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देशज

सूची देशज

हिन्दी या इसकी उपभाषाओं में प्रयुक्त वैसे शब्द, जिनका जन्म स्थानीय तौर पर हुआ है। इनमें क्षेत्रीय बदलाव दिखाई देता है। जैसे- लोटा, थाली, सोंटा, गमछा आदि।.

5 संबंधों: बज्जिका, बज्जिका शब्दावली, हिन्दी, आदिवासी, अश्विनी कुमार पंकज

बज्जिका

बज्जिका मैथिली भाषा की उपभाषा है, जो कि बिहार के तिरहुत प्रमंडल में बोली जाती है। इसे अभी तक भाषा का दर्जा नहीं मिला है, मुख्य रूप से यह बोली ही है| भारत में २००१ की जनगणना के अनुसार इन जिलों के लगभग १ करोड़ १५ लाख लोग बज्जिका बोलते हैं। नेपाल के रौतहट एवं सर्लाही जिला एवं उसके आस-पास के तराई क्षेत्रों में बसने वाले लोग भी बज्जिका बोलते हैं। वर्ष २००१ के जनगणना के अनुसार नेपाल में २,३८,००० लोग बज्जिका बोलते हैं। उत्तर बिहार में बोली जाने वाली दो अन्य भाषाएँ भोजपुरी एवं मैथिली के बीच के क्षेत्रों में बज्जिका सेतु रूप में बोली जाती है। .

