लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

भ्रंश (भूविज्ञान)

सूची भ्रंश (भूविज्ञान)

सान ऐड्रियास भ्रंश (कैलिफोर्निया) का पर से लिया गया दृष्य भूपटल के भौगोलिक प्लेटें दबाव या तनाव के कारण संतुलन की अवस्था में नहीं रहती। जब भी प्लेटों में खिंचाव अधिक बढ़ जाता है, अथवा शिलाओं पर दोनों पार्श्व से पड़ा दबाव उनकी सहन शक्ति के बाहर होता है, तब शिलाएँ अनके प्रभाव से विस्थापित हो जाती हैं अथवा टूट जाती हैं। एक ओर की शिलाएँ दूसरी ओर की शिलाओं की अपेक्षा नीचे या ऊपर चली जाती हैं। इसे ही भ्रंश (Fault) कहते हैं। .

16 संबंधों: तुरफ़ान द्रोणी, नीलगिरि (पर्वत), पर्वत निर्माण, पर्वतन, पुंजक, फ़िलिपीन सागर, बवासीर, भारत का भूगोल, भूसंचलन, भूगतिकी, रिफ़्ट घाटी, वलन, खंभात की खाड़ी, अवकेन्द्र, उपरिकेंद्र, २००५ कश्मीर भूकम्प

तुरफ़ान द्रोणी

अंतरिक्ष से तुरफ़ान द्रोणी बोगदा पर्वत शृंखला के चरणों में दिखती है तुरफ़ान द्रोणी (अंग्रेज़ी: Turfan Depression) या तुरपान द्रोणी (उईग़ुर:, तुरपान ओयमानलीक़ी; अंग्रेज़ी: Turpan Depression) चीन द्वारा नियंत्रित मध्य एशिया के शिनजियांग क्षेत्र में स्थित ज़मीन में एक भ्रंश (फ़ॉल्ट​) के कारण बनी एक द्रोणी है। मृत सागर और जिबूती की असल झील के बाद तुरफ़ान द्रोणी में स्थित अयदिंग​ झील (Lake Ayding) पृथ्वी का तीसरा सब से निचला ज़मीनी क्षेत्र है।, www.nasa.gov, Accessed 2009-10-09 यह सूखी झील समुद्र ताल से १५४ मीटर नीचे स्थित है (यानि इसकी ऊँचाई -१५४ मीटर है)। कुछ मापों के हिसाब से यह चीन का सबसे गरम और शुष्क इलाक़ा भी है।, Shanghai Daily तुरफ़ान द्रोणी तुरफ़ान शहर के इर्द-गिर्द और उस से दक्षिण में विस्तृत है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और तुरफ़ान द्रोणी · और देखें »

नीलगिरि (पर्वत)

नीलगिरि भारत के पश्चिमी घाट की एक पर्वतमाला है। नीलगिरि, भारत के राज्य तमिलनाडु का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। इस क्षेत्र में बहुत से पर्वतीय स्थल हैं जो इसे उपयुक्त पर्यटन केंद्र बनाते हैं। नीलगिरि का इतिहास 11वीं और 12वीं शताब्दी से शुरु होता है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख शिलप्‍पदिकारम में मिलता है। नीलगिरि उन सभी शासक वंशों का हिस्सा रहा जिन्होंने दक्षिण भारत पर शासन किया। नीलगिरि पर्वत श्रृंखला का कुछ हिस्सा तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में भी आता है। यहां की सबसे ऊंची चोटी डोड्डाबेट्टा है जिसकी कुल ऊंचाई 2637 मीटर है। यह जिला मुख्यत: पर्वत श्रृंखला के मध्य ही स्थित है। यहां के दर्शनीय स्थलों की बात करें तो नि:संदेह रूप से सबसे पहला नाम ऊटी का ही आता है। ऊटी दक्षिण भारत के सबसे प्रमुख पर्वतीय स्थलों में से एक है। इसके अलावा मुदुमलाई, कूनूर आदि बहुत से खूबसूरत स्थान इस जिले में हैं। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और नीलगिरि (पर्वत) · और देखें »

पर्वत निर्माण

पर्वतों का निर्माण करती हैं। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और पर्वत निर्माण · और देखें »

पर्वतन

पर्वतन (अंग्रेजी: Orogeny), उन बलों और घटनाओं की व्याख्या करता है जो विवर्तनिक प्लेटों के संचलन के फलस्वरूप पृथ्वी के स्थलमंडल (पर्पटी और ऊपरी प्रवार) में आये गहन संरचनात्मक विरूपण का कारण बनते हैं। विवर्तनिक प्लेटों के इस संचलन से निर्मित यह अत्यधिक विरूपित शैल संरचनायें पर्वतजन कहलाती हैं। सामान्य शब्दों में पर्वतन वह प्रक्रिया है जिसमें वलन (folding), भ्रंशन (faulting) तथा क्षेपण (thrusting) के द्वारा किसी पर्वत का उद्भव अथवा निर्माण होता है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और पर्वतन · और देखें »

पुंजक

भूविज्ञान में पुंजक या मैसिफ़ (massif) किसी ग्रह की भूपर्पटी (क्रस्ट) का ऐसा अंश होता है जिसकी सीमाएँ भ्रंशों या मुड़ावों से स्पष्ट बन गई हों। भूपर्पटी के हिलने पर पुंजक का आंतरिक ढांचा ज्यों-का-त्यों रहता है हालांकि पूरा पूंजक अपने स्थान का बदलाव कर सकता है। कई बड़े पर्वत और पर्वतमालाएँ ऐसे पूंजकों से बनी हुई हैं जो पूरी-की-पूरी पृथ्वी में विवर्तनिकी प्रक्रियाओं में उभर जाती हैं। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और पुंजक · और देखें »

फ़िलिपीन सागर

फ़िलिपीन सागर (Philippine Sea) फ़िलिपीन्ज़ से पूर्वोत्तर में स्थित एक सीमांत समुद्र है। इसका अनुमानित ५० लाख वर्ग किमी का क्षेत्रफल उत्तर प्रशान्त महासागर के पश्चिमी भाग का हिस्सा है। दक्षिणपश्चिम में इसकी सीमा फ़िलिपीन द्वीपसमूह (लूज़ोन, कतंदुआनेस, सामार, लेयते और मिन्दनाओ); दक्षिणपूर्व में हालमाहेरा, मोरोताइ, पालाउ, याप और उलिथि; पूर्व में गुआम, साइपैन और तीनियन; पूर्वोत्तर में बोनिन और इवो जीमा; पश्चिमोत्तर में जापान के होन्शू, शिकोकु और क्युशु द्वीप; तथा पश्चिम में ताइवान पड़ती हैं। इस सागर का फ़र्श एक द्रोणी (बेसिन) है जो भिन्न प्रकार की भूआकृतियों के लिए जानी जाती है, जिसमें भ्रंश उपस्थित हैं। प्लेट विवर्तनिकी के कारण इसकी उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमाओं पर समुद्रसतह से ऊपर उभरी हुई महान चट्टानों द्वीप चापों के रूप में बनी हुई हैं जो इन सीमाओं पर सागर को घेरती हैं। फ़िलिपीन द्वीपसमूह, रयुक्यु द्वीपसमूह और मारियाना द्वीपसमूह इन द्वीप चापों के उदाहरण हैं। फ़िलिपीन सागर की एक और विशेषता बहुत ही गहरी महासागरीय गर्तों की उपस्थिति है, जिनमें फ़िलिपीन गर्त और पृथ्वी का सबसे गहरा स्थान मारियाना गर्त शामिल हैं। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और फ़िलिपीन सागर · और देखें »

बवासीर

बवासीर या पाइल्स या (Hemorrhoid / पाइल्स या मूलव्याधि) एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको ख़ूँनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कही पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है। 1- खूनी बवासीर:- खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है। 2-बादी बवासीर:- बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी भाषा में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीड़ा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अँग्रेजी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रकार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और बवासीर · और देखें »

भारत का भूगोल

भारत का भूगोल या भारत का भौगोलिक स्वरूप से आशय भारत में भौगोलिक तत्वों के वितरण और इसके प्रतिरूप से है जो लगभग हर दृष्टि से काफ़ी विविधतापूर्ण है। दक्षिण एशिया के तीन प्रायद्वीपों में से मध्यवर्ती प्रायद्वीप पर स्थित यह देश अपने ३२,८७,२६३ वर्ग किमी क्षेत्रफल के साथ विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है। साथ ही लगभग १.३ अरब जनसंख्या के साथ यह पूरे विश्व में चीन के बाद दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। भारत की भौगोलिक संरचना में लगभग सभी प्रकार के स्थलरूप पाए जाते हैं। एक ओर इसके उत्तर में विशाल हिमालय की पर्वतमालायें हैं तो दूसरी ओर और दक्षिण में विस्तृत हिंद महासागर, एक ओर ऊँचा-नीचा और कटा-फटा दक्कन का पठार है तो वहीं विशाल और समतल सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान भी, थार के विस्तृत मरुस्थल में जहाँ विविध मरुस्थलीय स्थलरुप पाए जाते हैं तो दूसरी ओर समुद्र तटीय भाग भी हैं। कर्क रेखा इसके लगभग बीच से गुजरती है और यहाँ लगभग हर प्रकार की जलवायु भी पायी जाती है। मिट्टी, वनस्पति और प्राकृतिक संसाधनो की दृष्टि से भी भारत में काफ़ी भौगोलिक विविधता है। प्राकृतिक विविधता ने यहाँ की नृजातीय विविधता और जनसंख्या के असमान वितरण के साथ मिलकर इसे आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विविधता प्रदान की है। इन सबके बावजूद यहाँ की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक एकता इसे एक राष्ट्र के रूप में परिभाषित करती है। हिमालय द्वारा उत्तर में सुरक्षित और लगभग ७ हज़ार किलोमीटर लम्बी समुद्री सीमा के साथ हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर स्थित भारत का भू-राजनैतिक महत्व भी बहुत बढ़ जाता है और इसे एक प्रमुख क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित करता है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और भारत का भूगोल · और देखें »

भूसंचलन

धरती के कुछ भाग दूसरे भागों के सापेक्ष धीमी किन्तु लगातार विस्थापित हो रहे हैं। इन्हें ही भूसंचलन (Earth's movements) कहते हैं। ये संचलन, धरती को अपरूपित (deform) करते हैं। भूसंचलन के निम्नलिखित कारक हैं-.

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और भूसंचलन · और देखें »

भूगतिकी

भूगतिकी (Geodynamics) भूभौतिकी की वह शाखा है जो पृथ्वी पर केन्द्रित गति विज्ञान का अध्ययन करती है। इसमें भौतिकी, रसायनिकी और गणित के सिद्धांतों से पृथ्वी की कई प्रक्रियाओं को समझा जाता है। इनमें भूप्रावार (मैंटल) में संवहन (कन्वेक्शन) द्वारा प्लेट विवर्तनिकी का चलन शामिल है। सागर नितल प्रसरण, पर्वत निर्माण, ज्वालामुखी, भूकम्प, भ्रंशण जैसी भूवैज्ञानिक परिघटनाएँ भी इसमें सम्मिलित हैं। भूगतिकी में चुम्बकीय क्षेत्रों, गुरुत्वाकर्षण और भूकम्पी तरंगों का मापन तथा खनिज विज्ञान की तकनीकों के प्रयोग से पत्थरों और उनमें उपस्थित समस्थानिकों (आइसोटोपों) का मापन भूगतिकी में ज्ञानवर्धन की महत्वपूर्ण विधियाँ हैं। पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर अनुसंधान में भी भूगतिकी का प्रयोग होता है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और भूगतिकी · और देखें »

रिफ़्ट घाटी

अपसारी प्लेट किनारे के सहारे एक रिफ़्ट घाटी, आइसलैंड में रिफ़्ट घाटी (अंग्रेजी:Rift valley) एक स्थलरूप है जिसका निर्माण विवर्तनिक हलचल के परिणामस्वरूप होने वाले भ्रंशन के कारण होता है। ये सामान्यतया पर्वत श्रेणियों अथवा उच्चभूमियों के बीच स्थित लम्बी आकृति वाली घाटियाँ होती हैं जिनमें अक्सर झीलें भी निर्मित हो जाती है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और रिफ़्ट घाटी · और देखें »

वलन

बहुत तंग सिलवटों. मोृूया के पास, न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया जब कोई तलछटी स्तर, मूल रूप से फ्लैट और समतल सतहों का ढेर तुला या घुमावदार स्थायी विकृति धारण कर लेता है तब परिणाम के रूप को सिलवटों भूविज्ञान कहा जाता है। ये सभी सिलवटों (फोल्ड्स-अंग्रेज़ी मे) स्यूक्ष्म से लेकेर बहुत बड़े तक हो सकते है। ये सभी फोल्ड्स (सिलवटों) तनाव, हीड्रास्टाटिक दबाव, रंध्र दाब और तापमान के कारण होते है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और वलन · और देखें »

खंभात की खाड़ी

खंभात की खाड़ी (पूर्व नाम: कैंबे की खाड़ी) अरब सागर स्थित एक तिकोनी आकृति की खाड़ी है। यह दक्षिणी ओर से अरब सागर में खुलती है। यह भारतीय राज्य गुजरात के सागर तट, पश्चिमी भारत के शहर मुंबई और काठियावाड़ प्रायद्वीप के मध्य स्थित है और उसे पूर्व और पश्चिमी, दो भागों में बांटती है। केन्द्र शासित प्रदेश दमन और दीव के निकट इसका मुहाना लगभग १९० किलोमीटर चौड़ा है, जो तीव्रता सहित २४ किमी तक संकरा हो जाता है। इस खाड़ी में साबरमती, माही, नर्मदा और ताप्ती सहित कई नदियों का विलय होता है। दक्षिण दिशा से दक्षिण पश्चिमी मानसून के सापेक्ष इसकी आकृति और इसकी अवस्थिति, इसकी लगभग १०-१५ मीटर ऊँची उठती और प्रवेश करती लहरों की ६-७ नॉट्स की द्रुत गति के कारण है। इसे शैवाल और रेतीले तट नौपरिवहन के लिए दुर्गम बनाते हैं साथ ही खाड़ी में स्थित सभी बंदरगाहों को लहरों व नदियों में बाढ़ द्वारा लाई गई गाद का बाहुल्य मिलता है। गुजरात से ४ बड़ी, ५ मध्यम, २५ छोटी एवं ५ मरुस्थलीय नदियां खाड़ी में गिरती हैं एवं खाड़ी में प्रतिवर्ष ७१,००० घन मि.मी जल विसर्जित करती हैं। खाड़ी की पूर्व में भरुच नामक भारत का एक प्राचीनतम बंदरगाह शहर एवं सूरत हैं, जो भारत और यूरोप के बीच का आरंभिक वाणिज्यिक संपर्क स्थल के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। ये शहर इसके मुहाने पर स्थित हैं। हालांकि इस खाड़ी में स्थित बंदरगाहों का महत्त्व स्थानीय लोगों हेतु ही है, फिर भी यहाँ पर खनिज तेल के लिये किये गए खोज प्रयासों ने, विशेषकर भरुच के निकट, खाड़ी के मुहाने और बॉम्बे हाई के अपतटीय क्षेत्रों में वाणिज्यिक पुनरुत्थान हुआ है। वर्ष २००० में भारत के तत्कालीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, डॉ॰ मुरली मनोहर जोशी ने जल के नीचे बड़े स्तर पर मानव-निर्मित ढांचों के मिलने की घोषणा की थी। यद्यपि खाड़ी पर स्थित बंदरगाहों का महत्त्व स्थानीय मात्र ही है, लेकिन यहाँ पर तेल के मिलने और खोज प्रयासों ने, विशेषकर भरुच के निकट, खाड़ी के मुहाने और बॉम्बे हाई के अपतटीय क्षेत्रों में वाणिज्यिक पुनरुत्थान हुआ है। खंभात की खाड़ी में तृतीय कल्प (Tertiary) के निक्षेप मिलते हैं। भूगर्भिक क्रियाओं का प्रभाव इस क्षेत्र पर रहा है, अत: यहाँ अनेक भ्रंश (Faults) पाए जाते हैं। बाद के युग में यह क्षेत्र ऊपर की ओर उठ गया। तटीय क्षेत्र में नदियों की पुरानी घाटियाँ तथा झीलें आज भी दृष्टिगत होती हैं। नर्मदा, ताप्ती, माही, साबरमती तथा काठियावाड की अन्य नदियों के वेगवान निक्षेपण के कारण विस्तृत तटीय क्षेत्र दलदल से परिपूर्ण हो गए हैं और खाड़ी के बीच कुछ द्वीप बन गए हैं। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और खंभात की खाड़ी · और देखें »

अवकेन्द्र

अवकेन्द्र (hypocentre) वह बिन्दु होता है जहाँ से किसी भूकम्प या भूमिगत परमाणु विस्फोट का आरम्भ हुआ हो। भूकम्पों में अवकेन्द्र वह स्थान होता है जहाँ शिलाओं में उपस्थित विरुप्यण ऊर्जा सबसे पहले मुक्त होती है और जहाँ से भ्रंश फटना आरम्भ हो जाता है। यह बिन्दु पृथ्वी या अन्य ग्रह की सतह पर स्थित उपरिकेंद्र (epicenter) के ठीक नीचे स्थित होता है। उपरिकेंद्र से अवकेन्द्र की गहराई को अवकेन्द्रीय गहराई (hypocentral depth) कहा जाता है। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और अवकेन्द्र · और देखें »

उपरिकेंद्र

उपरिकेन्द्र (epicentre) पृथ्वी या किसी अन्य ग्रह की सतह पर स्थित वह बिन्दु होता है जो किसी भूकम्प या भूमिगत परमाणु विस्फोट के आरम्भ होने वाले स्थान से ठीक ऊपर सतह स्थित हो। सतह के नीचे वाल वह स्थान जहाँ यह भूकम्प या विस्फोट आरम्भ हुआ हो उसे अवकेन्द्र (hypocentre) कहते हैं। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और उपरिकेंद्र · और देखें »

२००५ कश्मीर भूकम्प

२००५ कश्मीर भूकम्प ८ अक्तूबर २००५ में उत्तरी पाकिस्तान के ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा प्रान्त, पाक-अधिकृत कश्मीर और भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य में आने वाला एक भूकम्प था। यह भारतीय मानक समय के अनुसार सुबह के ०९:२०:३९ बजे घटा और इसका उपरिकेंद्र पाक-अधिकृत कश्मीर की राजधानी मुज़फ़्फ़राबाद के पास स्थित था। भारत व पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों के अलावा इसके झटके अफ़्ग़ानिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन के शिंजियांग प्रान्त में भी महसूस करे गए। .

नई!!: भ्रंश (भूविज्ञान) और २००५ कश्मीर भूकम्प · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

भ्रंश, भ्रंशन

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »