सामग्री की तालिका
18 संबंधों: पाचन, प्रोटीन, बहिःस्रावी ग्रंथि, बीटा कोशिका, मानव का पोषण नाल, यूनानी, यूनानी भाषा, लवण, लेंगर्हंस के आइलेट, शल्यचिकित्सा, सूक्ष्मदर्शी, हार्मोन, वसा, इन्सुलिन, कशेरुकी प्राणी, कार्बोहाइड्रेट, किण्वक, अंतःस्रावी तंत्र।
पाचन
पाचन वह क्रिया है जिसमें भोजन को यांत्रिकीय और रासायनिक रूप से छोटे छोटे घटकों में विभाजित कर दिया जाता है ताकि उन्हें, उदाहरण के लिए, रक्तधारा में अवशोषित किया जा सके.
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प्रोटीन
रुधिरवर्णिका(हीमोग्लोबिन) की संरचना- प्रोटीन की दोनो उपइकाईयों को लाल एंव नीले रंग से तथा लौह भाग को हरे रंग से दिखाया गया है। प्रोटीन या प्रोभूजिन एक जटिल भूयाति युक्त कार्बनिक पदार्थ है जिसका गठन कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन एवं नाइट्रोजन तत्वों के अणुओं से मिलकर होता है। कुछ प्रोटीन में इन तत्वों के अतिरिक्त आंशिक रूप से गंधक, जस्ता, ताँबा तथा फास्फोरस भी उपस्थित होता है। ये जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) के मुख्य अवयव हैं एवं शारीरिक वृद्धि तथा विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए आवश्यक हैं। रासायनिक गठन के अनुसार प्रोटीन को सरल प्रोटीन, संयुक्त प्रोटीन तथा व्युत्पन्न प्रोटीन नामक तीन श्रेणियों में बांटा गया है। सरल प्रोटीन का गठन केवल अमीनो अम्ल द्वारा होता है एवं संयुक्त प्रोटीन के गठन में अमीनो अम्ल के साथ कुछ अन्य पदार्थों के अणु भी संयुक्त रहते हैं। व्युत्पन्न प्रोटीन वे प्रोटीन हैं जो सरल या संयुक्त प्रोटीन के विघटन से प्राप्त होते हैं। अमीनो अम्ल के पॉलीमराईजेशन से बनने वाले इस पदार्थ की अणु मात्रा १०,००० से अधिक होती है। प्राथमिक स्वरूप, द्वितीयक स्वरूप, तृतीयक स्वरूप और चतुष्क स्वरूप प्रोटीन के चार प्रमुख स्वरुप है। प्रोटीन त्वचा, रक्त, मांसपेशियों तथा हड्डियों की कोशिकाओं के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। जन्तुओं के शरीर के लिए कुछ आवश्यक प्रोटीन एन्जाइम, हार्मोन, ढोने वाला प्रोटीन, सिकुड़ने वाला प्रोटीन, संरचनात्मक प्रोटीन एवं सुरक्षात्मक प्रोटीन हैं। प्रोटीन का मुख्य कार्य शरीर की आधारभूत संरचना की स्थापना एवं इन्जाइम के रूप में शरीर की जैवरसायनिक क्रियाओं का संचालन करना है। आवश्यकतानुसार इससे ऊर्जा भी मिलती है। एक ग्राम प्रोटीन के प्रजारण से शरीर को ४.१ कैलीरी ऊष्मा प्राप्त होती है। प्रोटीन द्वारा ही प्रतिजैविक (एन्टीबॉडीज़) का निर्माण होता है जिससे शरीर प्रतिरक्षा होती है। जे.
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बहिःस्रावी ग्रंथि
बहिःस्रावी ग्रंथियाँ (Exocrine glands) बहिःस्रावी तंत्र की वे ग्रंथियाँ है जो अपना प्रमुख उत्पाद किसी नलिका (डक्ट) के द्वारा अपने गन्तव्य तक पहुँचाती हैं। इनके विपरीत अंतःस्रावी ग्रंथियाँ अपना उत्पाद (हार्मोन) सीधे रक्त में डालती हैं। स्वेद ग्रंथियाँ, लार ग्रंथियाँ, स्तन ग्रंथियाँ, तथा यकृत आदि बहिःस्रावी ग्रन्थियाँ हैं। .
