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जाडेजा

सूची जाडेजा

महाराव देशलजी द्वितीय, 1838. इस जाडेजा एक राजपूत कबीले, जो दावा करने के लिए होने से उतरा हिंदू भगवान कृष्ण और इस प्रकार करने के लिए संबंधित यदुवंश राजपूतों, जो बारी में का एक भाग के रूप चन्द्रवंशी(चंद्र राजवंश).

17 संबंधों: दिलीप ट्रॉफी, नवानगर रियासत, ब्रिटिश भारत में रियासतें, ब्रिटिश राज, भारतीय थलसेना, भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, मकाजी मेघपर, मोरबी, रणजी ट्रॉफी, रणजीतसिंहजी, राजपूत, राजकोट, राजेन्द्रसिंहजी जड़ेजा, हिन्दू, कन्या भ्रूण हत्या, कन्या शिशु हत्या, कृष्ण

दिलीप ट्रॉफी

दिलीप ट्राफी (क्रिकेट) भारत की एक घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिता है। दिलीप ट्रॉफी में एक घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत की भौगोलिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले टीमों के बीच भारत में खेला जाता है। प्रतियोगिता नवानगर के कुमार श्री दिलीपसिंहजी (भी "दिलीप" जाना जाता है) के नाम पर है। सेंट्रल जॉन मौजूदा चैंपियन हैं। .

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नवानगर रियासत

नवानगर, सौराष्ट्र के ऐतिहासिक हालार क्षेत्र में अवस्थित एक देसी राज्य था। यह कच्छ की खाड़ी के दक्षिणी तट पर स्थित था जिसके केन्द्र में वर्त्तमान जामनगर था। इसकी स्थापना सन १५४० ईस्वी में हुई थी, और यह राज्य भारत के स्वतन्त्र होने तक विद्यमान था। वर्ष १९४८ में, आधिकारिक रूप से भारतीय संघ में अधिग्रहित कर लिया गया। इसकी राजधानी नवानगर थी, जिसे वर्तमान समय में जामनगर के नाम से जाना जाता है। नवानगर रियासत के कुल भूभाग का क्षेत्रफल था और १९०१ की जनगणना के अनुसार इसकी कुल जनसंख्या ३,३६,७७९ थी। नवानगर राज्य पर, जडेजा गोत्र के हिन्दू राजपूत वंश का राज था, जिन्हें "जाम साहब" की उपाधि से संबोधित किया जाता था। नवानगर और कच्छ राज्य के राजकुटुंब एक ही वंश के थे। ब्रिटिश संरक्षणाधीन काल में नवानगर के जाम साहब को १५ तोपों की सलामी का सम्मान प्राप्त था। ब्रिटिश राज में नवानगर, बॉम्बे प्रेसिडेंसी के काठियावाड़ एजेंसी का हिस्सा था। नवानगर में एक मुक्‍ता मात्स्यकालय (मोती समुपयोजनागार) थी, जो नवानगर की धन का सबसे बड़ा स्रोत था। इसके अलावा, नवानगर राज्य ने भारत में क्रिकेट को प्रसिद्ध करने में अहन भूमिका थी, जिसका श्रेय जाम साहब रणजीतसिंहजी जडेजा को जाता है, जो स्वयं भी एक प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी थे। रणजीतसिंहजी नवानगर के तमाम जाम साहबों में सबसे प्रसिद्ध थे, उन्हें विशेष तौर पर, भारत में क्रिकेट के विकास में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। .

