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ऊँट

सूची ऊँट

ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते हैं। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में इक्कीस इक्कीस दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है। यह 7 दिन बिना पानी पिए रह सकता है ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमे दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है। एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच ऊपर तक बढ़ता है। ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है। जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू.

34 संबंधों: ऊँट, चमुर्थी घोड़ा, ऐलिस स्प्रिंग्स, तिमिगण, दुग्ध-उत्पाद, दुग्धशाला, पशुधन, पागुर, प्रतिरूपण, प्रोसियोनिडी, पृथ्वीराज चौहान, बलक़ानाबात, बेरिंजिया, भारत के पशुपक्षियों की बहुभाषीय सूची, भारतीय पशु और पक्षी, भाषाविज्ञान, मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा, राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, राजस्थान के पशु मेले, रोमंथक, लाल रक्त कोशिका, सम-ऊँगली खुरदार, ज़ीन, जिराफ़ तारामंडल, जीवाश्म, खुर, खुरदार, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर, इकसिंगा, क़सीम प्रान्त, कृषि, अफ़्रीका, अश्वनाल, १८६९ का राजपूताना अकाल

ऊँट

ऊँट कैमुलस जीनस के अंतर्गत आने वाला एक खुरधारी जीव है। अरबी ऊँट के एक कूबड़ जबकि बैकट्रियन ऊँट के दो कूबड़ होते हैं। अरबी ऊँट पश्चिमी एशिया के सूखे रेगिस्तान क्षेत्रों के जबकि बैकट्रियन ऊँट मध्य और पूर्व एशिया के मूल निवासी हैं। इसे रेगिस्तान का जहाज भी कहते हैं। यह रेतीले तपते मैदानों में इक्कीस इक्कीस दिन तक बिना पानी पिये चल सकता है। इसका उपयोग सवारी और सामान ढोने के काम आता है। यह 7 दिन बिना पानी पिए रह सकता है ऊँट शब्द का प्रयोग मोटे तौर पर ऊँट परिवार के छह ऊँट जैसे प्राणियों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, इनमे दो वास्तविक ऊँट और चार दक्षिण अमेरिकी ऊँट जैसे जीव है जो हैं लामा, अलपाका, गुआनाको और विकुना। एक ऊँट की औसत जीवन प्रत्याशा चालीस से पचास वर्ष होती है। एक पूरी तरह से विकसित खड़े वयस्क ऊंट की ऊँचाई कंधे तक 1.85 मी और कूबड़ तक 2.15 मी होती है। कूबड़ शरीर से लगभग तीस इंच ऊपर तक बढ़ता है। ऊँट की अधिकतम भागने की गति 65 किमी/घंटा के आसपास होती है तथा लम्बी दूरी की यात्रा के दौरान यह अपनी गति 40 किमी/घंटा तक बनाए रख सकता है। जीवाश्म साक्ष्यों से पता चलता है कि आधुनिक ऊँट के पूर्वजों का विकास उत्तरी अमेरिका में हुआ था जो बाद में एशिया में फैल गये। लगभग 2000 ई.पू.

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चमुर्थी घोड़ा

चमुर्थी घोड़ा, हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली घोड़े की एक प्रजाति है। इसे 'पहाड़ों का ऊँट' कहा जाता है। चमुर्थी घोड़े स्पीति की पीन वैली में अधिक पाये जाते हैं। इन घोड़ों की विशेष बात यह है कि ये घोड़े यहां की भौगोलिक स्थिति में ढले होते हैं। साथ ही इन घोड़ों की एक महत्त्वपूर्ण बात यह होती है कि ये बर्फ में उसी तरह चलते हैं, जिस तरह रेगिस्तान में ऊंट चलते हैं। यही कारण है कि इन चमुर्थी घोड़ों की मांग दिन व दिन बढ़ती जा रही है। .

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ऐलिस स्प्रिंग्स

ऐलिस स्प्रिंग्स (Alice Springs), जिसका अरंडा नामक ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी भाषा में मूल नाम म्पारंट्वे (Mparntwe) है, ऑस्ट्रेलिया के नॉर्थर्न टेरिटरी प्रशासनिक क्षेत्र का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। यह लगभग ठीक ऑस्ट्रेलिया के भौगोलिक केन्द्र-स्थान में स्थित है। ऐलिस स्प्रिंग्स एक शुष्क क्षुपभूमि इलाक़ा है। यह मैकडॉनेल्ड पहाड़ियों के उत्तर में टॉड नदी के किनारे बसा हुआ है, हालांकि यह नदी वर्ष के अधिकांश भाग में सूखी ही होती है। .