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बीटा कोशिका
अग्न्याशय में बीटा नामक कोशिकाएं होती हैं जो इंसुलिन नामक हार्मोन तत्व निर्मित करती हैं। इंसुलिन रक्त शर्करा के स्तर को को संतुलित करके सामान्य बनाए रखता है। श्रेणी:मधुमेह.
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मानव का पोषण नाल
मानव का पाचक तंत्र मानव का पाचक नाल या आहार नाल (Digestive or Alimentary Canal) 25 से 30 फुट लंबी नाल है जो मुँह से लेकर मलाशय या गुदा के अंत तक विस्तृत है। यह एक संतत लंबी नली है, जिसमें आहार मुँह में प्रविष्ट होने के पश्चात् ग्रासनाल, आमाशय, ग्रहणी, क्षुद्रांत्र, बृहदांत्र, मलाशय और गुदा नामक अवयवों में होता हुआ गुदाद्वार से मल के रूप में बाहर निकल जाता है। .
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यूनानी
यूनानी का अर्थ यूनान-सम्बन्धी -- लोग, भाषा, संस्कृति अत्यदि। यूनानियों ने भारत को इंडिया कहा .
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यूनानी भाषा
यूनानी या ग्रीक (Ελληνικά या Ελληνική γλώσσα), हिन्द-यूरोपीय (भारोपीय) भाषा परिवार की स्वतंत्र शाखा है, जो ग्रीक (यूनानी) लोगों द्वारा बोली जाती है। दक्षिण बाल्कन से निकली इस भाषा का अन्य भारोपीय भाषा की तुलना में सबसे लंबा इतिहास है, जो लेखन इतिहास के 34 शताब्दियों में फैला हुआ है। अपने प्राचीन रूप में यह प्राचीन यूनानी साहित्य और ईसाईयों के बाइबल के न्यू टेस्टामेंट की भाषा है। आधुनिक स्वरूप में यह यूनान और साइप्रस की आधिकारिक भाषा है और करीबन 2 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाती है। लेखन में यूनानी अक्षरों का उपयोग किया जाता है। यूनानी भाषा के दो ख़ास मतलब हो सकते हैं.
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लवण
लवण (Salt) वह यौगिक है जो किसी अम्ल के एक, या अधिक हाइड्रोजन परमाणु को किसी क्षारक के एक, या अधिक धनायन से प्रतिस्थापित करने पर बनता है। खानेवाला नमक एक प्रमुख लवण है। रसायनत: यह नमक सोडियम और क्लोरीन का सोडियम क्लोराइड नामक यौगिक है। पोटैशियम नाइट्रेट एक दूसरा लवण है, जो नाइट्रिक अम्ल के हाइड्रोजन आयन को पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड के पोटैशियम आयन (धनायन) द्वारा प्रतिस्थापित करने से बनता है। नाइट्रिक अम्ल के अणु में केवल एक हाइड्रोजन होता है, जो पोटैशियम से प्रतिस्थापित होता है। सल्फ्यूरिक अम्ल में प्रतिस्थापनीय हाइड्रोजन की संख्या दो है। अत: सोडियम द्वारा सल्फ्यूरिक अम्ल के दोनों हाइड्रोजन के प्रतिस्थापित होने पर सोडियम सल्फेट नामक लवण प्राप्त होता है। दोनों ही यौगिक लवण कहलाते हैं। पहला नॉर्मल (normal) लवण और दूसरा अम्लीय लवण कहलाता है। विविध अम्लों और विविध क्षारों के सहयोग से अनेक लवण बने हैं। .
