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योजन

सूची योजन

योजन वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। 100 योजन से एक महायोजन बनता है। चार गाव्यूति .

19 संबंधों: नवटोल, सरिसबपाही, प्रकाश का वेग, पृथ्वी का हिन्दू वर्णन, महायोजन, योजन, रज्जु (मात्रक), शारदातनय, समुद्र मन्थन, सरयूपारीण ब्राह्मण, हिन्दू लम्बाई गणना, जम्बूद्वीप, वाराणसी, गाव्यूति, आर्यभटीय, कठ्ठा, काशी का विस्तार, कूर्म अवतार, अंगुल, ऋष्यमूक

नवटोल, सरिसबपाही

नवटोल, सरिसब-पाही (पश्चिमी) पंचायत, भारतीय राज्य बिहार के मधुबनी जिले में पंडौल प्रखंड में स्थित एक छोटा सा गाँव है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 57 गंगौली चौक से 1.5 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह गाँव 26° 14'13.43" N 86° 09'12.59" E पर स्थित है। इसकी कुल जनसंख्या लगभग 9000 से 10,000 के बीच है। इस गाँव में मैथिली, हिन्दी, अंग्रेजी जानने वाले व लिखने-पढ़ने वाले लोग और मैथिली यहाँ की मुख्य भाषा है। यहाँ की लिपि, देवनागरी एव्ं मिथिलाक्षर(तिरहुता) है। यहाँ एक सरकारी माध्यमिक विद्यालय है, यह एक संकुल संसाधन केन्द्र भी है। इस गाँव में होने वाले प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र का आयोजन काफी प्राचीन है। नवटोल में दुर्गा पूजा १८४० ई० से प्रतिवर्ष आश्विन में मनाया जाता है। आरती के समय होने वाले विशिष्ट श्रृंगार .

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प्रकाश का वेग

प्रकाश की चाल (speed of light) (जिसे प्राय: c से निरूपित किया जाता है) एक भौतिक नियतांक है। निर्वात में इसका सटीक मान 299,792,458 मीटर प्रति सेकेण्ड है जिसे प्राय: 3 लाख किमी/से.

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पृथ्वी का हिन्दू वर्णन

हिन्दु धर्म में विष्णु पुराण के अनुसार पृथ्वी का वर्णन इस प्रकार है। यह वर्णन श्रीपाराशर जी ने श्री मैत्रेय ऋषि से कियी था। उनके अनुसार इसका वर्णन सौ वर्षों में भी नहीं हो सकता है। यह केवल अति संक्षेप वर्णन है। .

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महायोजन

महायोजन वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। एक महायोजन बराबर होता है 1000 योजन के। यानि 13000-16000 कि.मी.

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योजन

योजन वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। 100 योजन से एक महायोजन बनता है। चार गाव्यूति .

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रज्जु (मात्रक)

एक रज्जु या राजलोक वह दूरी है जो कोई देव 2,057,152 योजन प्रति समय के वेग से चलकर ६ मास में तय करता है। यह दूरी लगभग 2,047,540,985,856,000 किलोमीटर या 216.5 प्रकाशवर्ष के बराबर है। १००० भार वाली एक लौह गेंद को स्वर्ग से स्वतन्त्रतापूर्वक छोड़ने पर ६ मास में वह एक रज्जु की दूरी तय करती है। ७ रज्जु की दूरी को एक जगश्रेणी कहते हैं। श्रेणी:जैन दर्शन श्रेणी:प्राचीन भारतीय मात्रक.

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शारदातनय

शारदातनय, नाट्यशास्त्र के आचार्य हैं जिन्होंने 'भावप्रकाशन' नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में कुल दस अधिकार (अध्याय) हैं जिनमें क्रमश: भाव, रसस्वरूप, रसभेद, नायक-नायिका निरूपण, नायिकाभेद, शब्दार्थसम्बन्ध, नाट्येतिहास, दशरूपक, नृत्यभेद एवं नाट्य-प्रयोगों का प्रतिपादन किया गया है। इस ग्रंथ में भोज के 'शृंगारप्रकाश' तथा आचार्य मम्मट द्वारा विरचित 'काव्यप्रकाश' से अनेक उद्धरण मिलते हैं। भावप्रकाशन में भारतवर्ष के बारे में आचार्य ने कहा है- श्रेणी:संस्कृत ग्रन्थ.

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समुद्र मन्थन

अंगकोर वाट में समुद्र मंथन का भित्ति चित्र। समुद्र मन्थन एक प्रसिद्ध हपौराणिक katha है। यह कथा भागवत पुराण, महाभारत तथा विष्णु पुराण में आती है। .

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सरयूपारीण ब्राह्मण

सरयूपारीण ब्राह्मण या सरवरिया ब्राह्मण या सरयूपारी ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे हुए ब्राह्मणों को कहा जाता है। ऋग्वेद में मुख्य रूप से तीन नदियों का उल्लेख ही है। इनमे सरस्वती, सिंधु और सरयू नदी का ज़िक्र है। कई लोगो का मानना है कि सरयूपारीण ब्राह्मण उन्ही मूल कान्य्कुब्ज ब्राह्मणों का दल है जिन्होने भारतीय सभ्यता की नीव पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में रखी। ये शुद्ध आर्यवंशी षट्कर्मा वेदपाठी आदिकालिक समूह है जो की आदिकाल से ही ब्राह्मण धर्म का अधिष्ठाता रहा है। .

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हिन्दू लम्बाई गणना

पृथ्वी की लम्बाई हेतु सर्वाधिक प्रयोगित इकाई है योजन। धार्मिक विद्वान भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने अपने पौराणिक अनुवादों में सभी स्थानों पर योजन की लम्बाई को 8 मील (13 कि॰मी॰) बताया है।। अधिकां भारतीय विद्वान इसका माप 13 कि॰मी॰ से 16 कि॰मी॰ (8-10 मील) के लगभग बताते हैं। .

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जम्बूद्वीप

यह लेख हिन्दू धर्मानुसार वर्णित है। भारतवर्ष कर्मप्रधान वर्ष है। इस वर्ष में जन्म लेने के लिये देवता भी लालायित रहते हैं। वे कहते हैं कि भारतवर्ष में जन्म लेने वाले प्राणी धन्य हैं। इस भारतवर्ष में अनेकों ऊँचे-ऊँचे रम्य पर्वत तथा नद-नदी विद्यमान हैं। इन पर्वतों पर और नदियों के तट पर बड़े-बड़े आत्मज्ञानी ऋषि आश्रम बनाकर रहते हैं। यहाँ पर जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल प्राप्त होता है। भारतवासी यज्ञादि कर्म करते समय भिन्न भिन्न देवताओं को हर्वि प्रदान करते हैं जिसे यज्ञपुरुष स्वयं पधार कर स्वीकार करते हैं। वे सकाम भाव वाले मनुष्यों की कामना पूर्ण करते हैं तथा निष्काम भाव वाले मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करते हैं। महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं।.

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वाराणसी

वाराणसी (अंग्रेज़ी: Vārāṇasī) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का प्रसिद्ध नगर है। इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। इसे हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। यह संसार के प्राचीनतम बसे शहरों में से एक और भारत का प्राचीनतम बसा शहर है। काशी नरेश (काशी के महाराजा) वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक एवं सभी धार्मिक क्रिया-कलापों के अभिन्न अंग हैं। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। ये शहर सहस्रों वर्षों से भारत का, विशेषकर उत्तर भारत का सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र रहा है। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का बनारस घराना वाराणसी में ही जन्मा एवं विकसित हुआ है। भारत के कई दार्शनिक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ वाराणसी में रहे हैं, जिनमें कबीर, वल्लभाचार्य, रविदास, स्वामी रामानंद, त्रैलंग स्वामी, शिवानन्द गोस्वामी, मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पंडित रवि शंकर, गिरिजा देवी, पंडित हरि प्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खां आदि कुछ हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हिन्दू धर्म का परम-पूज्य ग्रंथ रामचरितमानस यहीं लिखा था और गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन यहीं निकट ही सारनाथ में दिया था। वाराणसी में चार बड़े विश्वविद्यालय स्थित हैं: बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज़ और संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय। यहां के निवासी मुख्यतः काशिका भोजपुरी बोलते हैं, जो हिन्दी की ही एक बोली है। वाराणसी को प्रायः 'मंदिरों का शहर', 'भारत की धार्मिक राजधानी', 'भगवान शिव की नगरी', 'दीपों का शहर', 'ज्ञान नगरी' आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है। प्रसिद्ध अमरीकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं: "बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों (लीजेन्ड्स) से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है।" .

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गाव्यूति

गाव्यूति वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। एक गाव्यूति बराबर होता है 2000 धनुष के। चार गाव्यूति बराबर होते हैं एक योजन के।.

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आर्यभटीय

आर्यभटीय नामक ग्रन्थ की रचना आर्यभट प्रथम (४७६-५५०) ने की थी। यह संस्कृत भाषा में आर्या छंद में काव्यरूप में रचित गणित तथा खगोलशास्त्र का ग्रंथ है। इसकी रचनापद्धति बहुत ही वैज्ञानिक और भाषा बहुत ही संक्षिप्त तथा मंजी हुई है। इसमें चार अध्यायों में १२३ श्लोक हैं। आर्यभटीय, दसगीतिका पाद से आरम्भ होती है। इसके चार अध्याय इस प्रकार हैं: 1.

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कठ्ठा

कठ्ठा वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। यह ना कि लम्बाई, वरन क्षेत्रफल की इकाई है। यह भारत के साथ साथ नेपाल में भी प्रयुक्त होती है। एक योजन् बराबर होता है चार कोस के। यानि 13-16 कि.मी.

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काशी का विस्तार

वाराणसी क्षेत्र के विस्तार के अनेक पौराणिक उद्धरण उपलब्ध हैं। कृत्यकल्पतरु में दिये तीर्थ-विवेचन व अन्य प्राचीन ग्रन्थों के अनुसारकाशीविश्वनाथ। दीनदयाल मणि। २७ अगस्त २००९: .

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कूर्म अवतार

कूर्म अवतार कूर्म अवतार को 'कच्छप अवतार' (कछुआ के रूप में अवतार) भी कहते हैं। कूर्म के अवतार में भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नोंकी प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था। नरसिंहपुराण के अनुसार कूर्मावतार द्वितीय अवतार है जबकि भागवतपुराण (१.३.१६) के अनुसार ग्यारहवाँ अवतार। शतपथ ब्राह्मण (७.५.१.५-१०), महाभारत (आदि पर्व, १६) तथा पद्मपुराण (उत्तराखंड, २५९) में उल्लेख है कि संतति प्रजनन हेतु प्रजापति, कच्छप का रूप धारण कर पानी में संचरण करता है। लिंगपुराण (९४) के अनुसार पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छपरूप में अवतार लिया। उक्त कच्छप की पीठ का घेरा एक लाख योजन था। पद्मपुराण (ब्रह्मखड, ८) में वर्णन हैं कि इंद्र ने दुर्वासा द्वारा प्रदत्त पारिजातक माला का अपमान किया तो कुपित होकर दुर्वासा ने शाप दिया, तुम्हारा वैभव नष्ट होगा। परिणामस्वरूप लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। पश्चात् विष्णु के आदेशानुसार देवताओं तथा दैत्यों ने लक्ष्मी को पुन: प्राप्त करने के लिए मंदराचल की मथानी तथा वासुकी की डोर बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन करते समय मंदराचल रसातल को जाने लगा तो विष्णु ने कच्छप के रूप में अपनी पीठ पर धारण किया और देवदानवों ने समुद्र से अमृत एवं लक्ष्मी सहित १४ रत्नों की प्राप्ति करके पूर्ववत् वैभव संपादित किया। एकादशी का उपवास लोक में कच्छपावतार के बाद ही प्रचलित हुआ। कूर्मपुराण में विष्णु ने अपने कच्छपावतार में ऋषियों से जीवन के चार लक्ष्यों (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) की वर्णन किया था। .

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अंगुल

अंगुल वैदिक काल की हिन्दू लम्बाई मापन की इकाई है। एक अंगुल की लम्बाई एक मानव हस्त की अंगुली की मोटाई के बराबर होती है। (वायु पुराण के अनुसार एक अंगुल, अंगुली की एक गांठ के बराबर है और अन्य प्राधिकारियों के अनुसार सिरे पर अंगुष्ठ की मोटाई के बरबर है।) वायु ने मनु के अधिकार के अन्तर्गत उपर्युक्त समान गणना दी है, जो कि मनु संहिता में नहीं उल्लेखित है।.

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ऋष्यमूक

ऋष्यमूक वाल्मीकि रामायण में एक पर्वत का नाम है। रामायण के अनुसार ऋष्यमूक पर्वत में ऋषि मतंग का आश्रम था। वालि ने दुंदुभि असुर का वध करने के पश्चात् दोनों हाथों से उसका मृत शरीर एक ही झटके में एक योजन दूर फेंक दिया। हवा में उड़ते हुए मृत दुंदुभि के मुँह से रक्तस्राव हो रहा था जिसकी कुछ बूंदें मतंग ऋषि के आश्रम पर भी पड़ गयीं। मतंग यह जानने के लिए कि यह किसकी करतूत है, अपने आश्रम से बाहर निकले। उन्होंने अपने दिव्य तप से सारा हाल जान लिया। कुपित मतंग ने वालि को शाप दे डाला कि यदि वह कभी भी ऋष्यमूक पर्वत के एक योजन के पास भी आयेगा तो अपने प्राणों से हाथ धो देगा। यह बात उसके छोटे भाई सुग्रीव को ज्ञात थी और इसी कारण से जब वालि ने सुग्रीव को देश-निकाला दिया तो उसने वालि के भय से अपने अनुयायियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत में जाकर शरण ली। .

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