आयुर्वेद का मुख्य प्रयोजन स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा रोगी मनुष्य के रोग की चिकित्सा करना है। इस प्रयोजन की सम्पूर्ति हेतु आचार्यो ने दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या का विधान बताया है। आयुर्वेद में काल को वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, बसन्त, ग्रीष्म इन छः ऋतुओं में बाँटा गया है। इन ऋतुओं में पृथक-पृथक् चर्या बतायी गयी है। यदि मानव इन सभी का ऋतुओं में बतायी गयी चर्याओ का नियमित व विधिपूर्वक पालन करता है, तो किसी प्रकार के रोग उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती है, अन्यथा अनेक मौसमी बिमारियों से ग्रसित हो जाता है। मौसम के बदलाव के साथ ही खान-पान में बदलाव जरूरी है, ये बदलाव करके मौसमी-रोगों से बचा जा सकता है। .
अष्टाङ्गहृदयम् के सूत्रस्थान में दिनचर्या, रात्रिचर्या, ऋतुचर्या, का वर्णन है। दिनचर्य से तात्पर्य आहार, विहार और आचरण के नियमों से है। १) प्रातःउत्थान २) मलोत्सर्ग ३) दन्तधावन ४) नस्य ५) गण्डूष (मुँहधावन क्रिया/कुल्ले करना) ६) अभ्यंग (तैल मालिस) ७) व्यायाम ८) स्नान ९) भोजन १०) सद्वृत्त ११) निद्रा (शयन) .