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तिमिगण

तिमिगण (अंग्रेज़ी: Cetacea, सीटेशिया) विश्व भर के सागरों में विस्तृत एक मांसाहारी, फ़िन-धारी, समुद्री स्तनधारी प्राणी जातियों का क्लेड (जीववैज्ञानिक समूह) है। यह ओडोन्टोसेटाए (Odontoceti, दंतदार तिमि, जिनमें डॉलफ़िन शामिल है), मिस्टीसेटाए (Mysticeti, बैलीन तिमि) और आर्केओसेटाए (Archaeoceti, जो आधुनिक तिमि के पूर्वज थे और जिसके सदस्य विलुप्त हो चुके हैं) नामक जीववैज्ञानिक गणों में विभाजित हैं। कुल मिलाकर इस क्लेड में ८९ जातियाँ ज्ञात हैं जिनमें से ७० से अधिक ओडोन्टोसेटाए गण के भाग हैं। आणविक अनुवांशिक अध्ययन के आधार पर पता लगा है कि यह जातियाँ सम-ऊँगली खुरदार जानवरों की सम्बन्धी हैं। दरियाई घोड़ा इनका सबसे समीपी जीवित सम्बन्धी है और यह ऊँट, सूअर और अन्य रोमन्थक से भी सम्बन्धित है और इसके पूर्वज लगभग ५ करोड़ वर्ष पूर्व उनसे क्रम-विकास की प्रक्रिया द्वारा धीरे-धीरे अलग होते चले गये। .

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दुग्ध-उत्पाद

दुग्ध-उत्पाद दुग्ध-उत्पाद (दुग्धोत्पाद) या डेयरी उत्पाद से अभिप्राय उन खाद्य वस्तुओं से है जो दूध से बनती हैं। यह आम तौर पर उच्च ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ होते हैं। इन उत्पादों का उत्पादन या प्रसंस्करण करने वाले संयंत्र को डेयरी या दुग्धशाला कहा जाता है। भारत में इनके प्रसंस्करण के लिए कच्चा दूध आम तौर गाय या भैंसों से लिया जाता है, लेकिन यदा कदा अन्य स्तनधारियों जैसे बकरी, भेड़, ऊँट, जलीय भैंस, याक, या घोड़ों का दूध भी कई देशों में प्रयुक्त होता है। दुग्ध-उत्पाद सामान्यतः यूरोप, मध्य पूर्व और भारतीय भोजन का मुख्य हिस्सा हैं, जबकि पूर्वी एशियाई भोजन में इनका प्रयोग न के बराबर होता है। .

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दुग्धशाला

एक दुग्धशाला दुग्धशाला या डेरी में पशुओं का दूध निकालने तथा तत्सम्बधी अन्य व्यापारिक एवं औद्योगिक गतिविधियाँ की जाती हैं। इसमें प्रायः गाय और भैंस का दूध निकाला जाता है किन्तु बकरी, भेड़, ऊँट और घोड़ी आदि के भी दूध निकाले जाते हैं। .

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पशुधन

घरेलू भेड़ और एक गाय (बछिया) दक्षिण अफ्रीका में एक साथ चराई करते हुए एक या अधिक पशुओं के समूह को, जिन्हें कृषि सम्बन्धी परिवेश में भोजन, रेशे तथा श्रम आदि सामग्रियां प्राप्त करने के लिए पालतू बनाया जाता है, पशुधन के नाम से जाना जाता है। शब्द पशुधन, जैसा कि इस लेख में प्रयोग किया गया है, में मुर्गी पालन तथा मछली पालन सम्मिलित नहीं है; हालांकि इन्हें, विशेष रूप से मुर्गीपालन को, साधारण रूप से पशुधन में सम्मिलित किया जाता हैं। पशुधन आम तौर पर जीविका अथवा लाभ के लिए पाले जाते हैं। पशुओं को पालना (पशु-पालन) आधुनिक कृषि का एक महत्वपूर्ण भाग है। पशुपालन कई सभ्यताओं में किया जाता रहा है, यह शिकारी-संग्राहक से कृषि की ओर जीवनशैली के अवस्थांतर को दर्शाता है। .

