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गंगेश उपाध्याय

सूची गंगेश उपाध्याय

गंगेश उपाध्याय भारत के १३वी शती के गणितज्ञ एवं नव्य-न्याय दर्शन परम्परा के प्रणेता प्रख्यात नैयायिक थे। उन्होंने वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८०) की विचारधारा को बढ़ाया। .

8 संबंधों: तत्त्वचिन्तामणि, नवद्वीप, नव्य न्याय, न्याय दर्शन, ब्राह्मण, भारत, मिथिला, वाचस्पति मिश्र

तत्त्वचिन्तामणि

तत्त्वचिन्तामणि, गंगेश उपाध्याय द्वारा रचित नव्यन्याय का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। तत्वचिंतामणि के पश्चात् जितने न्यायग्रंथ लिखे गए वे सब नव्यन्याय के नाम से प्रख्यात हैं। उन्होंने गौतम के मात्र एक सूत्र 'प्रत्यक्षानुमानोपमान शब्दाः प्रमाणाति' की व्याख्या में इस ग्रंथ की रचना की है। यह न्याय ग्रंथ चार खंडों में विभाजित है - प्रत्यक्षखण्ड, अनुमानखण्ड, उपमानखण्ड और शब्दखण्ड। इसमें पूर्ववर्ती नैयायिकों की भांति १६ तत्त्वों का वर्नन नहीं किया गया है। इसमें उन्होंने अवच्छेद्य-अवच्छेदक, निरूप्य-निरूपक, अनुयोगी-प्रतियोगी आदि पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग कर एक नई स्वतंत्र लेखन शैली को जन्म दिया जिसका अनुसरण परवर्ती अनेक दार्शनिकों ने किया है। तत्वचिंतामणि पर जितनी टीकाएँ, जितने विस्तार के साथ लिखी गई हैं उतनी किसी अन्य ग्रंथ पर नहीं लिखी गई। पहले इसकी टीका पक्षधर मिश्र ने की; तदनंतर उनके शिष्य रुद्रदत्त ने एक अपनी टीका तैयार की। और इन दोनों से भिन्न वासुदेव सार्वभौम, रघुनाथ शिरोमणि, गंगाधर, जगदीश, मथुरानाथ, गोकुलनाथ, भवानंद, शशधर, शितिकंठ, हरिदास, प्रगल्भ, विश्वनाथ, विष्णुपति, रघुदेव, प्रकाशधर, चंद्रनारायण, महेश्वर और हनुमान कृत टीकाएँ हैं। इन टीकाओं की भी असंख्य टीकाएँ लिखी गई हैं। गंगेश उपाध्याय के पुत्र वर्धमान उपाध्याय भी महान नैयायिक थे जिन्होने तत्वचिन्तामणि का 'तत्वचिन्तामणिप्रकाश' नाम से भाष्य लिखा। सामान्यनिरुक्ति, तत्त्वचिन्तामणि का एक महत्त्वपूर्ण अंश है। इसमें हेत्वाभास एवं दुष्ट हेतुओं की विस्तार से चर्चा है। संक्षिप्त एवं सारगर्भित चिन्तामणि का व्याख्यान अनेक प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा किया गया है। रघुनाथ शिरोमणि ने तत्त्वचिन्तामणि के गूढ़ रहस्यों को विस्तार से समझाने के लिये दीधिति नाम की टीका लिखी। कालान्तर में दीधिति व्याख्या पर भी गदाधर भट्ट ने एक प्रसिद्ध विस्तृत टीका गादाधरी की रचना की। गादाधरी व्याख्या की गम्भीरता एवं जटिलता को धयान में रखते हुए बलदेव भट्टाचार्य ने बलदेवी नाम की टीका का प्रणयन किया। इस टीका में तत्त्वचिन्तामणि दीधिति एवं गादाधरी व्याख्या के समग्र अर्थ का अपूर्व विवेचन किया गया है। .

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नवद्वीप

नवद्वीप (নবদ্বীপ) भारत के पश्चिमी बंगाल प्रदेश में नदिया जिले में भागीरथी और जलांगी नदियों के संगम पर कृष्णनगर से आठ मील पश्चिम में स्थित प्रसिद्ध नगर है। यह हिंदुओं का एक तीर्थस्थान है। १४८५ ई. में चैतन्य महाप्रभु का जन्म यहीं हुआ था। १२वीं शताब्दी में सेनवंश के राज्य की राजधानी थी। इस नगर को पहले 'नदिया' कहा जाता था। यहाँ वर्ष भर तीर्थयात्री आया करते हैं। .

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नव्य न्याय

नव्य न्याय, भारतीय दर्शन का एक सम्प्रदाय (school) है जो मिथिला के दार्शनिक गंगेश उपाध्याय द्वारा तेरहवीं शती में प्रतिपादित किया गया। इसमें पुराने न्याय दर्शन को ही आगे बढ़ाया गया है। वाचस्पति मिश्र तथा उदयन (१०वीं शती की अन्तिम बेला) आदि का भी इस दर्शन के विकास में प्रभाव है। गंगेश उपाध्याय ने श्रीहर्ष के खण्डनखण्डखाद्यम् नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक तत्वचिन्तामणि की रचना की। खण्डनखण्डखाद्यम् में अद्वैत वेदान्त का समर्थन एवं न्याय दर्शन के कतिपय सिद्धान्तों का खण्डन किया गया था। .

