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वियना कांग्रेस

सूची वियना कांग्रेस

वियना कांग्रेस (Jean-Baptiste Isabey द्वारा निर्मित चित्र, 1819) वियना की कांग्रेस (Viena Congress) यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था, जो सितंबर 1814 से जून 1815 को वियना में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की। कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध और पवित्र रोमन साम्राज्य के विघटन से उत्पन्न होने वाले कई मुद्दों एवं समस्याओं को हल करने का था। नैपोलियन को वाटरलू की पराजय के पश्चात् सेंट हेलेना द्वीप निर्वासित कर दिया गया, तत्पश्चात् आस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूरोप की विजयी शक्तियां 1815 में एकत्रित हुई। उद्देश्य था, यूरोप के उस मानचित्र को पुनर्व्यवस्थित करना जिसे नेपोलियन ने अपने युद्ध और विजयों से उलट-पटल दिया था। वस्तुतः आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने नेपोलियन के विरूद्ध मोर्चा बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसीलिए उसकी पहल पर आस्ट्रिया की राजधानी वियना में कांगे्रस बुलाई गई थी। इस सम्मेलन में यूरोप के कई छोटे-छोटे देश शामिल हुए किन्तु नीति निर्माण के संबंध में चार मुख्य देशों के प्रतिनिधियों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। ये नेता थे- आस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिक, रूस का जार एलेक्जेंडर, इंग्लैंड का विदेश मंत्री लॉर्ड कैसलरे तथा फ्रांसीसी विदेश मंत्री तैलरा। .

17 संबंधों: पवित्र संघ, पूर्वी समस्या, फ़्रैंकफ़र्ट, फ्रांस की द्वितीय क्रांति (१८३०), फ्रांस की क्रांति (१८४८), भारतीय राजनय का इतिहास, मिलानो, मेटरनिख, यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय, राजनय, राजनयिक दूत, लाइपत्सिग का युद्ध, जर्मनी का एकीकरण, वुडरो विल्सन, इतालवी एकीकरण, कांग्रेस, केमिल बेंसो कावूर

पवित्र संघ

पवित्र संघ (Holy Alliance; जर्मन: Heilige Allianz; रूसी: Священный союз, Svyashchennyy soyuz) की स्थापना नेपोलियन बोनापार्ट की अन्तिम पराजय के बाद २६ सितम्बर १८१५ को रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशा के राजाओं ने मिलकर की थी। इसमें रूस के जार अलेक्सांदर प्रथम की अग्रणी भूमिका थी। .

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पूर्वी समस्या

राजनय के इतिहास में पूर्वी समस्या या प्राच्य समस्या (Eastern Question) से आशय उस्मानी साम्राज्य के कमजोर होने पर यूरोप की महाशक्तियों के बीच उपजे रणनीतिक स्पर्धा एवं राजनैतिक स्थिति से है। १८वीं शताब्दी के अन्त से लेकर २०वीं शताब्दी के अन्त तक उस्मानी साम्राज्य राजनैतिक एवं आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा था। इसे 'यूरोप का रोगी' (sick man of Europe) कहते थे। 'पूर्वी समस्या' के अन्तर्गत एक-दूसरे से जुड़ी अनेकों समस्याएँ थीं, जैसे उस्मानी साम्राज्य की सैनिक पराजय, संस्थानों का दिवाला, उस्मानी साम्राज्य के राजनैतिक एवं आर्थिक आधुनीकरण का अभाव, प्रान्तों में सामाजिक-धार्मिक राष्ट्रीयता का उदय, तथा महाशक्तियों की आपसी प्रतिद्वन्द्विता। पूर्वी समस्या यूरोप के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित तुर्की साम्राज्य की ईसाई जनता की आजादी की समस्या थी। वस्तुतः पतनोन्मुख तुर्की साम्राज्य ने यूरोप के इतिहास में 19वीं शताब्दी में जिस समस्या को जन्म दिया उसे पूर्वी समस्या कहते हैं। यह बहुत ही जटिल, उलझी हुई तथा विभिन्न देशों के परस्पर विरोधी हितों से सम्बन्धित थी। इस समस्या ने प्रथम युद्ध की पृष्ठभूमि का कार्य किया। इतिहासकार सी.डी.

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फ़्रैंकफ़र्ट

फ्रैंकफर्ट ऐम माइन,, जर्मन राज्य हेस का सबसे बड़ा शहर और जर्मनी का पांचवाँ सबसे बड़ा शहर है। इसे प्रायः केवल फ्रैंकफर्ट के नाम से जाना जाता है। इसकी जनसंख्या 2009 में 667,330 थी। 2010 में शहरी क्षेत्र में 2,296,000 आबादी का अनुमान लगाया गया था। यह शहर फ्रैंकफर्ट-राइन-मैन मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र के हृदयस्थल में है, जिसकी आबाद 5,600,000 है, और जर्मनी का दूसरा सबसे बड़ा मेट्रॅपॉलिटन क्षेत्र है। यह शहर मेन नदी के तट पर पुराने घाट पर अवस्थित है। जर्मन भाषा में मेन नदी को "फर्ट" कहते है। फ्रैंकफर्ट प्राचीन फ्रैंकोनिया का हिस्सा है, जो कि प्राचीन फ्रैंकों का निवास स्थल था। इसलिए फ्रैंको के घाट के रूप में इनकी विरासत के कारण शहर का नाम पड़ा.

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फ्रांस की द्वितीय क्रांति (१८३०)

सन १८३० की फ्रांसीसी क्रान्ति के परिणामस्वरूप वहाँ के राजा चार्ल्स दशम को पदच्युत कर दिया गया और उसका चचेरा भाई लुई फिलिप गद्दी पर बैठा। इस क्रांति का प्रभाव यूरोप के अन्य राज्यों पर भी पड़ा और यूरोप का राजनैतिक वातावरण पुनः क्रांतिकारी हो गया। बेल्जियम, जर्मनी, इटली और पौलैण्ड आदि देशों में क्रांतियों भड़क उठीं। १८ वर्ष बाद १८४८ में लुई फिलिप भी गद्दी से हटा दिया गया। इसे 'जुलाई क्रान्ति' भी कहते हैं। .

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फ्रांस की क्रांति (१८४८)

सन १८४८ में पूरे यूरोप में क्रान्ति की तरंग छायी हुई थी। १८४८ की फ्रांस की क्रान्ति के फलस्वरूप ओर्लियन राजतन्त्र (१८३०-४८) का अन्त हुआ तथा द्वितीय फ्रांसीसी गणतंत्र की स्थापना हुई। .

