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सम-ऊँगली खुरदार

सूची सम-ऊँगली खुरदार

द्विखुरीयगणों के खुर द्विखुरीयगण या सम-ऊँगली खुरदार (आर्टियोडैक्टाइला, Artiodactyla) गाय, भैंस, सूअर, बकरी, ऊँट, हरिण आदि स्तनियों (mammals) का गण है, जिनमें गर्भनाल (placents), पैर पर सम संख्या की अँगुलियाँ तथा खुर होते हैं। इस गण में खरगोश से लेकर भैंस और दरियाई घोड़े जैसे भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के प्राणी सम्मिलित हैं। .

33 संबंधों: ऊँट, चिंकारा, चौसिंगा, चीतल, ढोर, तहर, तिमिगण, दरियाई घोड़ा, न्याला, नीला विल्डबीस्ट, पाढ़ा, बायसन, बकरी, भारतीय चित्तीदार मूषक मृग, रोमंथक, साम्भर (हिरण), साओला, साइगा, हिमालयी तहर, जिराफ़, जंगली भैंसा, जंगली सुअर, वियतनामी सीका हिरण, विल्डबीस्ट, विषम-ऊँगली खुरदार, खुरदार, गौर, गोवंश, ओकापी, कस्तूरी मृग, काला हिरन, काला विल्डबीस्ट, काकड़

ऊँट

ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते हैं। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में इक्कीस इक्कीस दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है। यह 7 दिन बिना पानी पिए रह सकता है ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमे दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है। एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच ऊपर तक बढ़ता है। ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है। जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू.

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चिंकारा

चिंकारा दक्षिण एशिया में पाया जाने वाला एक प्रकार का गज़ॅल है। यह भारत, बांग्लादेश के घास के मैदानों और मरुभूमि में तथा ईरान और पाकिस्तान के कुछ इलाकों में पाया जाता है। इसकी ऊँचाई कन्धे तक ६५ से.मी.

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चौसिंगा

चौसिंगा, जिसे अंग्रेज़ी में Four-horned Antelope कहते हैं, एक छोटा बहुसिंगा है। यह टॅट्रासॅरस प्रजाति में एकमात्र जीवित जाति है और भारत तथा नेपाल के खुले जंगलों में पाया जाता है। चौसिंगा एशिया के सबसे छोटे गोकुलीय प्राणियों में से हैं। .

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चीतल

चीतल, या चीतल मृग, या चित्तिदार हिरन हिरन के कुल का एक प्राणी है, जो कि श्री लंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, भारत में पाया जाता है। पाकिस्तान के भी कुछ इलाकों में भी बहुत कम पाया जाता है। अपनी प्रजाति का यह एकमात्र जीवित प्राणी है। .

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ढोर

ढोर (cattle) उस पशुवर्ग में आते हैं जिनके खुर होते हैं और प्रत्येक खुर आगे से मध्य भाग में फटा होता है। यह द्विखुरीयगण के अंतर्गत एक कुल है। अधिकांश ढोरों के सींग होते हैं, जो खोपड़ी के किनारों के ही बढ़े हुए हिस्से होते हैं। इनके ऊपरी जबड़े के अंत में दाँत नहीं होते। इस जाति के पालतु पशु जैसे गाय, बैल, भैंस तथा जंगली पशु जैसे बहुसिंगे आदि जुगाली करते हैं। .