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पागुर

पागुर करती हुई गाय पागुर (Rumination) कुछ जानवरों के द्वारा की जाने वाली एक क्रिया है जो उनके भोजन के पाचन की प्रक्रिया का एक भाग है। ये जानवर निगले हुए भोजन (घास, भूसा आदि) को आमाशय से पुनः अपने मुंह में लाते हैं, उसे चबाते हैं और फिर उसे वापस पेट में भेज देते हैं। स्तनधारी प्राणियों की लगभग १५० प्रजातियाँ पागुर करती हैं। पागुर करके ये पशु चारे को और छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट देते हैं जिससे भोजन का पाचन आसानी से हो जाता है। पागुर की प्रक्रिया जानवरों के लिये इसलिये उपयोगी है कि भोजन मिलने पर ये जानवर तीव्रता से इसे ग्रहण कर लेते हैं और समय पाकर आराम से पागुर के द्वारा उसे चबाते हैं। बकरी, भेड़, जिर्राफ, याक, भैंस, गाय, ऊँट, हिरन, नीलगाय आदि कुछ पशु हैं जो पागुर करते हैं। श्रेणी:पाचन.

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प्रतिरूपण

समुद्र एनेमोन, प्रतिरूपण की प्रक्रिया में अन्थोप्लयूरा एलेगंटिस्सिमा जीव-विज्ञान में प्रतिरूपण, आनुवांशिक रूप से समान प्राणियों की जनसंख्या उत्पन्न करने की प्रक्रिया है, जो प्रकृति में विभिन्न जीवों, जैसे बैक्टीरिया, कीट या पौधों द्वारा अलैंगिक रूप से प्रजनन करने पर घटित होती है। जैव-प्रौद्योगिकी में, प्रतिरूपण डीएनए खण्डों (आण्विक प्रतिरूपण), कोशिकाओं (सेल क्लोनिंग) या जीवों की प्रतिरूप निर्मित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। यह शब्द किसी उत्पाद, जैसे डिजिटल माध्यम या सॉफ्टवेयर की अनेक प्रतियां निर्मित करने की प्रक्रिया को भी सूचित करता है। क्लोन शब्द κλών से लिया गया है, "तना, शाखा" के लिये एक ग्रीक शब्द, जो उस प्रक्रिया को सूचित करता है, जिसके द्वारा एक टहनी से कोई नया पौधा निर्मित किया जा सकता है। उद्यानिकी में बीसवीं सदी तक clon वर्तनी का प्रयोग किया जाता था; अंतिम e का प्रयोग यह बताने के लिये शुरू हुआ कि यह स्वर एक "संक्षिप्त o" नहीं, वल्कि एक "दीर्घ o" है। चूंकि इस शब्द ने लोकप्रिय शब्दकोश में एक अधिक सामान्य संदर्भ के साथ प्रवेश किया, अतः वर्तनी clone का प्रयोग विशिष्ट रूप से किया जाता है। .

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प्रोसियोनिडी

प्रोसियोनिडी (Procyonidae) मांसाहारी गण के जानवरों का एक कुल जो उत्तर अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं। इनमें रैकून, कोआटी, किंकाजू, ओलिंगो, छल्ला-दुम और काकोमिसल शामिल हैं। .

