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वर्त्स्य व्यंजन

सूची वर्त्स्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में वर्त्स्य व्यंजन (alveolar consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे उच्चारित करने के लिए जिह्वा को ऊपर के वर्त्स्य कटक से छुआ जाता है या पास लाया जाता है। इनमें 'ट', 'ल', 'ड' और 'स' शामिल हैं। .

7 संबंधों: दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त, दन्त्य, वर्त्स्य और पश्वर्त्स्य नासिक्य, पश्वर्त्स्य व्यंजन, संस्कृत भाषा, वर्त्स्य कटक, अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला, अघोष वर्त्स्य नासिक्य

दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त

दन्त्य और वर्त्स्य उत्क्षिप्त (Dental and alveolar flaps) एक प्रकार का उत्क्षिप्त व्यंजन है जो विश्व की कई भाषाओं में पाया जाता है। इसे हिन्दी में 'र' लिखा जाता है और अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में इसका चिन्ह 'ɾ' है। .

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दन्त्य, वर्त्स्य और पश्वर्त्स्य नासिक्य

वर्त्स्य नासिक्य (alveolar nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो कई भाषाओं में पाया जाता है। हिन्दी में इसे "न" द्वारा लिखा जाता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में 'n' लिखा जाता है। हिन्दी में इसका उच्चारण एक वर्त्स्य व्यंजन की तरह होता है लेकिन यह ध्वनि दन्त्य व्यंजन की तरह भी बनाई जा सकती है - हिन्दी भाषी इसको अपनी जिह्वा की नोक को ऊपर के दांतों से छूकर "न" बोलकर देख सकते हैं। .

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पश्वर्त्स्य व्यंजन

स्वनविज्ञान में पश्वर्त्स्य व्यंजन (post-alveolar consonant) ऐसा व्यंजन होता है जिसे उच्चारित करने के लिए जिह्वा को ऊपर के वर्त्स्य कटक के पीछे छुआ जाता है या पास लाया जाता है, यानि जीह्वा को वर्त्स्य व्यंजनों की तुलना में थोड़ा सा पीछे लाया जाता है। पश्वर्त्स्य व्यंजनों में 'श', 'च' और 'ज' शामिल हैं। .

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संस्कृत भाषा

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक शास्त्रीय भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा हैं जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार का एक शाखा हैं। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गये हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गये हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। .

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वर्त्स्य कटक

मानवों और कुछ अन्य प्राणियों के मुँहों में वर्त्स्य कटक (alveolar ridge) या दंतउलूखल कटक जबड़ों के सामने वाली बाढ़ होती है जो ऊपर के दांतों के ऊपर व पीछे तथा नीचे के दांतों के नीचे व पीछे होती है। इसमें दाँत समूहने वाले गढढे होते हैं। वर्त्स्य कटकों को जिह्वा से छुआ जा सकता है और उनमें छोटे उतार-चढ़ाव महसूस किए जा सकते हैं। भाषा में वर्त्स्य कटकों का प्रयोग कई ध्वनियों के उच्चारण में होता है। जीभ के अंत या धार को वर्त्स्य कटक से छू कर उच्चारित होने वाले व्यंजनों में त, द, स, ज़, न, ल, इत्यादि शामिल हैं जो सामूहिक रूप से वर्त्स्य व्यंजन कहलाते हैं। .

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अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला

अंतर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला (अ॰ध्व॰व॰, अंग्रेज़ी: International Phonetic Alphabet, इंटरनैशनल फ़ोनॅटिक ऐल्फ़ाबॅट) एक ऐसी लिपि है जिसमें विश्व की सारी भाषाओं की ध्वनियाँ लिखी जा सकती हैं। इसके हर अक्षर और उसकी ध्वनि का एक-से-एक का सम्बन्ध होता है। आरम्भ में इसके अधिकतर अक्षर रोमन लिपि से लिए गए थे, लेकिन जैसे-जैसे इसमें विश्व की बहुत सी भाषाओँ की ध्वनियाँ जोड़ी जाने लगी तो बहुत से यूनानी लिपि से प्रेरित अक्षर लिए गए और कई बिलकुल ही नए अक्षरों का इजाद किया गया। इसमें सन् २०१० तक १६० से अधिक ध्वनियों के लिए चिह्न दर्ज किए जा चुके थे, लेकिन किसी भी एक भाषा को दर्शाने के लिए इस वर्णमाला का एक भाग की ही ज़रुरत होती है। इस प्रणाली के ध्वन्यात्मक प्रतिलेखन (ट्रान्सक्रिप्शन) में सूक्ष्म प्रतिलेखन के चिन्हों के बीच में और स्थूल प्रतिलेखन / / के चिन्हों के अन्दर लिखे जाते हैं। इसकी नियामक अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक संघ है। उदाहरण के लिए.

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अघोष वर्त्स्य नासिक्य

अघोष वर्त्स्य नासिक्य (voiceless alveolar nasal) एक प्रकार का व्यंजन है जो विश्व की बहुत कम भाषाओं में मिलता है, जैसे कि बर्मी भाषा और एस्टोनियाई भाषा। हिन्दी व अंग्रेज़ी बोलने वालों को यह 'न' से मिलता-जुलता प्रतीत होता है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला में n̥ और n̊ के चिन्हों द्वारा लिखा जाता है। .

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