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डी के रायचौधुरी

सूची डी के रायचौधुरी

द्विजेन्द्र कुमार रायचौधुरी (जन्म: 1, 1933) ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय के प्रतिष्‍ठित आचार्य (professor emeritus) हैं। श्री रायचौधुरी एवं उनके शिष्य आर एम विल्सन ने मिलकर १९६८ में किर्कमैन स्कूली छात्रा समस्या (Kirkman's schoolgirl problem) का हल प्रस्तुत किया था। डी के रायचौधुरी ने कोलकाता विश्वविद्यालय से १९५६ में गणित में एम एस-सी किया तथा उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय से १९५९ में सांयोगिकी (कम्बिनेटोरिक्स) पर पी-एक्ष डी किया।.

3 संबंधों: गणित, कलकत्ता विश्वविद्यालय, क्रमचय-संचय

गणित

पुणे में आर्यभट की मूर्ति ४७६-५५० गणित ऐसी विद्याओं का समूह है जो संख्याओं, मात्राओं, परिमाणों, रूपों और उनके आपसी रिश्तों, गुण, स्वभाव इत्यादि का अध्ययन करती हैं। गणित एक अमूर्त या निराकार (abstract) और निगमनात्मक प्रणाली है। गणित की कई शाखाएँ हैं: अंकगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, सांख्यिकी, बीजगणित, कलन, इत्यादि। गणित में अभ्यस्त व्यक्ति या खोज करने वाले वैज्ञानिक को गणितज्ञ कहते हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रख्यात ब्रिटिश गणितज्ञ और दार्शनिक बर्टेंड रसेल के अनुसार ‘‘गणित को एक ऐसे विषय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें हम जानते ही नहीं कि हम क्या कह रहे हैं, न ही हमें यह पता होता है कि जो हम कह रहे हैं वह सत्य भी है या नहीं।’’ गणित कुछ अमूर्त धारणाओं एवं नियमों का संकलन मात्र ही नहीं है, बल्कि दैनंदिन जीवन का मूलाधार है। .

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कलकत्ता विश्वविद्यालय

कोलकाता विश्वविद्यालय। कोलकाता विश्वविद्यालय (কলকাতা বিশ্ববিদ্যালয়) भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल का एक विश्वविद्यालय है। .

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क्रमचय-संचय

दोहराव के साथ क्रमपरिवर्तन। क्रमचय-संचय (Combinatorics) गणित की शाखा है जिसमें गिनने योग्य विवर्त (discrete) संरचनाओं (structures) का अध्ययन किया जाता है। शुद्ध गणित, बीजगणित, प्रायिकता सिद्धांत, टोपोलोजी तथा ज्यामिति आदि गणित के विभिन्न क्षेत्रों में क्रमचय-संचय से संबन्धित समस्याये पैदा होतीं हैं। इसके अलावा क्रमचय-संचय का उपयोग इष्टतमीकरण (आप्टिमाइजेशन), संगणक विज्ञान, एर्गोडिक सिद्धांत (ergodic theory) तथा सांख्यिकीय भौतिकी में भी होता है। ग्राफ सिद्धांत, क्रमचय-संचय के सबसे पुराने एवं सर्वाधिक प्रयुक्त भागों में से है। ऐतिहासिक रूप से क्रमचय-संचय के बहुत से प्रश्न विलगित रूप में उठते रहे थे और उनके तदर्थ हल प्रस्तुत किये जाते रहे। किन्तु बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्तिशाली एवं सामान्य सैद्धांतिक विधियाँ विकसित हुईं और क्रमचय-संचय गणित की स्वतंत्र शाखा बनकर उभरा। .

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