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पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान (भारतेश्वरः पृथ्वीराजः, Prithviraj Chavhan) (सन् 1178-1192) चौहान वंश के हिंदू क्षत्रिय राजा थे, जो उत्तर भारत में १२ वीं सदी के उत्तरार्ध में अजमेर (अजयमेरु) और दिल्ली पर राज्य करते थे। वे भारतेश्वर, पृथ्वीराजतृतीय, हिन्दूसम्राट्, सपादलक्षेश्वर, राय पिथौरा इत्यादि नाम से प्रसिद्ध हैं। भारत के अन्तिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज १२३५ विक्रम संवत्सर में पंद्रह वर्ष (१५) की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ हुए। पृथ्वीराज की तेरह रानीयाँ थी। उन में से संयोगिता प्रसिद्धतम मानी जाती है। पृथ्वीराज ने दिग्विजय अभियान में ११७७ वर्ष में भादानक देशीय को, ११८२ वर्ष में जेजाकभुक्ति शासक को और ११८३ वर्ष में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित किया। इन्हीं वर्षों में भारत के उत्तरभाग में घोरी (ग़ोरी) नामक गौमांस भक्षण करने वाला योद्धा अपने शासन और धर्म के विस्तार की कामना से अनेक जनपदों को छल से या बल से पराजित कर रहा था। उसकी शासन विस्तार की और धर्म विस्तार की नीत के फलस्वरूप ११७५ वर्ष से पृथ्वीराज का घोरी के साथ सङ्घर्ष आरंभ हुआ। उसके पश्चात् अनेक लघु और मध्यम युद्ध पृथ्वीराज के और घोरी के मध्य हुए।विभिन्न ग्रन्थों में जो युद्ध सङ्ख्याएं मिलती है, वे सङ्ख्या ७, १७, २१ और २८ हैं। सभी युद्धों में पृथ्वीराज ने घोरी को बन्दी बनाया और उसको छोड़ दिया। परन्तु अन्तिम बार नरायन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात् घोरी ने पृथ्वीराज को बन्दी बनाया और कुछ दिनों तक 'इस्लाम्'-धर्म का अङ्गीकार करवाने का प्रयास करता रहा। उस प्रयोस में पृथ्वीराज को शारीरक पीडाएँ दी गई। शरीरिक यातना देने के समय घोरी ने पृथ्वीराज को अन्धा कर दिया। अन्ध पृथ्वीराज ने शब्दवेध बाण से घोरी की हत्या करके अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहा। परन्तु देशद्रोह के कारण उनकी वो योजना भी विफल हो गई। एवं जब पृथ्वीराज के निश्चय को परिवर्तित करने में घोरी अक्षम हुआ, तब उसने अन्ध पृथ्वीराज की हत्या कर दी। अर्थात्, धर्म ही ऐसा मित्र है, जो मरणोत्तर भी साथ चलता है। अन्य सभी वस्तुएं शरीर के साथ ही नष्ट हो जाती हैं। इतिहासविद् डॉ.

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बलक़ानाबात

बलक़ानाबात बलक़ान दाग़लरी नामक पर्वत शृंखला के समीप बसा हुआ है बलक़ानाबात (तुर्कमेनी: Балканабат; अंग्रेज़ी: Balkanabat; फ़ारसी:, बलख़ानाबाद), जिसका पुराना नाम 'नेबित दाग़' (Nebit Dag) था, तुर्कमेनिस्तान के बलक़ान प्रांत की राजधानी है। सन् २००६ की जनगणना में इसकी आबादी ८७,८२२ थी। यह शहर तुर्कमेनिस्तान के पश्चिम में उस देश की राष्ट्रीय राजधानी अश्क़ाबाद से गाड़ी द्वारा ४ घंटे की दूरी पर स्थित है। यह कैस्पियन सागर पर बसे तुर्कमेनबाशी बंदरगाह शहर से २ घंटे दूर है। .

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बेरिंजिया

हिमयुग अंत होने पर बेरिंग ज़मीनी पुल धीरे-धीरे समुद्र के नीचे डूब गया अपने चरम पर बेरिंजिया का क्षेत्र (हरे रंग की लकीर के अन्दर) काफ़ी विशाल था हाथी-नुमा मैमथ बेरिजिंया में रहते थे और उस के ज़रिये एशिया से उत्तर अमेरिका भी पहुँचे बेरिंग ज़मीनी पुल (Bering land bridge) या बेरिंजिया (Beringia) एक ज़मीनी पुल था जो एशिया के सुदूर पूर्वोत्तर के साइबेरिया क्षेत्र को उत्तर अमेरिका के सुदूर पश्चिमोत्तर अलास्का क्षेत्र से जोड़ता था। इस धरती के पट्टे की चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक लगभग १,६०० किमी (१,००० मील) थी यानि इसका क्षेत्रफल काफ़ी बड़ा था। पिछले हिमयुग के दौरान समुद्रों का बहुत सा पानी बर्फ़ के रूप में जमा हुआ होने से समुद्र-तल आज से नीचे था जिस वजह से बेरिंजिया एक ज़मीनी क्षेत्र था। हिमयुग समाप्त होने पर बहुत सी यह बर्फ़ पिघली, समुद्र-तल उठा और बेरिंजिया समुद्र के नीचे डूब गया। जब बेरिंजिया अस्तित्व में था तो क्षेत्रीय मौसम अनुकूल होने की वजह से यहाँ बर्फ़बारी कम होती थी और वातावरण मध्य एशिया के स्तेपी मैदानों जैसा था। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय कुछ मानव समूह एशिया से आकर यहाँ बस गए। वह बेरिंजिया से आगे उत्तर अमेरिका में दाख़िल नहीं हो पाए क्योंकि आगे भीमकाय हिमानियाँ (ग्लेशियर) उनका रास्ता रोके हुए थीं। इसके बाद बेरिंजिया और एशिया के बीच भी एक बर्फ़ की दीवार खड़ी होने से बेरिंजिया पर चंद हज़ार मानव लगभग ५,००० सालों तक अन्य मानवों से बिना संपर्क के हिमयुग के भयंकर प्रकोप से बचे रहे। आज से क़रीब १६,५०० वर्ष पहले हिमानियाँ पिघलने लगी और वे उत्तर अमेरिका में प्रवेश कर गए। लगभग उसी समय के आसपास बेरिंजिया भी पानी में डूबने लगा और आज से क़रीब ६,००० वर्ष पहले तक तटों के रूप वैसे हो गए जैसे कि आधुनिक युग में देखे जाते हैं। .

