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त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ और लक्ष्मी

शॉर्टकट: मतभेद, समानता, समानता गुणांक, संदर्भ

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ और लक्ष्मी के बीच अंतर

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ vs. लक्ष्मी

हथियागढ़ का त्रिपुर सुन्दरी मन्दिर जबलपुर शहर से करीब १४ कि॰मी॰ कि दूरी पर भेड़ाघाट मार्ग पर "हथियागढ़" नाम के स्थान में स्थित है। मन्दिर के अन्दर माता महाकाली, माता महालक्ष्मी और माता सरस्वती की विशाल मुर्ति स्थापित है। कहा जाता रहा है कि राजा "करन", जो हथियागढ़ के राजा थे, वे देवी के सामने खौलते हुये तेल के कडाहे में स्वयं को समर्पित कर देते थे और देवी प्रसन्न होकर उन्हें (राजा को) उनके वजन के बराबर सोना आशीर्वाद के रूप में देती थीं। मां त्रिपुर सुंदरी जो सदियों तक तेवर सहित आसपास इलाके में बड़ी खेरमाई या हथियागढ़ वाली खेरदाई के नाम से जानी जाती रही हैं और अब भी यहां के उम्रदराज लोग इसी नाम से संबोधित करते हैं। मां की अलौकिक शक्ति एवं चमत्कारों की यहां अनेक कहानियां एवं किवदंतियां आज भी सुनी जा सकती हैं। यहां पर आज भी मनोतियाँ मांगी जाती हैं और ऐसा देखा जा सकता है कि यहां मनोतियाँ पूर्ण होने के उपरांत भंडारे, विशेष पूजन-अर्चन तथा चढ़ावा का सिलसिला चलता ही रहता है। आस्था और श्रद्धा के इस स्थल में सदैव चहल पहल रहती है। लोग दूर-दूर से माँ के दर्शनार्थ दौड़े चले आते हैं। मां की चमत्कारी शक्तियों की अनेक कथाएं हैं। वे इस पहाड़ी स्थान को छोड़कर आबादी वाले क्षेत्र में आना ही नहीं चाहती थीं। सुना गया है कि एक बार ग्रामीण लोग माता जी को बैलगाड़ी में रखकर तेवर गांव में छोटी खेरमाई मंदिर ले कर आ गए और वहां रात भर भजन कीर्तन करते रहे। लोग जब दूसरे दिन सुबह स्नान-ध्यान करने और मां के पूजन की तैयारी करने अपने घर गए। इसके बाद जब वापस मंदिर आए तो माँ वहां से अंतर्ध्यान हो चुकी थीं। लोग घबरा गए। बाद में पता चला कि मां अपने पुराने स्थान पर स्वयं पहुंच गई हैं, ऐसी हैं तेवर की माँ त्रिपुरसुंदरी। एक कथा और सुनने को मिलती है कि अंग्रेजों के जमाने में कुछ बाहरी अनजान लोग मां को ट्रक में रख कर ले जा रहे थे परंतु कुछ ही दूरी पर ट्रक के सभी लोगों को नींद सताने लगी तब सभी लोग ट्रक को खड़ा कर सो गए और जब नींद खुली तो ट्रक में देवी मां नहीं थी। फिर ज्ञात हुआ कि वे अपने स्थान पर विराजमान हैं। जैसा मैं स्वयं जानता हूँ कि पूर्व में मां केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में थी। इसी तारतम्य में एक अन्य बात आज भी बताई जाती है कि त्रिपुरी क्षेत्र के ऐतिहासिक-उत्खनन के समय किसी उत्खनन अधिकारी ने मां को जंजीरों के सहारे खड़ा करने की कोशिश की थी तो उस अधिकारी को स्वप्न आया कि मुझे खड़ा मत करो परंतु वह नहीं माना। उसने जब मां को जंजीरों के सहारे खड़ा किया तभी अधिकारी के घर से उसके अच्छे-भले और स्वस्थ पुत्र की अचानक तबियत बिगड़ गई। बाद में उसने देवी मां को पूर्व स्थिति में रख कर उनसे क्षमा याचना और पूजन अर्चन किया तब जाकर उसके पुत्र को स्वास्थ्य लाभ हुआ। इनके अतिरिक्त इस सम्बन्ध में और भी कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें बताया जाता है कि दानी राजा कर्ण ने पूजा के बाद सवा पहर तक सोना बरसाया था और यह भी कहा जाता है कि एक बार खौलते तेल की कढ़ाई में राजा ने अपना मस्तक काटकर जब देवी माँ को चढ़ाया तब माँ ने स्वयं प्रकट होकर भक्त को पुनर्जीवित किया तथा दर्शन दिए। . लक्ष्मी हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो भगवान विष्णु की पत्नी हैं और धन, सम्पदा, शान्ति और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। दीपावली के त्योहार में उनकी गणेश सहित पूजा की जाती है। गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में एक लक्ष्मी भी है। जिस पर यह अनुग्रह उतरता है, वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, असंतुष्ट एवं पिछड़ेपन से ग्रसित नहीं रहता। स्वच्छता एवं सुव्यवस्था के स्वभाव को भी 'श्री' कहा गया है। यह सद्गुण जहाँ होंगे, वहाँ दरिद्रता, कुरुपता टिक नहीं सकेगी। पदार्थ को मनुष्य के लिए उपयोगी बनाने और उसकी अभीष्ट मात्रा उपलब्ध करने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। यों प्रचलन में तो 'लक्ष्मी' शब्द सम्पत्ति के लिए प्रयुक्त होता है, पर वस्तुतः वह चेतना का एक गुण है, जिसके आधार पर निरुपयोगी वस्तुओं को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। मात्रा में स्वल्प होते हुए भी उनका भरपूर लाभ सत्प्रयोजनों के लिए उठा लेना एक विशिष्ट कला है। वह जिसे आती है उसे लक्ष्मीवान्, श्रीमान् कहते हैं। शेष अमीर लोगों को धनवान् भर कहा जाता है। गायत्री की एक किरण लक्ष्मी भी है। जो इसे प्राप्त करता है, उसे स्वल्प साधनों में भी अथर् उपयोग की कला आने के कारण सदा सुसम्पन्नों जैसी प्रसन्नता बनी रहती है। .

त्रिपुर सुंदरी मंदिर, हथियागढ़ और लक्ष्मी के बीच समानता

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संदर्भ

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