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बनारसीदास चतुर्वेदी

सूची बनारसीदास चतुर्वेदी

पण्डित बनारसीदास चतुर्वेदी (२४ दिसम्बर, १८९२ -- २ मई, १९८५) प्रसिद्ध हिन्दी लेखक एवं पत्रकार थे। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे। उनके सम्पादकत्व में हिन्दी में कोलकाता से 'विशाल भारत' नामक हिन्दी मासिक निकला। पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी जैसे सुधी चिंतक ने ही साक्षात्कार की विधा को पुष्पित एवं पल्लवित करने के लिए सर्वप्रथम सार्थक कदम बढ़ाया था। उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। वे अपने समय का अग्रगण्य संपादक थे तथा अपनी विशिष्ट और स्वतंत्र वृत्ति के लिए जाने जाते हैं। उनके जैसा शहीदों की स्मृति का पुरस्कर्ता (सामने लाने वाला) और छायावाद का विरोधी समूचे हिंदी साहित्य में कोई और नहीं हुआ। उनकी स्मृति में बनारसीदास चतुर्वेदी सम्मान दिया जाता है। कहते हैं कि वे किसी भी नई सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक या राष्ट्रीय मुहिम से जुड़ने, नए काम में हाथ डालने या नई रचना में प्रवृत्त होने से पहले स्वयं से एक ही प्रश्न पूछते थे कि उससे देश, समाज, उसकी भाषाओं और साहित्यों, विशेषकर हिंदी का कुछ भला होगा या मानव जीवन के किसी भी क्षेत्र में उच्चतर मूल्यों की प्रतिष्ठा होगी या नहीं? .

14 संबंधों: पुरुषोत्तमदास मोदी, भारतीय लेखकों की सूची, मर्यादा (पत्रिका), रस (काव्य शास्त्र), समस्त रचनाकार, संस्मरण, हिन्दी पुस्तकों की सूची/य, हिन्दी पुस्तकों की सूची/श, हिन्दी पुस्तकों की सूची/क, हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम, हिन्दी गद्यकार, विशाल भारत, क्षेम चंद 'सुमन', १९७३ में पद्म भूषण धारक

पुरुषोत्तमदास मोदी

पुरुषोत्तमदास मोदी (जन्म: १९ अगस्त १९२७) पत्रकार, साहित्यकार, शिक्षाविद एवं प्रकाशक हैं। उन्होने सन् १९५० में विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी की स्थापना की। उनका जन्म गोरखपुर में हुआ था। .

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भारतीय लेखकों की सूची

यहां भारतीय लेखकों (किसी भी भाषा के साहित्यकार) की सूची दी गयी है। .

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मर्यादा (पत्रिका)

मर्यादा पत्रिका का पहला अंक नवम्बर सन १९१० ई० में कृष्णकान्त मालवीय ने 'अभ्युदय' कार्यालय प्रयाग से इसे प्रकाशित हुआ था। इसके प्रथम अंक का प्रथम लेख 'मर्यादा' शीर्षक से पुरुषोत्तमदास टण्डन ने लिखा। १० वर्षों तक इस पत्रिका को प्रयाग से निकालने के बाद कृष्णकान्त मालवीय ने इसका प्रकाशन ज्ञानमण्डल काशी को सौंप दिया। सन १९२१ ई० से श्री शिवप्रसाद गुप्त कस संचालन में और सम्पूर्णानन्द जी के संपादकत्व में "मर्यादा" ज्ञानमण्डल से प्रकाशित हुई। असहयोग आन्दोलन में उनके जेल चले जाने पर धनपत राय प्रेमचन्द स्थानापन्न संपादक हुए। पत्रिका का वार्षिक मूल्य ५ रुपए तथा एक प्रति का २ आना था। इसका आकार १० * ७ था। मर्यादा अपने समय की सर्वश्रेष्ट मासिक पत्रिका थी। प्रेमचन्द की आरम्भिक कहानियाँ इसमें प्रकाशित हुईं। सन १९२३ ई० में यह पत्रिका अनिवार्य कारणों से बन्द हो गई। इसका अन्तिम अंक प्रवासी विशेषांक के रूप में बनारसीदास चतुर्वेदी के सम्पादन में निकला, जो अपनी विशिष्ट लेख सामग्री के कारण ऍतिहासिक महत्त्व रखता है। .

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रस (काव्य शास्त्र)

श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं। रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है। काव्य में आने वाला आनन्द अर्थात् रस लौकिक न होकर अलौकिक होता है। रस काव्य की आत्मा है। संस्कृत में कहा गया है कि "रसात्मकम् वाक्यम् काव्यम्" अर्थात् रसयुक्त वाक्य ही काव्य है। रस अन्त:करण की वह शक्ति है, जिसके कारण इन्द्रियाँ अपना कार्य करती हैं, मन कल्पना करता है, स्वप्न की स्मृति रहती है। रस आनंद रूप है और यही आनंद विशाल का, विराट का अनुभव भी है। यही आनंद अन्य सभी अनुभवों का अतिक्रमण भी है। आदमी इन्द्रियों पर संयम करता है, तो विषयों से अपने आप हट जाता है। परंतु उन विषयों के प्रति लगाव नहीं छूटता। रस का प्रयोग सार तत्त्व के अर्थ में चरक, सुश्रुत में मिलता है। दूसरे अर्थ में, अवयव तत्त्व के रूप में मिलता है। सब कुछ नष्ट हो जाय, व्यर्थ हो जाय पर जो भाव रूप तथा वस्तु रूप में बचा रहे, वही रस है। रस के रूप में जिसकी निष्पत्ति होती है, वह भाव ही है। जब रस बन जाता है, तो भाव नहीं रहता। केवल रस रहता है। उसकी भावता अपना रूपांतर कर लेती है। रस अपूर्व की उत्पत्ति है। नाट्य की प्रस्तुति में सब कुछ पहले से दिया रहता है, ज्ञात रहता है, सुना हुआ या देखा हुआ होता है। इसके बावजूद कुछ नया अनुभव मिलता है। वह अनुभव दूसरे अनुभवों को पीछे छोड़ देता है। अकेले एक शिखर पर पहुँचा देता है। रस का यह अपूर्व रूप अप्रमेय और अनिर्वचनीय है। .

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समस्त रचनाकार

अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.

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संस्मरण

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अन्तर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबन्ध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को 'संस्मरणात्मक निबंध' कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित के अन्तर्गत लिया जा सकता है। किन्तु संस्मरण और आत्मचरित के दृष्टिकोण में मौलिक अन्तर है। आत्मचरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपनी जीवनकथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण भिन्न रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेखक की स्वयं की अनुभूतियाँ तथा संवेदनायें संस्मरण में अन्तर्निहित रहती हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेखक निबन्धकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथातथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेनानायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं, जिनका साहित्यिक महत्त्व स्वीकारा गया है। .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/य

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/श

संवाद शीर्षक से कविता संग्रह-ईश्वर दयाल गोस्वाामी.

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/क

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हिन्दी से सम्बन्धित प्रथम

यहाँ पर हिन्दी से सम्बन्धित सबसे पहले साहित्यकारों, पुस्तकों, स्थानों आदि के नाम दिये गये हैं।.

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हिन्दी गद्यकार

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विशाल भारत

विशाल भारत एक प्रसिद्ध हिन्दी पत्र था जिसका प्रकाशन सन 1928 ई. में कोलकाता से आरम्भ हुआ। इसके संस्थापक रामानन्द चट्टोपाध्याय थे। बनारसीदास चतुर्वेदी इसके प्रथम सम्पादक बने जो सन 1928 से 1937 ई. तक इसका सम्पादन कार्य करते रहे। ‘विशाल भारत’ को उसका वास्तविक रूपाकार बनारसीदास चतुर्वेदी ने ही प्रदान किया था। चतुर्वेदी जी के बाद सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय', मोहनसिंह सेंगर तथा श्रीराम शर्मा इसका सम्पादन कार्य करते रहे। अपने समय में सरस्वती (पत्रिका) बाद यह पत्र सबसे अधिक ख्याति प्राप्त पत्र रहा। प्रवासी भारतीयों के प्रसंग में जो आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, उसका प्रमुख माध्यम 'विशाल भारत' ही था। इसी पत्र में प्रथम बार जनपदीय साहित्य की ओर ध्यान दिया गया था। संस्मरण और पत्र संग्रह की दृष्टि से भी इस पत्र का बहुत अधिक महत्त्व है। इसके कई विशिष्ट अंक निकले थे, जैसे- 'रवींद्र अंक', 'एंड्रूज़ अंक', 'पद्मसिंह शर्मा अंक', 'कला अंक' और 'राष्ट्रीय अंक' आदि। इसके लेखकों में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामानन्द चट्टोपाध्याय, कालिदास नाग आदि प्रमुख थे। सामग्री चयन और कलात्मक मुद्रण, दोनों ही दृष्टियों से 'विशाल भारत' के प्रारम्भिक स्वरूप में हिन्दी पत्रकारिता के श्रेष्ठतम रूप का दर्शन होता है। .

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क्षेम चंद 'सुमन'

आचार्य क्षेम चन्द 'सुमन' (16 सितम्‍बर, 1916 -- 23 अक्‍तूबर, 1993) हिन्दी साहित्यकार एवं पत्रकार थे। उन्हें १९८४ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है- 'दिवंगत हिन्दी साहित्यसेवी कोश' का दो भागों में प्रकाशन। इस असाधारण ग्रन्थ को तैयार करने के लिये सुमन जी ने सम्पूर्ण भारत के गाँव-गाँव, नगर-नगर को दो बार लगभग पैदल ही नाप दिया। बनारसीदास चतुर्वेदी का लक्ष्य यदि स्वतन्त्रता सेनानियों और शहीदों के बलिदानों को उजागर करना तथा उनके आश्रितों की सहायता करना और करवाना था तो 'सुमन' जी का लक्ष्य लेखकों की मदद करना था। .

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१९७३ में पद्म भूषण धारक

श्रेणी:पद्म भूषण श्रेणी:1973.

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