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लेसर किरण

सूची लेसर किरण

कुहरे में लेज़र किरण एक कार के शीशे से परावर्तित होती हुई। लेजर (विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रकाश प्रवर्धन) (अंग्रेज़ी:लाइट एंप्लीफिकेशन बाई स्टीमुलेटेड एमिशन ऑफ रेडिएशन) का संक्षिप्त नाम है। प्रत्यक्ष वर्णक्रम की विद्युतचुम्बकीय तरंग, यानि प्रकाश उत्तेजित उत्सर्जन की प्रक्रिया द्वारा संवर्धित कर एक सीधी रेखा की किरण में बदल कर उत्सर्जित करने का तरीक होता है। इस प्रका निकली प्रकाश किरण को भी लेज़र किरण ही कहा जाता है। ये किरण प्रायः आकाशीय रूप से कोहैरेन्ट (सरल रैखिक व एक स्रोतीय), संकरी अविचलित होती है, जिसे किसी लेन्स द्वारा परिवर्तित भी किया जा सकता है। ये किरणें संकरी वेवलेन्थ, विद्युतचुम्बकीय वर्णक्रम की एकवर्णीय प्रकाश किरणें होती है। हालांखि बहुवर्णीय प्रकाशधारिणी लेज़र किरणें या बहु वेवलेन्थ लेज़र भी निर्मित की जाती हैं। एक पदार्थ (सामान्यत: एक गैस और क्रिस्टल) को ऊर्जा, जैसे प्रकाश या विद्युत से टकराने के बाद वह अणु को विद्युतचुम्बकीय विकिरण (एक्सरे, पराबैंगनी किरणें) उत्सर्जित करने के लिए उत्तेजित करता है जिसको बाद में संवर्धित किया जाता है और एक किरण के रूप में इसे छोड़ा जाता है। लेजर एक ऐसी तकनीक के रूप में विकसित हुई है जिसके सहारे आज आधुनिक जगत के अनेक कार्य सिद्ध होते हैं। लेज़र का आविष्कार लगभग ५० वर्ष पहले हुआ था। आधुनिक जगत में लेजर का प्रयोग हर जगह मिलता है – वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं, सुपरमार्केट और शॉपिंग मॉल्स से लेकर अस्पतालों तक में भी। मनोरंजन के संसार में डीवीडी के प्रकार्य में लेज़र ही सहायक होता है, सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र में वायुयानों को गाइड करने में, तोप और बंदूकों को लक्ष्य लॉक करने में, आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में दंत चिकित्सा और लेज़र से आंख के व अन्य शारीरिक ऑपरेशन, कार्यालयों के कार्य में लेज़र प्रिंटर द्वारा डाक्यूमेंट प्रिंटिंग, संचा क्षेत्र में ऑप्टिकल फाइबर केबलों तक में लेज़र ही चलती है। पिछले ५० वषों में लेजर ने अपनी उपयोगिता को व्यापक तौर पर सिद्ध कर दिखाया है। लेजर किरण का आविष्कार थिओडोर मैमेन द्वारा हुआ मात्र एक संयोग ही था। थिओडोर मैमेन के कैमरे के लैंस की कुण्डली के ऊपर माणिक्य (रूबी) का एक टुकड़ा संयोग से रखने पर एक लाल रंग की प्रकाश किरण निकली। थिओडोर ने ह्यूज़स शोध प्रयोगशाला में इस पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने वहां देखा कि किसी बल्ब के फ्लैश से माणिक्य के पतले से बेलन को आवेशित करना संभव है और फिर इससे ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। इससे शुद्ध लाल रंग का प्रकाश उत्सर्जित होता है जिसकी तरंगें एक समान रूप और अंतराल से प्रवाहित होती हैं और एक सीधी रेखा में चलती हैं। चूंकि ये किरणें अत्यंत शक्तिशाली थीं और परीक्षण के दौरान सर्वप्रथम एक रेजर के ब्लेड में भी छेद बना सकती थी, इसलिए तत्कालीन भौतिकशास्त्रियों ने इसकी शक्ति को जिलेट में मापना शुरू किया। .

25 संबंधों: डेबिट कार्ड, दैनिकी, परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत), ब्रेकथ्रू स्टारशॉट, ब्लू-रे डिस्क, बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी, भारतीय लेजर संघ, मिस्र के पिरामिड, मुक्त इलेक्ट्रॉन लेजर, मेसर, रमन स्पेक्ट्रमिकी, राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र, लेजर-निर्देशित बम, लेज़र प्रिंटर, संरक्षण कृषि, संवेष्टन, सक्रिय लेजर माध्यम, सौर पाल, होलोग्राफ़ी, घन अवस्था लेसर, कर्कट रोग, क्रिप्टॉन, अनुनाद, अनुप्रयुक्त भौतिकी, अपस्मार

डेबिट कार्ड

डेबिट कार्ड (बैंक कार्ड या चेक कार्ड वा विकलन पत्रक के नाम से भी जाना जाता है), एक प्लास्टिक कार्ड है, जो खरीददारी करते समय भुगतान की वैकल्पिक पद्धति प्रदान करता है। कार्यात्मक रूप से, इसे इलेक्ट्रॉनिक चेक कहा जा सकता है, क्योंकि पैसे बैंक खाते से या तो सीधे निकाले जा सकते हैं या शेष राशि कार्ड के ज़रिए भी निकाली जा सकती है। कुछ मामलों में, कार्ड को खास तरह से केवल इंटरनेट के लिए इस तरह डिजाइन किया जाता है कि भौतिक रूप से कोई कार्ड होता ही नहीं है। डेबिट कार्ड का उपयोग कुछ देशों में व्यापक हो चुका है और इसने चेक की जगह ले ली है और कुछ मामलों में बड़ी मात्रा में नकदी का लेनदेन भी होता है। क्रेडिट कार्ड की तरह डेबिट कार्ड का उपयोग टेलीफोन और इंटरनेट के ज़रिये खरीददारी के लिए भी होता है, लेकिन क्रेडिट कार्ड की राशि वाहक के द्वारा बाद की तरीख में भुगतान करने के बजाए वाहक के बैंक खाते से स्थानांतरित होते हैं। डेबिट कार्ड की सहायता से आप तुरंत नकदी निकाल सकते हैं, क्योंकि यह एटीएम (ATM) कार्ड और चेक गारंटी कार्ड की तरह प्रयुक्त होता है। जहां ग्राहक खरीददारी के साथ साथ नकदी भी निकाल सकते हैं, वहां व्यापारी अपने ग्राहक को "कैशबैक"/"कैश आउट" की सुविधाएं देने की पेशकश कर सकता है। .

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दैनिकी

किसी भी व्यापारी या संस्था के लिये यह संभव नहीं है कि वह सारे लेन-देन व्यवहारों को याद रख सके। इसलिये उन्हें याद रखने के लिये दैनिकी (जर्नल अथवा दैनंदिनी) तैयार किया जाता है। इसमें लेनदेन होते ही प्रविष्टि कर ली जाती है। अतः प्रत्येक सौदों या व्यवहार को क्रमवार लिखने कि क्रिया को प्रारंभिक लेखा कहा जाता है। इसे 'रोजनामचा' भी कहते हैं। इसमें सुविधा के लिये कुछ सहायक पुस्तके भी रखी जाती है। जैसे क्रय पुस्तक विक्रय पुस्तक, रोकड़ पुस्तक तथा मुख्य जर्नल आदि। उदाहरण के लिए - नगर पंचायत में दिनांक 15.4.2008 को कार्यालय के लिय 1000.00 रूपये नगद देकर फर्नीचर खरीदा। यह एक सौदा है जिसका जर्नल बुक में प्रारंभिक लेखा निम्नानुसार होगा - चूंकि जर्नल लेखे तैयार करने की प्रारंभिक पुस्तक है, इसलिये इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आजकल सीधे लेजर एवं सहायक बहियाँ तैयार करना प्रचलन में होने से अभिलेख का महत्व व्यापारिक प्रतिष्ठानों में अब धीरे-धीरे कम हो रहा है। स्थानीय निकायों में यदि द्वि प्रविष्टि लेखा अपनाई जाती है तो उसमें जर्नल का बहुत महत्व रहेगा क्योंकि वे सभी व्यवहार जिसमें मुद्रा का वास्तविक लेनदेन नहीं हुआ है। समायोजन प्रविष्टियां आदि जर्नल के माध्यम से ही लेखाबद्ध की जायेगी। .

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परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत)

भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) एक महत्वपूर्ण विभाग है जो सीधे प्रधानमंत्री के आधीन है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। यह विभाग नाभिकीय विद्युत ऊर्जा की प्रौद्योगिकी के विकास, विकिरण प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, चिकित्सा, उद्योग, मूलभूत अनुसन्धान आदि) में उपयोग तथा मूलभूत अनुसंधान में संलग्न है। इस विभाग के अन्तर्गत ५ अनुसन्धान केन्द्र, ३ औद्योगिक संगठन, ५ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, तथा ३ सेवा संगठन हैं। इसके अलावा इसके अन्दर दो बोर्ड भी हैं जो नाभिकीय क्षेत्र एवं इससे सम्बन्धित क्षेत्रों में मूलभूत अनुसन्धान को प्रोत्साहित करते हैं एवं उसके लिए फण्ड प्रदान करते हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग ८ संस्थानों को भी सहायता देता है जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित हैं। परमाणु ऊर्जा विभाग (पऊवि) की स्थापना राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से दिनांक 3 अगस्त 1954 को की गई थी। .

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ब्रेकथ्रू स्टारशॉट

एक कल्पित सौर पाल ब्रेकथ्रू स्टारशॉट (Breakthrough Starshot) एक अनुसंधान और अभियान्त्रिकी परियोजना है जिसका ध्येय प्रकाश पाल (light sail) से चलने वाले अंतरिक्ष यानों का एक बेड़ा विकसित करना है जो पृथ्वी से ४.३७ प्रकाशवर्ष दूर स्थित मित्र तारे (Alpha Centauri) के बहु तारा मंडल तक पहुँच सके। इन परिकल्पित अंतरिक्ष यानों का नाम "स्टारचिप" (StarChip) रखा गया है और इन्हें प्रकाश की गति का १५% से २०% तक का वेग देने का प्रस्ताव है। इस रफ़्तार से वे लगभग २० से ३० वर्षों में मित्र तारे के मंडल तक पहुँच सकेंगे और वहाँ से पृथ्वी को सूचित करेंगे। इतनी दूरी पर उनसे प्रसारित संकेतों को पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग ४ साल लगेंगे। यह यान इतनी तेज़ी से चल रहे होंगे की वे केवल कुछ देर के लिये मंडल में रहकर आगे अंतरिक्ष में निकल जाएँगे। प्रस्तावकों की चेष्टा है कि इस अंतराल में यह यान अगस्त २०१६ में मिले प्रॉक्सिमा सेन्टॉरी बी (Proxima Centauri b) नामक स्थलीय ग्रह (जो पृथ्वी से ज़रा बड़ा ग़ैर-सौरीय ग्रह है) के समीप से भी उड़ें और उसकी तस्वीरें खींचकर पृथ्वी भेजें। .

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ब्लू-रे डिस्क

ब्लू-रे डिस्क (BD या ब्लू-रे नाम से भी प्रचलित) एक प्रकाशीय (Optical) डिस्क संग्रहण माध्यम है, जिसे मानक DVD प्रारूप का स्थान लेने के लिए बनाया गया है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग उच्च-परिभाषा वाले वीडियो (High-Definition Video), प्लेस्टेशन 3 (PlayStation 3) वीडियो गेम्स तथा अन्य डाटा को, प्रत्येक एकल परत वाले प्रोटोटाइप पर 25 GB तक और दोहरी परत वाले पर 50 GB तक, संग्रहित करने के लिए किया जाता है। यद्यपि ये संख्याएं ब्लू-रे डिस्क के लिए मानक संग्रहण को बताती हैं, तथापि यह एक मुक्त (Open-ended) विनिर्देशन है, जिसमें ऊपरी सैद्धांतिक संग्रहण सीमा अस्पष्ट छोड़ दी गई है। 200 GB डिस्क उपलब्ध हैं, तथा 100 GB डिस्क को किसी भी अतिरिक्त उपकरण या संशोधित फर्मवेयर के बिना पढ़ा जा सकता है। डिस्क के भौतिक आयाम मानक DVDs तथा CDs के ही समान होते हैं। ब्लू-रे डिस्क का नाम इसे पढ़ने में प्रयुक्त नीले-बैंगनी (blue-violet) लेज़र से लिया गया है। एक मानक DVD में 650 नैनोमीटर लाल लेज़र का प्रयोग किया जाता है, जबकि ब्लू-रे डिस्क कम तरंग-दैर्घ्य का प्रयोग करती है, 400 nm वाला नीला-बैंगनी लेज़र, तथा एक DVD की तुलना में लगभग दस गुना अधिक डाटा संग्रहण की अनुमति देती है। उच्च-परिभाषा वाली प्रकाशीय डिस्क के प्रारूप पर जारी युद्ध के दौरान, ब्लू-रे डिस्क ने HD DVD प्रारूप से प्रतिस्पर्धा की.

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बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी

बसु-आइंस्टीन वक्र (ऊपर वाला) तथा फर्मी-डिरैक वक्र (नीचे वाला) क्वांटम सांख्यिकी तथा सांख्यिकीय भौतिकी में अविलगनीय (indistinguishable) कणों का संचय केवल दो विविक्त ऊर्जा प्रावस्थाओं (discrete energy states) में रह रकता है। इसमें से एक का नाम बोस-आइन्स्टाइन सांख्यिकी (Bose–Einstein statistics) है। लेजर तथा घर्षणहीन अतितरल हिलियम के व्यवहार इसी सांख्यिकी के परिणाम हैं। इस व्यवहार का सिद्धान्त १९२४-२५ में सत्येन्द्र नाथ बसु और अल्बर्ट आइंस्टीन ने विकसित किया था। 'अविलगनीय कणों' से मतलब उन कणों से है जिनकी ऊर्जा अवस्थाएँ बिल्कुल समान हों। यह सांख्यिकी उन्ही कणों पर लागू होती है जो जो पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के अनुसार नहीं चलते, अर्थात् अनेकों कण एक साथ एक ही 'क्वांटम स्टेट' में रह सकते हैं। ऐसे कणों का चक्रण (स्पिन) का मान पूर्णांक होता है तथा उन्हें बोसॉन (bosons) कहते हैं। यह सांख्यिकी १९२० में सत्येन्द्रनाथ बोस द्वारा प्रतिपादित की गयी थी और फोटानों के सांख्यिकीय व्यवहार को बताने के लिये थी। इसे सन् १९२४ में आइंस्टीन ने सामान्यीकृत किया जो कणों पर भी लागू होती है। .

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भारतीय लेजर संघ

भारतीय लेजर संघ (Indian Laser Association / ILA) लेजर प्रौद्योगिकी एवं लेजर अनुप्रयोगों के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों का संघ है। यह लाभ-निरपेक्ष, बहुआयामी व्यावसायिक संघ है। इसका उद्देश्य भारत में लेजर तकनीकी एवं विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा एवं इसके अनुप्रयोगों को बढ़ावा देना है। यह संघ सेमिनार, सिम्पोजियम, प्रशिक्षण, संगोष्ठियाँ आदि आयोजित करता है। .

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मिस्र के पिरामिड

गीज़ा, मिस्र के एक पिरामिड समूह का दृश्य मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फैरो (सम्राट) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ खाद्यान, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था। भारत की तरह ही मिस्र की सभ्यता भी बहुत पुरानी है और प्राचीन सभ्यता के अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। यों तो मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और काहिरा के उपनगर गीज़ा में तीन लेकिन सामान्य विश्वास के विपरीत सिर्फ गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका। यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। १९वीं सदी में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी परिशुद्धता से बनाया गया है कि वर्तमान तकनीक ऐसी कृति को दोहरा नहीं सकती। कुछ साल पहले तक (लेसर किरणों से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर! प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे। म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४५० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २३ वर्षों में पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा। क्या ऐसा संभव था? विशाल श्रमशक्ति के अलावा क्या प्राचीन मिस्रवासियों को सूक्ष्म गणितीय और खगोलीय ज्ञान रहा होगा? विशेषज्ञों के मुताबिक पिरामिड के बाहर पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती। मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है। .

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मुक्त इलेक्ट्रॉन लेजर

'''फेलिक्स''' (FELIX) नामक मुक्त इलेक्ट्रान लेजर सुविधा (नीदरलैण्ड्स) मुक्त इलेक्ट्रान लेजर (free-electron laser या FEL) एक प्रकार का लेजर है जो एक विशेष प्रकार के चुम्बकीय क्षेत्र से होकर गुजरने वाले उच्च वेगीय इलेक्ट्रानों की सहायता से उत्पन्न किया जाता है। इस लेजर की आवृत्ति-परास सभी प्रकार के लेजरों में सबसे अधिक है। यह सबसे अधिक यूनेबल (tunable) भी है। वर्तमान समय में मुक्त इलेक्ट्रान लेजर माइक्रोवेव से लेकर टेराहर्ट्ज और अवरक्त (infrared), दृष्य लेजर से लेकर पराबैंगनी और एक्स-किरण लेजर तक विस्तृत है। अनडुलेटर नामक युक्ति मुक्त इलेक्ट्रान लेजर की मुख्य युक्ति है। श्रेणी:लेजर.

