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दुर्ग
दुर्ग छत्तीसगढ़ प्रान्त के 27 जिलो मे तीसरा सबसे बड़ा जिला है। दुर्ग जिले के मुख्य शहर भिलाई और दुर्ग को सम्मिलित रूप से टि्वन सिटी कहा जाता है। भिलाई में लौह इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही दुर्ग का महत्व काफी बढ़ गया। शिवनाथ नदी के पूर्वी तट पर स्थित दुर्ग शहर के बीचोबीच से राष्ट्रीय राजमार्ग ६ (कोलकाता-मुंबई) गुजरती है। टि्वनसिटी के तौर पर दुर्ग-भिलाई शैक्षणिक और खेल केंद्र के रूप में न केवल प्रदेश में बल्कि देश में अपना स्थान रखता है। श्रेणी:छत्तीसगढ़ के नगर.
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मन्दिर
मन्दिर भारतीय धर्मों (सनातन धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म आदि) हिन्दुओं के उपासनास्थल को मन्दिर कहते हैं। यह अराधना और पूजा-अर्चना के लिए निश्चित की हुई जगह या देवस्थान है। यानी जिस जगह किसी आराध्य देव के प्रति ध्यान या चिंतन किया जाए या वहां मूर्ति इत्यादि रखकर पूजा-अर्चना की जाए उसे मन्दिर कहते हैं। मन्दिर का शाब्दिक अर्थ 'घर' है। वस्तुतः सही शब्द 'देवमन्दिर', 'शिवमन्दिर', 'कालीमन्दिर' आदि हैं। और मठ वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि उनके धर्म में क्या है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है। लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग शंकराचार्य के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है। तमिल भाषा में मन्दिर को कोईल या कोविल (கோவில்) कहते हैं। .
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राजमहल
जोधपुर का उम्मेद भवन महल या प्रासाद भव्य गृह को कहते हैं। किन्तु विशेष रूप से राजा या राज्य के सर्वोच्च सत्ताधीश के गृह को महल कहा जाता है। बहुत से ऐतिहासिक महलों का उपयोग आजकल संसद, संग्रहालय, होटल या कार्यालय के रूप में किया जा रहा है। भारत की प्राचीन वास्तुविद्या के अनुसार 'प्रासाद' लंबा, चौड़ा, ऊँचा और कई भूमियों का पक्का या पत्थर का घर को कहते हैं जिसमें अनेक शृंग, शृंखला, अंडकादि हों तथा अनेक द्वारों और गवाक्षों से युक्त त्रिकोश, चतुष्कोण, आयत, वृत्त शालाएँ हों। पुराणों में केवल राजाओं और देवताओं के गृह को प्रासाद कहा है। आकृति के भेद से पुराणों में प्रासाद के पाँच भेद किए गए हैं— चतुरस्र, चतुरायत, वृत्त, पृत्ताय और अष्टास्र। इनका नाम क्रम से वैराज, पुष्पक, कैलास, मालक और त्रिविष्टप है। भूमि, अंडक, शिखरादि की न्यूनाधिकता के कारण इन पाँचों के नौ नौ भेद माने गए हैं। जैसे, वेराज के मेरु, मंदर, विमान, भद्रक, सर्वतोभद्र, रुचक, नंदन, नंदिवर्धन और श्रीवत्स; पुष्पक के वलभी, गृहराज, शालागृह, मंदिर, विमान, ब्रह्ममंदिर, भवन, उत्तंभ और शिविकावेश्म; कैलास के वलय, दुंदुभि, पद्म, महापद्म, भद्रक सर्वतोभद्र; रुचक, नंदन, गुवाक्ष या गुवावृत्त; मालव के गज, वृषभ, हंस, गरुड़, सिंह, भूमुख, भूवर, श्रीजय और पृथिवीधर और त्रिविष्टप के वज्र, चक्र, मुष्टिक या वभ्रु, वक्र, स्वस्तिक, खड्ग, गदा, श्रीवृक्ष और विजय। .
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विष्णु
वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणानुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। कामदेव विष्णु जी का पुत्र था। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी),ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। शेष शय्या पर आसीन विष्णु, लक्ष्मी व ब्रह्मा के साथ, छंब पहाड़ी शैली के एक लघुचित्र में। .
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ओरछा
भारत के इतिहास में झांसी के पास स्थित ओरछा का एक अपना महत्व है। इससे जुड़ी तमाम कहानियां और किस्से पिछली कई दशकों से लोगों की जुबान पर हैं। .
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यह भी देखें
ओरछा
- ओरछा
- ओरछा किला
- चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)
- जुझारसिंह बुन्देला
- रामराजा मन्दिर
टीकमगढ़ ज़िले में पर्यटन आकर्षण
- ओरछा किला
- चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)
- पपौरा जी
- रामराजा मन्दिर
मध्य प्रदेश के हिन्दू मंदिर
- चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)
- चौसठ योगिनी मंदिर, मुरैना
- तिगवा
- तुलसी पीठ
- तेली का मन्दिर
- पशुपतिनाथ मन्दिर (मन्दसौर)
- बटेश्वर हिन्दू मंदिर, मध्य प्रदेश
- रामराजा मन्दिर
राजपूत वास्तुकला
- उम्मैद भवन पैलेस
- ओरछा किला
- कांगड़ा दुर्ग
- कालिंजर दुर्ग
- किला राय पिथौरा
- कुम्भलगढ़ दुर्ग
- केसरोली पहाड़ी दुर्ग
- खेतड़ी महल
- ग्वालियर का क़िला
- चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग
- जंतर मंतर, दिल्ली
- जन्तर मन्तर (जयपुर)
- जयगढ़ दुर्ग
- जल महल
- जूनागढ़ दुर्ग
- जैसलमेर दुर्ग
- झांसी का किला
- दतिया महल
- दरावड़ का क़िला
- नरवर दुर्ग
- नांगल सिरोही
- नाहरगढ़ दुर्ग
- बिसाऊ पैलेस होटल, जयपुर
- भानगढ़ दुर्ग
- मानसून भवन, उदयपुर
- मेहरानगढ़
- रणकपुर जैन मंदिर
- रानी की वाव
- लालगढ़ महल
- सिटी पैलेस, जयपुर
- हवामहल
विष्णु मन्दिर
- अंकोरवाट मंदिर
- अक्षरधाम मंदिर, गांधीनगर
- ऐरण
- चतुर्भुज मंदिर (ओरछा)
- चतुर्भुज मंदिर (खजुराहो)
- चेन्नकेशव मन्दिर
- जगदीश मंदिर, उदयपुर
- जावरी मंदिर
- ज्योतिसर
- तिगवा
- तेली का मन्दिर
- त्रियुगी-नारायण
- देवगढ़ का दशावतार मंदिर
- नारायण सरोवर
- पंच प्रयाग
- बद्रीनाथ मन्दिर
- मुक्तिधाम (नासिक)
- लक्ष्मण मन्दिर, खजुराहो
- लक्ष्मी नारायण मंदिर, दिल्ली
- लिंगराज मंदिर