट

अपोलो १५ अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण रॉकेट एक प्रकार का वाहन है जिसके उड़ने का सिद्धान्त न्यूटन के गति के तीसरे नियम क्रिया तथा बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया पर आधारित है। तेज गति से गर्म वायु को पीछे की ओर फेंकने पर रॉकेट को आगे की दिशा में समान अनुपात का बल मिलता है। इसी सिद्धांत पर कार्य करने वाले जेट विमान, अंतरिक्ष यान एवं प्रक्षेपास्त्र विभिन्न प्रकार के राकेटों के उदाहरण हैं। रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग के साथ बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है। अंतरिक्ष यानों को वायुमंडल से ऊपर उड़ना होता है इसलिए वे अपना ईंधन एवं आक्सीजन लेकर उड़ते हैं। जेट विमान में केवल ईँधन रहता है। जब विमान चलना प्रारम्भ करता है तो विमान के सिरे पर बने छिद्र से बाहर की वायु इंजन में प्रवेश करती है। वायु के आक्सीजन के साथ मिलकर ईँधन अत्यधिक दबाव पर जलता है। जलने से उत्पन्न गैस का दाब बहुत अधिक होता है। यह गैस वायु के साथ मिलकर पीछे की ओर के जेट से तीव्र वेग से बाहर निकलती है। यद्यपि गैस का द्रव्यमान बहुत कम होता है किन्तु तीव्र वेग के कारण संवेग और प्रतिक्रिया बल बहुत अधिक होता है। इसलिए जेट विमान आगे की ओर तीव्र वेग से गतिमान होता है। रॉकेट का इतिहास १३वी सदी से प्रारंभ होता है। चीन में राकेट विद्या का विकास बहुत तेज़ी से हुआ और जल्दी ही इसका प्रयोग अस्त्र के रूप में किया जाने लगा। मंगोल लड़ाकों के द्वारा रॉकेट तकनीक यूरोप पहुँची और फिर विभिन्न शासकों द्वारा यूरोप और एशिया के अन्य भागों में प्रचलित हुई। सन १७९२ में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया। इस युद्ध के बाद अंग्रेज सेना ने रॉकेट के महत्त्व को समझा और इसकी तकनीक को विकसित कर विश्व भर में इसका प्रचार किया। स्पेस टुडे पर--> .

नई!!: सौर पाल और रॉकेट · और देखें »

लेसर किरण

कुहरे में लेज़र किरण एक कार के शीशे से परावर्तित होती हुई। लेजर (विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन) (अंग्रेज़ी:लाइट एंप्लीफिकेशन बाई स्टीमुलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन) का संक्षिप्त नाम है। प्रत्यक्ष वर्णक्रम की विद्युतचुम्बकीय तरंग, यानि प्रकाश उत्तेजित उत्सर्जन की प्रक्रिया द्वारा संवर्धित कर एक सीधी रेखा की किरण में बदल कर उत्सर्जित करने का तरीक होता है। इस प्रका निकली प्रकाश किरण को भी लेज़र किरण ही कहा जाता है। ये किरण प्रायः आकाशीय रूप से कोहैरेन्ट (सरल रैखिक व एक स्रोतीय), संकरी अविचलित होती है, जिसे किसी लेन्स द्वारा परिवर्तित भी किया जा सकता है। ये किरणें संकरी वेवलेन्थ, विद्युतचुम्बकीय वर्णक्रम की एकवर्णीय प्रकाश किरणें होती है। हालांखि बहुवर्णीय प्रकाशधारिणी लेज़र किरणें या बहु वेवलेन्थ लेज़र भी निर्मित की जाती हैं। एक पदार्थ (सामान्यत: एक गैस और क्रिस्टल) को ऊर्जा, जैसे प्रकाश या विद्युत से टकराने के बाद वह अणु को विद्युतचुम्बकीय विकिरण (एक्सरे, पराबैंगनी किरणें) उत्सर्जित करने के लिए उत्तेजित करता है जिसको बाद में संवर्धित किया जाता है और एक किरण के रूप में इसे छोड़ा जाता है। लेजर एक ऐसी तकनीक के रूप में विकसित हुई है जिसके सहारे आज आधुनिक जगत के अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। लेज़र का आविष्कार लगभग ५० वर्ष पहले हुआ था। आधुनिक जगत में लेजर का प्रयोग हर जगह मिलता है – वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं, सुपरमार्केट और शॉपिंग मॉल्स से लेकर अस्पतालों तक में भी। मनोरंजन के संसार में डीवीडी के प्रकार्य में लेज़र ही सहायक होता है, सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र में वायुयानों को गाइड करने में, तोप और बंदूकों को लक्ष्य लॉक करने में, आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में दंत चिकित्सा और लेज़र से आंख के व अन्य शारीरिक ऑपरेशन, कार्यालयों के कार्य में लेज़र प्रिंटर द्वारा डाक्यूमेंट प्रिंटिंग, संचा क्षेत्र में ऑप्टिकल फाइबर केबलों तक में लेज़र ही चलती है। पिछले ५० वषों में लेजर ने अपनी उपयोगिता को व्यापक तौर पर सिद्ध कर दिखाया है। लेजर किरण का आविष्कार थिओडोर मैमेन द्वारा हुआ मात्र एक संयोग ही था। थिओडोर मैमेन के कैमरे के लैंस की कुण्डली के ऊपर माणिक्य (रूबी) का एक टुकड़ा संयोग से रखने पर एक लाल रंग की प्रकाश किरण निकली। थिओडोर ने ह्यूज़स शोध प्रयोगशाला में इस पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने वहां देखा कि किसी बल्ब के फ्लैश से माणिक्य के पतले से बेलन को आवेशित करना संभव है और फिर इससे ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। इससे शुद्ध लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित होता है जिसकी तरंगें एक समान रूप और अंतराल से प्रवाहित होती हैं और एक सीधी रेखा में चलती हैं। चूंकि ये किरणें अत्यंत शक्तिशाली थीं और परीक्षण के दौरान सर्वप्रथम एक रेजर के ब्लेड में भी छेद बना सकती थी, इसलिए तत्कालीन भौतिकशास्त्रियों ने इसकी शक्ति को जिलेट में मापना शुरू किया। .