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भारत के पशुपक्षियों की बहुभाषीय सूची

भारत के पशुपक्षियों के नाम अलग-अलग भारतीय भाषाओं में भिन्न-भिन्न हैं। .

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भारतीय पशु और पक्षी

भारत विशाल देश है। इसमें पशु-पक्षी भी नाना प्रकार, रंग रूप तथा गुणों के पाए जाते हैं। कुछ बृहदाकार हैं तो कुछ सूक्ष्माकार। भारत के प्राचीन ग्रथों में पशुपक्षियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। उस समय उनका अधिक महत्व उनके मांस के कारण था। अत: आयुर्वेदिक ग्रंथों में उनका विशेष उल्लेख मिलता है। .

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भाषाविज्ञान

भाषाविज्ञान भाषा के अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भाषा की उत्पत्ति, स्वरूप, विकास आदि का वैज्ञानिक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। भाषा विज्ञान के अध्ययेता 'भाषाविज्ञानी' कहलाते हैं। भाषाविज्ञान, व्याकरण से भिन्न है। व्याकरण में किसी भाषा का कार्यात्मक अध्ययन (functional description) किया जाता है जबकि भाषाविज्ञानी इसके आगे जाकर भाषा का अत्यन्त व्यापक अध्ययन करता है। अध्ययन के अनेक विषयों में से आजकल भाषा-विज्ञान को विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। .

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मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा

200px यह पशु मेला भारतीय राज्य राजस्थान के बाड़मेर ज़िले में आयोजित होता है। यह मेला वीर योद्धा रावल मल्लीनाथ की स्मृति में आयोजित होता है। विक्रम संवत १४३१ में मलीनाथ के गद्दी पर आसीन होने के शुभ अवसर पर एक विशाल समारोह का आयोजन किया गया था जिसमें दूर-दूर से हजारों लोग शामिल हुए। आयोजन की समाप्ति पर लौटने के पहले इन लोगों ने अपनी सवारी के लिए ऊंट, घोड़ा और रथों के सुडौल बैलों का आपस में आदान-प्रदान किया तथा यहीं से इस मेले का उद्भव हुआ। इस मेले का संचालन पशुपालन विभाग ने सन १९५८ में संभाला। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र बुदी ग्यारस से चैत्र सुदी ग्यारस तक बाड़मेर जिले के पचपदरा तहसील के के तिलवाड़ा गांव में लूनी नदी पर लगता है इस पशु मेले में सांचोर की नस्ल के बैलों के अलावा बड़ी संख्या में मालानी नस्ल के घोड़े और ऊंठ की भी बिक्री होती है। .

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राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र

राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र बीकानेर में है। यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) का एक प्रमुख अनुसंधान केन्‍द्र है जो कि कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्‍वायत संस्‍था है। .

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राजस्थान के पशु मेले

भारतीय राज्य राजस्थान में सभी जिलों और ग्रामीण स्तर पर लगभग 250 से अधिक पशु मेला का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है। कला, संस्कृति, पशुपालन और पर्यटन की दृष्टि से यह मेले अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। देश विदेश के हजारों लाखों पर्यटक इसके माध्यम से लोक कला एवं ग्रामीण संस्कृति से रूबरू होते हैं। राज्य स्तरीय पशु मेलों के आयोजनों में नगरपालिका और ग्राम पंचायतों की ओर से पशुपालकों को पानी, बिजली पशु चिकित्सा व टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार की ओर से इन मेलों में समय-समय पर प्रदर्शनी और अन्य ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। राजस्थान राज्य स्तरीय पशु मेला में अधिकांश मेले लोक देवी देवताओं एवं महान पुरुषों के नाम से जुड़े हुए हैं पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले राज्य स्तरीय पशु मेले कुछ इस प्रकार है। .

