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गायत्री मन्त्र

सूची गायत्री मन्त्र

गायत्री महामंत्र (13px 13px) वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रुप मे भी पुजा जाता है। 'गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है: .

सामग्री की तालिका

  1. 16 संबंधों: ब्रह्मा, मन्त्र, यजुर्वेद, श्री गायत्री देवी, सवितृ, हिन्दू देवी देवताओं की सूची, हंस (पक्षी), वेद, गायत्री चालीसा, गायत्री मन्त्र, गायत्री आरती, ओउ्म्, कमंडल, अकृतक त्रैलोक्य, ऋग्वेद, छंद

  2. हिन्दू मंत्र

ब्रह्मा

ब्रह्मा  सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देव हैं। हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। व्यासलिखित पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं।Bruce Sullivan (1999), Seer of the Fifth Veda: Kr̥ṣṇa Dvaipāyana Vyāsa in the Mahābhārata, Motilal Banarsidass, ISBN 978-8120816763, pages 85-86 ब्रह्मा को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता भी कहा जाता है।Barbara Holdrege (2012), Veda and Torah: Transcending the Textuality of Scripture, State University of New York Press, ISBN 978-1438406954, pages 88-89 हिन्दू विश्वास के अनुसार हर वेद ब्रह्मा के एक मुँह से निकला था। ज्ञान, विद्या, कला और संगीत की देवी सरस्वती ब्रह्मा की पत्नी हैं। बहुत से पुराणों में ब्रह्मा की रचनात्मक गतिविधि उनसे बड़े किसी देव की मौजूदगी और शक्ति पर निर्भर करती है। ये हिन्दू दर्शनशास्त्र की परम सत्य की आध्यात्मिक संकल्पना ब्रह्मन् से अलग हैं।James Lochtefeld, Brahman, The Illustrated Encyclopedia of Hinduism, Vol.

देखें गायत्री मन्त्र और ब्रह्मा

मन्त्र

हिन्दू श्रुति ग्रंथों की कविता को पारंपरिक रूप से मंत्र कहा जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ विचार या चिन्तन होता है । मंत्रणा, और मंत्री इसी मूल से बने शब्द हैं। मन्त्र भी एक प्रकार की वाणी है, परन्तु साधारण वाक्यों के समान वे हमको बन्धन में नहीं डालते, बल्कि बन्धन से मुक्त करते हैं। काफी चिन्तन-मनन के बाद किसी समस्या के समाधान के लिये जो उपाय/विधि/युक्ति निकलती है उसे भी सामान्य तौर पर मंत्र कह देते हैं। "षड कर्णो भिद्यते मंत्र" (छ: कानों में जाने से मंत्र नाकाम हो जाता है) - इसमें भी मंत्र का यही अर्थ है। .

देखें गायत्री मन्त्र और मन्त्र

यजुर्वेद

यजुर्वेद हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ और चार वेदों में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं। ये हिन्दू धर्म के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है और अक्सर ऋग्वेद के बाद दूसरा वेद माना जाता है - इसमें ऋग्वेद के ६६३ मंत्र पाए जाते हैं। फिर भी इसे ऋग्वेद से अलग माना जाता है क्योंकि यजुर्वेद मुख्य रूप से एक गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘'यजुस’' कहा जाता है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र ॠग्वेद या अथर्ववेद से लिये गये है।। भारत कोष पर देखें इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। यजुर्वेद में दो शाखा हैं: दक्षिण भारत में प्रचलित कृष्ण यजुर्वेद और उत्तर भारत में प्रचलित शुक्ल यजुर्वेद शाखा। जहां ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी वहीं यजुर्वेद की रचना कुरुक्षेत्र के प्रदेश में हुई।। ब्रज डिस्कवरी कुछ लोगों के मतानुसार इसका रचनाकाल १४०० से १००० ई.पू.

देखें गायत्री मन्त्र और यजुर्वेद

श्री गायत्री देवी

श्री गायत्री देवी यह हिन्दू धर्म की एक देवता है। इसका संशोधन महर्षि विश्वामित्र द्वारा किया गया है। अपितु यह ब्रह्म देव की निर्मिती और पत्नी है। इसका मूल रूप श्री सावित्री देवी है। यह एक कठोर परंतु सर्व सिद्धी दाई देवता मानी जाती है। गायत्री देवी की साधना के हेतु गायत्री मंत्र का जप-अनुष्ठानादी किया जाता है। गायत्री मंत्र इस प्रकार है .

