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करण

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3 संबंधों: करण (तर्कशास्त्र), करण (नृत्य), करण (ज्योतिष)

करण (तर्कशास्त्र)

अनेक कारणों में जो असाधारण और व्यापारवान्‌ कारण होता है उसे करण कहते हैं। इसी को प्रकृष्ट कारण भी कहते हैं। असाधारण का अर्थ कार्य की उत्पत्ति में साक्षात्‌ सहायक होना। दंड, जिससे चाक चलता है, घड़े उत्पत्ति में व्यापारवान्‌ होकर साक्षात सहायक है, परंतु जंगल की लकड़ी करण नहीं है क्योंकि न तो वह व्यापारवान्‌ है और न साक्षात्‌ सहायक। नव्य न्याय में तो व्यापारवान्‌ वस्तु को करण नहीं कहते। उनके अनुसार वह पदार्थ जिसके बिना कार्य ही न उत्पन्न हो (अन्य सभी कारणों के रहते हुए भी) करण कहलाता है। यह करण न तो उपादान है और न निमित्त वस्तु, अपितु निमित्तगत क्रिया ही असाधारण और प्रकृष्ट कारण है। प्रत्यक्ष ज्ञान में इंद्रिय और अर्थ का सन्निकर्ष (संबंध) करण है अथवा इंद्रियगत वह व्यापार जिससे अर्थ का सन्निकर्ष होता है, नव्य मत में करण कहलाता है। .

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करण (नृत्य)

हवाई के हिन्दू मन्दिर में नृत्य के देवता नटराज द्वारा किये गये करणों की मूर्तियाँ वृश्चिकाकुट्टितम करण का एक परिवर्तित रूप नाट्यशास्त्र में वर्णित १०८ प्रकार की नृत्य-स्थितियों' को करण कहते हैं। .

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करण (ज्योतिष)

चन्द्र और सूर्य के भोगांश के अन्तर को 6 से भाग देने पर प्राप्त संख्या करण कहलाती है। दूसरे शब्दों में चन्द्र और सूर्य में 6 अंश के अन्तर के समय को एक करण कहते है। प्रत्येक तिथि में दो करण होते हैं। अर्थात 30 तिथियों में 60 करण होते है। करणों के नाम इस प्रकार है।.

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