लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
मुक्त
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

पटसन

सूची पटसन

जूट (पटसन) के पौधे (''कॉर्कोरस ओलिटोरिअस (Corchorus olitorius)'' तथा ''कॉर्कोरस कैप्सुलारिस (Corchorus capsularis)'') पटसन, पाट या पटुआ एक द्विबीजपत्री, रेशेदार पौधा है। इसका तना पतला और बेलनाकार होता है। इसके तने से पत्तियाँ अलग कर पानी में गट्ठर बाँधकर सड़ने के लिए डाल दिया जाता है। इसके बाद रेशे को पौधे से अलग किया जाता है। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है। 'जूट' शब्द संस्कृत के 'जटा' या 'जूट' से निकला समझा जाता है। यूरोप में 18वीं शताब्दी में पहले-पहल इस शब्द का प्रयोग मिलता है, यद्यपि वहाँ इस द्रव्य का आयात 18वीं शताब्दी के पूर्व से "पाट" के नाम से होता आ रहा था। .

6 संबंधों: नवद्वीप, पादप रोगविज्ञान, पाकिस्तान का राजप्रतीकचिन्ह, लिनेन, जूट, कालीन

नवद्वीप

नवद्वीप (নবদ্বীপ) भारत के पश्चिमी बंगाल प्रदेश में नदिया जिले में भागीरथी और जलांगी नदियों के संगम पर कृष्णनगर से आठ मील पश्चिम में स्थित प्रसिद्ध नगर है। यह हिंदुओं का एक तीर्थस्थान है। १४८५ ई. में चैतन्य महाप्रभु का जन्म यहीं हुआ था। १२वीं शताब्दी में सेनवंश के राज्य की राजधानी थी। इस नगर को पहले 'नदिया' कहा जाता था। यहाँ वर्ष भर तीर्थयात्री आया करते हैं। .

नई!!: पटसन और नवद्वीप · और देखें »

पादप रोगविज्ञान

'''चूर्णिल आसिता''' (Powdery mildew) का रोग एक बायोट्रॉफिक कवक के कारण होता है कृष्ण विगलन (ब्लैक रॉट) रोगजनक का जीवनचक्र पादप रोगविज्ञान या फायटोपैथोलोजी (plant pathology या phytopathology) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक के तीन शब्दों जैसे पादप, रोग व ज्ञान से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ है "पादप रोगों का ज्ञान (अध्ययन)"। अत: पादप रोगविज्ञान, कृषि विज्ञान, वनस्पति विज्ञान या जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत रोगों के लक्ष्णों, कारणों, हेतु की, रोगचक्र, रागों से हानि एवं उनके नियंत्रण का अध्ययन किया जाता हैं। .

नई!!: पटसन और पादप रोगविज्ञान · और देखें »

पाकिस्तान का राजप्रतीकचिन्ह

पाकिस्तान के राजप्रतीकचिन्ह को सन १९५४ में पाकिस्तान सरकार द्वारा अपनाया गया था। इस चिन्ह को मूल रूप से कुल चिन्ह के रूप में वर्गित किया जा सकता है(उदाहरणस्वरूप: भारत का राष्ट्रप्रतीकचिन्ह एक ऐतिहासिक स्तम्भमुकुट है)। यह पाकिस्तानी गणराज्य के आदर्शों को, उस्की वैचाराक नीव को, उस्की अर्थव्यवस्था के मूल्यों को एवं पाकिस्तान की सांस्कृतिक धरोहर और मार्गदर्शक सिद्धांतों को दर्शाता है। इसे पाकिस्तान सरकार के चिन्ह के रूप में भी उपयोग किया जाता है। इस चिन्ह के मुख्य रूप से चार घटक अंग हैं.

नई!!: पटसन और पाकिस्तान का राजप्रतीकचिन्ह · और देखें »

लिनेन

किनारों के आसपास धागा की कढ़ाई के साथ एक लिनन का रूमाल डेड सी के पास से बरामाद कोरान केव 1 से प्राप्त एक लेनिन का कपड़ा. लिनेन सन के पौधे लिनम यूज़ीटेटीसीमम के रेशों से बना एक कपड़ा है। लिनेन का निर्माण श्रम-साध्य है, लेकिन जब इसके वस्त्र तैयार हो जाते हैं तो गर्मियों के मौसम में इसकी असाधारण ठंडक एवं ताजगी के लिए इसकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। लिनेन की बुनावट वाले कपड़ों को भी मोटे तौर पर "लिनेन" के रूप में संदर्भित किया जाता है, भले ही वे कपास, सन या सन के अतिरिक्त अन्यान्य रेशों से बने हों.

नई!!: पटसन और लिनेन · और देखें »

जूट

पटसन का खेत जूट, पटसन और इसी प्रकार के पौधों के रेशे हैं। इसके रेशे बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है। 'जूट' शब्द संस्कृत के 'जटा' या 'जूट' से निकला समझा जाता है। यूरोप में 18वीं शताब्दी में पहले-पहल इस शब्द का प्रयोग मिलता है, यद्यपि वहाँ इस द्रव्य का आयात 18वीं शताब्दी के पूर्व से "पाट" के नाम से होता आ रहा था। जूट के रेशे साधारणतया छह से लेकर दस फुट तक लंबे होते हैं, पर विशेष अवस्थाओं में 14 से लेकर 15 फुट तक लंबे पाए गए हैं। तुरंत का निकाला रेशा अधिक मजबूत, अधिक चमकदार, अधिक कोमल और अधिक सफेद होता है। खुला रखने से इन गुणों का ह्रास होता है। जूट के रेशे का विरंजन कुछ सीमा तक हो सकता है, पर विरंजन से बिल्कुल सफेद रेशा नहीं प्राप्त होता। रेशा आर्द्रताग्राही होता है। छह से लेकर 23 प्रति शत तक नमी रेशे में रह सकती है। जूट की पैदावार, फसल की किस्म, भूमि की उर्वरता, अंतरालन, काटने का समय आदि, अनेक बातों पर निर्भर करते हैं। कैप्सुलैरिस की पैदावार प्रति एकड़ 10-15 मन और ओलिटोरियस की 15-20 मन प्रति एकड़ होती है। अच्छी जोताई से प्रति एकड़ 30 मन तक पैदावार हो सकती है। जूट के रेशे से बोरे, हेसियन तथा पैंकिंग के कपड़े बनते हैं। कालीन, दरियाँ, परदे, घरों की सजावट के सामान, अस्तर और रस्सियाँ भी बनती हैं। डंठल जलाने के काम आता है और उससे बारूद के कोयले भी बनाए जा सकते हैं। डंठल का कोयला बारूद के लिये अच्छा होता है। डंठल से लुगदी भी प्राप्त होती है, जो कागज बनाने के काम आ सकती है। .

नई!!: पटसन और जूट · और देखें »

कालीन

कालीन कालीन (अरबी: क़ालीन) अथवा गलीचा (फारसी: ग़लीच) उस भारी बिछावन को कहते हैं जिसके ऊपरी पृष्ठ पर आधारणत: ऊन के छोटे-छोटे किंतु बहुत घने तंतु खड़े रहते हैं। इन तंतुओं को लगाने के लिए उनकी बुनाई की जाती है, या बाने में ऊनी सूत का फंदा डाल दिया जाता है, या आधारवाले कपड़े पर ऊनी सूत की सिलाई कर दी जाती है, या रासायनिक लेप द्वारा तंतु चिपका दिए जाते हैं। ऊन के बदले रेशम का भी प्रयोग कभी-कभी होता है परंतु ऐसे कालीन बहुत मँहगे पड़ते हैं और टिकाऊ भी कम होते हैं। कपास के सूत के भी कालीन बनते हैं, किंतु उनका उतना आदर नहीं होता। कालीन की पीठ के लिए सूत और पटसन (जूट) का उपयोग होता है। ऊन के तंतु में लचक का अमूल्य गुण होने से यह तंतु कालीनों के मुखपृष्ठ के लिए विशेष उपयोगी होता है। फलस्वरूप जूता पहनकर भी कालीन पर चलते रहने पर वह बहुत समय तक नए के समान बना रहता है। ताने के लिए कपास की डोर का ही उपयोग किया जाता है, परंतु बाने के लिए सूत अथवा पटसन का। पटसन के उपयोग से कालीन भारी और कड़ा बनता है, जो उसका आवश्यक तथा प्रशंसनीय गुण है। अच्छे कालीनों में सूत की डोर के साथ पटसन का उपयोग किया जाता है। .

नई!!: पटसन और कालीन · और देखें »

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »