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भित्तिचित्र कला

सूची भित्तिचित्र कला

अजन्ता की गुफा में जातक कथा का चित्रण; ७वीं शताब्दी भित्तिचित्र कला, सरगुजा, छत्तीसगढ़ भित्तिचित्र कला (Mural) सबसे पुरानी चित्रकला है। प्रागैतिहासिक युग के ऐतिहासिक रिकॉर्ड में पहले मिट्टी के बर्तन बनाये जाते थे, लेकिन कुछ समय बाद लोगों ने मिट्टी का प्रयोग दीवरों पर चित्र बनाने के लिये करने लगे। भित्तिचित्र कला में दीवारों पर ज्यामितिक आकार, कलापूर्ण अभिप्राय, पारंपरिक आकल्पन, सहज बनावट और अनुकरणमूलक सरल आकृतियों में निहित स्वच्छंद आकल्पन, उन्मुक्त आवेग और रेखिक ऊर्जा, अनूठी ताजगी और चाक्षुष सौंदर्य सृष्टि करती है। .

10 संबंधों: दिल्ली का इतिहास, द्वारमण्डप, दोमेनिको घिर्लांदाइयो, नर्तकी (मोहन जोदड़ो), बोतोलोमो कादुसी, भारतीय चित्रकला, भारतीय लोक कला परंपरा, वॉल्स ऑफ़ द सन एंड द मून, कोटा, अक्षर कला

दिल्ली का इतिहास

दिल्ली का लौह स्तम्भ दिल्ली को भारतीय महाकाव्य महाभारत में प्राचीन इन्द्रप्रस्थ, की राजधानी के रूप में जाना जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक दिल्ली में इंद्रप्रस्थ नामक गाँव हुआ करता था। अभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की देखरेख में कराये गये खुदाई में जो भित्तिचित्र मिले हैं उनसे इसकी आयु ईसा से एक हजार वर्ष पूर्व का लगाया जा रहा है, जिसे महाभारत के समय से जोड़ा जाता है, लेकिन उस समय के जनसंख्या के कोई प्रमाण अभी नहीं मिले हैं। कुछ इतिहासकार इन्द्रप्रस्थ को पुराने दुर्ग के आस-पास मानते हैं। पुरातात्विक रूप से जो पहले प्रमाण मिलते हैं उन्हें मौर्य-काल (ईसा पूर्व 300) से जोड़ा जाता है। तब से निरन्तर यहाँ जनसंख्या के होने के प्रमाण उपलब्ध हैं। 1966 में प्राप्त अशोक का एक शिलालेख(273 - 300 ई पू) दिल्ली में श्रीनिवासपुरी में पाया गया। यह शिलालेख जो प्रसिद्ध लौह-स्तम्भ के रूप में जाना जाता है अब क़ुतुब-मीनार में देखा जा सकता है। इस स्तंभ को अनुमानत: गुप्तकाल (सन ४००-६००) में बनाया गया था और बाद में दसवीं सदी में दिल्ली लाया गया।लौह स्तम्भ यद्यपि मूलतः कुतुब परिसर का नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है कि यह किसी अन्य स्थान से यहां लाया गया था, संभवतः तोमर राजा, अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) इसे मध्य भारत के उदयगिरि नामक स्थान से लाए थे। इतिहास कहता है कि 10वीं-11वीं शताब्दी के बीच लोह स्तंभ को दिल्ली में स्थापित किया गया था और उस समय दिल्ली में तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) था। वही लोह स्तंभ को दिल्ली में लाया था जिसका उल्लेख पृथ्वीराज रासो में भी किया है। जबकि फिरोजशाह तुगलक 13 शताब्दी मे दिल्ली का राजा था वो केसे 10 शताब्दी मे इसे ला सकता है। चंदरबरदाई की रचना पृथवीराज रासो में तोमर वंश राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि उसने ही 'लाल-कोट' का निर्माण करवाया था और लौह-स्तंभ दिल्ली लाया था। दिल्ली में तोमर वंश का शासनकाल 900-1200 इसवी तक माना जाता है। 'दिल्ली' या 'दिल्लिका' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम उदयपुर में प्राप्त शिलालेखों पर पाया गया, जिसका समय 1170 ईसवी निर्धारित किया गया। शायद 1316 ईसवी तक यह हरियाणा की राजधानी बन चुकी थी। 1206 इसवी के बाद दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी जिसमें खिलज़ी वंश, तुग़लक़ वंश, सैयद वंश और लोधी वंश समते कुछ अन्य वंशों ने शासन किया। .

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द्वारमण्डप

अजन्ता के द्वितीय गुफा के प्रवेश द्वार का मण्डप भद्र, ड्यौढ़ी, द्वारमंडप या पोर्च (Porch) किसी भवन के मुखद्वार की सुरक्षा के निमित्त उसके सामने बनाई हुई संरचना है। प्राय: यह तीन ओर से खुली होती है और छत स्तंभों पर, या कभी कभी बिना स्तंभों के ही मुख्य भवन से निकली हुई बाहुधरनों पर आलंबित रहती है। अनेक प्राचीन मंदिरों में जैसे ऐहोल के दुर्गामंदिर में (५वीं शती), खजुराहो के महादेवमंदिर में (१०-११वीं शती), ओसिया, मारवाड़ के सूर्यमंदिर में ९-१०वीं शती) या मोढेरा, गुजरात के सूर्यमंदिर में भद्र का 'द्वारमंडप' स्वरूप विशेष दृष्टिगोचर है। खुजराहो के मंदिरों में इसे 'अर्द्धमंडप' नाम दिया जाता है। मुख्य मंदिर के अतिरिक्त यह अर्धमंडप होने के कारण, 'ड्योढ़ी' भी कहा जाने लगा। कहीं-कहीं यह तीन ओर से खुला न होकर केवल सामने की ओर ही खुला रहता है, जैसे कांचीपुरम् (कांजीवरम्) के वैकुठ पेरूपल मंदिर में (८वीं शती) या भुवनेश्वर के वैताल देबल मंदिर में। कालांतर में मुख्यद्वार के सामने निकले हुए किसी प्रकार के छज्जे को और अलंकरण के लिए बनाए गए स्तंभों को भी भद्र कहा जाने लगा। पश्चिम में भी 'पोर्च' शब्द का उपयोग वास्तविक ड्योढ़ी या द्वारमंडप के अर्थ में तो होता ही है, मुख्यद्वार पर बने स्तंभों सहित छज्जे के लिए या स्तंभश्रेणी के लिए भी होता है। अमरीका में तो तीन ओर से खुली हुई छतयुक्त कोई भी उपसंरचना जो किसी भी भवन से मिली हो 'पोर्च' कही जाती है। इस प्रकार इसमें और किसी बरामदे या शयनप्रांगण में प्राय: कुछ अंतर ही नहीं रह जाता। .

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दोमेनिको घिर्लांदाइयो

दोमेनिको घिर्लांदाइयो द्वारा चित्रित गिवोवाना टोर्नाबोनी दोमेनिको घिर्लांदाइयो (Domenico Ghirlandaio; १४४९-९४) १५वीं शती के फ्लोरेंस का प्रख्यात भित्तिचित्रकार, आकृतियों, वातावरण, भूदृश्यादि के यथार्थ अंकन में प्रवीण। उसका मूल नाम 'दोमोनिको दि तोमासो बिगोर्दी' थी। उसकी प्रारंभिक भित्तिकृत्तियों पर उसके गुरुओं बाल्दोविनती और वेरोचो का प्रभाव स्पष्ट लक्षित है। उसके प्रधान भित्तिचित्र ब्रोत्सी के संत आंद्रिया के गिरजे, फ्लोरेंस तथा उसके आसपास के नगरों में लिखे गए। माईकेलैंजेलो उसका प्रमुख शिष्य था। .

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नर्तकी (मोहन जोदड़ो)

अंगूठाकार नर्तकी यह एक कांस्य मूर्ति है जो मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई थी जो सिन्धु घाटी की सभ्यता का एक स्थल है। माना जाता है की इसे २५०० ईसापूर्व के आसपास बनाया गया होगा। मोहनजोदड़ो के एक घर से एक और कांस्य मूर्ति प्राप्त हुई थी जो लगभग इसी की तरह है। भिर्दाना में एक मिटटी के बर्तन पर भी नर्तकी का भित्तिचित्र मिला है। इस मूर्ति की उंचाई १०.५ सेन्टीमीटर है। यह मोहनजोदड़ो के 'एच आर क्षेत्र' में १९२६ में अर्नेस्ट मैके को प्राप्त हुई थी। यद्यपि यह मूर्ति नृत्य मुद्रा में नहीं है फिर भी 'नर्तकी' इसलिये कहा गया क्योंकि इसकी सजावट से लगता है कि इसका व्यवसाय नृत्य होगा। इसके शरीर पर वस्त्र नहीं हैं किन्तु इसके एक हाथ में ऊपर तक चूड़ियाँ हैं। Dancing girl second prehistoric bronze.jpg|दूसरी कांस्य मूर्ति Dancing Girl Graffiti.jpg|भिर्दाना से प्राप्त नर्तकी का भित्तिचित्र श्रेणी:सिन्धु घाटी सभ्यता.

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बोतोलोमो कादुसी

'क्रूस से अवतरण', 1595 बातोलोमो कादुसी (Bartolomeo Carducci; १५६०-१६१०) इटली का चित्रकार था। वह फ़्लोरेंस में जन्मा और जिसने वहीं अपनी कलाशिक्षा ली। अपने समय के प्रचलित कलाकार अमानती से उसने वास्तुशिल्प तथा मूर्तिकला सीखी। चित्रकला की शिक्षा उसे प्रसिद्ध चित्रकार जुकेरो से मिली थी। जुकेरो प्राय: चित्र बनाने के लिए दूर-दूर से बुलाया जाता था, जो साथ की कादुसी को भी सहायक के रूप में ले जाया करता था। ज़केरो के साथ वह माद्रिद गया था जहाँ उसने एक्कोंरियल पुस्तकालय के लिए चित्र बनाए तथा उस प्रसिद्ध राजमहल की दीवारों पर भित्तिचित्र लिखे। धीरे-धीरे उसकी पहुँच राजदरबार तक हो गई और स्पेन के राजा फ़िलिप द्वितीय का वह कृपापात्र बन गया। अधिकतर वह स्पेन में ही रहा और वहीं उसकी मृत्यु भी हुई। उसके बनाए अधिकतर चित्र स्पेन में ही हैं। उसका सबसे प्रसिद्ध चित्र 'क्रूस से अवतरण' (ईसा का क्रास पर से उतारा जाना) है। यह साँ फ़ेलिप अल रील नामक गिरजाघर (मादिद्र) में सुरक्षित है। श्रेणी:चित्रकार.

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भारतीय चित्रकला

'''भीमवेटका''': पुरापाषाण काल की भारतीय गुफा चित्रकला भारत मैं चित्रकला का इतिहास बहुत पुराना रहा हैं। पाषाण काल में ही मानव ने गुफा चित्रण करना शुरु कर दिया था। होशंगाबाद और भीमबेटका क्षेत्रों में कंदराओं और गुफाओं में मानव चित्रण के प्रमाण मिले हैं। इन चित्रों में शिकार, शिकार करते मानव समूहों, स्त्रियों तथा पशु-पक्षियों आदि के चित्र मिले हैं। अजंता की गुफाओं में की गई चित्रकारी कई शताब्दियों में तैय्यार हुई थी, इसकी सबसे प्राचिन चित्रकारी ई.पू.

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भारतीय लोक कला परंपरा

भारतीय लोक कला मूलतः ग्राम्य अंचलों में जनसामान्य और आदिवासी विशिष्ट समूहों द्वारा धारित एवं संरक्षित कला है। ग्राम्य परिवेश और लोक संस्कृति में व्याप्त रचनात्मक आचार व्यवहार कला तत्व के रूप में परिणत हो लोक कलाओं को समृद्ध करते हैं। परंपरागत तौर पर लोक कला क्षेत्र अथवा समुदाय विशेष के लोगों द्वारा किया गया वह कलाकर्म है जिसके मूल में शुभ का विचार होता है और जो अवसर विशेष से जुडे अनुष्ठानों एवं आवश्यकताओं को सम्पन्न करने हेतु किया जाता है। .

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वॉल्स ऑफ़ द सन एंड द मून

वॉल्स ऑफ़ द सन एंड द मून स्पेनी कैटलन चित्रकार और मूर्तिकार जोआन मीरो द्वारा डिजाइन की गई भित्तिचित्र कला का एक जोड़ा है। ये पेरिस में स्थित युनेस्को इमारत में मौजूद है। इनका निर्माण 1955 से 1958 के बीच हुआ था। श्रेणी:जोआन मीरो.

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कोटा

कोटा राजस्थान का एक प्रमुख औद्योगिक एवं शैक्षणिक शहर है। यह चम्बल नदी के तट पर बसा हुआ है। कोटा राजधानी जयपुर से सडक एवं रेलमार्ग से लगभग २४० किलोमीटर की दूरी पर है। यह नगर जयपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग १२ पर स्थित है। दक्षिण राजस्थान में चंबल नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित कोटा उन शहरों में है जहां औद्योगीकरण बड़े पैमाने पर हुआ है। कोटा अनेक किलों, महलों, संग्रहालयों, मंदिरों और बगीचों के लिए लोकप्रिय है। यह शहर नवीनता और प्राचीनता का अनूठा मिश्रण है। जहां एक तरफ शहर के स्मारक प्राचीनता का बोध कराते हैं वहीं चंबल नदी पर बना हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लान्ट और न्यूक्लियर पावर प्लान्ट आधुनिकता का एहसास कराता है। .

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अक्षर कला

मुद्रण कला मुद्रण को सजाने, मुद्रण डिजाइन तथा मुद्रण ग्लिफ्स को संशोधित करने की कला एवं तकनीक है। मुद्रण ग्लिफ़ को विभिन्न उदाहरण तकनीकों का उपयोग करके बनाया और संशोधित किया जाता है। मुद्रण की सजावट में टाइपफेस का चुनाव, प्वायंट साईज, लाइन की लंबाई, लिडिंग (लाइन स्पेसिंग) अक्षर समूहों के बीच स्पेस (ट्रैकिंग) तथा अक्षर जोड़ों के बीच के स्पेस (केर्निंग) को व्यवस्थित करना शामिल हैं। टाइपोग्राफी का टाइपसेटर, कम्पोजिटर, टाइपोग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर, कला निर्देशक, कॉमिक बुक कलाकार, भित्तिचित्र कलाकार तथा क्लैरिकल वर्करों द्वारा किया जाता है। डिजिटल युग के आने तक टाइपोग्राफी एक विशेष प्रकार का व्यवसाय था। डिजिटलीकरण ने टाइपोग्राफी को नई पीढ़ी के दृश्य डिजाइनरों और ले युजरों के लिए सुगम बना दिया.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

भित्तिचित्र, क्ले रिलिफ़ वर्क

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