लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
इंस्टॉल करें
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

सामान्य आपेक्षिकता

सूची सामान्य आपेक्षिकता

सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत या सामान्य सापेक्षता सिद्धांत, जिसे अंग्रेजी में "जॅनॅरल थिओरी ऑफ़ रॅलॅटिविटि" कहते हैं, एक वैज्ञानिक सिद्धांत है जो कहता है कि ब्रह्माण्ड में किसी भी वस्तु की तरफ़ जो गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव देखा जाता है उसका असली कारण है कि हर वस्तु अपने मान और आकार के अनुसार अपने इर्द-गिर्द के दिक्-काल (स्पेस-टाइम) में मरोड़ पैदा कर देती है। बरसों के अध्ययन के बाद जब १९१६ में अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस सिद्धांत की घोषणा की तो विज्ञान की दुनिया में तहलका मच गया और ढाई-सौ साल से क़ायम आइज़क न्यूटन द्वारा १६८७ में घोषित ब्रह्माण्ड का नज़रिया हमेशा के लिए उलट दिया गया। भौतिक शास्त्र पर इसका इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि लोग आधुनिक भौतिकी (माडर्न फ़िज़िक्स) को शास्त्रीय भौतिकी (क्लासिकल फ़िज़िक्स) से अलग विषय बताने लगे और अल्बर्ट आइंस्टीन को आधुनिक भौतिकी का पिता माना जाने लगा। .

33 संबंधों: चिरसम्मत भौतिकी, एडवर्ड विटेन, बर्नहार्ड रीमान, ब्रह्माण्डविद्या, ब्लैक होल (काला छिद्र), भौतिक विज्ञानी, भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास, मानक मॉडल से परे भौतिकी, मुस्तफा इशक-बौशकी, लोरेन्ट्स शक्ति, समय यात्रा, सर्वतत्व सिद्धांत, सामंजस्य बौशकी, स्ट्रिंग सिद्धांत, स्टीफन हॉकिंग, घटना क्षितिज, वार्प इंजन, विशिष्ट आपेक्षिकता, विष्णु वासुदेव नार्लीकर, व्हाइट होल, खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली, गति के नियम, गुरुत्वाकर्षक लेंस, गुरुत्वीय तरंग, ओरॅस्त ख़्वोलसन, आधुनिक भौतिकी, आपेक्षिकता सिद्धांत, आल्कुबियेर इंजन, आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण, अन्तरिक्ष, अल्बर्ट आइंस्टीन, अष्टेकर चर, अवकल समीकरण

चिरसम्मत भौतिकी

आधुनिक भौतिकी के चार प्रमुख क्षेत्र चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल फिजिक्स) भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें द्रव्य और ऊर्जा दो अलग अवधारणाएं हैं। प्रारम्भिक रूप से यह न्यूटन के गति के नियम व मैक्सवेल के विद्युतचुम्बकीय विकिरण सिद्धान्त पर आधारित है। चिरसम्मत भौतिकी को सामान्यतः विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। इनमें यांत्रिकी (इसमें पदार्थ की गति तथा उस पर आरोपित बलों का अध्ययन किया जाता है।), गतिकी, स्थैतिकी, प्रकाशिकी, उष्मागतिकी (ऊर्जा और उष्मा का अध्ययन) और ध्वनिकी शामिल हैं तथा इसी प्रकार विद्युत व चुम्बकत्व के परिसर में दृष्टिगोचर अध्ययन। द्रव्यमान संरक्षण का नियम, ऊर्जा संरक्षण का नियम और संवेग संरक्षण का नियम भी चिरसम्मत भौतिकी में महत्वपूर्ण हैं। इसके अनुसार द्रव्यमान और ऊर्जा को ना ही तो बनाया जा सकता है और ना ही नष्ट किया जा सकता और केवल बाह्य असन्तुलित बल आरोपित करके ही संवेग को परिवर्तित किया जा सकता है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और चिरसम्मत भौतिकी · और देखें »

एडवर्ड विटेन

एडवर्ड विटेन (जन्म 26 अगस्त 1951) अमेरिकी सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी होने के साथ-साथ गणितीय भौतिकी पर केन्द्रित हैं जो इंस्टिट्यूट फॉर एडवांस्ड स्टडी प्रिंसटन, न्यू जर्सी में गणितीय भौतिकी के प्रोफ़ेसर हैं। २००४ के टाईम पत्रिका के एक लेख के अनुसार वृहत सोच वाले विश्व के महानतम जीवित सैद्धन्तिक भौतिक विज्ञानी हैं। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और एडवर्ड विटेन · और देखें »

बर्नहार्ड रीमान

जॉर्ज फ्रेडरिक बर्नहार्ड रीमान (Georg Friedrich Bernhard Riemann; १७ सितम्बर १८२६ - २० जुलाई १८६६) एक प्रतिभाशाली जर्मन गणितज्ञ थे। उन्होंने विश्लेषण, संख्या सिद्धान्त और अवकल ज्यामिति के क्षेत्र में प्रभावी योगदान दिया जिसका उपयोग सामान्य आपेक्षिकता के विकास में भी किया गया। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और बर्नहार्ड रीमान · और देखें »

