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लिंगायत मत

सूची लिंगायत मत

बसवेश्वर की बहुत प्रतिष्ठा है। लिंगायत मत भारतवर्ष के प्राचीनतम सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है। इस मत के ज्यादातर अनुयायी दक्षिण भारत में हैं। यह मत भगवान शिव की स्तुति आराधना पर आधारित है। भगवान शिव जो सत्य सुंदर और सनातन हैं, जिनसे सृष्टि का उद्गार हुआ, जो आदि अनंत हैं। हिन्दू धर्म में त्रिदेवों का वर्णन है जिनमें सर्वप्रथम भगवान शिव का ही नाम आता है। शिव जिनसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति जो सम्पूर्ण जगत को जीवन प्रदान करते हैं। भगवान विष्णु जो सम्पूर्ण जगत के पालनहार हैं। तीसरे अंश भगवान महेश (शंकर) की उत्पत्ति जीवन अर्थात अमुक्त आत्माओं को नष्ट करके पुनः जीवन मुक्ति चक्र में स्थापित करना है। लिंगायत सम्प्रदाय भगवान शिव जो कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, चराचर जगत के उत्पत्ति के कारक हैं उनकी स्तुति आराधना करता है। आप अन्य शब्दों में इन्हें शैव संप्रदाय को मानने वाले अनुयायी कह सकते हैं। इस सम्प्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में महात्मा बसवण्णां ने की थी। इस मत के उपासक लिंगायत (ಲಿಂಗಾಯತರು) कहलाते हैं। यह शब्द कन्नड़ शब्द लिंगवंत से व्युत्पन्न है। ये लोग मुख्यतः महात्मा बसवण्णा की शिक्षाओं के अनुगामी हैं। .

8 संबंधों: दर्शनशास्त्र, शैव, वेद, वोक्कालिगा, वीरशैव, आगम (हिन्दू), कन्नड़, कापू (जाति)

दर्शनशास्त्र

दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम् सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। दर्शन यथार्थ की परख के लिये एक दृष्टिकोण है। दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र स्वत्व, अर्थात प्रकृति तथा समाज और मानव चिंतन तथा संज्ञान की प्रक्रिया के सामान्य नियमों का विज्ञान है। दर्शनशास्त्र सामाजिक चेतना के रूपों में से एक है। दर्शन उस विद्या का नाम है जो सत्य एवं ज्ञान की खोज करता है। व्यापक अर्थ में दर्शन, तर्कपूर्ण, विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार की कला है। इसका जन्म अनुभव एवं परिस्थिति के अनुसार होता है। यही कारण है कि संसार के भिन्न-भिन्न व्यक्तियों ने समय-समय पर अपने-अपने अनुभवों एवं परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवन-दर्शन को अपनाया। भारतीय दर्शन का इतिहास अत्यन्त पुराना है किन्तु फिलॉसफ़ी (Philosophy) के अर्थों में दर्शनशास्त्र पद का प्रयोग सर्वप्रथम पाइथागोरस ने किया था। विशिष्ट अनुशासन और विज्ञान के रूप में दर्शन को प्लेटो ने विकसित किया था। उसकी उत्पत्ति दास-स्वामी समाज में एक ऐसे विज्ञान के रूप में हुई जिसने वस्तुगत जगत तथा स्वयं अपने विषय में मनुष्य के ज्ञान के सकल योग को ऐक्यबद्ध किया था। यह मानव इतिहास के आरंभिक सोपानों में ज्ञान के विकास के निम्न स्तर के कारण सर्वथा स्वाभाविक था। सामाजिक उत्पादन के विकास और वैज्ञानिक ज्ञान के संचय की प्रक्रिया में भिन्न भिन्न विज्ञान दर्शनशास्त्र से पृथक होते गये और दर्शनशास्त्र एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में विकसित होने लगा। जगत के विषय में सामान्य दृष्टिकोण का विस्तार करने तथा सामान्य आधारों व नियमों का करने, यथार्थ के विषय में चिंतन की तर्कबुद्धिपरक, तर्क तथा संज्ञान के सिद्धांत विकसित करने की आवश्यकता से दर्शनशास्त्र का एक विशिष्ट अनुशासन के रूप में जन्म हुआ। पृथक विज्ञान के रूप में दर्शन का आधारभूत प्रश्न स्वत्व के साथ चिंतन के, भूतद्रव्य के साथ चेतना के संबंध की समस्या है। .

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शैव

भगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं। महाभारत में माहेश्वरों (शैव) के चार सम्प्रदाय बतलाए गए हैं: (i) शैव (ii) पाशुपत (iii) कालदमन (iv) कापालिक। शैवमत का मूलरूप ॠग्वेद में रुद्र की आराधना में हैं। 12 रुद्रों में प्रमुख रुद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाए। शैव धर्म से जुड़ी महत्‍वपूर्ण जानकारी और तथ्‍य: (1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है। (2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है। (3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है। (4) अथर्ववेद में शिव को भव, शर्व, पशुपति और भूपति कहा जाता है। (5) लिंगपूजा का पहला स्पष्ट वर्णन मत्स्यपुराण में मिलता है। (6) महाभारत के अनुशासन पर्व से भी लिंग पूजा का वर्णन मिलता है। (7) वामन पुराण में शैव संप्रदाय की संख्या चार बताई गई है: (i) पाशुपत (ii) काल्पलिक (iii) कालमुख (iv) लिंगायत (7) पाशुपत संप्रदाय शैवों का सबसे प्राचीन संप्रदाय है। इसके संस्थापक लवकुलीश थे जिन्‍हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है। (8) पाशुपत संप्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया, इस मत का सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र है। (9) कापलिक संप्रदाय के ईष्ट देव भैरव थे, इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र शैल नामक स्थान था। (10) कालामुख संप्रदाय के अनुयायिओं को शिव पुराण में महाव्रतधर कहा जाता है। इस संप्रदाय के लोग नर-पकाल में ही भोजन, जल और सुरापान करते थे और शरीर पर चिता की भस्म मलते थे। (11) लिंगायत समुदाय दक्षिण में काफी प्रचलित था। इन्हें जंगम भी कहा जाता है, इस संप्रदाय के लोग शिव लिंग की उपासना करते थे। (12) बसव पुराण में लिंगायत समुदाय के प्रवर्तक वल्लभ प्रभु और उनके शिष्य बासव को बताया गया है, इस संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय भी कहा जाता था। (13) दसवीं शताब्दी में मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की, इस संप्रदाय का व्यापक प्रचार प्रसार बाबा गोरखनाथ के समय में हुआ। (14) दक्षिण भारत में शैवधर्म चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव और चोलों के समय लोकप्रिय रहा। (15) नायनारों संतों की संख्या 63 बताई गई है। जिनमें उप्पार, तिरूज्ञान, संबंदर और सुंदर मूर्ति के नाम उल्लेखनीय है। (16) पल्लवकाल में शैव धर्म का प्रचार प्रसार नायनारों ने किया। (17) ऐलेरा के कैलाश मदिंर का निर्माण राष्ट्रकूटों ने करवाया। (18) चोल शालक राजराज प्रथम ने तंजौर में राजराजेश्वर शैव मंदिर का निर्माण करवाया था। (19) कुषाण शासकों की मुद्राओं पर शिंव और नंदी का एक साथ अंकन प्राप्त होता है। (20) शिव पुराण में शिव के दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं: (i) महाकाल (ii) तारा (iii) भुवनेश (iv) षोडश (v) भैरव (vi) छिन्नमस्तक गिरिजा (vii) धूम्रवान (viii) बगलामुखी (ix) मातंग (x) कमल (21) शिव के अन्य ग्यारह अवतार हैं: (i) कपाली (ii) पिंगल (iii) भीम (iv) विरुपाक्ष (v) विलोहित (vi) शास्ता (vii) अजपाद (viii) आपिर्बुध्य (ix) शम्भ (x) चण्ड (xi) भव (22) शैव ग्रंथ इस प्रकार हैं: (i) श्‍वेताश्वतरा उपनिषद (ii) शिव पुराण (iii) आगम ग्रंथ (iv) तिरुमुराई (23) शैव तीर्थ इस प्रकार हैं: (i) बनारस (ii) केदारनाथ (iii) सोमनाथ (iv) रामेश्वरम (v) चिदम्बरम (vi) अमरनाथ (vii) कैलाश मानसरोवर (24) शैव सम्‍प्रदाय के संस्‍कार इस प्रकार हैं: (i) शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। (ii) इसके संन्यासी जटा रखते हैं। (iii) इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। (iv) इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। (v) इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। (vi) यह निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। (vii) शैव चंद्र पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। (viii) शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। (ix) शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। (x) यह भभूति तीलक आड़ा लगाते हैं। (25) शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा,औघड़, योगी, सिद्ध कहा जाता है। .

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वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

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वोक्कालिगा

वोक्कालिंगा,(उच्चारण ओकलालिगा): भारत के कर्नाटक राज्य में आदि भगवान शिव में आस्था रखने वाले लोगों का एक समुदाय है। कर्नाटक में वोक्कालिंगा समुदाय समुदाय मुख्य रूप से पूर्वी मैसूर राज्य और अब दक्षिणी कर्नाटक के अन्य क्षेत्रों में पाए जाने वाले विभिन्न कृषि, पूर्व विरोधाभासी, सामाजिक समूहों को संदर्भित करता है। वे राजनीतिक और संख्यात्मक रूप से महत्वपूर्ण हिंदू समूह बनाते हैं। कर्नाटक में भगवान शिव में आस्था रखने वाले लोगों के एक अन्य समुदाय लिंगायत लोगों के मुकाबले इनकी संख्या कम है, लेकिन फिर भी ये जबर्दस्त तरीके अपनी आर्थिक और सामाजाकि और राजनैतिक छाप छोड़ते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं। में 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम तक, जो पूर्ववर्ती राज्य मैसूर को बॉम्बे राज्य, हैदराबाद और कूर्ग राज्य के जिलों को शामिल करके बढ़ाया गया था। मैसूर का नाम बदलकर 1973 में कर्नाटक रखा गया, जिसके बाद लिंगायत कर्नाटक में सबसे अधिक आबादी वाला सामाजिक समूह बन गया।.

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वीरशैव

वीरशैव धर्म एक ऐसी परम्परा है जिसमें भक्त शिव परम्परा से बन्धा हो। यह दक्षिण भारत में बहुत लोकप्रिय हुई है। ये वेदों पर आधारित धर्म है, ये भारत का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है पर इसके ज़्यादातर उपासक कर्नाटक में हैं और भारत का दक्षिण राज्यो महाराष्ट्र आंद्रप्रदेश केरला ओर तमिलनाड मे वीरशैव उपासक अदिक्तम है। ये एकेश्वरवादी धर्म है। तमिल में इस धर्म को शिवाद्वैत धर्म अथवा लिंगायत धर्म भी कहते हैं। उत्तर भारत में इस धर्म का औपचारिक नाम " शैवा आगम" है। अनुक्रम १ इतिहास २ मुख्य सिद्धान्त ३ १ शिव ४ धर्मग्रन्थ ४ वीरशैव संस्कृति ६.१ वैदिक काल और यज्ञ ६.२ तीर्थ एवं तीर्थ यात्रा ६.३ मूर्तिपूजा ६.४ मंदिर ६.५ शाकाहार ६.६ भक्त ६.७ उदाहरण के पृष्ठ ७ संदर्भ ८ वाह्य सूत्र .

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आगम (हिन्दू)

आगम परम्परा से आये हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये वेद के सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः शिवजी होते हैं। यह शास्त्र साधारणतया 'तंत्रशास्त्र' के नाम से प्रसिद्ध है। निगमागममूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (.

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कन्नड़

कोई विवरण नहीं।

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कापू (जाति)

कापू (तेलुगु కాపు) मुख्यतः आंध्र प्रदेश तथा तेलंगण निवासी एक जाति है। तेलुगु में कपू या कापू शब्द का मतलब 'किसान' या संरक्षक है। कापू लोग तेलुगु बोलते हैं और मुख्यतः खेती करते हैं। इन्हें कुलनाम नायडू से भी जाना जाता है जिसका अर्थ नेता है। हालांकि कई अन्य कृषि समुदायों द्वारा भी नायडू/नायक/नायकर का प्रयोग किया जाता है। मुन्नुरु कापू, तेलगा, बलीजा, तुर्पू कापू और ओंटारी आदि इसकी उपजातियाँ हैं। आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय मुख्यतः तटीय जिलों, उत्तरी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के रायलसीमा क्षेत्र में केंद्रित है। ये तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और कुछ अन्य भारतीय राज्यों के साथ-साथ श्रीलंका में भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। कापू की उपजातियों में बलीजा, तेलगा, मुन्नुरु कापू, तुर्पू कापू और ओंटारी उपजातियां आंध्र प्रदेश की आबादी का लगभग 28 प्रतिशत हिस्सा हैं, अतः वे इस राज्य में सबसे बड़ा जातिसमूह हैं। 20वीं सदी के अंतिम दशक में उनमें से कुछ लोग विदेशों में, विशेष तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, बोनेयर, न्यूजीलैंड, मलेशिया, दक्षिण अफ्रीका, सिंगापुर, कनाडा, त्रिनिदाद, नीदरलैंड, जिम्बाब्वे, कुराकाओ, चीन, गुयाना, मॉरीशस और आस्ट्रेलिया में जाकर बस गए। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

लिंगायत, लिंगायत धर्म, वीरशैव धर्म, वीरशैवधर्म

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