देखें गायत्री मन्त्र और श्री गायत्री देवी

सवितृ

सवितृ, ऋग्वेद में वर्णित सौर देवता हैं। गायत्री मंत्र का सम्बन्ध सवितृ से ही माना जाता है सविता शब्द की निष्पत्ति 'सु' धातु से हुई है जिसका अर्थ है - उत्पन्न करना, गति देना तथा प्रेरणा देना। सवितृ देव का सूर्य देवता से बहुत साम्य है। सविता का स्वरूप आलोकमय तथा स्वर्णिम है। इसीलिए इसे स्वर्णनेत्र, स्वर्णहस्त, स्वर्णपाद, एवं स्वर्ण जिव्य की संज्ञा दी गई है। उसका रथ स्वर्ण की आभा से युक्त है जिसे दोया अधिक लाल घोड़े खींचते है, इस रथ पर बैठकर वह सम्पूर्ण विश्व में भ्रमण करता है। इसे असुर नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। प्रदोष तथा प्रत्यूष दोनों से इसका सम्बन्ध है। हरिकेश, अयोहनु, अंपानपात्, कर्मक्रतु, सत्यसूनु, सुमृलीक, सुनीथ आदि इसके विशेषण हैं। ऋग्वेद के ११ सूक्तों में सवितृ का नाम आता है। इसके अतिरिक्त अनेकों मंत्रों में सवितृ का नाम आता है। कुल मिलाकर १७० बार सवितृ का नाम आया है। उदय के पूर्व सूर्य को सवितृ कहते हैं, जबकि उदय के पश्चात 'सूर्य'। .

देखें गायत्री मन्त्र और सवितृ

हिन्दू देवी देवताओं की सूची

यह हिन्दू देवी देवताओं की सूची है। हिन्दू लेखों के अनुसार, धर्म में तैंतीस कोटि (कोटि के अर्थ-प्रकार और करोड़) देवी-देवता बताये गये हैं। इनमें स्थानीय व क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल हैं)। वे सभी तो यहां सम्मिलित नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी इस सूची में तीन सौ से अधिक संख्या सम्मिलित है। .

देखें गायत्री मन्त्र और हिन्दू देवी देवताओं की सूची

हंस (पक्षी)

हंस हंस एक पक्षी है। भारतीय साहित्य में इसे बहुत विवेकी पक्षी माना जाता है। और ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक (पानी और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है। यह विद्या की देवी सरस्वती का वाहन है। ऐसी मान्यता है कि यह मानसरोवर में रहते हैं। यह पानी मे रहता है। श्रेणी:पक्षी.

देखें गायत्री मन्त्र और हंस (पक्षी)

वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

देखें गायत्री मन्त्र और वेद

गायत्री चालीसा

गायत्री चालीसा ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचण्ड॥ शान्ति कान्ति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखण्ड॥१॥ जगत जननी मङ्गल करनि गायत्री सुखधाम। प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम॥२॥ भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी॥१॥ अक्षर चौविस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता॥२॥ शाश्वत सतोगुणी सत रूपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा॥३॥ हंसारूढ श्वेताम्बर धारी। स्वर्ण कान्ति शुचि गगन- बिहारी॥४॥ पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला॥५॥ ध्यान धरत पुलकित हित होई। सुख उपजत दुःख दुर्मति खोई॥६॥ कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अद्भुत माया॥७॥ तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई॥८॥ सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली॥९॥ तुम्हरी महिमा पार न पावैं। जो शारद शत मुख गुन गावैं॥१०॥ चार वेद की मात पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता॥११॥ महामन्त्र जितने जग माहीं। कोउ गायत्री सम नाहीं॥१२॥ सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविद्या नासै॥१३॥ सृष्टि बीज जग जननि भवानी। कालरात्रि वरदा कल्याणी॥१४॥ ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते॥१५॥ तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे॥१६॥ महिमा अपरम्पार तुम्हारी। जय जय जय त्रिपदा भयहारी॥१७॥ पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जगमे आना॥१८॥ तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा॥१९॥ जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई॥२०॥ तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई॥२१॥ ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥२२॥ सकल सृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता॥२३॥ मातेश्वरी दया व्रत धारी। तुम सन तरे पातकी भारी॥२४॥ जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई॥२५॥ मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें। रोगी रोग रहित हो जावें॥२६॥ दरिद्र मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा॥२७॥ गृह क्लेश चित चिन्ता भारी। नासै गायत्री भय हारी॥२८॥ सन्तति हीन सुसन्तति पावें। सुख संपति युत मोद मनावें॥२९॥ भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें॥३०॥ जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई॥३१॥ घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रत धारी॥३२॥ जयति जयति जगदंब भवानी। तुम सम और दयालु न दानी॥३३॥ जो सतगुरु सो दीक्षा पावे। सो साधन को सफल बनावे॥३४॥ सुमिरन करे सुरूचि बड़भागी। लहै मनोरथ गृही विरागी॥३५॥ अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता॥३६॥ ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी। आरत अर्थी चिन्तित भोगी॥३७॥ जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वांछित फल पावें॥३८॥ बल बुधि विद्या शील स्वभाउ। धन वैभव यश तेज उछाउ॥३९॥ सकल बढें उपजें सुख नाना। जे यह पाठ करै धरि ध्याना॥४०॥ दोहा यह चालीसा भक्तियुत पाठ करै जो कोई। तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय॥'.

देखें गायत्री मन्त्र और गायत्री चालीसा

गायत्री मन्त्र

गायत्री महामंत्र (13px 13px) वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रुप मे भी पुजा जाता है। 'गायत्री' एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है: .

देखें गायत्री मन्त्र और गायत्री मन्त्र

गायत्री आरती

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता। आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री। दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री॥१॥ ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे। भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥२॥ भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी। अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥३॥ कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता। सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥४॥ ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे। कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे॥५॥ स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी। जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी॥६॥ जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे। यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे॥७॥ स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै। बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥८॥ काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये। शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये॥९॥ तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता। सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता॥१०॥ जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता॥.

देखें गायत्री मन्त्र और गायत्री आरती

ओउ्म्

देवनागरी में ओ३म कन्नड में ओ३म तमिळ में ओम मलयालम में ओ३म तिब्बती में ओ३म गुरुमुखी में 'एक ओंकार' बाली भाषा में ओंकार ओ३म् (ॐ) या ओंकार का नामांतर प्रणव है। यह ईश्वर का वाचक है। ईश्वर के साथ ओंकार का वाच्य-वाचक-भाव संबंध नित्य है, सांकेतिक नहीं। संकेत नित्य या स्वाभाविक संबंध को प्रकट करता है। सृष्टि के आदि में सर्वप्रथम ओंकाररूपी प्रणव का ही स्फुरण होता है। तदनंतर सात करोड़ मंत्रों का आविर्भाव होता है। इन मंत्रों के वाच्य आत्मा के देवता रूप में प्रसिद्ध हैं। ये देवता माया के ऊपर विद्यमान रह कर मायिक सृष्टि का नियंत्रण करते हैं। इन में से आधे शुद्ध मायाजगत् में कार्य करते हैं और शेष आधे अशुद्ध या मलिन मायिक जगत् में। इस एक शब्द को ब्रह्मांड का सार माना जाता है, 16 श्लोकों में इसकी महिमा वर्णित है। .

देखें गायत्री मन्त्र और ओउ्म्

कमंडल

कमंडल पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार जसवंत दीद द्वारा रचित एक कविता–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2007 में पंजाबी भाषा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .

देखें गायत्री मन्त्र और कमंडल

अकृतक त्रैलोक्य

सभी अकृतक लोकों की स्थिति। हिन्दू धर्म में विष्णु पुराण के अनुसार जन, तप और सत्य लोक – तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं। .