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ब्रिटिश भारत में रियासतें

15 अगस्त 1947 से पूर्व संयुक्त भारत का मानचित्र जिसमें देशी रियासतों के तत्कालीन नाम साफ दिख रहे हैं। ब्रिटिश भारत में रियासतें (अंग्रेजी:Princely states; उच्चारण:"प्रिंस्ली स्टेट्स्") ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में नाममात्र के स्वायत्त राज्य थे। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में "रियासत", "रजवाड़े" या व्यापक अर्थ में देशी रियासत कहते थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे। परन्तु उन भारतीय शासकों पर परोक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का ही नियन्त्रण रहता था। सन् 1947 में जब हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ तब यहाँ 565 रियासतें थीं। इनमें से अधिकांश रियासतों ने ब्रिटिश सरकार से लोकसेवा प्रदान करने एवं कर (टैक्स) वसूलने का 'ठेका' ले लिया था। कुल 565 में से केवल 21 रियासतों में ही सरकार थी और मैसूर, हैदराबाद तथा कश्मीर नाम की सिर्फ़ 3 रियासतें ही क्षेत्रफल में बड़ी थीं। 15 अगस्त,1947 को ब्रितानियों से मुक्ति मिलने पर इन सभी रियासतों को विभाजित हिन्दुस्तान (भारत अधिराज्य) और विभाजन के बाद बने मुल्क पाकिस्तान में मिला लिया गया। 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश सार्वभौम सत्ता का अन्त हो जाने पर केन्द्रीय गृह मन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल के नीति कौशल के कारण हैदराबाद, कश्मीर तथा जूनागढ़ के अतिरिक्त सभी रियासतें शान्तिपूर्वक भारतीय संघ में मिल गयीं। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में सैनिक कार्रवाई द्वारा हैदराबाद को भी भारत में मिला लिया गया। इस प्रकार हिन्दुस्तान से देशी रियासतों का अन्त हुआ। .

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ब्रिटिश राज

ब्रिटिश राज 1858 और 1947 के बीच भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश द्वारा शासन था। क्षेत्र जो सीधे ब्रिटेन के नियंत्रण में था जिसे आम तौर पर समकालीन उपयोग में "इंडिया" कहा जाता था‌- उसमें वो क्षेत्र शामिल थे जिन पर ब्रिटेन का सीधा प्रशासन था (समकालीन, "ब्रिटिश इंडिया") और वो रियासतें जिन पर व्यक्तिगत शासक राज करते थे पर उन पर ब्रिटिश क्राउन की सर्वोपरिता थी। .

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भारतीय थलसेना

भारतीय थलसेना, सेना की भूमि-आधारित दल की शाखा है और यह भारतीय सशस्त्र बल का सबसे बड़ा अंग है। भारत का राष्ट्रपति, थलसेना का प्रधान सेनापति होता है, और इसकी कमान भारतीय थलसेनाध्यक्ष के हाथों में होती है जो कि चार-सितारा जनरल स्तर के अधिकारी होते हैं। पांच-सितारा रैंक के साथ फील्ड मार्शल की रैंक भारतीय सेना में श्रेष्ठतम सम्मान की औपचारिक स्थिति है, आजतक मात्र दो अधिकारियों को इससे सम्मानित किया गया है। भारतीय सेना का उद्भव ईस्ट इण्डिया कम्पनी, जो कि ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में परिवर्तित हुई थी, और भारतीय राज्यों की सेना से हुआ, जो स्वतंत्रता के पश्चात राष्ट्रीय सेना के रूप में परिणत हुई। भारतीय सेना की टुकड़ी और रेजिमेंट का विविध इतिहास रहा हैं इसने दुनिया भर में कई लड़ाई और अभियानों में हिस्सा लिया है, तथा आजादी से पहले और बाद में बड़ी संख्या में युद्ध सम्मान अर्जित किये। भारतीय सेना का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद की एकता सुनिश्चित करना, राष्ट्र को बाहरी आक्रमण और आंतरिक खतरों से बचाव, और अपनी सीमाओं पर शांति और सुरक्षा को बनाए रखना हैं। यह प्राकृतिक आपदाओं और अन्य गड़बड़ी के दौरान मानवीय बचाव अभियान भी चलाते है, जैसे ऑपरेशन सूर्य आशा, और आंतरिक खतरों से निपटने के लिए सरकार द्वारा भी सहायता हेतु अनुरोध किया जा सकता है। यह भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना के साथ राष्ट्रीय शक्ति का एक प्रमुख अंग है। सेना अब तक पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ चार युद्धों तथा चीन के साथ एक युद्ध लड़ चुकी है। सेना द्वारा किए गए अन्य प्रमुख अभियानों में ऑपरेशन विजय, ऑपरेशन मेघदूत और ऑपरेशन कैक्टस शामिल हैं। संघर्षों के अलावा, सेना ने शांति के समय कई बड़े अभियानों, जैसे ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स और युद्ध-अभ्यास शूरवीर का संचालन किया है। सेना ने कई देशो में संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में एक सक्रिय प्रतिभागी भी रहा है जिनमे साइप्रस, लेबनान, कांगो, अंगोला, कंबोडिया, वियतनाम, नामीबिया, एल साल्वाडोर, लाइबेरिया, मोज़ाम्बिक और सोमालिया आदि सम्मलित हैं। भारतीय सेना में एक सैन्य-दल (रेजिमेंट) प्रणाली है, लेकिन यह बुनियादी क्षेत्र गठन विभाजन के साथ संचालन और भौगोलिक रूप से सात कमान में विभाजित है। यह एक सर्व-स्वयंसेवी बल है और इसमें देश के सक्रिय रक्षा कर्मियों का 80% से अधिक हिस्सा है। यह 1,200,255 सक्रिय सैनिकों और 909,60 आरक्षित सैनिकों के साथ दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना है। सेना ने सैनिको के आधुनिकीकरण कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसे "फ्यूचरिस्टिक इन्फैंट्री सैनिक एक प्रणाली के रूप में" के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही यह अपने बख़्तरबंद, तोपखाने और उड्डयन शाखाओं के लिए नए संसाधनों का संग्रह एवं सुधार भी कर रहा है।.

