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लक्ष्मी

सूची लक्ष्मी

लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी। पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है। .

103 संबंधों: चम्पा, त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़, त्रिपुरसुन्दरी, तीन द्वार, अहमदाबाद, दधिमती माता मन्दिर, नागौर, दरभंगा, दशहरा, दिल्ली के दर्शनीय स्थल, देवता, देवनागरी, देवी, दीपावली, धन्वन्तरि, नवरात्रि, पृथु, बिहार का भूगोल, बगलामुखी मंदिर, इंदौर, ब्रह्मवैवर्त पुराण, भारत के बाहर हिंदू मंदिरों की सूची, भारतीय चित्रकला, मन्दार पर्वत, महाभारत में विभिन्न अवतार, महालक्ष्मी मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर (मुंबई), महाविद्या, माध्यमिक तंत्र-साहित्य, मालादेवी मंदिर, मुंबई उपनगरीय रेल, युग वर्णन, राधा (अभिनेत्री), राधा कृष्ण, राधाष्टमी, राम, रामानन्दी सम्प्रदाय, राजा रवि वर्मा, रंगोली, रुचि प्रजापति, रुक्मिणी, लक्ष्मी (बहुविकल्पी), लक्ष्मी नारायण, लक्ष्मी नारायण मंदिर, दिल्ली, लक्ष्मी नारायण मंदिर, मोदीनगर, लक्ष्मी प्लैनम, लक्ष्मी-नारायण, शनि (ज्योतिष), शाक्त, शिला माता मन्दिर, शुकनासोपदेश, श्री चक्र, श्री नीलकंठेश्वर महादेव, मथुरा, ..., श्री महालक्ष्मीमहात्म्य व्रत, श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर, श्री सूक्त, श्री वैष्णव संप्रदाय, श्रीभार्गवराघवीयम्, श्रीवत्स, श्रीविद्या, सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड, समुद्र मन्थन, समुद्रगुप्त, संयोगिता चौहान, सीता, हिन्दू देवी देवताओं की सूची, हिन्दू देवी-देवता, हिन्दू धर्म, हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र, जम्मू, जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, त्यागराजनगर, दिल्ली, ज्वालामुखी मंदिर, घासीराम कोतवाल (नाटक), वराहावतार, वाराही, वारुणी, विष्णु, वैदिक देवता, वैदिक संस्कृत, वैदिक व्याकरण, वैभव लक्ष्मी, वेद, खजराना मंदिर, गांगेयदेव, गंगा देवी, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर, ओडिआ चलचित्र सूची, आद्या कात्यायिनी मंदिर, दिल्ली, आकूति, इश्तार टेरा, कमल, कामदेव, कालपुरुष, कालकूट, क्षीर सागर, कृष्ण, कूर्म अवतार, केदारनाथ कस्बा, अद्भुत रामायण, अलक्ष्मी, अष्टलक्ष्मी, अग्रसेन, अग्रोहा धाम, उच्चैःश्रवा, उत्तर त्रिपुरा ज़िला सूचकांक विस्तार (53 अधिक) »

चम्पा

दक्षिण पूर्व एशिया, 1100 ईसवी, '''चम्पा''' हरे रंग में चम्पा दक्षिण पूर्व एशिया (पूर्वी हिन्दचीन (192-1832) में) स्थित एक प्राचीन हिन्दू राज्य था। यहाँ भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार थाऔर इसके राजाओं के संस्कृत नाम थे। चम्पा के लोग और राजा शैव थे। अन्नम प्रांत के मध्य और दक्षिणी भाग में प्राचीन काल में जिस भारतीय राज्य की स्थापना हुई उसका नाम 'चंपा' था। नृजातीय तथा भाषायी दृष्टि से चम्पा के लोग चाम (मलय पॉलीनेशियन) थे। वर्तमान समय में चाम लोग वियतनाम और कम्बोडिया के सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं। इसके ५ प्रमुख विभाग थेः.

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त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़

हथियागढ़ का त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर जबलपुर शहर से करीब १४ कि॰मी॰ कि दूरी पर भेड़ाघाट मार्ग पर "हथियागढ़" नाम के स्थान में स्थित है। मन्दिर के अन्दर माता महाकाली, माता महालक्ष्मी और माता सरस्वती की विशाल मुर्ति स्थापित है। कहा जाता रहा है कि राजा "करन", जो हथियागढ़ के राजा थे, वे देवी के सामने खौलते हुये तेल के कडाहे में स्वयं को समर्पित कर देते थे और देवी प्रसन्न होकर उन्हें (राजा को) उनके वजन के बराबर सोना आशीर्वाद के रूप में देती थीं। मां त्रिपुर सुंदरी जो सदियों तक तेवर सहित आसपास इलाके में बड़ी खेरमाई या हथियागढ़ वाली खेरदाई के नाम से जानी जाती रही हैं और अब भी यहां के उम्रदराज लोग इसी नाम से संबोधित करते हैं। मां की अलौकिक शक्ति एवं चमत्कारों की यहां अनेक कहानियां एवं किवदंतियां आज भी सुनी जा सकती हैं। यहां पर आज भी मनोतियाँ मांगी जाती हैं और ऐसा देखा जा सकता है कि यहां मनोतियाँ पूर्ण होने के उपरांत भंडारे, विशेष पूजन-अर्चन तथा चढ़ावा का सिलसिला चलता ही रहता है। आस्था और श्रद्धा के इस स्थल में सदैव चहल पहल रहती है। लोग दूर-दूर से माँ के दर्शनार्थ दौड़े चले आते हैं। मां की चमत्कारी शक्तियों की अनेक कथाएं हैं। वे इस पहाड़ी स्थान को छोड़कर आबादी वाले क्षेत्र में आना ही नहीं चाहती थीं। सुना गया है कि एक बार ग्रामीण लोग माता जी को बैलगाड़ी में रखकर तेवर गांव में छोटी खेरमाई मंदिर ले कर आ गए और वहां रात भर भजन कीर्तन करते रहे। लोग जब दूसरे दिन सुबह स्नान-ध्यान करने और मां के पूजन की तैयारी करने अपने घर गए। इसके बाद जब वापस मंदिर आए तो माँ वहां से अंतर्ध्यान हो चुकी थीं। लोग घबरा गए। बाद में पता चला कि मां अपने पुराने स्थान पर स्वयं पहुंच गई हैं, ऐसी हैं तेवर की माँ त्रिपुरसुंदरी। एक कथा और सुनने को मिलती है कि अंग्रेजों के जमाने में कुछ बाहरी अनजान लोग मां को ट्रक में रख कर ले जा रहे थे परंतु कुछ ही दूरी पर ट्रक के सभी लोगों को नींद सताने लगी तब सभी लोग ट्रक को खड़ा कर सो गए और जब नींद खुली तो ट्रक में देवी मां नहीं थी। फिर ज्ञात हुआ कि वे अपने स्थान पर विराजमान हैं। जैसा मैं स्वयं जानता हूँ कि पूर्व में मां केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में थी। इसी तारतम्य में एक अन्य बात आज भी बताई जाती है कि त्रिपुरी क्षेत्र के ऐतिहासिक-उत्खनन के समय किसी उत्खनन अधिकारी ने मां को जंजीरों के सहारे खड़ा करने की कोशिश की थी तो उस अधिकारी को स्वप्न आया कि मुझे खड़ा मत करो परंतु वह नहीं माना। उसने जब मां को जंजीरों के सहारे खड़ा किया तभी अधिकारी के घर से उसके अच्छे-भले और स्वस्थ पुत्र की अचानक तबियत बिगड़ गई। बाद में उसने देवी मां को पूर्व स्थिति में रख कर उनसे क्षमा याचना और पूजन अर्चन किया तब जाकर उसके पुत्र को स्वास्थ्य लाभ हुआ। इनके अतिरिक्त इस सम्बन्ध में और भी कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें बताया जाता है कि दानी राजा कर्ण ने पूजा के बाद सवा पहर तक सोना बरसाया था और यह भी कहा जाता है कि एक बार खौलते तेल की कढ़ाई में राजा ने अपना मस्तक काटकर जब देवी माँ को चढ़ाया तब माँ ने स्वयं प्रकट होकर भक्त को पुनर्जीवित किया तथा दर्शन दिए। .

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त्रिपुरसुन्दरी

चतुर्भुजा ललिता रूप में पार्वती, साथ में पुत्र गणेश और स्कन्द हैं। ११वीं शताब्दी में ओड़िशा में निर्मित यह प्रतिमा वर्तमान समय में ब्रिटिश संग्रहालय लन्दन में स्थित है। त्रिपुरासुन्दरी दस महाविद्याओं (दस देवियों) में से एक हैं। इन्हें 'महात्रिपुरसुन्दरी', षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं। वे दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं। त्रिपुरसुन्दरी के चार कर दर्शाए गए हैं। चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। देवीभागवत में ये कहा गया है वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर भगवती मां का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से पूर्ण है। जो इनका आश्रय लेते है, उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इनकी महिमा अवर्णनीय है। संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी आराधना करते हैं। प्रसन्न होने पर ये भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान कर देती हैं। चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है। आप सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है। एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से पूछा, ‘भगवन! आपके द्वारा वर्णित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएगी, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई सरल उपाय बताइये।’ तब पार्वती जी के अनुरोध पर भगवान शिव ने त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या साधना-प्रणाली को प्रकट किया। भैरवयामल और शक्तिलहरी में त्रिपुर सुन्दरी उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋषि दुर्वासा आपके परम आराधक थे। इनकी उपासना श्री चक्र में होती है। आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्या की बड़ी सरस स्तुति की है। कहा जाता है- भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं। .

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तीन द्वार, अहमदाबाद

तीन दरवाजा, तीन द्वार या त्रण दरवाजा (ત્રણ દરવાજા) भारत देश में गुजरात राज्य मेंअहमदाबाद महानगर में स्थित भद्र किल्ले का ऐतिहासीक प्रवेशद्वार है। ईस्वीसन १४१५ में इस प्रवेशद्वर का निर्माण हुआ था। इस द्वार से ऐतिहासीक घटनाएँ भी जुड़ी हैं। अहमदाबाद महानगर निगम के चिह्न में भी इस प्रवेश्द्वार का समावेश किया गया है। .

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दधिमती माता मन्दिर, नागौर

दधिमती माता मन्दिर जो कि देवी दधिमती का एक मन्दिर है, यह मन्दिर राजस्थान के नागौर ज़िले के जायल तहसील के गोठ मांगलोद गांव में स्थित है। यह उत्तरी भारत में एक पुराने मन्दिरों में से एक है। मन्दिर का निर्माण ४थी सदी में हुआ था। दधिमती माता मन्दिर ५२ शक्तिपीठ में से एक है। .

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दरभंगा

भारत प्रान्त के उत्तरी बिहार में बागमती नदी के किनारे बसा दरभंगा एक जिला एवं प्रमंडलीय मुख्यालय है। दरभंगा प्रमंडल के अंतर्गत तीन जिले दरभंगा, मधुबनी, एवं समस्तीपुर आते हैं। दरभंगा के उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर, पूर्व में सहरसा एवं पश्चिम में मुजफ्फरपुर तथा सीतामढ़ी जिला है। दरभंगा शहर के बहुविध एवं आधुनिक स्वरुप का विकास सोलहवीं सदी में मुग़ल व्यापारियों तथा ओईनवार शासकों द्वारा विकसित किया गया। दरभंगा 16वीं सदी में स्थापित दरभंगा राज की राजधानी था। अपनी प्राचीन संस्कृति और बौद्धिक परंपरा के लिये यह शहर विख्यात रहा है। इसके अलावा यह जिला आम और मखाना के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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दशहरा

दशहरा (विजयादशमी या आयुध-पूजा) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को 'विजयादशमी' के नाम से जाना जाता है (दशहरा .