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लेंगर्हंस के आइलेट
नाभियाँ नीली। उदरीय (बायाँ) व पृष्ठीय (दाँया) भी दिखाता है। हर प्रकार की कोषिका को अलग रंग दिया गया है। मूषक आइलेट इंसुलिन अंतरभाग दिखाते हैं जबकि मानवीय में यह नहीं है। शूकरीय '''आइलेट ऑफ़ लेंगर्हांस'''। बाईं छवि हीमाटोग्ज़ाइलिन दाग से बनी ब्राइट्फ़ील्ड छवि है; नाभियाँ गाढ़े रंग के वृत्त में हैं और कोष्ठकी अग्न्याशयी उतकक आइलेट ऊतक से अधिक गाढ़ा है। दाईं छवि उसी कटाव को इंसुलिन के इम्युनोफ़्लुओरेसेंस से दाग के बनी है, इसमें बीटा कोषिकाएँ दिखती हैं। आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हांस, हेमालुम-इओसिन दाग। श्वान के अग्न्याशय का चित्र। २५० गुना। आइलेट्स ऑफ़ लेंगरहांस अग्न्याशय के वह क्षेत्र हैं जिनमें अंतःस्रावी (अर्थात्, हॉर्मोन-उत्पादक) कोषिकाएँ होती हैं। १८६९ में जर्मन रोगवैज्ञानी शरीरविज्ञान पॉल लेंगर्हांस द्वारा खोजा गए आइलेट्स ऑफ़ लेंगर्हांस अग्न्याशय की मात्र का कुछ १ या २% होते हैं। स्वस्थ वयस्क मनुष्य के अग्न्याशय में कुछ १० लाख आइलेट होते हैं जो कि पूरे अंग में फैले हुए होते हैं; इनकी कुल मात्रा १ से १.५ ग्राम होती है। .
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शल्यचिकित्सा
अति प्राचीन काल से ही चिकित्सा के दो प्रमुख विभाग चले आ रहे हैं - कायचिकित्सा (Medicine) एवं शल्यचिकित्सा (Surgery)। इस आधार पर चिकित्सकों में भी दो परंपराएँ चलती हैं। एक कायचिकित्सक (Physician) और दूसरा शल्यचिकित्सक (Surgeon)। यद्यपि दोनों में ही औषधो पचार का न्यूनाधिक सामान्यरूपेण महत्व होने पर भी शल्यचिकित्सा में चिकित्सक के हस्तकौशल का महत्व प्रमुख होता है, जबकि कायचिकित्सा का प्रमुख स्वरूप औषधोपचार ही होता है। .
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सूक्ष्मदर्शी
सूक्ष्मदर्शी या सूक्ष्मबीन (माइक्रोस्कोप) वह यंत्र है जिसकी सहायता से आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म वस्तुओं को भी देखा जा सकता है। सूक्ष्मदर्शी की सहायता से चीजों का अवलोकन व जांच किया जाता है वह सूक्ष्मदर्शन कहलाता है। सूक्ष्मदर्शी का इतिहास लगभग ४०० वर्ष पुराना है। सबसे पहले नीदरलैण्ड में सन १६०० के आस-पास किसी काम के योग्य सूक्ष्मदर्शी का विकास हुआ। .
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हार्मोन
ऑक्सीटोसिन हार्मोन का चित्र आड्रेनालिन (Adrenaline) नामक हार्मोन की रासायनिक संरचना हार्मोन या ग्रन्थिरस या अंत:स्राव जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं जो सजीवों में होने वाली विभिन्न जैव-रसायनिक क्रियाओं, वृद्धि एवं विकास, प्रजनन आदि का नियमन तथा नियंत्रण करता है। ये कोशिकाओं तथा ग्रन्थियों से स्रावित होते हैं। हार्मोन साधारणतः अपने उत्पत्ति स्थल से दूर की कोशिकाओं या ऊतकों में कार्य करते हैं इसलिए इन्हें 'रासायनिक दूत' भी कहते हैं। इनकी सूक्ष्म मात्रा भी अधिक प्रभावशाली होती है। इन्हें शरीर में अधिक समय तक संचित नहीं रखा जा सकता है अतः कार्य समाप्ति के बाद ये नष्ट हो जाते हैं एवं उत्सर्जन के द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं। हार्मोन की कमी या अधिकता दोनों ही सजीव में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। .
देखें अग्न्याशय और हार्मोन
वसा
lipid एक ट्राईग्लीसराइड अणु वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है। इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहा जाता है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए १०० ग्राम चिकनाई का प्रयोग करना आवश्यक है। इसको पचाने में शरीर को काफ़ी समय लगता है। यह शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता को कम करने के लिए आवश्यक होती है। वसा का शरीर में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाना उचित नहीं होता। यह संतुलित आहार द्वारा आवश्यक मात्रा में ही शरीर को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अधिक मात्रा जानलेवा भी हो सकती है, यह ध्यान योग्य है। यह आमाशय की गतिशीलता में कमी ला देती है तथा भूख कम कर देती है। इससे आमाशय की वृद्धि होती है। चिकनाई कम हो जाने से रोगों का मुकाबला करने की शक्ति कम हो जाती है। अत्यधिक वसा सीधे स्रोत से हानिकारक है। इसकी संतुलित मात्रा लेना ही लाभदायक है। .
देखें अग्न्याशय और वसा
इन्सुलिन
issn .
देखें अग्न्याशय और इन्सुलिन
कशेरुकी प्राणी
कशेरुकी जन्तु कशेरुकी या कशेरुकदंडी (वर्टेब्रेट, Vertebrate) प्राणिसाम्राज्य के कॉरडेटा (Chordata) समुदाय का सबसे बड़ा उपसमुदाय है। जिसके सदस्यों में रीढ़ की हड्डियाँ (backbones) या पृष्ठवंश (spinal comumns) विद्यमान रहते हैं। इस समुदाय में इस समय लगभग 58,000 प्रजातियाँ वर्णित हैं। इसमें बिना जबड़े वाली मछलियां, शार्क, रे, उभयचर, सरीसृप, स्तनपोषी तथा चिड़ियाँ शामिल हैं। ज्ञात जन्तुओं में लगभग 5% कशेरूकी हैं और शेष अकेशेरूकी। .
देखें अग्न्याशय और कशेरुकी प्राणी
कार्बोहाइड्रेट
रासायनिक रुप से ‘‘कार्बोहाइड्रेट्स पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स होते हैं तथा स्वयं के जलीय अपघटन के फलस्वरुप पालिहाइड्राक्सी एल्डिहाइड या पालिहाइड्राक्सी कीटोन्स देते हैं।’’ कार्बोहाइड्रेट्स, कार्बनिक पदार्थ हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन व आक्सीजन होते है। इसमें हाइड्रोजन व आक्सीजन का अनुपात जल के समान होता है। कुछ कार्बोहाइड्रेट्स सजीवों के शरीर के रचनात्मक तत्वों का निर्माण करते हैं जैसे कि सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज, काइटिन तथा पेक्टिन। जबकि कुछ कार्बोहाइड्रेट्स उर्जा प्रदान करते हैं, जैसे कि मण्ड, शर्करा, ग्लूकोज़, ग्लाइकोजेन.
देखें अग्न्याशय और कार्बोहाइड्रेट
किण्वक
सजीवों के प्रत्येक जीवीत कोशिकाओ में जीवन पर्यन्त जैव रासायनिक क्रियाएं होती रहती है। ये जैव रासायनिक क्रियाएं किसी न किसी जैव उत्प्रेरक की उपस्थिति में होती है। इन्हीं जैव उत्प्रेरक को किण्वक (इन्जाइम) कहते हैं। इन्जाइम शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कुहने ने 1878 में किया था। ये नाइट्रोजन युक्त कार्बनिक रासायनिक यौगिक हैं जो मात्र उपस्थित रहकर कोशिका में होने वाली जैव रासायनिक क्रियाओं की दर को प्रभावित करते हैं। श्रेणी:जीव विज्ञान श्रेणी:जैवरसायनिकी.
देखें अग्न्याशय और किण्वक
अंतःस्रावी तंत्र
प्रमुख अंत:स्रावी ग्रंथियां. (पुरुष बांए, महिला दांए.) '''1.''' गावदुम ग्रंथि'''2.''' पीयूष ग्रंथि'''3.''' अवटु ग्रंथि'''4.''' बाल्यग्रंथि थायमस'''5.''' आधिवृक्क ग्रंथि'''6.''' अग्न्याशय'''7.''' अंडाशय'''8.''' वृषण अंत:स्रावी तंत्र छोटे अंगों की एक एकीकृत प्रणाली है जिससे बाह्यकोशीय संकेतन अणुओं हार्मोन का स्राव होता है। अंत:स्रावी तंत्र शरीर के चयापचय, विकास, यौवन, ऊतक क्रियाएं और चित्त (मूड) के लिए उत्तरदायी है। .
देखें अग्न्याशय और अंतःस्रावी तंत्र
अग्नाशय के रूप में भी जाना जाता है।