ब्रह्माण्डविद्या

हिन्दू मान्यता के अनुसार ब्रहाण्ड का चित्रण ब्रह्माण्डविद्या या कॉस्मोलॉजी खगोल विज्ञान की एक शाखा है, जिसमें ब्रह्माण्ड से जुड़ी तमाम बातों का अध्ययन किया जाता है। इसमें ब्रह्माण्ड के बनने की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी दी जाती है। बीसवीं शताब्दी में आए वैज्ञानिक बदलावों ने वैज्ञानिकों की ब्रह्माण्ड के बारे में दिलचस्पी बढ़ा दी। वैज्ञानिक उससे जुड़े तमाम रहस्यों को तलाशने लगे। यह बीसवीं शताब्दी में कॉस्मोलॉजी के बारे में बढ़ती जिज्ञासा का ही प्रतिफल था कि वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से जुड़ी बिग बैंग सिद्धांत दे डाला। कॉस्मोलॉजी की शुरुआत एक तरह से आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के बाद से मानी जाती है। उससे पूर्व ब्रह्माण्ड के शुरुआत और अंत के बारे में कोई निश्चित धारणा नहीं थी। आइंस्टीन ने कहा कि ब्रह्माण्ड में कुछ पदार्थ है। इसी सिद्धांत के आधार पर फ्रेडमेन ने अपना सिद्धान्त दिया जिसमें कहा कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है या सिकुड़ रहा है। 1927 में जॉर्ज लेमेत्री ने बिग बैंग थ्योरी देकर फ्रेडमेन के सिद्धांत की पुष्टि की। इसके बाद हबल के कॉस्मोलॉजिकल सिद्धांत ने बिग बैंग थ्योरी और फ्रेड के गैलैक्सी के नियम को आधार प्रदान किया। 1965 में माइक्रोवेव की खोज और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के नियम के बाद इस बात को माना जाने लगा कि वह फैल रहा है। माइक्रोवेव की खोज के दौरान यह बात भी सामने आई कि ब्रह्माण्ड के 25 प्रतिशत हिस्से में डार्क मैटर है जिसमे से केवल 4 प्रतिशत को ही देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस बात को माना कि विस्फोट से पहले ब्रह्माण्ड सिकुड़ा हुआ था। कॉस्मोलॉजी के मानक सिद्धान्त अनुसार ब्रह्माण्ड को विभिन्न समय में बांटा जा सकता है। इन्हें 'इपोस' कहते हैं। मोटे तौर पर कहा जाए तो फिजिकल कास्मोलॉजी के माध्यम से ब्रह्माण्ड के बड़े ऑब्जेक्ट मसलन गैलेक्सी, क्लस्टर और सुपरक्लस्टर के बारे में जनकारी मिलती है। कॉस्मोलॉजी की मदद से ब्लैक होल के बारे में जानने में मदद मिली। कॉस्मोलॉजी से यह भी देखा गया कि भौतिकी के नियम ब्रह्माण्ड में हर जगह समान हैं या नहीं। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और ब्रह्माण्डविद्या · और देखें »

ब्लैक होल (काला छिद्र)

बड़े मैग्लेनिक बादल के सामने में एक ब्लैक होल का बनावटी दृश्य। ब्लैक होल स्च्वार्ज़स्चिल्ड त्रिज्या और प्रेक्षक दूरी के बीच का अनुपात 1:9 है। आइंस्टाइन छल्ला नामक गुरुत्वीय लेंसिंग प्रभाव उल्लेखनीय है, जो बादल के दो चमकीले और बड़े परंतु अति विकृत प्रतिबिंबों का निर्माण करता है, अपने कोणीय आकार की तुलना में. सामान्य सापेक्षता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि) में, एक ब्लैक होल ऐसी खगोलीय वस्तु होती है जिसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र इतना शक्तिशाली होता है कि प्रकाश सहित कुछ भी इसके खिंचाव से बच नहीं सकता है। ब्लैक होल के चारों ओर एक सीमा होती है जिसे घटना क्षितिज कहा जाता है, जिसमें वस्तुएं गिर तो सकती हैं परन्तु बाहर कुछ भी नहीं आ सकता। इसे "ब्लैक (काला)" इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह अपने ऊपर पड़ने वाले सारे प्रकाश को अवशोषित कर लेता है और कुछ भी परावर्तित नहीं करता, थर्मोडाइनामिक्स (ऊष्मप्रवैगिकी) में ठीक एक आदर्श ब्लैक-बॉडी की तरह। ब्लैक होल का क्वांटम विश्लेषण यह दर्शाता है कि उनमें तापमान और हॉकिंग विकिरण होता है। अपने अदृश्य भीतरी भाग के बावजूद, एक ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः-क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकता है। एक ब्लैक होल का पता तारों के उस समूह की गति पर नजर रख कर लगाया जा सकता है जो अन्तरिक्ष के खाली दिखाई देने वाले एक हिस्से का चक्कर लगाते हैं। वैकल्पिक रूप से, एक साथी तारे से आप एक अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस को गिरते हुए देख सकते हैं। यह गैस सर्पिल आकार में अन्दर की तरफ आती है, बहुत उच्च तापमान तक गर्म हो कर बड़ी मात्रा में विकिरण छोड़ती है जिसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों से लगाया जा सकता है। इस तरह के अवलोकनों के परिणाम स्वरूप यह वैज्ञानिक सर्व-सम्मति उभर कर सामने आई है कि, यदि प्रकृति की हमारी समझ पूर्णतया गलत साबित न हो जाये तो, हमारे ब्रह्मांड में ब्लैक होल का अस्तित्व मौजूद है। सैद्धांतिक रूप से, कोई भी मात्रा में तत्त्व (matter) एक ब्लैक होल बन सकता है यदि वह इतनी जगह के भीतर संकुचित हो जाय जिसकी त्रिज्या अपनी समतुल्य स्च्वार्ज्स्चिल्ड त्रिज्या के बराबर हो। इसके अनुसार हमारे सूर्य का द्रव्यमान ३ कि.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और ब्लैक होल (काला छिद्र) · और देखें »

भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और भौतिक विज्ञानी · और देखें »

भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास

प्रकाश वैद्युत प्रभाव, आइंस्टाइन ब्राउनी गति, आइंस्टाइन नाभिक की खोज अतिचालकता द्रव्य तरंगें (Matter waves) मंदाकिनी Galaxies फोटॉनों के कण-प्रकृति की पुष्टि न्यूट्रॉन की खोज तारों में ऊर्जा-उत्पादन की प्रक्रिया समझी गई म्यूआन न्यूट्रिनो पाया गया सौर न्यूट्रिनो प्रश्न (problem) मिला पल्सर (Pulsars या neutron stars) की खोज चार्म्ड क्वार्क (Charmed quark) का पता चला श्रेणी:भौतिकी श्रेणी:इतिहास ru:Хронология открытий человечества.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और भौतिकी के मूलभूत सिद्धान्तों के खोज का इतिहास · और देखें »

मानक मॉडल से परे भौतिकी

मानक मॉडल से परे भौतिकी (Physics beyond the Standard Model) का तात्पर्य उस भौतिकी से है जो सैद्धांतिक विकास को समझने के लिए मानक मॉडल की अपूर्णता को दूर करे, यथा उत्क्रम समस्या, डार्क मैटर, ब्रह्मांडीय नियतांक समस्या, प्रबल आवेश-समता समस्या, न्यूट्रिनो दोलन आदि। अन्य समस्या मानक मॉडल के गणितीय ढ़ाँचे के साथ है – मानक मॉडल सामान्य आपेक्षिकता के संगत नहीं है। मानक मॉडल ज्ञात दिक्-काल में विचित्रता जैसे महाविस्फोट सिद्धांत और घटना क्षितिज में ब्लैक होल को समझाने में असमर्थ है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और मानक मॉडल से परे भौतिकी · और देखें »

मुस्तफा इशक-बौशकी

प्रोफेसर मुस्तफा इशक-बौशकी एक अल्जीरियाई खगोल जो समझ के महान योगदान ब्रह्मांडीय त्वरण और गुरुत्वाकर्षक लेंस हैैं। Ishak-Boushaki भी वैज्ञानिक अनुसंधान के एक प्रमोटर है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और मुस्तफा इशक-बौशकी · और देखें »

लोरेन्ट्स शक्ति

भौतिक विज्ञान में, विशेष रूप से विद्युत में, लोरेन्ट्स बल एक बिंदु आरोप पर बिजली और चुंबकीय बल के संयोजन विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के कारण है। प्रभारी क्यू के एक कण एक बिजली के क्षेत्र ई की उपस्थिति और एक चुंबकीय क्षेत्र बी में वेग वी के साथ चलता है, तो यह एक शक्ति का अनुभव होगा। इस बुनियादी फार्मूला पर बदलाव एक वर्तमान ले जाने के तार (कभी कभी कहा जाता लाप्लास बल), एक तार पाश में इलेक्ट्रोमोटिव बल एक चुंबकीय क्षेत्र (प्रेरण के फैराडे के कानून का एक पहलू) के माध्यम से चलती है, और बल एक आरोप पर चुंबकीय बल का वर्णन कण जो प्रकाश की गति (लोरेन्ट्स् बल के relativistic प्रपत्र) के पास यात्रा हो सकती है। लोरेन्ट्स बल की पहली व्युत्पत्ति आमतौर पर 1889 में ओलिवर हेविसैड को जिम्मेदार ठहराया है, हालांकि अन्य इतिहासकारों 1865 कागज जेम्स क्लर्क मैक्सवेल द्वारा में पहले के मूल सुझाव देते हैं। हेंड्रिक लोरेन्ट्स् यह हेविसैड कुछ वर्षों के बाद निकाली गई .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और लोरेन्ट्स शक्ति · और देखें »

समय यात्रा

समय यात्रा, एक अवधारणा है जिसके अनुसार, समय में विभिन्न बिंदुओं के बीच ठीक उसी प्रकार संचलन किया जा सकता है जिस प्रकार अंतरिक्ष के विभिन्न बिंदुओं के बीच भ्रमण किया जाता है। इस अवधारणा के अनुसार किसी वस्तु (कुछ मामलों में सिर्फ सूचना) को समय में वर्तमान क्षण से कुछ क्षण पीछे अतीत में या फिर वर्तमान क्षण से कुछ क्षण आगे भविष्य में, बिना दो बिन्दुओं के बीच की अवधि को अनुभव किए, भेज सकते हैं। (कम से कम सामान्य दर पर नहीं)। हालांकि समय यात्रा 19वीं शताब्दी के बाद से ही काल्पनिक कहानियों का एक मुख्य विषय रहा है, परन्तु भविष्य की एकतरफा यात्रा तो समय फैलाव की घटना के कारण सैद्धांतिक रूप से संभव है, यह घटना विशेष सापेक्षता के सिद्धांत में वर्णित वेग पर आधारित है (जिसको जुड़वां विरोधाभास के उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है)। यह यात्रा सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण समय फैलाव के अनुसार भी संभव है, पर अभी तक यह अज्ञात है कि भौतिकी के नियम इस प्रकार की पश्चगामी समय यात्रा की अनुमति देंगे या नहीं। यात्रा करने के लिए कुछ वैग्यानिको ने समान्तर ब्रम्हान्ड की कल्पना की है;कोई भी तकनीकी यन्त्र जिससे समय में एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर बिना किसी समय में देरी के जाया जा सके समय यन्त्र कहलाता है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और समय यात्रा · और देखें »

