2 संबंधों: धर्मसूत्र, हारीत संहिता।
धर्मसूत्र
धर्मसूत्रों में वर्णाश्रम-धर्म, व्यक्तिगत आचरण, राजा एवं प्रजा के कर्त्तव्य आदि का विधान है। ये गृह्यसूत्रों की शृंखला के रूप में ही उपलब्ध होते हैं। श्रौतसूत्रों के समान ही, माना जाता है कि प्रत्येक शाखा के धर्मसूत्र भी पृथक्-पृथक् थे। वर्तमान समय में सभी शाखाओं के धर्मसूत्र उपलब्ध नहीं होते। इस अनुपलब्धि का एक कारण यह है कि सम्पूर्ण प्राचीन वाङ्मय आज हमारे समक्ष विद्यमान नहीं है। उसका एक बड़ा भाग कालकवलित हो गया। इसका दूसरा कारण यह माना जाता है कि सभी शाखाओं के पृथक्-पृथक् धर्मसूत्रों का संभवत: प्रणयन ही नहीं किया गया, क्योंकि इन शाखाओं के द्वारा किसी अन्य शाखा के धर्मसूत्रों को ही अपना लिया गया था। पूर्वमीमांसा में कुमारिल भट्ट ने भी ऐसा ही संकेत दिया है। .
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हारीत संहिता
हारीत संहिता, चिकित्साप्रधान आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसकी सफल चिकित्सा विधि वैद्य एवं रुग्ण के लिए उपयुक्त है। इसके रचयिता महर्षि हारीत हैं, जो आत्रेय पुनर्वसु के शिष्य थे। आत्रेय पुनर्वसु के छः शिष्य थे और सभी शिष्यों ने अपने-अपने नाम से अपने-अपने तन्त्रों की रचना की। आचार्य पुनर्वसु ने अपने सभी शिष्यों द्वारा रचित पुस्तकों की शंकाओं का समाधान पूर्णरूपेण किया है, तदुपरान्त उनका अनुमोदन किया। हारीत संहिता आज भी उपलब्ध है, किन्तु यह वही (मूल ग्रन्थ) है या नहीं, यह निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता। हारीतसंहिता में चिकित्सा की सभी विधाओं का वर्णन है। इस पुस्तक में आयुर्वेदीय वनस्पतियों द्वारा चिकित्सा की सम्यक् व्यवस्था र्विणत है, जो अति उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ में देश, काल, वय का भी वर्णन है तथा चिकित्सकीय जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण एवं एकल औषधि चिकित्सा के क्षेत्र में समृद्ध है। .