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भूगणित

सूची भूगणित

बेल्जियम के ओस्टेन्ड नामक स्थान पर स्थित एक पुराना भूगणितीय स्तम्भ (1855) भूगणित (Geodesy or Geodetics) भूभौतिकी एवं गणित की वह शाखा है जो उपयुक्त मापन एवं प्रेक्षण के आधार पर पृथ्वी के पृष्ठ पर स्थित बिन्दुओं की सही-सही त्रिबिम-स्थिति (three-dimensional postion) निर्धारित करती है। इन्ही मापनों एवं प्रेक्षणों के आधार पर पृथ्वी का आकार एवं आकृति, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र तथा भूपृष्ट के बहुत बड़े क्षेत्रों का क्षेत्रफल आदि निर्धारित किये जाते हैं। इसके साथ ही भूगणित के अन्दर भूगतिकीय (geodynamical) घटनाओं (जैसे ज्वार-भाटा, ध्रुवीय गति तथा क्रस्टल-गति आदि) का भी अध्ययन किया जाता है। पृथ्वी के आकार तथा परिमाण का और भूपृष्ठ पर संदर्भ बिंदुओं की स्थिति का यथार्थ निर्धारण हेतु खगोलीय प्रेक्षणों की आवश्यकता होती है। इस कार्य में इतनी यथार्थता अपेक्षित है कि ध्रुवों (poles) के भ्रमण से उत्पन्न देशांतरों में सूक्ष्म परिवर्तनों पर और समीपवर्ती पहाड़ों के गुरुत्वाकर्षण से उत्पन्न ऊर्ध्वाधर रेखा की त्रुटियों पर ध्यान देना पड़ता है। पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा के ज्वारीय (tidal) प्रभाओं का भी ज्ञान आवश्यक है और चूँकि सभी थल सर्वेक्षणों में माध्य समुद्रतल (mean sea level) आधार सामग्री होता है, इसलिये माहासागरों के प्रमुख ज्वारों का भी अघ्ययन आवश्यक है। भूगणितीय सर्वेक्षण के इन विभिन्न पहलुओं के कारण भूगणित के विस्तृत अध्ययन क्षेत्र में अब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र का, भूमंडल पृष्ठ समाकृति पर इसके प्रभाव का और पृथ्वी पर सूर्य तथा चंद्रमा के गुरुत्वीय क्षेत्रों के प्रभाव का अध्ययन समाविष्ट है। .

12 संबंधों: त्रिकोणीय सर्वेक्षण, फोटोग्राममिति, भू-आकृति विज्ञान, भूभौतिकी, भूविज्ञान, भूगोल, मानचित्रकला, मानव भूगोल, गोलीय त्रिकोणमिति, कार्ल फ्रेडरिक गाउस, अंतरराष्ट्रीय भूगणित एवं भूभौतिकी संघ, अंतरिक्ष विज्ञान

त्रिकोणीय सर्वेक्षण

उन्नीसवीं शती का राइनलैण्ड-हेस्स क्षेत्र का त्रिकोणीय सर्वेक्षण त्रिकोणीय सर्वेक्षण (Triangulation) उस विधि का नाम है जिसमें सर्वेक्षण के लिये दिये गये क्षेत्र को त्रिकोणीय टुकड़ों के जाल के रूप में बाँटकर सर्वेक्षण को सरलतापूर्वक कर लिया जाता है। इसका सिद्धान्त बहुत सरल है - ज्ञात दूरी पर स्थित किन्हीं भी दो बिंदुओं से किसी तीसरे बिंदु द्वारा बनाये गये कोणों को मापकर त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता से उस तीसरे बिन्दु की सही स्थिति निर्धारित की जा सकती है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें दूरी का मापन कम से कम करना पड़ता है और कोणों के मापन से काम चल जाता है। कोणों का मापन अधिक शुद्धता से, कम समय मे, कम श्रम से हो जाता है। सामान्यत:, जहाँ दो दूर के बिंदुओं के बीच सीधी दूरी नाप पाना संभव न हो, मगर वे आपस मे दृष्टिगत हों, वहाँ त्रिकोणीय सर्वेक्षण बड़ा लाभप्रद होता है। ट्रैंगुलेशन के उपयोग द्वारा समुद्र में स्थित किसी जलयान की तट से दूरी और उसके निर्देशांक निकाले जा सकते हैं। '''A''' बिन्दु पर स्थित प्रेक्षक कोण '''α''' मापता है; इसी प्रकार, बिन्दु '''B''' पर स्थित प्रेक्षक कोण '''β''' मापता है। यदि A और B के बीच की दूरी या उनके निर्देशांक ज्ञात हों तो ज्या सूत्र की सहायता से '''C''' बिन्दु पर स्थित जहाज के निर्देशांक तथा दूरी '''d''' निकाली जा सकती है। यदि ऐसे त्रिभुज की एक, दो या तीनों भुजाओं पर क्रमानुगत त्रिभुज बनाते चले जाएँ और प्रारंभिक त्रिभुज की एक भुजा, उसके दोनों शीर्ष बिंदुओं के नियामक (coordinate) और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक और बनाए गए सभी त्रिभुजों के कोण ज्ञात हों, तो ऐसी संपूर्ण त्रिभुजमाला की भुजाओं की लंबाइयाँ और त्रिभुज बनानेवाले बिंदुओं के नियामक गणितीय कलन (computations) से ज्ञात किए जा सकते हैं। किसी भी क्षेत्र का मानचित्र बनाने के लिये इस प्रकार के बिंदु संपूर्ण क्षेत्र में समान रूप से बिखरें हुए स्थापित करना आवश्यक होता है। ऐसे बिंदुओं को सामूहिक रूप में सर्वेक्षण हेतु 'नियंत्रण ढाँचा' और प्रत्येक बिंदु को अलग अलग 'सर्वेक्षण स्टेशन' कहते हैं। त्रिकोणीय सर्वेक्षण में गणना में त्रिकोणमित्तीय सर्वसमिकाओं की सहायता ली जाती है जिनमे निम्नलिखित प्रमुख हैं -.

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फोटोग्राममिति

फोटोग्राफ लेकर उसकी सहायता से मापन करना फोटोग्राममिति (Photogrammetry) कहलाता है। इसकी सहायता से सतह पर स्थित बिन्दुओं की स्थिति (निर्देशांक) की गणना की जा सकती है। फोटोग्राममिति उतना ही पुराना है जितना आधुनिक फोटोग्राफी, अर्थात १९वीं शताब्दी का मध्यकल। एक सरल उदाहरण के तौर पर, फोटोग्राफिक छबि के समतल (photographic image plane) के समान्तर स्थित किसी समतल पर स्थित दो बिन्दुओं का फोटो लेकर और फोटो में उनके बीच की दूरी मापकर उन बिन्दुओं के बीच की दूरी की गणना की जा सकती है। इसके लिये फोटो का पैमाना (स्केल) ज्ञात होना चाहिये। .

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भू-आकृति विज्ञान

धरती की सतह भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology) (ग्रीक: γῆ, ge, "पृथ्वी"; μορφή, morfé, "आकृति"; और λόγος, लोगोस, "अध्ययन") भू-आकृतियों और उनको आकार देने वाली प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है; तथा अधिक व्यापक रूप में, उन प्रक्रियाओं का अध्ययन है जो किसी भी ग्रह के उच्चावच और स्थलरूपों को नियंत्रित करती हैं। भू-आकृति वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश करते हैं कि भू-दृश्य जैसे दिखते हैं वैसा दिखने के पीछे कारण क्या है, वे भू-आकृतियों के इतिहास और उनकी गतिकी को जानने का प्रयास करते हैं और भूमि अवलोकन, भौतिक परीक्षण और संख्यात्मक मॉडलिंग के एक संयोजन के माध्यम से भविष्य के बदलावों का पूर्वानुमान करते हैं। भू-आकृति विज्ञान का अध्ययन भूगोल, भूविज्ञान, भूगणित, इंजीनियरिंग भूविज्ञान, पुरातत्व और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग में किया जाता है और रूचि का यह व्यापक आधार इस विषय के तहत अनुसंधान शैली और रुचियों की व्यापक विविधता को उत्पन्न करता है। पृथ्वी की सतह, प्राकृतिक और मानवोद्भव विज्ञान सम्बन्धी प्रक्रियाओं के संयोजन की प्रतिक्रिया स्वरूप विकास करती है और सामग्री जोड़ने वाली और उसे हटाने वाली प्रक्रियाओं के बीच संतुलन के साथ जवाब देती है। ऐसी प्रक्रियाएं स्थान और समय के विभिन्न पैमानों पर कार्य कर सकती हैं। सर्वाधिक व्यापक पैमाने पर, भू-दृश्य का निर्माण विवर्तनिक उत्थान और ज्वालामुखी के माध्यम से होता है। अनाच्छादन, कटाव और व्यापक बर्बादी से होता है, जो ऐसे तलछट का निर्माण करता है जिसका परिवहन और जमाव भू-दृश्य के भीतर या तट से दूर कहीं अन्य स्थान पर हो जाता है। उत्तरोत्तर छोटे पैमाने पर, इसी तरह की अवधारणा लागू होती है, जहां इकाई भू-आकृतियां योगशील (विवर्तनिक या तलछटी) और घटाव प्रक्रियाओं (कटाव) के संतुलन के जवाब में विकसित होती हैं। आधुनिक भू-आकृति विज्ञान, किसी ग्रह के सतह पर सामग्री के प्रवाह के अपसरण का अध्ययन है और इसलिए तलछट विज्ञान के साथ निकट रूप से संबद्ध है, जिसे समान रूप से उस प्रवाह के अभिसरण के रूप में देखा जा सकता है। भू-आकृतिक प्रक्रियाएं विवर्तनिकी, जलवायु, पारिस्थितिकी, और मानव गतिविधियों से प्रभावित होती हैं और समान रूप से इनमें से कई कारक धरती की सतह पर चल रहे विकास से प्रभावित हो सकते हैं, उदाहरण के लिए, आइसोस्टेसी या पर्वतीय वर्षण के माध्यम से। कई भू-आकृति विज्ञानी, भू-आकृतिक प्रक्रियाओं की मध्यस्थता वाले जलवायु और विवर्तनिकी के बीच प्रतिपुष्टि की संभावना में विशेष रुचि लेते हैं। भू-आकृति विज्ञान के व्यावहारिक अनुप्रयोग में शामिल है संकट आकलन जिसमें शामिल है भूस्खलन पूर्वानुमान और शमन, नदी नियंत्रण और पुनर्स्थापना और तटीय संरक्षण। .

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भूभौतिकी

भूभौतिकी (Geophysics) पृथ्वी की भौतिकी है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी सारी समस्याओं की छानबीन होती है। साथ ही यह एक प्रयुक्त विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें भूमि समस्याओं और प्राकृतिक रूपों में उपलब्ध पदार्थों के व्यवहार की व्याख्या मूल विज्ञानों की सहायता से की जाती है। इसका विकास भौतिकी और भौमिकी से हुआ है। भूविज्ञानियों की आवश्यकता के फलस्वरूप नए साधनों के रूप में इसका जन्म हुआ। विज्ञान की शाखाओं या उपविभागों के रूप में भौतिकी, रसायन, भूविज्ञान और जीवविज्ञान को मान्यता मिले एक अरसा बीत चुका है। ज्यों-ज्यों विज्ञान का विकास हुआ, उसकी शाखाओं के मध्यवर्ती क्षेत्र उत्पन्न होते गए, जिनमें से एक भूभौतिकी है। उपर्युक्त विज्ञानों को चतुष्फलकी के शीर्ष पर निरूपित करें तो चतुष्फलक की भुजाएँ (कोर) नए विज्ञानों को निरूपित करती हैं। भूभौतिकी का जन्म भौमिकी एवं भौतिकी से हुआ है। .

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भूविज्ञान

पृथ्वी के भूवैज्ञनिक क्षेत्र पृथ्वी से सम्बंधित ज्ञान ही भूविज्ञान कहलाता है।भूविज्ञान या भौमिकी (Geology) वह विज्ञान है जिसमें ठोस पृथ्वी का निर्माण करने वाली शैलों तथा उन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जिनसे शैलों, भूपर्पटी और स्थलरूपों का विकास होता है। इसके अंतर्गत पृथ्वी संबंधी अनेकानेक विषय आ जाते हैं जैसे, खनिज शास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इंजीनियरी इत्यादि। इसके अध्ययन बिषयों में से एक मुख्य प्रकरण उन क्रियाओं की विवेचना है जो चिरंतन काल से भूगर्भ में होती चली आ रही हैं एवं जिनके फलस्वरूप भूपृष्ठ का रूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, यद्यपि उसकी गति साधारणतया बहुत ही मंद होती है। अन्य प्रकरणों में पृथ्वी की आयु, भूगर्भ, ज्वालामुखी क्रिया, भूसंचलन, भूकंप और पर्वतनिर्माण, महादेशीय विस्थापन, भौमिकीय काल में जलवायु परिवर्तन तथा हिम युग विशेष उल्लेखनीय हैं। भूविज्ञान में पृथ्वी की उत्पत्ति, उसकी संरचना तथा उसके संघटन एवं शैलों द्वारा व्यक्त उसके इतिहास की विवेचना की जाती है। यह विज्ञान उन प्रक्रमों पर भी प्रकाश डालता है जिनसे शैलों में परिवर्तन आते रहते हैं। इसमें अभिनव जीवों के साथ प्रागैतिहासिक जीवों का संबंध तथा उनकी उत्पत्ति और उनके विकास का अध्ययन भी सम्मिलित है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के संघटक पदार्थों, उन पर क्रियाशील शक्तियों तथा उनसे उत्पन्न संरचनाओं, भूपटल की शैलों के वितरण, पृथ्वी के इतिहास (भूवैज्ञानिक कालों) आदि के अध्ययन को सम्मिलित किया जाता है। .

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भूगोल

पृथ्वी का मानचित्र भूगोल (Geography) वह शास्त्र है जिसके द्वारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरुप और उसके प्राकृतिक विभागों (जैसे पहाड़, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, झील, डमरुमध्य, उपत्यका, अधित्यका, वन आदि) का ज्ञान होता है। प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्षों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वीतल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल का सार तत्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं उनकी समताओं तथा विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है। भूगोल शब्द दो शब्दों भू यानि पृथ्वी और गोल से मिलकर बना है। भूगोल एक ओर अन्य शृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग उस सीमा तक करता है जहाँ तक वह घटनाओं और विश्लेषणों की समीक्षा तथा उनके संबंधों के यथासंभव समुचित समन्वय करने में सहायक होता है। दूसरी ओर अन्य विज्ञानों से प्राप्त जिस ज्ञान का उपयोग भूगोल करता है, उसमें अनेक व्युत्पत्तिक धारणाएँ एवं निर्धारित वर्गीकरण होते हैं। यदि ये धारणाएँ और वर्गीकरण भौगोलिक उद्देश्यों के लिये उपयोगी न हों, तो भूगोल को निजी व्युत्पत्तिक धारणाएँ तथा वर्गीकरण की प्रणाली विकसित करनी होती है। अत: भूगोल मानवीय ज्ञान की वृद्धि में तीन प्रकार से सहायक होता है: सर्वप्रथम प्राचीन यूनानी विद्वान इरैटोस्थनिज़ ने भूगोल को धरातल के एक विशिष्टविज्ञान के रूप में मान्यता दी। इसके बाद हिरोडोटस तथा रोमन विद्वान स्ट्रैबो तथा क्लाडियस टॉलमी ने भूगोल को सुनिइतिहासश्चित स्वरुप प्रदान किया। इस प्रकार भूगोल में 'कहाँ' 'कैसे 'कब' 'क्यों' व 'कितनें' प्रश्नों की उचित वयाख्या की जाती हैं। .

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मानचित्रकला

विश्व का मध्यकालीन (१४८२) निरूपण मानचित्र तथा विभिन्न संबंधित उपकरणों की रचना, इनके सिद्धांतों और विधियों का ज्ञान एवं अध्ययन मानचित्रकला (Cartography) कहलाता है। मानचित्र के अतिरिक्त तथ्य प्रदर्शन के लिये विविध प्रकार के अन्य उपकरण, जैसे उच्चावचन मॉडल, गोलक, मानारेख (cartograms) आदि भी बनाए जाते हैं। मानचित्रकला में विज्ञान, सौंदर्यमीमांसा तथा तकनीक का मिश्रण है। 'कार्टोग्राफी' शब्द ग्रीक Χάρτης, chartes or charax .

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मानव भूगोल

देशों के अनुसार जनसंख्या का घनत्व, 2006 मानव भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ समायोजन का अध्ययन। मानव भूगोल में पृथ्वी तल पर मानवीय तथ्यों के स्थानिक वितरणों का अर्थात् विभिन्न प्रदेशों के मानव-वर्गों द्वारा किये गये वातावरण समायोजनों और स्थानिक संगठनों का अध्ययन किया जाता है। मानव भूगोल में मानव-वर्गो और उनके वातावरणों की शक्तियों, प्रभावों तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्वन्धों का अध्ययन, प्रादेशिक आधार पर किया जाता है। मानव भूगोल का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय देशों, पूर्ववर्ती सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत के विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन में अधिकाधिक रूचि ली जा रही है। पिछले लगभग ४० वर्षों में मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र का वैज्ञानिक विकास हुआ है और संसार के विभिन्न देशों में वहाँ की जनसंख्या की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक उन्नति के लिये संसाधन-योजना में इसके ज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है। .

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गोलीय त्रिकोणमिति

गोलीय त्रिकोणमिति (Spherical trigonometry), गोलीय ज्यामिति की शाखा है जिसमें गोलीय बहुभुजों (मुख्यतः गोलीय त्रिभुज) के कोणों एवं भुजाओं में सम्बन्ध बताने वाले त्रिकोणमितीय फलनों का अध्ययन किया जाता है। खगोलविज्ञान, भूगणित (geodesy) और नौचालन से सम्बन्धित गणनाओं में इसका बहुत महत्व है। श्रेणी:ज्यामिति की शाखाएँ.

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कार्ल फ्रेडरिक गाउस

कार्ल फ्रेडरिक गॉस अथवा कार्ल फ्रेडरिक गाउस (Gauß,; Carolus Fridericus Gauss) (30 अप्रैल 177723 फ़रवरी 1855) एक जर्मन गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने संख्या सिद्धान्त, बीजगणित, सांख्यिकी, गणितीय विश्लेषण, अवकल ज्यामिति, भूगणित, भूभौतिकी, वैद्युत स्थैतिकी, खगोल शास्त्र और प्रकाशिकी सहित कई क्षेत्रों में सार्थक रूप से योगदान दिया। गाउस को विद्युत के गणितीय सिद्धांत का संस्थापक कहा जाता है। विद्युत की चुंबकीय इकाई का 'गाउस' नाम उसी के नाम पर रखा गया है। कभी-कभी गाउस को गणित का राजकुमार भी कहा जाता है। गॉस का गणित और विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान है और उनका योगदान इतिहास का सबसे प्रभावशाली योगदान रहा है। उन्होंने गणित को "विज्ञान की रानी" कहा है। जर्मनी के ब्रुंसविक नाम स्थान में एक ईंट चुननेवाले मेमार के घर उसका जन्म हुआ था। जन्म से ही उसमें गणति के प्रश्नों को तत्काल हल कर देने की क्षमता थी। उसकी इस प्रतिभा का पता जब ब्रुंसविक के ड्यूक को लगा तो उन्होंने उसे गटिंगन विश्वविद्यालय में अध्ययन करने की व्यवस्था कर दी। वहाँ विद्यार्थी जीवन में ही उसने अनेक गणितीय आविष्कार किए। जयामिति के माध्यम से उसने सिद्ध किया कि एक वृत्त सत्तरह समान आर्क में विभाजित हो सकता है। सिरेस नामक ग्रह के संबंध में उसने जो गणना की उसके कारण उसकी गणना खगोलशास्त्रियों में की जाती है। १८०७ ई० से मृत्यु पर्यंत वह गर्टिगन वेधशाला का निदेशक रहा। .

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अंतरराष्ट्रीय भूगणित एवं भूभौतिकी संघ

अंतरराष्ट्रीय भूगणित एवं भूभौतिकी संघ (International Union of Geodesy and Geophysics / IUGG) एक अन्तरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है जो पृथ्वी एवं इसके वातावरण के वैज्ञानिक अध्ययन के प्रति समर्पित है। इसके लिये भूभौतिकी एवं भूगणित के सिद्धान्तों का उपयोग करता है। इस संगठन की स्थापना १९१९ में बेल्जियम के ब्रसेल्स नगर में हुई थी। .

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अंतरिक्ष विज्ञान

गैलेक्सी के एक भाग को प्रदर्शित करता हुआ एक तस्वीर अंतरिक्ष विज्ञान एक व्यापक शब्द है जो ब्रह्मांड के अध्ययन से जुड़े विभिन्न विज्ञान क्षेत्रों का वर्णन करता है तथा सामान्य तौर पर इसका अर्थ "पृथ्वी के अतिरिक्त" तथा "पृथ्वी के वातावरण से बाहर" भी है। मूलतः, इन सभी क्षेत्रों को खगोल विज्ञान का हिस्सा माना गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में खगोल के कुछ क्षेत्रों, जैसे कि खगोल भौतिकी, का इतना विस्तार हुआ है कि अब इन्हें अपनी तरह का एक अलग क्षेत्र माना जाता है। कुल मिला कर आठ श्रेणियाँ हैं, जिनका वर्णन अलग से किया जा सकता है; खगोल भौतिकी, गैलेक्सी विज्ञान, तारकीय विज्ञान, पृथ्वी से असंबंधित ग्रह विज्ञान, अन्य ग्रहों का जीव विज्ञान, एस्ट्रोनॉटिक्स/ अंतरिक्ष यात्रा, अंतरिक्ष औपनिवेशीकरण और अंतरिक्ष रक्षा.

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