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तहर

तहर जंगली बकरी से संबंधित बड़े एशियाई द्विखुरीगणों की तीन प्रजातियां हैं। अभी हाल तक ऐसा माना जाता था कि तीनों प्रजातियाँ आपस में सम्बन्धित हैं और इन तीनों प्रजातियों को एक ही प्रजाति, हॅमिट्रैगस में रखा गया था। आनुवांशिक अध्ययन ने साबित कर दिया है कि पहले विचार के विरुद्ध तीनों तहर आपस में संबंधित नहीं हैं। अब इनको तीन अलग प्रजाति के सदस्य के रूप में माना जाता है, हॅमिट्रैगस अब हिमालयी तहर के लिए, नीलगिरि तहर के लिए नीलगिरिट्रैगस और अरेबियाई तहर के लिए अरैबिट्रैगस नाम दिये गये हैं। जबकि ओमान की अरेबियाई तहर और नीलगिरि तहर के आवास का इलाका संकुचित हो गया है और यह माना जाता है कि दोनों ही आबादियाँ विलुप्तप्राय हैं वहीं हिमालयी तहर व्यापक क्षेत्र में फैली हुयी है और इसको न्यूज़ीलैण्ड के सदर्न ऐल्प्स में भी रोपित कर दिया गया है जहाँ अब इनका सुनियोजित रूप से शिकार किया जाता है और ऐसा माना जाता है कि इनका मांस काफ़ी स्वादिष्ट होता है। इसकी एक आबादी दक्षिण अफ़्रीका के टेबल माउन्टेन में भी पाई जाती है जो सन् १९३० में चिड़ियाघर से भागे जोड़े के वंशज हैं। न्यूज़ीलैण्ड में इसका मांस बहुत ही उच्च स्तर का माना जाता है और वहाँ इसके शिकार को एक महंगा खेल माना जाता है क्योंकि गाइड के साथ शिकार के लिए जाने से यह काफ़ी महंगा साबित होता है। दक्षिणी ऐल्प्स में सर्दियों के वक़्त भी यह हिम रेखा के ऊपर ही रहना पसन्द करते हैं और भोजन के लिए रात के समय ही आते हैं जो इनके लिए सुरक्षित समय होता है। .

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तिमिगण

तिमिगण (अंग्रेज़ी: Cetacea, सीटेशिया) विश्व भर के सागरों में विस्तृत एक मांसाहारी, फ़िन-धारी, समुद्री स्तनधारी प्राणी जातियों का क्लेड (जीववैज्ञानिक समूह) है। यह ओडोन्टोसेटाए (Odontoceti, दंतदार तिमि, जिनमें डॉलफ़िन शामिल है), मिस्टीसेटाए (Mysticeti, बैलीन तिमि) और आर्केओसेटाए (Archaeoceti, जो आधुनिक तिमि के पूर्वज थे और जिसके सदस्य विलुप्त हो चुके हैं) नामक जीववैज्ञानिक गणों में विभाजित हैं। कुल मिलाकर इस क्लेड में ८९ जातियाँ ज्ञात हैं जिनमें से ७० से अधिक ओडोन्टोसेटाए गण के भाग हैं। आणविक अनुवांशिक अध्ययन के आधार पर पता लगा है कि यह जातियाँ सम-ऊँगली खुरदार जानवरों की सम्बन्धी हैं। दरियाई घोड़ा इनका सबसे समीपी जीवित सम्बन्धी है और यह ऊँट, सूअर और अन्य रोमन्थक से भी सम्बन्धित है और इसके पूर्वज लगभग ५ करोड़ वर्ष पूर्व उनसे क्रम-विकास की प्रक्रिया द्वारा धीरे-धीरे अलग होते चले गये। .

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दरियाई घोड़ा

अफ्रीका का विशाल पशु- '''जलीय घोड़ा''' दरियाई घोड़ा या जलीय घोड़ा (Hippopotamus) एक विशाल और गोलमटोल स्तनपायी प्राणी है जो अफ्रीका का मूल निवासी है। दरियाई घोड़े नाम के साथ घोड़ा शब्द जुड़ा है एवं "हिप्पोपोटामस" शब्द का अर्थ "वाटर होर्स" यानी "जल का घोड़ा" होता है परन्तु उसका घोड़ों से कोई संबंध नहीं है। प्राणिविज्ञान की दृष्टि में यह सूअरों का दूर का रिश्तेदार है। यह शाकाहारी प्राणी नदियों एवं झीलों के किनारे तथा उनके मीठे जल में समूहों में रहना पसन्द करता है। उसे आसानी से विश्व का दूसरा सबसे भारी स्थलजीवी स्तनी कहा जा सकता है। वह 14 फुट लंबा, 5 फुट ऊंचा और 4 टन भारी होता है। उसका विशाल शरीर स्तंभ जैसे और ठिंगने पैरों पर टिका होता है। पैरों के सिरे पर हाथी के पैरों के जैसे चौड़े नाखून होते हैं। आंखें सपाट सिर पर ऊपर की ओर उभरी रहती हैं। कान छोटे होते हैं। शरीर पर बाल बहुत कम होते हैं, केवल पूंछ के सिरे पर और होंठों और कान के आसपास बाल होते हैं। चमड़ी के नीचे चर्बी की एक मोटी परत होती है जो चमड़ी पर मौजूद रंध्रों से गुलाबी रंग के वसायुक्त तरल के रूप में चूती रहती है। इससे चमड़ी गीली एवं स्वस्थ रहती है। दरियाई घोड़े की चमड़ी खूब सख्त होती है। पारंपरिक विधियों से उसे कमाने के लिए छह वर्ष लगता है। ठीक प्रकार से तैयार किए जाने पर वह २ इंच मोटी और चट्टान की तरह मजबूत हो जाती है। हीरा चमकाने में उसका उपयोग होता है। .