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मेसर

एक हाइड्रोजन रेडियो आवृति निरावेशन, हाइड्रोजन मेसर में प्रथम तन्तु (विवरण के लिए नीचे देखें) मेसर एक ऐसा यन्त्र है जो उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा प्रवर्धन के माध्यम से सम्बंद्ध् विद्युतचुम्बकीय तरंगे उत्पन्न करता है। ऐतिहासिक रूप से यह परिवर्णी (संक्षिप्त) नाम मेसर (MESAR) से व्युत्पन्न होता है जिसका अर्थ विकिरण के उद्दीप्त उत्सर्जन द्वारा सूक्ष्मतरंग प्रवर्धन (Microwave Amplification by Stimulated Emission of Radiation) है। .

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रमन स्पेक्ट्रमिकी

रमन संकेत में शामिल राज्यों को दिखाते हुए ऊर्जा स्तर का आरेखरेखा की मोटाई लगभग विभिन्न संक्रमण से सिग्नल की शक्ति के लिए आनुपातिक है। रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) (सी वी रमन के नाम पर आधारित) एक वर्णक्रमीय (स्पेक्ट्रोस्कोपी) तकनीक है जिसका प्रयोग एक प्रणाली में कंपन, घूर्णन तथा अन्य कम आवृत्ति के प्रकारों के अध्ययन में होता है। यह एक रंग के प्रकाश (मोनोक्रोमेटिक लाईट) के, आम तौर पर इन्फ्रारेड या पराबैंगनी रेंज के पास लेज़र से दिखाई देने वाले अलचकदार स्कैटरिंग (बिखराव) या रमन बिखराव (रमन स्कैटरिंग) पर आधारित है। प्रणाली में लेज़र प्रकाश फ़ोनोन (phonon) या उत्तेज़क कारकों से क्रिया करता है जिसके परिणामस्वरूप लेज़र फोटोन की ऊर्जा ऊपर या नीचे स्थानांतरित होती रहती है। ऊर्जा में बदलाव प्रणाली में फ़ोनोन (phonon) मोड के बारे में जानकारी देता है। इन्फ्रारेड वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) समान तरह की, लेकिन अतिरिक्त सूचना प्रदान करती है। आमतौर पर, एक नमूने को एक लेज़र बीम से प्रकाशित किया जाता है। प्रकाशित बिंदु से रोशनी को एक लेंस के माध्यम से एकत्रित किया जाता है और मोनोक्रोमेटर (monochromator) के माध्यम से भेजा जाता है। रेले बिखराव (रेले स्कैटरिंग) के कारण, लेज़र लाइन के पार की तरंगे छान ली जाती हैं जबकि बची हुई रोशनी को एक डिटेक्टर पर छितराया जाता है। स्वाभाविक रमन बिखराव (रमन स्कैटरिंग) आम तौर पर बहुत कमजोर होता है और इसी कारण रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) में मुख्य कठिनाई प्रचंड रेले स्कैटर्ड लेज़र प्रकाश में से कमज़ोर अलचकदार स्कैटर्ड लेज़र प्रकाश को अलग करना है। ऐतिहासिक रूप से, एक उच्च दर की लेज़र रिजेक्शन को प्राप्त करने के लिए रमन स्पेक्ट्रोमीटर ने होलोग्राफिक (holographic) ग्रेटिंग तथा कई चरणों में फैलाव का प्रयोग किया। अतीत में, रमन फैलाव सेटअप के लिए डिटेक्टर के रूप में फोटोमल्टीप्लायर (photomultiplier) पहली पसंद थे, जो अत्यधिक समय लेते थे। लेकिन, आधुनिक उपकरण लगभग सार्वभौमिक रूप से लेज़र रिजेक्शन तथा स्पेक्ट्रोग्राफ और सीसीडी (CCD) डिटेक्टरों के लिए नॉच (notch) या एज फ़िल्टर (edge filter) (या तो एक्सियल ट्रांसमिसिव (axial transmissive (एटी (AT)), ज़ेर्नी-टर्नर (Czerny-Turner) (सीटी (CT)) मोनोक्रोमेटर या फिर एफटी (FT) (फोरियर ट्रांसफोर्म स्पेक्ट्रोस्कोपी आधारित)), का प्रयोग करते हैं। रमन वर्णक्रमीयता (स्पेक्ट्रोस्कोपी) के कई उन्नत प्रकार हैं, जिसमे सरफेस एन्हैंस्ड रमन (surface-enhanced Raman), टिप एन्हैंस्ड रमन (tip-enhanced Raman), पोलराइज्ड रमन (polarised Raman), स्टिमुलेटेड रमन (stimulated Raman) (स्टिमुलेटेड उत्सर्जन की तरह), ट्रांसमिशन रमन (transmission Raman), स्पैटियली-ऑफ़सेट रमन (spatially-offset Raman) और हायपर रमन (hyper Raman) शामिल हैं। .

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राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र

राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र स्थित '''इण्डस-दो''' (INDUS-2) राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केन्द्र (RRCAT) मध्य प्रदेश के इन्दौर के बाहरी हिस्से में सुखनिवास गांव के पास स्थित है। यह भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग के अन्तरगत स्थापित एक अनुसंधान एवं विकास केन्द्र है। इसकी स्थापना १९८५ में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने की थी। यहाँ पर मुख्यतः दो क्षेत्रों में कार्य होता है - कणों के त्वरक (particle accelerator) तथा लेजर (LASER)। इस समय इण्डस्-१ व इन्डस्-२ नामक दो इलेक्ट्रान त्वरक यहां काम कर रहे हैं। इनसे निकलने वाले विकिरण का नाम सिंक्रोट्रान् रेडिएशन (Synchrotron radiation) है जिसका उपयोग अनेक क्षेत्रों में होता है। इसके अतिरिक्त यहां पर औद्योगिक व मेडिकल त्वरक बनाने का कार्य भी हांथ में लिया गया है। .

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लेजर-निर्देशित बम

बोल्ट-११७ नामक लेजर-निर्देशित बम लेजर-निर्देशित बम (laser-guided bomb / LGB) अतिशुद्धता से लक्ष्य को भेदने वाला बम है। अपने लक्ष्य पर वार करने के लिये यह लेजर प्रकाश की सहायता लेता है। वैसे लेजर बम सबसे पहले अमेरिका ने 1960 में ही विकसित कर लिया था। इसके बाद इस तकनीक को सोवियत संघ, फ्रांस और ब्रिटेन ने भी विकसित किया। इस तकनीक में पहले लक्ष्य पर लेजर डाला जाता है जो परावर्तित होकर बम में लगे तंत्र ‘सीकर’ के पास आता है। इससे लक्ष्य की सही दिशा निर्धारित होती है। और लक्ष्य को सटीक भेदने में सहायता मिलती है। .

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लेज़र प्रिंटर

HP लेज़रजेट 4200 सिरीज़ प्रिंटर HP लेज़रजेट 1200 प्रिंटर एक लेज़र प्रिंटर कम्प्यूटर प्रिंटर का एक आम प्रकार है, जो तीव्र गति से किसी सादे कागज़ पर उच्च गुणवत्ता वाले अक्षर और चित्र उत्पन्न (मुद्रित) करता है। डिजिटल फोटोकॉपियर्स या बहु-कार्यात्मक प्रिंटर्स (MFPs) की ही तरह लेज़र प्रिंटर में भी एक ज़ेरोग्राफिक प्रिंटिंग प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है, लेकिन यह एनालॉग फोटोकॉपियर्स से इस रूप में अलग होता है कि प्रिंटर के फोटोकॉपियर पर एक लेज़र किरण की प्रत्यक्ष स्कैनिंग के द्वारा छवि उत्पन्न की जाती है। .

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संरक्षण कृषि

संरक्षण कृषि (Conservation tillage), खेती का एक बिल्कुल ही नया मॉडल है, जिसकी मदद से पर्यावरण का ख्याल रखा जाता है। इस अनोखी तरह की खेती में जमीन को या तो बिल्कुल भी नहीं जोता जाता (जुताई रहित कृषि) या फिर कम से कम जुताई होती है। इसमें फसल के पौधों को शुरू में नर्सरी में उगाया जाता है। साथ ही, लेजर की मदद से जमीन को जबरदस्त तरीके से समतल किया जाता है। ऊपर से, इसमें ड्रिप और स्प्रिंकलर्स जैसे सिंचाई के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल होता है। इन तरीकों का इस्तेमाल करके खेती में काफी मुनाफे का सौदा बन सकती है। साथ ही, इससे कृषि में इस्तेमाल होने वाली चीजों की कार्यकुशलता में जबरदस्त इजाफा होता है। इससे लागत कम आती है और पैदावार में काफी बढ़ोतरी होती है। इस सबका फायदा किसानों को मोटे मुनाफे के रूप में होता है। गंगा के मैदानों के किसानों के बीच खेती का यह नया तरीका काफी मशहूर हो रहा है। इसके पीछे बड़ी वजह है, इसका काफी अच्छा और फायदेमंद होना। .

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संवेष्टन

टेस्को से एक टुकड़े किए हुए पोर्क का सील बंद पैकेट. यह दर्शाता है पकाने का समय, सर्विंग्स की संख्या, 'डिस्प्ले अन्टिल' डेट, 'यूज़ बाई' डेट, किलोग्राम में वजन, £/kg और £/lb दोनों के मूल्य से वजन दर, प्रशीतित और भंडारण निर्देश.यह कहता हैं 'लेस डैन 3% फैट' और 'नो कार्ब्स पर सर्विंग' और इसमें एक बार कोड शामिल है। संघ का ध्वज, ब्रिटिश फार्म मानक ट्रेक्टर लोगो और ब्रिटिश मांस गुणवत्ता मानक लोगो भी मौजूद हैं। एक ब्लिस्टर पैक में गोलियाँ, जो खुद एक तह लगी दफ्ती के कार्टन में पैक है। संवेष्टन या पैकेजिंग, उत्पादों को वितरण, भंडारण, बिक्री और खपत के लिए बंद करने या सुरक्षित करने का विज्ञान, कला और प्रौद्योगिकी है। पैकेजिंग, डब्बों की डिज़ाइन प्रक्रिया, मूल्यांकन और उनके उत्पादन को भी संदर्भित करता है। पैकेजिंग को, उत्पादों को परिवहन, भंडारण, प्रचालन-तन्त्र, बिक्री और खपत के लिए तैयार करने की एक समन्वित प्रणाली के रूप में वर्णित किया जा सकता है। पैकेजिंग, धारण करता है, सुरक्षा करता है, संरक्षित रखता है, परिवहन करता है, सूचित करता है और बेचता है। कई देशों में यह पूरी तरह से सरकार, व्यापार, संस्थागत, औद्योगिक और व्यक्तिगत उपयोग में एकीकृत होता है। पैकेज लेबलिंग (en-GB) या लेबलिंग (en-US), पैकेजिंग पर या किसी अलग मगर जुड़े हुए लेबल पर लिखा हुआ, इलेक्ट्रॉनिक, ग्राफिक सम्प्रेषण है। .

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सक्रिय लेजर माध्यम

सक्रिय लेजर माध्यम या 'लेसन माध्यम' (active laser medium या gain medium या lasing medium) उस माध्यम को कहते हैं जो लेजर उत्पादन में प्रकाशीय लब्धि (optical gain) प्रदान करता है। सक्रिय लेजर माध्यम के कुछ उदाहरण.

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सौर पाल

सौर पाल (solar sail), जिसे प्रकाश पाल (light sail) या फ़ोटोन पाल (photon sail) भी कहते हैं सौर प्रकाश को बड़े दर्पणों से किसी अंतरिक्ष यान पर लगे बड़े आकार के परावर्तक पाल पर दाग़कर उस से बनने बाले विकिरण दाब द्वारा करे गये अंतरिक्ष यान प्रणोदन (गतिमान करने की क्रिया) को कहते हैं। जिस प्रकार कोई पालनौका पवन के प्रहार से चल पड़ती है, उसी प्रकार विचार है कि अंतरिक्ष यानों को प्रकाश के प्रहार से चलाया जा सकता है। वैज्ञानिकों की सोच है कि इस सिद्धांत से बनाये गये यानों पर ख़र्च कम होगा क्योंकि उन्हें अपने साथ ईन्धन ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी। कुछ प्रस्तावों में सौर प्रकाश के स्थान पर पथ्वी या चंद्रमा पर लेज़र किरणों का स्रोत लगाकर उन्हें पाल पर चमकाने का सुझाव दिया गया है। पृथ्वी की कक्षा के पास स्थित ८०० मीटर चौड़े और ८०० मीटर लम्बे सौर पाल पर सूरज की किरणों का बल लगभग ५ न्य्यूटन के बराबर पड़ेगा। यह एक हल्का बल है। लेकिन जहाँ आज के राकेट कुछ अरसे तक चलकर ईन्धन समाप्त होने पर रुक जाते हैं वहाँ सौर पाल यान को महीनों, वर्षों, दशकों या शताब्दियों तक लगातार अधिक गतिशील कर सकता है। विकिरण दाब एक वास्तविकता है और बिना पाल वाले अंतरिक्ष यानों पर भी इसका प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। .

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होलोग्राफ़ी

एक जर्मन पहचान पत्र में होलोग्राम का प्रयोग आइडेन्टीग्राम के रूप में त्रिआयामी होलोग्राफी (अंग्रेज़ी:थ्री डी होलोग्राफ़ी) एक स्टेटिक किरण प्रादर्शी प्रदर्शन युक्ति होती है। यह शब्द यूनानी, ὅλος होलोस यानि पूर्ण + γραφή ग्राफ़ी यानि लेखन या आरेखन से निकला है। इस तकनीक में किसी वस्तु से निकलने वाले प्रकाश को रिकॉर्ड कर बाद में पुनर्निर्मित किया जाता है, जिससे उस वस्तु के रिकॉर्डिंग माध्यम के सापेक्ष छवि में वही स्थिति प्रतीत होती है, जैसी रिकॉर्डिंग के समय थी। ये छवि देखने वाले की स्थिति और ओरियन्टेशन के अनुसार वैसे ही बदलती प्रतीत होती है, जैसी कि उस वस्तु के उपस्थित होने पर होती। इस प्रकार अंइकित छवि एक त्रिआयामि चित्र प्रस्तुत करती है और होलोग्राम कहलाती है।|हिन्दुस्तान लाईव। २१ जून २०१०। सारांश जैन होलोग्राम का आविष्कार ब्रिटिश-हंगेरीयन भौतिक विज्ञानी डैनिस गैबर ने सन १९४७ में किया था, जिसे सन् १९६० में और विकसित किया गया। इसके बाद इसे औद्योगिक उपयोग में लाया गया। इसका उपयोग पुस्तकों के कवर, क्रेडिट कार्ड आदि पर एक छोटी सी रूपहली चौकोर पट्टी के रूप में दिखाई देता है। इसे ही होलोग्राम कहा जाता है। यह देखने में त्रिआयामी छवि या त्रिबिंब प्रतीत होती है, किन्तु ये मूल रूप में द्विआयामी आकृति का ही होता है। इसके लिये जब दो द्विआयामी आकृतियों को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता जाता है। तकनीकी भाषा में इसे सुपरइंपोजिशन कहते हैं। यह मानव आंख को गहराई का भ्रम भी देता है। नोकिया के एक मोबाइल फोन पर त्रिआयामी होलोग्राम होलोग्राम के निर्माण में अतिसूक्ष्म ब्यौरे अंकित होने आवश्यक होते हैं, अतः इसको लेजर प्रकाश के माध्यम से बनाया जाता है। लेजर किरणें एक विशेष तरंगदैर्घ्य की होती हैं। क्योंकि होलोग्राम को सामान्य प्रकाश में देखा जाता है, अतः ये विशेष तरंगदैर्घ्य वाली लेजर किरणें होलोग्राम को चमकीला बना देती हैं। होलोग्राम पर चित्र प्राप्त करने के लिए दो अलग अलग तरंगदैर्घ्य वाली लेजर किरणों को एक फोटोग्राफिक प्लेट पर अंकित किया जाता है। इससे पहले दोनों लेजर किरणें एक बीम स्प्रैडर से होकर निकलती हैं, जिससे प्लेट पर लेज़र किरणों का प्रकाश फ्लैशलाइट की भांति जाता है और चित्र अंकित हो जाता है। इससे एक ही जगह दो छवियां प्राप्त होती हैं। यानि एक ही आधार पर लेजर प्रकाश के माध्यम से दो विभिन्न आकृतियों को इस प्रकार अंकित किया जाता है, जिससे देखने वाले को होलोग्राम को अलग-अलग कोण से देखने पर अलग आकृति दिखाई देती हैं। मानव आंख द्वारा जब होलोग्राम को देखा जाता है तो वह दोनों छवियों को मिलाकर मस्तिष्क में संकेत भेजती हैं, जिससे मस्तिष्क को उसके त्रिआयामी होने का भ्रम होता है। होलोग्राम तैयार होने पर उसको चांदी की महीन प्लेटों पर मुद्रित किया जाता है। ये चांदी की पर्तें डिफ्लैक्टेड प्रकाश से बनाई जाती हैं। होलोग्राम की विशेषता ये है कि इसकी चोरी और नकल करना काफी जटिल है, अतः अपनी सुरक्षा और स्वयं को अन्य प्रतिद्वंदियों से अलग करने के लिए विभिन्न कम्पनियां अपना होलोग्राम प्रयोग कर रही हैं। होलोग्राम के प्रयोग से नकली उत्पाद की पहचान सरलता से की जा सकती है। भारत में होलोग्राम की एक बड़ी कंपनी होलोस्टिक इंडिया लिमिटेड है। नकली दवाओं की पहचान करने के लिए भारत की प्रमुख औषधि कंपनी ने ग्लैक्सो ने बुखार कम परने वाली औषधि क्रोसीन को एक त्री-आयामी होलोग्राम पैक में प्रस्तुत किया है। यह परिष्कृत थ्री-डी होलोग्राम भारत में पहला एवं एकमात्र पीड़ानाशक एंटी पायेरेटिक ब्रांड है। होलोग्राम का प्रयोग करने वाली प्रसिद्ध भारतीय कंपनियों में हिन्दुस्तान यूनीलीवर, फिलिप्स इंडिया, अशोक लेलैंड, किर्लोस्कर, हॉकिन्स जैसी कंपनियां शामिल है। इसके अलावा रेशम और सिंथेटिक कपड़ा उद्योग के लिए होलोग्राफिक धागों के उत्पादन की योजना भी प्रगति पर है1 होलोग्राम कम होता खर्चीला है और इसके रहते उत्पादों के साथ छेड़छाड़ की जाये तो बड़ी सरलता से उसका पता लग जाता है। इसकी मदद से उत्पाद की साख और विशिष्टता बनी रहती है।|दैट्स हिन्दी। २ दिसम्बर २००७। मिश्रा.कैलाश.अभिनव प्रभु इसके अलावा मतदाता पहचान पत्र आदि में भी थ्री-डी होलोग्राम का प्रयोग किया जाता है। इसके लिये भारतीय निर्वाचन आयोग ने भी निर्देश जारी किये हैं। भारत के मतदाता पहचान पत्रों में भी होलोग्राम का प्रयोग होता है।|याहू-जागरण। १२ जनवरी २००९ इसके अलावा विद्युत आपूर्ति मीटरों पर बिजली की चोरी रोकने हेतु भी होलोग्राम का प्रयोग होता है। > File:Kinebar3.jpg| File:Hologram.jpg| File:Holo-Mouse.jpg| File:2_holograms.jpg| .

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घन अवस्था लेसर

घन अवस्था लेजर (solid-state laser) वह लेजर है जिसका लब्धि-माध्यम ठोस हो, न कि गैस या द्रव। अर्धचालकों पर आधारित लेजर (जैसे लेजर डायोड) भी ठोस अवस्था लेजर ही हैं किन्तु उनको प्रायः एक अलग श्रेणी में रखा जाता है। श्रेणी:लेजर.

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कर्कट रोग

कर्कट (चिकित्सकीय पद: दुर्दम नववृद्धि) रोगों का एक वर्ग है जिसमें कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित वृद्धि (सामान्य सीमा से अधिक विभाजन), रोग आक्रमण (आस-पास के उतकों का विनाश और उन पर आक्रमण) और कभी कभी अपररूपांतरण अथवा मेटास्टैसिस (लसिका या रक्त के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में फ़ैल जाता है) प्रदर्शित करता है। कर्कट के ये तीन दुर्दम लक्षण इसे सौम्य गाँठ (ट्यूमर या अबुर्द) से विभेदित करते हैं, जो स्वयं सीमित हैं, आक्रामक नहीं हैं या अपररूपांतरण प्रर्दशित नहीं करते हैं। अधिकांश कर्कट एक गाँठ या अबुर्द (ट्यूमर) बनाते हैं, लेकिन कुछ, जैसे रक्त कर्कट (श्वेतरक्तता) गाँठ नहीं बनाता है। चिकित्सा की वह शाखा जो कर्कट के अध्ययन, निदान, उपचार और रोकथाम से सम्बंधित है, ऑन्कोलॉजी या अर्बुदविज्ञान कहलाती है। कर्कट सभी उम्र के लोगों को, यहाँ तक कि भ्रूण को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन अधिकांश किस्मों का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। कर्कट में से १३% का कारण है। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, २००७ के दौरान पूरे विश्व में ७६ लाख लोगों की मृत्यु कर्कट के कारण हुई। कर्कट सभी जानवरों को प्रभावित कर सकता है। लगभग सभी कर्कट रूपांतरित कोशिकाओं के आनुवंशिक पदार्थ में असामान्यताओं के कारण होते हैं। ये असामान्यताएं कार्सिनोजन या का कर्कटजन (कर्कट पैदा करने वाले कारक) के कारण हो सकती हैं जैसे तम्बाकू धूम्रपान, विकिरण, रसायन, या संक्रामक कारक.

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क्रिप्टॉन

क्रिप्टॉन एक रासायनिक तत्व है जो निष्क्रिय गैसों के समूह में आता है। इसका परमाणु क्रमांक 36 है। यह एक रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन गैस है जो बहुत ही छोटी मात्रा में हमारे वायुमंडल में पाई जाती है। इसका प्रयोग बिजली के बल्ब बनाने में और फ़ोटोग्राफ़ी में किया जाता है। जब इसे प्लाज़्मा स्थिति में लाया जाता है तो यह बहुत तरंगदैर्ध्यों (वेवलेन्थ) पर प्रकाश उत्पन्न करती है। इस वजह से इसे लेज़र बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। .

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अनुनाद

जैसे-जैसे आवृत्ति, अनुनाद आवृत्ति के पास पहुँचती है, आयाम बढता जाता है भौतिकी में बहुत से तंत्रों (सिस्टम्स्) की ऐसी प्रवृत्ति होती है कि वे कुछ आवृत्तियों पर बहुत अधिक आयाम के साथ दोलन करते हैं। इस स्थिति को अनुनाद (रिजोनेन्स) कहते हैं। जिस आवृत्ति पर सबसे अधिक आयाम वाले दोलन की प्रवृत्ति पायी जाती है, उस आवृत्ति को अनुनाद आवृत्ति (रेसोनेन्स फ्रिक्वेन्सी) कहते हैं। सभी प्रकार के कम्पनों या तरंगों के साथ अनुनाद की घटना जुड़ी हुई है। अर्थात यांत्रिक, ध्वनि, विद्युतचुम्बकीय अथवा क्वांटम तरंग फलनों के साथ अनुनाद हो सकती है। कोई छोटे आयाम का भी आवर्ती बल, जो अनुनाद आवृत्ति वाला या उसके लगभग बराबर आवृत्ति वाला हो, उस तंत्र में बहुत अधिक आयाम के दोलन पैदा कर सकता है। अनुनादी तंत्रों के बहुत से उपयोग हैं। इनका उपयोग किसी वांछित आवृत्ति पर कम्पन (दोलन) पैदा करने के लिया किया जा सकता है; अथवा किसी जटिल कम्पन (जिसमें बहुत सी आवृत्तियों का मिश्रण हो; जैसे रेडियो या टीवी सिगनल) में से किसी चुनी हुई आवृत्ति को छाटने (फिल्टर करने) के लिये किया जा सकता है।; अनुनाद होने के लिये तीन चींजें जरूरी हैं- १) एक वस्तु या तन्त्र - जिसकी कोई प्राकृतिक आवृत्ति हो; २) वाहक या कारक बल (ड्राइविंग फोर्स) - जिसकी आवृत्ति, तन्त्र की प्राकृतिक आवृत्ति के समान हो; ३) इस तंत्र में उर्जा नष्ट करने वाला अवयव कम से कम हो (कम डैम्पिंग हो)। (घर्षण, प्रतिरोध (रेजिस्टैन्स), श्यानता (विस्कासिटी) आदि किसी तन्त्र में उर्जा ह्रास के लिये जिम्मेदार होते हैं।) .

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अनुप्रयुक्त भौतिकी

भौतिकी के तकनीकी और व्यावहारिक अनुप्रयोगों से सम्बंधित विषयों के विज्ञान को अनुप्रयुक्त भौतिकी (अप्लायड फिजिक्स) कहते हैं। सैद्धांतिक भौतिकी और अनुप्रयुक्त भौतिकी के बीच की सीमाओं को किसी वैज्ञानिक की अभिप्रेरणा और अभिप्राय जैसे तत्त्वों से लेकर किसी अनुसन्धान के प्रोधयोगिकी और विज्ञान पर अंततः पड़ने वाले असर तक जा सकता है। अभियाँत्रिकी से इसमें अन्तर केवल इतना है कि, जहाँ अभियाँत्रिकी में विद्यमान तकनीकों पर आधारित ठोस अंत परिणाम की अपेक्षा की जाती है, व्यावहारिक भौतिकी मे नये तकनीकों पर, या विद्यमान तकनीकों पर, अनुसंधान होता है। काफी हद तक यह अनुप्रयुक्त गणित के समान है। भौतिक विज्ञानी भौतिकी के सिद्धांतों का प्रयोग सैद्धांतिक भौतिकी के विकास हेतु यंत्रों को बनाने के लिये भी करते हैं। इसका उदाहरण है त्वरक भौतिकी। .

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अपस्मार

अपस्मार या मिर्गी (वैकल्पिक वर्तनी: मिरगी, अंग्रेजी: Epilepsy) एक तंत्रिकातंत्रीय विकार (न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर) है जिसमें रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। मस्तिष्क में किसी गड़बड़ी के कारण बार-बार दौरे पड़ने की समस्या हो जाती है।, हिन्दुस्तान लाइव, १८ नवम्बर २००९ दौरे के समय व्यक्ति का दिमागी संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा जाता है और उसका शरीर लड़खड़ाने लगता है। इसका प्रभाव शरीर के किसी एक हिस्से पर देखने को मिल सकता है, जैसे चेहरे, हाथ या पैर पर। इन दौरों में तरह-तरह के लक्षण होते हैं, जैसे कि बेहोशी आना, गिर पड़ना, हाथ-पांव में झटके आना। मिर्गी किसी एक बीमारी का नाम नहीं है। अनेक बीमारियों में मिर्गी जैसे दौरे आ सकते हैं। मिर्गी के सभी मरीज एक जैसे भी नहीं होते। किसी की बीमारी मध्यम होती है, किसी की तेज। यह एक आम बीमारी है जो लगभग सौ लोगों में से एक को होती है। इनमें से आधों के दौरे रूके होते हैं और शेष आधों में दौरे आते हैं, उपचार जारी रहता है। अधिकतर लोगों में भ्रम होता है कि ये रोग आनुवांशिक होता है पर सिर्फ एक प्रतिशत लोगों में ही ये रोग आनुवांशिक होता है। विश्व में पाँच करोड़ लोग और भारत में लगभग एक करोड़ लोग मिर्गी के रोगी हैं। विश्व की कुल जनसँख्या के ८-१० प्रतिशत लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इसका दौरा पड़ने की संभावना रहती है।, वेब दुनिया, डॉ॰ वोनोद गुप्ता। १७ नवम्बर को विश्व भर में विश्व मिरगी दिवस का आयोजन होता है। इस दिन तरह-तरह के जागरुकता अभियान और उपचार कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।।। द टाइम्स ऑफ इंडिया।, याहू जागरण, १७ नवम्बर २००९ .

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