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साक्षात्कार

सूची साक्षात्कार

दूरदर्शन के लिये साक्षात्कार का एक दृष्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच बातचीत एवं विचारों का आदान-प्रदान साक्षात्कार (Interview) कहलाता है। इसमें एक या कई व्यक्ति किसी एक व्यक्ति से प्रश्न पूछते हैं और वह व्यक्ति इन प्रश्नों के जवाब देता है या इन पर अपनी राय व्यक्त करता है। साक्षात्कार, साहित्य की एक विधा भी है। .

23 संबंधों: नृवंशविज्ञान, परामर्श, प्रभाकर श्रोत्रिय, प्रकाश परिमल, बनारसीदास चतुर्वेदी, बर्नडीन डॉर्न, ब्रॉक लेसनर, भारती कॉलेज कृषि इंजीनियरिंग और कृषि प्रौद्योगिकी, दुर्ग छत्तीसगढ़, भारतीय विदेश सेवा, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, मानस शास्त्र, मानव संसाधन प्रबंधन, संसदीय राजभाषा समिति, स्नायु व्यायाम, हिन्दी पत्रिकाएँ, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, हीथ लेजर, जॉर्डन बेलफोर्ट, विचारपरक लेखन, विधा, करण कपूर, कॉमेडी नाइट्स विद् कपिल, कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त

नृवंशविज्ञान

नृवंशविज्ञान (अंग्रेजी: Ethnography) एक गुणात्मक अनुसंधान विधि है जिसका प्रयोग अक्सर सामाजिक विज्ञान में विशेष रूप से मानवशास्त्र और समाजशास्त्र में किया जाता है। इसके अंतर्गत अक्सर मानव समाज/संस्कृतियों पर अनुभवजन्य आँकड़े जुटाने का कार्य किया जाता है। आँकड़ा संग्रह का कार्य अक्सर प्रतिभागी अवलोकन, साक्षात्कार, प्रश्नावली, आदि के माध्यम से किया जाता है। नृवंशविज्ञान लेखन के माध्यम से, अध्ययनित नृवंशी अर्थात् व्यक्ति की प्रकृति का वर्णन करता है। .

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परामर्श

किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं एवं कठिनाइयों को दूर करने के लिये दी जाने वाली सहायता, सलाह और मार्गदर्शन, परामर्श (Counseling) कहलाता है। परामर्श देने वाले व्यक्ति को परामर्शदाता (काउन्सलर) कहते हैं। निर्देशन (गाइडेंस) के अन्तर्गत परामर्श एक आयोजित विशिष्ट सेवा है। यह एक सहयाेगी प्रक्रिया है। इसमें परामर्शदाता साक्षात्कार एवं प्रेक्षण के माध्यम से सेवार्थी के निकट जाता है उसे उसकी शक्ति व सीमाओं के बारे में उसे सही बोध कराता है। सभी समाजों में परामर्श देने और परामर्श प्राप्त करने की परम्परा पायी जाती है। चाहे दो विकल्पों में एक चयन की समस्या हो, किसी भी प्रकार के भ्रम की स्थिति हो, अथवा मानसिक तनाव हो, परामर्श आवश्यक और अपरिहार्य हो जाता है। परामर्श में कम से कम दो व्यक्तियों की लिप्तता अवश्य होती है, एक परामर्शक या परामर्श दाता और दूसरा परामर्श प्राप्त करने वाला। व्यक्ति अपनी निजी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श चाहता है। व्यक्तिगत समस्या शारीरिक, मानसिक, व्यवसाय सम्बन्धी तथा समाज सम्बन्धी हो सकती है जिसके लिए उसे परामर्शक की आवश्यकता होती है। परामर्श मूलतः पारस्परिक होता है। इसका आधार परम्परा विश्वास है। व्यक्ति परामर्श उसी से लेता है जिसमें उसका विश्वास होता है और यदि परामर्शक सच्चा, ईमानदार और सन्निष्ठ है तो वह उसी व्यक्ति को परामर्श देता है जिसे वह समझता है कि वह परामर्श को स्वीकार करेगा और यथा सम्भव इसका पालन करेगा। व्यावसायिक निर्देशन (प्रोफेशनल गाइडेंस) के क्षेत्र में प्रमुख योगदान करने वाले विख्यात लेखक ई॰ डब्ल्यू॰ मायस ने लिखा है कि परामर्श देना एक महान कला है इस प्रकार परामर्शक को बहुत ही सावधानी तथा सतर्कता से परामर्श देना चाहिए। परामर्शक को अनुभवी, सुधी, सजग और परिपक्व होना चाहिए जिसका लाभ प्रत्याशी को मिल सके। समाज-गठन के आरम्भिक दिनों में परामर्श न तो व्यवस्थित था और न वैज्ञानिक। इसकी कोई प्रक्रिया नहीं थी। इसका कोई स्वरूप भी नहीं था। परामर्शक परामर्श देने के पूर्व किसी प्रकार की तैयारी भी नहीं करता था और न किसी निश्चित लक्ष्य को ध्यान में रख कर परामर्शेच्छु परामर्श की आकांक्षा करता था। समय के अनुसार परामर्श का स्वरूप भी बदलता गया। जिस प्रकार से विभिन्न शास्त्रों एवं विज्ञानों, में नवीन अवधारणा, प्रक्रिया तथा व्यवस्था का समावेश हुआ उसी प्रकार परामर्श भी उससे अछूता नहीं रहा है। हैरमिन के अनुसार- परामर्श मनोपचारात्मक सम्बन्ध है जिसमें एक प्रार्थी एक सलाहकार से प्रत्यक्ष सहायता प्राप्त करता है या नकारात्मक भावनाओं को कम करने का अवसर और व्यक्तित्व में सकारात्मक वृद्धि के लिये मार्ग प्रशस्त होता है। मायर्स ने लिखा है- परामर्श से अभिप्राय दो व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की सहायता करता है। विलि एवं एण्ड्र ने कहा कि परामर्श पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है। इसमें दो व्यक्ति सम्मिलित होते है सहायता प्राप्त करने वाला और दूसरा प्रशिक्षित व्यक्ति जो प्रथम व्यक्ति की सहायता इस प्रकार करता है कि उसका अधिकतम विकास हो सकें। ब्रीवर ने परामर्श को बातचीत करना, विचार-विमर्श करना तथा मित्रतापूर्वक वार्तालाप करना बताया है। .

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प्रभाकर श्रोत्रिय

डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय (जन्म १९ दिसम्बर १९३८) हिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार हैं। हिंदी आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय एक महत्वपूर्ण नाम है पर आलोचना से परे भी साहित्य में उनका प्रमुख योगदान रहा है, खासकर नाटकों के क्षेत्र में। उन्होंने कम नाटक लिखे पर जो भी लिखे उसने हिंदी नाटकों को नई दिशा दी। पूर्व में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे हैं एवं विगत सात वर्षों से भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वे अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य हैं। .

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प्रकाश परिमल

प्रकाश परिमल (जन्म- २८ नवम्बर १९३६, बीकानेर) एक हिन्दी-राजस्थानी लेखक, कला-समीक्षक, चित्रकार और अनुवादक हैं। इनके साहित्य, दर्शन, वैदिक-ज्ञान, कला विषयक कई ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। .

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बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

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बर्नडीन डॉर्न

बर्नडीन डॉर्न (जन्म १२ जनवरी १९४२) १९६९-१९८० के अमरीकी क्रांतिकारी अन्दोलन 'वेदर अन्डरग्राउन्ड' की नेत्री थीं। सम्प्रति "Northwestern University School of Law" में कानून की प्राध्यापक हैं। .

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ब्रॉक लेसनर

ब्रॉक एडवर्ड लेसनर (जन्म जुलाई, 12 1977) एक अमेरिकी मिश्रित मार्शल कलाकार और एक पूर्व पेशेवर और शौकिया पहलवान हैं। वे एक पूर्व यूएफसी (UFC) हैवीवेट चैंपियन हैं और शेरडॉग ने उन्हें दुनिया में #2 हैवीवेट रैंक दी है। 2000 की एनसीएए (NCAA) हैवीवेट कुशती चैम्पियनशिप जीतने वाले और 1999 में भविष्य के न्यू इंगलैंड पैट्रिअट्स के आक्रामक लाइनमैन स्टीफन नील से फाइनल में हारकर दूसरे स्थान पर रहे लेसनर एक निपुण शौकिया पहलवान हैं। तब उन्होंने विश्व कुश्ती मनोरंजन (डब्लूडब्लूई (WWE)) में शोहरत पाई जहां वे तीन बार डब्लूडब्लूई (WWE) चैम्पियन रहे और अपने पहले खिताब के समय 25 की उम्र में डब्लूडब्लूई (WWE) चैम्पियनशिप जीतने वाले सबसे कम उम्र के पहलवान बने.

