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पारा

सूची पारा

साधारण ताप पर पारा द्रव रूप में होता है। पारे का अयस्क पारा या पारद (संकेत: Hg) आवर्त सारिणी के डी-ब्लॉक का अंतिम तत्व है। इसका परमाणु क्रमांक ८० है। इसके सात स्थिर समस्थानिक ज्ञात हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९६, १९८, १९९, २००, २०१, २०२ और २०४ हैं। इनके अतिरिक्त तीन अस्थिर समस्थानिक, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ १९५, १९७ तथा २०५ हैं, कृत्रिम साधनों से निर्मित किए गए हैं। रासायनिक जगत् में केवल यही धातु साधारण ताप और दाब पर द्रव रूप होती है। .

65 संबंधों: चरक, ऊष्मा चालन, ऊष्मा चालकता, चिन शी हुआंग, ऐजो यौगिक, तत्वों की सूची (नाम अनुसार), तत्वों की सूची (प्रतीक के क्रम में), तत्वों की विद्युत प्रतिरोधकता के आंकड़े, तापमापी, द्रवघनत्वमापी, पारद, पुनर्चक्रण, प्रतिरोधकता, प्रदीप्त बत्ती, प्रकाश उत्सर्जक डायोड, पृष्ठ तनाव, फल्मिनिक अम्ल, फोर्ड मस्टैंग, बंगाल की खाड़ी, ब्राज़ील, बैरोमीटर, भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, भौतिक विज्ञानी, मदार, मानक एलेक्ट्रोड विभव, यूटीसी−०३:००, रस (बहुविकल्पी), रस चिकित्‍सा, रसायन विज्ञान, राम प्रसाद 'बिस्मिल', रासायनिक तत्व, रासायनिक तत्वों की सूची, रासायनिक प्रतीक, रक्तचाप, समुद्री प्रदूषण, समूह १२ तत्व, सरलता से उपलब्ध रसायनों की सूची, सिन्दूर, संपीडित वायु, संलय, संक्रमण धातु, स्पेक्ट्रोस्कोपी, सूजाक, होम्योपैथी, ईविंग लैंगम्यूर, घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक, विद्युत-मापी, विशिष्ट ऊष्मा धारिता, खनिजों की सूची, गलनीय धातु, ..., ऑक्सीजन, आपेक्षिक घनत्व, आवर्त सारणी के नमूने, इटली, इलैक्ट्रॉन आवरण, कंठमाला, अतिचालकता, अधातु, अन्वेषणों की समय-रेखा, अयस्क, अल्फ़ा ऐन्ड्रौमिडे तारा, अल्मादेन, उत्कृष्‍ट धातु, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, 1 E12 वर्ग मीटर सूचकांक विस्तार (15 अधिक) »

चरक

पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में महर्षि चरक की प्रतिमा चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है । 300-200 ई. पूर्व लगभगआयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है।चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई ।इनका रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं।आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा।चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों की भी उल्लेख है।उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया । चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया । .

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ऊष्मा चालन

किसी पिण्ड के अन्दर सूक्ष्म विसरण तथा कणों के टक्कर के द्वारा जो ऊष्मा का अन्तरण होता है उसे ऊष्मा चालन (Thermal conduction) कहते हैं। यहाँ 'कण' से आशय अणु, परमाणु, इलेक्ट्रान और फोटॉन से है। चालन द्वारा ऊष्मा अन्तरण ठोस, द्रव, गैस और प्लाज्मा - सभी प्रावस्थाओं में होती है। .

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ऊष्मा चालकता

भौतिकी में, ऊष्मा चालकता (थर्मल कण्डक्टिविटी) पदार्थों का वह गुण है जो दिखाती है कि पदार्थ से होकर ऊष्मा आसानी से प्रवाहित हो सकती है या नहीं। ऊष्मा चालकता को k, λ, या κ से निरूपित करते हैं। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता अधिक होती है उनसे होकर समान समय में अधिक ऊष्मा प्रवाहित होती है (यदि अन्य परिस्थितियाँ, जैसे ताप का अन्तर, पदार्थ की लम्बाई और क्षेत्रफल आदि समान हों)। जिन पदार्थों की ऊष्मा चालकता बहुत कम होती हैं उन्हें ऊष्मा का कुचालक (थर्मल इन्सुलेटर) कहा जाता है। ऊष्मा चालकता के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकल) को उष्मा प्रतिरोधकता (thermal resistivity) कहते हैं। .

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चिन शी हुआंग

चिन शी हुआंग जिसे चिन शी हुआंगदी (秦始皇帝, हिंदी: चीन का प्रथम सम्राट) (जिसका असली नाम यिंग जेंग था)के नाम से भी जाना जाता है, चीन का प्रथम सम्राट था। इसी ने चिन राजवंश की स्थापना कि थी। उसने चीन के बाकि झगड़ते राज्यों को चिन देश के अधीन किया था। उसने शांग राजवंश और झोऊ राजवंश की पारंपरिक उपाधि महाराज (王, wáng) को त्याग कर सम्राट (皇帝 huáng dì) को अपनाया जो की उसकी मृत्यु के २००० वर्ष तक चीन के शासकों ने धारण कि। चिन शी के सेनापतियो ने चू राज्य के दक्षिण में स्थित युएझ़ी काबिले को हराकर हुनान और गुआंगदोंग क्षेत्र को चिन राज्य में सम्मिलित किया। उन्होंने शियोंगनु काबिले से बीजिंग के पश्चिम की भूमि प्राप्त कि। पर इसके उत्तर में शियोंगनु काबिले ने मोदू चानयू के नेतृत्व में एक संघ बनाया चिन राज्य से लड़ने के लिए। चिन शी हुआंग ने अपने मंत्रीली सी के साथ मिलकर चीन के आर्थिक और राजनैतिक स्थिति सुधारने और उसके मानकीकरण के हेतु कई नियम बनाये जिस कारण कई ग्रंथो को जलाया गया और विद्वानों को जिन्दा दफनाया गया। उसने अपनी जनता के लिए विशाल राजमार्गो की प्रणाली स्थापित की और अपनी जनता की सुरक्षा के लिए सभी राज्यों की दीवारों को जोड़कर चीन की महान दीवार बनवाई। उसने खुदके लिए एक नगर के आकार की समाधी बनवाई और उसकी रक्षा के लिए टेराकोटा सेना खड़ी की। अपने अमृत की खोज के निरर्थक प्रयास के बाद २१० ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हो गयी, पारे के अत्याधिक सेवन के कारण। श्रेणी:चीन के सम्राट.

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ऐजो यौगिक

एजो यौगिकों का सामान्य सूत्र ऐज़ो यौगिक (Azo compounds) ऐसे कार्बनिक यौगिक को कहते हैं जिसमें R-N.

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तत्वों की सूची (नाम अनुसार)

नीचे प्रत्येक तत्व के सबसे स्थिर समस्थानिक का तत्व प्रतीक, परमाणु क्रमांक और परमाणु भार का विवरण दिया गया है। साथ ही उनका समूह और आवर्त सारणी मे उनकी स्थिति भी प्रदर्शित है। |-style.

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तत्वों की सूची (प्रतीक के क्रम में)

तत्वों की आवर्त सारणी ये सूची रासायनिक तत्त्वों के रासायनिक चिह्न अनुसार है: .

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तत्वों की विद्युत प्रतिरोधकता के आंकड़े

तत्वों की विद्युत चालकता यहाँ दी गयी है- .

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तापमापी

|एक चिकित्सकीय तापमापी '''तापमापी''' तापमापी या थर्मामीटर वह युक्ति है जो ताप या 'ताप की प्रवणता' को मापने के काम आती है। 'तापमिति' (Thermometry) भौतिकी की उस शाखा का नाम है, जिसमें तापमापन की विधियों पर विचार किया जाता है। तापमापी अनेक सिद्धान्तों के आधार पर निर्मित किये जा सकते हैं। द्रवों का आयतन ताप ग्रहण कर बढ़ जाता है तथा आयतन में होने वाली यह वृद्धि तापक्रम के समानुपाती होता है। साधारण थर्मामीटर इसी सिद्धान्त पर काम करते हैं। .

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द्रवघनत्वमापी

उत्पल-घनत्वमापी द्रवघनत्वमापी या उत्प्लव-घनत्वमापी या हाइड्रोमीटर (Hydrometer) वह यंत्र है जिससे बिना किसी गणना के, द्रवों के घनत्व पढ़े जा सकते हैं। इन यंत्रों की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान अत्यंत प्राचीन समय से था और इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि आर्किमीडीज़ (१८७- २१२ ई.पू.) को इनकी जानकारी थी। .

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पारद

पारद के निम्नलिखित अर्थ होते हैं-.

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पुनर्चक्रण

पुनरावर्तन में संभावित उपयोग में आने वाली सामग्रियों के अपशिष्ट की रोकथाम कर नए उत्पादों में संसाधित करने की प्रक्रिया ताजे कच्चे मालों के उपभोग को कम करने के लिए, उर्जा के उपयोग को घटाने के लिए वायु-प्रदूषण को कम करने के लिए (भस्मीकरण से) तथा जल प्रदूषण (कचरों से जमीन की भराई से) पारंपरिक अपशिष्ट के निपटान की आवश्यकता को कम करने के लिए, तथा अप्रयुक्त विशुद्ध उत्पाद की तुलना में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए पुनरावर्तन में प्रयुक्त पदार्थों को नए उत्पादों में प्रसंस्करण की प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं। पुनरावर्तन आधुनिक अपशिष्ट को कम करने में प्रमुख तथा अपशिष्ट को "कम करने, पुनः प्रयोग करने, पुनरावर्तन करने" की क्रम परम्परा का तीसरा घटक है। पुनरावर्तनीय पदार्थों में कई किस्म के कांच, कागज, धातु, प्लास्टिक, कपड़े, एवं इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। हालांकि प्रभाव में एक जैसा ही लेकिन आमतौर पर जैविक विकृतियों के अपशेष से खाद बनाने अथवा अन्य पुनः उपयोग में लाने - जैसे कि भोजन (पके अन्न) तथा बाग़-बगीचों के कचरों को पुनरावर्तन के लायक नहीं समझा जाता है। पुनरावर्तनीय सामग्रियों को या तो किसी संग्रह शाला में लाया जाता है अथवा उच्छिस्ट स्थान से ही उठा लिया जाता है, तब उन्हें नए पदार्थों में उत्पादन के लिए छंटाई, सफाई तथा पुनर्विनीकरण की जाती है। सही मायने में, पदार्थ के पुनरावर्तन से उसी सामग्री की ताजा आपूर्ति होगी, उदाहरणार्थ, इस्तेमाल में आ चुका कागज़ और अधिक कागज़ उत्पादित करेगा, अथवा इस्तेमाल में आ चुका फोम पोलीस्टाइरीन से अधिक पोलीस्टाइरीन पैदा होगा। हालांकि, यह कभी-कभार या तो कठिन अथवा काफी खर्चीला हो जाता है (दूसरे कच्चे मालों अथवा अन्य संसाधनों से उसी उत्पाद को उत्पन्न करने की तुलना में), इसीलिए कई उत्पादों अथवा सामग्रियों के पुनरावर्तन में अन्य सामग्रियों के उत्पादन में (जैसे कि कागज़ के बोर्ड बनाने में) बदले में उनकें ही अपने ही पुनः उपयोग शामिल हैं। पुनरावर्तन का एक और दूसरा तरीका मिश्र उत्पादों से, बचे हुए माल को या तो उनकी निजी कीमत के कारण (उदाहरणार्थ गाड़ियों की बैटरी से शीशा, या कंप्यूटर के उपकरणों में सोना), अथवा उनकी जोखिमी गुणवत्ता के कारण (जैसे कि, अनेक वस्तुओं से पारे को अलग निकालकर उसे पुनर्व्यव्हार में लाना) फिर से उबारकर व्यवहार योग्य बनाना है। पुनरावर्तन की प्रक्रिया में आई लागत के कारण आलोचकों में निवल आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को लेकर मतभेद हैं और उनके सुझाव के अनुसार पुनरावर्तन के प्रस्तावक पदार्थों को और भी बदतर बना देते हैं तथा अनुभोदन एवं पुष्टिकरण के पक्षपातपूर्ण पूर्वग्रह झेलना पड़ता है। विशेषरूप से, आलोचकों का इस मामले में तर्क है कि संग्रहीकरण एवं ढुलाई में लगने वाली लागत एवं उर्जा उत्पादन कि प्रक्रिया में बचाई गई लागत और उर्जा से घट जाती (तथा भारी पड़ जाती हैं) और साथ ही यह भी कि पुनरावर्त के उद्योग में उत्पन्न नौकरियां लकड़ी उद्योग, खदान एवं अन्य मौलिक उत्पादनों से जुड़े उद्योगों की नौकरियां को निकृष्ट सकझा जाती है; और सामग्रियों जैसे कि कागज़ की लुग्दी आदि का पुनरावर्तक सामग्री के अपकर्षण से कुछ ही बार पहले हो सकता है जो और आगे पुनरावर्तन के लिए बाधक हैं। पुनरावर्तन के प्रस्तावकों के ऐसे प्रत्येक दावे में विवाद है और इस संदर्भ में दोनों ही पक्षों से तर्क की प्रामाणिकता ने लम्बे विवाद को जन्म दिया है। .

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प्रतिरोधकता

किसी पदार्थ की वैद्युत प्रतिरोधकता (Electrical resistivity; या resistivity, specific electrical resistance, or volume resistivity) से उस पदार्थ द्वारा विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करने की क्षमता का पता चलता है। कम प्रतिरोधकता वाले पदार्थ आसानी से विद्युत आवेश को चलने देते हैं। इसकी SI ईकाई ओम मीटर है। .

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प्रदीप्त बत्ती

जगमगाते हुए प्रदीप्त लैम्प तरह-तरह की प्रदीप्त बत्तियाँ प्रदीप्त बत्ती या प्रदीप्त नलिका या फ्लोरिसेण्ट लैम्प एक 'गैस-डिस्चार्ज बत्ती' (gas-discharge lamp) है जिसमें पारे के वाष्प को इक्साइट (excite) करने के लिये विद्युत विभव का उपयोग किया जाता है। यह समान मात्रा में प्रकाश पैदा करने के लिये साधारण बल्ब (इन्कैण्डिसेन्ट लैम्प) की तुलना में कम बिजली खाता है। किन्तु इन्का आकार बड़ा होता है, इन पर शुरुआत में अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है तथा इनमें पारा मर्करी की एक सूक्ष्म मात्रा भी होती है जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती है। .

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प्रकाश उत्सर्जक डायोड

एल.ई.डी की आंतरिक संरचना प्रकाश उत्सर्जन डायोड (अंग्रेज़ी:लाइट एमिटिंग डायोड) एक अर्ध चालक-डायोड होता है, जिसमें विद्युत धारा प्रवाहित करने पर यह प्रकाश उत्सर्जित करता है। यह प्रकाश इसकी बनावट के अनुसार किसी भी रंग का हो सकता है। एल.ई.डी.

