लोगो
यूनियनपीडिया
संचार
Google Play पर पाएं
नई! अपने एंड्रॉयड डिवाइस पर डाउनलोड यूनियनपीडिया!
डाउनलोड
ब्राउज़र की तुलना में तेजी से पहुँच!
 

जनक

सूची जनक

जनक नाम से अनेक व्यक्ति हुए हैं। पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुपुत्र निमि ने विदेह के सूर्यवंशी राज्य की स्थापना की, जिसकी राजधानी मिथिला हुई। मिथिला में जनक नाम का एक अत्यंत प्राचीन तथा प्रसिद्ध राजवंश था जिसके मूल पुरुष कोई जनक थे। मूल जनक के बाद मिथिला के उस राजवंश का ही नाम 'जनक' हो गया जो उनकी प्रसिद्धि और शक्ति का द्योतक है। जनक के पुत्र उदावयु, पौत्र नंदिवर्धन् और कई पीढ़ी पश्चात् ह्रस्वरोमा हुए। ह्रस्वरोमा के दो पुत्र सीरध्वज तथा कुशध्वज हुए। जनक नामक एक अथवा अनेक राजाओं के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में हुए हैं। इतना निश्चित प्रतीत होता है कि जनक नाम के कम से कम दो प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए; एक तो वैदिक साहित्य के दार्शनिक और तत्वज्ञानी जनक विदेह और दूसरे राम के ससुर जनक, जिन्हें वायुपुराण और पद्मपुराण में सीरध्वज कहा गया है। असंभव नहीं, और भी जनक हुए हों और यही कारण है, कुछ विद्वान् वशिष्ठ और विश्वामित्र की भाँति 'जनक' को भी कुलनाम मानते हैं। सीरध्वज की दो कन्याएँ सीता तथा उर्मिला हुईं जिनका विवाह, राम तथा लक्ष्मण से हुआ। कुशध्वज की कन्याएँ मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति हुईं जिनके व्याह भरत तथा शत्रुघ्न से हुए। श्रीमद्भागवत में दी हुई जनकवंश की सूची कुछ भिन्न है, परंतु सीरध्वज के योगिराज होने में सभी ग्रंथ एकमत हैं। इनके अन्य नाम 'विदेह' अथवा 'वैदेह' तथा 'मिथिलेश' आदि हैं। मिथिला राज्य तथा नगरी इनके पूर्वज निमि के नाम पर प्रसिद्ध हुए। .

49 संबंधों: चित्रकूट, तीर्थंकर, धनुषयज्ञ, धनुषा जिला, निमि, पराशर ऋषि, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, फुलवारी, बहुलाश्व, बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची, बृहदारण्यक उपनिषद, बेटी, मधुबनी, मिथिला के राजाओं की सूची, मुगल रामायण, मैथिली भाषा, मोतिहारी, याज्ञवल्क्य, यज्ञफल, राम, रामायण, रामायण (टीवी धारावाहिक), रघुविलास, शारंग धनुष, शिवधनुष, शिवधनुष (पिनाक), श्रीभार्गवराघवीयम्, श्रीसीतारामकेलिकौमुदी, समस्तीपुर, सुनयना, सीता, सीता कुंड, सीतामढ़ी, सीतामढी, जनक विदेह, जनकपुर, विदेह वंश, गीतरामायणम्, आनन्द रामायण, कुशध्वज, कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद, कैवल्य, अद्भुत रामायण, अयोध्याकाण्ड, अष्टावक्र, अष्टावक्र (महाकाव्य), अष्टावक्र गीता, उर्वीजा

चित्रकूट

चित्रकूट धाम मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश में 38.2 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनार बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्रि और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था। .

नई!!: जनक और चित्रकूट · और देखें »

तीर्थंकर

जैन धर्म में तीर्थंकर (अरिहंत, जिनेन्द्र) उन २४ व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं तप के माध्यम से आत्मज्ञान (केवल ज्ञान) प्राप्त करते है। जो संसार सागर से पार लगाने वाले तीर्थ की रचना करते है, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर वह व्यक्ति हैं जिन्होनें पूरी तरह से क्रोध, अभिमान, छल, इच्छा, आदि पर विजय प्राप्त की हो)। तीर्थंकर को इस नाम से कहा जाता है क्योंकि वे "तीर्थ" (पायाब), एक जैन समुदाय के संस्थापक हैं, जो "पायाब" के रूप में "मानव कष्ट की नदी" को पार कराता है। .

नई!!: जनक और तीर्थंकर · और देखें »

धनुषयज्ञ

धनुषयज्ञ का आयोजन मिथिला के नरेश जनक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर के हेतु किया था। श्रेणी:रामायण श्रेणी:यज्ञ.

नई!!: जनक और धनुषयज्ञ · और देखें »

धनुषा जिला

जनकपुर में स्वयंबर के दौरान भगवान राम के द्वारा शिव धनुष तोड़ने से संबंधित रवी वर्मा की पेंटिंग यह नेपाल के जनकपुर प्रान्त का एक जिला है। यह हिंदुओं का एक पवित्र तीर्थ स्थल है। .

नई!!: जनक और धनुषा जिला · और देखें »

निमि

निमि, मिथिला के प्रथम राजा थे। वे मनु के पौत्र तथा इक्ष्वाकु के पुत्र थे। निमि ने वसिष्ठ को ऋत्विक बनाना चाहा पर वसिष्ठ खाली नहीं थे। अत: दूसरों के आचार्यत्व में यज्ञ कराना आरंभ किया। वसिष्ठ ने इससे क्रुद्ध होकर निमि के देह का पात होने का शाप दे दिया। इस देह के मंथन से जनक की उत्पत्ति हुई और निमि स्वयं विदेह (देह रहित) होकर प्राणियों की पलकों में निवास करने लगे। संस्कृत में 'निमि' का अर्थ 'पलक' होता है। श्रेणी:पौराणिक पात्र.

नई!!: जनक और निमि · और देखें »

पराशर ऋषि

पराशर एक मन्त्रद्रष्टा ऋषि, शास्त्रवेत्ता, ब्रह्मज्ञानी एवं स्मृतिकार है। येे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार भी हैं। पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। परीक्षित् के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। वे छब्बीसवें द्वापर के व्यास थे। जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित थे।  .

नई!!: जनक और पराशर ऋषि · और देखें »

पश्चिमी चंपारण

चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी। .

नई!!: जनक और पश्चिमी चंपारण · और देखें »

पूर्वी चंपारण

पूर्वी चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल का एक जिला है। चंपारण को विभाजित कर 1971 में बनाए गए पूर्वी चंपारण का मुख्यालय मोतिहारी है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। पूर्वी चम्‍पारण के उत्‍तर में एक ओर जहाँ नेपाल तथा दक्षिण में मुजफ्फरपुर स्थित है, वहीं दूसरी ओर इसके पूर्व में शिवहर और सीतामढ़ी तथा पश्चिम में पश्चिमी चम्‍पारण जिला है। .

नई!!: जनक और पूर्वी चंपारण · और देखें »

फुलवारी

जिस उद्यान में केवल पुष्प हो उसे फुलवारी कहते है। राजा जनक के फुलवारी में हर प्रकार के फूल थे। और उनके बाग में बारहों मास वसन्त विराजता था। .

नई!!: जनक और फुलवारी · और देखें »

बहुलाश्व

बहुलाश्व, जनकवंशीय राजा धृति के पुत्र। ये कृति के पिता थे जो महात्मा जनक के वंश के अंतिम राजा हुए। इस नाम के सूर्यवंशी राजा निकुंभ के एक पुत्र भी हुए हैं जो कृशाश्व के पिता थे। मिथिलापति बहुलाश्व के अनुरोध पर नारद जी ने उन्हें श्रीकृष्ण लीला एवं माहात्म्य का कीर्तन सुनाया था। इनकी कथा बृहद्धर्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत में दी गई है। श्रेणी:पौराणिक पात्र श्रेणी:भारतीय संस्कृति.

नई!!: जनक और बहुलाश्व · और देखें »

बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची

बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची .

नई!!: जनक और बिहार के महत्वपूर्ण लोगों की सूची · और देखें »

बृहदारण्यक उपनिषद

बृहदारण्यक उपनिषत् शुक्ल यजुर्वेद से जुड़ा एक उपनिषद है। अद्वैत वेदांत और संन्यासनिष्ठा का प्रतिपादक है। उपनिषदों में सर्वाधिक बृहदाकार इसके ६ अध्याय, ४७ ब्राह्मण और प्रलम्बित ४३५ पदों का शांति पाठ 'ऊँ पूर्णमद:' इत्यादि है और ब्रह्मा इसकी संप्रदाय पंरपरा के प्रवर्तक हैं। यह अति प्राचीन है और इसमें जीव, ब्रह्माण्ड और ब्राह्मण (ईश्वर) के बारे में कई बाते कहीं गईं है। दार्शनिक रूप से महत्वपूर्ण इस उपनिषद पर आदि शंकराचार्य ने भी टीका लिखी थी। यह शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ का एक खंड है और इसको शतपथ ब्राह्मण के पाठ में सम्मिलित किया जाता है। यजुर्वेद के प्रसिद्ध पुरुष सूक्त के अतिरिक्त इसमें अश्वमेध, असतो मा सदगमय, नेति नेति जैसे विषय हैं। इसमें ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का संवाद है जो अत्यन्त क्रमबद्ध और युक्तिपूर्ण है। .

नई!!: जनक और बृहदारण्यक उपनिषद · और देखें »

बेटी

स्त्रीलिंग संतान को बेटी कहते हैं,इसे पिता तथा माता सीधे संबोधत करते हैं, उदहारण: सीता, जनक की बेटी है.

नई!!: जनक और बेटी · और देखें »

मधुबनी

मधुबनी भारत के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत एक प्रमुख शहर एवं जिला है। दरभंगा एवं मधुबनी को मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माना जाता है। मैथिली तथा हिंदी यहाँ की प्रमुख भाषा है। विश्वप्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार की वजह से मधुबनी को विश्वभर में जाना जाता है। इस जिला का गठन १९७२ में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था।मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 sq/ft में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। .

नई!!: जनक और मधुबनी · और देखें »

मिथिला के राजाओं की सूची

भारतीय साहित्यिक स्रोतों में अत्यन्त प्राचीन काल तक के मिथिला के शासकों के नाम प्राप्त होते हैं। इनमें से विदेह (जनक) वंशीय राजाओं के लिए तो वाल्मीकीय रामायण एवं पुराणों पर निर्भर रहना पड़ता है, परन्तु इनके बाद के शासकों के विवरण के लिए बहुत-कुछ प्रामाणिक ऐतिहासिक स्रोत उपलब्ध हैं। .

नई!!: जनक और मिथिला के राजाओं की सूची · और देखें »

मुगल रामायण

मुगल बादशाह अकबर द्वारा रामायण का फारसी अनुवाद करवाया था। उसके बाद हमीदाबानू बेगम, रहीम और जहाँगीर ने भी अपने लिये रामायण का अनुवाद करवाया था। .

नई!!: जनक और मुगल रामायण · और देखें »

मैथिली भाषा

मैथिली भारत के उत्तरी बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा है। यह हिन्द आर्य परिवार की सदस्य है। इसका प्रमुख स्रोत संस्कृत भाषा है जिसके शब्द "तत्सम" वा "तद्भव" रूप में मैथिली में प्रयुक्त होते हैं। यह भाषा बोलने और सुनने में बहुत ही मोहक लगता है। मैथिली भारत में मुख्य रूप से दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, शिवहर, भागलपुर, मधेपुरा, अररिया, सुपौल, वैशाली, सहरसा, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर जिलों में बोली जाती है| नेपाल के आठ जिलों धनुषा,सिरहा,सुनसरी, सरलाही, सप्तरी, मोहतरी,मोरंग और रौतहट में भी यह बोली जाती है। बँगला, असमिया और ओड़िया के साथ साथ इसकी उत्पत्ति मागधी प्राकृत से हुई है। कुछ अंशों में ये बंगला और कुछ अंशों में हिंदी से मिलती जुलती है। वर्ष २००३ में मैथिली भाषा को भारतीय संविधान की ८वीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया। सन २००७ में नेपाल के अन्तरिम संविधान में इसे एक क्षेत्रीय भाषा के रूप में स्थान दिया गया है। .

नई!!: जनक और मैथिली भाषा · और देखें »

मोतिहारी

मोतीहारी बिहार राज्‍य के पूर्वी चंपारण जिले का मुख्‍यालय है। बिहार की राजधानी पटना से 170 किमी दूर पूर्वी चम्‍पारण बिल्‍कुल नेपाल की सीमा पर बसा है। इसे मोतिहारी के नाम से भी लोग जानते है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस जिले को काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है। किसी समय में चम्‍पारण, राजा जनक के मिथिला राज्य का अभिन्‍न भाग था। स्‍वतंत्रता संग्राम में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्‍मा गांधी ने तो अपने राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत यही से की थी। पर्यटन की दृष्टि यहां सीताकुंड, अरेराज, केसरिया, चंडी स्‍थान जैसे जगह घूमने लायक है। .

नई!!: जनक और मोतिहारी · और देखें »

याज्ञवल्क्य

भगवती सरस्वती याज्ञवल्क्य के सम्मुख प्रकट हुईं याज्ञवल्क्य (ईसापूर्व ७वीं शताब्दी), भारत के वैदिक काल के एक ऋषि तथा दार्शनिक थे। वे वैदिक साहित्य में शुक्ल यजुर्वेद की वाजसनेयी शाखा के द्रष्टा हैं। इनको अपने काल का सर्वोपरि वैदिक ज्ञाता माना जाता है। याज्ञवल्क्य का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शतपथ ब्राह्मण की रचना है - बृहदारण्यक उपनिषद जो बहुत महत्वपूर्ण उपनिषद है, इसी का भाग है। इनका काल लगभग १८००-७०० ई पू के बीच माना जाता है। इन ग्रंथों में इनको राजा जनक के दरबार में हुए शास्त्रार्थ के लिए जाना जाता है। शास्त्रार्थ और दर्शन की परंपरा में भी इनसे पहले किसी ऋषि का नाम नहीं लिया जा सकता। इनको नेति नेति (यह नहीं, यह भी नहीं) के व्यवहार का प्रवर्तक भी कहा जाता है। .

नई!!: जनक और याज्ञवल्क्य · और देखें »

यज्ञफल

कोई विवरण नहीं।

नई!!: जनक और यज्ञफल · और देखें »

राम

राम (रामचन्द्र) प्राचीन भारत में अवतार रूपी भगवान के रूप में मान्य हैं। हिन्दू धर्म में राम विष्णु के दस अवतारों में से सातवें अवतार हैं। राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य श्री रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अनेक भारतीय भाषाओं में अनेक रामायणों की रचना हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भारत में राम बहुत अधिक पूजनीय हैं और हिन्दुओं के आदर्श पुरुष हैं। राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था (जो लक्ष्मी का अवतार मानी जाती हैं) और इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान, भगवान राम के, सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने राक्षस जाति के लंका के राजा रावण का वध किया। राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई की थी। श्रीराम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदहारण देते हुए पति के साथ वन जाना उचित समझा। सौतेले भाई लक्ष्मण ने भी भाई के साथ चौदह वर्ष वन में बिताये। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आये। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। राम की पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। राम ने उस समय की एक जनजाति वानर के लोगों की मदद से सीता को ढूँढ़ा। समुद्र में पुल बना कर रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता को वापस लाये। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके पुत्र कुश व लव ने इन राज्यों को सँभाला। हिन्दू धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की जीवन-कथा से जुड़े हुए हैं। .

नई!!: जनक और राम · और देखें »

रामायण

रामायण आदि कवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक अनुपम महाकाव्य है। इसके २४,००० श्लोक हैं। यह हिन्दू स्मृति का वह अंग हैं जिसके माध्यम से रघुवंश के राजा राम की गाथा कही गयी। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है। रामायण के सात अध्याय हैं जो काण्ड के नाम से जाने जाते हैं। .

नई!!: जनक और रामायण · और देखें »

रामायण (टीवी धारावाहिक)

रामायण एक बहुत ही सफ़ल भारतीय टीवी श्रृंखला है, जिसका निर्माण, लेखन और निर्देशन रामानन्द सागर के द्वारा किया गया था। ७८-कड़ियों के इस धारावाहिक का मूल प्रसारण दूरदर्शन पर २५ जनवरी, १९८७ से ३१ जुलाई, १९८८ तक रविवार के दिन सुबह ९:३० किया जाता था। यह एक प्राचीन भारतीय धर्मग्रन्थ रामायण का टीवी रूपांतरण है और मुख्यतः वाल्मीकि रामायण और तुलसीदासजी की रामचरितमानस पर आधारित है। इसका कुछ भाग कम्बन की कम्बरामायण और अन्य कार्यों से लिया गया है। .

