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इलेक्ट्रानिक पत्रिका

सूची इलेक्ट्रानिक पत्रिका

जो पत्रिका कंप्यूटर पर लिखी जाए और कंप्यूटर पर ही पढ़ी जाए उसको जाल-नियतकालिक या इलेक्ट्रानिक पत्रिका (e-zine) कह सकते हैं। इस दृष्टि से जाल-पत्रिका को भी इलेक्ट्रानिक पत्रिका कहा जा सकता है। लेकिन हर इलेक्ट्रानिक पत्रिका जाल-पत्रिका हो वह ज़रूरी नहीं है। बहुत सी इलेक्ट्रानिक पत्रिकाएं पीडीएफ प्रारूप में तैयार की जाती हैं और बहुत सी एम एस वर्ड में। ये ई-मेल से पाठकों के पास भेजी जाती हैं या फिर डाउनलोड के लिए भी उपलब्ध होती हैं। बहुत सी कंपनियां अपने न्यूज़-लेटर इलेक्ट्रानिक-पत्रिका के रूप में प्रकाशित करती हैं। इनके प्रकाशन की तिथि निश्चित होती है और इनका संपादक मंडल भी होता है। .

12 संबंधों: निरन्तर, प्रवक्ता, पूर्वाभास, युग मानस, स्वर्गविभा, सृजनगाथा, सीमापुरी टाइम्स, जाल नियतकालिक, जाल-नियतकालिक, विचार मीमांसा, अनुभूति (पत्रिका), अभिव्यक्ति (पत्रिका)

निरन्तर

right निरंतर हिन्दी चिट्ठाकारों के एक समूह द्वारा प्रकाशित विश्व की पहली ज्ञात हिन्दी ब्लॉगज़ीन और जाल-पत्रिका थी। गैरपेशेवर प्रकाशकों द्वारा निकाली जाने वाली इस पत्रिका के प्रकाशकों का दावा था कि यह पाठकों को प्रकाशित लेखों पर त्वरित टिप्पणी करने का मौका देती है। निरंतर की स्थापना 2005 में की गई, पहले यह पंकज नरूला द्वारा स्थापित अक्षरग्राम डोमेन के अंतर्गत प्रकाशित होती थी परंतु बाद में अपने ही डोमेन से प्रकाशित होने लगी। जाल पर हिन्दी के बढ़ते प्रयोग के मद्देनज़र यह प्रयास शुरु किया गया था। निरंतर से जुड़े लोग वैसे तो चिट्ठाकारी से जुड़े थे पर यह पत्रिका उनके औपचारिक लेखन को प्रस्तुत करने का एक मंच बनी। अगस्त 2005 में निरंतर का प्रकाशन 6 अंकों के उपरांत बंद हो गया था। 1 साल बाद अगस्त 2006 में इसका प्रकाशन नये कलेवर में दुबारा शुरु हुआ और अगस्त, अक्टूबर व दिसम्बर में तीन अंक प्रकाशित होने के बाद बंद हो गया। मई 2007 से जुलाई 2008 के मध्य इसके अंक यदा कदा पुनः प्रकाशित हुये। पत्रिका के कुल दस अंक प्रकाशित हुये हैं। जनवरी 2009 में निरंतर पत्रिका को बंद कर इसके प्रकाशन मंडल ने इसे एक नई जालपत्रिका सामयिकी में सामहित करने की घोषणा की। निरंतर के मानद मुख्य संपादक हैं अनूप शुक्ला। पत्रिका का प्रकाशन व प्रबंध संपादन इसके संस्थापक देबाशीष चक्रवर्ती करते हैं। निरंतर के कोर संपादन टीम में शामिल हैं डॉ सुनील दीपक, रविशंकर श्रीवास्तव, रमण कौल, अतुल अरोरा, प्रत्यक्षा, शशि सिंह, ईस्वामी, पंकज नरूला, जीतेन्द्र चौधरी और आलोक कुमार। .

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प्रवक्ता

प्रवक्ता हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। .

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पूर्वाभास

पूर्वाभास हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। यह पत्रिका 2010 में प्रारम्भ हुई थी। .

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युग मानस

युग मानस हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। .

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स्वर्गविभा

स्वर्गविभा हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। .

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सृजनगाथा

सृजनगाथा हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। इसके संपादक जय प्रकाश मानस हैं। .

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सीमापुरी टाइम्स

सीमापुरी टाइम्स हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। .

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जाल नियतकालिक

जाल नियतकालिक छापेखाने में परंपरागत रूप से कागज़ पर छापे जाने की बजाय अंतर्जाल (world wide web) पर इलेक्ट्रानिक माध्यम से स्थापित की जाती है। अंतर्जाल पर स्थित होने के कारण इसको दुनिया के किसी भी कोने से अपने कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। इसमें आलेख और चित्रों के साथ-साथ ध्वनि और चलचित्रों का भी समावेश किया जा सकता है। इसकी देखभाल के लिए एक संपादक मंडल भी होता है। इसके प्रकाशन का समय निर्धारित होता है जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या द्विमासिक। जो साहित्य आंतरजालपर नियमित रूप से प्रकाशित होता हैं, उसे जाल नियतकालिक कहते हैं। इसीलिए हिंदी चिठ्ठे भी जाल पत्रिका कहलवाते हैं। निरंतर नामक जाल नियतकालिक के उदय के पश्चात शब्दावली का भी प्रयोग होने लगा है जिसका आशय है पत्रिका और ब्लॉग के तत्वों, जैसे पाठक का किसी लेख पर फार्म का उपयोग कर टिप्पणी कर पाना, का मिलाप। कुछ जाल नियतकालिक परंपरागत रूप से मुद्रित भी होते हैं, जैसे हंस और वागार्थ, यानि इनका प्रिंट एडीशन या अंक भी निकलता है। कई जाल नियतकालिक अपने अंतर्जाल और छपे अंकों की सामग्री में फर्क भी रखते हैं क्योंकि दोनों माध्यमों के पाठकों के पठन का ढंग अलग होता है। माईक्रोसॉफ्ट फ्रंटपेज जैसे वेब पब्लिशिंग के औजारों के अलावा अंतर्जाल पत्रिकाएं प्रकाशित करने के लिये संप्रति ड्रीम वीवर और या जैसे भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। .

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जाल-नियतकालिक

जाल-नियतकालिक छापेखाने में परंपरागत रूप से कागज़ पर छापे जाने की बजाय अंतर्जाल (world wide web) पर इलेक्ट्रानिक माध्यम से स्थापित की जाती है। अंतर्जाल पर स्थित होने के कारण इसको दुनिया के किसी भी कोने से अपने कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है। इसमें आलेख और चित्रों के साथ-साथ ध्वनि और चलचित्रों का भी समावेश किया जा सकता है। इसकी देखभाल के लिए एक संपादक मंडल भी होता है। इसके प्रकाशन का समय निर्धारित होता है जैसे साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक या द्विमासिक। निरंतर नामक जाल-नियतकालिक के उदय के पश्चात शब्दावली का भी प्रयोग होने लगा है जिसका आशय है पत्रिका और ब्लॉग के तत्वों, जैसे पाठक का किसी लेख पर फार्म का उपयोग कर टिप्पणी कर पाना, का मिलाप। कुछ जाल-नियतकालिक परंपरागत रूप से मुद्रित भी होते हैं, जैसे हंस और वागार्थ, यानि इनका प्रिंट एडीशन या अंक भी निकलता है। कई पत्रिकायें अपने अंतर्जाल और छपे अंकों की सामग्री में फर्क भी रखती हैं क्योंकि दोनों माध्यमों के पाठकों के पठन का ढंग अलग होता है। माईक्रोसॉफ्ट फ्रंटपेज जैसे वेब पब्लिशिंग के औजारों के अलावा जाल-नियतकालिक प्रकाशित करने के लिये संप्रति ड्रीम वीवर और या जैसे भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। .

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विचार मीमांसा

विचार मीमांसा हिन्दी की एक ऑनलाइन वेब पत्रिका है। .

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अनुभूति (पत्रिका)

अनुभूति कविताओं की हिंदी जाल-पत्रिका है। इसका पहला अंक १ जनवरी २००१ को प्रकाशित हुआ था। महीने में इसके चार अंक पहली, ९वीं, १६वीं और २४वीं तारीख को प्रकाशित होते हैं। 1 जनवरी 2008 से यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है। इसमें प्राचीन कवियों की कविताओं के स्तंभ का नाम 'गौरवग्राम' है और उभरते हुए कवियों की कविताओं को 'नई हवा' में रखा गया है। इसमें दोहे, ग‌ज़ल, हाइकु, मुक्तक आदि विधाओं के लिए अलग स्तंभ तो हैं ही, प्रवासी कवियों के लिए दिशांतर नाम का भी एक स्तंभ है। विभिन्न विषयों पर कविताओं को संकलित करने का भी काम यहां किया गया है जिसे संकलन के अंतर्गत रखा गया है। पत्रिका से संबंधित 'अनुभूति हिंदी' नाम का एक याहू गुट है जहां कविताओं की कार्यशालाओं में कोई भी भाग ले सकता है। यह अभिव्यक्ति की सहयोगी पत्रिका है। .

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अभिव्यक्ति (पत्रिका)

अभिव्यक्ति हिंदी में प्रकाशित होने वाली जाल-पत्रिका है। इसका पहला अंक 15 अगस्त 2000 को प्रकाशित हुआ। उस समय यह मासिक पत्रिका थी। मई 2002 से यह माह में चार बार पहली, 9वीं, 16वीं और 24वीं तारीख़ को प्रकाशित होती है। 1 जनवरी 2008 से यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है। इस पत्रिका को www.abhivyakti-hindi.org पर देखा जा सकता है। इसके संपादक मंडल में पूर्णिमा वर्मन, प्रो॰ अश्विन गांधी और दीपिका जोशी 'संध्या' हैं। इसके अतिरिक्त 200 अन्य सदस्य भी अलग अलग देशों से इस काम में सहयोग करते हैं। पत्रिका में कहानी, उपन्यास, संस्मरण, बालजगत, घर परिवार, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चित्रकला, प्रकृति, पर्यटन, लेखकों के परिचय, रसोई आदि 30 से अधिक विषयों को शामिल किया गया है। पुराने अंकों को पुरालेखों में देखा जा सकता है। अनुभूति इसकी सहयोगी पत्रिका है जो कविता की विभिन्न विधाओं को प्रकाशित करती है। इन दोनों पत्रिकाओं के लिए पूर्णिमा वर्मन को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, साहित्य अकादमी और अक्षरम की ओर से 2006 के प्रवासी मीडिया सम्मान से अलंकृत किया गया है। .

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