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भारतीय राजनय का इतिहास

यद्यपि भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि वह एक छत्र शासक के अन्तर्गत न रहकर विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित रहा था तथापि राजनय के उद्भव और विकास की दृष्टि से यह स्थिति अपना विशिष्ट मूल्य रखती है। यह दुर्भाग्य उस समय और भी बढ़ा जब इन राज्यों में मित्रता और एकता न रहकर आपसी कलह और मतभेद बढ़ते रहे। बाद में कुछ बड़े साम्राज्य भी अस्तित्व में आये। इनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध थे। एक-दूसरे के साथ शांति, व्यापार, सम्मेलन और सूचना लाने ले जाने आदि कार्यों की पूर्ति के लिये राजा दूतों का उपयोग करते थे। साम, दान, भेद और दण्ड की नीति, षाडगुण्य नीति और मण्डल सिद्धान्त आदि इस बात के प्रमाण हैं कि इस समय तक राज्यों के बाह्य सम्बन्ध विकसित हो चुके थे। दूत इस समय राजा को युद्ध और संधियों की सहायता से अपने प्रभाव की वृद्धि करने में सहायता देते थे। भारत में राजनय का प्रयोग अति प्राचीन काल से चलता चला आ रहा है। वैदिक काल के राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में हमारा ज्ञान सीमित है। महाकाव्य तथा पौराणिक गाथाओं में राजनयिक गतिविधियों के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। प्राचीन भारतीय राजनयिक विचार का केन्द्र बिन्दु राजा होता था, अतः प्रायः सभी राजनीतिक विचारकों- कौटिल्य, मनु, अश्वघोष, बृहस्पति, भीष्म, विशाखदत्त आदि ने राजाओं के कर्तव्यों का वर्णन किया है। स्मृति में तो राजा के जीवन तथा उसका दिनचर्या के नियमों तक का भी वर्णन मिलता है। राजशास्त्र, नृपशास्त्र, राजविद्या, क्षत्रिय विद्या, दंड नीति, नीति शास्त्र तथा राजधर्म आदि शास्त्र, राज्य तथा राजा के सम्बन्ध में बोध कराते हैं। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, कामन्दक नीति शास्त्र, शुक्रनीति, आदि में राजनय से सम्बन्धित उपलब्ध विशेष विवरण आज के राजनीतिक सन्दर्भ में भी उपयोगी हैं। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद राजा को अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये जासूसी, चालाकी, छल-कपट और धोखा आदि के प्रयोग का परामर्श देते हैं। ऋग्वेद में सरमा, इन्द्र की दूती बनकर, पाणियों के पास जाती है। पौराणिक गाथाओं में नारद का दूत के रूप में कार्य करने का वर्णन है। यूनानी पृथ्वी के देवता 'हर्मेस' की भांति नारद वाक चाटुकारिता व चातुर्य के लिये प्रसिद्ध थे। वे स्वर्ग और पृथ्वी के मध्य एक-दूसरे राजाओं को सूचना लेने व देने का कार्य करते थे। वे एक चतुर राजदूत थे। इस प्रकार पुरातन काल से ही भारतीय राजनय का विशिष्ट स्थान रहा है। .

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मिलानो

मिलान (Milano,; पश्चिमी लोम्बार्ड: मिलान) इटली का एक शहर और लोम्बार्डी क्षेत्र और मिलान प्रान्त की राजधानी है। मूल शहर की जनसंख्या लगभग 1,300,000 है, जबकि शहरी क्षेत्र 4,300,000 की अनुमानित जनसंख्या के साथ यूरोपीय संघ में पांचवा सबसे बड़ा है। इटली में सबसे बड़े, मिलान महानगरीय क्षेत्र की आबादी, OECD द्वारा अनुमानित तौर पर 7,400,000 है। शहर की स्थापना मीडियोलेनम नाम के तहत केल्टिक लोग इनसबरेस द्वारा की गई थी। इसे बाद में ई.पू.

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मेटरनिख

मेटरनिख मेटरनिख (Prince Klemens Wenzel von Metternich (जर्मन में पूरा नाम: Klemens Wenzel Nepomuk Lothar, Fürst von Metternich-Winneburg zu Beilstein, अंग्रेजी रूपान्तरण: Clement Wenceslas Lothar von Metternich-Winneburg-Beilstein; 15 मई 1773 – 11 जून 1859) राजनेता व राजनयज्ञ था। वह १८०९ से १८४८ तक आस्ट्रियाई साम्राज्य का विदेश मंत्री रहा। वह अपने समय का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे प्रतिभाशाली राजनयिक था। नेपोलियन की वाटरलू पराजय के बाद मेटरनिख यूरोप की राजनीति का सर्वेसर्वा बन गया। उसने यूरोपीय राजनीति में इतनी प्रमुख भूमिका निभाई कि 1815 से 1848 तक के यूरोपीय इतिहास का काल 'मेटरनिख युग’ के नाम से प्रसिद्ध है। मेटरनिख ने अपने प्रधानमन्त्रितत्व-काल में प्रतिक्रया और अनुदारीता का अनुकरण करने की नीति अपनाई और उसके प्रभाव के कारण आस्ट्रिया का साम्राज्य यूरोप में अत्यन्त महत्वपूर्ण बन गया। .

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यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय

बास्तीय के किले पर आक्रमण ज्यूसेपे मेत्सिनी: इटली के एकीकरण का अग्रदूत 18वीं सदी में कई देश जैसे जर्मनी, इटली तथा स्विटजरलैण्ड आदि उस रूप में नहीं थे जैसा कि आज हम इन्हें देखते हैं। ये छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित थे जिनका अपना स्वतन्त्र शासक था। 1789 ई॰ की फांसीसी क्रान्ति से पहले फांस एक ऐसा राज्य था जिनके सम्पूर्ण भू-भाग पर एक निरकुंश राजा का शासन था। नेपोलियन की संहिता - इसे 1804 में लागू किया गया। इसने जन्म पर आधरित विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया इसनें न केवल न्याय के समक्ष समानता स्थापित की बल्कि सम्पत्ति के अध्किर को भी सुरक्षित किया। १९वीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप में राष्ट्रवाद की एक लहर चली जिसने यूरोपीय देशों का कायाकल्प कर दिया। जर्मनी, इटली, रोमानिया आदि नवनिर्मित देश कई क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर बने जिनकी राष्ट्रीय पहचान 'समान' थी। यूनान, पोलैण्ड, बल्गारिया आदि स्वतंत्र होकर राष्ट्र बन गये। यूरोप के राजनीतिक विकास में राष्ट्रवाद की प्रमुख भूमिका थी। .

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राजनय

न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्रसंघ संसार का सबसे बडा राजनयिक संगठन है। राष्ट्रों अथवा समूहों के प्रतिनिधियों द्वारा किसी मुद्दे पर चर्चा एवं वार्ता करने की कला व अभ्यास (प्रैक्टिस) राजनय (डिप्लोमैसी) कहलाता है। आज के वैज्ञानिक युग में कोई देश अलग-अलग नहीं रह सकता। इन देशों में पारस्परिक सम्बन्ध जोड़ना आज के युग में आवश्यक हो गया है। इन सम्बन्धों को जोड़ने के लिए योग्य व्यक्ति एक देश से दूसरे देश में भेजे जाते हैं। ये व्यक्ति अपनी योग्यता, कुशलता और कूटनीति से दूसरे देश को प्रायः मित्र बना लेते हैं। प्राचीन काल में भी एक राज्य दूसरे राज्य से कूटनीतिक सम्बन्ध जोड़ने के लिए अपने कूटनीतिज्ञ भेजता था। पहले कूटनीति का अर्थ 'सौदे में या लेन देन में वाक्य चातुरी, छल-प्रपंच, धोखा-धड़ी' लगाया जाता था। जो व्यक्ति कम मूल्य देकर अधिकाधिक लाभ अपने देश के लिए प्राप्त करता था, कुशल कूटनीतिज्ञ कहलाता था। परन्तु आज छल-प्रपंच को कूटनीति नहीं कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से आधुनिक काल में इस शब्द का प्रयोग दो राज्यों में शान्तिपूर्ण समझौते के लिए किया जाता है। डिप्लोमेसी के लिए हिन्दी में कूटनीति के स्थान पर राजनय शब्द का प्रयोग होने लगा है। अन्तर्राष्ट्रीय जगत एक परिवार के समान बन गया है। परिवार के सदस्यों में प्रेम, सहयोग, सद्भावना तथा मित्रता का सम्बन्ध जोड़ना एक कुशल राजनयज्ञ का काम है। .

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राजनयिक दूत

राजनयिक दूत (Diplomatic Envoys) संप्रभु राज्य या देश द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि होते हैं, जो अन्य राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अथवा अंतरराष्ट्रीय संस्था में अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। वर्तमान अंतरराष्ट्रीय विधि का प्रचलन आरंभ होने के बहुत पूर्व से ही रोम, चीन, यूनान और भारत आदि देशों में एक राज्य से दूसरे राज्य में दूत भेजने की प्रथा प्रचलित थी। रामायण, महाभारत, मनुस्मृति, कौटिल्यकृत अर्थशास्त्र और 'नीतिवाक्यामृत' में प्राचीन भारत में प्रचलित दूतव्यवस्था का विवरण मिलता है। इस काल में दूत अधिकांशत: अवसरविशेष पर अथवा कार्यविशेष के लिए ही भेजे जाते थे। यूरोप में रोमन साम्राज्य के पतन के उपरांत छिन्न भिन्न दूतव्यवस्था का पुनरारंभ चौदहवीं शताब्दी में इटली के स्वतंत्र राज्यों एवं पोप द्वारा दूत भेजने से हुआ। स्थायी राजदूत को भेजने की नियमित प्रथा का श्रीगणेश इटली के गणतंत्रों एवं फ्रांस के सम्राट् लुई ग्यारहवें ने किया। सत्रहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक दूतव्यवस्था यूरोप के अधिकांश देशों में प्रचलित हो गई थी। .

