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5 संबंधों: तमिल भाषा, भारतीय, भारतीय साहित्य अकादमी, मुदलिल इरवु वरुम, कहानी।
- तमिल साहित्यकार
तमिल भाषा
तमिल (தமிழ், उच्चारण:तमिऴ्) एक भाषा है जो मुख्यतः तमिलनाडु तथा श्रीलंका में बोली जाती है। तमिलनाडु तथा पुदुचेरी में यह राजभाषा है। यह श्रीलंका तथा सिंगापुर की कई राजभाषाओं में से एक है। .
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भारतीय
भारत देश के निवासियों को भारतीय कहा जाता है। भारत को हिन्दुस्तान नाम से भी पुकारा जाता है और इसीलिये भारतीयों को हिन्दुस्तानी भी कहतें है।.
देखें आदवन सुंदरम और भारतीय
भारतीय साहित्य अकादमी
भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है। .
देखें आदवन सुंदरम और भारतीय साहित्य अकादमी
मुदलिल इरवु वरुम
मुदलिल इरवु वरुम तमिल भाषा के विख्यात साहित्यकार आदवन सुंदरम द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 1987 में तमिल भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। .
देखें आदवन सुंदरम और मुदलिल इरवु वरुम
कहानी
कथाकार (एक प्राचीन कलाकृति)कहानी हिन्दी में गद्य लेखन की एक विधा है। उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया। बंगला में इसे गल्प कहा जाता है। कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। कहानी गद्य कथा साहित्य का एक अन्यतम भेद तथा उपन्यास से भी अधिक लोकप्रिय साहित्य का रूप है। मनुष्य के जन्म के साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आदिम स्वभाव बन गया। इसी कारण से प्रत्येक सभ्य तथा असभ्य समाज में कहानियाँ पाई जाती हैं। हमारे देश में कहानियों की बड़ी लंबी और सम्पन्न परंपरा रही है। वेदों, उपनिषदों तथा ब्राह्मणों में वर्णित 'यम-यमी', 'पुरुरवा-उर्वशी', 'सौपणीं-काद्रव', 'सनत्कुमार- नारद', 'गंगावतरण', 'श्रृंग', 'नहुष', 'ययाति', 'शकुन्तला', 'नल-दमयन्ती' जैसे आख्यान कहानी के ही प्राचीन रूप हैं। प्राचीनकाल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य, प्रेम, न्याय, ज्ञान, वैराग्य, साहस, समुद्री यात्रा, अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएँ, जिनकी कथानक घटना प्रधान हुआ करती थीं, भी कहानी के ही रूप हैं। 'गुणढ्य' की "वृहत्कथा" को, जिसमें 'उदयन', 'वासवदत्ता', समुद्री व्यापारियों, राजकुमार तथा राजकुमारियों के पराक्रम की घटना प्रधान कथाओं का बाहुल्य है, प्राचीनतम रचना कहा जा सकता है। वृहत्कथा का प्रभाव 'दण्डी' के "दशकुमार चरित", 'बाणभट्ट' की "कादम्बरी", 'सुबन्धु' की "वासवदत्ता", 'धनपाल' की "तिलकमंजरी", 'सोमदेव' के "यशस्तिलक" तथा "मालतीमाधव", "अभिज्ञान शाकुन्तलम्", "मालविकाग्निमित्र", "विक्रमोर्वशीय", "रत्नावली", "मृच्छकटिकम्" जैसे अन्य काव्यग्रंथों पर साफ-साफ परिलक्षित होता है। इसके पश्चात् छोटे आकार वाली "पंचतंत्र", "हितोपदेश", "बेताल पच्चीसी", "सिंहासन बत्तीसी", "शुक सप्तति", "कथा सरित्सागर", "भोजप्रबन्ध" जैसी साहित्यिक एवं कलात्मक कहानियों का युग आया। इन कहानियों से श्रोताओं को मनोरंजन के साथ ही साथ नीति का उपदेश भी प्राप्त होता है। प्रायः कहानियों में असत्य पर सत्य की, अन्याय पर न्याय की और अधर्म पर धर्म की विजय दिखाई गई हैं। .
देखें आदवन सुंदरम और कहानी
यह भी देखें
तमिल साहित्यकार
- आदवन सुंदरम
- आर के नारायण
- आर.पी.सेतु पिळ्ळै
- ए. श्रीनिवासन राघवन्
- ए.एस. ज्ञानसंबंदन
- एम. रामलिंगम्
- एम. वी. वेंकटराम
- एस. अब्दुल रहमान
- का. ना. सुब्रह्मण्यम्
- के. टी. तिरुनावंक्करसु
- के. वी. जगन्नाथन्
- कोवि. मणिशेखरन
- जी. अलगिरिसामी
- जी. तिलकवती
- टी. जानकीरामन्
- टी.एम.सी. रघुनाथन्
- डी. सेल्वराज
- ति॰क॰ शिवशंकरण
- तोप्पिल मोहम्मद मीरान
- त्रिपुरसुंदरी लक्ष्मी
- ना. पार्थसारथी
- नांजिल नाडन
- नील पद्मनाभन
- पी. श्रीआचार्य
- पी॰ वी॰ अकिलानंदम
- पुवियरसु
- पूमणि
- पोन्नीलन (कंदेश्वर भक्तवत्सलम्)
- प्रपंचन
- बी. एस. रमय्या
- भवानी भट्टाचार्य
- मलयपुरम सिंगरावेलु चेट्टियार
- मु. वरदराजन
- मेलणमई पोन्नुसामी
- राजम कृष्णन्
- वल्लिकण्णन
- सिर्पी बालसुब्रह्मण्यम्
- सी. एस. चेल्लप्पा
- सु. वेंकटेशन
- सु. समुत्तिरम्
- सोमु (मी. पा. सोमसुंदरम)