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बज्जिका शब्दावली

बज्जिका के मानक शब्दकोश का अच्छा विकास नहीं हुआ है। कुछ वर्ष पूर्व लेखक सुरेन्द्र मोहन प्रसाद द्वारा संपादित तथा अखिल भारतीय बज्जिका साहित्य सम्मेलन, मुजफ्फरपुर द्वारा सन २००० में प्रकाशित बज्जिका - हिन्दी शब्दकोष उपलब्ध है। बज्जिका की शब्दावली को मुख्यतः तीन वर्गों में रखा जा सकता है- तद्भव शब्द-- ये वैसे शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी बदलाव आया है। जैसे- भतार (भर्तार से), चिक्कन (चिक्कण से), आग (अग्नि से), दूध (दुग्ध से), दाँत (दंत से), मुँह (मुखम से)। तत्सम शब्द (संस्कृत से बिना कोई रूप बदले आनेवाले शब्द) का बज्जिका में प्रायः अभाव है। हिंदी और बज्जिका की सीमा रेखा चूँकि क्षीण है इसलिए हिंदी में प्रयुक्त होनेवाले तत्सम शब्द का प्रयोग बज्जिका में भी देखा जा सकता है। देशज शब्द--बज्जिका में प्रयुक्त होने वाले देशज शब्द लुप्तप्राय हैं। इसके सबसे अधिक उपयोगकर्ता गाँव में रहने वाले निरक्षर या किसान हैं। देशज का अर्थ है - जो देश में ही जन्मा हो। जो न तो विदेशी है और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो। ऐसा शब्द जो स्थानीय लोगों ने बोल-चाल में यों ही बना लिया गया हो। बज्जिका में ऐसे शब्दों को देशज के बजाय "मूल शब्द" भी कहा जा सकता है, जैसे- पन्नी (पॉलिथीन), फटफटिया (मोटर सायकिल), घुच्ची (छेद) आदि। विदेशज शब्द हिन्दी के समान बज्जिका में भी कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि भाषा से भी आये हैं, इन्हें विदेशज शब्द कह सकते हैं। वास्तव में बज्जिका में प्रयोग होने वाले विदेशज शब्द का तद्भव रूप ही प्रचलित है, जैसे-कौलेज, लफुआ (लोफर), टीशन (स्टेशन), गुलकोंच (ग्लूकोज़), सुर्खुरू (चमकते चेहरे वाला) आदि। हिन्दी के समान बज्जिका को भी देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। पहले इसे कैथी लिपि में भी लिखा जाता था। शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: हिंदी तथा उर्दू के शब्दों का प्रयोग होता है। फिर भी इसमें ऐसे शब्दों का इस्तेमाल प्रचलित है जिसका हिंदी में सामान्य प्रयोग नहीं होता। कुछ शब्दों की बानगी देखिए: संज्ञाएँ जैसे- सोंटा (डंडा), छेंहुकी (पतला छड़ी), चट्टी (चप्पल), कचकाड़ा (प्लास्टिक), चिमचिमी (पोलिथिन बैग), खटिया, ढ़िबरी (तेलवाली बत्ती), चुनौटी (तम्बाकूदान), बेंग (मेंढ़क), गमछा, इनार (कुँआ), अमदूर (अमरूद), सिंघारा (समोसा), चमेटा (थप्पड़), कपाड़ (सिर), नरेट्टी (गरदन), ठोड़ (होंठ), गाछी (पेड़), डांड़ (डाल या तना), सोंड़ (मूल जड़), भन्साघर (रसोई घर), आदि। विशेषण जैसे- लिच्चर (कंजूस एवं कपटी स्वभाव वाला), ख़चड़ा या खच्चड़ (बदमाश), ढ़हलेल (बेवकूफ), लतखोर (बार-बार गलती करने वाला), बकलेल (बेवकूफ), बुड़बक (निरा बेवकूफ), भितरघुन्ना (कम बोलने और ज्यादा सोचने वाला), साँवर (साँवला), गोर (गौरवर्ण), लफुआ (लोफर), पतरसुक्खा (दुबला-पतला आदमी), चमड़चिट्ट (पीछा न छोडनेवाला), थेथड़ (बार-बार गलती करने वाला), गोरकी (गोरी लड़की), पतरकी (दुबली लड़की) आदि। क्रियाएँ जैसे- अकबकाना (चौंकना), टरकाना (टालमटोल), कीनना (ख़रीदना), खिसियाना (गुस्सा करना), हँसोथना (जल्दी समेटना), भमोर लेना (मुँह से काट लेना), बकोटना (नाखून से नोंचना), लबड़-लबड़ (जल्दी जल्दी बात बनाना), ढ़ूंकना (प्रवेश करना), खिसियाना (गुस्सा करना), भुतलाना (खो जाना), बीगना (फेंकना), गोंतना (पानी में डुबाना), धड़फड़ाना (जल्दी के चक्कर में गिर जाना), मेहराना (नम होना), सरियाना (सँवारना), चपोड़ना (रोटी में घी उड़ेलना), सुतल (सोया हुआ), देखलिअई (देखा), बजाड़ना (पटकना), टटाना (दर्द करना), तीतना (भींग जाना), बियाना (पैदा होना), पोसना (लालन-पालन करना) आदि। संबंधवाचक शब्द: भतार (पति), जनानी (औरत/पत्नी), मेहरारू (बीवी), मरद (आदमी/ पति), मौगी (पराई औरत), धिया (बेटी), जईधी (बड़ी बहन की बेटी), कनियां (बहू/ नई दुल्हन), पुतोह (पतोहू), गोतनी (पति के भाई की पत्नी), देओर-भौजाई (देवर एवं भाभी), भाभो (भावज), भैंसुर (पति का बड़ा भाई), लौंडा (सयाना लड़का/समलीगिक), छौंड़ा एवं छौड़ी (लड़का एवं लड़की), आदि। खान-पान संबंधी शब्द: मिट्ठा (गुड़), नून (नमक), बूँट (चना), भात (चावल), सतुआ, मुड़ई (मूली), अलुआ (एक प्रकार का कंद), ऊंक्खी (ईख), रमतोरई (भिंडी), कोंहरा, झिंगुनी, कचड़ी (एक नमकीन), ठेकुआ (एक प्रकार का मीठा पकवान), पुरुकिया (गुझिया), कसार (चावल एवं चीनी से बना मिष्टान्न), गरी (नारियल का कोपरा), तरकारी (सब्जी), छुच्छा (बिना सब्जी के), जूठा, निरैठा (जो खाया नहीं गया हो), अज्जू (कच्चा फल), जुआईल (पका फल), चोखा (आग में पकाकर बनाई गई सब्जी), भरता (भुर्ता) आदि। कृषि-कार्य संबंधी शब्द: धूर, लग्गी, कट्ठा, बीघा (जमीन की पैमाईश के लिए बनी इकाई), सिराउर (हल जोतने के समय बनने वाली धारियाँ, सीता), क्यारी (जमीन का छोटा टुकड़ा), कदवा (धान के लिए खेत की तैयारी), बिच्चा (बिचड़ा), बाव (हल की सहायता से अनाज बोना), छिट्टा (छीटकर अनाज बोना), पटवन (सिंचाई), केरौनी (फसल से घास आदि निकालना), कटनी (फसल की कटाई), दौनी (तैयार फसल से अन्न निकालना), हर (हल), फार (फाल), पालो, जुआ, हेंगा (जमीन समतल करने के लिए), पैना (पतला डंडा), जाबी (जानवरों के मुँह बाँधने हेतु बनायी गयी जाली), जोर (जानवरों को बाँधने हेतु प्रयुक्त रस्सी), खूँटा, कुट्टी (महीन चारा), दर्रा या धोईन (जानवरों को दियाजाने वाला अन्नयुक्त पतला आहार), खरी (खल्ली), चुन्नी (अनाज का छिलका), गाछ या गाछी (पेड़), सोंड़ (मूल जड़), डांड़ (तना), बीया (बीज) आदि। कुछ अन्य शब्द जैसे- भिन्सारा (सुबह), अन्हार (अंधेरा), इंजोर (प्रकाश), ओसारा (बरामदा), अनठेकानी (बिना अनुमान के), तनीयक (थोड़ा), निम्मन (अच्छा/स्वादिष्ट), अउँघी (नींद), बहिर (बधिर), भकचोंधर, अखनिए (अभी), तखनिए (तभी), माथा (दिमाग), फैट (मुक्का), लूड़् (कला), गोईंठा, डेकची, फटफटिया (मोटरसायकिल), नूआ (साड़ी), अक्खटल (नहीं मानने योग्य), भुईयां (जमीन), गोर (पैर) आदि। गिनती/ संख्यावाचक/ मात्रात्मक शब्द एक, दू, तीन, चार, पाँच, छौ, सात, आठ, नौ, दस आदि। अंजुरी (हाथ के दोने में समाने लायक), सेर (लगभग ९०० ग्राम), पसेरी (५ सेर), मन (४० सेर), कट्टा (लगभग २५ सेर), कुंटल (क्विंटल, १०० किलो), बित्ता (अंगूठे से कनिष्ठा के छोड़ तक), डेग (पग भर), कोस (लगभग डेढ किलोमीटर की दूरी) आदि। श्रेणी:हिन्दी की उपभाषाएँ.