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न्याला

न्याला (nyala), जो इन्याला (inyala) भी कहलाता है, दक्षिण अफ़्रीका व उसके पड़ोसी देशों में मिलने वाली हिरण की एक जाति है। यह अपने सर्पिल सींगो और नर व मादाओं के रूप में बहुत अंतर के लिये जाना जाता है। .

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नीला विल्डबीस्ट

नीला विल्डबीस्ट, सामान्य विल्डबीस्ट या सफ़ेद दाढ़ी वाला विल्डबीस्ट विल्डबीस्ट की दो जातियों में से एक है। इसका सबसे करीबी रिश्तेदार काला विल्डबीस्ट है। यह जाति अफ़्रीका महाद्वीप में पाई जाती है। यह खुले मैदानों में, दक्षिण अफ़्रीका और पूर्वी अफ़्रीका के खुले जंगलों में पाये जाते हैं और २० वर्ष से अधिक उम्र तक जीवित रहते हैं। नर अपने क्षेत्र की रक्षा के मामले में बहुत उग्र होता है और अपने क्षेत्र को जताने के लिए गंध और अन्य तरीकों का इस्तेमाल करता है। इनकी सबसे बड़ी संख्या सेरेंगेटी, तंज़ानिया में है जहाँ यह १० लाख से भी ज़्यादा हैं। इनके प्रमुख शिकारी सिंह, लकड़बग्घे और नील नदी के मगरमच्छ होते हैं। कभी-कभी २ से ३ चीतों को भी इनका शिकार करते देखा गया है। इनका शिकार झुण्ड में अफ़्रीका के जंगली कुत्ते भी करते हैं। नर की कंधे तक औसतन ऊँचाई १४५ से.मी.

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पाढ़ा

पाढ़ा, जिसे अंग्रेज़ी में Hog Deer कहते हैं, एक छोटा सा हिरन है जिसका आवासीय क्षेत्र पाकिस्तान से लेकर उत्तरी भारत और मुख्य भूभागीय दक्षिण पूर्वी एशिया तक फैला है। इसकी दो उप-जातियाँ हैं:हायलाफ़स पॉरसिनस पॉरसिनस जो कि भारतीय प्रायद्वीप तथा चीन के दक्षिणी-पश्चिमी यूनान से लेकर पश्चिमी थाइलैंड तक के इलाके में पाया जाता है। हायलाफ़स पॉरसिनस अन्नॅमिटिकस जो कि थाइलैंड तथा इंडोचायना में पाया जाता है। प्रचलित की हुई आबादी अमेरिका, श्रीलंका तथा ऑस्ट्रेलिया में भी पायी जाती है। .

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बायसन

बायसन (Bison) गोवंश के जीववैज्ञानिक कुल में विशाल समखुरीय प्राणियों का एक जीववैज्ञानिक वंश है। इस वंश में छह ज्ञात जातियाँ हैं, जिनमें से दो अस्तित्व में हैं और चार विलुप्त हो चुकी हैं। .

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बकरी

बकरी और उसके बच्चे बकरी एक पालतू पशु है, जिसे दूध तथा मांस के लिये पाला जाता है। इसके अतिरिक्त इससे रेशा, चर्म, खाद एवं बाल प्राप्त होता है। विश्व में बकरियाँ पालतू व जंगली रूप में पाई जाती हैं और अनुमान है कि विश्वभर की पालतू बकरियाँ दक्षिणपश्चिमी एशिया व पूर्वी यूरोप की जंगली बकरी की एक वंशज उपजाति है। मानवों ने वरणात्मक प्रजनन से बकरियों को स्थान और प्रयोग के अनुसार अलग-अलग नस्लों में बना दिया गया है और आज दुनिया में लगभग ३०० नस्लें पाई जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार सन् २०११ में दुनिया-भर में ९२.४ करोड़ से अधिक बकरियाँ थीं। .

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भारतीय चित्तीदार मूषक मृग

भारतीय चित्तीदार मूषक मृग द्विखुरीयगण की जाति का एक छोटा मृग है जो भारत में और शायद नेपाल में भी पाया जाता है। .

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रोमंथक

कड़ी.

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साम्भर (हिरण)

साम्भर (Rusa unicolor) दक्षिण तथा दक्षिण पूर्वी एशिया में पाया जाने वाला एक बड़ा हिरन है। .

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साओला

साओला (saola), जिसे सिओला, वू क्वांग बैल, स्पिंडलहॉर्न और अन्य नामों से भी जाना जाता है, एक संकटग्रस्त स्तनधारी गोवंशी प्राणी है। जीववैज्ञानिक दृष्टि से यह गाय, बकरी और हिरण से सम्बन्धित है। साओला केवल लाओस और वियतनाम की अन्नामी पहाड़ियों में ही पाया जाता है और विश्व के सबसे दुर्लभ महाप्राणियों में से एक है। यह जिन क्षेत्रों में रहता है वह दुर्गम वनों से घिरे हैं और इसकी संख्या बहुत ही कम है। इस जीववैज्ञानिक जाति की पहचान केवल सन् १९९२ में ही एक शव का अध्ययन कर के हुई थी। अपनी जंगली अवस्था में इसकी पहली तस्वीर केवल १९९९ में ही जाकर खींचना सम्भव हुआ था। .

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साइगा

साइगा (saiga) एक हिरण है जो मूल रूप से लाखों-करोड़ों की संख्या में यूरेशिया के स्तेपी क्षेत्र के एक विशाल भूभाग में रहा करता था लेकिन अनियंत्रित शिकार किये जाने से अब विलुप्त होने के ख़तरे में हैं। प्राचीनकाल में इनका क्षेत्र पश्चिम में कारपैथी पर्वतों और कॉकस क्षेत्र से लेकर पूर्व में ज़ुन्गारिया और मंगोलिया तक विस्तृत था। अत्यंतनूतन युग (प्लाइस्टोसीन​) में साइगा उत्तर अमेरिका में भी रहते थे। अब इनका क्षेत्र बहुत सिकुड़ चुका है। साइगा की मुख्य उपजाति (S. t. tatarica) रूस के केवल एक स्थान (कैस्पियन-पूर्व क्षेत्र) में और काज़ाख़स्तान के केवल तीन स्थानों (यूराल, उस्त-उर्त, बेतपाक-दाला) में पाई जाती है। काज़ाख़स्तान के उस्तउर्त वाले समुदाय का कुछ अंश सर्दियों में उज़बेकिस्तान और कभी-कभार तुर्कमेनिस्तान में भी, कुछ महीनो के लिए चला जाता है। चीन और दक्षिणपश्चिम मंगोलिया से यह उपजाति विलुप्त हो चुकी है। साइगा की एक और मंगोलियाई उपजाति (S. t. mongolica) है जो केवल पश्चिमी मंगोलिया में ही मिलती है। .

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हिमालयी तहर

हिमालयी तहर Himalayan tahr (Hemitragus jemlahicus) जंगली बकरी से संबन्धित एक एशियाई समखुरीयगण प्राणी है। तहर प्रजाति के तीन बची हुई जातियाँ हैं और तीनों एशिया में ही पाई जाती हैं। यह हिमालय में दक्षिणी तिब्बत, उत्तरी भारत और नेपाल का मूल निवासी है। इसे न्यूजीलैंड, दक्षिण अमेरिका के कुछ हिस्सों और दक्षिण अफ्रीका में एक विदेशी प्रजाति के रूप में रोपित किया गया है। इन क्षेत्रों में इसकी आबादी को नियंत्रित करने और इन इलाकों के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके आने से पड़े प्रभाव को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। .

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जिराफ़

जिराफ़ (जिराफ़ा कॅमेलोपार्डेलिस) अफ़्रीका के जंगलों मे पाया जाने वाला एक शाकाहारी पशु है। यह सभी थलीय पशुओं मे सबसे ऊँचा होता है तथा जुगाली करने वाला सबसे बड़ा जीव है। इसका वैज्ञानिक नाम ऊँट जैसे मुँह तथा तेंदुए जैसी त्वचा के कारण पड़ा है। .

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जंगली भैंसा

एशियाई जंगली भैंसा (Bubalis bubalis arnee or Bubalus arnee) की संख्या आज 4000 से भी कम रह गई है। एक सदी पहले तक पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में बड़ी तादाद में पाये जाने वाला जंगली भैंसा आज केवल भारत, नेपाल, बर्मा और थाईलैंड में ही पाया जाता है। भारत में काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान में ये पाया जाता है। मध्य भारत में यह छ्त्तीसगढ़ में रायपुर संभाग और बस्तर में पाया जाता है। छ्त्तीसगढ़ में इनकी दर्ज संख्या आठ है जिन्हे अब सुरक्षित घेरे में रख कर उनका प्रजनन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। लेकिन उसमें भी समस्या यह है कि मादा केवल एक है और उस मादा पर भी एक ग्रामीण का दावा है, कि वह उसकी पालतू भैंस है। खैर ग्रामीण को तो मुआवजा दे दिया गया पर समस्या फ़िर भी बनी हुई है, मादा केवल नर शावकों को ही जन्म दे रही है, अब तक उसने दो नर बछ्ड़ों को जन्म दिया है। पहले नर शावक के जन्म के बाद ही वन अधिकारिय़ों ने मादा शावक के जन्म के लिये पूजा पाठ और मन्नतों तक का सहारा लिया। और तो और शासन ने तो एक कदम आगे जाकर उद्यान में महिला संचालिका की नियुक्ति भी कर दी, ताकि मादा भैंस को कुछ इशारा तो मिले, पर नतीजा फ़िर वही हुआ मादा ने फ़िर नर शावक को ही जन्म दिया। शायद पालतू भैंसों पर लागू होने वाली कहावत कि भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुरावै जंगली भैंसों पर भी लागू होती है। मादा अपने जीवन काल में 5 शावकों को जन्म देती है, इनकी जीवन अवधि ९ वर्ष की होती है। नर शावक दो वर्ष की उम्र में झुंड छोड़ देते हैं। शावकों का जन्म अक्सर बारिश के मौसम के अंत में होता है। आम तौर पर मादा जंगली भैसें और शावक झुंड बना कर रहती है और नर झुंड से अलग रहते हैं पर यदि झुंड की कोई मादा गर्भ धारण के लिये तैयार होती है तो सबसे ताकतवर नर उसके पास किसी और नर को नहीं आने देता। यह नर आम तौर पर झुंड के आसपास ही बना रहता है। यदि किसी शावक की मां मर जाये तो दूसरी मादायें उसे अपना लेती हैं। इनका स्वभाविक शत्रु बाघ है, पर यदि जंगली भैंसा कमजोर बूढ़ा या बीमार हो तो जंगली कुत्तों और तेंदुओं को भी इनका शिकार करते देखा गया है। वैसे इनको सबसे बड़ा खतरा पालतू मवेशियों की संक्रमित बीमारियों से ही है, इनमें प्रमुख बीमारी फ़ुट एंड माउथ है। रिडंर्पेस्ट नाम की बीमारी ने एक समय इनकी संख्या में बहुत कमी ला दी थी। .

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जंगली सुअर

जंगली सुअर (Sus scrofa) या वाराह, सुअर की एक प्रजाति है। यह मध्य यूरोप, भूमध्य सागर क्षेत्र (उत्तरी अफ्रीका, एटलस पर्वत) सहित एशिया में इंडोनेशिया तक के क्षेत्रों का मूल निवासी है। मूल निवास दशावतार में से एक अवतार वराहावतार हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु ने दशावतार में से एक अवतार वराहावतार में इस पशु के रूप में ही अवतरण कर पृथ्वी को पाताल से बाहर निकाला था। .

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वियतनामी सीका हिरण

वियतनामी सीका हिरण (Vietnamese sika deer) सीका हिरण की एक उपजाति है। यह सीका हिरणों की अन्य उपजातियों से आकार में छोटी है और इसका कारण इसके निवास-क्षेत्र का गरम वातावरण माना जाता है। यह हिरण पहले उत्तरी वियतनाम और दक्षिणपश्चिमी चीन में मिला करते थे लेकिन अब जंगलों से विलुप्त हो गए हैं और केवल चिड़ियाघरों और बंद उद्यानों में पाए जाते हैं। इन्हें फिर से वियतनाम में फैलाने की योजना बन रही है। वियतनाम के न्गे ऐन (Nghệ An) और हा तन्ह (Hà Tĩnh) प्रान्तों में लगभग १०,००० वियतनामी सीका हिरण का बाक़ायदा पशु पालन हो रहा है क्योंकि इनके सींगों को पीसकर पारंपरिक दवाईयाँ बनाई जाती हैं।, Eleanor Jane Sterling, Martha Maud Hurley, Le Duc Minh, Yale University Press, 2006, ISBN 978-0-300-10608-4,...

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विल्डबीस्ट

विल्डबीस्ट जिसे ग्नू भी कहते हैं अफ़्रीका में पाया जाने वाला द्विखुरीयगण प्राणी है जो कि सींग वाले हिरनों की बिरादरी का है। इसके नाम का डच (हॉलैंड) भाषा में मतलब होता है जंगली जानवर या जंगली मवेशी क्योंकि अफ़्रीकान्स भाषा में beest का मतलब मवेशी होता है जबकि इसका वैज्ञानिक नाम कॉनोकाइटिस यूनानी भाषा के दो शब्दों से बना है — konnos जिसका मतलब दाढ़ी होता है और khaite जिसका मतलब लहराते बाल होता है। ग्नू नाम खोइखोइ भाषा से उद्घृत है। यह बोविडी कुल का प्राणी है, जिसमें बारहसिंगा, मवेशी, बकरी और कुछ अन्य सम-अंगुली सींगवाले खुरदार प्राणी होते हैं। कॉनोकाइटिस प्रजाति में दो जातियाँ समाविष्ट हैं और यह दोनों ही अफ़्रीका के मूल निवासी हैं: काला विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस नू) और नीला विल्डबीस्ट या सामान्य विल्डबीस्ट (कॉनोकाइटिस टॉरिनस)। जीवाश्म सबूत बताते हैं कि उपरोक्त दोनों जातियाँ लगभग १० लाख साल पहले विभाजित हो गई थीं, जिसके कारण उत्तरी (नीला विल्डबीस्ट) तथा दक्षिणी (काला विल्डबीस्ट) जातियाँ अलग-अलग हो गईं। नीली जाति में अपने पूर्वजों से शायद ही कोई बदलाव आया, जबकि काली जाति को ख़ुद को खुले मैदानों के अनुरूप ढालना पड़ा। .

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विषम-ऊँगली खुरदार

घोड़े कि खुर विषम-ऊँगली खुरदार या विषमांगुल (odd-toed ungulate) वे खुरदार स्तनधारी (mammal) जीव हैं जिनके पैरों में एक या तीन (अर्थात् विषम संख्या वाले) खुर होते हैं। .

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खुरदार

लामा एक खुरदार जानवर है, जो आर्टियोडैकटिला (सम-ऊँगली खुरदार) श्रेणी में आता है - लामाओं के खुरों में दो उंगलियाँ होती हैं खुरदार या अंग्युलेट (ungulate) ऐसे स्तनधारी जानवरों को कहा जाता है जो चलते समय अपना भार अपने पाऊँ की उँगलियों के अंतिम भागों पर उठाते हैं। यह भार सहन करने के लिए ऐसे पशुओं के पाऊँ अक्सर खुरों के रूप में होते हैं।, Colin Tudge, Simon and Schuster, 1997, ISBN 978-0-684-83052-0,...

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गौर

गौर (Bos gaurus, पहले Bibos gauris) दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम से ढका गोजातीय पशु है। आज इसकी सबसे बड़ी आबादी भारत में पाई जाती हैं। गौर जंगली मवेशियों मे से सबसे बड़ा होता है। पालतू गौर 'गायल' या 'मिथुन' कहलाता है। भारत के भिन्न भिन्न भागों में इसका भिन्न भिन्न स्थानीय नाम है, जैसे गौरी गाय, बोदा, गवली इत्यादि। यह बोविडी कुल (Bavidae Family) के शफ गण (Order Ungulate) का एक जंगली स्तनपोषी शाकाहारी पशु है। गवल भारत प्रायद्वीप, असम, बर्मा, मलाया प्रायद्वीप तथा स्याम के पहाड़ी वनों में पाया जाता है। इसका सर्वोत्तम विकास दक्षिण भारतीय पहाड़ियों तथा असम में होता है। किसी समय यह प्राणी श्रीलंका में भी प्राप्य था, किंतु अब वहां से, संभवत: किसी पशुरोग के ही कारण लुप्त हो गया है। यूरोपीय शिकारी गौर को 'बाइसन' (Bison / एक प्रकार का जंगली भैंसा) कहते हैं, परंतु भारतीय गवल को बाइसन कहना ठीक प्रतीत नहीं होता। वस्तुत: यूरोप तथा उत्तरी अमरीका के बाइसन भारतीय गवल से भिन्न होते हैं। पाश्चात्य बाइसनों की सीगें छोटी और रूक्ष दाढ़ियाँ हाती हैं। .

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गोवंश

गोवंश या बोविनाए (Bovinae) लगभग १४० प्रजातियों वाला जीववैज्ञानिक कुल है। इसमें मवेशी, गौर, भैंस, बायसन, आदि और कुछ चार सींगो वाले व सर्पिल सींगो वाले खुरदार प्राणी आते हैं। गौर इस पूरे कुल का सबसे भीमकाय प्राणी है। ध्यान दें कि सभी हिरण इस कुल का हिस्सा नहीं हैं। .

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ओकापी

ओकापी (ओकापिया जॉन्स्टोनी) अफ्री़का के इटुरी वर्षावन, जो कि मध्य अफ्री़का के कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य में स्थित है, में पाया जाने वाला एक जीव है। यह जिराफ़ का सबसे करीबी रिश्तेदार है। आज यह वन में लगभग १०,०००-२०,००० की संख्या में हैं। .

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कस्तूरी मृग

खोपड़ी  कस्तूरी मृग सम-खुर युक्त खुरदार स्तनधारियों का एक समूह है। यह मोशिडे परिवार का प्राणी है। कस्तूरी मृगों की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो सभी आपस में बहुत समान हैं। कस्तूरी मृग, सामान्य मृग से अधिक आदिम है। .

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काला हिरन

काला हिरन यह कृष्णमृग बहुसिंगा की प्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। काला हिरन बहुसिंगा प्रजाति की इकलौती जीवित जाति है। काला हिरन जिसे भारतीय मृग के रूप में भी जाना जाता है, यह भारत, नेपाल और पाकिस्तान में पाए जाने वाली एक हिरण की प्रजाति है। कला हिरन जीनस एनिलिओप का एकमात्र मौजूदा सदस्य है प्रजातियों को 1758 में स्वीडिश जूलोस्टिस्ट कार्ल लिनियस द्वारा वर्णित किया गया और इसके द्विपद नाम दिया गया। इसकी दो उपप्रजातियां मान्यता प्राप्त हैं। काला हिरन एक दैनंदिनी एनलॉप है (मुख्य रूप से दिन के दौरान सक्रिय)। तीन प्रकार के समूह, आम तौर पर छोटी, मादाएं, पुरुष और स्नातक झुंड होते हैं। नर अक्सर संभोग के लिए महिलाओं को जुटाने के लिए एक रणनीति के रूप में लेकिंग नामक तरिके को अपनाते हैं। इनके इलाकें में अन्य नरों को अनुमति नहीं होती है, मादाएं अक्सर इन स्थानों पर भोजन के लिये घूमने आती हैं। पुरुष इस प्रकार उनके साथ संभोग का प्रयास कर सकते हैं। मादाएं आठ महीनों में यौन के लिए परिपक्व हो जाती हैं, लेकिन संभोग दो साल से पहले नहीं करती हैं। नर करीब 1-2 वर्ष मे परिपक्व होते है। संभोग पूरे वर्ष के दौरान होता है। गर्भावस्था आम तौर पर छह महीने लंबी होती है, जिसके बाद एक बछड़ा पैदा होता है। जीवन काल आमतौर पर 10 से 15 साल होती है। काला हिरन घास के मैदानों और थोड़ा जंगलों के क्षेत्रों में पाएँ जाते हैं। पानी की अपनी नियमित आवश्यकता के कारण, वे उन जगहों को पसंद करते हैं जहां पानी पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध हो। यह मृग मूलतः भारत में पाया जाता है, जबकि बांग्लादेश में यह विलुप्त हो गया है। इनके केवल छोटे, बिखरे हुए झुंड आज ही देखे जाते हैं, तथा बड़े झुंड बड़े पैमाने पर संरक्षित क्षेत्रों तक ही सीमित होते हैं। 20 वीं शताब्दी के दौरान, अत्यधिक शिकार, वनों की कटाई और निवास स्थान में गिरावट के चलते काले हिरन की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। ब्लैकबक अर्जेंटीना और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाये जाते हैं। भारत में, 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अनुसूची I के तहत काला हिरन का शिकार निषिद्ध है। हिंदू धर्म में काला हिरन का बहुत महत्व है; भारतीय और नेपाली ग्रामीणों ने मृग को नुकसान नहीं पहुंचाया। .

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काला विल्डबीस्ट

काला विल्डबीस्ट या सफ़ेद पूँछ वाला नू विल्डबीस्ट की दो जातियों में से एक है। यह जाति अफ़्रीका महाद्वीप के दक्षिणी इलाके में पाई जाती है। इसका सबसे करीबी रिशतेदार नीला विल्डबीस्ट है। यह दक्षिण अफ़्रीका, स्वाज़ीलैण्ड और लेसोथो में पाया जाता है। १९वीं शताब्दी के अंत तक अत्यधिक शिकार के कारण इनकी संख्या कुछ ही जानवर केवल दो फ़ार्मों तक सीमित रह गयी थी। तब से इसके संरक्षण का भर्सक प्रयत्न किया गया है और अब इनकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इनको इनके प्राकृतिक क्षेत्र के बाहर (नामीबिया) में भी प्रचलित किया गया है। एक अनुमान के मुताबिक इनकी संख्या १८००० के लगभग हो गई है जिसमें ८०% फ़ार्मों में और बचे २०% प्राकृतिक आवासों में रह रहे हैं। .

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काकड़

काकड़ या कांकड़ (Barking Deer) एक छोटा हिरन होता है। यह हिरनों में शायद सबसे पुराना है, जो इस धरती में १५०-३५० लाख वर्ष पूर्व देखा गया और जिसके जीवाश्म फ्रा़ंस, जर्मनी और पोलैंड में पाये गये हैं। आज की जीवित प्रजाति दक्षिणी एशिया की मूल निवासी है और भारत से लेकर श्रीलंका, चीन, दक्षिण पूर्वी एशिया (इंडोचाइना और मलय प्रायद्वीप के उत्तरी इलाके)। यह कम आबादी में पूर्वी हिमालय और म्यानमार में भी पाया जाता है। ऊष्णकटिबंधीय इलाकों में रहने के कारण इसका कोई समागम मौसम नहीं होता है और वर्ष के किसी भी समय में यह समागम कर लेते हैं; यही बात उस आबादी पर भी लागू होती है जिसे शीतोष्णकटिबन्धीय इलाकों में दाख़िल किया गया है। नर के दोबारा उग सकने वाले सींग होते हैं, हालांकि इलाके की लड़ाई में वह अपने लंबे श्वानदंतों (Canine teeth) का इस्तेमाल करते हैं। काकड़ क्रम विकास के अध्ययन में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि इनकी विभिन्न प्रजातियों के गुणसूत्र में काफ़ी घटबढ़ देखी गयी है। जहाँ भारतीय काकड़ में सबसे कम गुणसूत्र पाये जाते हैं: नर में ७ तथा मादा में सिर्फ़ ६, वहीं चीनी कांकड़ में ४६ गुणसूत्र होते हैं। .

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