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आम स्वामित्व

सूची आम स्वामित्व

आम स्वामित्व का सन्दर्भ, किसी संगठन, उपक्रम, या समुदाय की परिसम्पत्तियों (असेट्स) को वैयक्तिक सदस्यों या सदस्यों के समूहों के नाम पर धारण करने के बजाए, अविभक्त रूप से आम सम्पत्ति के रूप में धारण करने से है। फलितों (आउटपुट्स) की मुक्त अभिगम्यता के साथ, उत्पादन के साधनों को आम रूप से धारण करने का सिद्धान्त, साम्यवादी समाज की परिभाषित विशेषता है। साम्यवादियों और कुछ प्रकार के समाजवाद के द्वारा, उत्पादन के साधनों के आम स्वामित्व की वक़ालत की जाती हैं। अधिवक्ता सामूहिक स्वामित्व और आम सम्पत्ति को प्रभेदित करते हैं; पूर्वकथित का सन्दर्भ उस सम्पत्ति से हैं जिसपर समझौते द्वारा संयुक्त रूप से स्वामित्व हो, जैसे कि उत्पादक सहकारियाँ, जबकि पश्चात्कथित का सन्दर्भ उन परिसम्पत्तियों से हैं, जो अभिगम्यता के लिए पूरी तरह खुली हैं, जैसे कि, सबके लिए उपलब्ध सार्वजनिक पार्क। .

5 संबंधों: समाजवाद, साम्यवाद, साम्यवादी समाज, व्यवसाय, उत्पादन के साधन

समाजवाद

समाजवाद (Socialism) एक आर्थिक-सामाजिक दर्शन है। समाजवादी व्यवस्था में धन-सम्पत्ति का स्वामित्व और वितरण समाज के नियन्त्रण के अधीन रहते हैं। आर्थिक, सामाजिक और वैचारिक प्रत्यय के तौर पर समाजवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित अधिकारों का विरोध करता है। उसकी एक बुनियादी प्रतिज्ञा यह भी है कि सम्पदा का उत्पादन और वितरण समाज या राज्य के हाथों में होना चाहिए। राजनीति के आधुनिक अर्थों में समाजवाद को पूँजीवाद या मुक्त बाजार के सिद्धांत के विपरीत देखा जाता है। एक राजनीतिक विचारधारा के रूप में समाजवाद युरोप में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में उभरे उद्योगीकरण की अन्योन्यक्रिया में विकसित हुआ है। ब्रिटिश राजनीतिक विज्ञानी हैरॉल्ड लॉस्की ने कभी समाजवाद को एक ऐसी टोपी कहा था जिसे कोई भी अपने अनुसार पहन लेता है। समाजवाद की विभिन्न किस्में लॉस्की के इस चित्रण को काफी सीमा तक रूपायित करती है। समाजवाद की एक किस्म विघटित हो चुके सोवियत संघ के सर्वसत्तावादी नियंत्रण में चरितार्थ होती है जिसमें मानवीय जीवन के हर सम्भव पहलू को राज्य के नियंत्रण में लाने का आग्रह किया गया था। उसकी दूसरी किस्म राज्य को अर्थव्यवस्था के नियमन द्वारा कल्याणकारी भूमिका निभाने का मंत्र देती है। भारत में समाजवाद की एक अलग किस्म के सूत्रीकरण की कोशिश की गयी है। राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और नरेन्द्र देव के राजनीतिक चिंतन और व्यवहार से निकलने वाले प्रत्यय को 'गाँधीवादी समाजवाद' की संज्ञा दी जाती है। समाजवाद अंग्रेजी और फ्रांसीसी शब्द 'सोशलिज्म' का हिंदी रूपांतर है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में इस शब्द का प्रयोग व्यक्तिवाद के विरोध में और उन विचारों के समर्थन में किया जाता था जिनका लक्ष्य समाज के आर्थिक और नैतिक आधार को बदलना था और जो जीवन में व्यक्तिगत नियंत्रण की जगह सामाजिक नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे। समाजवाद शब्द का प्रयोग अनेक और कभी कभी परस्पर विरोधी प्रसंगों में किया जाता है; जैसे समूहवाद अराजकतावाद, आदिकालीन कबायली साम्यवाद, सैन्य साम्यवाद, ईसाई समाजवाद, सहकारितावाद, आदि - यहाँ तक कि नात्सी दल का भी पूरा नाम 'राष्ट्रीय समाजवादी दल' था। समाजवाद की परिभाषा करना कठिन है। यह सिद्धांत तथा आंदोलन, दोनों ही है और यह विभिन्न ऐतिहासिक और स्थानीय परिस्थितियों में विभिन्न रूप धारण करता है। मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्गव्यवस्था का अंत करना है। .

