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अंत:स्रावी ग्रंथि

सूची अंत:स्रावी ग्रंथि

अंतःस्रावी ग्रंथियाँ, उन ग्रंथियों को कहा जाता है, जो अपने हार्मोन सीधे रक्तधारा में छोड़ देती हैं। इन अंतःस्रावी ग्रंथियों को पहले एक-दूसरे से पृथक् समझा जाता था, किंतु अब ज्ञात हुआ है कि ये सब एक-दूसरे से संबद्ध हैं और पीयूषिका ग्रंथि तथा मस्तिष्क का मैलेमस भाग उनका संबंध स्थापित करते हैं। अतः मस्तिष्क ही अंतःस्रावी तंत्र का केंद्र है। शरीर में निम्नलिखित मुख्य अंतःस्रावी ग्रंथियाँ हैं: पीयूषिका (पिट्यूटैरी), अधिवृक्क (ऐड्रोनल), अवटुका (थाइरॉइड), उपावटुका (पैराथाइरॉयड), अंडग्रंथि (टेस्टीज), डिंबग्रंथि (ओवैरी), पिनियल, लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ और थाइमस। .

6 संबंधों: थायराइड ग्रंथि, पियूष ग्रंथि, पैराथाइराइड ग्रंथि, हार्मोन, अग्न्याशय, अंतःस्रावी तंत्र

थायराइड ग्रंथि

स्थिति: यह अस्थि कंटक के पीछे स्वर यन्त्र के नीचे ड्रेकिया के सामने लैटिकान के ठीक नीचे स्थित होती है । रचना: यह अस्थि आकार में उल्टे कीप के समान होती है । थायरॉइड ऊतक की पट्टी के यह आगे व पीछे की तरफ जुड़ी हुई होती है । कार्य (Function): इसमें से थाइरॉक्सिन नामक हॉर्मोन्स निकलता है । इसमें आयोडीन की मात्रा काफी होती है । यह कोशिका की वृद्धि पर नियन्त्रण रखता है । इसकी कमी से शरीर की वृद्धि रुक जाती है । जीव नाटे रह जाते हैं, तथा भार बढ़ जाता है, सिर में दर्द, पेशियों का कमजोर हो जाना, सुस्ती आना, चिड़चिड़ापन आ जाता है, बाल झड़ने लगते हैं । कभी-कभी यह ग्रन्थि स्वयं फूलकर घेंघा नामक रोग हो जाता है, तथा थाइरोंक्सिन हॉर्मोन्स की अधिकता से इसका रंग लाल हो जाता है । पसीना अधिक आता है, शरीर गर्म रहता है, भार घटता है, नेत्र बड़े होकर बाहर को निकल आते हैं, हृदय की गति बढ़ जाती है । इस अस्थि के निम्न कार्य हैं: (1) शरीर के तापमान में मेटाबोलिज्म दर को नियन्त्रित करती है । (2) यह अस्थि शरीर के तापमान को भी बनाये रखने में सहायक है । (3) आँतों की ग्लूकोज रक्त तथा उत्पादन को नियन्त्रण में रखती है । (4) थाइरॉक्सिन स्राव को नियन्त्रण में रखती है, यदि थाइरॉक्सिन में ज्यादा स्राव होता है, तो उसे घेंघा हो जाता है ।.

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पियूष ग्रंथि

स्थिति – यह मस्तिष्क के नीचे भाग में लटकी हुई होती है । रचना – यह सबसे छोटी अस्थि है, तथा यह लाल व भूरे रग की होती है । इसका व्यास 12 mm होता है । कार्य – यह शारीरिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना गया है । यह दो भागों में बँट जाती है: a. आगे का भाग, b. पीछे का भाग। (a) आगे का भाग: यह छेद प्रभावी स्राव छोड़ता है, जो शारीरिक मानसिक तथा यौनिक वृद्धि और विकास पर नियन्त्रण रखता है । इसका अधिक स्राव होने से अंगों की अनुचित रूप में वृद्धि होती है । पैरों का लम्बा होना सिर बढ्‌कर बेडौल लगना तथा शीघ्र प्रौढ़ अवस्था ग्रहण करना । इसकी कमी से विकास धीमा हो जाता है तथा बच्चे ठिगने रह जाते हैं । दूध इसका स्राव होने में सहायता देता है । (b) पीछे का भाग: इसके स्राव को पिट्‌यूटशिन कहते हैं । इसमें चार प्रकार के हॉर्मोन्स होते हैं, जिनमें से पिर्डसीन तथा पिटोसिन मुख्य हैं । (i) पिटोसीन द्वारा: शक्कर तथा रक्तचाप पर नियन्त्रण रखा जाता है । इसकी कमी से व्यक्ति मोटा व आलसी बन जाता है । (ii) पिटोसिन के कार्य: गर्भाशय मूत्राशय आँत तथा पित्ताशय पेशियों को सिकोड़ता है । प्रभाव के बाद रक्तस्राव को कम करने में सहायता देता है । इसके अधिक स्राव से शरीर की वृद्धि तथा यौन विकास शीघ्र हो जाता है । इसकी कमी से प्रजनन शक्ति ठीक प्रकार से विकसित नहीं हो पाती है ।.