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न्याय दर्शन

न्याय दर्शन भारत के छः वैदिक दर्शनों में एक दर्शन है। इसके प्रवर्तक ऋषि अक्षपाद गौतम हैं जिनका न्यायसूत्र इस दर्शन का सबसे प्राचीन एवं प्रसिद्ध ग्रन्थ है। जिन साधनों से हमें ज्ञेय तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, उन्हीं साधनों को ‘न्याय’ की संज्ञा दी गई है। देवराज ने 'न्याय' को परिभाषित करते हुए कहा है- दूसरे शब्दों में, जिसकी सहायता से किसी सिद्धान्त पर पहुँचा जा सके, उसे न्याय कहते हैं। प्रमाणों के आधार पर किसी निर्नय पर पहुँचना ही न्याय है। यह मुख्य रूप से तर्कशास्त्र और ज्ञानमीमांसा है। इसे तर्कशास्त्र, प्रमाणशास्त्र, हेतुविद्या, वादविद्या तथा अन्वीक्षिकी भी कहा जाता है। वात्स्यायन ने प्रमाणैर्थपरीक्षणं न्यायः (प्रमाणों द्वारा अर्थ (सिद्धान्त) का परीक्षण ही न्याय है।) इस दृष्टि से जब कोई मनुष्य किसी विषय में कोई सिद्धान्त स्थिर करता है तो वहाँ न्याय की सहायता अपेक्षित होती है। इसलिये न्याय-दर्शन विचारशील मानव समाज की मौलिक आवश्यकता और उद्भावना है। उसके बिना न मनुष्य अपने विचारों एवं सिद्धान्तों को परिष्कृत एवं सुस्थिर कर सकता है न प्रतिपक्षी के सैद्धान्तिक आघातों से अपने सिद्धान्त की रक्षा ही कर सकता है। न्यायशास्त्र उच्चकोटि के संस्कृत साहित्य (और विशेषकर भारतीय दर्शन) का प्रवेशद्वार है। उसके प्रारम्भिक परिज्ञान के बिना किसी ऊँचे संस्कृत साहित्य को समझ पाना कठिन है, चाहे वह व्याकरण, काव्य, अलंकार, आयुर्वेद, धर्मग्रन्थ हो या दर्शनग्रन्थ। दर्शन साहित्य में तो उसके बिना एक पग भी चलना असम्भव है। न्यायशास्त्र वस्तुतः बुद्धि को सुपरिष्कृत, तीव्र और विशद बनाने वाला शास्त्र है। परन्तु न्यायशास्त्र जितना आवश्यक और उपयोगी है उतना ही कठिन भी, विशेषतः नव्यन्याय तो मानो दुर्बोधता को एकत्र करके ही बना है। वैशेषिक दर्शन की ही भांति न्यायदर्शन में भी पदार्थों के तत्व ज्ञान से निःश्रेयस् की सिद्धि बतायी गयी है। न्यायदर्शन में १६ पदार्थ माने गये हैं-.

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ब्राह्मण

ब्राह्मण का शब्द दो शब्दों से बना है। ब्रह्म+रमण। इसके दो अर्थ होते हैं, ब्रह्मा देश अर्थात वर्तमान वर्मा देशवासी,द्वितीय ब्रह्म में रमण करने वाला।यदि ऋग्वेद के अनुसार ब्रह्म अर्थात ईश्वर को रमण करने वाला ब्राहमण होता है। । स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को द्विज की उत्त्पत्ति बताई गई है जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते। शापानुग्रहसामर्थ्यं तथा क्रोधः प्रसन्नता। ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह वर्ण व्‍यवस्‍था का वर्ण है। एेतिहासिक रूप हिन्दु वर्ण व्‍यवस्‍था में चार वर्ण होते हैं। ब्राह्मण (ज्ञानी ओर आध्यात्मिकता के लिए उत्तरदायी), क्षत्रिय (धर्म रक्षक), वैश्य (व्यापारी) तथा शूद्र (सेवक, श्रमिक समाज)। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार - ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: -- ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है - "ईश्वर का ज्ञाता"। सन:' शब्द के भी तप, वेद विद्या अदि अर्थ है | निरंतारार्थक अनन्य में भी 'सना' शब्द का पाठ है | 'आढ्य' का अर्थ होता है धनी | फलतः जो तप, वेद, और विद्या के द्वारा निरंतर पूर्ण है, उसे ही "सनाढ्य" कहते है - 'सनेन तपसा वेदेन च सना निरंतरमाढ्य: पूर्ण सनाढ्य:' उपर्युक्त रीति से 'सनाढ्य' शब्द में ब्राह्मणत्व के सभी प्रकार अनुगत होने पर जो सनाढ्य है वे ब्राह्मण है और जो ब्राह्मण है वे सनाढ्य है | यह निर्विवाद सिद्ध है | अर्थात ऐसा कौन ब्राह्मण होगा, जो 'सनाढ्य' नहीं होना चाहेगा | भारतीय संस्कृति की महान धाराओं के निर्माण में सनाढ्यो का अप्रतिभ योगदान रहा है | वे अपने सुखो की उपेक्षा कर दीपबत्ती की तरह तिलतिल कर जल कर समाज के लिए मिटते रहे है | .

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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मिथिला

'''मिथिला''' मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। .

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वाचस्पति मिश्र

वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८० ई) भारत के दार्शनिक थे जिन्होने अद्वैत वेदान्त का भामती नामक सम्प्रदाय स्थापित किया। वाचस्पति मिश्र ने नव्य-न्याय दर्शन पर आरम्भिक कार्य भी किया जिसे मिथिला के १३वी शती के गंगेश उपाध्याय ने आगे बढ़ाया। .

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गंगेशोपाध्याय, गङ्गेश उपाध्याय

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