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लाइपत्सिग का युद्ध

लाइपत्सिग का युद्ध (Battle of Leipzig या Battle of the Nations) सैक्सोनी के लाइपत्सिग नामक स्थान पर १६ से १९ अक्टूबर, १८१३ को लड़ा गया था। रूस, प्रशा, आस्ट्रिया और स्वीडेन कि संयुक्त सेनाओं ने रूस के जार अलेक्सांदर प्रथम के नेतृत्व नेपोलियन को पराजित कर दिया। इस युद्ध में लगभग 600,000 सैनिकों ने भाग लिया, इस प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध के पहले यूरोप की यह सबसे बड़ी लड़ाई थी। रूस अभियान में नेपोलियन की असफलता का समाचार पाते ही जर्मनी में फ्रांस से प्रतिशोध लेने की भावना जागने लगी। लोग देश को नेपोलियन के नियंत्रण से मुक्त करने के लिए संघर्ष के लिए तैयार हो गए। राष्ट्रीयता का जबर्दस्त उबाल आया। इस तरह 1813 में प्रशा ने फ्रांस के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। किन्तु प्रशा की सेना को नेपोलियन ने पीछे ढलेल दिया। 1813 ई. में प्रशा, आस्ट्रिया, इंग्लैंड, रूस तथा स्वीडन ने मिलकर नेपोलियन के विरूद्ध एक गुट का निर्माण किया और नेपोलियन के विरूद्ध दक्षिणी जर्मनी के लाइपत्सिग के युद्ध में उसे पराजित किया इसे “राष्ट्रों के युद्ध” (वार ऑफ नेशन्स) के नाम से जाना जाता है। लाइपत्सिग की पराजय ने नेपोलियन के समूचे तंत्र को ध्वस्त कर दिया, महाद्वीपीय व्यवस्था समाप्त हो गई। अंततः नेपोलियन ने आत्मसमर्पण कर दिया और फ्रांस के सिंहासन से अपने समस्त अधिकार त्याग दिए। उसे इटली के पश्चिम में एल्बा द्वीप देकर वहां का स्वतंत्र शासक बना दिया गया और फ्रांस में लुई 18वें को सम्राट नियुक्त किया गया। नेपोलियन से छुटकारा पाने के बाद यूरोप की समस्याओं को सुलझाने के लिए 1814 ई. में ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में मेटरनिख की अध्यक्षता में एक सम्मेलन हुआ जिसे वियना कांग्रेस के नाम से जाना जाता है। फ्रांस की भौगोलिक सीमा वही रखी गई जो 1792 में थी और वहां बूर्वो वंश के शासन को पुनर्स्थापित किया गया। फ्रांस में लुई 18वें अव्यवस्थित शासन से जनता असंतुष्ट थी। नेपोलियन को इन परिस्थितियों की सूचना मिली तो एक बार पुनः वह फ्रांस पर अधिकार करने के लिए मार्च 1815 में एल्बा से चलकर फ्रांस आया। वहां की जनता ने उसका स्वागत किया। अतः लुई 18वां फ्रांस छोड़कर भाग गया और नेपोलियन पुनः फ्रांस का सम्राट बन बैठा। किन्तु उसके बाद केवल 100 दिन की वह शासन कर सका। नेपोलियन के पुनः गद्दी प्राप्त करने की सूचना जब यूरोप में पहुंची तो सब लोग चौकन्ना हो गए। वियना कांगे्रस को एक बार फिर नेपोलियन के भूत का भय सताने लगा। अतः अपने मतभेद भूलकर एकजुट हो नेपोलियन का मुकाबला करने का निश्चय किया। अतः जून 1815 में नेपोलियन और मित्र राष्ट्रों के बीच अंतिम निर्णायक युद्ध वाटरलू के मैदान में हुआ जिसमें नेपोलियन पराजित हुआ। उसे बंदी बनाकर सुदूर अटलांटिक महासागर के सुनसान द्वीप सेंट हेलेना में निर्वासित जीवन जीने को भेज दिया गया और वहीं 6 वर्ष बाद 2 मई 1821 को उसकी मृत्यु हो गई। श्रेणी:यूरोप का इतिहास.

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जर्मनी का एकीकरण

एकीकृत जर्मनी (१८७१ में) १८ जनवरी १८७१ को वर्सेली के 'हॉल ऑफ मिरर्स' में जर्मन साम्राज्य की स्थापना मध्य यूरोप के स्वतंत्र राज्यों (प्रशा, बवेरिआ, सैक्सोनी आदि) को आपस में मिलाकर १८७१ में एक राष्ट्र-राज्य व जर्मन साम्राज्य का निर्माण किया गया। इसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का नाम जर्मनी का एकीकरण है। इसके पहले यह भूभाग (जर्मनी) ३९ राज्यों में बंटा हुआ था। इसमें से ऑस्ट्रियाई साम्राज्य तथा प्रशा राजतंत्र अपने आर्थिक तथा राजनीतिक महत्व के लिये प्रसिद्ध थे। .

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वुडरो विल्सन

वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) (१८५६-१९२४) अमेरिका के २८ वें राष्ट्रपति थे। विल्सन को लोक प्रशासन के प्रकार्यों की व्याख्या करने वाले अकादमिक विद्वान, प्रशासक, इतिहासकार, विधिवेत्ता और राजनीतिज्ञ के रूप में जाना जाता है। .

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इतालवी एकीकरण

इतालवी एकीकरण को दर्शाता हुआ नक़्शा, जिसमें विभिन्न राज्यों के संगठित इतालवी साम्राज्य में सम्मिलित होने के वर्ष दिए गए हैं इतालवी एकीकरण, जिसे इतालवी भाषा में इल रिसोरजिमेंतो (Il Risorgimento, अर्थ: पुनरुत्थान) कहते हैं, १९वीं सदी में इटली में एक राजनैतिक और सामाजिक अभियान था जिसने इतालवी प्रायद्वीप के विभिन्न राज्यों को संगठित करके एक इतालवी राष्ट्र बना दिया। इस अभियान की शुरुआत और अंत की तिथियों पर इतिहासकारों में विवाद है लेकिन अधिकतर के मत में यह सन् १८१५ में इटली पर नेपोलियन बोनापार्ट के राज के अंत पर होने वाले वियना सम्मलेन के साथ आरम्भ हुआ और १८७० में राजा वित्तोरियो इमानुएले की सेनाओं द्वारा रोम पर क़ब्ज़ा होने तक चला।, Jeffrey Thompson Schnapp, Olivia E. Sears, Maria G. Stampino, pp.

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कांग्रेस

कांग्रेस का आशय इन सब से है।.

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केमिल बेंसो कावूर

इटली के प्रथम प्रधानमंत्री: केमिल बेंसो कावूर केमिल बेंसो कावूर (इतालवी: Camillo Benso Conte di Cavour; अंग्रेजी: Camillo Paolo Filippo Giulio Benso, Count of Cavour, of Isolabella and of Leri; १८१०-१८६१) इटली का राजमर्मज्ञ (स्टेट्समैन)ञ तथा इटली के एकीकरण आन्दोलन का प्रमुख नेता था। वह मूल लिबरल पार्टी का संस्थापक था। इटली के एकीकरण के बाद वह इटली का प्रधानमन्त्री बना किन्तु केवल तीन माह पश्चात उसकी मृत्यु हो गयी। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

मेटरनिख व्यवस्था, वियना काँग्रेस, वियना की संधि

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