नई!!: सौर पाल और लेसर किरण · और देखें »

ईन्धन

जलती हुई प्राकृतिक गैस ईधंन (Fuel) ऐसे पदार्थ हैं, जो आक्सीजन के साथ संयोग कर काफी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। 'ईंधन' संस्कृत की इन्ध्‌ धातु से निकला है जिसका अर्थ है - 'जलाना'। ठोस ईंधनों में काष्ठ (लकड़ी), पीट, लिग्नाइट एवं कोयला प्रमुख हैं। पेट्रोलियम, मिट्टी का तेल तथा गैसोलीन द्रव ईधंन हैं। कोलगैस, भाप-अंगार-गैस, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस और प्राकृतिक गैस आदि गैसीय ईंधनों में प्रमुख हैं। आजकल परमाणु ऊर्जा भी शक्ति के स्रोत के रूप में उपयोग की जाती है, इसलिए विखंडनीय पदार्थों (fissile materials) को भी अब ईंधन माना जाता है। वैज्ञानिक और सैनिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जानेवाले राकेटों में, एल्कोहाल, अमोनिया एवं हाइड्रोजन जैसे अनेक रासायनिक यौगिक भी ईंधन के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इन पदार्थों से ऊर्जा की प्राप्ति तीव्र गति से होती है। विद्युत्‌ ऊर्जा का प्रयोग भी ऊष्मा की प्राप्ति के लिए किया जाता है इसलिए इसे भी कभी-कभी ईंधनों में सम्मिलित कर लिया जाता है। .

नई!!: सौर पाल और ईन्धन · और देखें »

विकिरण दाब

विकिरण दाब (radiation pressure) किसी सतह पर विद्युतचुंबकीय विकिरण पड़ने से पैदा होने वाले दाब को कहते हैं। यह दाब भिन्न प्रकार की वस्तुओं पर विकिरण के अवशोषण, परावर्तन या इनके मिले-जुले प्रभाव के कारण उत्पन्न होता है। क्योंकि प्रकाश भी एक प्रकार का विद्युतचुंबकीय विकिरण है, इसलिए किसी वस्तु पर प्रकाश के गिरने से भी उस वस्तु पर दबाव पड़ता है। दैनिक जीवन में यह दाब कम बलवान होने के कारण प्रतीत नहीं होता लेकिन लम्बें अंतराल पर इसका प्रभाव काफ़ी हो सकता है। अनुमान लगाया गया है कि यदि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मंगल ग्रह भेजे गये वाइकिंग-१ और वाइकिंग-२ अंतरिक्ष यानों पर सौर किरणों द्वारा बनने वाले विकिरण दाब का हिसाब लगाकर यान की उड़ान को अनुकूल न किया जाता तो यह यान मंगल ग्रह पहुँचने की बजाय उस से १५,००० किलोमीटर की दूरी पर आगे अंतरिक्ष में निकल जाते। .

नई!!: सौर पाल और विकिरण दाब · और देखें »

अंतरिक्ष यान प्रणोदन

अंतरिक्ष यान प्रणोदन अंतरिक्ष यान और कृत्रिम उपग्रहों की गति तेज करने की प्रक्रिया है। इसकी अनेक विधियाँ हैं। यह अंतरिक्ष अनुसंधान का महत्त्वपूर्ण भाग है। ज्यादातर अंतरिक्ष यान आज सुपरसोनिक यानों के माध्यम से प्रक्षेपित किए जाते हैं। इनमें प्रयुक्त रॉकेटों में रासायनिक इंधन प्रयुक्त होते हैं। ये जलने पर भारी मात्रा में गैस उत्पन्न करते हैं जिसके नोजल द्वारा उत्सर्जन के सहारे यान को गति दी जाती है। सोवियत समूह ने उपग्रहों के प्रणोदन के लिए दशकों से बिजली प्रणोदन का इस्तेमाल किया है। अंतरिक्ष यान प्रणोदन श्रेणी:अंतरिक्ष यान श्रेणी:अंतरिक्ष विज्ञान * श्रेणी:चित्र जोड़ें.

नई!!: सौर पाल और अंतरिक्ष यान प्रणोदन · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

प्रकाश पाल

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »