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आगम (हिन्दू)

सूची आगम (हिन्दू)

आगम परम्परा से आये हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ये वेद के सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः शिवजी होते हैं। यह शास्त्र साधारणतया 'तंत्रशास्त्र' के नाम से प्रसिद्ध है। निगमागममूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (.

5 संबंधों: परमार भोज, पंचरात्र, यमुनाचार्य, लिंगायत मत, वीरशैव दर्शन

परमार भोज

राजा भोज की प्रतिमा (भोपाल) भोज पंवार या परमार वंश के नवें राजा थे। परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारानगरी (धार) से आठवीं शताब्दी से लेकर चौदहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। भोज ने बहुत से युद्ध किए और अपनी प्रतिष्ठा स्थापित की जिससे सिद्ध होता है कि उनमें असाधारण योग्यता थी। यद्यपि उनके जीवन का अधिकांश युद्धक्षेत्र में बीता तथापि उन्होंने अपने राज्य की उन्नति में किसी प्रकार की बाधा न उत्पन्न होने दी। उन्होंने मालवा के नगरों व ग्रामों में बहुत से मंदिर बनवाए, यद्यपि उनमें से अब बहुत कम का पता चलता है। कहा जाता है कि वर्तमान मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल को राजा भोज ने ही बसाया था, तब उसका नाम भोजपाल नगर था, जो कि कालान्तर में भूपाल और फिर भोपाल हो गया। राजा भोज ने भोजपाल नगर के पास ही एक समुद्र के समान विशाल तालाब का निर्माण कराया था, जो पूर्व और दक्षिण में भोजपुर के विशाल शिव मंदिर तक जाता था। आज भी भोजपुर जाते समय, रास्ते में शिवमंदिर के पास उस तालाब की पत्थरों की बनी विशाल पाल दिखती है। उस समय उस तालाब का पानी बहुत पवित्र और बीमारियों को ठीक करने वाला माना जाता था। कहा जाता है कि राजा भोज को चर्म रोग हो गया था तब किसी ऋषि या वैद्य ने उन्हें इस तालाब के पानी में स्नान करने और उसे पीने की सलाह दी थी जिससे उनका चर्मरोग ठीक हो गया था। उस विशाल तालाब के पानी से शिवमंदिर में स्थापित विशाल शिवलिंग का अभिषेक भी किया जाता था। राजा भोज स्वयं बहुत बड़े विद्वान थे और कहा जाता है कि उन्होंने धर्म, खगोल विद्या, कला, कोशरचना, भवननिर्माण, काव्य, औषधशास्त्र आदि विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखी हैं जो अब भी विद्यमान हैं। इनके समय में कवियों को राज्य से आश्रय मिला था। उन्होने सन् 1000 ई. से 1055 ई. तक राज्य किया। इनकी विद्वता के कारण जनमानस में एक कहावत प्रचलित हुई कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तैली। भोज बहुत बड़े वीर, प्रतापी, और गुणग्राही थे। इन्होंने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की थी और कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। ये बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। सरस्वतीकंठाभरण, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इनके लिखे हुए बतलाए जाते हैं। इनकी सभा सदा बड़े बड़े पंडितों से सुशोभित रहती थी। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी। जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था- (आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पंडित आदृत हैं।) जब उनका देहान्त हुआ तो कहा गया - (आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी हैं और सभी पंडित खंडित हैं।) .

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पंचरात्र

पंचरात्र वैष्णव सम्प्रदाय के आगम ग्रन्थ हैं जो संस्कृत में हैं। 'पंचरात्र' का शाब्दिक अर्थ है - 'पाँच रातें'। पंचरात्र आगम रामानुज के श्रीवैष्णव सम्प्रदाय के सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इनके अन्तर्गत २०० से अधिक ग्रन्थ आते हैं जिनकी रचना तृतीय शताब्दी ईसापूर्व से लेकर ८५० ई तक की अवधि में हुई है। 'पंचरात्र' शब्द शतपथ ब्राह्मण में भी आया है। नारायण नें पाँच रातों तक एक यज्ञ किया। .

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यमुनाचार्य

यमुनाचार्य रामानुजाचार्य के पहले विशिष्टाद्वैत वेदांत के सुप्रसिद्ध आचार्य जिन्हें 'आलबंदार' भी कहते हैं। एक परंपरा के अनुसार ये रामानुज के गुरु भी थे। इनका काल ११वीं शताब्दी का पूर्वार्ध होना चाहिए। इन्होंने वैणव आगमों को वेदों के समान प्रामाणिक माना। .

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लिंगायत मत

बसवेश्वर की बहुत प्रतिष्ठा है। लिंगायत मत भारतवर्ष के प्राचीनतम सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है। इस मत के ज्यादातर अनुयायी दक्षिण भारत में हैं। यह मत भगवान शिव की स्तुति आराधना पर आधारित है। भगवान शिव जो सत्य सुंदर और सनातन हैं, जिनसे सृष्टि का उद्गार हुआ, जो आदि अनंत हैं। हिन्दू धर्म में त्रिदेवों का वर्णन है जिनमें सर्वप्रथम भगवान शिव का ही नाम आता है। शिव जिनसे सृष्टि की उत्पत्ति हुई। इसके पश्चात भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति जो सम्पूर्ण जगत को जीवन प्रदान करते हैं। भगवान विष्णु जो सम्पूर्ण जगत के पालनहार हैं। तीसरे अंश भगवान महेश (शंकर) की उत्पत्ति जीवन अर्थात अमुक्त आत्माओं को नष्ट करके पुनः जीवन मुक्ति चक्र में स्थापित करना है। लिंगायत सम्प्रदाय भगवान शिव जो कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, चराचर जगत के उत्पत्ति के कारक हैं उनकी स्तुति आराधना करता है। आप अन्य शब्दों में इन्हें शैव संप्रदाय को मानने वाले अनुयायी कह सकते हैं। इस सम्प्रदाय की स्थापना 12वीं शताब्दी में महात्मा बसवण्णां ने की थी। इस मत के उपासक लिंगायत (ಲಿಂಗಾಯತರು) कहलाते हैं। यह शब्द कन्नड़ शब्द लिंगवंत से व्युत्पन्न है। ये लोग मुख्यतः महात्मा बसवण्णा की शिक्षाओं के अनुगामी हैं। .

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वीरशैव दर्शन

वीरशैव धर्म, हिन्दुओं के लिंगायत सम्प्रदाय का एक उपसम्प्रदाय है। यह एक शैव परम्परा है जो शैवागमों पर आधारित है। यह दक्षिण भारत में बहुत लोकप्रिय हुई है। ये भारत का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है पर इसके अधिकांश उपासक कर्नाटक में हैं॥ इसके अलावा भारत का दक्षिणी राज्यों, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश, केरल ओर तमिलनाडु मे वीरशैव उपासक अदिकतम हैं। यह एकेश्वरवादी धर्म है। तमिल में इस धर्म को शिवाद्वैत धर्म अथवा 'लिंगायत धर्म' भी कहते हैं। उत्तर भारत में इस धर्म का औपचारिक नाम 'शैवागम' है। .

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शैवागम

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