नई!!: जनक और रामायण (टीवी धारावाहिक) · और देखें »

रघुविलास

रघुविलास एक संस्कृत नाटक है जिसके रचयिता जैन नाट्यकार रामचन्द्र सूरि थे। वे आचार्य हेमचंद्र के शिष्य थे। रामचन्द्र सूरि का समय संवत ११४५ से १२३० का है। उन्होंने संस्कृत में ११ नाटक लिखे है। उनके अनुसार यह उनकी चार सर्वोतम कृतियों में से एक है। .

नई!!: जनक और रघुविलास · और देखें »

शारंग धनुष

यह धनुष, भगवान शिव के धनुष पिनाक के साथ, विश्वव्यापी वास्तुकलाकार और अस्त्र-शस्त्रों के निर्माता विश्वकर्मा द्वारा तैयार किया गया था। एक बार, भगवान ब्रह्मा जानना चाहते थे कि उन दोनों में से बेहतर तीरंदाज कौन है, विष्णु या शिव। तब ब्रह्मा ने दोनों के बीच झगड़ा पैदा किया, जिसके कारण एक भयानक द्वंद्वयुद्ध हुआ। उनके इस युद्ध के कारण पूरे ब्रह्मांड का संतुलन बिगड़ गया। लेकिन जल्द ही विष्णु ने अपने बाणों से शिव को पराजित किया। ब्रह्मा के साथ अन्य सभी देवताओं ने उन दोनों से युद्ध को रोकने के लिए आग्रह किया और विष्णु को विजेता घोषित किया क्योंकि वह शिव को पराजित करने में सक्षम थे। क्रोधित भगवान शिव ने अपने धनुष पिनाक को एक राजा को दे दिया, जो सीता के पिता राजा जनक के पूर्वज थे। भगवान विष्णु ने भी ऐसा करने का निर्णय किया, और ऋषि ऋचिक को अपना धनुष शारंग दे दिया। समय के साथ, शारंग, भगवान विष्णु के छठे अवतार और ऋषि ऋचिक के पौत्र परशुराम को प्राप्त हुआ। परशुराम ने अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के पश्चात, विष्णु के अगले अवतार भगवान राम को शारंग दे दिया। राम ने इसका प्रयोग किया और इसे जलमण्डल के देवता वरुण को दिया। महाभारत में, वरुण ने शारंग को खांडव-दहन के दौरान भगवान कृष्ण (विष्णु के आठवें अवतार) को दे दिया। मृत्यु से ठीक पहले, कृष्ण ने इस धनुष को महासागर में फेंककर वरुण को वापस लौटा दिया। विष्णु के आठवें अवतार भगवान कृष्ण और रहस्यमय शक्तियों के राक्षस शल्व के बीच एक द्वंद्वयुद्ध के दौरान शारंग प्रकट होता है। शल्व ने कृष्ण के बाएं हाथ पर हमला किया जिससे कृष्ण के हाथों से शारंग छूट गया। बाद में, भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शल्व के सिर को धड़ से अलग कर दिया। एक अन्य कथा के अनुसार, जब जनक ने घोषणा की कि जो भी सीता से विवाह करना चाहता है उसे पिनाक नामक दिव्य धनुष उठाना होगा और इसकी प्रत्यंचा चढ़ानी होगी। अयोध्या के राजकुमार राम ने ही यह धनुष प्रत्यंचित किया और सीता से विवाह किया। विवाह के बाद जब उनके पिता दशरथ राम के साथ अयोध्या लौट रहे थे, परशुराम ने उनके मार्ग को रोका और अपने गुरु शिव के धनुष पिनाक को तोड़ने के लिए राम को चुनौती दी। राम ने धनुष को भंग कर दिया । इस पर दशरथ ने ऋषि परशुराम से उसे क्षमा करने के लिए प्रार्थना की लेकिन परशुराम और भी क्रोधित हुए और उन्होने विष्णु के धनुष शारंग को लिया और राम से धनुष को बांधने और उसके साथ एक द्वंद्वयुद्ध लड़ने के लिए कहा। राम ने विष्णु के धनुष शारंग को लिया, इसे बाँधा, इसमें एक बाण लगाया और उस बाण को परशुराम की ओर इंगित किया। तब राम ने परशुराम से पूछा कि वह तीर का लक्ष्य क्या देंगे। इस पर, परशुराम स्वयं को अपनी रहस्यमय ऊर्जा से रहित मानते हैं। वह महसूस करते हैं कि राम विष्णु का ही अवतार है।.

नई!!: जनक और शारंग धनुष · और देखें »

शिवधनुष

शिवधनुष शंकर जी का प्रिय धनुष था जिसका नाम पिनाक था। शिवधनुष राजा जनक के पास धरोहर के रूप में रखा गया था। यह वही धनुष है जो सीता स्वयंवर में राजा जनक द्वारा रखा गया था। भगवान श्रीराम ने इसे तोड़ कर सीता जी से विवाह किया था .

नई!!: जनक और शिवधनुष · और देखें »

शिवधनुष (पिनाक)

शिवधनुष (संस्कृत: शिवधनुष) या पिनाक (संस्कृत: पिनाक) भगवान शिव का धनुष है। हिंदू महाकाव्य रामायण में इस धनुष का उल्लेख है, जब श्री राम इसे जनक की पुत्री सीता को अपनी पत्नी के रूप में जीतने के लिए भंग करते हैं। भगवान राम, सीता को पत्नी रूप में प्राप्त करने हेतु शिवधनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए .

नई!!: जनक और शिवधनुष (पिनाक) · और देखें »

श्रीभार्गवराघवीयम्

श्रीभार्गवराघवीयम् (२००२), शब्दार्थ परशुराम और राम का, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००२ ई में रचित एक संस्कृत महाकाव्य है। इसकी रचना ४० संस्कृत और प्राकृत छन्दों में रचित २१२१ श्लोकों में हुई है और यह २१ सर्गों (प्रत्येक १०१ श्लोक) में विभक्त है।महाकाव्य में परब्रह्म भगवान श्रीराम के दो अवतारों परशुराम और राम की कथाएँ वर्णित हैं, जो रामायण और अन्य हिंदू ग्रंथों में उपलब्ध हैं। भार्गव शब्द परशुराम को संदर्भित करता है, क्योंकि वह भृगु ऋषि के वंश में अवतीर्ण हुए थे, जबकि राघव शब्द राम को संदर्भित करता है क्योंकि वह राजा रघु के राजवंश में अवतीर्ण हुए थे। इस रचना के लिए, कवि को संस्कृत साहित्य अकादमी पुरस्कार (२००५) तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। महाकाव्य की एक प्रति, कवि की स्वयं की हिन्दी टीका के साथ, जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा ३० अक्टूबर २००२ को किया गया था। .

नई!!: जनक और श्रीभार्गवराघवीयम् · और देखें »

श्रीसीतारामकेलिकौमुदी

श्रीसीतारामकेलिकौमुदी (२००८), शब्दार्थ: सीता और राम की (बाल) लीलाओं की चन्द्रिका, हिन्दी साहित्य की रीतिकाव्य परम्परा में ब्रजभाषा (कुछ पद मैथिली में भी) में रचित एक मुक्तक काव्य है। इसकी रचना जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००७ एवं २००८ में की गई थी।रामभद्राचार्य २००८, पृष्ठ "क"–"ड़"काव्यकृति वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीदास की श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड की पृष्ठभूमि पर आधारित है और सीता तथा राम के बाल्यकाल की मधुर केलिओं (लीलाओं) एवं मुख्य प्रसंगों का वर्णन करने वाले मुक्तक पदों से युक्त है। श्रीसीतारामकेलिकौमुदी में ३२४ पद हैं, जो १०८ पदों वाले तीन भागों में विभक्त हैं। पदों की रचना अमात्रिका, कवित्त, गीत, घनाक्षरी, चौपैया, द्रुमिल एवं मत्तगयन्द नामक सात प्राकृत छन्दों में हुई है। ग्रन्थ की एक प्रति हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन ३० अक्टूबर २००८ को किया गया था। .

नई!!: जनक और श्रीसीतारामकेलिकौमुदी · और देखें »

समस्तीपुर

समस्तीपुर भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त में दरभंगा प्रमंडल स्थित एक शहर एवं जिला है। समस्तीपुर के उत्तर में दरभंगा, दक्षिण में गंगा नदी और पटना जिला, पश्चिम में मुजफ्फरपुर एवं वैशाली, तथा पूर्व में बेगूसराय एवं खगड़िया जिले है। यहाँ शिक्षा का माध्यम हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी है लेकिन बोल-चाल में बज्जिका और मैथिली बोली जाती है। मिथिला क्षेत्र के परिधि पर स्थित यह जिला उपजाऊ कृषि प्रदेश है। समस्तीपुर पूर्व मध्य रेलवे का मंडल भी है। समस्तीपुर को मिथिला का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है। .

नई!!: जनक और समस्तीपुर · और देखें »

सुनयना

सुनयना रामायण की एक प्रमुख पात्रा हैं। वे मिथिला के राजा जनक की पत्नी तथा सीता की माता थीं। सुनयना का नाम वाल्मीकि रामायण मे नहीं मिलता, यह नाम तुलसीदास की रामचरितमानस मे प्रयोगिक किया है। जैन ग्रंथ 'पौम्यचरित्र' मे उनका नाम विदेह हैं और 'वासुदेवहिंदी' मे उनका नाम धारिणी दिया गया हैं। महाभारत के शांतिपर्व मे जनक की पत्नी को कौशल्या कहा गया है। कुछ संस्करण मे उन्हें सुनेत्रा कहा गया है। बौद्ध धर्म की महाजनक जातक मे उनका नाम शिव्वली बताया गया है। श्रेणी:रामायण के पात्र.

नई!!: जनक और सुनयना · और देखें »

सीता

सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है। त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते हैं। .

नई!!: जनक और सीता · और देखें »

सीता कुंड

पूनौरा धाम मंदिर स्थित सीता कुंड सीता-कुंड सीतामढ़ी के पुनौरा ग्राम स्थित एक हिन्दू तीर्थ स्थल है। यहाँ एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। सीतामढ़ी से ५ किलोमीटर दूर यह स्थल पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। पुनौरा और जानकी कुंड:यह स्थान पौराणिक काल में पुंडरिक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। सीतामढी से ५ किलोमीटर पश्चिम स्थित पुनौरा में हीं देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावे यहाँ पवित्र कुंड है। .

नई!!: जनक और सीता कुंड · और देखें »

सीतामढ़ी

सीतामढ़ी (अंग्रेज़ी: Sitamarhi,उर्दू: سيتامارهى) भारत के मिथिला का प्रमुख शहर है जो पौराणिक आख्यानों में सीता की जन्मस्थली के रूप में उल्लिखित है। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। सीता के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा। यह शहर लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर अवस्थित है। रामायण काल में यह मिथिला राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग था। १९०८ ईस्वी में यह मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा बना। स्वतंत्रता के पश्चात ११ दिसम्बर १९७२ को इसे स्वतंत्र जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। त्रेतायुगीन आख्यानों में दर्ज यह हिंदू तीर्थ-स्थल बिहार के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वर्तमान समय में यह तिरहुत कमिश्नरी के अंतर्गत बिहार राज्य का एक जिला मुख्यालय और प्रमुख पर्यटन स्थल है। .

नई!!: जनक और सीतामढ़ी · और देखें »

सीतामढी

सीतामढी भारत गणराज्य के बिहार प्रान्त के तिरहुत प्रमंडल मे स्थित एक शहर एवं जिला है। 1972 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर यह स्वतंत्र जिला बना। बिहार के उत्तरी गंगा के मैदान में स्थित यह जिला नेपाल की सीमा पर होने के कारण संवेदनशील है। बज्जिका यहाँ की बोली है लेकिन हिंदी और उर्दू राजकाज़ की भाषा और शिक्षा का माध्यम है। यहाँ की स्थानीय संस्कृति, रामायणकालीन परंपरा तथा धार्मिकता नेपाल के तराई प्रदेश तथा मिथिला के समान है। .

नई!!: जनक और सीतामढी · और देखें »

जनक विदेह

जनक विदेह के उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में चार भिन्न भिन्न स्थलों में हुए हैं और सभी में याज्ञवल्क्य भी साथ-साथ आते हैं। वहाँ जनक विदेह, याज्ञवल्क्य को शिक्षा देते हुए पाए जाते हैं। यह भी कहा गया है कि वे अंत में स्वयं ब्रह्मण्य (ब्रह्मा) पद प्राप्त कर लेते हैं। यों तो वैदिक युग में वर्णपरिवर्तन संभव ही नहीं अपितु प्रचलित भी था; यह कह सकना कठिन है कि यहाँ जनक द्वारा क्षत्रिय वर्ण छोड़कर ब्राह्मण वर्ण में प्रवेश कर जाने का उल्लेख है अथवा केवल ज्ञान और दर्शन क्षेत्र में ब्रह्मण्य प्राप्त कर लेने की ओर निर्देश है। यह भी कहा गया है कि अग्निहोत्र के बारे में उचित उत्तर पाकर जनक ने याज्ञवल्क्य को १०० गायों का दान दिया। एक दूसरे स्थल पर १००० गायों के दान देने की बात भी कही गई है। शाखायन श्रौतसूत्र में उन्हें 'सप्तरात्र' नामक यज्ञ का कर्ता भी कहा गया है। जनक और याज्ञवल्क्य का बृहदारण्यक उपनिषद् में भी उल्लेख हुआ है, किंतु वहाँ याज्ञवल्क्य शिष्यत्व छोड़कर गुरु का स्थान प्राप्त कर लेते हैं और स्वयं जनक उनसे परलोक, ब्रह्म और आत्मा के विषय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक और कौषीतकि उपनिषदों तथा शांखायन आरण्यक से यह तो सिद्ध होता ही है कि जनक विदेह और याज्ञवल्क्य समकालीन थे, यह भी ज्ञात होता है कि श्वेतकेतु आरुणेय और काशी के प्रसिद्ध दार्शनिक राजा अजातशत्रु भी उन्हीं के समय में हुए थे। एक विद्वान् ने काशी के अजातशत्रु के मगध के अजातशत्रु से मिलाते हुए जनक का समय ई.पू.

नई!!: जनक और जनक विदेह · और देखें »

जनकपुर

जनकपुर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ये नगर प्राचीन काल में मिथिला की राजधानी माना जाता है। यहाँ पर प्रसिद्ध राजा जनक थे। जो सीता माता के पिता थे। यह शहर भगवान राम की ससुराल के रूप में विख्यात है। यथा: जनकपुरादक्षिणान्शे सप्तकोश-व्यतिक्रमें। महाग्रामे गहश्च जनकस्य वै।। जनकपुर की ख्याति कैसे बढ़ी और उसे राजा जनक की राजधानी लोग कैसे समझने लगे, इसके संवन्ध में एक अनुश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि पवित्र जनक वंश का कराल जनक के समय में नैतिक अद्य:पतन हो गया। कौटिल्य ने प्रसंगवश अपनेअर्थशास्त्र में लिखा है कि कराल जनक ने कामान्ध होकर ब्राह्मण कन्या का अभिगमन किया। इसी कारण वह वनधु-बंधवों के साथ मारा गया। अश्वघोष ने भी अपने ग्रंथ बुद्ध चरित्र में इसकी पुष्टि की है। कराल जनक के बढ़ के पश्चात जनक वंश में जो लोग बच गए, वे निकटवारती तराई के जंगलों में जा छुपे। जहां वे लोग छिपे थे, वह स्थान जनक के वंशजों के रहने के कारण जनकपुर कहलाने लगा। .

नई!!: जनक और जनकपुर · और देखें »

विदेह वंश

प्राचीन काल में आर्यजन अपने गणराज्य का नामकरण राजन्य वर्ग के किसी विशिष्ट व्यक्‍ति के नाम पर किया करते थे जिसे विदेह कहा गया। ये जन का नाम था। कालान्तर में विदेध ही विदेह हो गया। विदेह राजवंश का आरम्भ इक्ष्‍वाकु के पुत्र निमि विदेह के मानी जाती है। यह सूर्यवंशी थे। इसी वंश का दूसरा राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिलांचल की स्थापना की। इस वंश के २५वें राजा सिरध्वज जनक थे जो कौशल के राजा दशरथ के समकालीन थे।.

नई!!: जनक और विदेह वंश · और देखें »

गीतरामायणम्

गीतरामायणम् (२०११), शब्दार्थ: गीतों में रामायण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०-) द्वारा २००९ और २०१० ई में रचित गीतकाव्य शैली का एक संस्कृत महाकाव्य है। इसमें संस्कृत के १००८ गीत हैं जो कि सात कांडों में विभाजित हैं - प्रत्येक कांड एक अथवा अधिक सर्गों में पुनः विभाजित है। कुल मिलाकर काव्य में २८ सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग में ३६-३६ गीत हैं। इस महाकाव्य के गीत भारतीय लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत के विभिन्न गीतों की ढाल, लय, धुन अथवा राग पर आधारित हैं। प्रत्येक गीत रामायण के एक या एकाधिक पात्र अथवा कवि द्वारा गाया गया है। गीत एकालाप और संवादों के माध्यम से क्रमानुसार रामायण की कथा सुनाते हैं। गीतों के बीच में कुछ संस्कृत छंद हैं, जो कथा को आगे ले जाते हैं। काव्य की एक प्रतिलिपि कवि की हिन्दी टीका के साथ जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित की गई थी। पुस्तक का विमोचन संस्कृत कवि अभिराज राजेंद्र मिश्र द्वारा जनवरी १४, २०११ को मकर संक्रांति के दिन किया गया था। .

नई!!: जनक और गीतरामायणम् · और देखें »

आनन्द रामायण

आनंद रामायण राम के द्वारा रावण का वघ तथा राम के उत्तर जीवन का वर्णन करती हैं जिसमे लेखक वाल्मीकि हैं। .

नई!!: जनक और आनन्द रामायण · और देखें »

कुशध्वज

कुशध्वज कई हुए हैं- कुशध्वज (१): भागवत के अनुसार राजा जनक के पुत्र जिनकी बहन सीता और उर्मिला थीं। इनके पुत्र धर्मध्वज और पौत्र कृतध्वज एवं मितध्वज थे। कुशध्वज (२): वाल्मीकि रामायण, विष्णु पुराण, रामचरितमानस आदि के अनुसार जनक (सीरध्वज) के भाई मांडवी और श्रुतिकीर्ति के पिता। इन दोनों लड़कियों का विवाह क्रमश: भरत और शत्रुघ्न से हुआ था। कुशध्वज (३): देवगुरु बृहस्पति के एक पुत्र, जिनकी कन्या वेदवती थीं। इनके अतिरिक्त कुशध्वज नाम के और कई राजा तथा राजपुत्र हुए जिनमें सबसे प्रसिद्ध काशिराज कुशध्वज हैं जो परम शिवभक्त थे।.

नई!!: जनक और कुशध्वज · और देखें »

कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद

कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद कौषीतकि उपनिषद का पूरा नाम है। यह एक ऋग्वेदीय उपनिषद है।कौषीतकि उपनिषद ॠग्वेद के कौषीतकि ब्राह्मण का अंश है। इसमें कुल चार अध्याय हैं। इस उपनिषद में जीवात्मा और ब्रह्मलोक, प्राणोपासना, अग्निहोत्र, विविध उपासनाएं, प्राणतत्व की महिमा तथा सूर्य, चन्द्र, विद्युत मेघ, आकाश, वायु, अग्नि, जल, दर्पण और प्रतिध्वनि में विद्यमान चैतन्य तत्व की उपासना पर प्रकाश डाला गया है। अन्त में 'आत्मतत्त्व' के स्वरूप और उसकी उपासना से प्राप्त फल पर विचार किया गया है। .

नई!!: जनक और कौषीतकि ब्राह्मणोपनिषद · और देखें »

कैवल्य

विवेक उत्पन्न होने पर औपाधिक दुख सुखादि - अहंकार, प्रारब्ध, कर्म और संस्कार के लोप हो जाने से आत्मा के चितस्वरूप होकर आवागमन से मुक्त हो जाने की स्थिति को कैवल्य कहते हैं। पातंजलसूत्र के अनुसार चित्‌ द्वारा आत्मा के साक्षात्कार से जब उसके कर्त्तृत्त्व आदि अभिमान छूटकर कर्म की निवृत्ति हो जाती है तब विवेकज्ञान के उदय होने पर मुक्ति की ओर अग्रसारित आत्मा के चित्स्वरूप में जो स्थिति उत्पन्न होती हैं उसकी संज्ञा कैवल्य है। वेदांत के अनुसार परामात्मा में आत्मा की लीनता और न्याय के अनुसार अदृष्ट के नाश होने के फलस्वरूप आत्मा की जन्ममरण से मुक्तावस्था को कैवल्य कहा गया है। योगसूत्रों के भाष्यकार व्यास के अनुसार, जिन्होंने कर्मबंधन से मुक्त होकर कैवल्य प्राप्त किया है, उन्हें 'केवली' कहा जाता है। ऐसे केवली अनेक हुए है। बुद्धि आदि गुणों से रहित निर्मल ज्योतिवाले केवली आत्मरूप में स्थिर रहते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में शुक, जनक आदि ऋषियों को जीवन्मुक्त बताया है जो जल में कमल की भाँति, संसार में रहते हुए भी मुक्त जीवों के समान निर्लेप जीवनयापन करते है। जैन ग्रंथों में केवलियों के दो भेद - संयोगकेवली और अयोगकेवली बताए गए है। .

नई!!: जनक और कैवल्य · और देखें »

अद्भुत रामायण

अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्यविशेष है। कहा जाता है, इस ग्रंथ के प्रणेता बाल्मीकि थे। किंतु इसकी भाषा और रचना से लगता है, किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है। .

नई!!: जनक और अद्भुत रामायण · और देखें »

अयोध्याकाण्ड

Kaikeyi demands that Dasaratha banquish Rama from Ayodhya अयोध्याकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। राम के विवाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करना चाहा। इस पर देवता लोगों को चिंता हुई कि राम को राज्य मिल जाने पर रावण का वध असम्भव हो जायेगा। व्याकुल होकर उन्होंने देवी सरस्वती से किसी प्रकार के उपाय करने की प्रार्थना की। सरस्वती नें मन्थरा, जो कि कैकेयी की दासी थी, की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि भरत को राजा बनाया जाये और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दिया जाये। राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा| प्रयाग पहुँच कर राम ने भरद्वाज मुनि से भेंट की। वहाँ से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुँचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे। Rama Crosses Saryu अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी की, उसकी कुटिलता के लिये, बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और राम को मना कर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये। कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यंत पश्चाताप हुआ। सीता के माता-पिता सुनयना एवं जनक भी चित्रकूट पहुँचे। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे कि राम ने, पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये, अमान्य कर दिया। भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे। .

नई!!: जनक और अयोध्याकाण्ड · और देखें »

अष्टावक्र

अष्टावक्र अष्टावक्र अद्वैत वेदान्त के महत्वपूर्ण ग्रन्थ अष्टावक्र गीता के ऋषि हैं। अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। 'अष्टावक्र' का अर्थ 'आठ जगह से टेढा' होता है। कहते हैं कि अष्तावक्र का शरीर आठ स्थानों से तेढा था। .

नई!!: जनक और अष्टावक्र · और देखें »

अष्टावक्र (महाकाव्य)

अष्टावक्र (२०१०) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) द्वारा २००९ में रचित एक हिन्दी महाकाव्य है। इस महाकाव्य में १०८-१०८ पदों के आठ सर्ग हैं और इस प्रकार कुल ८६४ पद हैं। महाकाव्य ऋषि अष्टावक्र की कथा प्रस्तुत करता है, जो कि रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों में उपलब्ध है। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया था। पुस्तक का विमोचन जनवरी १४, २०१० को कवि के षष्टिपूर्ति महोत्सव के दिन किया गया। इस काव्य के नायक अष्टावक्र अपने शरीर के आठों अंगों से विकलांग हैं। महाकाव्य अष्टावक्र ऋषि की संपूर्ण जीवन यात्रा को प्रस्तुत करता है जोकि संकट से प्रारम्भ होकर सफलता से होते हुए उनके उद्धार तक जाती है। महाकवि, जो स्वयं दो मास की अल्पायु से प्रज्ञाचक्षु हैं, के अनुसार इस महाकाव्य में विकलांगों की सार्वभौम समस्याओं के समाधानात्मक सूत्र प्रस्तुत किए गए हैं। उनके अनुसार महाकाव्य के आठ सर्ग विकलांगों की आठ मनोवृत्तियों के विश्लेषण मात्र हैं।रामभद्राचार्य २०१०, पृष्ठ क-ग। .

नई!!: जनक और अष्टावक्र (महाकाव्य) · और देखें »

अष्टावक्र गीता

अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का ग्रन्थ है, जिसमें ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद का संकलन है। इस पुस्तक के बारे में किंवदंती है कि रामकृष्ण परमहंस ने भी यही पुस्तक नरेंद्र को पढ़ने को कहा था जिसके पश्चात वे उनके शिष्य बने और कालांतर में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस ग्रंथ का प्रारंभ राजा जनक द्वारा किये गए तीन प्रश्नों से होता है। ज्ञान कैसे प्राप्त होता है ? मुक्ति कैसे होगी ? और वैराग्य कैसे प्राप्त होगा ? ये तीन शाश्वत प्रश्न हैं जो हर काल में आत्मानुसंधानियों द्वारा पूछे जाते रहे हैं। ऋषि अष्टावक्र ने इन्हीं तीन प्रश्नों का संधान राजा जनक के साथ संवाद के रूप में किया है जो अष्टावक्र गीता के रूप में प्रचलित है। ये सूत्र आत्मज्ञान के सबसे सीधे और सरल वक्तव्य हैं। इनमें एक ही पथ प्रदर्शित किया गया है जो है ज्ञान का मार्ग। ये सूत्र ज्ञानोपलब्धि के, ज्ञानी के अनुभव के सूत्र हैं। स्वयं को केवल जानना है—ज्ञानदर्शी होना, बस। कोई आडम्बर नहीं, आयोजन नहीं, यातना नहीं, यत्न नहीं, बस हो जाना वही जो हो। इसलिए इन सूत्रों की केवल एक ही व्याख्या हो सकती है, मत मतान्तर का कोई झमेला नहीं है; पाण्डित्य और पोंगापंथी की कोई गुंजाइश नहीं है। अध्यात्मिक ग्रंथों मैं भगवद्गीता उपनिषद और ब्रह्मसूत्र के सामान अष्टावक्र गीता अमूल्य ग्रन्थ है। भगवद्गीता के समान इसके निरंतर अध्ययन मात्र से बोधिसत्त्व उपलब्ध हो जाता है। इस ग्रन्थ मैं ज्ञान, वैराग्य, मुक्ति और बुद्धत्व प्राप्त योगी की दशा का सविस्तार वर्णन है। यह विश्व धरोहर है और समस्त भ्रमों का निवारण हो जाता है। .

नई!!: जनक और अष्टावक्र गीता · और देखें »

उर्वीजा

उर्वीजा सीता का एक और नाम है। मिथिला नरेश जनक के हल-कर्षण-यज्ञ के फलस्वरूप पृथ्वी से उत्पन्न होने के कारण सीता का यह नाम पड़ा। "ऊर्वी" का अभिप्राय "पृथ्वी" से है और "जा" प्रत्यय का अभिप्राय है जन्मना अर्थात जन्म लेना। यानि उर्बीजा का मतलब है पृथ्वी से जन्मना। यद्यपि सीता पृथवी से उत्पन्न हुयी थी, इसलिए उन्हें उर्वीजा भी कहा जाता है। वे जनकपुर के राजा जनक की पुत्री,राम की पत्नी तथा अयोध्या के राजा दशरथ की पुत्रवधू थीं। .

नई!!: जनक और उर्वीजा · और देखें »

यहां पुनर्निर्देश करता है:

राजा जनक, सिरध्वज जनक, जनकप्रतिज्ञा

निवर्तमानआने वाली
अरे! अब हम फेसबुक पर हैं! »