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महाशिवरात्रि

सूची महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि (बोलचाल में शिवरात्रि) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। अधिक तर लोग यह मान्यता रखते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवि पार्वति के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि की सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। कश्मीर शैव मत में इस त्यौहार को हर-रात्रि और बोलचाल में 'हेराथ' या 'हेरथ' भी जाता है। .

95 संबंधों: चंग नृत्य, टपकेश्वर मंदिर, एकलिंगजी, ऐसानेश्वर शिव मंदिर, भुवनेश्वर, उड़ीसा, झारखंड के पर्यटन स्थल, थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ, दिबियापुर, दिल्ली, दिल्ली की संस्कृति, देवशयनी एकादशी, नरंगा, बिहार, नासिक, नागेश्वर मंदिर, द्वारका, नवरात्रि, पड़िला महादेव मंदिर, पशुपतिनाथ मन्दिर (नेपाल), पशुपतिनाथ मन्दिर (भोपाल), पारसमणिनाथ मंदिर, प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति, प्रतापगढ़, राजस्थान, पौराणिक बृद्धकेदार, पूर्वी चंपारण, पूजा की थाली, बाबा बाणेश्वर नाथ मंदिर, अथरी, बाबा गंगेश्वरनाथ धाम, बाली, हावड़ा, बागनाथ मंदिर, बिहार, बिहार की संस्कृति, बिहारशरीफ, बैजनाथ मंदिर, बेलखरनाथ मन्दिर, भयहरणनाथ मन्दिर, भारत में सार्वजनिक अवकाश, भवनपुरा,जनपद मथुरा, भोजेश्वर मन्दिर, मधेपुरा जिला, मनोहरथाना, मरातिक गुफा, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, महाशिवरात्रि पशु मेला करौली, महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार, माहेश्वरी, माघ मेला, मुम्बई, मुंबई की संस्कृति, मोटेश्वर महादेव मन्दिर, यमेश्वर मंदिर, यक्ष (कला उत्सव), राममनोहर लोहिया, ..., राजस्थान के पशु मेले, राजिम, राजीवलोचन मंदिर, रविशङ्कर महाराज, लक्ष्मण नारायण गर्दे, लोधेश्वर महादेव मंदिर, शिव, शिव खोड़ी, शिवहर, सहजानन्द सरस्वती, साधु, सारस्वथ ब्राह्मण के त्योहार, स्थानेश्वर महादेव मन्दिर, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्कन्द पुराण, सोमनाथ मन्दिर, सोमनाथेश्वर महादेव, सीता कुंड, सीतामढ़ी, सीतामढी, हाजीपुर, हिन्दू पर्वों की सूची, हिन्दू पंचांग, हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र, हिलसा, बिहार, जम्मू, वसंत, वाणेश्वर महादेव मंदिर, वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर, वैशाली जिला, खजुराहो स्मारक समूह, गुफा मंदिर, भोपाल, ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर, ओड़िया लोग, आदियोगी शिव प्रतिमा, आन्ध्र प्रदेश, इलाहाबाद, कन्काई धाम कोटीहोम, कपालेश्वर मंदिर, काला चौना, कुम्भ मेला, कुर्नूल जिला, अगवानपुर, अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना), २०१० हरिद्वार महाकुम्भ सूचकांक विस्तार (45 अधिक) »

चंग नृत्य

चंग लोकनृत्य राजस्थान का का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र (चुरु, झुंझुनू, सीकर जिला) व बीकानेर जिला इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। यह पुरुषों का सामूहिक लोकनृत्य है। इसका आयोजन होली पर्व पर होता है और महाशिवरात्रि से लेकर होली तक चलता है। इस लोकनृत्य में खुले स्थान में परमुखतः 'चंग' नामक वाद्ययंत्र के साथ शरीर की गति या संचालन, नृत्य या तालबद्ध गति के साथ अभिव्यक्त किया जाता है। इस लोकनृत्य की अभिव्यक्ति इतनी प्रभावशाली होती है की चंग पर थाप पड़ते ही लोगों को चंग पर लगातार नाचने व झूमने पर मजबूर कर देती है। चंग लोकनृत्य में गायी जाने वाली लोकगायकी को 'धमाल' के नाम से जाना जाता है। शब्दों के बाण, भावनाओं की उमंग और मौज-मस्ती के रंग मिश्रित धमाल हर किसी को गाने व झुमने के लिये मजबूर कर देती है। .

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टपकेश्वर मंदिर

यह मंदिर देहरादून जिला देहरादून सिटी बस स्टेंड से 5.5 कि॰मी॰ की दूरी पर गढ़ी कैंट क्षेत्र में एक छोटी नदी के किनारे बना है। सड़क मार्ग द्वारा यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ एक गुफा में स्थित शिवलिंग पर एक चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। इसी कारण इसका नाम टपकेश्वर पड़ा है। शिवरात्रि के पर्व पर आयोजित मेले में लोग बड़ी संख्या में यहां एकत्र होते हैं और यहां स्थित शिव मूर्ति पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। पता - गढ़ी केंट, डोईवाला जिला-देहरादून, उत्तराखंड-248001;सम्पर्क सूत्र: श्री भारा गिरि जी, पुजारी;दिशा: यह क्लॉक टॉवर से 7.5 किलोमीटर की दूरी पर गढ़ी केंट में स्थित है।;आरती/प्रार्थना/का समय: 07:00 सुबह और 07:00 शाम;बंद रहता है: सभी दिन खुला रहता है।;देवता, जिनकी पूजा होती है: भगवान शिव .

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एकलिंगजी

एकलिंग राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित एक मंदिर परिसर है। यह स्थान उदयपुर से लगभग १८ किमी उत्तर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। वैसे उक्त स्थान का नाम 'कैलाशपुरी' है परन्तु यहाँ एकलिंग का भव्य मंदिर होने के कारण इसको एकलिंग जी के नाम से पुकारा जाने लगा। भगवान शिव श्री एकलिंग महादेव रूप में मेवाड़ राज्य के महाराणाओं तथा अन्य राजपूतो के प्रमुख आराध्य देव रहे हैं।मान्यता है कि यहाँ में राजा तो उनके प्रतिनिधि मात्र रूप से शासन किया करते हैं। इसी कारण उदयपुर के महाराणा को दीवाण जी कहा जाता है।ये राजा किसी भी युद्ध पर जाने से पहले एकलिंग जी की पूजा अर्चना कर उनसे आशीष अवश्य लिया करते थे। यहाँ मन्दिर परिसर के बाहर मन्दिर न्यास द्वारा स्थापित एक लेख के अनुसार डूंगरपुर राज्य की ओर से मूल बाणलिंग के इंद्रसागर में प्रवाहित किए जाने पर वर्तमान चतुर्मुखी लिंग की स्थापना की गई थी। इतिहास बताता है कि एकलिंग जी को ही को साक्षी मानकर मेवाड़ के राणाओं ने अनेक बार यहाँ ऐतिहासिक महत्व के प्रण लिए थे। यहाँ के महाराणा प्रताप के जीवन में अनेक विपत्तियाँ आईं, किन्तु उन्होंने उन विपत्तियों का डटकर सामना किया। किन्तु जब एक बार उनका साहस टूटने को हुआ था, तब उन्होंने अकबर के दरबार में उपस्थित रहकर भी अपने गौरव की रक्षा करने वाले बीकानेर के राजा पृथ्वी राज को, उद्बोधन और वीरोचित प्रेरणा से सराबोर पत्र का उत्तर दिया। इस उत्तर में कुछ विशेष वाक्यांश के शब्द आज भी याद किये जाते हैं: .

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ऐसानेश्वर शिव मंदिर, भुवनेश्वर, उड़ीसा

ऐसानेश्वर शिव मंदिर भारतीय राज्य उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में भगवान शिव को समर्पित १३ वीं शताब्दी में निर्मित एक हिन्दू मंदिर है। मंदिर भुवनेश्वर के पुराने शहर के श्रीराम नगर में एक अस्पताल के अंदर स्थित है। यह लिंगराज मंदिर के परिसर की पश्चिमी दीवार के समीप है। मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। मंदिर के अंदर एक गोलाकार योनिपीठ (तहखाने) के भीतर एक शिवलिंग स्थापित है। विभिन्न अनुष्ठान, जैसे शिवरात्रि, जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, तथा संक्रांति  इत्यादि यहाँ मनाये जाते हैं. शिवरात्रि के छठे दिन भगवान लिंगराज की मूर्ती को इसी मंदिर में लाया जाता है। .

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झारखंड के पर्यटन स्थल

मैक्लुस्कीगंज, रांची: एंग्लो-इंडियन समुदाय के एकमात्र गांव को एक इंग्लिश अफसर मैक्लुस्की ने देश भर के एंग्लो-इंडियन को बुलाकर बसाया था हालाँकि पहले वाली बात नहीं रही और ना उस संख्या में एंग्लो इंडियन समुदाय, पर अब भी कई कॉटेज, हवेली यहां मौजूद हैं, जिसे देखने लोग आते हैं। टैगोर हिल, रांची: कवीन्द्र रविन्द्र नाथ टैगोर फुर्सत के पलों में अपने रांची प्रवास के दौरान यहां आया करते थे। मोरहाबादी इलाके की इस पहाड़ी का नामकरण उनकी याद में किया गया है। झारखण्ड वार मेमोरियल, रांची: यह सैनिकों की अदम्य वीरता की याद कायम करने के लिए दीपाटोली में स्थापित किया गया है। नक्षत्र वन.

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थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ

थानेश्वर महादेव सिद्ध पीठ उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अति प्राचीनतम शिवालयों में से एक महत्वपूर्ण शिवालय है। यह मंदिर ग्राम थनूल,ब्लॉक कल्जीखाल,पट्टी मनियारस्यूं, जिला जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में स्थित है। समुद्रतल से लगभग ६००० फीट की ऊंचाई पर पर्वत श्रृखंलाओं के मध्य एक अत्यन्त रमणीक, शांत एवं पवित्र स्थान पर अवस्थित है। ५ किमी० फैले जंगल के मध्य में स्थित यह थानेश्वर धाम अध्यात्मिक चेतना, धर्मपरायणता व सहिष्णुता का आस्था केन्द्र है। .

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दिबियापुर

दिबियापुर भारत में सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में औरैया ज़िले का एक नगर और एक नगर पंचायत है। यह नगर राज्य राजमार्ग 21 पर स्थित है। यह हावड़ा-दिल्ली मुख्य लाइन के कानपुर-दिल्ली खण्ड पर फफूँद रेलवे स्टेशन से जुड़ा हुआ है जो उत्तर मध्य रेलवे द्वारा संचालित है। नगर का प्रशासनिक मुख्यालय औरैया है। .

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दिल्ली

दिल्ली (IPA), आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (अंग्रेज़ी: National Capital Territory of Delhi) भारत का एक केंद्र-शासित प्रदेश और महानगर है। इसमें नई दिल्ली सम्मिलित है जो भारत की राजधानी है। दिल्ली राजधानी होने के नाते केंद्र सरकार की तीनों इकाइयों - कार्यपालिका, संसद और न्यायपालिका के मुख्यालय नई दिल्ली और दिल्ली में स्थापित हैं १४८३ वर्ग किलोमीटर में फैला दिल्ली जनसंख्या के तौर पर भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर है। यहाँ की जनसंख्या लगभग १ करोड़ ७० लाख है। यहाँ बोली जाने वाली मुख्य भाषाएँ हैं: हिन्दी, पंजाबी, उर्दू और अंग्रेज़ी। भारत में दिल्ली का ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके दक्षिण पश्चिम में अरावली पहाड़ियां और पूर्व में यमुना नदी है, जिसके किनारे यह बसा है। यह प्राचीन समय में गंगा के मैदान से होकर जाने वाले वाणिज्य पथों के रास्ते में पड़ने वाला मुख्य पड़ाव था। यमुना नदी के किनारे स्थित इस नगर का गौरवशाली पौराणिक इतिहास है। यह भारत का अति प्राचीन नगर है। इसके इतिहास का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। हरियाणा के आसपास के क्षेत्रों में हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं। महाभारत काल में इसका नाम इन्द्रप्रस्थ था। दिल्ली सल्तनत के उत्थान के साथ ही दिल्ली एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक शहर के रूप में उभरी। यहाँ कई प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतों तथा उनके अवशेषों को देखा जा सकता हैं। १६३९ में मुगल बादशाह शाहजहाँ ने दिल्ली में ही एक चारदीवारी से घिरे शहर का निर्माण करवाया जो १६७९ से १८५७ तक मुगल साम्राज्य की राजधानी रही। १८वीं एवं १९वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने लगभग पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया। इन लोगों ने कोलकाता को अपनी राजधानी बनाया। १९११ में अंग्रेजी सरकार ने फैसला किया कि राजधानी को वापस दिल्ली लाया जाए। इसके लिए पुरानी दिल्ली के दक्षिण में एक नए नगर नई दिल्ली का निर्माण प्रारम्भ हुआ। अंग्रेजों से १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्त कर नई दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् दिल्ली में विभिन्न क्षेत्रों से लोगों का प्रवासन हुआ, इससे दिल्ली के स्वरूप में आमूल परिवर्तन हुआ। विभिन्न प्रान्तो, धर्मों एवं जातियों के लोगों के दिल्ली में बसने के कारण दिल्ली का शहरीकरण तो हुआ ही साथ ही यहाँ एक मिश्रित संस्कृति ने भी जन्म लिया। आज दिल्ली भारत का एक प्रमुख राजनैतिक, सांस्कृतिक एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। .

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दिल्ली की संस्कृति

दिल्ली हाट में प्रदर्शित परंपरागत पॉटरी उत्पाद। दिल्ली की संस्कृति यहां के लंबे इतिहास और भारत की राजधानी रूप में ऐतिहासिक स्थिति से पूर्ण प्रभावित रहा है। यह शहर में बने कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारकों से विदित है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने दिल्ली शहर में लगभग १२०० धरोहर स्थल घोषित किए हैं, जो कि विश्व में किसी भी शहर से कहीं अधिक है। और इनमें से १७५ स्थल राष्ट्रीय धरोहर स्थल घोषित किए हैं। पुराना शहर वह स्थान है, जहां मुगलों और तुर्क शासकों ने कई स्थापत्य के नमूने खडए किए हैं, जैसे जामा मस्जिद (भारत की सबसे बड़ी मस्जिद) और लाल किला। दिल्ली में फिल्हाल तीन विश्व धरोहर स्थल हैं – लाल किला, कुतुब मीनार और हुमायुं का मकबरा। अन्य स्मारकों में इंडिया गेट, जंतर मंतर (१८वीं सदी की खगोलशास्त्रीय वेधशाला), पुराना किला (१६वीं सदी का किला).

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देवशयनी एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। .

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नरंगा, बिहार

नरंगा भारत के बिहार राज्य के तिरहुत प्रमंडल के सीतामढ़ी जिले के परिहार प्रखंड का एक गाँव है। .

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नासिक

नासिक अथवा नाशिक भारत के महाराष्ट्र राज्य का एक शहर है। नसिक महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में, मुम्बई से १५० किमी और पुणे से २०५ किमी की दुरी में स्थित है। यह शहर प्रमुख रूप से हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केन्द्र है। नासिक पवित्र गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 565 मीटर है। गोदावरी नदी के तट पर बहुत से सुंदर घाट स्थित है। इस शहर का सबसे प्रमुख भाग पंचवटी है। इसके अलावा यहां बहुत से मंदिर भी है। नासिक में त्योहारों के समय में बहुत अधिक संख्या में भीड़ दिखलाई पड़ती है। .

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नागेश्वर मंदिर, द्वारका

नागेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्द मन्दिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह द्वारका, गुजरात के बाहरी क्षेत्र में स्थित है। यह शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हिन्दू धर्म के अनुसार नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर होता है। यह विष आदि से बचाव का सांकेतिक भी है। रुद्र संहिता में इन भगवान को दारुकावने नागेशं कहा गया है। भगवान्‌ शिव का यह प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारका पुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान्‌ शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। एतद् यः श्रृणुयान्नित्यं नागेशोद्भवमादरात्‌। सर्वान्‌ कामानियाद् धीमान्‌ महापातकनाशनम्‌॥ .

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नवरात्रि

नवरात्रि एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा का मतलब जीवन के दुख कॊ हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ देवियाँ है:-.

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पड़िला महादेव मंदिर

पड़िला महादेव मंदिर, प्रयाग के पाँचकोशी यात्रा का एक महत्वपूर्ण स्थान है।भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) के उत्तरांचल मे जनपद मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर (इलाहाबाद-प्रतापगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 96) फाफामऊ के थरवई गाँव मे स्थित हैं। इसे पांडेश्वर महादेव मंदिर कजे नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान सोराँव तहसील में फाफामऊ कस्बे से ३ किमी उत्तर पूर्व में स्थित हैं। किंवदन्ती है कि श्री कृष्ण की सलाह पर यहाँ पाण्ड्वों ने भगवान शंकर के लिंग की स्थापना अपने वनवासकाल के दौरान किया था। यह मन्दिर पूर्ण रूप से पत्थरों से बना हुआ है। गजेटियर के अनुसार यहाँ शिवरात्रि व फाल्गुन कृष्ण १५ को मेला लगता है। श्रेणी:शिव मंदिर.

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पशुपतिनाथ मन्दिर (नेपाल)

पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाली: पशुपतिनाथ मन्दिर) नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में बागमती नदी के किनारे देवपाटन गांव में स्थित एक हिंदू मंदिर है। नेपाल के एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनने से पहले यह मंदिर राष्ट्रीय देवता, भगवान पशुपतिनाथ का मुख्य निवास माना जाता था। यह मंदिर यूनेस्को विश्व सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में सूचीबद्ध है। पशुपतिनाथ में आस्था रखने वालों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। गैर हिंदू आगंतुकों को इसे बाहर से बागमती नदी के दूसरे किनारे से देखने की अनुमति है। यह मंदिर नेपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। १५ वीं शताब्दी के राजा प्रताप मल्ल से शुरु हुई परंपरा है कि मंदिर में चार पुजारी (भट्ट) और एक मुख्य पुजारी (मूल-भट्ट) दक्षिण भारत के ब्राह्मणों में से रखे जाते हैं। पशुपतिनाथ में शिवरात्रि का पर्व विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है। .

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पशुपतिनाथ मन्दिर (भोपाल)

पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाली: पशुपतिनाथ मन्दिर) मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में गोविन्दपुरा में स्थित एक हिंदू मंदिर है। पशुपतिनाथ में आस्थावानों (मुख्य रूप से हिंदुओं) को मंदिर परिसर में प्रवेश करने की अनुमति है। यह मंदिर नेपाली समाज का भोपाल में शिव का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। पशुपतिनाथ में शिवरात्रि त्योहार विशेष महत्व के साथ मनाया जाता है। शिवरात्रि त्यौहार के दिन यहाँ दो दिवस का मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें खेल प्रतिस्पर्धा,झूले,खानपान की दुकाने भी मेले का आकर्षण का केंद्र होता है। .

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पारसमणिनाथ मंदिर

पारसमणिनाथ मंदिर (हिन्दी:पारसमणिनाथ मंदिर) के रूप में भी जाना जाता है। यह एक प्रसिद्ध शिव के लिए समर्पित हिंदू मंदिर है जो रहुआ-संग्राम गांव के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है। जो बिहार के मधुबनी जिला अंतर्गत मधेपुर प्रखण्ड कार्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर है। शिव प्राथमिक देवता है। एक बड़ी शिव प्रतिमा को स्थापित किया गया है जो वहाँ में सबसे ऊंची है बिहार और झारखंड में है। एक प्रमुख त्योहारों के मंदिर में महा शिवरात्रि पर जो दिन लगभग 20,000 श्रद्धालुओं यहाँ जाएँ.

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प्रतापगढ़ (राजस्थान) की संस्कृति

सीतामाता मंदिर के सामने एक मीणा आदिवासी: छाया: हे. शे. हालाँकि प्रतापगढ़ में सभी धर्मों, मतों, विश्वासों और जातियों के लोग सद्भावनापूर्वक निवास करते हैं, पर यहाँ की जनसँख्या का मुख्य घटक- लगभग ६० प्रतिशत, मीना आदिवासी हैं, जो राज्य में 'अनुसूचित जनजाति' के रूप में वर्गीकृत हैं। पीपल खूंट उपखंड में तो ८० फीसदी से ज्यादा आबादी मीणा जनजाति की ही है। जीवन-यापन के लिए ये मीना-परिवार मूलतः कृषि, मजदूरी, पशुपालन और वन-उपज पर आश्रित हैं, जिनकी अपनी विशिष्ट-संस्कृति, बोली और वेशभूषा रही है। अन्य जातियां गूजर, भील, बलाई, भांटी, ढोली, राजपूत, ब्राह्मण, महाजन, सुनार, लुहार, चमार, नाई, तेली, तम्बोली, लखेरा, रंगरेज, रैबारी, गवारिया, धोबी, कुम्हार, धाकड, कुलमी, आंजना, पाटीदार और डांगी आदि हैं। सिख-सरदार इस तरफ़ ढूँढने से भी नज़र नहीं आते.

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प्रतापगढ़, राजस्थान

प्रतापगढ़, क्षेत्रफल में भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान के ३३वें जिले प्रतापगढ़ जिले का मुख्यालय है। प्राकृतिक संपदा का धनी कभी इसे 'कान्ठल प्रदेश' कहा गया। यह नया जिला अपने कुछ प्राचीन और पौराणिक सन्दर्भों से जुड़े स्थानों के लिए दर्शनीय है, यद्यपि इसके सुविचारित विकास के लिए वन विभाग और पर्यटन विभाग ने कोई बहुत उल्लेखनीय योगदान अब तक नहीं किया है। .

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पौराणिक बृद्धकेदार

पौराणिक बृद्धकेदार भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के अन्तर्गत पाली पछांऊॅं इलाके में रामगंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। इसे बृद्धकेदार अथवा बूढ़ाकेदार भी कहा जाता है। स्थानीय अनुभववेत्ताओं के मतानुसार इस वैदिक काल के शिवालय को पहला नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का अंश समझा जाता है तो दूसरी ओर केदारनाथ मन्दिर की शाखा। परन्तु यह सत्य है, विनोद नदी व रामगंगा नदी के संगम से शुरू हुई पर्वत माला के ऊत्तरी छोर पर केदारनाथ मन्दिर विराजमान है। भारतवर्ष में शायद यही एक शिवालय है जहॉं पर महाशिव का धड़ स्थापित है। इसकी स्थापना का अनुमान पन्द्रहवीं व सोलहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता रहा है। .

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पूर्वी चंपारण

पूर्वी चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। चंपारण को विभाजित कर 1971 में बनाए गए पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। पूर्वी चम्‍पारण के उत्‍तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्‍पारण जिला है। .

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पूजा की थाली

पूजा की थाली वह बड़ी तश्तरी या ट्रे होती है जिसमें पूजा की सामग्री रखी जाती है। भारतीय पर्वों, उत्सवों, परंपराओं और संस्कारों में पूजा की थाली का विशेष महत्व है। पूजा की थाली कोई सामान्य थाली भी हो सकती है, कोई कलात्मक थाली भी और कोई हीरे मोती की थाली भी। थाली कितनी सजी और कितनी मँहगी हो यह उत्सव के आयोजन की भव्यता और आयोजक की आर्थिक परिस्थिति पर निर्भर करता है लेकिन इसमें रखी गई वस्तुएँ जिन्हें पूजा सामग्री कहते हैं, लगभग एक सी होती हैं। .

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बाबा बाणेश्वर नाथ मंदिर, अथरी

बाबा बाणेश्वर नाथ मंदिर, अथरी.

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बाबा गंगेश्वरनाथ धाम

बाबा गंगेश्वर नाथ धाम मंदिर गंगा नदी से तीनो दिशाओं से घिरे कोनिया क्षेत्र के इटहरा गाँव में स्थित है यह भगवान शिव का मंदिर है, पश्चिम वाहिनी गंगा के सम्मुख होने के कारण इस मंदिर को बाबा गंगेश्वर नाथ कहा गया है। इस मंदिर का निर्माण कार्य बिसेन राजपूतो ने तत्कालीन काशी नरेश की सहायता से लगभग 2५० वर्ष पूर्व इ. सन १७५० में कराया था। शिवलाल सिंह इटहरा गाँव के निवासी थे, वे बिसेन राजपूतो से संबाधित थे। बहुत ही धार्मिक प्रवृति होने के कारण इस मंदिर का शिलान्यास शिवलाल सिंह के द्वारा कराया गया। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी के दिन महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। यहाँ पर महाशिवरात्रि पर्व के दिन मेला लगता है और महाशिवरात्रि पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी है। उसके अनुसार- भगवान विष्णु की नाभि से कमल निकला और उस पर ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी सृष्टि के सर्जक हैं और विष्णु पालक। दोनों में यह विवाद हुआ कि हम दोनों में श्रेष्ठ कौन है? उनका यह विवाद जब बढऩे लगा तो तभी वहां एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। उस ज्योतिर्लिंग को वे समझ नहीं सके और उन्होंने उसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो पाए। जब दोनों देवता निराश हो गए तब उस ज्योतिर्लिंग ने अपना परिचय देते हुए कहां कि मैं शिव हूं। मैं ही आप दोनों को उत्पन्न किया है। तब विष्णु तथा ब्रह्मा ने भगवान शिव की महत्ता को स्वीकार किया और उसी दिन से शिवलिंग की पूजा की जाने लगी। शिवलिंग का आकार दीपक की लौ की तरह लंबाकार है इसलिए इसे ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही शिव-पार्वती का विवाह हुआ था इसलिए महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। .

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बाली, हावड़ा

बाली, उत्तर हावड़ा का एक क्षेत्र है। यह कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण के अधीन आता है।बाली नगर पूर्व बाली नगर पालिका का मुख्यालय भी था। यह ऐतिहासिक महत्व के एक शहर है।यह नगर हुगली के तट पर, हावड़ा जिले के उत्तर-पूर्वी छोर पर स्थित है। यह दक्षिणेश्वर काली मंदिर से नदी के दूसरे छोर पर विष्वप्रसिद्ध बेलूर मठ के निकट स्थित है। .

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बागनाथ मंदिर

बागनाथ मंदिर; (Bagnath Temple) एक प्राचीन मंदिर शिव जी को समर्पित है। यह सरयू तथा गोमती नदियों के संगम पर बागेश्वर नगर में स्थित है.

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बिहार

बिहार भारत का एक राज्य है। बिहार की राजधानी पटना है। बिहार के उत्तर में नेपाल, पूर्व में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में उत्तर प्रदेश और दक्षिण में झारखण्ड स्थित है। बिहार नाम का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल के विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के सबसे पिछड़े योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। .

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बिहार की संस्कृति

बिहार की संस्कृति भोजपुरी, मैथिली, मगही, तिरहुत तथा अंग संस्कृतियों का मिश्रण है। नगरों तथा गाँवों की संस्कृति में अधिक फर्क नहीं है। नगरों में भी लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते है तथा उनकी मान्यताएँ रुढिवादी है। बिहारी समाज पुरूष प्रधान है और लड़कियों को कड़े नियंत्रण में रखा जाता है। हिंदू और मुस्लिम यद्यपि आपसी सहिष्णुता का परिचय देते हैं लेकिन कई अवसरों पर यह तनाव का रूप ले लेता है। दोनों समुदायों में विवाह को छोड़कर सामाजिक एवं पारिवारिक मूल्य लगभग समान है। जैन एवं बौद्ध धर्म की जन्मस्थली होने के बावजूद यहाँ दोनों धर्मों के अनुयाईयों की संख्या कम है। पटना सहित अन्य शहरों में सिक्ख धर्मावलंबी अच्छी संख्या में हैं।.

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बिहारशरीफ

बिहारशरीफ बिहार के नालंदा जिले का मुख्यालय है। .

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बैजनाथ मंदिर

बैजनाथ मंदिर बैजनाथ में स्थित नागर शैली में बना हिंदू मंदिर है। यह 1204 ईस्वी में अहुका और मन्युका नामक दो स्थानीय व्यापारियों ने बनवाया था। यह वैद्यनाथ (चिकित्सकों के प्रभु) के रूप में भगवान शिव को समर्पित है।  शिलालेखों के अनुसार वर्तमान बैजनाथ मंदिर के निर्माण से पूर्व भगवान शिव के मंदिर का अस्तित्व था। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है। बाहरली दीवारों में अनेकों चित्रों की नक्काशी हुई है। .

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बेलखरनाथ मन्दिर

बाबा बेलखरनाथ मन्दिर (धाम) उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद मे सई नदी के तट पर स्थित हैं। बाबा बेलखरनाथ धाम प्रतापगढ़ मुख्यालय से १५ किलोमीटर पट्टी मार्ग पर लगभग ९० मीटर ऊँचे टीले पर स्थित है। यह स्थल ग्राम अहियापुर में स्थित है। वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि पर्व पर व् प्रत्येक तीसरे वर्ष मलमास में यहाँ १ महीने तक विशाल मेला चलता है जिसमे कई जिलो से शिवभक्त व संत महात्मा यहाँ आकर पूजन प्रवचन किया करते हैं। प्रत्येक शनिवार को यहाँ हजारो की संख्या में पहुचने वाले श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना किया करते है। .

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भयहरणनाथ मन्दिर

बाबा भयहरणनाथ मन्दिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मन्दिर हैं। यह उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला में स्थित एक पांडव युगीन मंदिर हैं, जो ग्राम कटरा गुलाब सिंह में पौराणिक बकुलाही नदी के तट पर विद्यमान हैं। माना जाता है की अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने यहाँ शिवलिंग की स्थापना की जिसमें यहां पांडवों ने भगवान शिव की पूजा-अर्चना की.

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भारत में सार्वजनिक अवकाश

भारत अनेकता में एकता वाला देश है जहाँ विविध और उत्कट संस्कृतियों वाले समाज के लोग रहते हैं। यहाँ पर स्‍वतंत्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस और गांधी जयंती के रूप में तीन राष्ट्रीय अवकाश दिवश हैं। राज्य और क्षेत्र प्रचलित धार्मिक और भाषाई जनसांख्यिकी के आधार पर क्षेत्रिय त्यौंहार भी होते हैं। हिन्दू धर्म के दीपावली, गणेश चतुर्थी, होली एवं नवरात्रि, इस्लाम में ईद उल-फ़ित्र एवं ईद-उल-अज़हा, बौद्ध धर्म में बुद्ध जयंती एवं आंबेडकर जयंती, इसाई धर्म में क्रिसमिस एवं गुड फ़्राइडे जैसे त्यौंहार देशभर में लोकप्रिय हैं। .

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भवनपुरा,जनपद मथुरा

गांव-भवनपुरा - गोवर्धन से ०३ कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित जनपद मथुरा में जिला मुख्यालय से २१ किमी की दूरी पर स्थित है,यहां की किसी भी घर की छत से आप गोवर्धन स्थित श्री गिरिराज जी मंदिर के साक्षात दर्शन कर सकते हैं। यह गांव सडक मार्ग द्वारा जिला मुख्यालय मथुरा उत्तर प्रदेशसे जुडा हुआ है, गांव भवनपुरा हिंदू धर्म इस गांव के लोग सांस्कृतिक परंपराओं का निर्वहन बडी ही शालीनता व सहयोग की भावना से करते हैं गांव भवनपुरा के निवासी बडे ही खुशमिजाज व शाकाहारी खानपान के शौकीन हैं,यहां वर्ष भर विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन चलते रहते हैं,जैसे ०१ जनवरी के दिन गोपाला महोत्सव का आयोजन किया जाता है यह आयोजन गांव-भवनपुरा की एकता व भाईचारे का प्रतीक हैं इस गांव में भक्ति भाव व भाईचारे की भावना को बनाये रखने के लिये प्रतिदिन सुबह ०४ बजे भगवान श्री कृष्ण नाम का कीर्तन करते हुये गांव की परिक्रमा करते हुये प्रभातफेरी निकाली जाती है जिसमें बडी संख्या में गांव के स्त्री पुरूष भाग लेते हैं,जिससे गांव भवनपुरा का प्रात:काल का वातावरण कृष्णमय हो जाता है जिसके कारण गांव के निवासियों को आनंद की अनुभूति होती है जोकि अविस्मरणीय है,इस प्रभातफेरी का आयोजन बृज के संतों की कृपा से पिछले ३५ वर्षों से किया जा रहा है,अत: इसी प्रभातफेरी की वर्षगांठ के रूप में प्रतिवर्ष गोपाला महोत्सव का आयोजन किया जाता है,इसी दिन ही गांव भवनपुरा के निवासियों की ओर से आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार सहयोग राशि एकत्रित कर विशाल प्रसाद भंडारेका आयोजन किया जाता है जिसमें समस्त ग्राम वासी इच्छानुसार नये वस्त्र धारण कर बडे हर्षोल्लास के साथ टाट पट्टियों पर बैठकर सामूहिक रूप से प्रसाद ग्रहण करते हैं, यह क्षण वास्तव में ही प्रत्येक ग्रामवासी के लिये अत्यंत आनंद दायक होता है इसके उपरांत अन्य समीपवर्ती गांवों से निमंत्रण देकर बुलवायी गयी कीर्तन मंडलियों द्वारा कीर्तन प्रतियोगिता का रंगारंग आयोजन होता है जिसमें प्रथम स्थान प्राप्त करने वाली कीर्तन मंडली को मुख्य अतिथि द्वारा विशेष उपहार देकर व अन्य कीर्तन मंडलियों को भी उपहार वितरित कर सम्मानित किया जाता है रक्षाबंधन पर विशेष खेलकूद प्रतियोगिता का आयोजन गांव भवनपुरा में किया जाता है जिसमें बडी संख्या में गांव के युवा द्वारा और रक्षाबंधन के अवसर पर आने वाले नये पुराने रिश्तेदारों द्वारा बढचढकर प्रतिभाग किया जाता है | गांव भवनपुरामें होली,दीपावली,गोवर्धनपूजा के त्यौहार भी बडे हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते हैं,होली के बाद हुरंगा का रंगारंग आयोजन किया जाता है, कुश्ती दंगल- होली से १३ दिवस उपरांत चैत्र माह की त्रियोदशी को गांव में कुश्ती दंगल का आयोजन गांव-भवनपुरा में किया जाता है जिसमें दूर दूर आये हुये से पहलवान अपनी बृज प्रसिद्ध मल्ल विधा के कौशल का परिचय देते हैं इस आयोजन को देखने आसपडोस के गांव कस्बों से भारी संख्या में बालक,युवा,बृद्ध व गणमान्य व्यक्ति उपस्थित होते हैं,दंगल के दिन ही गांव में विक्रेताओं द्वारा जलेबी सोनहलवा,पान,आईसक्रीम चांट पकौडी,समौसा,आदि की स्टाल व बच्चौं के लिये खिलौनों की दुकान व खेलकूद के लिये तरह तरह के झूले लगाये जाते हैं जिनका कि बच्चे व गांव की महिलायें जमकर लुप्त उठाती हैं तथा दंगल देखने बाद गांव जाने वाले लोग अपने परिवार के लिये जलेबी,सोनहलुवा अनिवार्य रूप से ले जाते हैं इसी दिन ही रात्रि में गांव में नौटंकी का आयोजन किया जाता हैं जिसे आस-पास के गांवों से काफी संख्या में युवा वर्ग के नौजवान एकत्रित होते हैं तथा गांव के युवा वर्ग द्वारा इस आयोजन का जमकर आनंद लिया जाता है, महाशिवरात्रि अर्थात भोला चौदस पर भी गांव-भवनपुरा में विशेष आयोजन होते हैं इस दिन भगवान भोलेनाथ के भक्त ग्रामवासी युवा श्री गंगा जी रामघाट से कांवर लेकर आते हैं इन कावडियों के ग्राम पहुंचनें पर भव्य स्वागत किया जाता है तथा गांव के सभी लोग बैंड बाजे के साथ गांव की परिक्रमा करने के बाद भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं,इस दिन गांव सभी घरों में विशेष पकवान व गाजर का हलवा,खोवा के लड्डू,सिघाडे का हलवा आदि बनते हैं जिन्हें महाशिवरात्रि पर व्रत रखने वाले लोग बडे चाव से खाते हैं, शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा हेतु गांव में ही प्राईमरी स्कूल, जूनियर हाईस्कूल है, इससे आगे की पढाई के लिये निकटवर्ती कस्बा गोवर्धन, अडींग जाना पडता है इन कस्बों के प्रमुख इंटर कालेजों/पी०जी० कालेजों की सूची निम्नलिखित है निकटवर्ती पर्यटन/धार्मिक स्थल- .

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भोजेश्वर मन्दिर

भोजेश्वर मन्दिर (जिसे भोजपुर मन्दिर भी कहते हैं) मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग ३० किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर नामक गांव में बना एक मन्दिर है। यह मन्दिर बेतवा नदी के तट पर विन्ध्य पर्वतमालाओं के मध्य एक पहाड़ी पर स्थित है। --> मन्दिर का निर्माण एवं इसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज (१०१० - १०५३ ई॰) ने करवायी थी। उनके नाम पर ही इसे भोजपुर मन्दिर या भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है, हालाँकि कुछ किंवदंतियों के अनुसार इस स्थल के मूल मन्दिर की स्थापना पाँडवों द्वारा की गई मानी जाती है। इसे "उत्तर भारत का सोमनाथ" भी कहा जाता है। यहाँ के शिलालेखों से ११वीं शताब्दी के हिन्दू मन्दिर निर्माण की स्थापत्य कला का ज्ञान होता है व पता चलता है कि गुम्बद का प्रयोग भारत में इस्लाम के आगमन से पूर्व भी होता रहा था। इस अपूर्ण मन्दिर की वृहत कार्य योजना को निकटवर्ती पाषाण शिलाओं पर उकेरा गया है। इन मानचित्र आरेखों के अनुसार यहाँ एक वृहत मन्दिर परिसर बनाने की योजना थी, जिसमें ढेरों अन्य मन्दिर भी बनाये जाने थे। इसके सफ़लतापूर्वक सम्पन्न हो जाने पर ये मन्दिर परिसर भारत के सबसे बड़े मन्दिर परिसरों में से एक होता। मन्दिर परिसर को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक चिह्नित किया गया है व इसका पुनरुद्धार कार्य कर इसे फिर से वही रूप देने का सफ़ल प्रयास किया है। मन्दिर के बाहर लगे पुरातत्त्व विभाग के शिलालेख अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग भारत के मन्दिरों में सबसे ऊँचा एवं विशालतम शिवलिंग है। इस मन्दिर का प्रवेशद्वार भी किसी हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मन्दिर के निकट ही इस मन्दिर को समर्पित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी बना है। शिवरात्रि के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा यहां प्रतिवर्ष भोजपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है। .

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मधेपुरा जिला

मधेपुरा भारत के बिहार राज्य का जिला है। इसका मुख्यालय मधेपुरा शहर है। सहरसा जिले के एक अनुमंडल के रूप में रहने के उपरांत ९ मई १९८१ को उदाकिशुनगंज अनुमंडल को मिलाकर इसे जिला का दर्जा दे दिया गया। यह जिला उत्तर में अररिया और सुपौल, दक्षिण में खगड़िया और भागलपुर जिला, पूर्व में पूर्णिया तथा पश्चिम में सहरसा जिले से घिरा हुआ है। वर्तमान में इसके दो अनुमंडल तथा ११ प्रखंड हैं। मधेपुरा धार्मिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। चंडी स्थान, सिंघेश्‍वर स्थान, श्रीनगर, रामनगर, बसन्तपुर, बिराटपुर और बाबा करु खिरहर आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से हैं। .

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मनोहरथाना

मनोहरथाना राजस्थान के दक्षिण पूर्व में स्थित झालावाड जिले का एक कस्बा है। यह राजस्थान-मध्यप्रदेश सीमा से कुछ ही दुरी पर स्थित है और कस्बे से मध्यप्रदेश सीमा करीब १२ किलोमीटर है। मनोहर थाना ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिती है, तहसील मनोहर थाना लगती है। यह ग्राम तीन और से नदियों से घिरा हुआ है। दो तरफ़ से इसे मध्य प्रदेश से आने वाली घोडापछाड नदी (यहाँ इसे कालीखाड नदी भी कहते हैं) घेरती है एवं एक और से परवन नदी। गांव के बाहर ही कालीखाड परवन नदी में मिलती है, जिसे संगम स्थल कहा जाता है। गांव के चारों तरफ़ परकोटा है जिसे प्राचीन काल में मनोहर भील नामक राजा ने बनवाया था। किले में आज भी राजाओं के समय के खण्डर हुए कक्ष, स्नानागार आदि देखे जा सकते हैं। कुछ वर्ष पहले तक आसपास घने वन भी हुआ करते थे लेकिन अब सब काटे जा चुके हैं। यह कस्बा आस पास के करीब ५० गाँवों के लिये व्यापार का केन्द्र है। कृषि उपज मंडी भी है जहाँ काश्तकार अपनी फसल बेचने आते हैं। .

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मरातिक गुफा

मरातिक गुफा और Maratika मठ (Maratika भी जाना जाता है के रूप में Haleshi या Halase) में स्थित हैं Khotang जिला में नेपाल, लगभग 185 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में माउंट एवरेस्टहै। यह एक सम्मानित साइट की तीर्थयात्रा के साथ जुड़े Mandarava, पद्मसंभव और दीर्घायु.

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महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय

महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय (MGCGV) मध्य प्रदेश के सतना जिले में मन्दाकिनी नदी के किनारे चित्रकूट में स्थित है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी के ग्रामीण विकास के स्वप्न को साकार कर ग्राम स्वराज्य की स्थापना है। अत: सम्यक तकनीक की शिक्षा और इसका प्रसार करना इसका प्रमुख लक्ष्य है। इसकी स्थापना १२ फ़रवरी सन् १९९१ को महाशिवरात्रि के दिन मध्यप्रदेश सरकार के अधिनियम (९, १९९१) के द्वारा हुई। .

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महाशिवरात्रि पशु मेला करौली

करौली जिले में भरने वाला यह पशु मेला राज्य स्तरीय पशु मेलों में से एक है। इस पशु मेले का आयोजन प्रतिवर्ष फाल्गुन कृष्णा में किया जाता है। महाशिवरात्रि के पर्व पर आयोजित होने से इस पशु मेले का नाम शिवरात्रि पशु मेला पड़ गया है। इस मेले के आयोजन का प्रारंभ रियासत काल में हुआ था। मेले में हरियाणवी नस्ल के पशुओं की बिक्री बहुत होती है। राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के व्यापारी भी इस मेले में आते हैं। पशु मेला समाप्त हो जाने के करीब १ सप्ताह बाद इसी स्थल पर माल मेला भरता है जिसमें करौली कस्बे के आस-पास के व्यापारी वर्ग अपनी दुकानें लगाते हैं और ग्राम ग्रामीण क्षेत्र के लोगों द्वारा इस मेले में आवश्यक वस्तुओं को खरीदा जाता है और चुना जाता है कि इस मेले में रियासत के समय जवाहरात की दुकानें भी लगाई जाती थीं। .

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महेन्द्रनाथ मंदिर , सिवान , बिहार

बिहार राज्य के सीवान जिला से लगभग 35 किमी दूर सिसवन प्रखण्ड के अतिप्रसिद्ध मेंहदार गांव में स्थित भगवान शिव के प्राचीन महेंद्रनाथ मन्दिर का निर्माण नेपाल नरेश महेंद्रवीर विक्रम सहदेव सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था और इसका नाम महेंद्रनाथ रखा था। ऐसी मान्यता है कि मेंहदार के शिवलिंग पर जलाभिषेक करने पर नि:संतानों को संतान व चर्म रोगियों को चर्म रोग रोग से निजात मिल जाती है । .

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माहेश्वरी

माहेश्वरी (English: Maheshwari) धर्म के अनुयायियों को माहेश्वरी कहते हैं। इसे कभी-कभी मारवाड़ी या राजस्थानी भी लिखा जाता है। मान्यता के अनुसार माहेश्वरीयों की उत्पत्ति (वंश) भगवान महेश के कृपा-आशीर्वाद से ही हुवा है इसलिए 'श्री महेश परिवार' (भगवान महेशजी, माता पार्वती एवं गणेशजी) को माहेश्वरीयों के (माहेश्वरी वंश के) कुलदेवता / कुलदैवत माना जाता है। माहेश्वरीयों के धार्मिक स्थान को मंदिर (महेश मंदिर) कहते हैं। भारत की आजादी की लड़ाई में और भारत की आर्थिक प्रगति में माहेश्वरीयों का बहुत बड़ा योगदान है। जन्म-मरण विहीन एक ईश्वर (महेश) में आस्था और मानव मात्र के कल्याण की कामना माहेश्वरी धर्म के प्रमुख सिद्धान्त हैं। माहेश्वरी समाज सत्य, प्रेम और न्याय के पथ पर चलता है। शरीर को स्वस्थ-निरोगी रखना, कर्म करना (मेहनत और ईमानदारी से काम करना), बांट कर खाना और प्रभु की भक्ति (नाम जाप एवं योग साधना) करना इसके आधार हैं। माहेश्वरी अपने धर्माचरण का पूरी निष्ठा के साथ पालन करते है तथा वह जिस स्थान / देश / प्रदेश में रहते है वहां की स्थानिक संस्कृति का पूरा आदर-सम्मान करते है, इस बात का ध्यान रखते है; यह माहेश्वरी समाज की विशेष बात है। आज दुनियाभर के कई देशों में और तकरीबन भारत के हर राज्य, हर शहर में माहेश्वरीज बसे हुए है और अपने अच्छे व्यवहार के लिए पहचाने जाते है। मधुबनी जिला,बिहार राज्य से तीन किलोमीटर उत्तर में ग्राम अहमादा,पंचायत रघुनी देहट में मैथिल ब्राह्मण परिवार जिनका गोत्र काश्यप है भी माँ माहेश्वरी को अपना कुलदेवी मानते हुए वर्षों से नियमित पुजा अर्चना करते आ रहे हैं .

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माघ मेला

माघ मेला हिन्दुओं का सर्वाधिक प्रिय धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला है। हिन्दू पंचांग के अनुसार १४ या १५ जनवरी को मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है। यह भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में मनाया जाता है। नदी या सागर स्नान इसका मुख्य उद्देश्य होता है। धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा पारंपरिक हस्त शिल्प, भोजन और दैनिक उपयोग की पारंपरिक वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। धार्मिक महत्त्व के अलावा यह मेला एक विकास मेला भी है तथा इसमें राज्य सरकार विभिन्न विभागों के विकास योजनाओं को प्रदर्शित करती है। प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों का माघ मेला प्रसिद्ध है। कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी। वहीं भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी। पद्म पुराण के महात्म्य के अनुसार-माघ स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं। इस प्रकार माघमेले का धार्मिक महत्त्व भी है। .

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मुम्बई

भारत के पश्चिमी तट पर स्थित मुंंबई (पूर्व नाम बम्बई), भारतीय राज्य महाराष्ट्र की राजधानी है। इसकी अनुमानित जनसंख्या ३ करोड़ २९ लाख है जो देश की पहली सर्वाधिक आबादी वाली नगरी है। इसका गठन लावा निर्मित सात छोटे-छोटे द्वीपों द्वारा हुआ है एवं यह पुल द्वारा प्रमुख भू-खंड के साथ जुड़ा हुआ है। मुम्बई बन्दरगाह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बन्दरगाह है। मुम्बई का तट कटा-फटा है जिसके कारण इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यूरोप, अमेरिका, अफ़्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आनेवाले जहाज यात्री एवं पर्यटक सर्वप्रथम मुम्बई ही आते हैं इसलिए मुम्बई को भारत का प्रवेशद्वार कहा जाता है। मुम्बई भारत का सर्ववृहत्तम वाणिज्यिक केन्द्र है। जिसकी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 5% की भागीदारी है। यह सम्पूर्ण भारत के औद्योगिक उत्पाद का 25%, नौवहन व्यापार का 40%, एवं भारतीय अर्थ व्यवस्था के पूंजी लेनदेन का 70% भागीदार है। मुंबई विश्व के सर्वोच्च दस वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। भारत के अधिकांश बैंक एवं सौदागरी कार्यालयों के प्रमुख कार्यालय एवं कई महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थान जैसे भारतीय रिज़र्व बैंक, बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज, नेशनल स्टऑक एक्स्चेंज एवं अनेक भारतीय कम्पनियों के निगमित मुख्यालय तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुम्बई में अवस्थित हैं। इसलिए इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नगर में भारत का हिन्दी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी है, जो बॉलीवुड नाम से प्रसिद्ध है। मुंबई की व्यवसायिक अपॊर्ट्युनिटी, व उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष भर के लोगों को आकर्षित करती है, जिसके कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है। मुंबई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है। .

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मुंबई की संस्कृति

बंबई एशियाटिक सोसाइटी शहर की पुरातनतम पुर्तकालयों में से एक है। मुंबई की संस्कृति परंपरागत उत्सवों, खानपान, संगीत, नृत्य और रंगमंच का सम्मिश्रण है। इस शहर में विश्व की अन्य राजधानियों की अपेक्षा बहुभाषी और बहुआयामी जीवनशैली देखने को मिलती है, जिसमें विस्तृत खानपान, मनोरंजन और रात्रि की रौनक भी शामिल है। मुंबई के इतिहास में यह मुख्यतः एक प्रधान व्यापारिक केन्द्र रहा है। इस कारण विभिन्न क्षेत्रों के लोग यहां आते रहे, जिससे बहुत सी संस्कृतियां, धर्म, आदि यहां एक साथ मिलजुलकर रहते हैं। मुंबई भारतीय चलचित्र का जन्मस्थान है।—दादा साहेब फाल्के ने यहां मूक चलचित्र के द्वारा इस उद्योग की स्थापना की थी। इसके बाद ही यहां मराठी चलचित्र का भी श्रीगणेश हुआ था। तब आरंभिक बीसवीं शताब्दी में यहां सबसे पुरानी फिल्म प्रसारित हुयी थी। मुंबई में बड़ी संख्या में सिनेमा हॉल भी हैं, जो हिन्दी, मराठी और अंग्रेज़ी फिल्में दिखाते हैं। विश्व में सबसे बड़ा IMAX डोम रंगमंच भी मुंबई में वडाला में ही स्थित है। मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव और फिल्मफेयर पुरस्कार की वितरण कार्यक्रम सभा मुंबाई में ही आयोजित होती हैं। हालांकि मुंबई के ब्रिटिश काल में स्थापित अधिकांश रंगमंच समूह १९५० के बाद भंग हो चुके हैं, फिर भी मुंबई में एक समृद्ध रंगमंच संस्कृति विकसित हुयी हुई है। ये मराठी और अंग्रेज़ी, तीनों भाषाओं के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी विकसित है। गणेश चतुर्थी, मुंबई का सबसे अधिक हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला उत्सव यहां कला-प्रेमियों की कमी भी नहीं है। अनेक निजी व्यावसायिक एवं सरकारी कला-दीर्घाएं खुली हुई हैं। इनमें जहांगीर कला दीर्घा और राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा प्रमुख हैं। १८३३ में बनी बंबई एशियाटिक सोसाइटी में शहर का पुरातनतम पुस्तकालय स्थित है। छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय (पूर्व प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूज़ियम) दक्षिण मुंबई का प्रसिद्ध संग्रहालय है, जहां भारतीय इतिहास के अनेक संग्रह सुरक्षित हैं। मुंबई के चिड़ियाघर का नाम जीजामाता उद्यान है (पूर्व नाम: विक्टोरिया गार्डन्स), जिसमें एक हरा भरा उद्यान भी है। नगर की साहित्य में संपन्नता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति तब मिली जब सल्मान रश्दी और अरविंद अडिग को बुकर सम्मान मिले थे। यही के निवासी रुडयार्ड किपलिंग को १९०७ में नोबल पुरस्कार भी मिला था। मराठी साहित्य भी समय की गति क साथ साथ आधुनिक हो चुका है। यह मुंबई के लेखकों जैसे मोहन आप्टे, अनंत काणेकर और बाल गंगाधर तिलक के कार्यों में सदा दृष्टिगोचर रहा है। इसको वार्षिक साहित्य अकादमी पुरस्कार से और प्रोत्साहन मिला है। एलीफेंटा की गुफाएं विश्व धरोहर स्थ घोषित हैं। मुंबई शहर की इमारतों में झलक्ता स्थापत्य गोथिक, इंडो रेनेनिक, आर्ट डेको और अन्य समकालीन स्थापत्य शैलियों का संगम है। ब्रिटिश काल की अधिकांश इमारतें, जैसे विक्टोरिया टर्मिनस और बंबई विश्वविद्यालय, गोथिक शैली में निर्मित हैं। इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगौम चौपाटी, जूहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है। एलीफेंटा उत्सव—प्रत्येक फरवरी माह में एलीफेंटा द्वीप पर आयोजित किया जाता है। यह भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं शास्त्रीय नृत्य का कार्यक्रम ढेरों भारतीय और विदेशी पर्यटक आकर्षित करता है। शहर और प्रदेश का खास सार्वजनिक अवकाश १ मई को महाराष्ट्र दिवस के रूप में महाराष्ट्र राज्य के गठन की १ मई, १९६० की वर्षागांठ मनाने के लिए होता है। मुंबई के भगिनि शहर समझौते निम्न शहरों से हैं.

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मोटेश्वर महादेव मन्दिर

मोटेश्वर महादेव मंदिर भारत के उत्तरी राज्य उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर जिले के काशीपुर तहसील में स्थित एक मन्दिर है। यहां के चैती मैदान में महादेव नगर के किनारे चैती मंदिर स्थित यह मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है और इसका शिवलिंग बारहवां उप ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिवलिंग की मोटाई अधिक होने के कारण यह मोटेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव ने कहा कि जो भक्त कांवड़ कंधे पर रखकर हरिद्वार से गंगा जल लाकर यहां चढ़ाएगा, उसे मोक्ष मिलेगा। इसी मान्यता के कारण लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर यहा लोग कांवड़ चढ़ाते हैं। मोटेश्वर महादेव मंदिर दूसरी मंजिल पर है। इस शिवलिंग के चारों ओर तांबे का फर्श बना है और इसे जागेश्वर के एक कारीगर ने बनाया था। शिवलिंग की मोटाई अधिक होने के कारण इसे कोई अपने दोनों हाथों से घेर नहीं पाता है। .

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यमेश्वर मंदिर

यमेश्वर या जमेश्वर मंदिर एक बहुत ही पुरानी मंदिर है जो शिव भगवान  को समर्पित  है। यह भुवनेश्वर में जमेश्वर पाटणा के पास भारती मठ निक्ट स्थित है।   .

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यक्ष (कला उत्सव)

यक्ष एक वार्षिक कला उत्सव है जिसे, ईशा फाउंडेशन, ईशा योग केंद्र, कोयंबतूर में आयोजित करता है। जनवरी २०१० में शुरू किया गया यक्ष, भारत के विख्यात कलाकारों द्वारा संगीत और नृत्य का प्रदर्शन करता है। यक्ष, भारत के पारंपरिक संगीत और नृत्य को प्रचलित करने के उद्देश्य से आरम्ब किया गया था। इस उत्सव का नाम की प्रेरणा भारत के पौराणिक कथाएं में यक्ष नाम के परालौकिक प्राणियों से ली गयी है। .

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राममनोहर लोहिया

डॉ॰ राममनोहर लोहिया डॉ॰ राममनोहर लोहिया (जन्म - मार्च २३, इ.स. १९१० - मृत्यु - १२ अक्टूबर, इ.स. १९६७) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। .

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राजस्थान के पशु मेले

भारतीय राज्य राजस्थान में सभी जिलों और ग्रामीण स्तर पर लगभग 250 से अधिक पशु मेला का प्रतिवर्ष आयोजन किया जाता है। कला, संस्कृति, पशुपालन और पर्यटन की दृष्टि से यह मेले अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। देश विदेश के हजारों लाखों पर्यटक इसके माध्यम से लोक कला एवं ग्रामीण संस्कृति से रूबरू होते हैं। राज्य स्तरीय पशु मेलों के आयोजनों में नगरपालिका और ग्राम पंचायतों की ओर से पशुपालकों को पानी, बिजली पशु चिकित्सा व टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार की ओर से इन मेलों में समय-समय पर प्रदर्शनी और अन्य ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। राजस्थान राज्य स्तरीय पशु मेला में अधिकांश मेले लोक देवी देवताओं एवं महान पुरुषों के नाम से जुड़े हुए हैं पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले राज्य स्तरीय पशु मेले कुछ इस प्रकार है। .

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राजिम

राजिम का राजीव लोचन मंदिर राजिम छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित का प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का 'प्रयाग' भी कहते हैं। यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते हैं, यहाँ पैरी नदी, सोंढुर नदी और महानदी का संगम है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है। .

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राजीवलोचन मंदिर

राजिम में महानदी के तट पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर स्थित है जहाँ पर भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर शिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है। यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का त्रिवेणी संगम कहलाता है। राजीवलोचन मंदिर एक विशाल आयताकार प्राकार के मध्य में बनाया गया है। भू-विन्यास योजना में यह मंदिर-महामण्डप, अन्तराल, गर्भगृह और प्रदक्षिणापथ, इन चार विशिष्ट अंगों में विभक्त है। .

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रविशङ्कर महाराज

रविशङ्कर महाराज गुजरात राज्य के खेडा जिले के समाजसेवी थे। उन्होंने वात्रक नदी के आसपास के गाँवो में लोगों का जीवन सुधारने का, डाकुओं को पुनः मुख्यधारा में लाने का, अन्धश्रद्धा निवारण आदि कार्य किये थे। रविशङ्कर महाराज ने भारत के स्वतन्त्रता सङ्ग्राम मे भाग लिया था। वे आर्य समाज से प्रभावित हुए थे। वो सन १९१५ मे महात्मा गांधी से मिले थे। .

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लक्ष्मण नारायण गर्दे

लक्ष्मण नारायण गर्दे (1889-1960) प्रख्यात संपादक तथा साहित्यकार थे। हिंदी पत्रकारिता को आधुनिक उच्चस्तर तथा उन्नत स्वरूप तक पहुँचाने का श्रेय जिन आद्य संपादकाचार्यों को है, उनमें गर्दे जी का नाम प्रमुख है। 50 वर्षों तक आपने भारतीय साहित्य और संस्कृति का पत्रकारिता के माध्यम से जो संवर्धन किया है, वह सदा स्मरणीय रहेगा। हिंदी पत्रकारिता के विकासकाल में आपने उसे ऐसे साँचे में ढालने का सफल कार्य किया, जो राष्ट्रीयता से तो ओतप्रोत था ही, आध्यात्मिकता, नैतिकता और सांस्कृतिक भावना से भी युक्त था। .

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लोधेश्वर महादेव मंदिर

लोधेश्वर महादेव मंदिर बाराबंकी में रामनगर तहसील से उत्तर दिशा में बाराबंकी-गोंडा मार्ग से बायीं ओर लगभग 4 किलोमीटर दूर स्थित है। .

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शिव

शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ,गंगाधार के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। इनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं, तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं। शिव अधिक्तर चित्रों में योगी के रूप में देखे जाते हैं और उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव के गले में नाग देवता विराजित हैं और हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए हुए हैं। कैलाश में उनका वास है। यह शैव मत के आधार है। इस मत में शिव के साथ शक्ति सर्व रूप में पूजित है। भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है। भगवान शिव सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से शिव को भिन्न माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने गए हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदिस्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। राम, रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। .

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शिव खोड़ी

शिव खोड़ी शिवालिक पर्वत शृंखला में एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें प्रकृति-निर्मित शिव-लिंग विद्यमान है। शिव खोड़ी तीर्थ स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं और आयोजित इस मेले में शामिल होते हैं। शिव खोड़ी की यात्रा बारह महीने चलती है। अति प्राचीन मंदिरों के कई अवशेष अब भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। शिव खोड़ी शिवभक्तों के लिए एक महान तीर्थ स्थल है। .

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शिवहर

शिवहर बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक नवगठित जिला है। इस जिले के पूरब एवं उत्तर में सीतामढी, पश्चिम में पूर्वी चंपारण तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर जिला है। शिवहर बिहार का सबसे छोटा एवं आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत ही पिछडा हुआ जिला है। वर्षा एवं बाढ़ के दिनों में इसका संपर्क अपने पडोसी जिलों से भी पूरी तरह कट जाता है। बज्जिका एवं हिन्दी यहाँ की मुख्य भाषाएँ है। .

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सहजानन्द सरस्वती

स्वामी सहजानन्द सरस्वती (1889-1950) भारत के राष्ट्रवादी नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे भारत में किसान आन्दोलन के जनक थे। वे आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के दसनामी संन्यासी अखाड़े के दण्डी संन्यासी थे। वे एक बुद्धिजीवी, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी, इतिहासकार एवं किसान-नेता थे। उन्होने 'हुंकार' नामक एक पत्र भी प्रकाशित किया। .

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साधु

साधु, संस्कृत शब्द है जिसका सामान्य अर्थ 'सज्जन व्यक्ति' से है। लघुसिद्धान्तकौमुदी में कहा है- 'साध्नोति परकार्यमिति साधुः' (जो दूसरे का कार्य कर देता है, वह साधु है।)। वर्तमान समय में साधु उनको कहते हैं जो सन्यास दीक्षा लेकर गेरुए वस्त्र धारण करते है उन्हें भी साधु कहा जाने लगा है। साधु(सन्यासी) का मूल उद्देश्य समाज का पथप्रदर्शन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करना है। साधु सन्यासी गण साधना, तपस्या करते हुए वेदोक्त ज्ञान को जगत को देते है और अपने जीवन को त्याग और वैराग्य से जीते हुए ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाते है। .

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सारस्वथ ब्राह्मण के त्योहार

कोई विवरण नहीं।

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स्थानेश्वर महादेव मन्दिर

स्थानेश्वर महादेव मन्दिर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर शहर में स्थित एक प्राचीन हिन्दू मन्दिर है। यह मंदिर भगवान शिव का समर्पित है और कुरुक्षेत्र के प्राचीन मंदिरों मे से एक है। मंदिर के सामने एक छोटा कुण्ड स्थित है जिसके बारे में पौराणिक सन्दर्भ अनुसार यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूँदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। कहते हैं कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी। इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती हैै। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है शिव का निवास। इसी शहर को सम्राट हर्षवर्धन के राज्य काल में राजधानी का गौरव मिला, जिसके साथ साथ इसका नाम बिगड़कर अपभ्रंश रूप में थानेसर हो गया। .

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स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्वामी दयानन्द सरस्वती महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती (१८२४-१८८३) आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक व देशभक्त थे। उनका बचपन का नाम 'मूलशंकर' था। उन्होंने ने 1874 में एक महान आर्य सुधारक संगठन - आर्य समाज की स्थापना की। वे एक संन्यासी तथा एक महान चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। स्वामीजी ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया। उन्होने ही सबसे पहले १८७६ में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया। स्वामी दयानन्द के विचारों से प्रभावित महापुरुषों की संख्या असंख्य है, इनमें प्रमुख नाम हैं- मादाम भिकाजी कामा, पण्डित लेखराम आर्य, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, श्यामजी कृष्ण वर्मा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदनलाल ढींगरा, राम प्रसाद 'बिस्मिल', महादेव गोविंद रानडे, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय इत्यादि। स्वामी दयानन्द के प्रमुख अनुयायियों में लाला हंसराज ने १८८६ में लाहौर में 'दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज' की स्थापना की तथा स्वामी श्रद्धानन्द ने १९०१ में हरिद्वार के निकट कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की। .

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स्कन्द पुराण

विभिन्न विषयों के विस्तृत विवेचन की दृष्टि से स्कन्दपुराण सबसे बड़ा पुराण है। भगवान स्कन्द के द्वारा कथित होने के कारण इसका नाम 'स्कन्दपुराण' है। इसमें बद्रिकाश्रम, अयोध्या, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, कन्याकुमारी, प्रभास, द्वारका, काशी, कांची आदि तीर्थों की महिमा; गंगा, नर्मदा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों के उद्गम की मनोरथ कथाएँ; रामायण, भागवतादि ग्रन्थों का माहात्म्य, विभिन्न महीनों के व्रत-पर्व का माहात्म्य तथा शिवरात्रि, सत्यनारायण आदि व्रत-कथाएँ अत्यन्त रोचक शैली में प्रस्तुत की गयी हैं। विचित्र कथाओं के माध्यम से भौगोलिक ज्ञान तथा प्राचीन इतिहास की ललित प्रस्तुति इस पुराण की अपनी विशेषता है। आज भी इसमें वर्णित विभिन्न व्रत-त्योहारों के दर्शन भारत के घर-घर में किये जा सकते हैं। इसमें लौकिक और पारलौकिक ज्ञानके अनन्त उपदेश भरे हैं। इसमें धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति के सुन्दर विवेचनके साथ अनेकों साधु-महात्माओं के सुन्दर चरित्र पिरोये गये हैं। आज भी इसमें वर्णित आचारों, पद्धतियोंके दर्शन हिन्दू समाज के घर-घरमें किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें भगवान शिव की महिमा, सती-चरित्र, शिव-पार्वती-विवाह, कार्तिकेय-जन्म, तारकासुर-वध आदि का मनोहर वर्णन है। इस पुराण के माहेश्वरखण्ड के कौमारिकाखण्ड के अध्याय २३ में एक कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है- यह खण्डात्मक और संहितात्मक दो स्वरूपों में उपलब्ध है। दोनों स्वरूपों में ८१-८१ हजार श्लोक परंपरागत रूप से माने गये हैं। खण्डात्मक स्कन्द पुराण में क्रमशः माहेश्वर, वैष्णव, ब्राह्म, काशी, अवन्ती (ताप्ती और रेवाखण्ड) नागर तथा प्रभास -- ये सात खण्ड हैं। संहितात्मक स्कन्दपुराण में सनत्कुमार, शंकर, ब्राह्म, सौर, वैष्णव और सूत -- छः संहिताएँ हैं। .

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सोमनाथ मन्दिर

सोमनाथ मन्दिर भूमंडल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक सूर्य मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के १२ ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है। यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ़ गया। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है। .

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सोमनाथेश्वर महादेव

सोमनाथेश्वर महादेव एक प्राचीनतम शिवालय है, जो रामगंगा नदी के पश्चिमी तट पर चौखुटिया तहसील के तल्ला गेवाड़ नामक पट्टी में भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमांऊॅं क्षेत्र के अल्मोड़ा जनपद में प्राण-प्रतीष्ठित है। सोमनाथेश्वर शब्द श्रीनाथेश्वर शब्द का ही रूपांतरण है, जिसका मानसखण्ड में समुचित उल्लेख पाया जाता है। .

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सीता कुंड

पूनौरा धाम मंदिर स्थित सीता कुंड सीता-कुंड सीतामढ़ी के पुनौरा ग्राम स्थित एक हिन्दू तीर्थ स्थल है। यहाँ एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। सीतामढ़ी से ५ किलोमीटर दूर यह स्थल पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। पुनौरा और जानकी कुंड:यह स्थान पौराणिक काल में पुंडरिक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। सीतामढी से ५ किलोमीटर पश्चिम स्थित पुनौरा में हीं देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावे यहाँ पवित्र कुंड है। .

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सीतामढ़ी

सीतामढ़ी (अंग्रेज़ी: Sitamarhi,उर्दू: سيتامارهى) भारत के मिथिला का प्रमुख शहर है जो पौराणिक आख्यानों में सीता की जन्मस्थली के रूप में उल्लिखित है। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। सीता के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा। यह शहर लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर अवस्थित है। रामायण काल में यह मिथिला राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग था। १९०८ ईस्वी में यह मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा बना। स्वतंत्रता के पश्चात ११ दिसम्बर १९७२ को इसे स्वतंत्र जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वर्तमान समय में यह तिरहुत कमिश्नरी के अंतर्गत बिहार राज्य का एक जिला मुख्यालय और प्रमुख पर्यटन स्थल है। .

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सीतामढी

सीतामढी भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल मे स्थित एक शहर एवं जिला है। 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर यह स्वतंत्र जिला बना। बिहार के उत्तरी गंगा के मैदान में स्थित यह जिला नेपाल की सीमा पर होने के कारण संवेदनशील है। बज्जिका यहाँ की बोली है लेकिन हिंदी और उर्दू राजकाज़ की भाषा और शिक्षा का माध्यम है। यहाँ की स्थानीय संस्कृति, रामायणकालीन परंपरा तथा धार्मिकता नेपाल के तराई प्रदेश तथा मिथिला के समान है। .

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हाजीपुर

हाजीपुर (Hajipur) भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के वैशाली जिला का मुख्यालय है। हाजीपुर भारत की संसदीय व्यवस्था के अन्तर्गत एक लोकसभा क्षेत्र भी है। 12 अक्टुबर 1972 को मुजफ्फरपुर से अलग होकर वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बना। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावा आज यह शहर भारतीय रेल के पूर्व-मध्य रेलवे मुख्यालय है, इसकी स्थापना 8 सितम्बर 1996 को हुई थी।, राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। .

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हिन्दू पर्वों की सूची

यहाँ हिन्दू त्यौहारों की सूची दी गयी है। हिन्दू लोग बहुत से पर्व मनाते हैं जैसे दीपावली, विजया दशमी, होली आदि। .

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हिन्दू पंचांग

हिन्दू पञ्चाङ्ग से आशय उन सभी प्रकार के पञ्चाङ्गों से है जो परम्परागत रूप प्राचीन काल से भारत में प्रयुक्त होते आ रहे हैं। ये चान्द्रसौर प्रकृति के होते हैं। सभी हिन्दू पञ्चाङ्ग, कालगणना की समान संकल्पनाओं और विधियों पर आधारित होते हैं किन्तु मासों के नाम, वर्ष का आरम्भ (वर्षप्रतिपदा) आदि की दृष्टि से अलग होते हैं। भारत में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख क्षेत्रीय पञ्चाङ्ग ये हैं-.

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हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र

हिन्दू सांस्कृतिक केन्द्र एक हिंदू मंदिर और हिन्दू सांस्कृतिक का केंद्र है जो mississauga canada में पड़ता है।  25 000 वर्ग फुट मंदिर कनाडा का एक प्रसिध मंदिर माना जाता है.

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हिलसा, बिहार

हिलसा (Hilsa, ہِلسا) भारत के बिहार राज्य स्थित नालंदा जिले के अंतर्गत एक अनुमंडल है। यह बिहार की राजधानी पटना के लगभग 45 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह अनेक स्वाधीनता सेनानीयों की जन्मभूमि और भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष के दौर में एक प्रमुख केंद्र रहा है। .

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जम्मू

जम्मू (جموں, पंजाबी: ਜੰਮੂ), भारत के उत्तरतम राज्य जम्मू एवं कश्मीर में तीन में से एक प्रशासनिक खण्ड है। यह क्षेत्र अपने आप में एक राज्य नहीं वरन जम्मू एवं कश्मीर राज्य का एक भाग है। क्षेत्र के प्रमुख जिलों में डोडा, कठुआ, उधमपुर, राजौरी, रामबन, रियासी, सांबा, किश्तवार एवं पुंछ आते हैं। क्षेत्र की अधिकांश भूमि पहाड़ी या पथरीली है। इसमें ही पीर पंजाल रेंज भी आता है जो कश्मीर घाटी को वृहत हिमालय से पूर्वी जिलों डोडा और किश्तवार में पृथक करता है। यहाम की प्रधान नदी चेनाब (चंद्रभागा) है। जम्मू शहर, जिसे आधिकारिक रूप से जम्मू-तवी भी कहते हैं, इस प्रभाग का सबसे बड़ा नगर है और जम्मू एवं कश्मीर राज्य की शीतकालीन राजधानी भी है। नगर के बीच से तवी नदी निकलती है, जिसके कारण इस नगर को यह आधिकारिक नाम मिला है। जम्मू नगर को "मन्दिरों का शहर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहां ढेरों मन्दिर एवं तीर्थ हैं जिनके चमकते शिखर एवं दमकते कलश नगर की क्षितिजरेखा पर सुवर्ण बिन्दुओं जैसे दिखाई देते हैं और एक पवित्र एवं शांतिपूर्ण हिन्दू नगर का वातावरण प्रस्तुत करते हैं। यहां कुछ प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ भी हैं, जैसे वैष्णो देवी, आदि जिनके कारण जम्मू हिन्दू तीर्थ नगरों में गिना जाता है। यहाम की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू ही है। हालांकि दूसरे स्थान पर यहां सिख धर्म ही आता है। वृहत अवसंरचना के कारण जम्मू इस राज्य का प्रमुख आर्थिक केन्द्र बनकर उभरा है। .

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वसंत

वसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है, जो फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास वसंत ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ वसंत में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है, मौसम सुहावना हो जाता है, पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं, आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं I अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है और इसे ऋतुराज कहा गया है। वसन्त ऋतु वर्ष की एक ऋतु है जिसमें वातावरण का तापमान प्रायः सुखद रहता है। भारत में यह फरवरी से मार्च तक होती है। अन्य देशों में यह अलग समयों पर हो सकती है। इस ऋतु की विशेष्ता है मौसम का गरम होना, फूलो का खिलना, पौधो का हरा भरा होना और बर्फ का पिघलना। भारत का एक मुख्य त्योहार है होली जो वसन्त ऋतु में मनाया जाता है। यह एक सन्तुलित (Temperate) मौसम है। इस मौसम में चारो ओर हरियलि होति है। पेडो पर नये पत्ते उग्ते है। इस रितु मैं कइ लोग उद्यनो तालाबो आदि मैं घुम्ने जाते है। वसंत के रागरंग'पौराणिक कथाओं के अनुसार वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है। कवि देव ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है, पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है ऋतुओं में मैं वसंत हूँ। वसंत ऋतु में वसंत पंचमी, शिवरात्रि तथा होली नामक पर्व मनाए जाते हैं। भारतीय संगीत साहित्य और कला में इसे महत्वपूर्ण स्थान है। संगीत में एक विशेष राग वसंत के नाम पर बनाया गया है जिसे राग बसंत कहते हैं। वसंत राग पर चित्र भी बनाए गए हैं। .

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वाणेश्वर महादेव मंदिर

वाणेश्वर महादेव मंदिर पौराणिक मंदिर है जो भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर देहात जिले में स्थित है। .

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वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर

वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर (अंग्रेजी:Baidyanath Temple) द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक ज्‍योतिर्लिंग का पुराणकालीन मन्दिर है जो भारतवर्ष के राज्य झारखंड में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्‍थान पर अवस्थित है। पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को "देवघर" अर्थात देवताओं का घर कहते हैं। बैद्यनाथ ज्‍योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्‍थान को देवघर नाम मिला है। यह ज्‍योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को "कामना लिंग" भी कहा जाता हैं। .

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वैशाली जिला

वैशाली (Vaishali) बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। मुजफ्फरपुर से अलग होकर १२ अक्टुबर १९७२ को वैशाली एक अलग जिला बना। वैशाली जिले का मुख्यालय हाजीपुर में है। बज्जिका तथा हिन्दी यहाँ की मुख्य भाषा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र यानि "रिपब्लिक" कायम किया गया था। वैशाली जिला भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के लिए एक पवित्र नगरी है। भगवान बुद्ध का इस धरती पर तीन बार आगमन हुआ। भगवान बुद्ध के समय सोलह महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्त्वपूर्ण था। ऐतिहासिक महत्त्व के होने के अलावे आज यह जिला राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों तथा केले, आम और लीची के उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। .

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खजुराहो स्मारक समूह

खजुराहो स्मारक समूह जो कि एक हिन्दू और जैन धर्म के स्मारकों का एक समूह है जिसके स्मारक भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के छतरपुर क्षेत्र में देखने को मिलते है। ये स्मारक दक्षिण-पूर्व झांसी से लगभग १७५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्मारक समूह यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत का एक धरोहर क्षेत्र गिना जाता है। यहाँ के मन्दिर जो कि नगारा वास्तुकला से स्थापित किये गए जिसमें ज्यादातर मूर्तियाँ कामुक कला की है अर्थात् अधिकतर मूर्तियाँ नग्न अवस्था में स्थापित है। खहुराहो के ज्यादातर मन्दिर चन्देल राजवंश के समय ९५० और १०५० ईस्वी के मध्य बनाए गए थे। एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार खजुराहो में कुल ८५ मन्दिर है जो कि १२वीं शताब्दी में स्थापित किये गए जो २० वर्ग किलोमीटर के घेराव में फैले हुए है। वर्तमान में इनमें से, केवल २५ मन्दिर ही बच हैं जो ६वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। UNESCO World Heritage Site विभिन्न जीवित मन्दिरों में से, कन्दारिया महादेव मंदिर जो प्राचीन भारतीय कला के जटिल विवरण, प्रतीकवाद और अभिव्यक्ति के साथ प्रचुरता से सजाया गया है।Devangana Desai (2005), Khajuraho, Oxford University Press, Sixth Print, ISBN 978-0-19-565643-5 खजुराहो स्मारक समूह के मन्दिरों को एक साथ बनाया गया था, लेकिन इस क्षेत्र में हिन्दू और जैन के बीच विभिन्न धार्मिक विचारों के लिए स्वीकृति और सम्मान की परंपरा का सुझाव देते हुए, दो धर्मों, हिन्दू धर्म और जैन धर्म को समर्पित किया गया था।James Fergusson, History of Indian and Eastern Architecture,  Updated by James Burgess and R. Phene Spiers (1910), Volume II, John Murray, London .

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गुफा मंदिर, भोपाल

गुफा मंदिर भोपाल के प्रमुख पर्यटन स्थलों के शीर्ष में सम्मिलित है तथा शहर के केंद्र से लगभग ५ किलो मीटर की दूरी पर लालघाटी नामक स्थान पर स्थित है और यात्रियों व दर्शकों के मध्य आकर्षण का केंद्र है। गुफा मंदिर की खोज वर्ष १९४९ में श्री महंत नारायणदास जी त्यागी द्वारा की गई थी तथा पुनर्निर्माण कार्य ०२ अप्रैल १९६५ (चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा दिन शुक्रवार संवत २०२२) को उन्हीं के द्वारा किया गया था। .

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ग्राम पंचायत झोंपड़ा, सवाई माधोपुर

झोंपड़ा गाँव राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले की चौथ का बरवाड़ा तहसील में आने वाली प्रमुख ग्राम पंचायत है ! ग्राम पंचायत का सबसे बड़ा गाँव झोंपड़ा है जिसमें मीणा जनजाति का नारेड़ा गोत्र मुख्य रूप से निवास करता हैं। ग्राम पंचायत में झोंपड़ा, बगीना, सिरोही, नाहीखुर्द एवं झड़कुंड गाँव शामिल है। झोंपड़ा ग्राम पंचायत की कुल जनसंख्या 2011 की जनगणना के अनुसार 5184 है और ग्राम पंचायत में कुल घरों की संख्या 1080 है। ग्राम पंचायत की सबसे बड़ी नदी बनास नदी है वहीं पंचायत की सबसे लम्बी घाटी चढ़ाई बगीना गाँव में बनास नदी पर पड़ती है। ग्राम पंचायत का सबसे विशाल एवं प्राचीन वृक्ष धंड की पीपली है जो झोंपड़ा, बगीना एवं जगमोंदा गाँवों से लगभग बराबर दूरी पर पड़ती है। .

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ओड़िया लोग

ओश़िया संस्कृति तथा सौन्दर्य ओडीसा के लोग बहुत मिलजुलकर रहते हैं। .

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आदियोगी शिव प्रतिमा

आदियोगी शिव प्रतिमा, शंकर की ११२ फ़ीट की ऊँची प्रतिमा है जो कोयम्बटूर में वर्ष २०१७ में स्थापित की गयी थी। इसकी अभिकल्पना (डिजाइन) सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने की है। सद्गुरु का विचार है कि यह प्रतिमा योग के प्रति लोगों में प्रेरणा जगाने के लिये हैं, इसीलिये इसका नाम 'आदियोगी' (.

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आन्ध्र प्रदेश

आन्ध्र प्रदेश ఆంధ్ర ప్రదేశ్(अनुवाद: आन्ध्र का प्रांत), संक्षिप्त आं.प्र., भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित राज्य है। क्षेत्र के अनुसार यह भारत का चौथा सबसे बड़ा और जनसंख्या की दृष्टि से आठवां सबसे बड़ा राज्य है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर हैदराबाद है। भारत के सभी राज्यों में सबसे लंबा समुद्र तट गुजरात में (1600 कि॰मी॰) होते हुए, दूसरे स्थान पर इस राज्य का समुद्र तट (972 कि॰मी॰) है। हैदराबाद केवल दस साल के लिये राजधानी रहेगी, तब तक अमरावती शहर को राजधानी का रूप दे दिया जायेगा। आन्ध्र प्रदेश 12°41' तथा 22°उ॰ अक्षांश और 77° तथा 84°40'पू॰ देशांतर रेखांश के बीच है और उत्तर में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, दक्षिण में तमिल नाडु और पश्चिम में कर्नाटक से घिरा हुआ है। ऐतिहासिक रूप से आन्ध्र प्रदेश को "भारत का धान का कटोरा" कहा जाता है। यहाँ की फसल का 77% से ज़्यादा हिस्सा चावल है। इस राज्य में दो प्रमुख नदियाँ, गोदावरी और कृष्णा बहती हैं। पुदु्चेरी (पांडीचेरी) राज्य के यानम जिले का छोटा अंतःक्षेत्र (12 वर्ग मील (30 वर्ग कि॰मी॰)) इस राज्य के उत्तरी-पूर्व में स्थित गोदावरी डेल्टा में है। ऐतिहासिक दृष्टि से राज्य में शामिल क्षेत्र आन्ध्रपथ, आन्ध्रदेस, आन्ध्रवाणी और आन्ध्र विषय के रूप में जाना जाता था। आन्ध्र राज्य से आन्ध्र प्रदेश का गठन 1 नवम्बर 1956 को किया गया। फरवरी 2014 को भारतीय संसद ने अलग तेलंगाना राज्य को मंजूरी दे दी। तेलंगाना राज्य में दस जिले तथा शेष आन्ध्र प्रदेश (सीमांन्ध्र) में 13 जिले होंगे। दस साल तक हैदराबाद दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी होगी। नया राज्य सीमांन्ध्र दो-तीन महीने में अस्तित्व में आजाएगा अब लोकसभा/राज्यसभा का 25/12सिट आन्ध्र में और लोकसभा/राज्यसभा17/8 सिट तेलंगाना में होगा। इसी माह आन्ध्र प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लागू हो गया जो कि राज्य के बटवारे तक लागू रहेगा। .

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इलाहाबाद

इलाहाबाद उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक नगर एवं इलाहाबाद जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। इसका प्राचीन नाम प्रयाग है। इसे 'तीर्थराज' (तीर्थों का राजा) भी कहते हैं। इलाहाबाद भारत का दूसरा प्राचीनतम बसा नगर है। हिन्दू मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहाँ भगवान श्री ब्रम्हा जी ने सृष्टि का सबसे पहला यज्ञ सम्पन्न किया था। इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहाँ माधव रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहाँ बारह स्वरूप विध्यमान हैं। जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। सबसे बड़े हिन्दू सम्मेलन महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है। इलाहाबाद में कई महत्त्वपूर्ण राज्य सरकार के कार्यालय स्थित हैं, जैसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय, प्रधान महालेखाधिकारी (एजी ऑफ़िस), उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पी.एस.सी), राज्य पुलिस मुख्यालय, उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का क्षेत्रीय कार्यालय एवं उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद कार्यालय। भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद को जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के लिये मिशन शहर के रूप में चुना गया है। .

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कन्काई धाम कोटीहोम

कनकाई धाम (कोटीहोम) के मूल मन्दिर (कोटियज्ञेश्वर शिव पांचायन मन्दिर) कनकाई धाम (कोटीहोम) नेपाल के पूर्वांचल का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन क्षेत्र है। ये धाम नेपाल के झापा जिला के करिब मध्य भाग में कनकाई नगरपालिका के वार्ड नं ४ में तथा प्रसिद्ध कन्काई नदी के पूर्वीय तटीय क्षेत्र में अवस्थित है। कन्काई धामको कनकाई धाम, कोटीहोम, माइधाम, माई, जैसे अनेक नामों से भि जाना जाता है। कन्काईमाई का मेला .

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कपालेश्वर मंदिर

कपालेश्वर मंदिर यह शिव मंदिर प्रकृति की सुरम्य गोद में उत्तर प्रदेश के नगर डेरापुर, कानपुर देहात के दक्षिण दिशा में प्रवाहित होने वाली सेंगुर नदी के उत्तर - पूर्व दिशा में स्थित जंगल के 100 फ़ीट ऊँचे टीले पर बना हुआ है। श्री कपालेश्वर मंदिर के निर्माता पंडित कनोजी लाल मिश्र असिस्टेंट कमिश्नर को स्वप्न में इस मंदिर के निर्माण तथा समाधि को यथावत रखने का आदेश हुआ उन्होंने तुरंत पेन्शन लेकर मंदिर का निर्माण 1894 में करा दिया किंतु उनकी मृत्यु मंदिर निर्माण पूर्ण होने से पहले हो गयी जिसकी पूर्ति उनके सृपुत्र पंडित शिव कुमार मिश्र ने की। अपनी मृत्यु तिथि ज्ञात होने के कारण वह मंदिर का निर्माण शीघ चाहते थे शीघता के कारण मंदिर का मठ छोटा हो गया। अस्तु इसी मठ के ऊपर दूसरा मठ बनाया गया। प्रत्येक सावन के माह में भक्तो की अपार भीड़ होती है यह मंदिर आस पास के नगरों में भी आस्था का केंद्र है। मंदिर का रख रखाव सरवराकर करुणेश नारायण मिश्र के द्वारा किया जाता है .

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काला चौना

काला चौना एक गॉंव है। यह रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर चौखुटिया तहसील के तल्ला गेवाड़ नामक पट्टी में, भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह गॉंव मूलरूप से कनौंणियॉं नामक उपनाम से विख्यात कुमांऊॅंनी हिन्दू राजपूतों का प्राचीन और पुश्तैनी चार गाँवों में से एक है। दक्षिणी हिमालय की तलहटी में बसा यह काला चौना अपनी ऐतिहासिक व सॉंस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली, प्रकृति संरक्षण, अलौकिक प्राकृतिक छटा तथा समतल-उपजाऊ भूमि के लिए पहचाना जाता है। .

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कुम्भ मेला

हरिद्वार के कुंभ मेले (2010) के दौरान गंगा किनारे स्नान घाट पर श्रद्धालु २००१ के प्रयाग कुम्भ मेले का दृष्य कुंभ पर्व हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। २०१३ का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। खगोल गणनाओं के अनुसार यह मेला मकर संक्रांति के दिन प्रारम्भ होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशी में और वृहस्पति, मेष राशी में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलिक माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात स्वर्ग दर्शन माना जाता है। .

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कुर्नूल जिला

कुर्नूल भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश का एक जिला है। कुर्नूल तुंगभद्रा और हंद्री नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित आंध्र प्रदेश का एक प्रमुख जिला है। 12वीं शताब्‍दी में ओड्डार जब आलमपुर का निर्माण करने के लिए पत्‍थरों काटते थे तो यहां आकर उनको फिनिशिंग देते थे। 1953 से 1956 त‍क कुर्नूल आंध्रप्रदेश राज्‍य की राजधानी भी रहा। इसके बाद ही हैदराबाद यहां की राजधानी बनी। आज भी यहां विजयनगर राजाओं के शाही महल के अवशेष देख्‍ो जा सकते हैं जो 14वीं से 16वीं शताब्‍दी के बीच बने हैं। पारसी और अरबी शिलालेख भी यहां देखने को मिलते हैं जिससे यहां के महत्‍व का पता चलता है। .

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अगवानपुर

अगवानपुर बाढ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। .

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अगवानपुर गाँव, बाढ (पटना)

अगवानपुर बाढ, पटना, बिहार स्थित एक गाँव है। .

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२०१० हरिद्वार महाकुम्भ

हरिद्वार महाकुंभ २०१० का प्रतीक-चिह्न महाकुम्भ भारत का एक प्रमुख उत्सव है जो ज्योतिषियों के अनुसार तब आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। कुम्भ का अर्थ है घड़ा। यह एक पवित्र हिन्दू उत्सव है। यह भारत में चार स्थानो पर आयोजित किया जाता है: प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। २०१० का कुम्भ मेला हरिद्वार में आयोजित किया जा रहा है। पिछली बार १९९९ में महाकुम्भ का आयोजन यहाँ किया गया था। मकर संक्राति के दिन अर्थात १४ जनवरी, २०१० को इस मेले का शुभारम्भ हो गया है। हरिद्वार में जारी इस मेले में इस बार ७ करोड़ से भी अधिक लोगों के आने का अनुमान है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार समुद्रमंथन के दौरान निकला अमृतकलश १२ स्थानों पर रखा गया था जहां अमृत की बूंदें छलक गई थीं। इन १२ स्थानों में से आठ ब्रह्मांड में माने जाते हैं और चार धरती पर जहां कुंभ लगता है। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि इस मेले में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। .

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