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वाचस्पति मिश्र

सूची वाचस्पति मिश्र

वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८० ई) भारत के दार्शनिक थे जिन्होने अद्वैत वेदान्त का भामती नामक सम्प्रदाय स्थापित किया। वाचस्पति मिश्र ने नव्य-न्याय दर्शन पर आरम्भिक कार्य भी किया जिसे मिथिला के १३वी शती के गंगेश उपाध्याय ने आगे बढ़ाया। .

14 संबंधों: तत्त्ववैशारदी, दार्शनिक, नव्य न्याय, न्यायसूत्र, नेपाल, ब्रह्मसूत्र, भामती, भारत, भाष्य, मधुबनी, मिथिला, सांख्यकारिका, वैशेषिक दर्शन, गंगेश उपाध्याय

तत्त्ववैशारदी

तत्त्ववैशारदी योग से सम्बन्धित एक संस्कृत ग्रन्थ है। यह वाचस्पतिमिश्र की कृति है जो व्यास भाष्य पर की टीका है। तत्त्ववैशारदी को सुस्पष्ट करने के लिये इस पर भी टीका मिलता है जिसका नाम पातंजलरहस्य है तथा इसके रचयिता राघवानन्द सरस्वती हैं। .

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दार्शनिक

जो दर्शन पर मनन करे वह दार्शनिक हुआ। .

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नव्य न्याय

नव्य न्याय, भारतीय दर्शन का एक सम्प्रदाय (school) है जो मिथिला के दार्शनिक गंगेश उपाध्याय द्वारा तेरहवीं शती में प्रतिपादित किया गया। इसमें पुराने न्याय दर्शन को ही आगे बढ़ाया गया है। वाचस्पति मिश्र तथा उदयन (१०वीं शती की अन्तिम बेला) आदि का भी इस दर्शन के विकास में प्रभाव है। गंगेश उपाध्याय ने श्रीहर्ष के खण्डनखण्डखाद्यम् नामक पुस्तक के विचारों के विरोध में अपनी पुस्तक तत्वचिन्तामणि की रचना की। खण्डनखण्डखाद्यम् में अद्वैत वेदान्त का समर्थन एवं न्याय दर्शन के कतिपय सिद्धान्तों का खण्डन किया गया था। .

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न्यायसूत्र

चार प्रमाण - '''१-प्रत्यक्ष, २-उपमान, ३-अनुमान, ४-शब्द''' न्यायसूत्र, भारतीय दर्शन का प्राचीन ग्रन्थ है। इसके रचयिता अक्षपाद गौतम हैं। यह न्यायदर्शन का सबसे प्राचीन रचना है। इसकी रचना का समय दूसरी शताब्दी ईसापूर्व है। इसका प्रथम सूत्र है - (प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अयवय, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान के तत्वज्ञान से मुक्ति प्राप्त होती है।) .

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नेपाल

नेपाल, (आधिकारिक रूप में, संघीय लोकतान्त्रिक गणराज्य नेपाल) भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित एक दक्षिण एशियाई स्थलरुद्ध हिमालयी राष्ट्र है। नेपाल के उत्तर मे चीन का स्वायत्तशासी प्रदेश तिब्बत है और दक्षिण, पूर्व व पश्चिम में भारत अवस्थित है। नेपाल के ८१ प्रतिशत नागरिक हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। नेपाल विश्व का प्रतिशत आधार पर सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र है। नेपाल की राजभाषा नेपाली है और नेपाल के लोगों को भी नेपाली कहा जाता है। एक छोटे से क्षेत्र के लिए नेपाल की भौगोलिक विविधता बहुत उल्लेखनीय है। यहाँ तराई के उष्ण फाँट से लेकर ठण्डे हिमालय की श्रृंखलाएं अवस्थित हैं। संसार का सबसे ऊँची १४ हिम श्रृंखलाओं में से आठ नेपाल में हैं जिसमें संसार का सर्वोच्च शिखर सागरमाथा एवरेस्ट (नेपाल और चीन की सीमा पर) भी एक है। नेपाल की राजधानी और सबसे बड़ा नगर काठमांडू है। काठमांडू उपत्यका के अन्दर ललीतपुर (पाटन), भक्तपुर, मध्यपुर और किर्तीपुर नाम के नगर भी हैं अन्य प्रमुख नगरों में पोखरा, विराटनगर, धरान, भरतपुर, वीरगंज, महेन्द्रनगर, बुटवल, हेटौडा, भैरहवा, जनकपुर, नेपालगंज, वीरेन्द्रनगर, त्रिभुवननगर आदि है। वर्तमान नेपाली भूभाग अठारहवीं सदी में गोरखा के शाह वंशीय राजा पृथ्वी नारायण शाह द्वारा संगठित नेपाल राज्य का एक अंश है। अंग्रेज़ों के साथ हुई संधियों में नेपाल को उस समय (१८१४ में) एक तिहाई नेपाली क्षेत्र ब्रिटिश इंडिया को देने पड़े, जो आज भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा पश्चिम बंगाल में विलय हो गये हैं। बींसवीं सदी में प्रारंभ हुए जनतांत्रिक आन्दोलनों में कई बार विराम आया जब राजशाही ने जनता और उनके प्रतिनिधियों को अधिकाधिक अधिकार दिए। अंततः २००८ में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि माओवादी नेता प्रचण्ड के प्रधानमंत्री बनने से यह आन्दोलन समाप्त हुआ। लेकिन सेना अध्यक्ष के निष्कासन को लेकर राष्ट्रपति से हुए मतभेद और टीवी पर सेना में माओवादियों की नियुक्ति को लेकर वीडियो फुटेज के प्रसारण के बाद सरकार से सहयोगी दलों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद प्रचण्ड को इस्तीफा देना पड़ा। गौरतलब है कि माओवादियों के सत्ता में आने से पहले सन् २००६ में राजा के अधिकारों को अत्यंत सीमित कर दिया गया था। दक्षिण एशिया में नेपाल की सेना पांचवीं सबसे बड़ी सेना है और विशेषकर विश्व युद्धों के दौरान, अपने गोरखा इतिहास के लिए उल्लेखनीय रहे हैं और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के लिए महत्वपूर्ण योगदानकर्ता रही है। .

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ब्रह्मसूत्र

ब्रहमसूत्र, हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। इसके रचयिता बादरायण हैं। इसे वेदान्त सूत्र, उत्तर-मीमांसा सूत्र, शारीरिक सूत्र और भिक्षु सूत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस पर अनेक भाष्य भी लिखे गये हैं। वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं - उपनिषद्, भगवदगीता एवं ब्रह्मसूत्र। इन तीनों को प्रस्थान त्रयी कहा जाता है। इसमें उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहते हैं। ब्रह्म सूत्रों को न्याय प्रस्थान कहने का अर्थ है कि ये वेदान्त को पूर्णतः तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करता है। (न्याय .

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भामती

भामती अद्वैत वेदान्त दर्शन का एक उपसम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय का नाम वाचस्पति मिश्र के 'भामती' नामक ग्रन्थ पर पड़ा है जो आदि शंकराचार्य कृत ब्रह्मसूत्र के भाष्य की टीका है। श्रेणी:भारतीय दर्शन.

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भारत

भारत (आधिकारिक नाम: भारत गणराज्य, Republic of India) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्या के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है। इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं। प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता, व्यापार मार्गों और बड़े-बड़े साम्राज्यों का विकास-स्थान रहे भारतीय उपमहाद्वीप को इसके सांस्कृतिक और आर्थिक सफलता के लंबे इतिहास के लिये जाना जाता रहा है। चार प्रमुख संप्रदायों: हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों का यहां उदय हुआ, पारसी, यहूदी, ईसाई, और मुस्लिम धर्म प्रथम सहस्राब्दी में यहां पहुचे और यहां की विविध संस्कृति को नया रूप दिया। क्रमिक विजयों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने १८वीं और १९वीं सदी में भारत के ज़्यादतर हिस्सों को अपने राज्य में मिला लिया। १८५७ के विफल विद्रोह के बाद भारत के प्रशासन का भार ब्रिटिश सरकार ने अपने ऊपर ले लिया। ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में एक लम्बे और मुख्य रूप से अहिंसक स्वतन्त्रता संग्राम के बाद १५ अगस्त १९४७ को आज़ादी पाई। १९५० में लागू हुए नये संविधान में इसे सार्वजनिक वयस्क मताधिकार के आधार पर स्थापित संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित कर दिया गया और युनाईटेड किंगडम की तर्ज़ पर वेस्टमिंस्टर शैली की संसदीय सरकार स्थापित की गयी। एक संघीय राष्ट्र, भारत को २९ राज्यों और ७ संघ शासित प्रदेशों में गठित किया गया है। लम्बे समय तक समाजवादी आर्थिक नीतियों का पालन करने के बाद 1991 के पश्चात् भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण की नयी नीतियों के आधार पर सार्थक आर्थिक और सामाजिक प्रगति की है। ३३ लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी और मानक मूल्यों के आधार पर विश्व की दसवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। १९९१ के बाज़ार-आधारित सुधारों के बाद भारत विश्व की सबसे तेज़ विकसित होती बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक हो गया है और इसे एक नव-औद्योगिकृत राष्ट्र माना जाता है। परंतु भारत के सामने अभी भी गरीबी, भ्रष्टाचार, कुपोषण, अपर्याप्त सार्वजनिक स्वास्थ्य-सेवा और आतंकवाद की चुनौतियां हैं। आज भारत एक विविध, बहुभाषी, और बहु-जातीय समाज है और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति है। .

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भाष्य

संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। मुख्य रूप से सूत्र ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं। भाष्य, मोक्ष की प्राप्ति हेतु अविद्या (ignorance) का नाश करने के साधन के रूप में जाने जाते हैं। पाणिनि के अष्टाध्यायी पर पतंजलि का व्याकरणमहाभाष्य और ब्रह्मसूत्रों पर शांकरभाष्य आदि कुछ प्रसिद्ध भाष्य हैं। .

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मधुबनी

मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

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मिथिला

'''मिथिला''' मिथिला प्राचीन भारत में एक राज्य था। माना जाता है कि यह वर्तमान उत्तरी बिहार और नेपाल की तराई का इलाका है जिसे मिथिला के नाम से जाना जाता था। मिथिला की लोकश्रुति कई सदियों से चली आ रही है जो अपनी बौद्धिक परम्परा के लिये भारत और भारत के बाहर जानी जाती रही है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा मैथिली है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में सबसे पहले इसका संकेत शतपथ ब्राह्मण में तथा स्पष्ट उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है। मिथिला का उल्लेख महाभारत, रामायण, पुराण तथा जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में हुआ है। .

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सांख्यकारिका

सांख्यकारिका सांख्य दर्शन का सबसे पुराना उपलब्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता ईश्वरकृष्ण हैं। संस्कृत के एक विशेष प्रकार के श्लोकों को "कारिका" कहते हैं। सांख्यकारिकाओं का समय बहुमत से ई. तृतीय शताब्दी का मध्य माना जाता है। वस्तुत: इनका समय इससे पर्याप्त पूर्व का प्रतीत होता है। इसमें ईश्वरकृष्ण ने कहा है कि इसकी शिक्षा कपिल से आसुरी को, आसुरी से पंचाशिका को और पंचाशिका से उनको प्राप्त हुई। इसमें उन्होने सांख्य दर्शन की 'षष्टितंत्र' नामक कृति का भी उल्लेख किया है। सांख्यकारिका में ७२ श्लोक हैं जो आर्या छन्द में लिखे हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि अन्तिम ३ श्लोक बाद में जोड़े गये (प्रक्षिप्त) हैं। सांख्‍यकारिका पर विभिन्न विद्वानों द्वारा अनेक टीकाएँ की गयीं जिनमें युक्तिदीपिका, गौडपादभाष्‍यम्, जयमंगला, तत्‍वकौमुदी, नारायणकृत सांख्‍यचन्द्रिका आदि प्रमुख हैं। सांख्यकारिका पर सबसे प्राचीन भाष्य गौड़पाद द्वारा रचित है। दूसरा महत्वपूर्ण भाष्य वाचस्पति मिश्र द्वार रचित सांख्यतत्वकौमुदी है। सांख्यकारिका का चीनी भाषा में अनुवाद ६ठी शती में हुआ। सन् १८३२ में क्रिश्चियन लासेन ने इसका लैटिन में अनुवाद किया। एच टी कोलब्रुक ने इसको सर्वप्रथम अंग्रेजीं में रूपान्तरित किया। सांख्यकारिका का आरम्भिक श्लोक इस प्रकार है- सांख्यकारिका, सांख्यदर्शन का बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रकरण ग्रन्थ है जिसने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की है। आज सांख्यदर्शन के जो ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, उनमें व्याख्या-ग्रन्थ ही अधिक हैं। मूल ग्रन्थ तो केवल तीन ही प्राप्त होते हैं- सांख्यकारिका, तत्त्वसमास एवं सांख्यप्रवचनसूत्र। आज प्राप्त होने वाले सांख्यदर्शन के अन्य ग्रन्थ इन तीन मूल ग्रन्थों की ही टीका या व्याख्या के रूप में हैं। इन व्याख्या-ग्रन्थों में से अधिकांश ‘सांख्यकारिका’ की ही व्याख्याओं और इन व्याख्याओं की भी अनुव्याख्याओं के रूप में हैं। इस प्रकार ईश्वरकृष्ण की ‘सांख्यकारिका’ सांख्यदर्शन का प्रमुख प्रतिनिधि ग्रन्थ है। शंकर आदि आचार्यों ने ही नहीं, अपितु ईसा की चौदहवीं शताब्दी तक के आचार्यों ने ‘तत्त्वसमास’ या ‘सांख्यप्रवचनसूत्र’ को अपने ग्रन्थों में उद्धृत न कर ‘सांख्यकारिका’ को ही उद्धृत किया है। साथ ही पन्द्रहवीं शताब्दी में होने वाले अनिरुद्ध से पूर्व किसी ने इन सूत्र-ग्रन्थों की व्याख्या भी नहीं की, जबकि विभिन्न विद्वानों के द्वारा बहुत पहले से ही ‘सांख्यकारिका’ की व्याख्याएँ प्रस्तुत की जा रही हैं। अतः स्पष्ट है कि सांख्यदर्शन के आज उपलब्ध होने वाले उक्त तीन मूल ग्रन्थों - सांख्यकारिका, तत्त्वसमास एवं सांख्य-प्रवचनसूत्र- में से ‘सांख्यकारिका’ प्राचीनतम है। चूंकि शंकर आदि आचार्यों के द्वारा इसे उद्धृत किया जाता रहा है, अतः यह भी स्पष्ट है कि यह सांख्यदर्शन की एक प्रामाणिक कृति मानी जाती रही है। सांख्यकारिकाकार ईश्वरकृष्ण ने यह घोषणा भी की है कि सांख्य के प्रथम आचार्य परमर्षि कपिल ने जो ज्ञान अपने शिष्य आसुरि को दिया, उसे आसुरी ने अपने शिष्य पंचशिख को दिया, पंचशिख ने उसे विस्तृत किया और फिर उसके बाद शिष्य-परम्परा से प्राप्त-उसी विस्तृत ज्ञान को संक्षिप्त रूप से उन्होनें सांख्यकारिका की सत्तर कारिकाओं में प्रस्तुत कर दिया है। इस घोषणा से सांख्यकारिका की रूप में प्रामाणिकता स्पष्ट होती है कि इसमें सांख्य के परम्परागत ज्ञान को प्रस्तुत किया गया है। कहना न होगा कि इस ज्ञान और प्रामाणिकता के अनुरूप ही इस ग्रन्थ को दार्शनिक क्षेत्र में परम सम्मान प्राप्त हुआ है। .

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वैशेषिक दर्शन

वैशेषिक हिन्दुओं के षडदर्शनों में से एक दर्शन है। इसके मूल प्रवर्तक ऋषि कणाद हैं (ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी)। यह दर्शन न्याय दर्शन से बहुत साम्य रखता है किन्तु वास्तव में यह एक स्वतंत्र भौतिक विज्ञानवादी दर्शन है। इस प्रकार के आत्मदर्शन के विचारों का सबसे पहले महर्षि कणाद ने सूत्र रूप में लिखा। कणाद एक ऋषि थे। ये "उच्छवृत्ति" थे और धान्य के कणों का संग्रह कर उसी को खाकर तपस्या करते थे। इसी लिए इन्हें "कणाद" या "कणभुक्" कहते थे। किसी का कहना है कि कण अर्थात् परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार इन्होंने किया है, इसलिए इन्हें "कणाद" कहते हैं। किसी का मत है कि दिन भर ये समाधि में रहते थे और रात्रि को कणों का संग्रह करते थे। यह वृत्ति "उल्लू" पक्षी की है। किस का कहना है कि इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने उलूक पक्षी के रूप में इन्हें शास्त्र का उपदेश दिया। इन्हीं कारणों से यह दर्शन "औलूक्य", "काणाद", "वैशेषिक" या "पाशुपत" दर्शन के नामों से प्रसिद्ध है। पठन-पाठन में विशेष प्रचलित न होने के कारण वैशेषिक सूत्रों में अनेक पाठभेद हैं तथा 'त्रुटियाँ' भी पर्याप्त हैं। मीमांसासूत्रों की तरह इसके कुछ सूत्रों में पुनरुक्तियाँ हैं - जैसे "सामान्यविशेषाभावेच" (4 बार) "सामान्यतोदृष्टाच्चा विशेष:" (2 बार), "तत्त्वं भावेन" (4 बार), "द्रव्यत्वनित्यत्वे वायुना व्यख्याते" (3 बार), "संदिग्धस्तूपचार:" (2 बार)। .

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गंगेश उपाध्याय

गंगेश उपाध्याय भारत के १३वी शती के गणितज्ञ एवं नव्य-न्याय दर्शन परम्परा के प्रणेता प्रख्यात नैयायिक थे। उन्होंने वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८०) की विचारधारा को बढ़ाया। .

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