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रोमंथक

कड़ी.

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लाल रक्त कोशिका

मानव की लाल रुधिर कणिकाओं का परिवर्धित दृश्य लाल रक्त कोशिका (red blood cells), रक्त की सबसे प्रमुख कोशिका है। यह रीढ़धारी जन्तुओं के श्वसन अंगो से आक्सीजन लेकर उसे शरीर के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं तक पहुंचाने का सबसे सहज और व्याप्त माध्यम है। इस कोशिका में केन्द्रक नहीं होता है। इसकी औसत आयु १२० दिन की है।.

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सम-ऊँगली खुरदार

द्विखुरीयगणों के खुर द्विखुरीयगण या सम-ऊँगली खुरदार (आर्टियोडैक्टाइला, Artiodactyla) गाय, भैंस, सूअर, बकरी, ऊँट, हरिण आदि स्तनियों (mammals) का गण है, जिनमें गर्भनाल (placents), पैर पर सम संख्या की अँगुलियाँ तथा खुर होते हैं। इस गण में खरगोश से लेकर भैंस और दरियाई घोड़े जैसे भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के प्राणी सम्मिलित हैं। .

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ज़ीन

ज़ीन किसी जानवर की पीठ पर सवारी करने या बोझ ढोने के लिये पहनाई जाने वाली चीज़ को कहते हैं। यह अक्सर चमड़े या कपड़े की बनी होती है और जानवर के पेट व छाती पर कसी जाने वाली पट्टीयों से उसकी पीठ पर स्थाई रहती है। यह घोड़े, ऊँट, हाथी, गधे और खच्चर जैसे जानवरों को पहनाई जाती है। अगर इसका प्रयोग सवारी के लिये किया जा रहा हो तो अक्सर नीचे पाँव टिकाने के लिये रकाब भी लगे होते हैं। ज़ीन को कभी-कभी काठी भी कहते हैं लेकिन ध्यान दें कि काठी शब्द के अन्य अर्थ भी होते हैं। ऊँट की ज़ीन को कजावा भी कहा जाता है। .

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जिराफ़ तारामंडल

जिराफ़ तारामंडल जिराफ़ या कमॅलपार्डलिस (अंग्रेज़ी: Camelopardalis) खगोलीय गोले के उत्तरी भाग में स्थित एक अकार में बड़ा लेकिन धुंधला-सा तारामंडल है। इसकी परिभाषा सन् १६१२ या १६१३ में पॅट्रस प्लैंकियस (Petrus Plancius) नामक डच खगोलशास्त्री ने की थी। इसका अंग्रेज़ी नाम दो हिस्सों का बना है: कैमल (यानि ऊँट) और लेपर्ड (यानि धब्बों वाला तेंदुआ)। लातिनी में कैमलेपर्ड का मतलब था "वह ऊँट जिसपर तेंदुएँ जैसे धब्बे हों", यानि की जिराफ़। .

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जीवाश्म

एक जीवाश्म मछली पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म .

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खुर

एक हिरन के खुर ऊँट के खुर खुर (hoof) कुछ स्तनधारी जानवरों के पाऊँ की उँगलियों के उस अंतिम भाग को कहा जाता है जो उनका भार उठाए और केराटिन नामक नाखून-जैसी सख़्त​ चीज़ से ढका हो।खुर को सूम भी कहते है। खुर वाले पशुओं को खुरदार या अंग्युलेट (ungulate) कहा जाता है और इनमें बहुत से जाने-पहचाने जानवर शामिल हैं जैसे कि घोड़ा, गधा, ज़ेब्रा, गाय, गेंडा, ऊँट, दरियाई घोड़ा, सूअर, बकरी, तापीर, हिरन, जिराफ़, ओकापी, साइगा और रेनडियर। खुर का किनारा और अंदरूनी भाग दोनों पशु का भार उठाते हैं।, Colin Tudge, Simon and Schuster, 1997, ISBN 978-0-684-83052-0,...

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खुरदार

लामा एक खुरदार जानवर है, जो आर्टियोडैकटिला (सम-ऊँगली खुरदार) श्रेणी में आता है - लामाओं के खुरों में दो उंगलियाँ होती हैं खुरदार या अंग्युलेट (ungulate) ऐसे स्तनधारी जानवरों को कहा जाता है जो चलते समय अपना भार अपने पाऊँ की उँगलियों के अंतिम भागों पर उठाते हैं। यह भार सहन करने के लिए ऐसे पशुओं के पाऊँ अक्सर खुरों के रूप में होते हैं।, Colin Tudge, Simon and Schuster, 1997, ISBN 978-0-684-83052-0,...

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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इकसिंगा

इकसिंगा या यूनिकॉर्न (जो लैटिन शब्दों - unus (यूनस) अर्थात् 'एक' एवं cornu (कॉर्नू) अर्थात् 'सींग' से बना है) एक पौराणिक प्राणी है। हालांकि इकसिंगे का आधुनिक लोकप्रिय छवि कभी-कभी एक घोड़े की छवि की तरह प्रतीत होता है जिसमें केवल एक ही अंतर है कि इकसिंगे के माथे पर एक सींग होता है, लेकिन पारंपरिक इकसिंगे में एक बकरे की तरह दाढ़ी, एक सिंह की तरह पूंछ और फटे खुर भी होते हैं जो इसे एक घोड़े से अलग साबित करते हैं। मरियाना मेयर (द यूनिकॉर्न एण्ड द लेक) के अनुसार, "इकसिंगा एकमात्र ऐसा मनगढ़ंत पशु है जो शायद मानवीय भय की वजह से प्रकाश में नहीं आया है। यहां तक कि आरंभिक संदर्भों में भी इसे उग्र होने पर भी अच्छा, निस्वार्थ होने पर भी एकांतप्रिय, साथ ही रहस्यमयी रूप से सुंदर बताया गया है। उसे केवल अनुचित तरीके से ही पकड़ा जा सकता था और कहा जाता था कि उसके एकमात्र सींग में ज़हर को भी बेअसर करने की ताकत थी।", Geocities.com .

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क़सीम प्रान्त

उनैज़ाह शहर का एक दृश्य क़सीम प्रान्त, जिसे औपचारिक अरबी में मिन्तक़ाह​ अल-क़सीम कहते हैं, सउदी अरब के मध्य नज्द क्षेत्र में स्थित प्रान्त है। इसकी राजधानी बुरैदाह शहर है और सन् २००४ में ४९% प्रांतीय आबादी इसी शहर में रहती थी। .

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कृषि

कॉफी की खेती कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान के उत्पादन से संबंधित है। कृषि एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के उदय का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और पौधों (फसलों) को उगाया गया, जिससे अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। इसने अधिक घनी आबादी और स्तरीकृत समाज के विकास को सक्षम बनाया। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप में जाना जाता है तथा इसी से संबंधित विषय बागवानी का अध्ययन बागवानी (हॉर्टिकल्चर) में किया जाता है। तकनीकों और विशेषताओं की बहुत सी किस्में कृषि के अन्तर्गत आती है, इसमें वे तरीके शामिल हैं जिनसे पौधे उगाने के लिए उपयुक्त भूमि का विस्तार किया जाता है, इसके लिए पानी के चैनल खोदे जाते हैं और सिंचाई के अन्य रूपों का उपयोग किया जाता है। कृषि योग्य भूमि पर फसलों को उगाना और चारागाहों और रेंजलैंड पर पशुधन को गड़रियों के द्वारा चराया जाना, मुख्यतः कृषि से सम्बंधित रहा है। कृषि के भिन्न रूपों की पहचान करना व उनकी मात्रात्मक वृद्धि, पिछली शताब्दी में विचार के मुख्य मुद्दे बन गए। विकसित दुनिया में यह क्षेत्र जैविक खेती (उदाहरण पर्माकल्चर या कार्बनिक कृषि) से लेकर गहन कृषि (उदाहरण औद्योगिक कृषि) तक फैली है। आधुनिक एग्रोनोमी, पौधों में संकरण, कीटनाशकों और उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है और साथ ही यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक क्षति का कारण भी बना है और इसने मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। चयनात्मक प्रजनन और पशुपालन की आधुनिक प्रथाओं जैसे गहन सूअर खेती (और इसी प्रकार के अभ्यासों को मुर्गी पर भी लागू किया जाता है) ने मांस के उत्पादन में वृद्धि की है, लेकिन इससे पशु क्रूरता, प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) दवाओं के स्वास्थ्य प्रभाव, वृद्धि हॉर्मोन और मांस के औद्योगिक उत्पादन में सामान्य रूप से काम में लिए जाने वाले रसायनों के बारे में मुद्दे सामने आये हैं। प्रमुख कृषि उत्पादों को मोटे तौर पर भोजन, रेशा, ईंधन, कच्चा माल, फार्मास्यूटिकल्स और उद्दीपकों में समूहित किया जा सकता है। साथ ही सजावटी या विदेशी उत्पादों की भी एक श्रेणी है। वर्ष 2000 से पौधों का उपयोग जैविक ईंधन, जैवफार्मास्यूटिकल्स, जैवप्लास्टिक, और फार्मास्यूटिकल्स के उत्पादन में किया जा रहा है। विशेष खाद्यों में शामिल हैं अनाज, सब्जियां, फल और मांस। रेशे में कपास, ऊन, सन, रेशम और सन (फ्लैक्स) शामिल हैं। कच्चे माल में लकड़ी और बाँस शामिल हैं। उद्दीपकों में तम्बाकू, शराब, अफ़ीम, कोकीन और डिजिटेलिस शामिल हैं। पौधों से अन्य उपयोगी पदार्थ भी उत्पन्न होते हैं, जैसे रेजिन। जैव ईंधनों में शामिल हैं मिथेन, जैवभार (बायोमास), इथेनॉल और बायोडीजल। कटे हुए फूल, नर्सरी के पौधे, उष्णकटिबंधीय मछलियाँ और व्यापार के लिए पालतू पक्षी, कुछ सजावटी उत्पाद हैं। 2007 में, दुनिया के लगभग एक तिहाई श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत थे। हालांकि, औद्योगिकीकरण की शुरुआत के बाद से कृषि से सम्बंधित महत्त्व कम हो गया है और 2003 में-इतिहास में पहली बार-सेवा क्षेत्र ने एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में कृषि को पछाड़ दिया क्योंकि इसने दुनिया भर में अधिकतम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया। इस तथ्य के बावजूद कि कृषि दुनिया के आबादी के एक तिहाई से अधिक लोगों की रोजगार उपलब्ध कराती है, कृषि उत्पादन, सकल विश्व उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद का एक समुच्चय) का पांच प्रतिशत से भी कम हिस्सा बनता है। .

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अफ़्रीका

अफ़्रीका वा कालद्वीप, एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14' उत्तरी अक्षांश से 34°50' दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33' पश्चिमी देशान्तर से 51°23' पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिन्द महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। .

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अश्वनाल

अश्वनाल (horseshoe) धातु या सख़्त प्लास्टिक का बना एक चपटा आकार होता है जिसे घोड़ों के खुरों को पत्थरों, सड़कों व अन्य कठोर स्थानों पर चलते हुए या भार ढोते हुए सुरक्षित रखने के लिए उनके खुरों के नीचे कीलों से लगाया जाता है। खुर केराटिन के बने होते हैं और उनमें कोई स्पर्शबोध नहीं होता इसलिए प्राणी को इस से कोई चोट या पीढ़ा नहीं होती बल्कि उसका खुर घिसने या टूटने से बचा रहता है। कभी-कभी इसे कील से जोड़ने की बजाए एक मज़बूत गोंद से भी चिपकाया जाता है। इसे कभी-कभी घुड़नाल भी कहते हैं हालांकि ध्यान दें कि पारम्परिक रूप से "घुड़नाल" वास्तव में घोड़े की पीठ पर रख के चलाई जाने वाली एक प्रकार की तोप हुआ करती थी (इसी प्रकार ऊँट की पीठ पर "शतुरनाल" और हाथी की पीठ पर "गजनाल" हुआ करती थीं)। .

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१८६९ का राजपूताना अकाल

१८६९ का राजपूताना अकाल जिसे ग्रेट राजपूताना अकाल भी कहा जाता है इसके अलावा हम इस अकाल को बुंदेलखंड अकाल भी कह सकते हैं 'ये अकाल १८६९ में पड़ा था ' इसमें १९६.००० वर्ग मील (७७०,००० किलोमीटर) प्रभावित हुए थे तथा उस वक्त की जनसंख्या लगभग ४४,५००,००० जिसमें मुख्य रूप से राजपूताना,अजमेर,भारत प्रभावित हुआ था ' इनके अलावा गुजरात,उत्तरी डेक्कन ज़िले,जबलपुर संभाग,आगरा और बुंदेलखंड संभाग और पंजाब का हिसार संभाग भी काफी प्रभावित हुए थे ' .

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