जाल-नियतकालिक छापेखाने में परंपरागत रूप से कागज़ पर छापे जाने की बजाय अंतर्जाल (world wide web) पर इलेक्ट्रानिक माध्यम से स्थापित की जाती है। अंतर्जाल पर स्थित होने के कारण इसको दुनिया के किसी भी कोने से अपने कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। इसमें आलेख और चित्रों के साथ-साथ ध्वनि और चलचित्रों का भी समावेश किया जा सकता है। इसकी देखभाल के लिए एक संपादक मंडल भी होता है। इसके प्रकाशन का समय निर्धारित होता है जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या द्विमासिक। निरंतर नामक जाल-नियतकालिक के उदय के पश्चात शब्दावली का भी प्रयोग होने लगा है जिसका आशय है पत्रिका और ब्लॉग के तत्वों, जैसे पाठक का किसी लेख पर फार्म का उपयोग कर टिप्पणी कर पाना, का मिलाप। कुछ जाल-नियतकालिक परंपरागत रूप से मुद्रित भी होते हैं, जैसे हंस और वागार्थ, यानि इनका प्रिंट एडीशन या अंक भी निकलता है। कई पत्रिकायें अपने अंतर्जाल और छपे अंकों की सामग्री में फर्क भी रखती हैं क्योंकि दोनों माध्यमों के पाठकों के पठन का ढंग अलग होता है। माईक्रोसॉफ्ट फ्रंटपेज जैसे वेब पब्लिशिंग के औजारों के अलावा जाल-नियतकालिक प्रकाशित करने के लिये संप्रति ड्रीम वीवर और या जैसे भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। .
1 संबंध: इलेक्ट्रानिक पत्रिका।
जो पत्रिका कंप्यूटर पर लिखी जाए और कंप्यूटर पर ही पढ़ी जाए उसको जाल-नियतकालिक या इलेक्ट्रानिक पत्रिका (e-zine) कह सकते हैं। इस दृष्टि से जाल-पत्रिका को भी इलेक्ट्रानिक पत्रिका कहा जा सकता है। लेकिन हर इलेक्ट्रानिक पत्रिका जाल-पत्रिका हो वह ज़रूरी नहीं है। बहुत सी इलेक्ट्रानिक पत्रिकाएं पीडीएफ प्रारूप में तैयार की जाती हैं और बहुत सी एम एस वर्ड में। ये ई-मेल से पाठकों के पास भेजी जाती हैं या फिर डाउनलोड के लिए भी उपलब्ध होती हैं। बहुत सी कंपनियां अपने न्यूज़-लेटर इलेक्ट्रानिक-पत्रिका के रूप में प्रकाशित करती हैं। इनके प्रकाशन की तिथि निश्चित होती है और इनका संपादक मंडल भी होता है। .
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