सर्वतत्व सिद्धांत

भौतिक समझ उपलब्ध हो जाएगी सर्वतत्व सिद्धांत या हर चीज़ का सिद्धांत या सब कुछ का सिद्धांत (Theory of everything) सैद्धांतिक भौतिकी का एक कल्पित सिद्धांत है जो हमारे भौतिक ब्रह्माण्ड में घट सकने वाली हर चीज़ को वैज्ञानिक दृष्टि से समझाने की क्षमता रखता होगा। अगर यह सिद्धांत स्पष्ट हो जाता है तो ऐसा कोई भी प्रयोग नहीं होगा जिसके नतीजे के बारे में पहले से ही सही भविष्यवाणी करनी सम्भव न हो।, Ian Stewart, pp.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और सर्वतत्व सिद्धांत · और देखें »

सामंजस्य बौशकी

प्रोफेसर सामंजस्य बौशकी (Amazigh: ⵟoⵓⴼⵉⴽ Boⵓⵙⵀⴰⴽⵉ) एक अल्जीरियाई खगोल जो समझ के महान योगदान ऑक्सी ईंधन दहन प्रक्रिया हैैं। Boushaki भी वैज्ञानिक अनुसंधान के एक प्रमोटर है।.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और सामंजस्य बौशकी · और देखें »

स्ट्रिंग सिद्धांत

स्ट्रिंग सिध्दांत कण भौतिकी का एक सक्रीय शोध क्षेत्र है जो प्रमात्रा यान्त्रिकी और सामान्य सापेक्षता में सामजस्य स्थपित करने का प्रयास करता है। इसे सर्वतत्व सिद्धांत का प्रतियोगी सिद्धान्त भी कहा जाता है, एक आत्मनिर्भर गणितीय प्रतिमान जो द्रव्य के रूप व सभी मूलभूत अन्योन्य क्रियाओं को समझाने में सक्षम है। स्ट्रिंग सिद्धांत के अनुसार परमाणु में स्थित मूलभूत कण (इलेक्ट्रॉन, क्वार्क आदि) बिन्दु कण नहीं हैं अर्थात इनकी विमा शून्य नहीं है बल्कि एक विमिय दोलक रेखाएं हैं (स्ट्रिंग अथवा रजु)। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और स्ट्रिंग सिद्धांत · और देखें »

स्टीफन हॉकिंग

स्टीफन विलियम हॉकिंग (८ जनवरी १९४२– १४ मार्च २०१८)), एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र (Centre for Theoretical Cosmology) के शोध निर्देशक थे। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और स्टीफन हॉकिंग · और देखें »

घटना क्षितिज

'''पहली स्थिति''': काले छिद्र के घटना चक्र से दूर दिक्-काल सामान्य है और कोई वस्तु किसी भी दिशा में जा सकती है '''दूसरी स्थिति''': घटना चक्र के पास गुरुत्वाकर्षण भयंकर है और सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत का पालन करते हुए दिक्-काल में मरोड़े पैदा हो चुकी हैं - अब अधिकतर दिशाएँ वस्तु को घटना चक्र की और खींच रहीं हैं '''तीसरी स्थिति''': वस्तु घटना चक्र के अन्दर है जहाँ दिक्-काल इतनी ज़बरदस्त तरीक़े से मुड़ी हुई है के सारी दिशाएँ केवल काले छिद्र के केंद्र की तरफ़ जाती हैं - वापसी असंभव है - घटना चक्र से बाहर बैठा कोई भी इस वस्तु को नहीं देख सकता और घटना चक्र के अन्दर पैदा हुआ कोई भी प्रकाश घटना चक्र को पार कर के बहार नहीं जा सकता भौतिकी के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में, घटना क्षितिज दिक्-काल में एक ऐसी सीमा होती है जिसके पार होने वाली घटनाएँ उसकी सीमा के बाहर के ब्रह्माण्ड पर कोई असर नहीं कर सकती और न ही उसकी सीमा के बाहर बैठे किसी दर्शक या श्रोता को यह कभी भी ज्ञात हो सकता है के इस क्षितिज के पार क्या हो रहा है। आम भाषा में इसे "वापसी असंभव" की सीमा कह सकते हैं, यानि इसके पार गुरुत्वाकर्षण इतना भयंकर हो जाता है के कोई भी चीज़, चाहे वस्तु हो या प्रकाश, यहाँ से बहार नहीं निकल सकता। इसकी सब से अधिक दी जाने वाली मिसाल "काला छिद्र" (ब्लैक होल) है। काले छिद्रों के घटना क्षितिजों के अन्दर अगर किसी वस्तु से प्रकाश उत्पन्न होता है तो वह हमेशा के लिए घटना क्षितिज सीमा के अन्दर ही रहता है - उस से बाहर वाला उसे कभी नहीं देख सकता। यही वजह है के काले छिद्र काले लगते हैं - उनसे कोई रोशनी नहीं निकलती। जब कोई चीज़ काले छिद्र की गुरुत्वाकर्षक चपेड़ में आकर उसकी तरफ़ गिरने लगती है तो जैसे-जैसे वह घटना क्षितिज की सीमा के क़रीब आने लगती है वैसे-वैसे गुरुत्वाकर्षण के भयंकर प्रकोप से सापेक्षता सिद्धांत के अद्भुत प्रभाव दिखने लगते हैं। दूर से देखने वालों को ऐसा लगता है के उस वस्तु की काले छिद्र के तरफ़ गिरने की गति धीमी होती जा रही है और उसकी छवि में लालिमा बढ़ती जा रही है। दर्शक कभी भी नहीं देख पाते की वस्तु घटना चक्र को पार ही कर जाए। लेकिन उस वस्तु को ऐसा कोई प्रभाव महसूस नहीं होता - उसे लगता है के वह तेज़ी से काले छिद्र की तरफ़ गिरकर घटना क्षितिज पार कर जाती है। सापेक्षता की वजह से देखने वाले और उस वस्तु की समय की गतियाँ बहुत ही भिन्न हो जाती हैं। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और घटना क्षितिज · और देखें »

