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पथरचटा

सूची पथरचटा

पथरचटा का पौधा पथरचटा या पथरचट्टा (वानस्पतिक नाम - Kalanchoe pinnata या Bryophyllum calycinum या Bryophyllum pinnatum) यह एक सपुष्पक पादप है जो भारत के सभी राज्यों में पाया जाता है। माडागास्कर को इसका उत्पत्तिस्थल बताया जाता है। इसके पत्तों के किनारों से से नया पौधा निकलता है। यह पथरी तथा अन्य रोगों में उपयोगी है। .

3 संबंधों: पथरचटा (खरपतवार), वानस्पतिक नाम, वृक्क अश्मरी

पथरचटा (खरपतवार)

पत्थरचट्टा (वानस्पतिक नाम: ट्राइन्थिमा मोनोगाइना / Trianthema monogyna) खरीफ ऋतु का एकवर्षीय खरपतवार है। वर्षा ऋतु में यह बहुत बढता हैं व फूलता-फलता है। इसकी वृद्धि उपजाऊ तथा नम भूमि में बहुत अधिक होती है। भूमि में जड़ें गहराई तक जाती हैं। इसके तने फैलने वाले, बहुशाखीय व सरस होते हैं जिनकी लम्बाई २५-३० सेमी होती है। पत्तियां विभिन्न आकार की रसदार व मोटी होती हैं। पुष्प सलिटरी व्रत्तहीन, सफेद अथवा लालिमा युक्त होते हैं। फूल कैप्सूल के आकार का होता हैं तथा फल काले अनेक रखाओं से युक्त होते हैं। .

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वानस्पतिक नाम

वानस्पतिक नाम (botanical names) वानस्पतिक नामकरण के लिए अन्तरराष्ट्रीय कोड (International Code of Botanical Nomenclature (ICBN)) का पालन करते हुए पेड़-पौधों के वैज्ञानिक नाम को कहते हैं। इस प्रकार के नामकरण का उद्देश्य यह है कि पौधों के लिए एक ऐसा नाम हो जो विश्व भर में उस पौधे के संदर्भ में प्रयुक्त हो। .

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वृक्क अश्मरी

विविध प्रकार की पथरियाँ, जिनमें से कुछ कैल्सियम आक्जेलेट से बनी हैं और कुछ यूरिक एसिड की किडनी स्टोन या गुर्दे की पथरी (वृक्कीय कैल्कली,रीनल कॅल्क्युली, नेफरोलिथियासिस) (अंग्रेजी:Kidney stones) गुर्दे एवं मूत्रनलिका की बीमारी है जिसमें, वृक्क (गुर्दे) के अन्दर छोटे-छोटे या बड़े पत्थर का निर्माण होता है। गुर्दें में एक समय में एक या अधिक पथरी हो सकती है। सामान्यत: ये पथरियाँ अगर छोटी हो तो बिना किसी तकलीफ मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं, किन्तु यदि ये पर्याप्त रूप से बड़ी हो जाएं (२-३ मिमी आकार के) तो ये मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। इस स्थिति में मूत्रांगो एवं कमर और पेट के आसपास असहनीय पीड़ा होती है जिसे रीनल कोलिक कहा जाता है । यह स्थिति आमतौर से 30 से 60 वर्ष के आयु के व्यक्तियों में पाई जाती है और स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में चार गुना अधिक पाई जाती है। बच्चों और वृद्धों में मूत्राशय की पथरी ज्यादा बनती है, जबकि वयस्को में अधिकतर गुर्दो और मूत्रवाहक नली में पथरी बन जाती है। आज भारत के प्रत्येक सौ परिवारों में से दस परिवार इस पीड़ादायक स्थिति से पीड़ित है, लेकिन सबसे दु:खद बात यह है कि इनमें से कुछ प्रतिशत रोगी ही इसका इलाज करवाते हैं और लोग इस असहनीय पीड़ा से गुज़रते है। एवम् अश्मरी से पीड़ित रोगी को काफ़ी मात्रा में पानी पीना चाहिए। जिन मरीजों को मधुमेह की बीमारी है उन्हें गुर्दे की बीमारी होने की काफी संभावनाएं रहती हैं। अगर किसी मरीज को रक्तचाप की बीमारी है तो उसे नियमित दवा से रक्तचाप को नियंत्रण करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर रक्तचाप बढ़ता है, तो भी गुर्दे खराब हो सकते हैं। .

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