देखें गायत्री मन्त्र और अकृतक त्रैलोक्य

ऋग्वेद

ऋग्वेद सनातन धर्म का सबसे आरंभिक स्रोत है। इसमें १०२८ सूक्त हैं, जिनमें देवताओं की स्तुति की गयी है इसमें देवताओं का यज्ञ में आह्वान करने के लिये मन्त्र हैं, यही सर्वप्रथम वेद है। ऋग्वेद को इतिहासकार हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की अभी तक उपलब्ध पहली रचनाऔं में एक मानते हैं। यह संसार के उन सर्वप्रथम ग्रन्थों में से एक है जिसकी किसी रूप में मान्यता आज तक समाज में बनी हुई है। यह एक प्रमुख हिन्दू धर्म ग्रंथ है। ऋक् संहिता में १० मंडल, बालखिल्य सहित १०२८ सूक्त हैं। वेद मंत्रों के समूह को सूक्त कहा जाता है, जिसमें एकदैवत्व तथा एकार्थ का ही प्रतिपादन रहता है। ऋग्वेद में ही मृत्युनिवारक त्र्यम्बक-मंत्र या मृत्युंजय मन्त्र (७/५९/१२) वर्णित है, ऋग्विधान के अनुसार इस मंत्र के जप के साथ विधिवत व्रत तथा हवन करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती है तथा मृत्यु दूर हो कर सब प्रकार का सुख प्राप्त होता है। विश्व-विख्यात गायत्री मन्त्र (ऋ० ३/६२/१०) भी इसी में वर्णित है। ऋग्वेद में अनेक प्रकार के लोकोपयोगी-सूक्त, तत्त्वज्ञान-सूक्त, संस्कार-सुक्त उदाहरणतः रोग निवारक-सूक्त (ऋ०१०/१३७/१-७), श्री सूक्त या लक्ष्मी सूक्त (ऋग्वेद के परिशिष्ट सूक्त के खिलसूक्त में), तत्त्वज्ञान के नासदीय-सूक्त (ऋ० १०/१२९/१-७) तथा हिरण्यगर्भ सूक्त (ऋ०१०/१२१/१-१०) और विवाह आदि के सूक्त (ऋ० १०/८५/१-४७) वर्णित हैं, जिनमें ज्ञान विज्ञान का चरमोत्कर्ष दिखलाई देता है। ऋग्वेद के विषय में कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित है-.

देखें गायत्री मन्त्र और ऋग्वेद

छंद

छन्द संस्कृत वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये प्रयोग किया गया है। विशिष्ट अर्थों में छन्द कविता या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है। छोटी-बड़ी ध्वनियां, लघु-गुरु उच्चारणों के क्रमों में, मात्रा बताती हैं और जब किसी काव्य रचना में ये एक व्यवस्था के साथ सामंजस्य प्राप्त करती हैं तब उसे एक शास्त्रीय नाम दे दिया जाता है और लघु-गुरु मात्राओं के अनुसार वर्णों की यह व्यवस्था एक विशिष्ट नाम वाला छन्द कहलाने लगती है, जैसे चौपाई, दोहा, आर्या, इन्द्र्वज्रा, गायत्री छन्द इत्यादि। इस प्रकार की व्यवस्था में मात्रा अथवा वर्णॊं की संख्या, विराम, गति, लय तथा तुक आदि के नियमों को भी निर्धारित किया गया है जिनका पालन कवि को करना होता है। इस दूसरे अर्थ में यह अंग्रेजी के मीटर अथवा उर्दू फ़ारसी के रुक़न (अराकान) के समकक्ष है। हिन्दी साहित्य में भी परंपरागत रचनाएँ छन्द के इन नियमों का पालन करते हुए रची जाती थीं, यानि किसी न किसी छन्द में होती थीं। विश्व की अन्य भाषाओँ में भी परंपरागत रूप से कविता के लिये छन्द के नियम होते हैं। छन्दों की रचना और गुण-अवगुण के अध्ययन को छन्दशास्त्र कहते हैं। चूँकि, आचार्य पिंगल द्वारा रचित 'छन्दःशास्त्र' सबसे प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ है, इस शास्त्र को पिंगलशास्त्र भी कहा जाता है। .

देखें गायत्री मन्त्र और छंद

यह भी देखें

हिन्दू मंत्र

गायत्री महामंत्र, गायत्री मंत्र, गायत्री-मन्त्र के रूप में भी जाना जाता है।