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वाणासुर

सूची वाणासुर

बाणासुर, अशना से उत्पन्न, असुरराज बलि वैरोचन के सौ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ, शिवपार्षद, परमपराक्रमी योद्धा और पाताललोक का प्रसिद्ध असुरराज जिसे महाकाल, सहस्रबाहु तथा भूतराज भी कहा गया है। शोणपुरी, शोणितपुर अथवा लोहितपुर इसकी राजधानी थी। असुरों के उत्पात से त्रस्त ऋषियों की रक्षा के क्रम से शंकर ने अपने तीन फलवाले बाण से असुरों की विख्यात तीनों पुरियों को बेध दिया तथा अग्निदेव ने उन्हें भस्म करना आरंभ किया तो इसने पूजा से शंकर को अनुकूल कर अपनी राजधानी बचा ली थी (मत्स्य., 187-88; ह.पु., 2/116-28; पद्म., स्व., 14-15)। फिर इसने शंकरपुत्र बनने की इच्छा से घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर शिव ने इसे कार्तिकेय के जन्मस्थान का अधिपति बनाया था (ह.पु. 2/116-22)। शिव के तांडव नृत्य में भाग लेने से शंकर ने प्रसन्न होकर इसकी रक्षा का बीड़ा उठाया था। उषा अनिरुद्ध की पुराणप्रसिद्ध प्रेमकथा की नायिका इसी की कन्या थी। स्वप्नदर्शन द्वारा कृष्णपुत्र अनिरुद्ध के प्रति पूर्वराम उत्पन्न होने पर इसने चित्रलेखा (दे. "चित्रलेखा") की सहायता से उसे अपने महल में उठवा मँगाया और दोनों एक साथ छिपकर रहने लगे। किंतु भेद खुल जाने पर दोनों बाण के बंदी हुए। इधर कृष्ण को इसका पता चला तो इन्होंने बाण पर आक्रमण कर दिया। भीषण युद्ध हुआ, यहाँ तक कि इसी में एक दाँत टूट जाने से गणेश "एकदंत" हो गए। अंत में कृष्ण ने बाण को मार डालने के लिए सुदर्शन चक्र उठाया किंतु पार्वती के हस्तक्षेप तथा आग्रह पर केवल अहंकार चूर करने के निमित्त इसके हाथों में से दो (पद्म., 3/2/50) अथवा चार (भाग.पु., 10/63/49) को छोड़कर शेष सभी काट डाले। फिर उन्होंने उषा अनिरुद्ध का विवाह सम्मानपूर्वक द्वारका में संपन्न कराया। श्रेणी:महाभारत के पात्र.

4 संबंधों: डेरापुर, कानपुर देहात, सहस्रबाहु, गंगैकोण्ड चोलपुरम्, गुप्तकाशी

डेरापुर, कानपुर देहात

डेरापुर उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर देहात जिले का एक नगर एवं सब- डिवीज़न/ तहसील मुख्यालय है जो वर्ष २००५ में ग्राम पंचायत से नगर पंचायत के अस्तित्व में परिवर्तित हुआ। डेरापुर के नाम के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि जब श्रीकृष्ण और वाणासुर के बीच संग्राम हुआ था तब श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर डेरा डाला था। .

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सहस्रबाहु

सहस्रबाहु (शाब्दिक अर्थ: एक हजार बाहों वाला) नाम विष्णु, कार्तवीर्य अर्जुन तथा वाणासुर का है। इन्हें कभी-कभी 'सहस्रभुज' भी कहते हैं। इसी नाम का बलिपुत्र बाणराज भी हुआ है जिसका उल्लेख श्रीमद्भागवत में यों आया है- .

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गंगैकोण्ड चोलपुरम्

गंगैकोण्ड चोलपुरम् का वृहदेश्वर मंदिर गंगैकोण्ड चोलपुरम्, तमिलनाडु के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित एक स्थान है। यह जैयमकोण्ड सोलापुर से १० किमी की दूरी पर है। प्राचीन काल में यह एक प्रख्यात नगर था। लोकप्रवाद हे कि वाणासुर के तपस्या के फलस्वरूप शिव ने यहाँ एक कूप में गंगा बहा दी थी जिसके कारण यह नाम पड़ा है। वस्तुत: इसे प्रथम राजेंद्र चोल ने बसाया था जो 'गंगैकोंडचोल' कहा जाता था। यहाँ चोलकालीन एक विशाल मंदिर के अवशेष हैं। श्रेणी:तमिलनाडु का भूगोल श्रेणी:ऐतिहासिक नगर.

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गुप्तकाशी

गुप्तकाशी प्रसिद्ध तीर्थ धाम केदारनाथ को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक कस्बा है। यह उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग जिला में स्थित है। गुप्तकाशी क्षेत्र, केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है, साथ ही यहां कई खूबसूरत पर्यटक स्थल भी हैं। पाँच प्रसिद्ध प्रयाग हैं: देवप्रयाग, रुद्रप्रायाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग। रुद्रप्रयाग से मंदाकिनी नदी के किनारे गुप्तकाशी का मार्ग है। कुल दूरी लगभग ३५ किमी है। पैदल, घोड़ा या डाँडी से लोग जाते हैं, बहुत थोड़ी दूरी पैदल तय करनी होती है। चढ़ाई बड़ी विकट है। जहाँ चढ़ाई आरंभ होती है वहीं अगस्त्य मुनि नाम का स्थान है; वहाँ अगस्त्य का मंदिर है। मार्ग रमणीक है। सामने वाणासुर की राजधानी शोणितपुर के भगनावशेष हैं। चढ़ाई पूरी होने पर गुप्तकाशी के दर्शन होते हैं। गुप्तकाशी को गुह्यकाशी भी कहते हैं। तीन काशियाँ प्रसिद्ध हैं: भागीरथी के किनारे उत्तरकाशी, दूसरी गुप्तकाशी और तीसरी वाराणसी। गुप्तकाशी में एक कुंड है जिसका नाम है मणिकर्णिका कुंड। लोग इसी में स्नान करते हैं। इसमें दो जलधाराएँ बराबर गिरती रहती हैं जो गंगा और यमुना नाम से अभिहित हैं। कुंड के सामने विश्वनाथ का मंदिर है। इससे मिला हुआ अर्धनारीश्वर का मंदिर है। .

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