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जगदेकमल्ल द्वितीय

सूची जगदेकमल्ल द्वितीय

सोमेश्वर तृतीय के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र कल्याणी के सिंहासन पर बैठा। अभिलेखों में उसके नाम का निर्देश नहीं है। अपने विरुद (यश या प्रर्शसासुचक पदवी) 'जगदेकमल्ल' के नाम से ही उसका उल्लेख आता है अतएव उसे जगदेकमल्ल द्वितीय (1138-55 ई.) कहा गया है। उसके अन्य विरुद थे- प्रेमप्रताप, चक्रवर्तिन् और त्रिभुवनमल्ल। अपने पितामह विक्रमादित्य षष्ठ के समय में ही उसे शासन में विशेष महत्व का पद प्राप्त हो गया था। चालुक्य वंश की क्षीण होती हुई शक्ति का लाभ उठाकर विष्णुवर्धन् होयसल ने अपन राज्य का विस्तार धारवाड़ में बंकारपुर तक कर लिया था, फिर भी वह चालुक्यों की अधीनता स्वीकार करता था। उसने नरसिंह होयसल के साथ 1143 ई. के लगभग मालव पर आक्रमणकर जयवर्मन् के स्थान पर बल्लाल को सिंहासन पर बैठाया था। इसके अतिरिक्त लाट, गुर्जर, चोल, कलिंग और नोलंबपल्लव पर भी उसकी विजय का उल्लेख है लेकिन इसमें अतिशयोक्ति की संभावना अधिक है। जगदेकमल्ल को अपना अधिकार बनाए रखने में कई सेनानायकों और सामंतों से सहायता मिली थी। इनमें पेरमाडिदेव सिंद, बर्म्म दंडाधिप और केशिराज दंडाधीश के नाम उल्लेखनीय हैं। 1149 ई. के लगभग ही जगदेकमल्ल का छोटा भाई तैल तृतीय भी जगदेकमल्ल के साथ शासन में संयुक्त हो गया था। जगदेकमल्ल ने एक संवत् की स्थापना की थी किंतु स्वयं उसके राज्यकाल में ही उसका सदैव उपयोग नहीं होता था; उसके शासन के बाद वह शीघ्र ही समाप्त हो गया। "संगीतचूड़ामणि" जगदेकमल्ल द्वितीय की कृति थी। कर्णाटक भाषाभूषण, काव्यालोकन और वास्तुकोश का रचयिता नागवर्म द्वितीय उसका उपाध्याय था। 1146 से 1181 ई. तक के काल में कल्याणी पर कलचुरि लोगों का अधिकार रहा। किंतु 1163 में तैल द्वितीय की मृत्यु के बाद भी चालुक्यों ने अपना दावा नहीं छोड़ा। जगदेकमल्ल तृतीय इसी समय हुआ। उसके अभिलेखों की तिथि 1164 से 1183 तक है। कदाचित् वह तैल तृतीय का पुत्र था। संभवत: परिस्थिति के अनुकूल वह कभी कलचुरि नरेश का आधिपत्य स्वीकार करता था और कभी स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य करता था। उसके अभिलेख चितलदुर्ग, बेल्लारी और दूसरे जिलों से प्राप्त हुए हैं। एक अभिलेख में तो उसे कल्याण से राज्य करता हुआ कहा गया है। विजय पांड्य उसका सामंत था। श्रेणी:भारत का इतिहास श्रेणी:चित्र जोड़ें.

9 संबंधों: चालुक्य राजवंश, धारवाड़, नागवर्म द्वितीय, बेल्लारी, सोमेश्वर तृतीय, जगदेकमल्ल तृतीय, विक्रमादित्य ६, कल्याणी, पश्चिम बंगाल, अभिलेख

चालुक्य राजवंश

चालुक्य प्राचीन भारत का एक प्रसिद्ध क्षत्रिय राजवंश है। इनकी राजधानी बादामी (वातापि) थी। अपने महत्तम विस्तार के समय (सातवीं सदी) यह वर्तमान समय के संपूर्ण कर्नाटक, पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी मध्य प्रदेश, तटीय दक्षिणी गुजरात तथा पश्चिमी आंध्र प्रदेश में फैला हुआ था। .

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धारवाड़

धारवाड़ कर्नाटक का एक नगर है। यह धारवाड़ जिले का मुख्यालय है। १९६१ में इसे हुबली के साथ मिला दिया गया जिससे हुबली-धारवाड नामक जुड़वा नगर बने। इसका क्षेत्रफल लगभग २०० वर्ग किमी है। यह बंगलुरु से ४२५ किमी उत्तर-पश्चिम में राष्ट्रीय राजमार्ग ४ पर बंगलुरु और पुणे के बीच स्थित है। यहाँ का दुर्ग ऊँची नीची भूमि पर स्थित है। कपास, इमारती लकड़ी और अनाज का व्यापार होता है। यहाँ वस्त्र बनाने के कारखाने हैं। बीड़ी, सुगंधित पदार्थ और चूड़ियों के कुटीर उद्योग हैं। कर्नाटक कालेज एवं वन-प्रशिक्षण-महाविद्यालय नामक शिक्षा सस्थाएँ उल्लेखनीय हैं।.

