सामग्री की तालिका
3 संबंधों: लघुकथा, कथासाहित्य (संस्कृत), कहानी।
- कहानीकारी
- भारत में निष्पादन कलाएँ
- वाचिक परम्परा
- हिंदू परंपरा
लघुकथा
लघुकथा का मतलब छोटी कहानी से नहीं है, छोटी कहानी लघु कथा होती है जिसमें लघु और कथा के बीच में एक खाली स्थान होता है। .
देखें कथा और लघुकथा
कथासाहित्य (संस्कृत)
संस्कृत भाषा में निबद्ध कथाओं का प्रचुर साहित्य है जो सैकड़ों वर्षो से मनोरंजन करता हुआ उपदेश देता आ रहा है। कथासाहित्य से संबद्ध ग्रंथों के आलोचन से स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृत साहित्य में तीनों प्रकार की कहानियों के उदाहरण मिलते हैं जो वर्तमान समय में पश्चिमी देशों में (१) फ़ेअरी टेल्स (परियों की कहानियाँ), (२) फ़ेबुल्स (जंतुकथाएँ) तथा (३) डायडेक्टिक टेल्स (उपदेशमयी कहानियाँ) कही जातीं हैं। .
देखें कथा और कथासाहित्य (संस्कृत)
कहानी
कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .
देखें कथा और कहानी
यह भी देखें
कहानीकारी
भारत में निष्पादन कलाएँ
- अष्टनायिका
- कथा
- कीर्तन
- कूडियाट्टम्
- जमूरा
- नौटंकी
- पंडवानी
- भांड
- भारत भवन
- भारतीय लोकनाट्य
- लावणी
- विल्लुपाट्ट
- शिल्परत्न
- शृंगार रस
- हास्य