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दिल्ली के दर्शनीय स्थल

दिल्ली भारत की राजधानी ही नहीं पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र भी है। राजधानी होने के कारण भारतीय सरकार के अनेक कार्यालय, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन आदि अनेक आधुनिक स्थापत्य के नमूने तो यहाँ देखे ही जा सकते हैं प्राचीन नगर होने का कारण इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। पुरातात्विक दृष्टि से कुतुबमीनार और लौह स्तंभ जैसे विश्व प्रसिद्ध निर्माण यहाँ पर आकर्षण का केंद्र समझे जाते हैं। एक ओर हुमायूँ का मकबरा जैसा मुगल शैली की ऐतिहासिक राजसिक इमारत यहाँ है तो दूसरी ओर निज़ामुद्दीन औलिया की पारलौकिक दरगाह। लगभग सभी धर्मों के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल यहाँ हैं विरला मंदिर, बंगला साहब का गुरुद्वारा, बहाई मंदिर और देश पर जान देने वालों का स्मारक भी राजपथ पर इसी शहर में निर्मित किया गया है। भारत के प्रधान मंत्रियों की समाधियाँ हैं, जंतर मंतर है, लाल किला है साथ ही अनेक प्रकार के संग्रहालय और बाज़ार हैं जो दिल्ली घूमने आने वालों का दिल लूट लेते हैं। .

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देवता

अंकोरवाट के मन्दिर में चित्रित समुद्र मन्थन का दृश्य, जिसमें देवता और दैत्य बासुकी नाग को रस्सी बनाकर मन्दराचल की मथनी से समुद्र मथ रहे हैं। देवता, दिव् धातु, जिसका अर्थ प्रकाशमान होना है, से निकलता है। अर्थ है कोई भी परालौकिक शक्ति का पात्र, जो अमर और पराप्राकृतिक है और इसलिये पूजनीय है। देवता अथवा देव इस तरह के पुरुषों के लिये प्रयुक्त होता है और देवी इस तरह की स्त्रियों के लिये। हिन्दू धर्म में देवताओं को या तो परमेश्वर (ब्रह्म) का लौकिक रूप माना जाता है, या तो उन्हें ईश्वर का सगुण रूप माना जाता है। बृहदारण्य उपनिषद में एक बहुत सुन्दर संवाद है जिसमें यह प्रश्न है कि कितने देव हैं। उत्तर यह है कि वास्तव में केवल एक है जिसके कई रूप हैं। पहला उत्तर है ३३ करोड़; और पूछने पर ३३३९; और पूछने पर ३३; और पूछने पर ३ और अन्त में डेढ और फिर केवल एक। वेद मन्त्रों के विभिन्न देवता है। प्रत्येक मन्त्र का ऋषि, कीलक और देवता होता है। .

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देवनागरी

'''देवनागरी''' में लिखी ऋग्वेद की पाण्डुलिपि देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे 'शिरिरेखा' कहते हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, नेपाली, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली उपभाषाएँ), तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। मेलबर्न ऑस्ट्रेलिया की एक ट्राम पर देवनागरी लिपि .

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देवी

देवी (ग़लत अनुवाद::en:Goddess) किसी भी देवता को कहते हैं जो स्त्री हो या जिसे स्त्री रूप में माना जाता हो। हिन्दू धर्म में कई देवियाँ हैं, जैसे दुर्गा, काली, सरस्वती, गंगा, लक्ष्मी और उनके अवतार जैसे सीता, राधा, आदि। देखिये: देवता। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:देवी-देवता श्रेणी:रोमन धर्म श्रेणी:यूनानी धर्म श्रेणी:मिस्र का धर्म.

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दीपावली

दीपावली या दीवाली अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है।The New Oxford Dictionary of English (1998) ISBN 0-19-861263-X – p.540 "Diwali /dɪwɑːli/ (also Divali) noun a Hindu festival with lights...". दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।Jean Mead, How and why Do Hindus Celebrate Divali?, ISBN 978-0-237-534-127 भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीवाली यही चरितार्थ करती है- असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। दीवाली नेपाल, भारत, श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश है। .

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धन्वन्तरि

धन्वन्तरि को हिन्दू धर्म में देवताओं के वैद्य माना जाता है। वे महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान विष्णु के अवतार समझे जाते हैं। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी, चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती लक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था।। आश्रम.ऑर्ग। २८ अक्टूबर २००८ इन्‍हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु पीतल माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। इन्‍हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में दिवोदास हुए जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गए थे।। वाराणसी वैभव सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे। दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी। .

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नवरात्रि

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ देवियाँ है:-.

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पृथु

पृथु राजा वेन के पुत्र थे। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है। साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु निःसन्तान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। उन्हें भगवान् विष्णु तथा लक्ष्मी का अंशावतार माना गया है। महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य हो पायी। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था; लोग अपनी सुविधा के अनुसार बेखटके जहाँ-तहाँ बस जाते थे। महाराज पृथु अत्यन्त लोकहितकारी थे। उन्होंने 99 अश्वमेध यज्ञ किये थे। सौवें यज्ञ के समय इन्द्र ने अनेक वेश धारण कर अनेक बार घोड़ा चुराया, परन्तु महाराज पृथु के पुत्र इन्द्र को भगाकर घोड़ा ले आते थे। इन्द्र के बारंबार कुकृत्य से महाराज पृथु अत्यन्त क्रोधित होकर उन्हें मार ही डालना चाहते थे कि यज्ञ के ऋत्विजों ने उनकी यज्ञ-दीक्षा के कारण उन्हें रोका तथा मन्त्र-बल से इन्द्र को अग्नि में हवन कर देने की बात कही, परन्तु ब्रह्मा जी के समझाने से पृथु मान गये और यज्ञ को रोक दिया। सभी देवताओं के साथ स्वयं भगवान् विष्णु भी पृथु से परम प्रसन्न थे।.

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बिहार का भूगोल

बिहार 21°58'10" ~ 27°31'15" उत्तरी अक्षांश तथा 82°19'50" ~ 88°17'40" पूर्वी देशांतर के बीच स्थित भारतीय राज्य है। मुख्यतः यह एक हिंदी भाषी राज्य है लेकिन उर्दू, मैथिली, भोजपुरी, मगही, बज्जिका, अंगिका तथा एवं संथाली भी बोली जाती है। राज्य का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 92,257.51 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र है। 2001 की जनगणना के अनुसार बिहार राज्य की जनसंख्या 8,28,78,796 है जिनमें ६ वर्ष से कम आयु का प्रतिशत 19.59% है। 2002 में झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार का भूभाग मुख्यतः नदियों के बाढमैदान एवं कृषियोग्य समतल भूमि है। गंगा तथा इसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी मिट्टियों से बिहार का जलोढ मैदान बना है जिसकी औसत ऊँचाई १७३ फीट है। बिहार का उपग्रह द्वारा लिया गया चित्र .

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बगलामुखी मंदिर, इंदौर

माता बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के नलखेड़ा कस्बे में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। यह मन्दिर तीन मुखों वाली त्रिशक्ति बगलामुखी देवी को समर्पित है। मान्यता है कि द्वापर युग से चला आ रहा यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक भी है। इस मन्दिर में विभिन्न राज्यों से तथा स्थानीय लोग भी एवं शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। यहाँ बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय के उद्देश्य से भगवान कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख है जिनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मन्दिर उन्हीं से एक बताया जाता है। .

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ब्रह्मवैवर्त पुराण

ब्रह्मवैवर्त पुराण वेदमार्ग का दसवाँ पुराण है। अठारह पुराणों में प्राचीनतम पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण को माना गया है। इस पुराण में जीव की उत्पत्ति के कारण और ब्रह्माजी द्वारा समस्त भू-मंडल, जल-मंडल और वायु-मंडल में विचरण करने वाले जीवों के जन्म और उनके पालन पोषण का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का विस्तृत वर्णन, श्रीराधा की गोलोक-लीला तथा अवतार-लीलाका सुन्दर विवेचन, विभिन्न देवताओं की महिमा एवं एकरूपता और उनकी साधना-उपासनाका सुन्दर निरूपण किया गया है। अनेक भक्तिपरक आख्यानों एवं स्तोत्रोंका भी इसमें अद्भुत संग्रह है। इस पुराण में चार खण्ड हैं। ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, श्रीकृष्णजन्मखण्ड और गणेशखण्ड। इन चारों खण्डों से युक्त यह पुराण अठारह हजार श्लोकों का बताया गया है। यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण में श्रीकृष्ण को ही प्रमुख इष्ट मानकर उन्हें सृष्टि का कारण बताया गया है। 'ब्रह्मवैवर्त' शब्द का अर्थ है- ब्रह्म का विवर्त अर्थात् ब्रह्म की रूपान्तर राशि। ब्रह्म की रूपान्तर राशि 'प्रकृति' है। प्रकृति के विविध परिणामों का प्रतिपादन ही इस 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में प्राप्त होता है। कहने का तात्पर्य है प्रकृति के भिन्न-भिन्न परिणामों का जहां प्रतिपादन हो वही पुराण ब्रह्मवैवर्त कहलाता है। विष्णु के अवतार कृष्ण का उल्लेख यद्यपि कई पुराणों में मिलता है, किन्तु इस पुराण में यह विषय भिन्नता लिए हुए है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में कृष्ण को ही 'परब्रह्म' माना गया है, जिनकी इच्छा से सृष्टि का जन्म होता है। 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' में श्रीकृष्ण लीला का वर्णन 'भागवत पुराण' से काफी भिन्न है। 'भागवत पुराण' का वर्णन साहित्यिक और सात्विक है जबकि 'ब्रह्मवैवर्त पुराण' का वर्णन श्रृंगार रस से परिपूर्ण है। इस पुराण में सृष्टि का मूल श्रीकृष्ण को बताया गया है। .

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भारत के बाहर हिंदू मंदिरों की सूची

हिंदू मंदिर दुनिया के कई देशों के साथ-साथ भारत में भी पाए जाते हैं। .

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भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

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मन्दार पर्वत

मन्दार पर्वत बिहार राज्य के बंका जिला में स्थित छोटा सा पर्वत है। यह भागलपुर शहर के दक्षिण में लगभग ४५ किमी की दूरी पर स्थित है। इसकी ऊँचाई लगभग ७०० फीट (२१ मीटर) है। यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। इसके शिखर पर दो मन्दिर हैं, एक हिन्दू मन्दिर और दूसरा जैन मन्दिर। हिन्दू पौराणिक कथाओं में इसे मन्दराचल (मन्दर + अचल .

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महाभारत में विभिन्न अवतार

यहाँ पर महाभारत में वर्णित अवतारों की सूची दी गयी है और साथ में वे किस देवता के अवतार हैं, यह भी दर्शाया गया है। .

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महालक्ष्मी मंदिर

मुंबई के सर्वाधिक प्राचीन धर्मस्थलों में से एक है यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर। समुद्र के किनारे बी.

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महालक्ष्मी मंदिर (मुंबई)

मुंबई के सर्वाधिक प्राचीन धर्मस्थलों में से एक है यहाँ का महालक्ष्मी मंदिर। समुद्र के किनारे बी.

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महाविद्या

दस महाविद्याएँदशमहाविद्या अर्थात महान विद्या रूपी देवी। महाविद्या, देवी दुर्गा के दस रूप हैं, जो अधिकांश तान्त्रिक साधकों द्वारा पूजे जाते हैं, परन्तु साधारण भक्तों को भी अचूक सिद्धि प्रदान करने वाली है। इन्हें दस महाविद्या के नाम से भी जाना जाता है। महाविद्या विचार का विकास शक्तिवाद के इतिहास में एक नया अध्याय बना जिसने इस विश्वास को पोषित किया कि सर्व शक्तिमान् एक नारी है। .

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माध्यमिक तंत्र-साहित्य

प्राचीन आगमों या तंत्रों का नामनिर्देश अन्यत्र किया गया है। यहाँ माध्यमिक तंत्र साहित्य के विषय में बताया गया है। ----; तन्त्र का भेदनिरूपण देवताओं के उपासनासंबंध से तंत्र का भेदनिरूपण संक्षेप में कुछ इस प्रकार होगा-.

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मालादेवी मंदिर

मालादेवी मंदिर मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर गढ़ा क्षेत्र में लक्ष्मी जी का प्राचीन मंदिर है। सन्‌ १४८०-१५४० में राजा संग्राम शाह के द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया गया था। बारहवीं सदी में मालादेवी मंदिर का निर्माण हुआ था। .

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मुंबई उपनगरीय रेल

यह मुंबई की उपनगरीय रेलवे है। इसे मुंबई में लोकल ट्रेन भी कहा जाता है। मुंबई उपनगरीय रेल नेटवर्क (वेस्टर्न लाइन, सेंट्रल लाइन, हार्बर लाइन, ट्रांस हार्बर लाइन, मुंबई मेट्रो, मोनो रेल) ​​के सूचकांक के साथ पूरा मानचित्र मुंबई उपनगरीय रेलवे (मराठी: मुंबई उपनगरीय रेल्) प्रणाली, जो मुंबई में लोक परिवहन प्रणाली का भाग है, सरकारी भारतीय रेल की दो मण्डलीय भुजाओं, पश्चिम रेलवे व मध्य रेलवे द्वारा संचालित हैं। इस प्रणाली में, 6.1 मिलियन यात्रियों को प्रतिदिन यातायात उपलब्ध होता है। इस प्रकार, यह भारतीय रेल की दैनिक यात्री क्षमता का भार उठाती है। यह विश्व की सर्वाधिक यात्री घनत्व वाली उपनगरीय रेल सेवा है। इन मार्गों पर चलने वाली रेलगाड़ियों को स्थानीय लोगों द्वारा प्रायः लोकल कहा जाता है। भारतीय रेल एवं मुंबई उपनगरीय रेलवे, दोनों ही, अंग्रेज़ों द्वारा भारत में अप्रैल 1853 में बनवायी गयी प्रथम रेलवे के अंकुर की शाखाएं हैं। यह एशिया की प्राचीनतम रेलवे प्रणाली है। प्रथम रेल मुंबई से ठाणे तक 34 कि॰मी॰ की दूरी तक चली थी। बॉम्बे रेलवे इतिहास समूह इस लाइन को रेलवे धरोहर घोषित कराने की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। .

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युग वर्णन

युग का अर्थ होता है एक निर्धारित संख्या के वर्षों की काल-अवधि। उदाहरणः कलियुग, द्वापर, सत्ययुग, त्रेतायुग आदि। युग वर्णन का अर्थ होता है कि उस युग में किस प्रकार से व्यक्ति का जीवन, आयु, ऊँचाई होती है एवं उनमें होने वाले अवतारों के बारे में विस्तार से परिचय दे। प्रत्येक युग के वर्ष प्रमाण और उनकी विस्तृत जानकारी कुछ इस तरह है: .

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राधा (अभिनेत्री)

राधा (मलयालम: രാധ) (जन्म 1965) 80 और 90 के दशक के शुरूआत की एक लोकप्रिय भारतीय अभिनेत्री हैं। वह एक दशक से अधिक समय तक तमिल और तेलगु दोनों फिल्म उद्योग में लोकप्रिय थीं। उन्होंने दक्षिण भारतीय सिनेमा के उच्च श्रेणी के नायकों जैसे कमल हसन, रजनीकांत, साथ्यराज, प्रभु, विजयकांथ से लेकर चिरंजीवी, कार्तिक, सुरेश, मोहन, मोहनलाल, कृष्णा, वेंकटेश आदि के साथ कई फिल्मों में काम किया है। उन्होंने 5 भारतीय भाषाओं (तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ और हिंदी) की 200 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है। .

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राधा कृष्ण

राधा कृष्ण (IAST, संस्कृत राधा कृष्ण) एक हिंदू देवता हैं। कृष्ण को गौड़ीय वैष्णव धर्मशास्त्र में अक्सर स्वयं भगवान के रूप में सन्दर्भित किया गया है और राधा एक युवा नारी हैं, एक गोपी जो कृष्ण की सर्वोच्च प्रेयसी हैं। कृष्ण के साथ, राधा को सर्वोच्च देवी स्वीकार किया जाता है और यह कहा जाता है कि वह अपने प्रेम से कृष्ण को नियंत्रित करती हैं। यह माना जाता है कि कृष्ण संसार को मोहित करते हैं, लेकिन राधा "उन्हें भी मोहित कर लेती हैं। इसलिए वे सभी की सर्वोच्च देवी हैं। राधा कृष्ण".

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राधाष्टमी

सनातन धर्म में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। शास्त्रों में इस तिथि को श्री राधाजी का प्राकट्य दिवस माना गया है। श्री राधाजी वृषभानु की यज्ञ भूमि से प्रकट हुई थीं। वेद तथा पुराणादि में जिनका ‘कृष्ण वल्लभा’ कहकर गुणगान किया गया है, वे श्री वृन्दावनेश्वरी राधा सदा श्री कृष्ण को आनन्द प्रदान करने वाली साध्वी कृष्णप्रिया थीं। कुछ महानुभाव श्री राधाजी का प्राकट्य श्री वृषभानुपुरी (बरसाना) या उनके ननिहाल रावल ग्राम में प्रातःकाल का मानते हैं। कल्पभेद से यह मान्य है, पर पुराणों में मध्याह्न का वर्णन ही प्राप्त होता है। शास्त्रों में श्री राधा कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवम प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं अतः राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गयी है। श्रीमद देवी भागवत में श्री नारायण ने नारद जी के प्रति ‘श्री राधायै स्वाहा’ षडाक्षर मंत्र की अति प्राचीन परंपरा तथा विलक्षण महिमा के वर्णन प्रसंग में श्री राधा पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता। अतः समस्त वैष्णवों को चाहिए कि वे भगवती श्री राधा की अर्चना अवश्य करें। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए भगवान इनके अधीन रहते हैं। यह संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करती हैं, इसी कारण इन्हें श्री राधा कहा गया है। .

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राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

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रामानन्दी सम्प्रदाय

तीर्थयात्रा करने के बाद रामानन्द जब घर आए और गुरुमठ पहुँचे तो उनके गुरुभाइयों ने उनके साथ भोजन करने में आपत्ति की। उनका अनुमान था कि रामानन्द ने तीर्थाटन में अवश्य ही खानपान संबंधी छुआछूत का कोई विचार नहीं किया होगा। राघवानन्द ने अपने शिष्यों का यह आग्रह देखकर एक नया संप्रदाय चलाने की सलाह दे दी। यहीं से रामानन्द संप्रदाय का जन्म हुआ। इन दृष्टियों से रामानंद संप्रदाय एवं रामानुज संप्रदाय में भेद है किंतु दार्शनिक सिद्धांत से दोनों ही संप्रदाय विशिष्टाद्वैत मत के पोषक हैं। दोनों ही ब्रह्म को चिदचिद्विशिष्ट मानते हैं और दोनों ही के मत के पोषक हैं। दोनों ही ब्रह्म को चिदचिद्विशिष्ट मानते हैं और दोनों ही के मत से मोक्ष का उपाय परमोपास्य की 'प्रपत्ति' है। रामानंद संप्रदाय में निम्नलिखित बातें प्रधान हैं -.

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राजा रवि वर्मा

राजा रवि वर्मा की कलाकृति- '''ग्वालिन''' राजा रवि वर्मा (१८४८ - १९०६) भारत के विख्यात चित्रकार थे। उन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति के पात्रों का चित्रण किया। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों पर बनाए गए चित्र हैं। हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्‍तेमाल उनके चित्रों में दिखता हैं। वडोदरा (गुजरात) स्थित लक्ष्मीविलास महल के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है। .

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रंगोली

अधिक विकल्पों के लिए यहाँ जाएँ - रंगोली (बहुविकल्पी) रंगोली पर जलते दीप। रंगोली भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा और लोक-कला है। अलग अलग प्रदेशों में रंगोली के नाम और उसकी शैली में भिन्नता हो सकती है लेकिन इसके पीछे निहित भावना और संस्कृति में पर्याप्त समानता है। इसकी यही विशेषता इसे विविधता देती है और इसके विभिन्न आयामों को भी प्रदर्शित करती है। इसे सामान्यतः त्योहार, व्रत, पूजा, उत्सव विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे और प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। इसमें साधारण ज्यामितिक आकार हो सकते हैं या फिर देवी देवताओं की आकृतियाँ। इनका प्रयोजन सजावट और सुमंगल है। इन्हें प्रायः घर की महिलाएँ बनाती हैं। विभिन्न अवसरों पर बनाई जाने वाली इन पारंपरिक कलाकृतियों के विषय अवसर के अनुकूल अलग-अलग होते हैं। इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाले पारंपरिक रंगों में पिसा हुआ सूखा या गीला चावल, सिंदूर, रोली,हल्दी, सूखा आटा और अन्य प्राकृतिक रंगो का प्रयोग किया जाता है परन्तु अब रंगोली में रासायनिक रंगों का प्रयोग भी होने लगा है। रंगोली को द्वार की देहरी, आँगन के केंद्र और उत्सव के लिए निश्चित स्थान के बीच में या चारों ओर बनाया जाता है। कभी-कभी इसे फूलों, लकड़ी या किसी अन्य वस्तु के बुरादे या चावल आदि अन्न से भी बनाया जाता है। .

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रुचि प्रजापति

रुचि प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र के रूप में रचा था। रुचि प्रजापति का विवाह स्वयंभुव मनु की प्रथम कन्या आकूति के साथ हुआ था। रुचि प्रजापति की पत्नी आकूति के गर्भ से एक पुत्र तथा एक कन्या का जन्म हुआ। रुचि प्रजापति के पुत्र को स्वयंभुव मनु ने ले लिया। रुचि प्रजापति की कन्या का नाम दक्षिणा था। दक्षिणा के रूप में आकूति के गर्भ से स्वयं देवी लक्ष्मी अवतरित हुईं थीं। दक्षिणा के युवा होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु से कर दिया गया। श्रेणी:श्रीमद्भागवत.

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रुक्मिणी

रुक्मिणी भगवान कृष्ण की पत्नी थी। रुक्मिणी को लक्ष्मी का अवतार भी माना जाता है। उन्होंने श्रीकृष्ण से प्रेम विवाह किया था श्रेणी:कृष्ण.

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लक्ष्मी (बहुविकल्पी)

लक्ष्मी (बहुविकल्पी) नाम के कई अर्थ हैं:-.

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लक्ष्मी नारायण

लक्ष्मी नारायण नाम के कई अर्थ हैं:-.

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लक्ष्मी नारायण मंदिर, दिल्ली

लक्ष्मी नारायण मंदिर बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इसका निर्माण 1938 में हुआ था और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। बिड़ला मंदिर अपने यहाँ मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है। .

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लक्ष्मी नारायण मंदिर, मोदीनगर

लक्ष्मीनारायण मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के मोदीनगर कस्बे में स्थित है। इसे प्रचलित रूप में मोदी मंदिर भी कहा जाता है। दिल्ली के बिड़ला मंदिर से कुछ कुछ मेल खाते हुए इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। .

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लक्ष्मी प्लैनम

लक्ष्मी प्लैनम (Lakshmi Planum), शुक्र ग्रह के पश्चिमी इश्तार टेरा पर एक पठार स्थलाकृति है। यह धन की हिन्दू देवी लक्ष्मी के नाम पर है। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र की स्थलाकृति.

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लक्ष्मी-नारायण

मंदिर में लक्ष्मी नारायण की मूर्ति लक्ष्मी-नारायण नाम संयुक्त रूप से हिन्दू भगवान, विष्णु या नारायण और उनकी पत्नी भगवती लक्ष्मी के लिए दम्पति रूप में लिया जाता है। हैलेबिड, कर्नाटक में लक्ष्मी नारायण की शिल्पाकृति .

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शनि (ज्योतिष)

बण्णंजी, उडुपी में शनि महाराज की २३ फ़ीट ऊंची प्रतिमा शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:। अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥ भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं। .

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शाक्त

महिषासुरमर्दिनी देवी दुर्गा शाक्त सम्प्रदाय' हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख सम्प्रदायों में से एक है। इस सम्प्रदाय में सर्वशक्तिमान को देवी (पुरुष नहीं, स्त्री) माना जाता है। कई देवियों की मान्यता है जो सभी एक ही देवी के विभिन्न रूप हैं। शाक्त मत के अन्तर्गत भी कई परम्पराएँ मिलतीं हैं जिसमें लक्ष्मी से लेकर भयावह काली तक हैं। कुछ शाक्त सम्प्रदाय अपनी देवी का सम्बन्ध शिव या विष्णु से बताते हैं। हिन्दुओं के श्रुति तथा स्मृति ग्रन्थ, शाक्त परम्परा का प्रधान ऐतिहासिक आधार बनाते हुए दिखते हैं। इसके अलावा शाक्त लोग देवीमाहात्म्य, देवीभागवत पुराण तथा शाक्त उपनिषदों (जैसे, देवी उपनिषद) पर आस्था रखते हैं। शाक्त अर्थात 'भगवती शक्ति की उपासना'। शाक्त धर्म शक्ति की साधना का विज्ञान है। इसके मतावलंबी शाक्त धर्म को भी प्राचीन वैदिक धर्म के बराबर ही पुराना मानते हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि इस धर्म का विकास वैदिक धर्म के साथ ही साथ या सनातन धर्म में इसे समावेशित करने की ज़रूरत के साथ ही हुआ। यह हिन्दू धर्म में पूजा का एक प्रमुख स्वरूप है, जिसे अब 'हिन्दू धर्म' कहा जाता है, उसे तीन अंतःप्रवाहित, परस्परव्यापी धाराओं में विभाजित किया जा सकता है। वैष्णववाद, भगवान विष्णु की उपासना; शैववाद, भगवान शिव की पूजा; तथा शाक्तवाद, देवी के शक्ति रूप की उपासना। इस प्रकार शाक्तवाद दक्षिण एशिया में विभिन्न देवी परम्पराओं को नामित करने वाला आम शब्द है, जिसका सामान्य केन्द्र बिन्दु देवियों की पूजा है। 'शक्ति की पूजा' शक्ति के अनुयायियों को अक्सर 'शाक्त' कहा जाता है। शाक्त न केवल शक्ति की पूजा करते हैं, बल्कि उसके शक्ति–आविर्भाव को मानव शरीर एवं जीवित ब्रह्माण्ड की शक्ति या ऊर्जा में संवर्धित, नियंत्रित एवं रूपान्तरित करने का प्रयास भी करते हैं। विशेष रूप से माना जाता है कि शक्ति, कुंडलिनी के रूप में मानव शरीर के गुदा आधार तक स्थित होती है। जटिल ध्यान एवं यौन–यौगिक अनुष्ठानों के ज़रिये यह कुंडलिनी शक्ति जागृत की जा सकती है। इस अवस्था में यह सूक्ष्म शरीर की सुषुम्ना से ऊपर की ओर उठती है। मार्ग में कई चक्रों को भेदती हुई, जब तक सिर के शीर्ष में अन्तिम चक्र में प्रवेश नहीं करती और वहाँ पर अपने पति-प्रियतम शिव के साथ हर्षोन्मादित होकर नहीं मिलती। भगवती एवं भगवान के पौराणिक संयोजन का अनुभव हर्षोन्मादी–रहस्यात्मक समाधि के रूप में मनों–दैहिक रूप से किया जाता है, जिसका विस्फोटी परमानंद कहा जाता है कि कपाल क्षेत्र से उमड़कर हर्षोन्माद एवं गहनानंद की बाढ़ के रूप में नीचे की ओर पूरे शरीर में बहता है। 'मान्यता' हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है यह पुराण वस्तुत: 'दुर्गा चरित्र' एवं 'दुर्गा सप्तशती' के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए इसे शाक्त सम्प्रदाय का पुराण भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिक्ख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हिन्दू धर्म के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, चन्दन, हल्दी और केसर युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड्र से अपना मस्तक सुशोभित करते हैं। 'धर्म ग्रंथ' शाक्त सम्प्रदाय में देवी दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें 108 देवी पीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्ति पीठों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी में दुर्गा सप्तशति भी है। 'दर्शन' शाक्तों का यह मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है। इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में ईश्वर की जो कल्पना की गई है, वह पुरुष के समान की गई है। अर्थात ईश्वर पुरुष जैसा हो सकता है, किंतु शाक्त धर्म दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है, जो सृष्टि रचनाकार को जननी या स्त्रेण मानता है। सही मायने में यही एकमात्र धर्म स्त्रियों का धर्म है। शिव तो शव है, शक्ति परम प्रकाश है। हालाँकि शाक्त दर्शन की सांख्य समान ही है। 'प्राचीनता' सिंधु घाटी सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त सम्प्रदाय प्राचीन सम्प्रदाय है। गुप्त काल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ। हिन्दू आस्था का प्रतिबिम्ब' सैद्धांतिक या लोकप्रिय धार्मिक प्रवर्ग के रूप में शाक्तवाद इस हिन्दू आस्था का प्रतिबिम्ब है कि ग्रामीण एवं संस्कृत की किंवदन्तियों की असंख्य देवियाँ एक महादेवी की अभिव्यक्तियाँ हैं। आमतौर पर माना जाता है कि महादेवी की अवधारणा प्राचीन है। लेकिन ऐतिहासिक रूप से शायद इसका कालांकन मध्य काल का है। जब अत्यधिक विषम स्थानीय एवं अखिल भारतीय परम्पराओं का एकीकरण सैद्धांतिक रूप से एकीकृत धर्मशास्त्र में किया जाता था। धर्मशास्त्र प्रवर्ग के ऐतिहासिक और सैद्धांतिक रूप से भिन्न परम्पराओं में प्रयुक्त किया जा सकता है। मध्यकालीन पुराणों की विभिन्न देवियों की पौराणिक कथाओं से लेकर दो प्रमुख देवी शाखाओं या शाक्त तंत्रवाद कुलों से पूर्ववर्ती एवं वर्तमान, वस्तुतः असंख्य स्थानीय ग्रामीण देवियों तक है। 'लोकप्रियता' ऐतिहासिक रूप से शाक्तवाद दक्षिण एशिया के बाहरी इलाक़े में लोकप्रिय रहा है। विशेष रूप से कश्मीर, दक्षिण भारत, असम और बंगाल में, हालाँकि इसके तांत्रिक प्रतीक और अनुष्ठान कम से कम छठी शताब्दी से हिन्दू परम्पराओं में सर्वव्यापी रहे हैं। हाल में परम्परागत प्रवासी भारतीय जनसंख्या के साथ, कुछ भारत विद्या शैक्षिक समुदाय में और विभिन्न नवयुग एवं नारीवादोन्मुखी परम्पराओं के साथ, सामान्यतः पश्चिम में ज़्यादा लोकप्रिय शीर्षक तंत्रवाद या तंत्र के अंतर्गत परम्परागत, दार्शनिक एवं लोकप्रिय शाक्तवाद के विविध स्वरूपों ने प्रवेश किया है। शाक्त संस्कृति’ कृष्ण काल में ब्रज में शाक्त संस्कृति का प्रभाव बहुत बढ़ा। ब्रज में महामाया, महाविद्या, करोली, सांचोली आदि विख्यात शक्तिपीठ हैं। मथुरा के राजा कंस ने वासुदेव द्वारा यशोदा से उत्पन्न जिस कन्या का वध किया था, उसे भगवान श्रीकृष्ण की प्राणरक्षिका देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी शक्ति की यह मान्यता ब्रज से सौराष्ट्र तक फैली है। द्वारका में भगवान द्वारकानाथ के शिखर पर चर्चित सिंदूरी आकर्षक देवी प्रतिमा को कृष्ण की भगिनी बतलाया गया है, जो शिखर पर विराजमान होकर सदा इनकी रक्षा करती हैं। ब्रज तो तांत्रिकों का आज से 100 वर्ष पूर्व तक प्रमुख गढ़ था। यहाँ के तांत्रिक भारत भर में प्रसिद्ध रहे हैं। कामवन भी राजा कामसेन के समय तंत्र विद्या का मुख्य केंद्र था, उसके दरबार में अनेक तांत्रिक रहते थे। 'उद्देश्य' सभी सम्प्रदायों के समान ही शाक्त सम्प्रदाय का उद्देश्य भी मोक्ष है। फिर भी शक्ति का संचय करो, शक्ति की उपासना करो, शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। इसीलिए नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं। शक्ति से ही मोक्ष पाया जा सकता है। शक्ति नहीं है तो सिद्ध, बुद्धि और समृद्धि का कोई मतलब नहीं है। .

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शिला माता मन्दिर

शिला देवी मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर नगर में आमेर महल में स्थित एक मंदिर है। इसकी स्थापना यहां सवाई मानसिंह द्वितीय द्वारा की गयी थी। स्थानीय लोगों से मिली सूचनानुसार शिला देवी जयपुर के कछवाहा राजपूत राजाओं की कुल देवी रही हैं। इस मंदिर में लक्खी मेला लगता है जो काफ़ी प्रसिद्ध है। इस मेले में नवरात्र में यहां भक्तों की भारी भीड़ माता के दर्शनों के लिए आती है। शिला देवी की मूर्ति के पास में भगवान गणेश और मीणाओं की कुलदेवी हिंगला की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। कहते हैं कि यहां पहले मीणाओं का राज हुआ करता था। नवरात्रों में यहाँ दो मेले लगते हैं एवं देवी को प्रसन्न करने के लिए पशु बलि दी जाती है। आमेर दुर्ग के महल में जलेब चौक है जिसके दक्षिणी भाग में शिला माता का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। ये शिला माता राजपरिवार की कुल देवी भी मानी जाती हैं। यह मंदिर जलेब चौक से दूसरे उच्च स्तर पर मौजूद है अतः यहां से कुछ सीढ़ियाँ चढ़ कर मंदिर तक पहुंचना होता है। ये शिला देवी मूलतः अम्बा माता का ही रूप हैं एवं कहा जाता है कि आमेर या आंबेर का नाम इन्हीं अम्बा माता के नाम पर ही अम्बेर पड़ा था जो कालान्तर में आम्बेर या आमेर हो गया। माता की प्रतिमा एक शिला पर उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। .

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शुकनासोपदेश

शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश), कादम्बरी का ही एक अंश है। गीता की तरह शुकनासोपदेश का भी स्वतंत्र महत्व है। यह एक ऐसा उपदेशात्मक ग्रंथ है जिसमें जीवन दर्शन का एक भी पक्ष बाणभट्ट की दृष्टि से ओझल नहीं हो सका। इसमें राजा तारापीड का नीतिनिपुण एवं अनुभवी मन्त्री शुकनास राजकुमामार चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्य भाव से उपदेश देते हैं और रूप, यौवन, प्रभुता तथा ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों से सावधान रहने की शिक्षा देते हैं। यह प्रत्येक युवक के लिए उपादेय उपदेश है। चन्द्रापीड को दिये गये शुकनासोपदेश में कवि की प्रतिभा का चरमोत्कर्ष परिलक्षित होता है। कवि की लेखनी भावोद्रेक में बहती हुर्इ सी प्रतीत होती है। शुकनासोपदेश में ऐसा प्रतीत होता है मानो सरस्वती साक्षात मूर्तिमती होकर बोल रही हैं। इसमें बाणभट्ट की शब्दचातुरी प्रदर्शित हुई है। शुकनासोपदेश का नायक राजकुमार चन्द्रापीड है, जो सत्व, शौर्य और आर्जव भावों से युक्त है। शुकनास एक अनुभवी मन्त्री हैं जो चन्द्रापीड को राज्याभिषेक के पूर्व वात्सल्यभाव से उपदेश देते हैं। वे उसे युवावस्था में सुलभ रूप, यौवन, प्रभुता एवं ऐश्वर्य से उद्भूत दोषों के विषय में सावधान कर देना उचित समझते हैं। इसे युवावस्था में प्रवेश कर रहे समस्त युवकों को प्रदत्त ‘दीक्षान्त भाषण’ कहा जा सकता है। 'शुकनासोपदेश', कादम्बरी का प्रवेशद्वार माना जाता है। इसमें लक्ष्मी की ब्याजस्तुति ब्याज निन्दा का अत्यन्त मनोरम वर्णन है। ‘गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति’ इस उक्ति को चरितार्थ करने वाला यह साहित्य है। इसके अध्ययन से काव्यात्मक तत्व का तो ज्ञान होता ही है, साथ में तत्कालीन सामाजिक ज्ञान भी प्राप्त होता है। लक्ष्मी के बारे में शुकनासोपदेश का एक अंश देखिये- .

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श्री चक्र

श्री चक्र श्री चक्र की ज्यामितीय संरचना श्री चक्र एक यन्त्र है जिसका प्रयोग श्री विद्या में होता है। इसे 'श्री यंत्र', 'नव चक्र' और 'महामेरु' भी कहते हैं। यह सभी यंत्रो में शिरोमणि है और इसे 'यंत्रराज' कहा जाता है। वस्तुतः यह एक एक जटिल ज्यामितीय आकृति है। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी भगवती त्रिपुर सुंदरी हैं। श्री यंत्र की स्थापना और पूजा से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। नवरात्रि, धनतेरस के दिन श्रीयंत्र का पूजन करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। श्री यंत्र के केन्द्र में एक बिंदु है। इस बिंदु के चारों ओर 9 अंतर्ग्रथित त्रिभुज हैं जो नवशक्ति के प्रतीक हैं। इन नौ त्रिभुजों के अन्तःग्रथित होने से कुल ४३ लघु त्रिभुज बनते हैं। .

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श्री नीलकंठेश्वर महादेव, मथुरा

श्री नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत मथुरा नगर में मथुरा-वृंदावन मार्ग पर मोक्ष धाम के निकट स्थित है। इस मंदिर का उल्लेख वराह पुराण के अंतर्गत गोकर्ण सरस्वती माहात्म्य शुक्र वृत्तांत, मथुरा पुरागमन मोक्ष प्राप्ति वृत्तांत में है। कालांतर में यहाँ नागा संतों ने महामृत्युंजय यंत्र के आधार पर मुख्य मंदिर में कसौटी पत्थर से निर्मित विशाल अनुपम अलौकिक शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर लगभग 400 वर्षों तक तप साधना की। लंबे समय तक यह मंदिर सुनसान और विस्मृत रहा। सन् 1850 में लखनऊ निवासी अयोध्या प्रसाद ने नागा संतों द्वारा स्थापित पुराने मूल मंदिर का विस्तार कर परिसर को भव्यता प्रदान की। मुख्य मंदिर के एक ओर महालक्ष्मी, महाकाली और महा सरस्वती के मंदिर हैं तथा दूसरी तरफ गंगा और गरुड के मंदिर है। मुख्य मंदिर के बगल में हनुमान का मंदिर है। मान्यता है कि श्री नीलकंठेश्वर के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। पुरातात्विक महत्व के इस पौराणिक सिद्धपीठ के विभिन्न मंदिर, प्रवेशद्वार, परकोटे आदि समय और प्रकृति के थपेड़ों से अत्यंत जीर्णशीर्ण हालत में हैं। लंबे समय से लोगों की उपेक्षा और अतिक्रमण ने इसे नष्ट-भ्रष्ट कर गिरासू हालत में पहुँचा दिया है। वर्तमान में इस मंदिर के पुरातन पौराणिक स्वरूप को बचाने के लिए कुछ भक्तजन और संस्कृतिप्रेमी लोगों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। श्रेणी:उत्तर प्रदेश के मंदिर श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:मथुरा श्रेणी:उत्तर प्रदेश श्रेणी:शिव मंदिर.

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श्री महालक्ष्मीमहात्म्य व्रत

श्री माह लक्ष्मी की व्रत कथा (गुरुवार की कथा)* आइये भक्तजनों, धयान से सुने श्री महालक्ष्मी की व्रत कथा, गुरुवार की व्रतकथा, इसे श्रावण और पठन करने से दुःख दारिद्र्य दूर हो जाता है, श्री महालक्ष्मी माता की कृपा से सुख, संपत्ति,ऐश्वर्य प्राप्त होता है, मन की इच्छा पुरी होती है। .

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श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर

श्री लक्ष्मी जगदीश महाराज मंदिर लक्ष्मी ऍवम जगदीश का सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर गोनेरमें स्थित है। श्रेणी:मन्दिर.

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श्री सूक्त

श्री सूक्तम् देवी लक्ष्मी की अाराधना करने हेतु उनको समर्पित मंत्र हैं। इसे 'लक्ष्मी सूक्तम्' भी कहते हैं। यह सूक्त ऋग्वेद से लिया गया है। इस सूक्त का पाठ धन-धान्य की अधिष्ठात्री, देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। .

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श्री वैष्णव संप्रदाय

श्री वैष्णव सम्प्रदाय या श्री वैष्णव हिंदू धर्म की वैष्णव संप्रदाय के भीतर एक संप्रदाय है। इसका नाम "श्री" अर्थात देवी लक्ष्मी से प्राप्त होता है। इसका मतलब है, 'पवित्र', 'श्रद्धेय'। .

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श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

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श्रीवत्स

प्रमुख बौद्ध चिह्नः श्रीवत्स त्रिरत्न् के साथ, दोनों एक चक्र के ऊपर मण्डित हैं व चक्र एक तोरण के ऊपर बना है श्रीवत्स हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म, दोनों के लिए ही मंगलकारी चिह्न है।.

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श्रीविद्या

श्रीविद्या ஸ்ரீவித்யா (24 जुलाई 1953 - 19 अक्टूबर 2006) 1970 के दशक से लेकर 2000 की शुरुआत की अवधि में भारतीय फिल्म जगत की एक प्रमुख अभिनेत्री होने के साथ-साथ एक अच्छी गायिका भी थीं। अपने करियर के उत्तरार्ध में उन्होंने मलयालम फिल्मों पर अधिक ध्यान दिया। कई फिल्मों में एक माँ के रूप में उनकी सशक्त भूमिकाओं को अत्यधिक पसंद किया गया। श्रीविद्या का निजी जीवन त्रासदियों से भरा रहा है। स्तन कैंसर के कारण मृत्यु को प्राप्त करने से पहले उन्होंने अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण दर्शाते हुए सभी प्रकार की बाधाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी.

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सती अनसूइया मन्दिर, उत्तराखण्ड

सती अनसूइया मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। नगरीय कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुँचने में आस्था की वास्तविक परीक्षा तो होती ही है साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। यह मन्दिर हिमालय की ऊँची दुर्गम पहडियो पर स्थित है इसलिये यहाँ तक पहुँचने के लिये पैदल चढाई करनी पड़ती है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए चमोली के मण्डल नामक स्थान तक मोटर मार्ग है। ऋषिकेश तक आप रेल या बस से पहुँच सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर और गोपेश्वर होते हुए मण्डल पहुँचा जा सकता है। मण्डल से माता के मन्दिर तक पांच किलोमीटर की खडी चढाई है जिसपर श्रद्धालुओं को पैदल ही जाना होता है। मन्दिर तक जाने वाले रास्ते के आरंभ में पडने वाला मण्डल गांव फलदार पेडों से भरा हुआ है। यहां पर पहाडी फल माल्टा बहुतायत में होता है। गाँव के पास बहती कलकल छल छल करती नदी पदयात्री को पर्वत शिखर तक पहुँचने को उत्साहित करती रहती है। अनसूइया मन्दिर तक पहुँचने के रास्ते में बांज, बुरांस और देवदार के वन मुग्ध कर देते हैं। मार्ग में उचित दूरियों पर विश्राम स्थल और पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता है जो यात्री की थकान मिटाने के लिए काफी हैं। सती अनसूइया मन्दिर के निकट बहने वाली मंदाकिनी नदी। यात्री जब मन्दिर के करीब पहुँचता है तो सबसे पहले उसे गणेश की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो एक शिला पर बनी है। कहा जाता है कि यह शिला यहां पर प्राकृतिक रूप से है। इसे देखकर लगता है जैसे गणेश जी यहां पर आराम की मुद्रा में दायीं ओर झुककर बैठे हों। यहां पर अनसूइया नामक एक छोटा सा गांव है जहां पर भव्य मन्दिर है। मन्दिर नागर शैली में बना है। ऐसा कहा जाता है जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था। कविंदती है कि देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को विवश कर दिया। पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुँचें और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने पण (शर्त) रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खडे दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनके पण के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद मुनि के कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई। मन्दिर के गर्भ गृह में अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है, जिसके ऊपर चाँदी का छत्र रखा है। मन्दिर परिसर में शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। मन्दिर से कुछ ही दूरी पर अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय की त्रिमुखी पाषाण मू्र्ति स्थापित है। अब यहां पर एक छोटा सा मन्दिर बनाया गया है। मन्दिर से कुछ ही दूरी पर महर्षि अत्रि की गुफा और अत्रि धारा नामक जल प्रपात का विहंगम दृश्य श्रदलुओं और साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र है क्योंकि गुफा तक पहुँचने के लिए सांकल पकडकर रॉक क्लाइम्बिंग भी करनी पडती है। गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है। गुफा के बाहर अमृत गंगा और जल प्रपात का दृश्य मन मोह लेता है। यहां का जलप्रपात शायद देश का अकेला ऐसा जल प्रपात है जिसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही अमृतगंगा को बिना लांघे ही उसकी परिक्रमा की जाती है। ठहरने के लिए यहां पर एक छोटा लॉज उपलब्ध है। आधुनिक पर्यटन की चकाचौंध से दूर यह इलाका इको-फ्रैंडली पर्यटन का द्वितिय उदाहरण भी है। यहां भवन पारंपरिक पत्थर और लकडियों के बने हैं। हर वर्ष दिसंबर के महीने में अनसूइया पुत्र दत्तात्रेय जयंती के अवसर पर यहां एक मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में आसपास के गांव के लोग अपनी-अपनी डोली लेकर पहुँचते हैं। वैसे पूरे वर्षभर यहां की यात्रा की जाती है। इसी स्थान से पंच केदारों में से एक केदार रुद्रनाथ के लिए भी रास्ता जाता है। यहां से रूद्रनाथ की दूरी लगभग ७-८ किलोमीटर है। प्रकृति के बीच शांत और भक्तिमय माहौल में श्रद्धालु और पर्यटक अपनी सुधबुध खो बैठता है। .

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समुद्र मन्थन

अंगकोर वाट में समुद्र मंथन का भित्ति चित्र। समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हपौराणिक katha है। यह कथा भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण में आती है। .

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समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त (राज 335-380) गुप्त राजवंश के चौथे राजा और चन्द्रगुप्त प्रथम के उत्तरधिकरी थे। वे भारतीय इतिहास में सबसे बड़े और सफल सेनानायक में से एक माने जाते है। समुद्रगुप्त, गुप्त राजवंश के तीसरे शासक थे, और उनका शासनकाल भारत के लिये स्वर्णयुग की शुरूआत कही जाती है। समुद्रगुप्त को गुप्त राजवंश का महानतम राजा माना जाता है। वे एक उदार शासक, वीर योद्धा और कला के संरक्षक थे। उनका नाम जावा पाठ में तनत्रीकमन्दका के नाम से प्रकट है। उसका नाम समुद्र की चर्चा करते हुए अपने विजय अभियान द्वारा अधिग्रहीत एक शीर्षक होना करने के लिए लिया जाता है जिसका अर्थ है "महासागर"। समुद्रगुप्त के कई अग्रज भाई थे, फिर भी उनके पिता ने समुद्रगुप्त की प्रतिभा के देख कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसलिए कुछ का मानना है कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकारी के लिये संघर्ष हुआ जिसमें समुद्रगुप्त एक प्रबल दावेदार बन कर उभरे। कहा जाता है कि समुद्रगुप्त ने शासन पाने के लिये अपने प्रतिद्वंद्वी अग्रज राजकुमार काछा को हराया था। समुद्रगुप्त का नाम सम्राट अशोक के साथ जोड़ा जाता रहा है, हलांकि वे दोनो एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे। एक अपने विजय अभियान के लिये जाने जाते थे और दूसरे अपने जुनून के लिये जाने जाते थे। गुप्तकालीन मुद्रा पर वीणा बजाते हुए समुद्रगुप्त का चित्र समुद्र्गुप्त भारत का महान शासक था जिसने अपने जीवन काल मे कभी भी पराजय का स्वाद नही चखा। उसके बारे में वि.एस स्मिथ आकलन किया है कि समुद्रगुप्त प्राचीनकाल में "भारत का नेपोलियन" था। .

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संयोगिता चौहान

संयोगिता (संयोगिता चौहान, Sanyogita Chauhan) पृथ्वीराजतृतीय की पत्नी थी। पृथ्वीराज के साथ गान्धर्वविवाह कर के वें पृथ्वीराज की अर्धांगिनी बनी थी। भारत के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं में संयोगिताहरण गिना जाता है। पृथ्वीराज की तेरह राज्ञीओं में से संयोगिता अति रूपवती थी। संयोगिता को तिलोत्तमा, कान्तिमती, संजुक्ता इत्यादि नामों से भी जाना जाते थे। उनके पिता कन्नौज के राजा जयचन्द थे। जिन्होंने पृथ्वीराज के विरद्ध घोरी को युद्ध में सहायता की थी। .

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सीता

सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है। त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। .

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हिन्दू देवी देवताओं की सूची

यह हिन्दू देवी देवताओं की सूची है। हिन्दू लेखों के अनुसार, धर्म में तैंतीस कोटि (कोटि के अर्थ-प्रकार और करोड़) देवी-देवता बताये गये हैं। इनमें स्थानीय व क्षेत्रीय देवी-देवता भी शामिल हैं)। वे सभी तो यहां सम्मिलित नहीं किये जा सकते हैं। फिर भी इस सूची में तीन सौ से अधिक संख्या सम्मिलित है। .

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हिन्दू देवी-देवता

हिंदू देववाद पर वैदिक, पौराणिक, तांत्रिक और लोकधर्म का प्रभाव है। वैदिक धर्म में देवताओं के मूर्त रूप की कल्पना मिलती है। वैदिक मान्यता के अनुसार देवता के रूप में मूलशक्ति सृष्टि के विविध उपादानों में संपृक्त रहती है। एक ही चेतना सभी उपादानों में है। यही चेतना या अग्नि अनेक स्फुर्लिंगों की तरह (नाना देवों के रूप में) एक ही परमात्मा की विभूतियाँ हैं। (एकोदेव: सर्वभूतेषु गूढ़)। .

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हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म कहा जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं। अनुयायियों की संख्या के आधार पर ये विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। संख्या के आधार पर इसके अधिकतर उपासक भारत में हैं और प्रतिशत के आधार पर नेपाल में हैं। हालाँकि इसमें कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है। इसे सनातन धर्म अथवा वैदिक धर्म भी कहते हैं। इण्डोनेशिया में इस धर्म का औपचारिक नाम "हिन्दु आगम" है। हिन्दू केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है अपितु जीवन जीने की एक पद्धति है। .

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हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र

हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र एक हिंदू मंदिर और हिन्दू सांस्कृतिक का केंद्र है जो mississauga canada में पड़ता है।  25 000 वर्ग फुट मंदिर कनाडा का एक प्रसिध मंदिर माना जाता है.

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जम्मू

जम्मू (جموں, पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .

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जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर

जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर ब्रिटिश प्रवासी शासित प्रदेश जिब्राल्टर में स्थित हिन्दू मंदिर है। वर्ष 2000 में निर्मित हुआ जिब्राल्टर हिन्दू मंदिर इंजीनियर्स लेन पर स्थित है। यह जिब्राल्टर में मौजूद एकमात्र हिन्दू मंदिर है तथा क्षेत्र की हिन्दू आबादी के लिए आध्यात्म का केंद्र है। जिब्राल्टेरियन हिन्दू जिब्राल्टर की आबादी का लगभग 1.8 प्रतिशत हैं। इनमें से ज्यादातर लोग वर्तमान पाकिस्तान के सिंध राज्य से आए व्यापारीयो के वंशज हैं। मंदिर एक धर्मार्थ संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य जिब्राल्टर में हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण करना है। मंदिर में प्रमुख आराध्य राम हैं, जो अपनी धर्मपत्नी सीता, भाई लक्ष्मण और परम भगत हनुमान के साथ मंदिर की प्रमुख वेदी में विराजमान हैं। इनके आलावा मंदिर में कई अन्य हिन्दू देवी-देवताओ की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर में रोजाना शाम के 7:30 बजे आरती होती है तथा हर महीने की पूर्णिमा को सत्यनारायण कथा भी आयोजित की जाती है। मंदिर हिन्दू धर्म से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की धार्मिक कक्षाओं का भी आयोजन करता है। .

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जगन्नाथ मंदिर, त्यागराजनगर, दिल्ली

नई दिल्ली में त्यागराज नगर में स्थित है भगवान जगन्नाथ जी का एक भव्य मंदिर। .

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ज्वालामुखी मंदिर

ज्वालामुखी मंदिर, कांगडा घाटी से 30 कि॰मी॰ दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में शामिल है। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। इस स्थाल पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। ज्वालामुखी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरा नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। .

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घासीराम कोतवाल (नाटक)

घासीराम कोतवाल विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित मराठी नाटक है। यह ब्राह्मणों के गढ़ पूना में रोजगार की तलाश में गए एक हिंदी भाषी ब्राह्मण घासीराम के त्रासदी की कहानी है। ब्राह्मणों से अपमानित घासीराम मराठा पेशवा नाना फड़नबीस से अपनी बेटी के विवाह का सौदा करता है और पूना की कोतवाली हासिल कर उन ब्राह्मणों से बदला लेता है। किंतु नाना उसकी बेटी की हत्या कर देता है। घासीराम चाहकर भी इसका बदला नहीं ले पाता। उल्टे नाना उसकी हत्या करवा देता है। इस नाटक के मूल मराठी स्वरूप का पहली बार प्रदर्शन 16 दिसंबर, 1972 को पूना में ‘प्रोग्रेसिव ड्रामाटिक एसोसिएशन’ द्वारा भरत नाट्य मन्दिर में हुआ। निर्देशक थे डॉ॰ जब्बार पटेल। .

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वराहावतार

वराह अवतार, अलवर में प्राप्त एक मिनियेचर कलाकृति वराहावतार भगवान श्री हरि का एक अवतार है। जब जब धरती पापी लोगों से कष्ट पाती है तब तब भगवान विविध रूप धारण कर इसके दु:ख दूर करते हैं। .

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वाराही

वाराही हिन्दू धर्म की सप्तमातृका में से एक है। यह लक्ष्मी का एक रूप है जो विष्णु के वराहावतार की जीवनसाथी है। इनका शीश जंगली शूकर का है। श्रेणी:हिन्दू देवियाँ.

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वारुणी

वारुणी का सामान्य अर्थ मदिरा से लिया जाता है। हिन्दू मिथकों में वर्णित समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर निकली मदिरा को वारुणी कहा गया। आख्यानों के अनुसार यह देवी के रूप में समुद्र से निकली मदिरा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हुई। इसे देवता वरुण की पत्नी के रूप में माना जाता है और अन्य नाम वरुणानी भी उद्धृत किया जाता है। .

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विष्णु

वैदिक समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। पुराणानुसार विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं। कामदेव विष्णु जी का पुत्र था। विष्णु का निवास क्षीर सागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है जिसमें ब्रह्मा जी स्थित हैं। वह अपने नीचे वाले बाएँ हाथ में पद्म (कमल), अपने नीचे वाले दाहिने हाथ में गदा (कौमोदकी),ऊपर वाले बाएँ हाथ में शंख (पाञ्चजन्य) और अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ में चक्र(सुदर्शन) धारण करते हैं। शेष शय्या पर आसीन विष्णु, लक्ष्मी व ब्रह्मा के साथ, छंब पहाड़ी शैली के एक लघुचित्र में। .

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वैदिक देवता

भारतीय ग्रंथ वेदों में वर्णित देवताओं को वैदिक देवता कहते हैं - ये आधुनिक हिन्दू धर्म में प्रचलित देवताओं से थोड़े अलग हैं। वेदों के प्रत्येक मंत्र का एक देवता होता है, देवता का अर्थ - दाता, प्रेरक या ज्ञान-प्रदाता होता है । जिन देवताओं का मुख्य रूप से वर्णन हुआ है वे हैं - अग्नि, इंद्र, सोम, मित्रा-वरुण, सूर्य, अशिवनौ, ईश्वर, द्यावा-पृथ्वी आदि। ये वैदिक देवता आज भारतीय हिन्दू धर्म में व्यक्ति आधारित देवता जैसे - राम, कृष्ण, हनुमान, शिव, लक्ष्मी, गणेश, बालाजी, विष्णु, पेरुमल, गणेश, शक्ति आदि से अलग हैं। वेदों में शाश्वत वस्तुओं और भावनाओं को देवता माना गया है, जबकि पुराणों में दिव्य व्यक्तियों और प्राणियों को - जिन्होने अनेक व्यक्तियों को सन्मार्ग दिखाया है। आधुनिक हिन्दू धर्म में पुराण और अन्य स्मृति ग्रंथों के देवताओं का अधिक प्रयोग है। अन्य वैदिक देवताओं में रूद्र, आदित्य, दम्पत्ति, बृहस्पति आदि आते हैं। वेदों में विश्वेदेवा करके अखिल-देवताओं का भी ज़िक्र है जो इन सबको एक साथ संबोधित करता है। .

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वैदिक संस्कृत

ऋग्वेद में वैदिक संस्कृत का सब से प्राचीन रूप मिलता है ऋग्वेद १०.९०:२ का श्लोक: यह पुरुष वह सर्वस्व है जो हुआ है (भूतं) या होगा (भव्यं)। अमरता का ईश्वर (ईशानः) अन्न से और भी विस्तृत (अतिऽरोहति) होता है। वैदिक संस्कृत २००० ईसापूर्व (या उस से भी पहले) से लेकर ६०० ईसापूर्व तक बोली जाने वाली एक हिन्द-आर्य भाषा थी। यह संस्कृत की पूर्वज भाषा थी और आदिम हिन्द-ईरानी भाषा की बहुत ही निकट की संतान थी। उस समय फ़ारसी और संस्कृत का विभाजन बहुत नया था, इसलिए वैदिक संस्कृत और अवस्ताई भाषा (प्राचीनतम ज्ञात ईरानी भाषा) एक-दूसरे के बहुत क़रीब हैं। वैदिक संस्कृत हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार की हिन्द-ईरानी भाषा शाखा की सब से प्राचीन प्रमाणित भाषा है।, Alain Daniélou, Kenneth Hurry, Inner Traditions / Bear & Co, 2003, ISBN 978-0-89281-923-2,...

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वैदिक व्याकरण

संस्कृत का सबसे प्राचीन (वेदकालीन) व्याकरण 'वैदिक व्याकरण' कहलाता है। यह पाणिनीय व्याकरण से कुछ भिन्न था। .

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वैभव लक्ष्मी

शुक्रवार को लक्ष्मी देवी का भी व्रत रखा जाता है। इसे वैभवलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन स्त्री-पुरुष देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हुए श्वेत पुष्प, श्वेत चंदन से पूजा कर तथा चावल और खीर से भगवान को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस व्रत के दिन उपासक को एक समय भोजन करते हुए खीर अवश्य खानी चाहिए। .

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वेद

वेद प्राचीन भारत के पवितत्रतम साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में हैं जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् शब्द से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान के ग्रंथ' है। इसी धातु से 'विदित' (जाना हुआ), 'विद्या' (ज्ञान), 'विद्वान' (ज्ञानी) जैसे शब्द आए हैं। आज 'चतुर्वेद' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है -.

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खजराना मंदिर

खजराना गणेश मंदिर खजराना गणपति मंदिर खजराना मंदिर इन्दौर का प्रसिद्ध गणेश मंदिर है। यह मंदिर विजय नगर से कुछ दूरी पर खजराना चौक के पास में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण अहिल्या बाई होल्कर द्वारा किया गया था। इस मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवान गणपति की है, जो केवल सिन्दूर द्वारा निर्मित है।ठीक सामने बहुत ही मनोहारी कछुऐ की स्थापना की गयी है । इस मंदिर में गणेश जी के अतिरिक्त माता दुर्गा जी, महाकालेश्वर की भूमिगत शिवलिंग, गंगा जी की मगरमच्छ पर जलधारा मूर्ति, लक्ष्मी जी का मंदिर, साथ ही हनुमान जी की झाँकी मन मुग्ध करने वाली है। यहाँ शनि देव मंदिर एवं साई नाथ का भी भव्य मंदिर विराजमान है, यहाँ इस तरह की अनुभूति होती है,जैसे सारे देवी, देवता एक स्थान पर उपस्थित हो गये हों। यहाँ की मंदिर व्यवस्था बहुत ही उत्तम कोटि की है। इस मंदिर में 10,000 से लोग हर दिन दर्शन करते है। यहाँ जो भी भक्त अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये गणेश जी के पीठ पर उल्टा स्वास्तिक बनाता है,गणपति जी उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात पुनः सीधा स्वास्तिक बनाते हैं।यहाँ गणेश जी की विशेष आराधना बुध वार ऐवं चतुर्थी को की जाती है,इस दिनों भक्तों की अपार भीड़ दर्शनार्थ जुटते हैं। .

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गांगेयदेव

गांगेयदेव (सन् १०१५-१०४१ ई.) कल्चुरि राजवंश का प्रमुख शासक था। वह सन् १०१५ के लगभग कलचुरि चेदि राज्य के सिंहासन पर बैठा। उसके पिता कोकल्लदेव द्वितीय और दादा युवराजदेव द्वितीय के समय राज्य की स्थिति कुछ कमजोर हो चली थी। गांगेयदेव ने इस स्थिति को केवल सँभाला ही नहीं, उसने चेदिराज का फिर भारत का अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली राज्य बना दिया। .

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गंगा देवी

गंगा (ဂင်္ဂါ, गिंगा; คงคา खोंखा) नदी को हिन्दू लोग को माँ एवं देवी के रूप में पवित्र मानते हैं। हिंदुओं द्वारा देवी रूपी इस नदी की पूजा की जाती है क्योंकि उनका विश्वास है कि इसमें स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। तीर्थयात्री गंगा के पानी में अपने परिजनों की अस्थियों का विसर्जन करने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करते हैं ताकि उनके प्रियजन सीधे स्वर्ग जा सकें। हरिद्वार, इलाहबाद और वाराणसी जैसे हिंदुओं के कई पवित्र स्थान गंगा नदी के तट पर ही स्थित हैं। थाईलैंड के लॉय क्राथोंग त्यौहार के दौरान सौभाग्य प्राप्ति तथा पापों को धोने के लिए बुद्ध तथा देवी गंगा (พระแม่คงคา, คงคาเทวี) के सम्मान में नावों में कैंडिल जलाकर उन्हें पानी में छोड़ा जाता है। .

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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ओडिआ चलचित्र सूची

ओड़िआ चलचित्र की सारणी ओड़िआ भाषा .

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आद्या कात्यायिनी मंदिर, दिल्ली

छतरपुर मन्दिर दिल्ली के दक्षिण में स्थित एक मन्दिर है। इसका वास्तविक नाम श्री आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ मन्दिर है। यह भारत का दूसरा सबसे बड़ा मन्दिर परिसर है। यह मन्दिर देवी कात्यायनी को समर्पित है। इस मन्दिर की स्थापना बाबा सन्त नागपाल जी द्वारा १९७४ में हुई थी। यह मंदिर गुंड़गांव-महरौली मार्ग के निकट छतरपुर में स्थित है। यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी सजावट बहुत की आकर्षक है। दक्षिण भारतीय शैली में बना यह मंदिर विशाल क्षेत्र में फैला है। मंदिर परिसर में खूबसूरत लॉन और बगीचे हैं। मूल रूप से यह मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है। इसके अतिरिक्त यहाँ भगवान शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी, हनुमान, भगवान गणेश और राम आदि देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। दुर्गा पूजा और नवरात्रि के अवसर पर पूरे देश से यहां भक्त एकत्र होते हैं और समारोह में भाग लेते हैं। इस दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है। यहां एक पेड़ है जहां श्रद्धालु धागे और रंग-बिरंगी चूड़ियां बांधते हैं। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से मनोकामना पूर्ण होती है। श्रेणी:दिल्ली के हिन्दू मंदिर.

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आकूति

आकूति स्वयंभुव मनु और शतरूपा की तीन कन्याओं में से प्रथम कन्या थी। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ हुआ। आकूति के गर्भ से एक पुत्र तथा एक कन्या का जन्म हुआ। आकूति के पुत्र को स्वयंभुव मनु ने ले लिया। आकूति की कन्या का नाम दक्षिणा था। दक्षिणा के रूप में आकूति के गर्भ से स्वयं देवी लक्ष्मी अवतरित हुईं थीं। दक्षिणा के युवा होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु से कर दिया गया। श्रेणी:श्रीमद्भागवत श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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इश्तार टेरा

इश्तार टेरा (Ishtar Terra), शुक्र ग्रह पर दो मुख्य उच्चभूम क्षेत्रों में से एक है। यह दो "महाद्वीपों" में छोटा है और उत्तरी ध्रुव के पास स्थित है। यह अकाडिनी देवी इश्तार पर नामित है। इश्तार टेरा का आकार मोटे तौर पर ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका महाद्वीप के बीच है। इसके पूर्वी किनारे पर महान पर्वत श्रृंखला मैक्सवेल मोंटेस स्थित है जो 11 किमी ऊंची है, तुलना के लिए माउंट एवरेस्ट 8.8 किमी उंचा है। पर्वत श्रृंखला के एक तरफ लावा से भरा 100 किमी व्यास का प्रहार क्रेटर है। इश्तार टेरा शुक्र की चार मुख्य पर्वत श्रृंखलाएं शामिल करती है: पूर्वी तट पर मैक्सवेल मोंटेस, उत्तर में फ्रेज्या मोंटेस, अक्ना मोंटेस पश्चिमी तट पर और दक्षिणी क्षेत्र में दानु मोंटेस। ये इश्तार टेरा के निचले मैदान को घेरते हैं, जो कि लक्ष्मी प्लैनम से नामित है (हिंदू देवी लक्ष्मी के नाम पर)। इश्तार टेरा प्रसिद्ध महिलाओं पर नामित ज्वालामुखी भी शामिल करते हैं: साकाज़ाविया, कोलेट और क्लियोपेट्रा। श्रेणी:खगोलशास्त्र श्रेणी:शुक्र ग्रह श्रेणी:शुक्र की स्थलाकृति.

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कमल

'''कमल''' - यही भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है। कमल (वानस्पतिक नाम:नीलंबियन न्यूसिफ़ेरा (Nelumbian nucifera)) वनस्पति जगत का एक पौधा है जिसमें बड़े और सुन्दर फूल खिलते हैं। यह भारत का राष्ट्रीय पुष्प है। संस्कृत में इसके नाम हैं - कमल, पद्म, पंकज, पंकरुह, सरसिज, सरोज, सरोरुह, सरसीरुह, जलज, जलजात, नीरज, वारिज, अंभोरुह, अंबुज, अंभोज, अब्ज, अरविंद, नलिन, उत्पल, पुंडरीक, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि आदि। फारसी में कमल को 'नीलोफ़र' कहते हैं और अंग्रेजी में इंडियन लोटस या सैक्रेड लोटस, चाइनीज़ वाटर-लिली, ईजिप्शियन या पाइथागोरियन बीन। कमल का पौधा (कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी) पानी में ही उत्पन्न होता है और भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर आस्ट्रेलिया तक पाया जाता है। कमल का फूल सफेद या गुलाबी रंग का होता है और पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे, होते हैं। पत्तों की लंबी डंडियों और नसों से एक तरह का रेशा निकाला जाता है जिससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं। कहते हैं, इस रेशे से तैयार किया हुआ कपड़ा पहनने से अनेक रोग दूर हो जाते हैं। कमल के तने लंबे, सीधे और खोखले होते हैं तथा पानी के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैलते हैं। तनों की गाँठों पर से जड़ें निकलती हैं। .

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कामदेव

कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है। उनका स्वरूप युवा और आकर्षक है। वे विवाहित हैं और रति उनकी पत्नी हैं। वे इतने शक्तिशाली हैं कि उनके लिए किसी प्रकार के कवच की कल्पना नहीं की गई है। उनके अन्य नामों में रागवृंत, अनंग, कंदर्प, मनमथ, मनसिजा, मदन, रतिकांत, पुष्पवान, पुष्पधंव आदि प्रसिद्ध हैं। कामदेव, हिंदू देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के पुत्र और कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, कामदेव का अवतार है। कामदेव के आध्यात्मिक रूप को हिंदू धर्म में वैष्णव अनुयायियों द्वारा कृष्ण भी माना जाता है। .

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कालपुरुष

कालपुरुष की परिकल्पना भारतीय ज्योतिष में मिलती है जिसमें समस्त राशिचक्र को मनुष्य के शरीर के समतुल्य वर्णित किया जाता है। सारावली ग्रंथ में कहा गया है कि: १२ राशियां के रूप में कालपुरुष के शरीर के अवयव इस प्रकार से हैं.

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कालकूट

कालकूट अथवा हलाहल हिन्दू मिथकों में वर्णित वह विष है जो समुद्र मन्थन के समय क्षीरसागर से निकला था। .

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क्षीर सागर

विष्णु पुराण के अनुसार यह पृथ्वी सात द्वीपों में बंटी हुई है। ये सातों द्वीप चारों ओर से सात समुद्रों से घिरे हैं। ये सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए बने हैं और इन्हें घेरे हुए सातों समुद्र हैं। दुग्ध का सागर या क्षीर सागर शाकद्वीप को घेरे हुए है। इस सागर को पुष्करद्वीप घेरे हुए है।हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी,क्षीरसागर में निवास करते है। श्रेणी:हिन्दू धर्म श्रेणी:सप्त सागर श्रेणी:विष्णु पुराण श्रेणी:हिन्दू कथाएं श्रेणी:हिन्दू इतिहास.

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कृष्ण

बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, जिनकी घर घर में पूजा सदियों से की जाती रही है। कृष्ण भारत में अवतरित हुये भगवान विष्णु के ८वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर हैं। कन्हैया, श्याम, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, एक आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवत और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तुत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस कृति के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की ८वीं संतान थे। मथुरा के कारावास में उनका जन्म हुआ था और गोकुल में उनका लालन पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता पिता थे। उनका बचपन गोकुल में व्यतित हुआ। बाल्य अवस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कार्य किये जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। मथुरा में मामा कंस का वध किया। सौराष्ट्र में द्वारका नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसाया। पांडवों की मदद की और विभिन्न आपत्तियों में उनकी रक्षा की। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और भगवद्गीता का ज्ञान दिया जो उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। १२५ वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनकी मृत्यु के तुरंत बाद ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। .

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कूर्म अवतार

कूर्म अवतार कूर्म अवतार को 'कच्छप अवतार' (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था। नरसिंहपुराण के अनुसार कूर्मावतार द्वितीय अवतार है जबकि भागवतपुराण (१.३.१६) के अनुसार ग्यारहवाँ अवतार। शतपथ ब्राह्मण (७.५.१.५-१०), महाभारत (आदि पर्व, १६) तथा पद्मपुराण (उत्तराखंड, २५९) में उल्लेख है कि संतति प्रजनन हेतु प्रजापति, कच्छप का रूप धारण कर पानी में संचरण करता है। लिंगपुराण (९४) के अनुसार पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छपरूप में अवतार लिया। उक्त कच्छप की पीठ का घेरा एक लाख योजन था। पद्मपुराण (ब्रह्मखड, ८) में वर्णन हैं कि इंद्र ने दुर्वासा द्वारा प्रदत्त पारिजातक माला का अपमान किया तो कुपित होकर दुर्वासा ने शाप दिया, तुम्हारा वैभव नष्ट होगा। परिणामस्वरूप लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। पश्चात् विष्णु के आदेशानुसार देवताओं तथा दैत्यों ने लक्ष्मी को पुन: प्राप्त करने के लिए मंदराचल की मथानी तथा वासुकी की डोर बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन करते समय मंदराचल रसातल को जाने लगा तो विष्णु ने कच्छप के रूप में अपनी पीठ पर धारण किया और देवदानवों ने समुद्र से अमृत एवं लक्ष्मी सहित १४ रत्नों की प्राप्ति करके पूर्ववत् वैभव संपादित किया। एकादशी का उपवास लोक में कच्छपावतार के बाद ही प्रचलित हुआ। कूर्मपुराण में विष्णु ने अपने कच्छपावतार में ऋषियों से जीवन के चार लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) की वर्णन किया था। .

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केदारनाथ कस्बा

केदारनाथ हिमालय पर्वतमाला में बसा भारत के उत्तरांचल राज्य का एक कस्बा है। यह रुद्रप्रयाग की एक नगर पंचायत है। यह हिन्दू धर्म के अनुयाइयों के लिए पवित्र स्थान है। यहाँ स्थित केदारनाथ मंदिर का शिव लिंग १२ ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिन्दू धर्म के उत्तरांचल के चार धाम और पंच केदार में गिना जाता है। श्रीकेदारनाथ का मंदिर ३,५९३ मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ एक भव्य एवं विशाल मंदिर है। इतनी ऊँचाई पर इस मंदिर को कैसे बनाया गया, इस बारे में आज भी पूर्ण सत्य ज्ञात नहीं हैं। सतयुग में शासन करने वाले राजा केदार के नाम पर इस स्थान का नाम केदार पड़ा। राजा केदार ने सात महाद्वीपों पर शासन और वे एक बहुत पुण्यात्मा राजा थे। उनकी एक पुत्री थी वृंदा जो देवी लक्ष्मी की एक आंशिक अवतार थी। वृंदा ने ६०,००० वर्षों तक तपस्या की थी। वृंदा के नाम पर ही इस स्थान को वृंदावन भी कहा जाता है। यहाँ तक पहुँचने के दो मार्ग हैं। पहला १४ किमी लंबा पक्का पैदल मार्ग है जो गौरीकुण्ड से आरंभ होता है। गौरीकुण्ड उत्तराखंड के प्रमुख स्थानों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून इत्यादि से जुड़ा हुआ है। दूसरा मार्ग है हवाई मार्ग। अभी हाल ही में राज्य सरकार द्वारा अगस्त्यमुनि और फ़ाटा से केदारनाथ के लिये पवन हंस नाम से हेलीकाप्टर सेवा आरंभ की है और इनका किराया उचित है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण मंदिर बंद कर दिया जाता है और केदारनाथ में कोई नहीं रुकता। नवंबर से अप्रैल तक के छह महीनों के दौरान भगवान केदा‍रनाथ की पालकी गुप्तकाशी के निकट उखिमठ नामक स्थान पर स्थानांतरित कर दी जाती है। यहाँ के लोग भी केदारनाथ से आस-पास के ग्रामों में रहने के लिये चले जाते हैं। वर्ष २००१ की भारत की जनगणना के अनुसार केदारनाथ की जनसंख्या ४७९ है, जिसमें ९८% पुरुष और २% महिलाएँ है। साक्षरता दर ६३% है जो राष्ट्रीय औसत ५९.५% से अधिक है (पुरुष ६३%, महिला ३६%)। ०% लोग ६ वर्ष से नीचे के हैं। .

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अद्भुत रामायण

अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्यविशेष है। कहा जाता है, इस ग्रंथ के प्रणेता बाल्मीकि थे। किंतु इसकी भाषा और रचना से लगता है, किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है। .

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अलक्ष्मी

अलक्ष्मी, लक्ष्मी की बड़ी बहन हैं। समुद्रमंथन के समय कालकूट के बाद इनका प्रादुर्भाव हुआ। यह वृद्धा थी और इसके केश पीले, आंखें लाल तथा मुख काला था। देवताओं ने इसे वरदान दिया कि जिस घर में कलह हो, वहीं तुम रहो। हड्डी, कोयला, केश तथा भूसी में वास करो। कठोर असत्यवादी, बिना हाथ मुँह धोए और संध्या समय भोजन करनेवालों तथा अभक्ष्य-भक्षियों को तुम दरिद्र बना दो। लक्ष्मी से पूर्व इसका आविर्भाव हुआ था अत: विष्णु से लक्ष्मी का विवाह होने के पूर्व इसका ज्येष्ठा का विवाह उद्दालक ऋषि से करना पड़ा (पद्मपुराण, ब्रह्मखंड)। लिंगपुराण (२-६) के अनुसार अलक्षमी का विवाह दु:सह नामक ब्राह्मण से हुआ और उसके पाताल चले जाने के बाद यहा अकेली रह गई। सनत्सुजात संहिता के कार्तिक माहात्म्य में लिखा है कि पति द्वारा परित्यक्त होने पर यह पीपल वृक्ष के नीचे रहने लगीं। वहीं हर शनिवार को लक्ष्मी इससे मिलने आती हैं। अत: शनिवार को पीपल लक्ष्मीप्रद तथा अन्य दिन स्पर्श करने पर दारिद्रय देनेवाला माना जाता है। श्रेणी:पौराणिक पात्र श्रेणी:चित्र जोड़ें.

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अष्टलक्ष्मी

अष्टलक्ष्मी का अर्थ है, लक्ष्मी के आठ विशेष रूप। लक्ष्मी के आठ रूप ये हैं- आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी। श्रेणी:हिन्दू धर्म.

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अग्रसेन

महाराजा अग्रसेन (४२५० BC से ६३७ AD) एक पौराणिक समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी एवं समाजवाद के प्रथम प्रणेता थे। वे अग्रोदय नामक गणराज्य के महाराजा थे। जिसकी राजधानी अग्रोहा थी .

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अग्रोहा धाम

अग्रोहा धाम हिसार के अग्रोहा स्थित एक धार्मिक स्थल हैं, जो मुख्यतः महालक्ष्मी और अग्रसेन महाराज को समर्पित हैं। मंदिर का निर्माण सन १९७६ में प्रारंभ हुआ और १९८४ में पूरा हुआ। .

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उच्चैःश्रवा

उच्चैःश्रवा हिन्दू मिथकों में वर्णित समुद्र मन्थन के दौरान निकले चौदह रत्नों में से एक था। पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह सफ़ेद रंग का और सात मुख वाला घोडा था जो देवताओं (इन्द्र) को प्राप्त हुआ। गीता में कृष्ण ने श्रेष्ठतम वस्तुओं से अपनी तुलना के क्रम में अपने को अश्वों में उच्चैःश्रवा बताया है। कुमारसंभवम् में कालिदास, इसे इन्द्र से तारकासुर द्वारा छीन लिये जाने का वर्णन करते हैं। .

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उत्तर त्रिपुरा ज़िला

त्रितुरा राज्य में चार जिले हैं उत्तर त्रिपुरा भारतीय राज्य त्रिपुरा का एक जिला है। जिले का मुख्यालय कैलासहर है। इसका क्षेत्रफल - 2,470 वर्ग कि॰मी॰ और जनसंख्या - 5,90,655 (2001 जनगणना) है। काफी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। यहां स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर, पुराण राजबरी, जम्पुई पर्वत और भवतरिणी मंदिर आदि काफी प्रसिद्ध है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

देवी लक्ष्मी, महालक्ष्मी, कमला

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