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नागवर्म द्वितीय

नागवर्म द्वितीय (मध्य ११वीं या मध्य १२वीं शताब्दी) कन्नड साहित्यकार एवं वैयाकरण थे। वे पश्चिमी चालुक्य सम्राटों के दरबार में थे। कर्णाटक भाषाभूषण, काव्यालोकन और वास्तुकोश उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। श्रेणी:कन्न्द साहित्यकार श्रेणी:वैयाकरण.

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बेल्लारी

बेल्लारी कर्नाटक प्रान्त का एक शहर है। श्रेणी:कर्नाटक श्रेणी:कर्नाटक के शहर.

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सोमेश्वर तृतीय

सोमेश्वर तृतीय (शासनकाल ११२६ - १३३८ ई) पश्चिमी चालुक्य शासक थे। वे विक्रमादित्य चतुर्थ एवं रानी चन्दलादेवी के पुत्र थे। वे साहित्य में अभिरुचि के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका मानसोल्लास नामक संस्कृत ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध है। सोमेश्वर तृतीय ने होयसला शासक विष्णुवर्धन के आक्रमण को विफल कर दिया। उन्होने 'त्रिभुवनमल्ल', 'भूलोकमल्ल' और 'सर्वाज्ञाभूप' आदि पदवियाँ ग्रहण की थी। श्रेणी:भारत के शासक.

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जगदेकमल्ल तृतीय

जगदेकमल्ल तृतीय, पश्चिमी भारत के प्रतीच्य चालुक्य राजवंश का राजा था। ११४६ से ११८१ ई. तक के काल में कल्याणी पर कलचुरि लोगों का अधिकार रहा। किंतु ११६३ में तैल द्वितीय की मृत्यु के बाद भी चालुक्यों ने अपना दावा नहीं छोड़ा। जगदेकमल्ल तृतीय इसी समय हुआ। उसके अभिलेखों की तिथि ११६४ से ११८३ तक है। कदाचित् वह तैल तृतीय का पुत्र था। संभवत: परिस्थिति के अनुकूल वह कभी कलचुरि नरेश का आधिपत्य स्वीकार करता था और कभी स्वतंत्र शासक के रूप में राज्य करता था। उसके अभिलेख चितलदुर्ग, बेल्लारी और दूसरे जिलों से प्राप्त हुए हैं। एक अभिलेख में तो उसे कल्याण से राज्य करता हुआ कहा गया है। विजय पांड्य उसका सामन्त था। श्रेणी:भारत के राजा श्रेणी:भारत का इतिहास.

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विक्रमादित्य ६

विक्रमादित्य षष्ठ (1076 – 1126 ई) पश्चिमी चालुक्य शासक था। वह अपने बड़े भाई सोमेश्वर द्वितीय को अपदस्थ कर गद्दी पर बैठा। चालुक्य-विक्रम संवत् उसके शासनारूढ़ होने पर आरम्भ किया गया। सभी चालुक्य राजाओं में वह सबसे अधिक महान, पराक्रमी था तथा उसका शासन काल सबसे लम्बा रहा। उसने 'परमादिदेव' और त्रिभुवनमल्ल' की उपाधि धारण की। वह कला और साहित्य का संरक्षक और संवर्धक था। उसके दरबार में कन्नड और संस्कृत के प्रसिद्ध कवि शोभा देते थे। उसके भाई कीर्तिवर्मा ने कन्नड में 'गोवैद्य' नामक पशुचिकित्सा ग्रन्थ लिखा। ब्रह्मशिव ने कन्नड में 'समयपरीक्षे' नामक ग्रन्थ लिखा और 'कविचक्रवर्ती' की उपाधि प्राप्त की। १२वीं शताब्दी के पूर्व किसी और ने कन्नड में उतने शिलालेख नहीं लिखवाये जितने विक्रमादित्य षष्ठ ने। संस्कृत के प्रसिद्ध कवि बिल्हण ने 'विक्रमांकदेवचरित' नाम से राजा का प्रशस्ति ग्रन्थ लिखा। विज्ञानेश्वर ने हिन्दू विधि से सम्बन्धित मिताक्षरा नामक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। चन्दलादेवी नामक उसकी एक रानी (जिसे अभिनव सरस्वती कहते थे) अच्छी नृत्यांगना थी। अपने चरमोत्कर्ष के समय चन्द्रगुप्त षष्ठ का विशाल साम्राज्य दक्षिण भारत में कावेरी नदी से आरम्भ करके मध्य भारत में नर्मदा नदी तक विस्तृत था। श्रेणी:भारत के राजा श्रेणी:भारत का इतिहास.

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कल्याणी, पश्चिम बंगाल

कल्याणी, पश्चिम बंगाल राज्य के नदिया ज़िले का एक शहर है। यह कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण के अधीन आता है। .

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अभिलेख

कंधार स्थित सम्राट अशोक के द्वारा उत्कीर्ण एक पाषाण अभिलेख अभिलेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृत कठोर सतहों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को कहते है। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। शासको के द्वारा अपने आदेशो को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे, ताकि लोग उन्हे देख सके एवं पढ़ सके और पालन कर सके। आधुनिक युग मे भी इसका उपयोग हो रहा है। .

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जगधेकमल्ल २

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