वार्प इंजन

वार्प इंजन से चलने वाला काल्पनिक यान अपने इर्द-गिर्द दिक्-काल मरोड़ता है लेकिन स्वयं साधारण दिक्-काल में स्थित होता है वार्प इंजन (warp drive) एक काल्पनिक इंजन है जिसके ज़रिये किसी तारायान को प्रकाश-से-तेज़ गतियों पर चलाया जा सके। सामान्य सापेक्षता सिद्धांत किसी भी वस्तु को साधारण दिक्-काल (स्पेसटाइम) में प्रकाश की गति से तेज़ जाने की अनुमति नहीं देता। 'वार्प' शब्द का मतलब 'मरोड़' होता है और काल्पनिक वार्प इंजन में दिक्-काल को मरोड़ने का विचार रखा जाता है। इस मरोड़े हुए दिक्-काल में यान प्रकाश की गति से कम भी चले तो भी जहाँ तक साधारण दिक्-काल का प्रशन है उसके अनुसार वह प्रकाश की गति से कहीं तेज़ वेग पर चल सकता है। वार्प इंजन की अवधारणा को बहुत सी विज्ञान कथा की कहानी, उपन्यासों और फ़िल्मों में प्रयोग किया जाता है। इनमें स्टार वार्स, स्टार ट्रेक, इत्यादि शामिल हैं।, Yoshinari Minami, pp.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और वार्प इंजन · और देखें »

विशिष्ट आपेक्षिकता

विशिष्ट आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा आपेक्षिकता का विशिष्ट सिद्धांत (Spezielle Relativitätstheorie, special theory of relativity or STR) गतिशील वस्तुओं में वैद्युतस्थितिकी पर अपने शोध-पत्र में अल्बर्ट आइंस्टीन ने १९०५ में प्रस्तावित जड़त्वीय निर्देश तंत्र में मापन का एक भौतिक सिद्धांत दिया।अल्बर्ट आइंस्टीन (1905) "", Annalen der Physik 17: 891; अंग्रेजी अनुवाद का जॉर्ज बार्कर जेफ़री और विल्फ्रिड पेर्रेट्ट ने 1923 में किया; मेघनाद साहा द्वारा (1920) में अन्य अंग्रेजी अनुवाद गतिशील वस्तुओं की वैद्युतगतिकी गैलीलियो गैलिली ने अभिगृहीत किया था कि सभी समान गतियाँ सापेक्षिक हैं और यहाँ कुछ भी निरपेक्ष नहीं है तथा कुछ भी विराम अवस्था में भी नहीं है, जिसे अब गैलीलियो का आपेक्षिकता सिद्धांत कहा जाता है। आइंस्टीन ने इस सिद्धांत को विस्तारित किया, जिसके अनुसार प्रकाश का वेग निरपेक्ष व नियत है, यह एक ऐसी घटना है जो माइकलसन-मोरले के प्रयोग में हाल ही में दृष्टिगोचर हुई थी। उन्होने एक अभिगृहीत यह भी दिया कि यह सभी भौतिक नियम, यांत्रिकी व स्थिरवैद्युतिकी के सभी नियमों, वो जो भी हों, समान रहते हैं। इस सिद्धांत के परिणामों की संख्या वृहत है जो प्रायोगिक रूप से प्रेक्षित हो चुके हैं, जैसे- समय विस्तारण, लम्बाई संकुचन और समक्षणिकता। इस सिद्धांत ने निश्चर समय अन्तराल जैसी अवधारणा को बदलकर निश्चर दिक्-काल अन्तराल जैसी नई अवधारणा को जन्म दिया है। इस सिद्धांत ने क्रन्तिकारी द्रव्यमान-ऊर्जा सम्बन्ध E.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और विशिष्ट आपेक्षिकता · और देखें »

विष्णु वासुदेव नार्लीकर

विष्णु वासुदेव नार्लीकर (26 सितम्बर, 1908 — 1 अप्रैल, 1991) भारत के भौतिकशास्त्री थे। उन्होने सामान्य सापेक्षिकता पर विशेष कार्य किया था। जयन्त विष्णु नार्लीकर उनके सुपुत्र हैं। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और विष्णु वासुदेव नार्लीकर · और देखें »

व्हाइट होल

व्हाइट होल (सफ़ेद छिद्र) (White hole) सामान्य आपेक्षिकता सिद्धांत के अंतर्गत, एक काल्पनिक क्षेत्र है जिसमें बाहर से प्रवेश संभव नहीं, हालाँकि इससे प्रकाश और पदार्थ का बहिर्गमन संभव है। एक प्रकार से यह, ब्लैक होल (कृष्ण विवर), जिसमें केवल बाहर से प्रवेश संभव है और पदार्थ या प्रकाश बाहर नहीं आ सकता, के उलटी स्थिति है। उपरोक्त दोनों क्षेत्र आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण द्वारा कल्पित किये गए हैं। अंतरिक्ष के अन्य पिण्डों की तरह श्वेत विवर भी द्रव्यमान और गुरुत्वाकर्षण बल से युक्त होते हैं। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और व्हाइट होल · और देखें »

खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली

यह पृष्ठ खगोलशास्त्र की शब्दावली है। खगोलशास्त्र वह वैज्ञानिक अध्ययन है जिसका सबंध पृथ्वी के वातावरण के बाहर उत्पन्न होने वाले खगोलीय पिंडों और घटनाओं से होता है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और खगोलशास्त्र से सम्बन्धित शब्दावली · और देखें »

गति के नियम

* शास्त्रीय (क्लासिकल) यांत्रिकी.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और गति के नियम · और देखें »

गुरुत्वाकर्षक लेंस

एक गैलेक्सी के आगे एक बड़ा ब्लैक होल (काला छिद्र) है - जैसे-जैसे गैलेक्सी उसके पीछे से निकलती है, उसका प्रकाश ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षक लेंस के प्रभाव से मुड़ता है गुरुत्वाकर्षक लेंस अंतरिक्ष में किसी बड़ी वस्तु के उस प्रभाव को कहते हैं जिसमें वह वस्तु अपने पास से गुज़रती हुई रोशनी की किरणों को मोड़कर एक लेंस जैसा काम करती है। भौतिकी (फिज़िक्स) के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की वजह से कोई भी वस्तु अपने इर्द-गिर्द के व्योम ("दिक्-काल" या स्पेस-टाइम) को मोड़ देती है और बड़ी वस्तुओं में यह मुड़ाव अधिक होता है। जिस तरह चश्मे, दूरबीन या सूक्ष्मबीन के मुड़े हुए शीशे से गुज़रता हुआ प्रकाश भी मुड़ जाता है, उसी तरह गुरुत्वाकर्षक लेंस से गुज़रता हुआ प्रकाश भी मुड़ जाता है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और गुरुत्वाकर्षक लेंस · और देखें »

गुरुत्वीय तरंग

thumb लेजर व्यतिकरणमापी का योजनामूलक चित्र भौतिकी में दिक्काल के वक्रता की उर्मिकाओं को गुरुत्वीय तरंग (gravitational waves) कहते हैं। ये उर्मिकाएँ तरंग की तरह स्रोत से बाहर की तरफ गमन करतीं हैं। अलबर्ट आइंस्टाइन ने वर्ष १९१६ में अपने सामान्य आपेक्षिकता सिद्धान्त के आधार पर इनके अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी। ११ फरवरी २०१६ को अमेरिका में वाशिंगटन, जर्मनी में हनोवर और कुछ अन्य देशों के शहरों में एक साथ यह घोषणा की गई कि ब्रह्मांड में गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का सीधा प्रमाण मिल गया है। खगोलविदों का मानना है कि गुरुत्वीय तरंगों की पुष्टि हो जाने के बाद अब ब्रह्मांड की उत्पत्ति के कुछ और रहस्यों पर से पर्दा उठ सकता है। गुरुत्वीय तरंगों का संसूचन (detection) आसान नहीं है क्योंकि जब वे पृथ्वी पर पहुँचती हैं तब उनका आयाम बहुत कम होता है और विकृति की मात्रा लगभग 10−21 होती है जो मापन की दृष्टि से बहुत ही कम है। इसलिये इस काम के लिये अत्यन्त सुग्राही (sensitive) संसूचक चाहिये। अन्य स्रोतों से मिलने वाले संकेत (रव / noise) इस कार्य में बहुत बाधक होते हैं। अनुमानतः गुरुत्वीय तरंगों की आवृत्ति 10−16 Hz से 104 Hz होती है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और गुरुत्वीय तरंग · और देखें »

ओरॅस्त ख़्वोलसन

ओरॅस्त ख़्वोलसन ओरॅस्त ख़्वोलसन (रूसी:Орест Данилович Хвольсон, अंग्रेज़ी: Orest Khvolson) एक रूसी भौतिकविज्ञानी थे। १९१६ में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की घोषणाके बाद ख़्वोलसन ने उसपर गहरा अध्ययन किया और १९२४ में ब्रह्माण्ड में गुरुत्वाकर्षक लेंसों के पाए जाने की भविष्यवाणी की। गुरुत्वाकर्षक लेंस के ऊपर अध्ययन करने वाले और उसकी घोषणा करने वाले यह पहले वैज्ञानिक थे। पचपन साल बाद, १९७९ में, इनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई जब ट्विन क्वेज़ार नाम की वस्तु की एक के बजाए दो-दो छवियाँ देखी गयी। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और ओरॅस्त ख़्वोलसन · और देखें »