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साम्यवाद

साम्यवाद, कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा प्रतिपादित तथा साम्यवादी घोषणापत्र में वर्णित समाजवाद की चरम परिणति है। साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। ऐतिहासिक और आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व होगा। अधिकार और कर्तव्य में आत्मार्पित सामुदायिक सामंजस्य स्थापित होगा। स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय से कोई वंचित नहीं होगा और मानवता एक मात्र जाति होगी। श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ और तकनीक का स्तर सर्वोच्च होगा। साम्यवाद सिद्धांततः अराजकता का पोषक हैं जहाँ राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मूलतः यह विचार समाजवाद की उन्नत अवस्था को अभिव्यक्त करता है। जहाँ समाजवाद में कर्तव्य और अधिकार के वितरण को 'हरेक से अपनी क्षमतानुसार, हरेक को कार्यानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his work) के सूत्र से नियमित किया जाता है, वहीं साम्यवाद में 'हरेक से क्षमतानुसार, हरेक को आवश्यकतानुसार' (From each according to her/his ability, to each according to her/his need) सिद्धांत का लागू किया जाता है। साम्यवाद निजी संपत्ति का पूर्ण प्रतिषेध करता है। .

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साम्यवादी समाज

मार्क्सवादी विचार में, साम्यवादी समाज या साम्यवादी तन्त्र, समाज और आर्थिक तन्त्र का एक प्रकार है, जो साम्यवाद की राजनीतिक विचारधारा के अन्ततः लक्ष्य का प्रतिनिधित्व करने वाले उत्पादक बलों में प्रौद्योगिक उन्नतियों से उभरा हुआ हैं, ऐसा स्वसिद्ध रूप से माना जाता है। एक साम्यवादी समाज की विशेषता यह हैं कि उसमें उपभोग की चीज़ों की मुक्त अभिगम्यता के साथ, उत्पादन के साधनों का आम स्वामित्व होता है और वह समाज वर्गहीन व राज्यहीन होता है, जिसमें श्रम के शोषण का अन्त अन्तर्निहित हो। "साम्यवादी समाज" का शब्द, "साम्यवादी राज्य" की पश्चिमी अवधारणा से प्रभेदित किया जाना चाहिए, क्योंकि पश्चात्कथित का सन्दर्भ एक ऐसे राज्य से है जो मार्क्सवाद-लेनिनवाद के किसी एक प्रकार का दावा करने वाले दल से शासित होता है। Category:साम्यवाद Category:मार्क्सवादी सिद्धान्त Category:समाजवाद.

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व्यवसाय

व्यवसाय (Business) विधिक रूप से मान्य संस्था है जो उपभोक्ताओं को कोई उत्पाद या सेवा प्रदान करने के लक्ष्य से निर्मित की जाती है। व्यवसाय को 'कम्पनी', 'इंटरप्राइज' या 'फर्म' भी कहते हैं। पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में व्यापार का प्रमुख स्थान है जो अधिकांशत: निजी हाथों में होते हैं और लाभ कमाने के ध्येय से काम करते हैं तथा साथ-साथ स्वयं व्यापार की भी वृद्धि करते हैं। किन्तु सहकारी संस्थाएँ तथा सरकार द्वारा चलायी जानी वाली संस्थाएं प्राय: लाभ के बजाय अन्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिये बनायी गयी होती हैं। हम व्यावसायिक वातावरण में रहते हैं। यह समाज का एक अनिवार्य अंग है। यह व्यावसायिक क्रियाओं के विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तथा सेवाएं उपलब्ध कराकर हमारी आश्यकताओं की पूर्ति करता है। अन्य शब्द - व्यापार, व्यवसाय-प्रतिष्‍ठान, फर्म, धंधा, व्यवसाय, कारबार, कारोबार, काम-काज, काम-धंधा, उद्यम .

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उत्पादन के साधन

अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में, उत्पादन के साधन (Means of production) भौतिक, गैर-मानवी इनपुट होते हैं, जिनका उपयोग आर्थिक मूल्य के उत्पादन हेतु होता हैं, जैसे कि, सुविधाएँ, मशीनरी, उपकरण, संरचनात्मक पूंजी और प्राकृतिक पूंजी। उत्पादन के साधनों में वस्तुओं की दो व्यापक श्रेणियाँ मौजूद हैं: श्रम के साधन (उपकरण, फ़ैक्ट्री, संरचना, इत्यादि) और श्रम के विषय (प्राकृतिक संसाधन और कच्चा माल)। अगर वस्तु बना रहें हैं, तो लोग श्रम के साधनों का उपयोग करके श्रम के विषयों पर काम करते हैं, उत्पाद बनाने के लिए; या अन्य शब्दों में, उत्पादन के साधनों पर काम करता श्रम, उत्पाद निर्माण करता हैं। श्रेणी:उत्पादन और विनिर्माण.

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