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पैराथाइराइड ग्रंथि

यह ग्रन्थि थायरॉइड ग्रन्थि की पृष्ठ सतह में धँसी दो जोड़ी या चार छोटी अण्डाकार-सी लाल रंग की ग्रथियों होती हैं। मनुष्य में इनका वजन 0.01 से 0.03 ग्राम होता है। इनके साथ-साथ कई प्रकार की कोशिकाएँ तथा रक्त पात्र भी पाये जाते हैं। यह ग्रथियों पैराथॉरमोन नामक हॉर्मोन का सावण करती हैं । यह हॉर्मोन विटामिन D के साथ मिलकर रक्त में कैल्सियम की मात्रा को बनाने का कार्य करता है। साथ ही यह आँत में कैल्सियम के अवशोषण को तथा वृक्कों में इसके पुनरावशोषण (Reabsorption) को बढाता है । रक्त में कैल्सियम की इस प्रकार बड़ी मात्रा का उपयोग अस्थि निर्माण तथा दन्त निर्माण में किया जाता है, तथा कैल्सियम पेशियों के सिकुडने तथा फैलने में भी सहयोग करता है। यदि किन्ही कारणों से पैराथॉरमोन हॉर्मोन की कमी शरीर में हो जाये तब पेशियों तथा तन्त्रिकाओं में आवश्यक उत्तेजना के कारण ऐंठन और कम्पन होने लगता है। कभी-कभी ऐच्छिक पेशियों में लम्बे समय तक सिकुड़न पैदा हो जाती है। अधिकांश रोगी कंठ की पेशियों में ऐसी सिकुड़न के कारण साँस नहीं ले पाते हैं, और मर जाते हैं। इस रोग को टिटेनी (Tetany) कहते हैं। कभी-कभी यह ग्रन्थि अधिक हॉर्मोन का स्राव करने लगती है । इससे हड्डियाँ गलकर कोमल तथा कमजोर हो जाती हैं। तन्त्रिका सूत्र तथा पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। तन्त्रिका सूत्र तथा पेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। मूत्र की मात्रा बन्द हो जाने से प्यास बढ़ जाती है, भूख मर जाती है, सिर दर्द रहने लगता है।.

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हार्मोन

ऑक्सीटोसिन हार्मोन का चित्र आड्रेनालिन (Adrenaline) नामक हार्मोन की रासायनिक संरचना हार्मोन या ग्रन्थिरस या अंत:स्राव जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो सजीवों में होने वाली विभिन्न जैव-रसायनिक क्रियाओं, वृद्धि एवं विकास, प्रजनन आदि का नियमन तथा नियंत्रण करता है। ये कोशिकाओं तथा ग्रन्थियों से स्रावित होते हैं। हार्मोन साधारणतः अपने उत्पत्ति स्थल से दूर की कोशिकाओं या ऊतकों में कार्य करते हैं इसलिए इन्हें 'रासायनिक दूत' भी कहते हैं। इनकी सूक्ष्म मात्रा भी अधिक प्रभावशाली होती है। इन्हें शरीर में अधिक समय तक संचित नहीं रखा जा सकता है अतः कार्य समाप्ति के बाद ये नष्ट हो जाते हैं एवं उत्सर्जन के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। हार्मोन की कमी या अधिकता दोनों ही सजीव में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। .

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अग्न्याशय

अग्न्याशय कशेरुकी जीवों की पाचन व अंतःस्रावी प्रणाली का एक ग्रंथि अंग है। ये इंसुलिन, ग्लुकागोन, व सोमाटोस्टाटिन जैसे कई ज़रूरी हार्मोन बनाने वाली अंतःस्रावी ग्रंथि है और साथ ही यह अग्न्याशयी रस निकालने वाली एक बहिःस्रावी ग्रंथि भी है, इस रस में पाचक किण्वक होते हैं जो लघ्वांत्र में जाते हैं। ये किण्वक अम्लान्न में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, व वसा का और भंजन करते हैं। .

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अंतःस्रावी तंत्र

प्रमुख अंत:स्रावी ग्रंथियां. (पुरुष बांए, महिला दांए.) '''1.''' गावदुम ग्रंथि'''2.''' पीयूष ग्रंथि'''3.''' अवटु ग्रंथि'''4.''' बाल्यग्रंथि थायमस'''5.''' आधिवृक्क ग्रंथि'''6.''' अग्न्याशय'''7.''' अंडाशय'''8.''' वृषण अंत:स्रावी तंत्र छोटे अंगों की एक एकीकृत प्रणाली है जिससे बाह्यकोशीय संकेतन अणुओं हार्मोन का स्राव होता है। अंत:स्रावी तंत्र शरीर के चयापचय, विकास, यौवन, ऊतक क्रियाएं और चित्त (मूड) के लिए उत्तरदायी है। .

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