5 संबंधों: चित्तीदार हरा कबूतर, ऐलिसेज़ एड्वैन्चर्स इन वण्डरलैण्ड, मॉरिशस, लुप्तप्राय प्रजातियां, विलुप्ति।
चित्तीदार हरा कबूतर
चित्तीदार हरा कबूतर या लिवरपूल कबूतर (कालोनीस माकुलाटा) कबूतर की एक प्रजाति है और माना जाता है कि यह विलुप्त हो चुकी है। इसका पहली बार उल्लेख और वर्णन जॉन लाथम ने 1783 में किया था, जिन्होंने अज्ञात उत्पत्ति के दो नमूनों और पक्षी को वर्णित करने वाला एक चित्र देखा था। पक्षी के टैक्सोनॉमिक संबंध लंबे समय तक अस्पष्ट थे, और शुरुआती लेखकों ने कई अलग अलग संभावनाओं का सुझाव दिया था, हालांकि यह विचार कि यह निकोबार कबूतर (कालोनीस निकोबारिका) से संबंधित था काफी प्रबल थी, और इसलिए इसे एक ही जीन, कालोनेस में रखा गया था। आज इस प्रजाति को विश्व संग्रहालय, लिवरपूल में रखे गए एक नमूने के द्वारा ही जाना जाता है। 20 वीं शताब्दी में इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया लेकिन 2008 में आईयूसीएन की लाल सूची में शामिल कर इसे एक विलुप्त प्रजाति के रूप में मान्यता दी गयी। 2014 में एक आनुवंशिक अध्ययन ने इस बात की पुष्टि की कि यह निकोबार कबूतर से संबंधित एक विशिष्ट प्रजाति थी और ये दोनों ही प्रजाति विलुप्त डोडो और रॉड्रिक्स सोलिटेयर के निकटतम संबंधी थे। .
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ऐलिसेज़ एड्वैन्चर्स इन वण्डरलैण्ड
एलिसेज़ एडवेंचर्स इन वंडरलैंड (आमतौर पर एलिस इन वंडरलैंड के रूप में संक्षिप्त) लुईस कैरोल के उपनाम के तहत ब्रिटिश लेखक चार्ल्स लुटविग डॉडसन द्वारा 1865 में लिखित उपन्यास है। इसमें एलिस नाम की एक लड़की की कहानी है जो एक खरगोश की मांद में गिरकर, अजीब और मानव-सदृश जीवों की आबादी वाले एक कल्पना लोक में पहुंच जाती है। यह कहानी, डॉडसन के मित्रों के संकेतों से भरी है। इस कहानी ने तर्क को जिस तरीके से पेश किया है उसने इस कहानी को वयस्कों के साथ-साथ बच्चों के बीच भी स्थायी लोकप्रियता दी। लेसर्कल, जीन-जेक्विस (1994) जाक फिलोसफी ऑफ़ नॉनसेन्स: द इंट्यूशन ऑफ़ विक्टोरियन नॉनसेन्स लिटरेचर रुटलेज, न्यूयॉर्क, ISBN 0-415-07652-8 इसे "साहित्यिक बकवास" शैली के एक सबसे अच्छे उदाहरण के रूप में माना जाता है,श्वाब, गैब्रिएल (1996) "अध्याय 2: नॉनसेन्स एंड मेटाकम्युनिकेशन: एलिस इन वंडरलैंड द मिरर एंड द किलर-क्वीन: अदरनेस इन लिटररी लैंग्वेज इंडियाना यूनिवर्सिटी प्रेस, ब्लूमिंगटन, इंडियाना, pp 49-102, ISBN 0-253-33037-8 और इसका कथनात्मक पथ और संरचना काफी प्रभावशाली रही है, खासकर फंतासी शैली में.
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मॉरिशस
मॉरीशस गणराज्य(अंग्रेज़ी: Republic of Mauritius, फ़्रांसीसी: République de Maurice), अफ्रीकी महाद्वीप के तट के दक्षिणपूर्व में लगभग 900 किलोमीटर की दूरी पर हिंद महासागर में और मेडागास्कर के पूर्व में स्थित एक द्वीपीय देश है। मॉरीशस द्वीप के अतिरिक्त इस गणराज्य मे, सेंट ब्रेंडन, रॉड्रीगज़ और अगालेगा द्वीप भी शामिल हैं। दक्षिणपश्चिम में 200 किलोमीटर पर स्थित फ्रांसीसी रीयूनियन द्वीप और 570 किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित रॉड्रीगज़ द्वीप के साथ मॉरीशस मस्कारेने द्वीप समूह का हिस्सा है। मारीशस की संस्कृति, मिश्रित संस्कृति है, जिसका कारण पहले इसका फ्रांस के आधीन होना तथा बाद में ब्रिटिश स्वामित्व में आना है। मॉरीशस द्वीप विलुप्त हो चुके डोडो पक्षी के अंतिम और एकमात्र घर के रूप में भी विख्यात है। .
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लुप्तप्राय प्रजातियां
साइबेरियाई बाघ, लुप्तप्राय बाघ की एक उप-प्रजाति है; बाघ की दो उप-प्रजातियां पहले से ही लुप्त हो चुकी हैं।सुंदरवन बाघ परियोजना. बाघों के विलुप्त होने की जानकारी, वेब-साइट के बाघों पर अनुभाग में उपलब्ध है लुप्तप्राय प्रजातियां, ऐसे जीवों की आबादी है, जिनके लुप्त होने का जोखिम है, क्योंकि वे या तो संख्या में कम है, या बदलते पर्यावरण या परभक्षण मानकों द्वारा संकट में हैं। साथ ही, यह वनों की कटाई के कारण भोजन और/या पानी की कमी को भी द्योतित कर सकता है। प्रकृति के संरक्षणार्थ अंतर्राष्ट्रीय संघ (IUCN) ने 2006 के दौरान मूल्यांकन किए गए प्रजातियों के नमूने के आधार पर, सभी जीवों के लिए लुप्तप्राय प्रजातियों की प्रतिशतता की गणना 40 प्रतिशत के रूप में की है। (ध्यान दें: IUCN अपने संक्षिप्त प्रयोजनों के लिए सभी प्रजातियों को वर्गीकृत करता है।) कई देशों में संरक्षण निर्भर प्रजातियों के रक्षणार्थ क़ानून बने हैं: उदाहरण के लिए, शिकार का निषेध, भूमि विकास या परिरक्षित स्थलों के निर्माण पर प्रतिबंध.
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विलुप्ति
मॉरीशस का डोडो पक्षी मानव शिकार के कारण विलुप्त हो गया जीव विज्ञान में विलुप्ति (extinction) उस घटना को कहते हैं जब किसी जीव जाति का अंतिम सदस्य मर जाता है और फिर विश्व में उस जाति का कोई भी जीवित जीव अस्तित्व में नहीं होता। अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि किसी जीव का प्राकृतिक वातावरण बदल जाता है और उसमें इन बदली परिस्थितियों में पनपने और जीवित रहने की क्षमता नहीं होती। अंतिम सदस्य की मृत्यु के साथ ही उस जाति में प्रजनन द्वारा वंश वृद्धि की संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। पारिस्थितिकी में कभी कभी विलुप्ति शब्द का प्रयोग क्षेत्रीय स्तर पर किसी जीव प्रजाति की विलुप्ति से भी लिया जाता है। अध्ययन से पता चला है कि अपनी उत्पत्ति के औसतन १ करोड़ वर्ष बाद जाति विलुप्त हो जाती है, हालांकि कुछ जातियाँ दसियों करोड़ों वर्षों तक जारी रहती हैं। पृथ्वी पर मानव के विकसित होने से पहले विलुप्तियाँ प्राकृतिक वजहों से हुआ करती थीं। माना जाता है कि पूरे इतिहास में जितनी भी जातियाँ पृथ्वी पर उत्पन्न हुई हैं उनमें से लगभग ९९.९% विलुप्त हो चुकी हैं।, Denise Walker, Evans Brothers, 2006, ISBN 978-0-237-53010-5,...
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