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भारती कॉलेज कृषि इंजीनियरिंग और कृषि प्रौद्योगिकी, दुर्ग छत्तीसगढ़

अंगूठाकार .

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भारतीय विदेश सेवा

भारतीय विदेश मन्त्रालय के कार्य को चलाने के लिए एक विशेष सेवा वर्ग का निर्माण किया गया है जिसे भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service I.F.S.) कहते हैं। यह भारत के पेशेवर राजनयिकों का एक निकाय है। यह सेवा भारत सरकार की केंद्रीय सेवाओं का हिस्सा है। भारत के विदेश सचिव भारतीय विदेश सेवा के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं। भारतीय राजनय अब संभ्रान्त परिवारों, राजा-रजवाड़ों, सैनिक अफसरों आदि तक ही सीमित न रहकर सभी के लिए खुल गया है। सामान्य नागरिक अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर इस सेवा का सदस्य बन सकता है। सन 1947-1948 की विशेष संकटकालीन भरती के अलावा विदेश सेवा के लिये चुनाव एक विशेष परीक्षा व साक्षात्कार द्वारा किया जाता है। चुनाव हो जाने के पश्चात् इन्हें एक विशेष प्रशिक्षण के लिये भेजा जाता है, जो कई भागों में पूरा होता है। इसमें शैक्षणिक विषयों का ज्ञान, विदेश भाषा की शिक्षा, एक माह के लिये विदेश दूतावास में व्यापार की शिक्षा और राष्टंमण्डल के विदेश सेवा अधिकारी प्रशिक्षण केन्द्र में डेढ़ माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। तत्पश्चात् ही इनकी किसी विदेश दूतावास में नियुक्ति होती है। इस प्रकार प्रशिक्षित व्यावसायिक राजदूतों के अलावा सरकार समय-समय पर गैर-व्यावसायिक राजनीतिज्ञों सैनिकों, खिलाड़ियों आदि को भी राजदूत नियुक्त करती है। दूतावास में अताशों की भी नियुक्ति की जाती है। प्रधानमन्त्री कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में अपने व्यक्तिगत प्रतिनिधि विशेष दूत अथवा घूमने वाले राजदूत (Roving Ambassador) को भी भेज सकता है। विदेश सेवा बोर्ड राजनयिक, व्यापारी एवं वाणिज्य ओर दूतावासों में अधिकारियों की नियुक्ति, उनका स्थानान्तरण और पदोन्नति के कार्य करता है। .

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मनोवैज्ञानिक परीक्षण

मनोवैज्ञानिक परीक्षण (Psychological test) व्यक्ति के स्वभाव के वस्तुनिष्ठ एवं मानक माप हैं। आर.

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मानस शास्त्र

साइकोलोजी या मनोविज्ञान (ग्रीक: Ψυχολογία, लिट."मस्तिष्क का अध्ययन",ψυχήसाइके"शवसन, आत्मा, जीव" और -λογία-लोजिया (-logia) "का अध्ययन ") एक अकादमिक (academic) और प्रयुक्त अनुशासन है जिसमें मानव के मानसिक कार्यों और व्यवहार (mental function) का वैज्ञानिक अध्ययन (behavior) शामिल है कभी कभी यह प्रतीकात्मक (symbol) व्याख्या (interpretation) और जटिल विश्लेषण (critical analysis) पर भी निर्भर करता है, हालाँकि ये परम्पराएँ अन्य सामाजिक विज्ञान (social science) जैसे समाजशास्त्र (sociology) की तुलना में कम स्पष्ट हैं। मनोवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं को धारणा (perception), अनुभूति (cognition), भावना (emotion), व्यक्तित्व (personality), व्यवहार (behavior) और पारस्परिक संबंध (interpersonal relationships) के रूप में अध्ययन करते हैं। कुछ विशेष रूप से गहरे मनोवैज्ञानिक (depth psychologists) अचेत मस्तिष्क (unconscious mind) का भी अध्ययन करते हैं। मनोवैज्ञानिक ज्ञान मानव क्रिया (human activity) के भिन्न क्षेत्रों पर लागू होता है, जिसमें दैनिक जीवन के मुद्दे शामिल हैं और -; जैसे परिवार, शिक्षा (education) और रोजगार और - और मानसिक स्वास्थ्य (treatment) समस्याओं का उपचार (mental health).

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मानव संसाधन प्रबंधन

मानव संसाधन प्रबंधन (HRM) किसी प्रतिष्ठान की सबसे मूल्यवान उन आस्तियों के प्रबंधन का कौशलगत और सुसंगत दृष्टिकोण है- जो वहां काम कर रहे हैं तथा व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से व्यापार के उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान दे रहे हैं। "मानव संसाधन प्रबंधन" और "मानव संसाधन" (HR) शब्दों का स्थान मुख्यतः "कार्मिक प्रबंधन" शब्द ने ले लिया है, जो प्रतिष्ठान में लोगों के प्रबंधन में शामिल प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है। सामान्य अर्थ में HRM का मतलब लोगों को रोजगार देना, उनके संसाधनों का विकास करना, उपयोग करना, उनकी सेवाओं को काम और प्रतिष्टान की आवश्यकता के अनुरूप बनाये रखना और बदले में (भरण-पोषण) मुआवजा देते रहना है। .

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संसदीय राजभाषा समिति

महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है। संविधान निर्माताओं ने संविधान के निर्माण के समय राजभाषा विषय पर विचार-विमर्श किया था और यह निर्णय लिया कि देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा के रूंप में अंगीकृत किया जाए। इसी आधार पर संविधान के अनुच्छेद 343(1) में देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की राजभाषा घोषित किया गया। किन्तु, संविधान के निर्माण तथा अंगीकरण के समय यह परिकल्पना की गई थी कि संघ के कार्यकारी, न्यायिक और वैधानिक प्रयोजनों के लिए प्रारम्भिक 15 वर्षों तक अर्थात 1965 तक अंग्रेजी का प्रयोग जारी रहे। तथापि यह प्रावधान किया गया था कि उक्त अवधि के दौरान भी राष्ट्रपति कतिपय विशिष्ट प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग का प्राधिकार दे सकते हैं। परिवर्तन के लिए 15 वर्ष की कालावधि पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद निर्धारित की गई थी ताकि उक्त अन्तराल के बाद निर्बाध भाषाई-परिवर्तन हेतु आवश्यक व्यवस्था तथा तैयारी की जा सके। संविधान के निर्माता इस बात के प्रति जागरूंक थे कि सभी क्षेत्रों में 1965 तक भाषाई परिवर्तन करना सम्भव न होगा। उन्हें यह भी आभास रहा होगा कि सुचारूं परिवर्तन के हित में 15 वर्ष की कालावधि के दौरान भी अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के क्रमिक प्रयोग की अनुमति दी जानी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 351 में भी संघ की राजभाषा के रूंप में हिंदी के विकास का संकेत दिया गया है। संविधान निर्माताओं ने इस भाषा के एक अखिल भारतीय रूंप की कल्पना की थी जो अन्य भारतीय भाषाओं की सहायता लेकर अहिंदी भाषी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा व्यापक रूंप से स्वीकार किए जाने की क्षमता प्राप्त कर सके। 1963 में राजभाषा अधिनियम अधिनियमित किया गया। अधिनियम में यह व्यवस्था भी थी कि केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्यों से पत्राचार में अंग्रेजी के प्रयोग को उसी स्थिति में समाप्त किया जाएगा जबकि सभी अहिंदी भाषी राज्यों के विधान मण्डल इसकी समाप्ति के लिए संकल्प पारित कर दें और उन संकल्पों पर विचार करके संसद के दोनों सदन उसी प्रकार के संकल्प पारित करें। अधिनियम में यह भी व्यवस्था थी कि अन्तराल की अवधि में कुछ विशिष्ट प्रयोजनों के लिए केवल हिंदी का प्रयोग किया जाए और कुछ अन्य प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी दोनों का प्रयोग किया जाए। सन् 1976 में राजभाषा नियम बनाए गए। उक्त अधिनियम में, अन्य बातों के साथ-साथ, यह भी प्रावधान था कि संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति का पुनर्विलोकन करने के लिए एक राजभाषा समिति गठित की जाए। राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा (3) के प्रख्यापन के दस वर्ष बाद इस समिति का गठन किया जाना था। समिति का गठन अधिनियम की धारा 4 के तहत वर्ष 1976 में किया गया। इस समिति में संसद के 30 सदस्य होने का प्रावधान है, 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से। बाद में 1977, 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोकसभा चुनावों के पश्चात् समिति का पुनर्गठन हुआ है। समिति के कार्यकलाप और गतिविधियां मुख्यतः राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 में दी गई हैं। सुलभ संदर्भ के लिए राजभाषा अधिनियम की धारा 4 को नीचे उद्धृत किया गया है.

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स्नायु व्यायाम

स्नायु व्यायाम स्नायु व्यायाम या न्युरोबिक्स (Neurobics) मानसिक व्यायामों को कहते हैं जिनके करने से मस्तिष्क की क्षमता बढ़ने का दावा किया जाता है। इन व्यायामों का वर्णन लारेंस काट्ज (Lawrence Katz) और मैनिंग रुबिन ने अपनी पुस्तक 'कीप योर ब्रेन अलाइव' में किया है किन्तु इनके सत्य या गलत होने की जाँच अभी तक नहीं की जा सकी है। 'न्यूरोबिक्स' शब्द लारेंस काट्ज द्वारा १९९९ में उछाला गया था। ऐसा माना जाता है कि ऐसी मानसिक क्रियायें, जिनके करने के आप आदी नहीं हैं, को करने से मस्तिष्क में नये न्यूरॉन और डेन्ट्राइट (dendrites) विकसित करने में मदद मिलती है। इसका कारण यह है कि कार्यों को एक ही तरह से करने से वे क्रियाएँ अधिकांशतः बिना सोचे-समझे हो जातीं हैं जिससे मस्तिष्क को बहुत कम काम करना पड़ता है। किन्तु स्नायु व्यायाम की विधि को अपनाने से दिमाग का व्यायाम होता है। .

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हिन्दी पत्रिकाएँ

हिन्दी पत्रिकाएँ सामाजिक व्‍यवस्‍था के लिए चतुर्थ स्‍तम्‍भ का कार्य करती हैं और अपनी बात को मनवाने के लिए एवं अपने पक्ष में साफ-सूथरा वातावरण तैयार करने में सदैव अमोघ अस्‍त्र का कार्य करती है। हिन्दी के विविध आन्‍दोलन और साहित्‍यिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्‍य सामाजिक गतिविधियों को सक्रिय करने में हिन्दी पत्रिकाओं की अग्रणी भूमिका रही है।; प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएँ- .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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हीथ लेजर

एंड्रयू हीथ लेजर (4 अप्रैल 1979 -22 जनवरी 2008) एक ऑस्ट्रेलियाई टीवी और फिल्म अभिनेता थे। 1990 के दशक के दौरान ऑस्ट्रेलियाई टीवी और फिल्म में अभिनय करने के बाद लेजर 1998 में अपने फिल्म करियर के विकास के लिए संयुक्त राज्य अमरीका चले गये। उनका काम उन्नीस फिल्मों में फैला हुआ है जिसमें 10 थिंग्स आई हेट अबाउट यू (1999), द पेट्रियाट (2000), मोन्सटर्स बॉल (2001), अ नाइट्स टेल (2001), ब्रोकबैक माउंटेन (2005) और डार्क नाइट (2008) शामिल हैं। अभिनय के अलावा उन्होंने कई म्यूज़िक वीडियो का निर्माण और निर्देशन किया और वे एक फिल्म निर्देशक बनना चाहते थे। ब्रोकबैक माउंटेन में इनीस डेल मार का किरदार निभाने के लिए लेजर को 2005 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का न्यूयॉर्क फिल्म क्रिटिक सर्कल अवार्ड और 2006 में ऑस्ट्रेलिया फिल्म इंस्टिट्यूट का 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार' जीता और 2005 के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के एकेडमी अवार्ड के साथ ही साथ अग्रणी भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए 2006 BAFTA अवार्ड के लिए नामांकित किये गये। उन्हें मरणोपरांत 2007 का इंडिपेंडेंट स्पिरिट राबर्ट अल्टमैन अवार्ड साझे तौर पर फिल्म आई एम नाट देअर के अन्य कलाकारों, निर्देशक और फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर को दिया गया, जो अमरीकी गायक-गीतकार बॉब डिलन के जीवन और गीतों से प्रेरित थी। फिल्म में लेजर ने एक काल्पनिक अभिनेता रोबी क्लार्क का किरदार निभाया है, जो डिलन के जीवन और व्यक्तित्व के छह पहलुओं का एक संगठित रूप है। फिल्म द डार्क नाइट में अभिनीत जोकर की भूमिका के लिए वे नामांकित हुए और उन्होंने पुरस्कार भी जीता, जिसमें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का एकेडमी अवार्ड, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार और पहली बार किसी को दिया जाने वाला मरणोपरांतऑस्ट्रेलिया फिल्म इंस्टिट्यूट अवार्ड, 2008 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता लॉस एंजिल्स फिल्म क्रिटिक्स एसोसिएशन अवार्ड, 2009 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता लिए गोल्डन ग्लोब अवार्ड, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का 2009 का BAFTA अवार्ड शामिल है। उनकी मौत 28 साल की आयु में "अनुशंसित दवाओं के जहरीले संयोजन" से दुर्घटनावश हो गयी। लेजर की मौत द डार्क नाइट के संपादन के दौरान हुई, जिसका प्रभाव उनकी 180 मिलियन डॉलर की लागत वाली फिल्म के प्रमोशन पर पड़ा.

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जॉर्डन बेलफोर्ट

जॉर्डन आर बेल्फाॅर्ट (Jordan Russo Belfort) (९ जुलाई १९६२) एक अमेरिकी प्रेरक वक्ता और पूर्व शेयर दलाल है। उन्हे शेयर बाजार में गड़बड़ी और एक पैसा शेयर बाॅयलर कक्ष चलाने के लिए संबंधित धोखाधड़ी अपराधों का दोषी पाया गया था, जिस कारण उन्हें 22 माह की कारावास दण्ड मिला। क्वींस, न्यूयॉर्क में पैदा हुआ, जॉर्डन बेल्फाॅर्ट १९८० के दशक में एक मांस और समुद्री भोजन व्यापार के संचालन थे। एक कम उम्र में एक विक्रेता के रूप में एक प्राकृतिक प्रतिभा थी। वित्तीय संकट के करण उस कंपनी के बन्द हो जाने के बाद बेल्फाॅर्ट ने १९८७ में शेयरों की बिक्री शुरू की। वे १९८९ से अपने ही निवेश आपरेशन, स्ट्रैटन ओक्मान्ट चला रहे थे। कंपनी ने अपने निवेशकों को चूना लगाया, अवैध रूप से लाखों डाॅलर बनाये। प्रतिभूति विनिमय आयोग ने १९९२ में कंपनी के गुमराह तरीके को रोकने के लिए प्रयास शुरू किया। १९९४ बेल्फोट को प्रतिभूतियों धोखाधड़ी और काले धन को वैध करने के लिए दोषी पाया गया। उन्हे २००३ मे ४ साल के लिये जेल कि सजा सुनाई, लेकिन केवल २२ महीने मे उन्हे रिहा कर दिया गया। बेल्फाॅर्ट ने २००८ में अपनी पहली संस्मरण "दी वुल्फ ओफ वॉल स्ट्रीट" प्रकाशित किया। अगले वर्ष, वह फ़िल्म "दी वोल्फ ओफ वॉल स्ट्रीट" का विमोचन किया। .

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विचारपरक लेखन

अखबारों में समाचार और फीचर के अलावा विचारपरक सामग्री का भी प्रकाशन होता है। कई अखबार अपने वैचारिक रुझान से पहचाने जाते हैं। अखबारों में सम्पादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले सम्पादकीय अग्रलेख,लेख और टिप्पणीयाँ इसी विचारपरक लेखन की श्रेणी में आती हैं। .

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विधा

विधा (फ्रेंच: जीनर / genre) का साधारण अर्थ प्रकार, किस्म, वर्ग या श्रेणी है। यह शब्द विविध प्रकार की रचनाओं को वर्ग या श्रेणी में बांटने से उस विधा के गुणधर्मो को समझने में सुविधा होती है। यह वैसे ही है जैसे जीवविज्ञान में जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। साहित्य एवं भाषण में विधा शब्द का प्रयोग एक वर्गकारक (CATEGORIZER) के रूप में किया जाता है। किन्तु सामान्य रूप से यह किसी भी कला के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है। विधाओं की उपविधाएँ भी होती हैं। उदाहरण के लिये हम कहते हैं कि निबन्ध, गद्य की एक विधा है।. विधाएँ अस्पष्ट (vague) श्रेणीयाँ हैं और इनकी कोई निश्चित सीमा-रेखा नहीं होती। ये समय के साथ कुछ मान्यताओं के आधार पर इनकिइ पहचान निर्मित हो जाती है। .

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करण कपूर

करण कपूर (जन्म १८ जनवरी १९६२) भारतीय मूल के एक पूर्व फ़िल्म अभिनेता और मॉडल हैं। वे बॉलीवुड अभिनेता शशि कपूर और उनकी दिवंगत पत्नी, ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर केंडल के बेटे हैं। उनके दादा पृथ्वीराज कपूर थे और उनके चाचा हैं: राज कपूर और शम्मी कपूर। उनके बड़े भाई कुणाल कपूर और बहन संजना कपूर ने भी कुछ फिल्मों में अभिनय किया है, लेकिन वे उनके जैसे सफल नहीं हुए। उनके नाना-नानी, जेफ़री केंडल और लौरा केंडल भी अभिनेता थे, जिन्होंने अपने थिएटर समूह "शेक्सपीराना" के साथ भारत और एशिया का दौरा किया करते थे और नाटक शेक्सपियर ऍण्ड शॉ का प्रदर्शन करते। बाद में करण ने फोटोग्राफी की ओर रुख़ किया और इस ही पेशे को अपनाने का फैसला किया, हालांकि उन्होंने एक अभिनेता के रूप में भी काम किया है। एक हालिया साक्षात्कार में करण का कहना था कि अभिनय से जुड़े एक बहुत प्रसिद्ध बॉलीवुड परिवार का हिस्सा रहने के बावजूद वे बचपन से ही हमेशा फोटोग्राफी में दिलचस्पी रखते हैं। .

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कॉमेडी नाइट्स विद् कपिल

कॉमेडी नाइट्स विद् कपिल कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाला हास्य अभिनेता कपिल शर्मा का एक हास्य कार्यक्रम हैं इसमें दर्शकों को हास्य रस के साथ-साथ गणमान्य व्यक्तियों के बारे में जानने-समझने का अवसर मिलता है क्योंकि कार्यक्रम में विशिष्ट व्यक्तियों से साक्षात्कार भी किया जाता है। .

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कोलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धान्त

लारेन्स कोलबर्ग (1927 – 1987) ने नैतिक विकास के छः चरण हैं जिन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है। इन छः चरणों में से प्रत्येक चरण नैतिक दुबिधाओं को सुलधाने में अपने पूर्व चरण से अधिक परिपूर्ण है। पियाजे की तरह कोलबर्ग ने भी पाया कि नैतिक विकास कुछ चरणों (स्टेप्स) में होता है। कोलबर्ग ने पाया कि ये चरण सार्वभौमिक होते हैं। बच्चों के साथ बीस साल तक एक विशेष प्रकार के साक्षात्कार का प्रयोग करने के बाद कोलबर्ग इन निर्णयों पर पहुंचे। इन साक्षात्कारों में बच्चों को कुछ ऐसी कहानियां सुनाई गईं जिनमें कहानियों के पात्रों के सामने कई नैतिक उलझने थीं। उसमें से सबसे लोकप्रिय दुविधा यह है- यह कहानी उन ग्यारह कहानियों में से एक है, जो कोलबर्ग ने नैतिक विकास को जानने के लिए इस्तेमाल की थीं। यह कहानी पढ़ने के बाद जिन बच्चों से साक्षात्कार लिया गया उन्हें नैतिक दुविधा पर बनाए गए कुछ प्रश्नों के उत्तर देने होते थे।.

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