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हिन्दी

हिन्दी या भारतीय विश्व की एक प्रमुख भाषा है एवं भारत की राजभाषा है। केंद्रीय स्तर पर दूसरी आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। यह हिन्दुस्तानी भाषा की एक मानकीकृत रूप है जिसमें संस्कृत के तत्सम तथा तद्भव शब्द का प्रयोग अधिक हैं और अरबी-फ़ारसी शब्द कम हैं। हिन्दी संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। हालांकि, हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं है क्योंकि भारत का संविधान में कोई भी भाषा को ऐसा दर्जा नहीं दिया गया था। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है। हिन्दी और इसकी बोलियाँ सम्पूर्ण भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।http://www.ethnologue.com/language/hin 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२ करोड़ २० लाख लोगों ने हिन्दी को अपनी मूल भाषा बताया। भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983; मॉरीशस में ६,८५,१७०; दक्षिण अफ्रीका में ८,९०,२९२; यमन में २,३२,७६०; युगांडा में १,४७,०००; सिंगापुर में ५,०००; नेपाल में ८ लाख; जर्मनी में ३०,००० हैं। न्यूजीलैंड में हिन्दी चौथी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४ करोड़ १० लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिन्दी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिन्दी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिन्दी, विभिन्न भारतीय राज्यों की १४ आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग १ अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है। हिंदी हिंदी बेल्ट का लिंगुआ फ़्रैंका है, और कुछ हद तक पूरे भारत (आमतौर पर एक सरल या पिज्जाइज्ड किस्म जैसे बाजार हिंदुस्तान या हाफ्लोंग हिंदी में)। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी। 'देशी', 'भाखा' (भाषा), 'देशना वचन' (विद्यापति), 'हिन्दवी', 'दक्खिनी', 'रेखता', 'आर्यभाषा' (स्वामी दयानन्द सरस्वती), 'हिन्दुस्तानी', 'खड़ी बोली', 'भारती' आदि हिन्दी के अन्य नाम हैं जो विभिन्न ऐतिहासिक कालखण्डों में एवं विभिन्न सन्दर्भों में प्रयुक्त हुए हैं। .

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आदिवासी

ब्राजील के कयोपो (Kayapo tribe) आदिवासियों के मुखिया सामान्यत: "आदिवासी" (ऐबोरिजिनल) शब्द का प्रयोग किसी भौगोलिक क्षेत्र के उन निवासियों के लिए किया जाता है जिनका उस भौगोलिक क्षेत्र से ज्ञात इतिहास में सबसे पुराना सम्बन्ध रहा हो। परन्तु संसार के विभिन्न भूभागों में जहाँ अलग-अलग धाराओं में अलग-अलग क्षेत्रों से आकर लोग बसे हों उस विशिष्ट भाग के प्राचीनतम अथवा प्राचीन निवासियों के लिए भी इस शब्द का उपयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, "इंडियन" अमरीका के आदिवासी कहे जाते हैं और प्राचीन साहित्य में दस्यु, निषाद आदि के रूप में जिन विभिन्न प्रजातियों समूहों का उल्लेख किया गया है उनके वंशज समसामयिक भारत में आदिवासी माने जाते हैं। आदिवासी के समानार्थी शब्‍दों में ऐबोरिजिनल, इंडिजिनस, देशज, मूल निवासी, जनजाति, वनवासी, जंगली, गिरिजन, बर्बर आदि प्रचलित हैं। इनमें से हर एक शब्‍द के पीछे सामाजिक व राजनीतिक संदर्भ हैं। अधिकांश आदिवासी संस्कृति के प्राथमिक धरातल पर जीवनयापन करते हैं। वे सामन्यत: क्षेत्रीय समूहों में रहते हैं और उनकी संस्कृति अनेक दृष्टियों से स्वयंपूर्ण रहती है। इन संस्कृतियों में ऐतिहासिक जिज्ञासा का अभाव रहता है तथा ऊपर की थोड़ी ही पीढ़ियों का यथार्थ इतिहास क्रमश: किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं में घुल मिल जाता है। सीमित परिधि तथा लघु जनसंख्या के कारण इन संस्कृतियों के रूप में स्थिरता रहती है, किसी एक काल में होनेवाले सांस्कृतिक परिवर्तन अपने प्रभाव एवं व्यापकता में अपेक्षाकृत सीमित होते हैं। परंपराकेंद्रित आदिवासी संस्कृतियाँ इसी कारण अपने अनेक पक्षों में रूढ़िवादी सी दीख पड़ती हैं। उत्तर और दक्षिण अमरीका, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा अनेक द्वीपों और द्वीपसमूहों में आज भी आदिवासी संस्कृतियों के अनेक रूप देखे जा सकते हैं। .

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अश्विनी कुमार पंकज

अश्विनी कुमार पंकज (जन्मः 9 अगस्त 1965) एक भारतीय कवि, कथाकार, उपन्यासकार, पत्रकार, नाटककार, रंगकर्मी और आंदोलनकारी संस्कृतिकर्मी हैं। वे हिन्दी और झारखंड की देशज भाषा नागपुरी में लिखते हैं और रंगमंच एवं प्रदर्श्यकारी कलाओं की त्रैमासिक पत्रिका ‘रंगवार्ता’ और नागपुरी मासिक पत्रिका ‘जोहार सहिया’ का संपादन तथा बहुभाषिक आदिवासी-देशज समाचार पत्र पाक्षिक ‘जोहार दिसुम खबर’ के प्रकाशक-संपादक हैं। मूलतः बिहार के रहने वाले पंकज बचपन से रांची में रहते हैं और आरंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा रांची में प्राप्त की है तथा रांची विश्वविद्यालय, रांची से ही हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है। डॉ॰ एम.

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