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पृष्ठ तनाव

कुछ कीट जल की सतह पर 'चल' पाते हैं। इसका कारण पृष्ठ-तनाव ही है। पृष्ठ तनाव (Surface tension) किसी द्रव के सतह या पृष्ट का एक विशिष्ट गुण है। दूसरे शब्दों मे, पृष्ठ-तनाव के कारण ही द्रवों का पृष्ट एक प्रकार की प्रत्यास्थता (एलास्टिक) का गुण प्रदर्शित करता है। पृष्ट तनाव के कारण ही पारे की बूँद, गोल आकार धारण कर लेती है न कि अन्य कोई रूप (जैसे घनाकार)। पृष्ठ तनाव के कारण द्रव अपने पृष्ठ (सतह) का क्षेत्रफल न्यूनतम करने की कोशिश करते हैं। गणितीय रूप में, पृष्ठ के इकाई लम्बाई पर लगने वाले बल को द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में, द्रव के पृष्ठ के इकाई क्षेत्रफल की वृद्धि के लिये आवश्यक ऊर्जा को उस द्रव का पृष्ठ तनाव कहते हैं। इसका मात्रक बल प्रति इकाई लंबाई (जैसे न्यूटन/मीटर), या ऊर्जा प्रति इकाई क्षेत्र (जैसे जूल/वर्ग मीटर) है। .

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फल्मिनिक अम्ल

फल्मिनिक अम्ल (Fulminic Acid) सायेनिक अम्ल का समावयवी है। इनका सूत्र HON.

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फोर्ड मस्टैंग

2010 के फोर्ड मस्टैंग (Ford Mustang) का मॉडल बैज फोर्ड मस्टैंग (Ford Mustang) फोर्ड मोटर कंपनी (Ford Motor Company) द्वारा निर्मित एक ऑटोमोबाइल कार है। शुरू में यह उत्तर अमेरिकी फोर्ड फाल्कन (Ford Falcon) की दूसरी पीढ़ी पर आधारित एक कॉम्पैक्ट कार थी। 17 अप्रैल 1964 के आरम्भ में प्रस्तावित 1965 का मस्टैंग (Mustang), मॉडल ए (Model A) के बाद से ऑटोमेकर (मोटर-कार-निर्माता) का सबसे सफल शुभारम्भ है। मस्टैंग (Mustang) की वजह से ही अमेरिकी ऑटोमोबाइल के "टट्टू कार (पोनी कार)" श्रेणी का निर्माण हुआ जो स्पोर्ट्स कार जैसे कूपे (बग्घियां) थे जिनका हूड (कार की छतरी) लम्बा और पिछला डेक (कार की छत) छोटा होता था और इसी मस्टैंग की वजह से जीएम (GM) की शेवरले कैमेरो (Chevrolet Camaro), एएमसी (AMC) की जैवलिन (Javelin), और क्रिसलर (Chrysler) की पुनर्निर्मित प्लाईमाउथ बैराकुडा (Plymouth Barracuda) जैसी इसकी प्रतिद्वंद्वी कारों का उत्थान हुआ। इसने अमेरिका निर्यात की जाने वाली टोयोटा सेलिका (Toyota Celica) और फोर्ड कैप्री (Ford Capri) जैसी बग्घियों को भी प्रेरित किया। .

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बंगाल की खाड़ी

बंगाल की खाड़ी विश्व की सबसे बड़ी खाड़ी है और हिंद महासागर का पूर्वोत्तर भाग है। यह मोटे रूप में त्रिभुजाकार खाड़ी है जो पश्चिमी ओर से अधिकांशतः भारत एवं शेष श्रीलंका, उत्तर से बांग्लादेश एवं पूर्वी ओर से बर्मा (म्यांमार) तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह से घिरी है। बंगाल की खाड़ी का क्षेत्रफल 2,172,000 किमी² है। प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों के अन्सुआर इसे महोदधि कहा जाता था। बंगाल की खाड़ी 2,172,000 किमी² के क्षेत्रफ़ल में विस्तृत है, जिसमें सबसे बड़ी नदी गंगा तथा उसकी सहायक पद्मा एवं हुगली, ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदी जमुना एवं मेघना के अलावा अन्य नदियाँ जैसे इरावती, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियां सागर से संगम करती हैं। इसमें स्थित मुख्य बंदरगाहों में चेन्नई, चटगाँव, कोलकाता, मोंगला, पारादीप, तूतीकोरिन, विशाखापट्टनम एवं यानगॉन हैं। .

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ब्राज़ील

ब्रास़ील (ब्राज़ील) दक्षिण अमरीका का सबसे विशाल एवं महत्त्वपूर्ण देश है। यह देश ५० उत्तरी अक्षांश से ३३० दक्षिणी अक्षांश एवँ ३५० पश्चिमी देशान्तर से ७४० पश्चिमी देशान्तरों के मध्य विस्तृत है। दक्षिण अमरीका के मध्य से लेकर अटलांटिक महासागर तक फैले हुए इस संघीय गणराज्य की तट रेखा ७४९१ किलोमीटर की है। यहाँ की अमेज़न नदी, विश्व की सबसे बड़ी नदियों मे से एक है। इसका मुहाना (डेल्टा) क्षेत्र अत्यंत उष्ण तथा आर्द्र क्षेत्र है जो एक विषुवतीय प्रदेश है। इस क्षेत्र में जन्तुओं और वनस्पतियों की अतिविविध प्रजातियाँ वास करती हैं। ब्राज़ील का पठार विश्व के प्राचीनतम स्थलखण्ड का अंग है। अतः यहाँ पर विभिन्न भूवैज्ञानिक कालों में अनेक प्रकार के भूवैज्ञानिक संरचना सम्बंधी परिवर्तन दिखाई देते हैं। ब्राज़ील के अधिकांश पूर्वी तट एवं मध्य अमेरिका की खोज अमेरिगो वाससक्की ने की एवं इसी के नाम से नई दुनिया अमेरिका कहलाई। सन् १५०० के बाद यहाँ उपनिवेश बनने आरंभ हुए। यहाँ की अधिकांश पुर्तगाली बस्तियों का विकास १५५० से १६४० के मध्य हुआ। २४ जनवरी १९६४ को इसका नया संविधान बना। इसकी प्रमुख भाषा पुर्तगाली है। .

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बैरोमीटर

बैरोमीटर या वायुदाबमापी एक यंत्र होता है जिसके द्वारा वायुमण्डल के दबाव को मापा जाता है। वायुदाब को मापने के लिये बैरोमीटर में पानी, हवा अथवा पारा का प्रयोग किया जाता है। बैरोमीटर के आविष्कारक इव्हानगेलिस्टा टोरिसेली हैं। .

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भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी

भारत के प्रथम रिएक्टर '''अप्सरा''' तथा प्लुटोनियम संस्करण सुविधा का अमेरिकी उपग्रह से लिया गया चित्र (१९ फरवरी १९६६) भारतीय विज्ञान की परंपरा विश्व की प्राचीनतम वैज्ञानिक परंपराओं में एक है। भारत में विज्ञान का उद्भव ईसा से 3000 वर्ष पूर्व हुआ है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सिंध घाटी के प्रमाणों से वहाँ के लोगों की वैज्ञानिक दृष्टि तथा वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोगों का पता चलता है। प्राचीन काल में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में चरक और सुश्रुत, खगोल विज्ञान व गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और आर्यभट्ट द्वितीय और रसायन विज्ञान में नागार्जुन की खोजों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनकी खोजों का प्रयोग आज भी किसी-न-किसी रूप में हो रहा है। आज विज्ञान का स्वरूप काफी विकसित हो चुका है। पूरी दुनिया में तेजी से वैज्ञानिक खोजें हो रही हैं। इन आधुनिक वैज्ञानिक खोजों की दौड़ में भारत के जगदीश चन्द्र बसु, प्रफुल्ल चन्द्र राय, सी वी रमण, सत्येन्द्रनाथ बोस, मेघनाद साहा, प्रशान्त चन्द्र महलनोबिस, श्रीनिवास रामानुजन्, हरगोविन्द खुराना आदि का वनस्पति, भौतिकी, गणित, रसायन, यांत्रिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान है। .

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भौतिक विज्ञानी

अल्बर्ट आइंस्टीन, जिन्होने सामान्य आपेक्षिकता का सिद्धान्त दिया भौतिक विज्ञानी अथवा भौतिक शास्त्री अथवा भौतिकीविद् वो वैज्ञानिक कहलाते हैं जो अपना शोध कार्य भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में करते हैं। उप-परवमाणविक कणों (कण भौतिकी) से लेकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तक सभी परिघटनाओं का अध्ययन करने वाले लोग इस श्रेणी में माने जाते हैं। .

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मदार

मदार का वृक्ष आक के पुष से बनीं मालाएँ मदार (वानस्पतिक नाम:Calotropis gigantea) एक औषधीय पादप है। इसको मंदार', आक, 'अर्क' और अकौआ भी कहते हैं। इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है। पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं। हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है। आक की शाखाओं में दूध निकलता है। वह दूध विष का काम देता है। आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है। चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है। आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं। इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है, यह मनुष्य को मार डालता है। इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य की मृत्यु हो सकती है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है। .

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मानक एलेक्ट्रोड विभव

गैलवानिक सेल (डेनियल सेल) साम्यावस्था में अर्ध सेलों (हाफ सेल) के एलेक्ट्रोड विभव को मानक एलेक्ट्रोड विभव (standard electrode potentials) कहते हैं। जब तत्वो को उनके मानक अपचयन विभव के आरोही क्रम मे व्यवस्त्थित करते हैं तो इस प्रकार प्राप्त हुइ श्रेणी विद्युत रासायनिक श्रेणी कहलाती है। इनका उपयोग विद्युतरासायनिक सेल (electrochemical cell) (गैल्वानिक सेल) का विभव ज्ञात करने के लिये किया जा सकता है। इसके अलावा इनका उपयोग किसी विद्युतरासायनिक रिडॉक्स (redox) अभिक्रिया के साम्य की स्थिति का पता करने के लिये किया जा सकता है। अतर्थात इसकी सहायता से यह पता कर सकते हैं कि उष्मागतिकी की दृष्टि से किसी विद्युतरासायनिक अभिक्रिया की गति की दिशा क्या होगी।Milazzo, G., Caroli, S., and Sharma, V. K. (1978).

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यूटीसी−०३:००

यूटीसी−03:00 यूटीसी से तीन घंटे पीछे का एक समय मंडल है जो ग्रीनविच मानक समय से तीन घंटे कम करने पर आता है। .

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रस (बहुविकल्पी)

'रस' से निम्नलिखित का बोध होता है-.

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रस चिकित्‍सा

पारा और गंधक के साथ काष्‍ठादिक औषधियों के योग से बनने वाली दवाओं को रसौषधि कहते हैं। रसौषधियों से रोगों की चिकित्‍सा जब की जाती है तब इसे रस चिकित्‍सा कहते हैं। .

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रसायन विज्ञान

300pxरसायनशास्त्र विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पदार्थों के संघटन, संरचना, गुणों और रासायनिक प्रतिक्रिया के दौरान इनमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसका शाब्दिक विन्यास रस+अयन है जिसका शाब्दिक अर्थ रसों (द्रवों) का अध्ययन है। यह एक भौतिक विज्ञान है जिसमें पदार्थों के परमाणुओं, अणुओं, क्रिस्टलों (रवों) और रासायनिक प्रक्रिया के दौरान मुक्त हुए या प्रयुक्त हुए ऊर्जा का अध्ययन किया जाता है। संक्षेप में रसायन विज्ञान रासायनिक पदार्थों का वैज्ञानिक अध्ययन है। पदार्थों का संघटन परमाणु या उप-परमाण्विक कणों जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से हुआ है। रसायन विज्ञान को केंद्रीय विज्ञान या आधारभूत विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे विज्ञानों जैसे, खगोलविज्ञान, भौतिकी, पदार्थ विज्ञान, जीवविज्ञान और भूविज्ञान को जोड़ता है। .

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राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' (११ जून १८९७-१९ दिसम्बर १९२७) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे, जिन्हें ३० वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने फाँसी दे दी। वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे। राम प्रसाद एक कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे। बिस्मिल उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है आत्मिक रूप से आहत। बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४, शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में जन्मे राम प्रसाद ३० वर्ष की आयु में पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी), सोमवार, विक्रमी संवत् १९८४ को शहीद हुए। उन्होंने सन् १९१६ में १९ वर्ष की आयु में क्रान्तिकारी मार्ग में कदम रखा था। ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया। ११ पुस्तकें उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं, जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गयीं। --> बिस्मिल को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध की लखनऊ सेण्ट्रल जेल की ११ नम्बर बैरक--> में रखा गया था। इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियोँ को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज के विरुद्ध साजिश रचने का ऐतिहासिक मुकदमा चलाया गया था। --> .

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रासायनिक तत्व

रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी रासायनिक तत्व (या केवल तत्व) ऐसे उन शुद्ध पदार्थों को कहते हैं जो केवल एक ही तरह के परमाणुओं से बने होते हैं। या जो ऐसे परमाणुओं से बने होते हैं जिनके नाभिक में समान संख्या में प्रोटॉन होते हैं। सभी रासायनिक पदार्थ तत्वों से ही मिलकर बने होते हैं। हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, आक्सीजन, तथा सिलिकॉन आदि कुछ तत्व हैं। सन २००७ तक कुल ११७ तत्व खोजे या पाये जा चुके हैं जिसमें से ९४ तत्व धरती पर प्राकृतिक रूप से विद्यमान हैं। कृत्रिम नाभिकीय अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप उच्च परमाणु क्रमांक वाले तत्व समय-समय पर खोजे जाते रहे हैं। .

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रासायनिक तत्वों की सूची

नीचे परमाणु क्रमांक के बढते हुए क्रम में रासायनिक तत्वों की सूची दी गयी है। अलग-अलग प्रकार के तत्वों को अलग-अलग रंगों से चिन्हित किया गया है। इस सूची में प्रत्येक तत्व का नाम, उसका रासायनिक प्रतीक, आवर्त सारणी में उसका समूह एवं पिरियड, रासायनिक श्रेणी, तथा परमाणु द्रब्यमान (सबसे स्थायी समस्थानिक का) दिये गये हैं। .

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रासायनिक प्रतीक

रासायनिक तत्वों के नामों के संक्षिप्त रूपों को रासायनिक प्रतीक कहते हैं। उदाहरण के लिये, नीचे एक रासायनिक अभिक्रिया को प्रतीकात्मक रूप में अभिव्यक्त किया गया है। इसमें उ (H) उदजन (हाइड्रोजन) के लिये एवं जा (O) जारक (आक्सीजन) के लिये प्रयुक्त हुई है। तत्वों के विशिष्ट समस्थानिक दिखाने, उनके परमाणु भार दिखाने एवं उनके आयनन की अवस्था या आक्सीकरण अवस्था आदि दिखाने के लिये रासायनिक संकेतों के साथ 'उपलिपि' (सबस्क्रिप्ट) एवं 'अधिकलिपि' (सुपरस्क्रिप्ट) भी जोड़े जाते हैं। .

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रक्तचाप

रक्तचापमापी या स्फाइगनोमैनोमीटर, रक्तचाप मापने के यंत्र को कहते हैं। ऊपर देखें एक मर्करी रक्तचापमापी रक्तचाप (अंग्रेज़ी:ब्लड प्रैशर) रक्तवाहिनियों में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों पर द्वारा डाले गये दबाव को कहते हैं। धमनियां वह नलिका है जो पंप करने वाले हृदय से रक्त को शरीर के सभी ऊतकों और इंद्रियों तक ले जाते हैं। हृदय, रक्त को धमनियों में पंप करके धमनियों में रक्त प्रवाह को विनियमित करता है और इसपर लगने वाले दबाव को ही रक्तचाप कहते हैं। किसी व्यक्ति का रक्तचाप, सिस्टोलिक/डायास्टोलिक रक्तचाप के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे कि १२०/८० सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों में दाब को दर्शाती है। इसमें हृदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पंप करती हैं। डायालोस्टिक रक्त चाप अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उस दाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियां शिथिल हो जाती है। रक्तचाप हमेशा उस समय अधिक होता है जब हृदय पंप कर रहा होता है बनिस्बत जब वह शिथिल होता है। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और १२० मिलिमीटर के बीच होता है। सामान्य डायालोस्टिक रक्तचाप पारा के ६० से ८० मि.मि.

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समुद्री प्रदूषण

अक्सर प्रदूषण के कारण ज्यादातर नुकसान को देखा नहीं जा सकता है, जबकि समुद्री प्रदूषण को स्पष्ट किया जा सकता है जैसा कि समुद्र के ऊपर दिखाए गए मलबे को देखा जा सकता है। समुद्री प्रदूषण तब होता है जब रसायन, कण, औद्योगिक, कृषि और रिहायशी कचरा, शोर या आक्रामक जीव महासागर में प्रवेश करते हैं और हानिकारक प्रभाव, या संभवतः हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समुंद्री प्रदूषण के ज्यादातर स्रोत थल आधारित होते हैं। प्रदूषण अक्सर कृषि अपवाह या वायु प्रवाह से पैदा हुए कचरे जैसे अस्पष्ट स्रोतों से होता है। कई सामर्थ्य ज़हरीले रसायन सूक्ष्म कणों से चिपक जाते हैं जिनका सेवन प्लवक और नितल जीवसमूह जन्तु करते हैं, जिनमें से ज्यादातर तलछट या फिल्टर फीडर होते हैं। इस तरह ज़हरीले तत्व समुद्री पदार्थ क्रम में अधिक गाढ़े हो जाते हैं। कई कण, भारी ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हुई रसायनिक प्रक्रिया के ज़रिए मिश्रित होते हैं और इससे खाड़ियां ऑक्सीजन रहित हो जाती हैं। जब कीटनाशक समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में शामिल होते हैं तो वो समुद्री फूड वेब में बहुत जल्दी सोख लिए जाते हैं। एक बार फूड वेब में शामिल होने पर ये कीटनाशक उत्परिवर्तन और बीमारियों को अंजाम दे सकते हैं, जो इंसानों के लिए हानिकारक हो सकते हैं और समूचे फूड वेब के लिए भी.

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समूह १२ तत्व

समूह १२ तत्व (Group 12 element) आवर्त सारणी (पीरियोडिक टेबल) के रासायनिक तत्वों का एक समूह है। यह आवर्त सारणी के डी (d) खण्ड में आता है। इस समूह में जस्ता (Zn), कैडमियम (Cd) और पारा (Hg) शामिल हैं। इनके अलावा, अपने विद्युदणु विन्यास (इलेक्ट्रानों की संख्या व व्यवस्था) के आधार पर कोपरनिसियम (Cn) भी इसी समूह का सदस्य है, हालाँकि यह केवल एक प्रयोगशाला में बनाया गया पारऐक्टिनाइड कृत्रिम तत्व है। रॉन्टजैनियम का नाभिक (न्यूक्लीयस) बहुत अस्थाई है जिसके कारणवश यह अत्यंत रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) है और इसकी अर्धायु काल (हाफ़ लाइफ़) केवल २९ सैकिंड है। .

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सरलता से उपलब्ध रसायनों की सूची

नीचे दी गयी सूची में नवसिखुआ रसायनज्ञों (amateur chemists.) के लिये 'लगभग शुद्ध' रसायनों के सरल स्रोत बताये गये हैं। इनमें प्रमुख हैं-.

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सिन्दूर

सिन्दूर एक लाल या नारंगी रंग का सौन्दर्य प्रसाधन होता है जिसे भारतीय उपमहाद्वीप में महिलाए प्रयोग करती हैं। हिन्दू, बौद्ध, जैन और कुछ अन्य समुदायों में विवाहित स्त्रियाँ इसे अपनी माँग में पहनती हैं। इसका प्रयोग बिन्दियों में भी होता है। रसायनिक दृष्टि से सिन्दूर अक्सर पारे या सीसे के रसायनों का बना होता है, इसलिए विषैला होता है और इसके प्रयोग में सावधानी बरतने को और इस पदार्थ को बच्चों से दूर रखने को कहा जाता है। .

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संपीडित वायु

वायवीय सर्किट. वायु में दबाव होता है। साधारणतया इसकी अनुभूति हमें नहीं होती। यदि हमारे शरीर के किसी अंग से वायु निकाल ली जाए, तब वायु के दबाव की अनुभूति हमें सरलता से हो जाती है। समुद्रतल पर वायु के दबाव की मात्रा ७६० मिमी पारे से दाब के तुल्य होती है। जैसे जैसे हम वायु में ऊपर उठते हैं, तैसे तैसे दबाव कम होता जाता है। यहाँ तक कि कुछ पहाड़ के शिखरों पर दबाव की मात्रा प्रति वर्ग इंच 9 पाउंड भार तक पाई गई है। वायु को दबाया भी जा सकता है। दबाने से उसका दबाव बढ़ जाता है। ऐसी दबी हुई वायु का संपीडित वायु (compressed air) कहते हैं। दबाने की इस क्रिया का 'संपीडित करना' कहते हैं। संपीडन से वायु का आयतन कम हो जाता है और दबाव बढ़ जाता है। इस प्रकार वायु का दबाव काफी ऊँचा बढ़ाया जा सकता है। .

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संलय

खोखले दाँत में भरा '''संलय''' पारा तथा अन्य किसी धातु की मिलावट से बनी मिश्रधातु को संलय या संरस (amalgam) कहते हैं। केवल लोहे को छोड़कर प्राय: सभी धातुएँ पारे के साथ मिलकर मिश्रधातु बनाती हैं। कुछ समय पूर्व संरसों का व्यवहार स्वर्ण, चाँदी, जस्ता जैसी धातुओं में किया जाता था। दाँत के डाक्टरों द्वारा खोखले दाँत भरने के लिये भी संरसों का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है, किंतु अब अन्य अधिक उपयोगी साधनों के सुलभ होने के कारण संरसों का उपयोग कम होता जा रहा है। चाँदी, ताँबा, तथा राँगे की मिश्रधातु को पारे के साथ संरस बनाकर, दाँत भरने में प्रयुक्त किया जाता है। यह संरस दाँत के खोड़रे में दो मिनट में ही जमकर सख्त हो जाता है। संरस में मिले पारे की न्यूनता एवं अधिकता के अनुसार ही संरस तरल एवं ठोस होता है। संरस साधारणत: चार प्रकार से तैयार किया जा सकता है: (1) किसी धातु को पारे के साथ रगड़कर, (2) जिस धातु का संरस बनाना है उससे बना कैथोड (cathode) पारे के किसी लवण के विलयन में पारे का कैथोड डालकर सोडियम संरस बनाकर फिर उस संरस को पानी के साथ क्रिया कराकर, कॉस्टिक सोडा तैयार किया जाता है, (3) किसी धातु को केवल पारे के किसी लवण के साथ क्रिया कराकर, अथवा (4) किसी धातु के लवण के साथ पारे की क्रिया कराकर। रासायनिक क्रियाओं में संरसों का उपयोग अब भी काफी होता है। .

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संक्रमण धातु

परमाणु संख्या २१ से ३०, ३९ से ४८, ५७ से ८० और ८९ से ११२ वाले रासायनिक तत्त्व संक्रमण तत्व (transition elements/ट्राँज़िशन एलिमेंट्स) कहलाते हैं। चूँकि ये सभी तत्त्व धातुएँ हैं, इसलिये इनको संक्रमण धातु भी कहते हैं। इनका यह नाम आवर्त सारणी में उनके स्थान के कारण पड़ा है क्योंकि प्रत्येक पिरियड में इन तत्त्वों के d ऑर्बिटल में इलेक्ट्रान भरते हैं और 'संक्रमण' होता है। आईयूपीएसी (IUPAC) ने इनकी परिभाषा यह दी है- वे तत्त्व जिनका d उपकक्षा अंशतः भरी हो। इस परिभाषा के अनुसार, जस्ता समूह के तत्त्व संक्रमण तत्त्व नहीं हैं क्योंकि उनकी संरचना d10 है। .

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स्पेक्ट्रोस्कोपी

स्पेक्ट्रमिकी का सबसे सरल उदाहरण: श्वेत प्रकाश को प्रिज्म होकर ले जाने पर वह सात रंगों में बंट जाती है। स्पेक्ट्रमिकी, भौतिकी विज्ञान की एक शाखा है जिसमें पदार्थों द्वारा उत्सर्जित या अवशोषित विद्युत चुंबकीय विकिरणों के स्पेक्ट्रमों का अध्ययन किया जाता है और इस अध्ययन से पदार्थों की आंतरिक रचना का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इस शाखा में मुख्य रूप से वर्णक्रम का ही अध्ययन होता है अत: इसे स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रमविज्ञान (Spectroscopy) कहते हैं। मूलत: विकिरण एवं पदार्थ के बीच अन्तरक्रिया (interaction) के अध्ययन को स्पेक्ट्रमिकी या स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) कहा जाता था। वस्तुत: ऐतिहासिक रूप से दृष्य प्रकाश का किसी प्रिज्म से गुजरने पर अलग-अलग आवृत्तियों का अलग-अलग रास्ते पर जाना ही स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाता था। बाद में 'स्पेक्ट्रोस्कोपी' शबद के अर्थ का विस्तार हुआ। अब तरंगदैर्ध्य (या आवृत्ति) के फलन के रूप में किसी भी राशि का मापन स्पेक्ट्रोस्कोपी कहलाती है। इसकी परिभाषा का और विस्तार तब मिला जब उर्जा (E) को चर राशि के रूप में सम्मिलित कर लिया गया (क्योंकि पता चला कि उर्जा और आवृत्ति में सीधा सम्बन्ध है: E .

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सूजाक

सूजाक एक संक्रामक यौन रोग (यौन संचारित बीमारी (एसटीडी)) है। सूजाक नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु से होता है जो महिला तथा पुरुषों में प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं। उपदंश की तरह यह भी एक संक्रामक रोग है अतः उन्ही स्त्री-पुरुषों को होता है जो इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति से यौन संपर्क करते हैं। सूजाक रोग में चूँकि लिंगेन्द्रिय के अंदर घाव हो जाता है और इससे पस निकलता है अतः इसे हिंदी में 'पूयमेह ', औपसर्गिक पूयमेह और ' परमा ' कहते हैं और अंग्रेजी भाषा में गोनोरिया (gonorrhoea) कहते हैं.

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होम्योपैथी

thumb होम्योपैथी, एक चिकित्सा पद्धति है। होम्‍योपैथी चिकित्‍सा विज्ञान के जन्‍मदाता डॉ॰ क्रिश्चियन फ्राइडरिक सैम्यूल हानेमान है। यह चिकित्सा के 'समरूपता के सिंद्धात' पर आधारित है जिसके अनुसार औषधियाँ उन रोगों से मिलते जुलते रोग दूर कर सकती हैं, जिन्हें वे उत्पन्न कर सकती हैं। औषधि की रोगहर शक्ति जिससे उत्पन्न हो सकने वाले लक्षणों पर निर्भर है। जिन्हें रोग के लक्षणों के समान किंतु उनसे प्रबल होना चाहिए। अत: रोग अत्यंत निश्चयपूर्वक, जड़ से, अविलंब और सदा के लिए नष्ट और समाप्त उसी औषधि से हो सकता है जो मानव शरीर में, रोग के लक्षणों से प्रबल और लक्षणों से अत्यंत मिलते जुलते सभी लक्षण उत्पन्न कर सके। होमियोपैथी पद्धति में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोगलक्षणों को सुनकर उसी प्रकार के लक्षणों को उत्पन्न करनेवाली औषधि का चुनाव करना है। रोग लक्षण एवं औषधि लक्षण में जितनी ही अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। चिकित्सक का अनुभव उसका सबसे बड़ा सहायक होता है। पुराने और कठिन रोग की चिकित्सा के लिए रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। कुछ होमियोपैथी चिकित्सा पद्धति के समर्थकों का मत है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष की वृद्धि है। होमियोपैथी चिकित्सकों की धारणा है कि प्रत्येक जीवित प्राणी हमें इंद्रियों के क्रियाशील आदर्श (Êfunctional norm) को बनाए रखने की प्रवृत्ति होती है औरे जब यह क्रियाशील आदर्श विकृत होता है, तब प्राणी में इस आदर्श को प्राप्त करने के लिए अनेक प्रतिक्रियाएँ होती हैं। प्राणी को औषधि द्वारा केवल उसके प्रयास में सहायता मिलती है। औषधि अल्प मात्रा में देनी चाहिए, क्योंकि बीमारी में रोगी अतिसंवेगी होता है। औषधि की अल्प मात्रा प्रभावकारी होती है जिससे केवल एक ही प्रभाव प्रकट होता है और कोई दुशपरिणाम नहीं होते। रुग्णावस्था में ऊतकों की रूपांतरित संग्राहकता के कारण यह एकावस्था (monophasic) प्रभाव स्वास्थ्य के पुन: स्थापन में विनियमित हो जाता है। विद्वान होम्योपैथी को छद्म विज्ञान मानते हैं। .

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ईविंग लैंगम्यूर

ईविंग लैंगम्यूर (Irving Langmuir; 31 जनवरी, 1881 – 16 अगस्त, 1957) अमेरिका के रसायनज्ञ और भौतिकशास्तरी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध प्रकाशन "परमाणुओं तथा अणुओं में इलेक्ट्रानों का विन्यास" (The Arrangement of Electrons in Atoms and Molecules) था जो १९१९ में प्रकाशित हुआ था।) ईविंग लैंगम्यूर का जन्म सन् १८८१ में, ब्रूकलिन (Brooklyn) में हुआ था। इन्होंने कोलंबिया के खानों के स्कूल से एम.ई. की तथा गटिंजेन विश्वविद्यालय ((Gottingen Univ) से पी.एच.डी.

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घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक

घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक, जिसका बाहरी आवरण हटा दिया गया है। घूर्णाक्षस्थापी दिक्सूचक या घूर्णाक्ष दिक्सूचक (gyrocompass) एक ऐसा दिक्सूचक है जो चुम्बकीय सुई का उपयोग नहीं करता बल्कि एक तेज गति से घूमने वाली डिस्क तथा पृथ्वी की घूर्णन गति पर आधारित है। जलयानों के चालन में घूर्णाक्ष दिक्सूचकों का खूब उपयोग होता है क्योंकि चुम्बकीय दिक्सूचक की तुलना में इसके दो प्रमुख लाभ हैं- .

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विद्युत-मापी

विद्युत-मापी (Electricity meters) या 'ऊर्जामापी' सामान्यत: उन सभी उपकरणों को कहा जाता है विद्युत ऊर्जा का माप करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। विद्युत-मापी प्रायः किलोवाट-घण्टा (kWh) में अंशांकित (कैलिब्रेटेड) होते हैं। कुछ विद्युत् मापी विशेष कार्यों के लिए व्यवस्थित होते हैं, जैसे महत्तम माँग संसूचक (Maximum Demand indicator), जिसमें मीटर के साथ ऐसा काल अंशक होता है जो निश्चित अवधि में अधिकतम ऊर्जा का निर्देश करे। कुछ विद्युत-मापी ऐसे भी होते हैं जो महत्तम लोड (पीकलोड) के समय में स्वयं लोड को काट दें। .

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विशिष्ट ऊष्मा धारिता

यह एक सामान्य अनुभव है कि किसी वस्तु का ताप बढ़ाने के लिये उसे उष्मा देनी पड़ती है। किन्तु अलग-अलग पदार्थों की समान मात्रा का ताप समान मात्रा से बढ़ाने के लिये अलग-अलग मात्रा में उष्मा की जरूरत होती है। किसी पदार्थ की इकाई मात्रा का ताप एक डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक उष्मा की मात्रा को उस पदार्थ का विशिष्ट उष्मा धारिता (Specific heat capacity) या केवल विशिष्ट उष्मा कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि जिस पदार्थ की विशिष्ट उष्मा अधिक होगी उसे गर्म करने के लिये अधिक उष्मा की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिये, शीशा (लेड) का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये जितनी उष्मा लगती है उससे आठ गुना उष्मा एक किलोग्राम मग्नीशियम का ताप १ डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिये आवश्यक होती है। किसी भी पदार्थ की विशिष्ट उष्मा मापी जा सकती है। .

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खनिजों की सूची

यहाँ खनिजों की सूची दी गयी है। .

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गलनीय धातु

कुछ मिश्रधातुएँ, जो सरलता से निम्न ताप पर ही पिघल जाती हैं, गलनीय धातु (Fusible alloy) कही जाती हैं। ऐसी मिश्रधातुओं में साधारणतया बिस्मथ, बंग, सीस, कैडमियम या पारा रहते हैं। वंग, सीस अथवा इनसे प्राप्त मिश्रधातुओं में विशेष अनुपात में विस्मथ मिलाने से गलनांक कम हो जाता है। ऐसी कुछ तृतीयक (Ternary) धातुओं का गलनांक पानी के उबलने के ताप से भी कम है। न्यूटन की धातु (Newton's metal), जिसमें 50% विस्मथ के साथ 31.25 % सीस तथा 18.75% वंग रहता है, 98 से.

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ऑक्सीजन

ऑक्सीजन या प्राणवायु या जारक (Oxygen) रंगहीन, स्वादहीन तथा गंधरहित गैस है। इसकी खोज, प्राप्ति अथवा प्रारंभिक अध्ययन में जे.

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आपेक्षिक घनत्व

किसी वस्तु का आपेक्षिक घनत्व (Relative density) या विशिष्ट घनत्व (specific gravity) उसके घनत्व को किसी 'सन्दर्भ पदार्थ' के घनत्व से भाग देने से प्राप्त होता है। प्रायः दूसरे पदार्थों का घनत्व जल के घनत्त्व के सापेक्ष व्यक्त किया जाता है। उदाहरण के लिये बर्फ का आपेक्षिक घनत्व 0.91 है जिसका अर्थ है कि बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व का 0.91 गुना होता है। आधुनिक वैज्ञानिक साहित्य में 'विशिष्ट घनत्व' की अपेक्षा 'आपेक्षिक घनत्व' का अधिक प्रयोग किया जा रहा है। .

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आवर्त सारणी के नमूने

नमूनों द्वारा प्रदर्शित रासायनिक तत्व, जिन्हें परमाणु अंक से क्रमबद्ध किया गया है। इन रासायनिक तत्वों के बारे में अधिक जानकारी के लिये उनके लेखों पर जायें। .

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इटली

इटली यूरोप महाद्वीप के दक्षिण में स्थित एक देश है जिसकी मुख्यभूमि एक प्रायद्वीप है। इटली के उत्तर में आल्प्स पर्वतमाला है जिसमें फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया तथा स्लोवेनिया की सीमाएँ आकर लगती हैं। सिसली तथा सार्डिनिया, जो भूमध्य सागर के दो सबसे बड़े द्वीप हैं, इटली के ही अंग हैं। वेटिकन सिटी तथा सैन मरीनो इटली के अंतर्गत समाहित दो स्वतंत्र देश हैं। इटली, यूनान के बाद यूरोप का दूसरा का दूसरा प्राचीनतम राष्ट्र है। रोम की सभ्यता तथा इटली का इतिहास देश के प्राचीन वैभव तथा विकास का प्रतीक है। आधुनिक इटली 1861 ई. में राज्य के रूप में गठित हुआ था। देश की धीमी प्रगति, सामाजिक संगठन तथा राजनितिक उथल-पुथल इटली के 2,500 वर्ष के इतिहास से संबद्ध है। देश में पूर्वकाल में राजतंत्र था जिसका अंतिम राजघराना सेवाय था। जून, सन् 1946 से देश एक जनतांत्रिक राज्य में परिवर्तित हो गया। इटली की राजधानी रोम प्राचीन काल के एक शक्ति और प्रभाव से संपन्न रोमन साम्राज्य की राजधानी रहा है। ईसा के आसपास और उसके बाद रोमन साम्राज्य ने भूमध्य सागर के क्षेत्र में अपनी प्रभुता स्थापित की थी जिसके कारण यह संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में आधुनिक यूरोप की आधारशिला के तौर पर माना जाता है। तथा मध्यपूर्व (जिसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में मध्य-पश्च भी कह सकते हैं) के इतिहास में भी रोमन साम्राज्य ने अपना प्रभाव डाला था और उनसे प्रभावित भी हुआ था। आज के इटली की संस्कृति पर यवनों (ग्रीक) का भी प्रभाव पड़ा है। इटली की जनसंख्या २००८ में ५ करोड़ ९० लाख थी। देश का क्षेत्रफल ३लाख वर्ग किलोमीटर के आसपास है। १९९१ में यहाँ की सरकार के शीर्ष पदस्थ अधिकारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हुआ जिसके बाद यहाँ की राजनैतिक सत्ता और प्रशासन में कई बदलाव आए हैं। रोम यहाँ की राजधानी है और अन्य प्रमुख नगरों में वेनिस, मिलान इत्यादि का नाम लिया जा सकता है। .

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इलैक्ट्रॉन आवरण

इलेक्ट्रॉन आवरण सहित आवर्त सारणी इलेक्ट्रॉन आवरण (अंग्रेज़ी:Electron Orbital) किसी परमाणु के नाभि की कक्षा में घूमते इलेक्ट्रॉन की कक्षा होती हैं। ये नाभि के किनारे स्थित एक के ऊपर एक चढ़े आवरणों की भांति सोचे जा सकते हैं। प्रत्येक आवरण में एक निश्चित संख्या में इलेक्ट्रॉन ही उपस्थित रह सकते हैं, अतः प्रत्येक आवरण एक विशिष्ट इलेक्ट्रॉन ऊर्जा से संबद्ध होते हैं। प्रत्येक आवरण को इलेक्ट्रॉनों से भरा होना चाहिये, इससे पहले कि उससे अगला आवरण भरना आरंभ हो। सबसे बाहरी आवरण में उपस्थित इलेक्ट्रॉन ही उस तत्त्व के गुण निश्चित करते हैं और वैलेन्स इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं। इलेक्ट्रॉन आवरण में इलेक्ट्रॉन व्यवस्था देखने के लिये इलेक्ट्रॉन विन्यास देखें। .

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कंठमाला

कंठमाला लसीका ग्रंथियों का एक चिरकारी रोग (chronic disease) है। इसमें गले की ग्रंथियाँ बढ़ जाती हैं और उनकी माला सी बन जाती है इसलिए उसे कंठमाला कहते हैं। आयुर्वेद में इसका वर्णन 'गंडमाला' तथा 'अपची' दो नाम से उपलब्ध है, जिन्हें कंठमाला के दो भेद या दो अवस्थाएँ भी कह सकते हैं। .

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अतिचालकता

सामान्य चालकों तथा अतिचालकों में ताप के साथ प्रतिरोधकता का परिवर्तन जब किसी मैटेरियल को 0°k तक ठंडा किया जाता है तो उसका प्रतिरोध पूर्णतः शून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करते हैं। उनके इस गुण को अतिचालकता (superconductivity) कहते हैं। शून्य प्रतिरोधकता के अलावा अतिचालकता की दशा में पदार्थ के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है जिसे मेसनर प्रभाव (Meissner effect) के नाम से जाना जाता है। सुविदित है कि धात्विक चालकों की प्रतिरोधकता उनका ताप घटाने पर घटती जाती है। किन्तु सामान्य चालकों जैसे ताँबा और चाँदी आदि में, अशुद्धियों और दूसरे अपूर्णताओं (defects) के कारण एक सीमा के बाद प्रतिरोधकता में कमी नहीं होती। यहाँ तक कि ताँबा (कॉपर) परम शून्य ताप पर भी अशून्य प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। इसके विपरीत, अतिचालक पदार्थ का ताप क्रान्तिक ताप से नीचे ले जाने पर, इसकी प्रतिरोधकता तेजी से शून्य हो जाती है। अतिचालक तार से बने हुए किसी बंद परिपथ की विद्युत धारा किसी विद्युत स्रोत के बिना सदा के लिए स्थिर रह सकती है। अतिचालकता एक प्रमात्रा-यांत्रिक दृग्विषय (quantum mechanical phenomenon.) है। अतिचालक पदार्थ चुंबकीय परिलक्षण का भी प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इन सबका ताप-वैद्युत-बल शून्य होता है और टामसन-गुणांक बराबर होता है। संक्रमण ताप पर इनकी विशिष्ट उष्मा में भी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है। यह विशेष उल्लेखनीय है कि जिन परमाणुओं में बाह्य इलेक्ट्रॉनों की संख्या 5 अथवा 7 है उनमें संक्रमण ताप उच्चतम होता है और अतिचालकता का गुण भी उत्कृष्ट होता है। .

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अधातु

अधातु (non-metals) रासायनिक वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला एक शब्द है। आवर्त सारणी का प्रत्येक तत्व अपने रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर धातु अथवा अधातु श्रेणी में वर्गीकृत किया जा सकता है। (कुछ तत्व जिनमें दोनों के गुण पाये जाते हैं उन्हें उपधातु (metaloid) की श्रेणी में रखा जाता है।) आवर्त सारणी में ये १४वें (XIV) से लेकर १८वें (XVIII) समूह में दाहिने-ऊपरी कोने में स्थित हैं। इसके अलावा प्रथम समूह में सबसे उपर स्थित उदजन भी अधातु है। हाइड्रोजन के अलावा जारक, प्रांगार, भूयाति, गंधक, भास्वर, हैलोजन, तथा अक्रिय गैसें अधातु मानी जाती हैं। प्रायः आवर्त सारणी के केवल 18 तत्व अधातु की श्रेणी में गिने जाते हैं जबकि धातु की श्रेणी में 80 से भी अधिक तत्व आते हैं। फिर भी पृथ्वी के गर्भ का, वायुमण्डल और जलमण्डल का अधिकांश भाग अधातुएँ ही हैं। जीवों की संरचना में भी अधातुओं का ही अधिकांशता है। .

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अन्वेषणों की समय-रेखा

यहाँ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण तकनीकी खोजों की समय के सापेक्ष सूची दी गयी है। .

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अयस्क

लोहे का एक अयस्क उन शैलों को अयस्क (ore) कहते हैं जिनमें वे खनिज हों जिनमें कोई धातु आदि महत्वपूर्ण तत्व हों। अयस्कों को खनन करके बाहर लाया जाता है; फिर इनका शुद्धीकरण करके महत्वपूर्ण तत्व प्राप्त किये जाते हैं। .

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अल्फ़ा ऐन्ड्रौमिडे तारा

अल्फ़ा ऐन्ड्रौमिडे देवयानी तारामंडल में अल्फ़ा ऐन्ड्रौमिडे का स्थान अल्फ़ा ऐन्ड्रौमिडे, जिसका बायर नाम भी यही (α Andromedae या α And) है, देवयानी तारामंडल का सब से रोशन तारा है और पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ५४वाँ सब से रोशन तारा है। यह हमसे ९७ प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित है और पृथ्वी से इसका औसत सापेक्ष कांतिमान (यानि चमक का मैग्निट्यूड) २.०६ है। पृथ्वी से एक दिखने वाला यह तारा वास्तव में एक द्वितारा है जिसके दो तारे एक-दूसरे से बहुत कम दूरी पर एक-दूसरे की परिक्रमा कर रहे हैं। इनमें से ज़्यादा रोशन तारे के वातावरण विचित्र है: उसमें बहुत अधिक मात्रा में पारा और मैंगनीज़ पाए गए हैं और वह सब से रोशन ज्ञात पारा-मैंगनीज़ तारा है।See §4 for component parameters and Table 3, §5 for elemental abundances in .

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अल्मादेन

अल्मादेन एक शहर और नगरपालिका है जो स्पेन के स्वायत्त समुदाय कास्तील-ला मांचा के सूबे सिउदाद रियाल में सथित है। यह कस्बा समुंदरी तट से 589 मीटर की ऊचाई पर सथित है। यह मद्रीद से लगभग 300 की दूरी पर है। नाम अल्मादेन अरबी शब्द المعدن से लिया गया है, जिसका अर्थ है "खान"(mine)। अल्मादेन से संसार में से सभ से अधिक पारा प्राप्त होता है। यहाँ से पिछले 2000 सालों में 250,000 मीटर टन प्राप्त हो चुका है। .

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उत्कृष्‍ट धातु

रसायन विज्ञान में उत्कृष्ट धातुएँ या राज धातुएँ (noble metals) वे धातुएँ हैं जिनका आर्द्र वायु के सम्पर्क में रहने के बावजूद क्षरण और ऑक्सीकरण बहुत कम होता है। रजत, स्वर्ण, प्लैटिनम, रोडियम, पैलेडियम आदि प्रमुख उत्कृष्ट धातुएँ हैं। .

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उष्णकटिबंधीय चक्रवात

इसाबेल तूफान (2003) के रूप में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के 7 अभियान के दौरान कक्षा से देखा. आंख, आईव़ोल और आसपास के उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की विशेषता rainbands स्पष्ट रूप से कर रहे हैं अंतरिक्ष से इस दृश्य में दिखाई देता है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात एक तूफान प्रणाली है जो एक विशाल निम्न दबाव केंद्र और भारी तड़ित-झंझावातों द्वारा चरितार्थ होती है और जो तीव्र हवाओं और घनघोर वर्षा को उत्पन्न करती है। उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति तब होती है जब नम हवा के ऊपर उठने से गर्मी पैदा होती है, जिसके फलस्वरूप नम हवा में निहित जलवाष्प का संघनन होता है। वे अन्य चक्रवात आंधियों जैसे नोर'ईस्टर, यूरोपीय आंधियों और ध्रुवीय निम्न की तुलना में विभिन्न ताप तंत्रों द्वारा उत्पादित होते है, अपने "गर्म केंद्र" आंधी प्रणाली के वर्गीकरण की ओर अग्रसर होते हुए.

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1 E12 वर्ग मीटर

मिस्र लगभग १०,००,००० वर्ग कि.मी.2. विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के परिमाण के क्रम समझने हेतु यहां १०,००,००० वर्ग कि॰मी॰ से १,००,००,००० वर्ग कि॰मी॰ के क्षेत्र दिये गए हैं।.

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

Hg, Mercury (element), पारदः, पारे, मर्करी

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