आधुनिक भौतिकी

19वीं शताब्दी में भौतिकविज्ञानी यह विश्वास करते थे कि नवीन महत्वपूर्ण आविष्कारों का युग प्राय: समाप्त हो चुका है और सैद्धांतिक रूप से उनका ज्ञान पूर्णता की सीमा पर पहुँच गया है किंतु नवीन परमाणवीय घटनाओं की व्याख्या करने के लिये पुराने सिद्धांतों का उपयोग किया गया, तब इस धारणा को बड़ा धक्का लगा और आशा के विपरीत फलों की प्राप्ति हुई। जब मैक्स प्लांक ने तप्त कृष्ण पिंडों के विकिरण की प्रवृति की व्याख्या चिरसम्मत भौतिकी के आधार पर करनी चाही, तब वे सफल नही हुए। इस गुत्थी को सुलझाने के लिये उनको यह कल्पना करनी पड़ी कि द्रव्यकण प्रकाश-ऊर्जा का उत्सर्जन एवं अवशोषण अविभाज्य इकाइयों में करते हैं। यह इकाई क्वांटम कहलाती है। चिरसम्मत भौतिकी की एक अन्य विफलता प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या करते समय सामने आई। इस प्रभाव में प्रकाश के कारण धातुओं से इलेक्ट्रानों का उत्सर्जन होता है। इसकी व्याख्या करने के लिये आईंस्टाइन ने प्लांक की कल्पना का सहारा लिया और यह प्रतिपादित किया कि प्रकाश ऊर्जा कणिकाओं के रूप में संचरित होती है। इन कणिकाओं को फोटॉन कहा जाता है। यदि प्रकाश तरंग की आवृति v हो तो उससे संबद्ध फोटॉन की ऊर्जा E.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और आधुनिक भौतिकी · और देखें »

आपेक्षिकता सिद्धांत

सामान्य आपेक्षिकता में वर्णित त्रिविमीय स्पेस-समय कर्वेचर की एनालॉजी के का द्विविमीयप्रक्षेपण। आपेक्षिकता सिद्धांत अथवा सापेक्षिकता का सिद्धांत (अंग्रेज़ी: थ़िओरी ऑफ़ रॅलेटिविटि), या केवल आपेक्षिकता, आधुनिक भौतिकी का एक बुनियादी सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया और जिसके दो बड़े अंग हैं - विशिष्ट आपेक्षिकता (स्पॅशल रॅलॅटिविटि) और सामान्य आपेक्षिकता (जॅनॅरल रॅलॅटिविटि)। फिर भी कई बार आपेक्षिकता या रिलेटिविटी शब्द को गैलीलियन इन्वैरियन्स के संदर्भ में भी प्रयोग किया जाता है। थ्योरी ऑफ् रिलेटिविटी नामक इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले सन १९०६ में मैक्स प्लैंक ने किया था। यह अंग्रेज़ी शब्द समूह "रिलेटिव थ्योरी" (Relativtheorie) से लिया गया था जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह सिद्धांत प्रिंसिपल ऑफ रिलेटिविटी का प्रयोग करता है। इसी पेपर के चर्चा संभाग में अल्फ्रेड बुकरर ने प्रथम बार "थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी" (Relativitätstheorie) का प्रयोग किया था। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और आपेक्षिकता सिद्धांत · और देखें »

आल्कुबियेर इंजन

दो आयामों (डायमेंशनों) में आल्कुबियेर​ इंजन के प्रभाव का चित्रण - यान के आगे का दिक्-काल सिकुड़ता है और उसे पीछे का दिक्-काल फैलता है आल्कुबियेर​ इंजन (Alcubierre drive) एक प्रस्तावित वैज्ञानिक युक्ति है जिसमें भौतिकशास्त्री मिगेल आल्कुबियेर​ ने आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण (फ़ील्ड इक्वेशन​) का एक संभव हल देते हुए यह दिखाया था कि कुछ परिस्थितियों में किसी यान को प्रकाश की गति से भी तेज़ चलाया जा सकता है।, Michel-Marie Deza, Elena Deza, pp.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और आल्कुबियेर इंजन · और देखें »

आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण

वस्तुओं के द्रव्यमान और गति से उनके आसपास के दिक्-काल (स्पेसटाइम) में मरोड़ आती है और आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण इसका विवरण देते हैं आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण (Einstein field equations) भौतिकी में ऐल्बर्ट आइनस्टाइन​ के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में दस समीकरणों (इक्वेशनों) का एक समूह है जो पदार्थ और ऊर्जा द्वारा दिक्-काल (स्पेसटाइम) में पैदा की गई मरोड़ से होने वाले गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव का वर्णन करता है। इसे आइनस्टाइन​ ने सन् १९१५ में आतानक विश्लेषण (टेन्सर अनैलिसिस) के रूप में छापा था। जिस तरह मैक्सवेल के समीकरण आवेश (चार्ज) और विद्युत धारा से उत्पन्न होने वाले विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र की विवरण देते हैं उसी तरह आइनस्टाइन​ क्षेत्र समीकरण ऊर्जा, द्रव्यमान और चाल (गति) से दिक्-काल में उत्पन्न होने वाले बदलावों का बखान करते हैं।, Norman K. Glendenning, pp.

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और आइनस्टाइन क्षेत्र समीकरण · और देखें »

अन्तरिक्ष

अन्तरिक्ष (स्पेस) असीम, तीन-आयामी विस्तार है जिसमें वस्तुएं और घटनाएं होती है और उनकी सापेक्ष स्थिति और दिशा होती है। भौतिक अन्तरिक्ष अक्सर तीन रैखिक आयाम की तरह समझा जाता है, हालांकि आधुनिक भौतिकविद आमतौर पर इसे, समय के साथ, असीम चार-आयामी सातत्यक जिसे स्पेस टाइम कहते है, का एक भाग समझते हैं। गणित में 'अन्तरिक्ष' को विभिन्न आधारभूत संरचनाओं और आयामों की विभिन्न संख्या के साथ समझा जाता है। भौतिक ब्रह्मांड को समझने के लिए अन्तरिक्ष की अवधारणा को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है हालांकि दार्शनिकों के मध्य इस तथ्य को लेकर असहमति जारी है कि यह स्वयं एक इकाई है, या इकाइयों के मध्य एक सम्बन्ध है, या वैचारिक ढांचे का एक हिस्सा है। पारम्परिक यांत्रिकी के प्रारंभिक विकास के दौरान, 17 वीं शताब्दी में कई दार्शनिक प्रश्न उजागर हुए थे। इसाक न्यूटन के अनुसार, अन्तरिक्ष निरपेक्ष था - अर्थात् यह स्थायी रूप से अस्तित्व में है और इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि क्या अन्तरिक्ष में कोई विषयवस्तु थी या नहीं। अन्य प्राकृतिक दार्शनिक, विशेष रूप से गोटफ्राइड लेबनिज़, ने इसके बजाय सोचा कि अन्तरिक्ष वस्तुओं के बीच संबंधों का एक संग्रह था, जो एक दूसरे से उनकी दूरी और दिशा के द्वारा दिया जाता है। 18वीं सदी में, इम्मानुएल काण्ट ने अन्तरिक्ष और समय को संरचनात्मक ढांचे के तत्वों के रूप में वर्णित किया है जिसको मनुष्य अपने अनुभव के निर्माण हेतु उपयोग करते है। 19वीं और 20वीं सदी में गणितज्ञों ने गैर इयूक्लिडियन रेखागणित का परीक्षण करना शुरू कर दिया था जिसमें अन्तरिक्ष को समतल के बजाय वक्रित कह सकते है। अल्बर्ट आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के आसपास का अन्तरिक्ष इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष से विसामान्य होता है। सामान्य सापेक्षता के प्रायोगिक परीक्षण ने यह पुष्टि की है कि गैर इयूक्लिडियन अन्तरिक्ष प्रकाशिकी और यांत्रिकी के और मौजूदा सिद्धांतो की व्याख्या हेतु एक बेहतर मॉडल उपलब्ध कराता है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और अन्तरिक्ष · और देखें »

अल्बर्ट आइंस्टीन

अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein; १४ मार्च १८७९ - १८ अप्रैल १९५५) एक विश्वप्रसिद्ध सैद्धांतिक भौतिकविद् थे जो सापेक्षता के सिद्धांत और द्रव्यमान-ऊर्जा समीकरण E .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और अल्बर्ट आइंस्टीन · और देखें »

अष्टेकर चर

अष्टेकर चर (Ashtekar variables) सामान्य आपेक्षिकता के ADM फॉर्मुलेशन में प्रयुक्त होना वाला चर है जिसका विकास १९८६ में भारतीय मूल के वैज्ञानिक अभय अष्टेकर ने किया था। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और अष्टेकर चर · और देखें »

अवकल समीकरण

अवकल समीकरण (डिफरेंशियल ईक्वेशंस) उन संबंधों को कहते हैं जिनमें स्वतंत्र चर तथा अज्ञात परतंत्र चर के साथ-साथ उस परतंत्र चर के एक या अधिक अवकल गुणांक (डिफ़रेंशियल कोइफ़िशेंट्स) हों। यदि इसमें एक परतंत्र चर तथा एक ही स्वतंत्र चर भी हो तो संबंध को साधारण (ऑर्डिनरी) अवकल समीकरण कहते हैं। जब परतंत्र चल तो एक परंतु स्वतंत्र चर अनेक हों तो परतंत्र चर के खंडावकल गुणक (partial differentials) होते हैं। जब ये उपस्थित रहते हैं तब संबंध को आंशिक (पार्शियल) अवकल समीकरण कहते हैं। परतंत्र चर को स्वतंत्र चर के पर्दो में व्यंजित करने को अवकल समीकरण का हल करना कहा जाता है। यदि अवकल समीकरण में nवीं कक्षा (ऑर्डर) का अवकल गुणक हो और अधिक का नहीं, तो अवकल समीकरण nवीं कक्षा का कहलाता है। उच्चतम कक्षा के अवकल गुणक का घात (पॉवर) ही अवकल समीकरण का घात कहलाता है। घात ज्ञात करने के पहले समीकरण को भिन्न तथा करणी चिंहों से इस प्रकार मुक्त कर लेना चाहिए कि उसमें अवकल गुणकों पर कोई भिन्नात्मक घात न हो। अवकल समीकरण का अनुकलन सरल नहीं है। अभी तक प्रथम कक्षा के वे अवकल समीकरण भी पूर्ण रूप से हल नहीं हो पाए हैं। कुछ अवस्थाओं में अनुकलन संभव हैं, जिनका ज्ञान इस विषय की भिन्न-भिन्न पुस्तकों से प्राप्त हो सकता है। अनुकलन करने की विधियाँ सांकेतिक रूप में यहाँ दी जाती हैं। प्रयुक्त गणित, भौतिक विज्ञान तथा विज्ञान की अन्य शाखाओं में भौतिक राशियों को समय, स्थान, ताप इत्यादि स्वतंत्र चलों के फलनों में तुरंत प्रकट करना प्राय: कठिन हो जाता है। परंतु हम उनकी वृद्धि की दर तथा उसके अवकल गुणकों में कोई संबंध बहुधा बड़ी सुगमता से पा सकते हैं। इस प्रकार ऐसे अवकल समीकरण प्राप्त होते हैं जिन्हें पूर्वोक्त राशियाँ संतुष्ट करती हैं। इन्हें हल करना उन राशियों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आवश्यक होता है। इसलिए विज्ञान की उन्नति बहुत अंश तक अवकल समीकरण की प्रगति पर निर्भर है। .

नई!!: सामान्य आपेक्षिकता और अवकल समीकरण · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

वक्र दिक्-काल, सामान्य सापेक्षता, सामान्य सापेक्षता सिद्धांत, सामान्य सापेक्षिकता

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »