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नवद्वीप

सूची नवद्वीप

नवद्वीप (নবদ্বীপ) भारत के पश्चिमी बंगाल प्रदेश में नदिया जिले में भागीरथी और जलांगी नदियों के संगम पर कृष्णनगर से आठ मील पश्चिम में स्थित प्रसिद्ध नगर है। यह हिंदुओं का एक तीर्थस्थान है। १४८५ ई. में चैतन्य महाप्रभु का जन्म यहीं हुआ था। १२वीं शताब्दी में सेनवंश के राज्य की राजधानी थी। इस नगर को पहले 'नदिया' कहा जाता था। यहाँ वर्ष भर तीर्थयात्री आया करते हैं। .

20 संबंधों: चैतन्य महाप्रभु, नित्यानंद प्रभु, भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ, भारतचंद्र राय, भारतीय नैयायिक, भक्तिकाल के कवि, मायापुर, मुरारि गुप्त, राधाचरण गोस्‍वामी, लक्ष्मण सेन, लोकनाथ गोस्वामी, श्रीवास ठाकुर, षण्गोस्वामी, स्वरूप दामोदर, हिन्दू दर्शन, हुगली नदी, जीव गोस्वामी, वृन्दावनदास ठाकुर, गणेशप्रसाद वर्णी, गंगेश उपाध्याय

चैतन्य महाप्रभु

चैतन्य महाप्रभु (१८ फरवरी, १४८६-१५३४) वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनैतिक अस्थिरता के दिनों में हिंदू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया, जाति-पांत, ऊंच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी तथा विलुप्त वृंदावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अंतिम भाग वहीं व्यतीत किया। उनके द्वारा प्रारंभ किए गए महामंत्र नाम संकीर्तन का अत्यंत व्यापक व सकारात्मक प्रभाव आज पश्चिमी जगत तक में है। यह भी कहा जाता है, कि यदि गौरांग ना होते तो वृंदावन आज तक एक मिथक ही होता। वैष्णव लोग तो इन्हें श्रीकृष्ण का राधा रानी के संयोग का अवतार मानते हैं। गौरांग के ऊपर बहुत से ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनमें से प्रमुख है श्री कृष्णदास कविराज गोस्वामी विरचित चैतन्य चरितामृत। इसके अलावा श्री वृंदावन दास ठाकुर रचित चैतन्य भागवत तथा लोचनदास ठाकुर का चैतन्य मंगल भी हैं। .

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नित्यानंद प्रभु

नित्यानंद प्रभु (जन्म:१४७४) चैतन्य महाप्रभु के प्रथम शिष्य थे। इन्हें निताई भी कहते हैं। इन्हीं के साथ अद्वैताचार्य महाराज भी महाप्रभु के आरंभिक शिष्यों में से एक थे। इन दोनों ने निमाई के भक्ति आंदोलन को तीव्र गति प्रदान की। निमाई ने अपने इन दोनों शिष्यों के सहयोग से ढोलक, मृदंग, झाँझ, मंजीरे आदि वाद्य यंत्र बजाकर व उच्च स्वर में नाच-गाकर हरि नाम संकीर्तन करना प्रारंभ किया। नित्यानन्द जी का जन्म एक धार्मिक बंध्यगति (ब्राह्मण), मुकुंद पंडित और उनकी पत्नी पद्मावती के यहां १४७४ के लगभग वर्तमान पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के एकचक्र या चाका नामक छोटे से ग्राम में हुआ था। इनके माता-पिता, वसुदेव रोहिणी के तथा नित्यानंद बलराम के अवतार माने जाते हैं। बाल्यकाल में यह अन्य बालकों को लेकर कृष्णलीला तथा रामलीला किया करते थे और स्वयं सब बालकों को कुल भूमिका बतलाते थे। इससे सभा को आश्चर्य होता था कि इस बालक ने यह सारी कथा कैसे जानी। विद्याध्ययन में भी यह अति तीव्र थे और इन्हें 'न्यायचूड़ामणि' की पदवी मिली। यह जन्म से ही विरक्त थे। जब ये १२ वर्ष के ही थे माध्व संप्रदाय के एक आचार्य लक्ष्मीपति इनके गृह पर पधारे तथा इनके माता पिता से इस बालक का माँगकर अपने साथ लिवा गए। मार्ग में उक्त संन्यासी ने इन्हें दीक्षा मंत्र दिया और इन्हें सारे देश में यात्रा करने का आदेश देकर स्वयं अंतर्हित हो गए। नित्यानंद ने कृष्णकीर्तन करते हुए २० वर्षों तक समग्र भारत की यात्राएँ कीं तथा वृंदावन पहुँचकर वहीं रहने लगे। जब श्रीगौरांग का नवद्वीप में प्रकाश हुआ, यह भी संवत् १५६५ में नवद्वीप चले आए। यहाँ नित्यानंद तथा श्री गौरांग दोनों नृत्य कीर्तन कर भक्ति का प्रचार करने लगे। इनका नृत्य कीर्तन देखकर जनता मुग्ध हो जाती तथा 'जै निताई-गौर' कहती। नित्यानन्द के सन्यास ग्रहण करने का उल्लेख कहीं नहीं मिलता पर यह जो दंड कमंडलु यात्राओं में साथ रखते थे उसे यही कहकर तोड़ फेंका कि हम अब पूर्णकाम हो गए। यह वैष्णव संन्यासी थे। नवद्वीप में ही इन्होंने दो दुष्ट ब्राह्मणों जगाई-मधाई का उद्धार किया, जो वहाँ के अत्याचारी कोतवाल थे। जब श्री गौरांग ने सन्यास ले लिया वह उनके साथ शांतिपुर होते जगन्नाथ जी गए। कुछ दिनों बाद श्री गौरांग ने इन्हें गृहस्थ धर्म पालन करने तथा बंगाल में कृष्णभक्ति का प्रचार करने का आदेश दिया। यह गौड़ देश लौट आए। अंबिका नगर के सूर्यनाथ पंडित की दो पुत्रियों वसुधा देवी तथा जाह्नवी देवी से इन्होंने विवाह किया। इसके अनंतर खंडदह ग्राम में आकर बस गए और श्री श्यामसुंदर की सेवा स्थापित की। श्री गौरांग के अप्रकट होने के पश्चात् वसुधा देवी से एक पुत्र वीरचंद्र हुए जो बड़े प्रभावशाली हुए। संवत् १५९९ में नित्यानंद का तिरोधान हुआ औैर उनकी पत्नी जाह्नवी देवी तथा वीरचंद्र प्रभु ने बंगाल के वैष्णवों का नेतृत्व ग्रहण किया। .

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भारत के प्रमुख हिन्दू तीर्थ

भारत अनादि काल से संस्कृति, आस्था, आस्तिकता और धर्म का महादेश रहा है। इसके हर भाग और प्रान्त में विभिन्न देवी-देवताओं से सम्बद्ध कुछ ऐसे अनेकानेक प्राचीन और (अपेक्षाकृत नए) धार्मिक स्थान (तीर्थ) हैं, जिनकी यात्रा के प्रति एक आम भारतीय नागरिक पर्यटन और धर्म-अध्यात्म दोनों ही आकर्षणों से बंधा इन तीर्थस्थलों की यात्रा के लिए सदैव से उत्सुक रहा है। .

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भारतचंद्र राय

https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Bharathchandra_Ray.jpg मोटे अक्षरबंगाल में भारतचंद्र विद्यासुंदर (1712-1760) काव्यपरंपरा के श्रेष्ठ कवि हुए हैं। .

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भारतीय नैयायिक

न्याय दर्शन के विद्वान नैयायिक कहलाते हैं। ब्राह्मण न्याय (वैदिक न्याय), जैन न्याय और बौद्ध न्याय के अत्यंत सुप्रसिद्ध नैयायिक विद्वानों में निम्नलिखित हैं: .

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भक्तिकाल के कवि

भक्तिकाल में कृष्णभक्ति शाखा के अंतर्गत आने वाले प्रमुख कवि हैं - कबीरदास, संत शिरोमणि रविदास,तुलसीदास, सूरदास, नंददास, कृष्णदास, परमानंद दास, कुंभनदास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी, हितहरिवंश, गदाधर भट्ट, मीराबाई, स्वामी हरिदास, सूरदास-मदनमोहन, श्रीभट्ट, व्यास जी, रसखान, ध्रुवदास तथा चैतन्य महाप्रभु। .

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मायापुर

मायापुर (মায়াপুর) पश्चिम बंगाल के नदिया जिला में गंगा नदी के किनारे, उसके जलांगी नदी से संगम के बिंदु पर बसा हुआ एक छोटा सा शहर है। यह नवद्वीप के निकट है। यह कोलकाता से १३० कि॰मी॰ उत्तर में स्थित है। यह हिन्दू धर्म के गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के लिए अति पावन स्थल है। यहां उनके प्रवर्तक श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म हुआ था। इन्हें श्री कृष्ण एवं श्री राधा का अवतार माना जाता है। यहां लाखों श्रद्धालु तीर्थयात्री प्रत्येक वर्ष दशनों हेतु आते हैं। यहां इस्कॉन समाज का बनवाया एक मंदिर भी है। इसे इस्कॉन मंदिर, मायापुर कहते हैं। मायापुर में जलांगी नदी को नाव द्वारा पार करते हुए लोग भक्तिविनोद ठाकुर द्वारा १८८० में चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली पर निर्मित मंदिर श्रीला प्रभुपाद का समाधि मंदिर मायापुर अपने शानदार मन्दिरों के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। इन मन्दिरों में भगवान श्री कृष्णको समर्पित इस्कान मन्दिर प्रमुख है। मन्दिरों के अलावा पर्यटक यहां पर सारस्वत अद्वैत मठ और चैतन्य गौडिया मठ की यात्रा भी कर सकते हैं। होली के दिनों मे मायापुर की छटा देखने लायक होती है क्योंकि उस समय यहां पर भव्य रथयात्रा आयोजित की जाती है। यह रथयात्रा आपसी सौहार्द और भाईचारे का प्रतीक मानी जाती है। Jai shri krishna .

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मुरारि गुप्त

मुरारि गुप्त चैतन्य महाप्रभु के प्रम भक्त थे। इनका जन्म श्रीहट्ट में वैद्य वंश में हुआ था और इनके परिवार वाले वहाँ से नवद्वीप आकर श्री गौरांग के पड़ोस में बस गये। यह श्री गोरांग के बाल्यबंधु तथा सहपाठी थे। इन्होंने संस्कृत काव्य ग्रंथ 'चैतन्यचरितामृत' में इस सबका वर्णन किया है। इस ग्रंथ के सिवा पदावली भी बनाई है तथा 'रामाष्टक' भी लिखा है। महाप्रभु के प्रति इनकी भक्ति अतुलनीय थी और श्री गौरांग भी इन पर अत्यंत स्नेह रखते थे। श्रेणी:भक्त कवि.

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राधाचरण गोस्‍वामी

राधाचरण गोस्‍वामी (२५ फरवरी १८५९ - १२ दिसम्बर १९२५) हिन्दी के भारतेन्दु मण्डल के साहित्यकार जिन्होने ब्रजभाषा-समर्थक कवि, निबन्धकार, नाटकरकार, पत्रकार, समाजसुधारक, देशप्रेमी आदि भूमिकाओं में भाषा, समाज और देश को अपना महत्वपूर्ण अवदान दिया। आपने अच्छे प्रहसन लिखे हैं। .

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लक्ष्मण सेन

राजा लक्ष्मण सेन (बांग्ला: লক্ষ্মণ সেন) (1179 - 1206 ई) बंगाल के सेन राजवंश के चौथे शासक और एकीकृत बंगाल के आखिरी हिंदू शासक थे। अपने पूर्ववर्ती बल्लाल सेन से प्रभार लेने के बाद लक्ष्मण सेन ने सेना साम्राज्य का विस्तार असम, उड़ीसा, बिहार और शायद वाराणसी तक किया। उनकी राजधानी नवद्वीप थी। श्रेणी:बंगाल का इतिहास श्रेणी:सेन राजवंश के राजा.

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लोकनाथ गोस्वामी

लोकनाथ गोस्वामी गैड़ीय वैष्णव सन्त थे। उनका जन्म यशोहर (जैसोर) के तालखडि ग्राम में सं.

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श्रीवास ठाकुर

श्रीवास ठाकुर, चैतन्य महाप्रभु के निकटतम सहयोगी तथा 'पंचतत्त्व' में से एक हैं। श्रीवास ठाकुर के माता-पिता श्रीहद से नवद्वीप में आ बसे थे। यहीं संवत् १५१० में इनका जन्म हुआ। ये आरंभ में निष्ठुर, नास्तिक तथा दंभी थे पर स्वप्न में प्रेरणा प्राप्त कर भक्त हो गए। श्री गौरांग ने इन्हें तथा इनके परिवार को प्रत्यक्ष अवतारी महाभावावेश का दर्शन दिया था और एक वर्ष इनके गृह पर रहकर भक्ति का प्रचार किया। श्री गौरांग के कृष्णलीलाभिनय में इन्होंने नारद जी की भूमिका ग्रहण की थी। श्री गौरांग के पुरी चले जाने पर यह श्रीहद चले गए और वहाँ भक्तिकीर्तन का प्रचार किया। १५९० में श्रीगौर के अंतर्धान होने पर यह भी अंतर्हित हो गए। श्रेणी:गौडीय सन्त.

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षण्गोस्वामी

वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः शिष्य थे। इन्हें ही षण्गोस्वामी कहा गया। ये इस प्रकार हैं। .

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स्वरूप दामोदर

स्वरूप दामोदर गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के सहाध्यायी और परम मित्र थे। इनके पिता पद्मगर्भाचार्य थे। इनका जन्म नवद्वीप में सं.

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हिन्दू दर्शन

हिन्दू धर्म में दर्शन अत्यन्त प्राचीन परम्परा रही है। वैदिक दर्शनों में षड्दर्शन अधिक प्रसिद्ध और प्राचीन हैं। .

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हुगली नदी

हुगली (बांग्ला - হুগলী) भारत की एक नदी है। .

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जीव गोस्वामी

जीव गोस्वामी की प्रतिमा श्री जीव गोस्वामी (१५१३-१५९८), वृंदावन में चैतन्य महाप्रभु द्वारा भेजे गए छः षण्गोस्वामी में से एक थे। उनकी गणना गौड़ीय सम्प्रदाय के सबसे महान दार्शनिकों एवं सन्तों में होती है। उन्होने भक्ति योग, वैष्णव वेदान्त आदि पर अनेकों ग्रंथों की रचना की। वे दो महान सन्तों रूप गोस्वामी एवं सनातन गोस्वामी के भतीजे थे। इनका जन्म श्री वल्लभ अनुपम के यहां १५३३ ई० (तद.१४५५ शक. भाद्रपद शुक्ल द्वादशी को हुआ था। श्री सनातन गोस्वामी, श्री रूप गोस्वामी तथा श्री वल्लभ, ये तीनों भाई नवाब हुसैन शाह के दरबार में उच्च पदासीन थे। इन तीनों में से एक के ही संतान थी, श्री जीव गोस्वामी। बादशाह की सेवाओं के बदले इन लोगों को अच्छा भुगतान होता था, जिसके कारण इनका जीवन अत्यंत सुखमय था। और इनके एकमात्र पुत्र के लिए किसी वस्तु की कमी न थी। श्री जीव के चेहरे पर सुवर्ण आभा थी, इनकी आंखें कमल के समान थीं, व इनके अंग-प्रत्यंग में चमक निकलती थी। श्री गौर सुदर्शन के रामकेली आने पर श्री जीव को उनके दर्शन हुए, जबकि तब जीव एक छोटे बालक ही थे। तब महाप्रभु ने इनके बारे में भविष्यवाणी की कि यह बालक भविष्य में गौड़ीय संप्रदाय का प्रचारक व गुरु बनेगा। बाद में इनके पिता व चाचाओं ने महाप्रभु के सेवार्थ इनको परिवार में छोड़कर प्रस्थान किया। इन्हें जब भी उनकी या गौरांग के चरणों की स्मृति होती थी, ये मूर्छित हो जाते थे। बाद में लोगों के सुझाव पर ये नवद्वीप में मायापुर पहुंचे व श्रीनिवास पंडित के यहां, नित्यानंद प्रभु से भेंट की। फिर वे दोनों शची माता से भी मिले। फिर नित्य जी के आदेशानुसार इन्होंने काशी को प्रस्थान किया। वहां श्री रूप गोस्वामी ने इन्हें श्रीमद्भाग्वत का पाठ कराया। और अन्ततः ये वृंदावन पहुंचे। वहां इन्होंने एक मंदिर भी बनवाया। १५४० शक शुक्ल तृतीया को ८५ वर्ष की आयु में इन्होंने देह त्यागी। .

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वृन्दावनदास ठाकुर

वृन्दावनदास ठाकुर (1507-1589 ई) बंगला भाषा में चैतन्य भागवत नामक ग्रंथ के रचयिता हैं। यह ग्रन्थ चैतन्य महाप्रभु का जीवनचरित है। यह बंगला भाषा का आदि काव्य ग्रंथ माना जाता है। इनके पिता कुमारहद निवासी बैकुंठनाथ ठाकुर थे। नवद्वीप में सं.

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गणेशप्रसाद वर्णी

Kshullak Ganeshprasad Varni (हिन्दी:पूज्य 105 श्री गणेश प्रसाद वर्णी, गुजराती: શ્રી ૧૦૫ ક્ષુલ્લક ગણેશપ્રસાદ વર્ણી कन्नडमें:ಶ್ರೀ ೧೦೫ ಕ್ಷುಲ್ಲಕ ಗಣೆಶಪ್ರಸಾದ ವರ್ಣೀ) (1874 – 5 दिसंबर 1961) में से एक था मूलभूत आंकड़े आधुनिक भारतीय Digambara बौद्धिक परंपरा 20 वीं सदी के दौरान.

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गंगेश उपाध्याय

गंगेश उपाध्याय भारत के १३वी शती के गणितज्ञ एवं नव्य-न्याय दर्शन परम्परा के प्रणेता प्रख्यात नैयायिक थे। उन्होंने वाचस्पति मिश्र (९०० - ९८०) की विचारधारा को बढ़ाया। .

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