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न्यायवाद (चीनी दर्शनशास्त्र)

सूची न्यायवाद (चीनी दर्शनशास्त्र)

न्यायवाद (चीनी भाषा: 法家, फ़जिया; अंग्रेज़ी: Legalism, लीगलिज़म) प्राचीन चीनी इतिहास के झोऊ राजवंश के झगड़ते राज्यों के काल के सौ विचारधाराओं नामक दौर में प्रचलित एक विचारधारा थी। यह सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था पर केन्द्रित थी और जीवन के लक्ष्य और धार्मिक मामलों के साथ इसका ज़्यादा सरोकार नहीं था। शुरू में इस विचारधारा को उल्लेखित चिन राज्य के राजनेता शांग यांग (商鞅, Shang Yang, ३९०-३३८ ईसापूर्व) ने किया। इसे आगे सब से अधिक विकसित हान फ़ेईज़ी (मृत्यु २३३ ईपू) और ली सी (मृत्यु २०८ ईपू) ने किया। इनके अनुसार इंसान की मूल प्रकृति स्वार्थी है और इसे कभी बदला नहीं जा सकता। इसलिए समाज को सुव्यवस्थित रखने के लिए कड़े क़ानूनों की आवश्यकता है जिन्हें सख़्ती से लागू किया जाए। न्यायवादियों के लिए राष्ट्र और राज्य का हित नागरिकों के हित से बढ़कर है। इसलिए ज़रूरी है कि राज्य सम्पन्न और शक्तिशाली हो भले नागरिकों को कितना ही मुश्किल जीवन ही क्यों न जीना पड़े।, Zhongying Cheng, SUNY Press, 1991, ISBN 978-0-7914-0283-2,...

3 संबंधों: चिन राजवंश, सौ विचारधाराएँ, ग्रंथो को जलवाना और विद्वानों को दफनाना

चिन राजवंश

२१० ईसापूर्व में चिन साम्राज्य का नक़्शा चिन शि हुआंग (秦始皇) जो झगड़ते राज्यों के काल में चिन राज्य (秦国) के शासक और फिर पूरे चीन के पहले चिन राजवंश के सम्राट बने चिन राजवंश (चीनी:秦朝, चिन चाओ; अंग्रेज़ी: Qin Dynasty) प्राचीन चीन का एक राजवंश था जिसने चीन में २२१ ईसापूर्व से २०७ ईसापूर्व तक राज किया। चिन वंश शान्शी प्रांत से उभर कर निकला और इसका नाम भी उसी प्रांत का परिवर्तित रूप है। जब चिन ने चीन पर क़ब्ज़ा करना शुरू किया तब चीन में झोऊ राजवंश का केवल नाम मात्र का नियंत्रण था और झगड़ते राज्यों का काल चल रहा था। चिन राजवंश उन्ही झगड़ते राज्यों में से एक, चिन राज्य (秦国, चिन गुओ), से आया था। सबसे पहले चिन ने कमज़ोर झोऊ वंश को समाप्त किया और फिर बाक़ी के छह राज्यों को नष्ट कर के चीन का एकीकरण किया।, William Scott Morton, Charlton M. Lewis, McGraw-Hill Professional, 2005, ISBN 978-0-07-141279-7,...

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सौ विचारधाराएँ

कन्फ़्यूशियस ताओवादी दार्शनिक सौ विचारधाराएँ (सरल चीनी: 诸子百家, पारम्परिक चीनी: 諸子百家, झूज़ी बाईजिआ; अंग्रेज़ी: Hundred Schools of Thought) प्राचीन चीन में ७७० ईसापूर्व से २२१ ईसापूर्व के बसंत और शरद काल और झगड़ते राज्यों के काल में पनपने वाले दार्शनिकों और नई विचारधाराओं को कहते हैं। इसे युग को चीनी दर्शनशास्त्र का सुनहरा काल समझा जाता है। हालांकि इस समय में चीन में बहुत राजनैतिक अस्थिरता थी और बहुत से राज्य आपस में ख़ून-ख़राबे वाले युद्ध लड़ते रहते थे, फिर भी चीन का बुद्धिजीवी वातावरण बहुत आज़ाद था और चिंतन करने वालों को अपने विचार खुलकर प्रकट करने का बहुत अवसर मिलता था।, Lee Dian Rainey, John Wiley and Sons, 2010, ISBN 978-1-4051-8841-8,...

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ग्रंथो को जलवाना और विद्वानों को दफनाना

ग्रंथो को जलवाना और विद्वानों को दफनाना (चीनी: 焚書坑儒) यह वे घटनाएँ है जो चिन राजवंश के प्रथम सम्राट चिन शी हुआंग के शासन काल में घटी थी जिसमे सम्राट द्वारा कई ग्रंथो को जलवाया गया था और ४६० कुन्फ़्यूशिवादी विद्वानों को ज़िन्दा दफनाया गया था। सम्राट न्यायवादी थे और यह ग्रंथ सौ विचारधाराओ से संबंधित थी,जो की न्यायवाद के विचारो के विरुद्ध थी, यही कारण था की सम्राट ने इन पुस्तकों को जलवाने और विद्वानों को ज़िन्दा दफ़नाने का आदेश दिया था। कई विद्वान इन घटनाओ को काल्पनि मानते है और हान राजवंश के इतिहासकारों द्वारा चिन राजवंश को कलंकित करने का प्रयास मानते हैं। .

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