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भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन

* भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवं प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन को भारतीय उपमहाद्वीप से जड़ से उखाड़ फेंकना था। इस आन्दोलन की शुरुआत १८५७ में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों ने अपने प्राणों की बलि दी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने १९३० कांग्रेस अधिवेशन में अंग्रेजो से पूर्ण स्वराज की मांग की थी। .

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मकाजी मेघपर

मकाजी मेघपर,सौराष्ट्र के जामनगर जिले़ की कालावड तहसील का एक गाँव है। इस गाँव की स्थापना सन् १७५४ में ध्रोल राज्य के कुंवर श्री मकनजी जाडेजा द्वारा की गई थी। यहाँ की आबादी में मुख्यतः जाडेजा राजपुत है, साथ में पटेल, ब्राह्मण और शुद्रो की भी बस्ती है। यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय खेती एवं पशुपालन है। .

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मोरबी

मोरबी या मोरवी गुजरात राज्य के मोरबी के अन्तर्गत आता है। यह राजकोट से मात्र 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मच्छू नदी के तट पर स्थित है। राजकोट से रेल और सड़क द्वारा जुड़ा है। यहाँ गुजरात विश्वविद्यालय से संबद्ध एक टेक्निकल इंस्टिट्यूट है, जिसकी स्थापना 1951 ई. में हुई थी। भारत के स्वतंत्र होने से पहले यह देशी राज्य पूर्वी कठियावाड़ सबएजेंसी के अधिकार में था। इसका क्षेत्रफल 822 वर्ग मील था। यहाँ के शासक (पदवी ठाकुर) जदेजा राजपूत थे और अपने को कच्छ के राव का वंशज मानते थे। फरवरी 15, 1948 ई. में यह सौराष्ट्र में मिला दिया गया। अब यह क्षेत्र गुजरात राज्य में है। मयूरध्वज मोरबी के राजा थे। 1978 में आई बाढ़ के कारण मोरबी निर्जन हो गया था। इसके सभी एतिहासिक स्मारकों को बाढ ने जर्जर कर दिया था। लेकिन अब मोरबी ने एक बार फिर टाईल्स और घडी बनाने के कारखाने के बल पर अपने को खड़ा कर लिया है। मोरबी प्राचीन जडेजा राजपूतों की राजधानी था। मच्छु नदी के किनारे बसा मोरबी गुजरात का एक सुन्दर शहर है। मध्‍य काल में भारी मात्रा में बारिश होने के कारण मच्छु बांध टूट गया था। आज भी मोरबी में होने वाली भारी तबाही की भविष्यवाणी को व्यक्त करने वाले लोक गीत इस राज्य के चारणों द्वारा सुने जा सकते है। वर्तमान मोरबी का नगर विन्‍यास वाघ जी का देन है। उन्‍होंने 1879 से 1948 ई. तक यहां शासन किया था। वाघ जी ने एक शासक, प्रबंधक और रक्षक की तरह सदा आम जन के कल्याण को अपने मन-मस्तिष्क में रखकर शासन किया। सर वाघ जी ने अपने अन्य समकालीन शासको की तरह सड़कों और सात मील लम्बे वढ़वाड तथा मोरबी को जोडने वाले रेलमार्ग का निर्माण करवाया। उन्‍होंने नमक और कपडे़ का निर्यात करने के लिए दो छोटे बंदरगाहों नवलखा और ववानिया का भी निर्माण करवाया। मोरबी का रेलवे स्टेशन स्थापत्य शैली का सुन्दर उदाहरण है जिसमें भारतीय और यूरोपीय स्थापत्य कला का अनूठा संगम देखने को मिलता है। .

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रणजी ट्रॉफी

रणजी ट्रॉफी भारत की एक घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिता है। रणजी ट्रॉफी में एक घरेलू प्रथम श्रेणी क्रिकेट चैम्पियनशिप क्षेत्रीय क्रिकेट संघों का प्रतिनिधित्व टीमों के बीच भारत में खेला जाता है। प्रतियोगिता वर्तमान में, 27 टीमों के होते भारत और दिल्ली (जो एक केंद्र शासित प्रदेश है) में 29 राज्यों में से 21 के साथ कम से कम एक प्रतिनिधित्व कर रही है।प्रतियोगिता पहले भारतीय क्रिकेटर हैं, जो इंग्लैंड और ससेक्स, रणजीतसिंहजी जो भी "रणजी" में जाना जाता था के लिए खेला के नाम पर है। .

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रणजीतसिंहजी

रणजीतसिंहजी विभाजी जडेजा (10 सितंबर, 1872 -- अप्रैल 1933) नवानगर के १०वें जाम साहब तथा प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी थे। उनके अन्य प्रसिद्ध नाम हैं- 'नवानगर के जाम साहब', 'कुमार रणजीतसिंहजी', 'रणजी' और 'स्मिथ'। उनका शासन १९०७ से १९३३ तक चला था। वे एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी और बल्लेबाज़ थे जिन्होंने भारतीय क्रिकेट के विकास में अहम भूमिका अदा की थी। वे अंग्रेज़ी क्रिकेट टीम के तरफ़ से खेलने वाले विख्यात क्रिकेट खिलाड़ी थे और इंग्लैंड क्रिकेट टीम के लिए टेस्ट मैच खेला करते थे। इसके अलावा, रणजी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के लिये प्रथम श्रेणी क्रिकेट और काउंटी क्रिकेट में ससेक्स का प्रतिनिधित्व किया करते थे। रणजीतसिंहजी टीम में मूलतः दाएं हाथ के बल्लेबाज की भूमिका निभाया करते थे, तथा वह धीमी गेंदबाजी में भी सिद्धहस्त थे। उनकी गिनाती सभी समय के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में होती है। नेविल कार्डस ने उन्हें 'द मिडसमर नाइट्स ड्रीम ऑफ़ क्रिकेट' भी कहा था। अपनी बल्लेबाजी से उन्होंने क्रिकेट को एक नयी शैली दी तथा इस खेल में क्रांति ला दी थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके सम्मान में, बीसीसीआई ने १९३४ में भारत के विभिन्न शहरों और क्षेत्रों के बीच खेली जा रही क्रिकेट सिरीज़ को 'रणजी ट्रॉफी' का नाम दिया। उनहोंने कई क्रिकेट अकादमियाँ भी खोली थी। रणजीतसिंहजी, १९३१ से १९३३ तक नरेंद्रमंडल के चांसलर भी रहे थे। उनके बाद, उनके भतीजे, दिग्विजयसिंहजी चांसलर बने। .

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राजपूत

राजपूत उत्तर भारत का एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।जो कि राजपुत्र का अपभ्रंश है। राजस्थान को ब्रिटिशकाल मे राजपूताना भी कहा गया है। पुराने समय में आर्य जाति में केवल चार वर्णों की व्यवस्था थी। राजपूत काल में प्राचीन वर्ण व्यवस्था समाप्त हो गयी थी तथा वर्ण के स्थान पर कई जातियाँ व उप जातियाँ बन गईं थीं। कवि चंदबरदाई के कथनानुसार राजपूतों की 36 जातियाँ थी। उस समय में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत सूर्यवंश और चंद्रवंश के राजघरानों का बहुत विस्तार हुआ। .

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राजकोट

राजकोट(Rajkot) भारत के गुजरात प्रान्त का एक प्रमुख शहर है। राजकोट नगर गुजरात राज्य, भारत में स्थित है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की क्रीड़ास्थली राजकोट, कभी सौराष्ट्र की राजधानी रहा था। महात्मा गाँधी के पिता करमचंद गाँधी सौराष्ट्र के दीवान थे। यहीं से गाँधी जी ने अपना बचपन संवारा तथा अपनी जिन्दगी के प्रारम्भिक दिन राजकोट की गलियों में ही व्यतीत किये। गाँधी जी ने यहीं से हिन्दुस्तानियों व अंग्रेज़ों के रहन-सहन के अंतर को क़रीब से देखा। मोहनदास करमचंद गाँधी ने उच्च स्कूल तत्कालीन अलफ्रंट हाई स्कूल में अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। गाँधीजी की इस नगरी में पर्यटकों के लिए काबा गाँधीना देलो (गाँधी जी का निवास स्थान) जिसमें आज बाल मन्दिर स्कूल चल रहा है, राजकुमारी उद्यान, जबूली उद्यान, वारसन संग्रहालय, रामकृष्ण आश्रम, लालपरी झील, अजी डेम, रंजीत विलास पैलेस, सरकारी दुग्ध डेरी आदि दर्शनीय स्थल हैं। राजकोट में मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय पतंग मेला बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करता है। .

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राजेन्द्रसिंहजी जड़ेजा

जनरल महाराज श्री राजेन्द्रसिंहजी, डीएसओ (15 जून 1899 – 1 जनवरी 1964), जिन्हें कुमार श्री राजेन्द्रसिंहजी और के॰एस॰ राजेन्द्रसिंहजी, भारतीय थलसेना के प्रथम थलसेनाध्यक्ष और फ़ील्ड मार्शल के एम करिअप्पा के बाद द्वितीय भारतीय थे जो भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर इन चीफ और भारतीय थलसेना प्रमुख बने। .

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हिन्दू

शब्द हिन्दू किसी भी ऐसे व्यक्ति का उल्लेख करता है जो खुद को सांस्कृतिक रूप से, मानव-जाति के अनुसार या नृवंशतया (एक विशिष्ट संस्कृति का अनुकरण करने वाले एक ही प्रजाति के लोग), या धार्मिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा हुआ मानते हैं।Jeffery D. Long (2007), A Vision for Hinduism, IB Tauris,, pages 35-37 यह शब्द ऐतिहासिक रूप से दक्षिण एशिया में स्वदेशी या स्थानीय लोगों के लिए एक भौगोलिक, सांस्कृतिक, और बाद में धार्मिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दू शब्द का ऐतिहासिक अर्थ समय के साथ विकसित हुआ है। प्रथम सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिंधु की भूमि के लिए फारसी और ग्रीक संदर्भों के साथ, मध्ययुगीन युग के ग्रंथों के माध्यम से, हिंदू शब्द सिंधु (इंडस) नदी के चारों ओर या उसके पार भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों के लिए भौगोलिक रूप में, मानव-जाति के अनुसार (नृवंशतया), या सांस्कृतिक पहचानकर्ता के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।John Stratton Hawley and Vasudha Narayanan (2006), The Life of Hinduism, University of California Press,, pages 10-11 16 वीं शताब्दी तक, इस शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि तुर्किक या मुस्लिम नहीं थे। .

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कन्या भ्रूण हत्या

कन्या भ्रूण हत्या जन्म से पहले लड़कियों को मार डालने की क्रिया है। .

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कन्या शिशु हत्या

गर्भपात में परिवर्तन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कन्या शिशु हत्या की घटना के रूप में कई संस्कृतियों के रूप में पुरानी है और संभावना के इतिहास में लिंग चयनात्मक होने वाली मौतों के लाखों लोगों के लिए किया था। कन्या शिशु बच्चे पुरुष बच्चों के लिए वरीयता के कारण लड़कियों की जानबूझकर हत्या कम महिलाओं के जन्म से जुड़े मूल्य की वजह से और है। इन प्रथाओं क्षेत्रों में जहां सांस्कृतिक मानदंडों सभी मामलों में महिला बच्चों पर पुरुष बच्चों मूल्य में उठता है, विशेष रूप से कन्या शिशु कम दुनिया के अधिकांश भागों में महिलाओं को दी स्थिति दर्शाता है, यह यकीनन महिला विरोधी पूर्वाग्रह का सबसे क्रूर और विनाशकारी अभिव्यक्ति है कि "कुलपति" समाज कन्या शिशु हत्या पर तथ्य • संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपात कोष (यूनीसेफ) दस लाख से 50 लड़कियों और महिलाओं को भारत में व्यवस्थित लैंगिक भेदभाव का एक परिणाम के रूप में भारत की जनसंख्या से लापता द्वारा एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार.

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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