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जगन्नाथदास रत्नाकर

सूची जगन्नाथदास रत्नाकर

जगन्नाथदास रत्नाकर (१८६६ - २१ जून १९३२) आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि थे। .

12 संबंधों: भ्रमरगीत, माधुरी पत्रिका, समस्त रचनाकार, सरस्वती पत्रिका, हिन्दी पुस्तकों की सूची/अ, हिन्दी कवि, गंगा नदी, आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास, आधुनिक काल, अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन, उपालम्भ काव्य, २१ जून

भ्रमरगीत

भ्रमरगीत भारतीय काव्य की एक पृथक काव्यपरम्परा है। हिन्दी में सूरदास और जगन्नाथदास रत्नाकर ने भ्रमरगीत की रचना की है। .

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माधुरी पत्रिका

माधुरी पत्रिका का प्रकाशन अगस्त १९२१ ई० में लखनऊ से हुआ। इसके संपादक विष्णुनारायण भार्गव थे। प्रारम्भ में कई वर्ष तक इसके संपादक दुलारेलाल भार्गव और रूपनारायण पाण्डेय थे। बाद में प्रेमचन्द और कृष्णबिहारी मिश्र ने इसका संपादन किया। इसके अतिरिक्त कुछ समय तक इसका संपादन जगन्नाथदास रत्नाकर और ब्रजरत्नदास भी करते रहे। १९२५ में कुछ समय तक आचार्य शिवपूजन सहाय ने भी इसका संपादन किया। हिन्दी की प्रारम्भिक पत्रिकाओं में "सरस्वती" के साथ ही "माधुरी" की गणना होती है। अमृतलाल नागर ने भी मेरी प्रिय कहानियाँ में लिखा है कि उनकी पहली कहानी १९३४ में माधुरी में छपी थी। .

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समस्त रचनाकार

अकारादि क्रम से रचनाकारों की सूची अ.

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सरस्वती पत्रिका

सरस्वती हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध रूपगुणसम्पन्न प्रतिनिधि पत्रिका थी। इस पत्रिका का प्रकाशन इलाहाबाद से सन १९०० ई० के जनवरी मास में प्रारम्भ हुआ था। ३२ पृष्ठ की क्राउन आकार की इस पत्रिका का मूल्य ४ आना मात्र था। १९०३ ई० में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपादक हुए और १९२० ई० तक रहे। इसका प्रकाशन पहले झाँसी और फिर कानपुर से होने लगा था। महवीर प्रसाद द्विवेदी के बाद पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवी दत्त शुक्ल, श्रीनाथ सिंह, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवीलाल चतुर्वेदी और श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्पादक हुए। १९०५ ई० में काशी नागरी प्रचारिणी सभा का नाम मुखपृष्ठ से हट गया। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसका कार्यभार संभाला। एक ओर भाषा के स्तर पर और दूसरी ओर प्रेरक बनकर मार्गदर्शन का कार्य संभालकर द्विवेदी जी ने साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया। द्विवेदी जी ने भाषा की समृद्धि करके नवीन साहित्यकारों को राह दिखाई। उनका वक्तव्य है: महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ नए रचनाकारों को भाषा का महत्त्व समझाया व गद्य और पद्य के लिए राह निर्मित की। महावीर प्रसाद द्विवेदी की यह पत्रिका मूलतः साहित्यिक थी और हरिऔध, मैथिलीशरण गुप्त से लेकर कहीं-न-कहीं निराला के निर्माण में इसी पत्रिका का योगदान था परंतु साहित्य के निर्माण के साथ राष्ट्रीयता का प्रसार करना भी इनका उद्देश्य था। भाषा का निर्माण करना साथ ही गद्य-पद्य के लिए खड़ी बोली को ही प्रोत्साहन देना इनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। मई १९७६ के बाद इसका प्रकाशन बन्द हो गया।लगभग अस्सी वर्षों तक यह पत्रिका निकली I अंतिम बीस वर्षों तक इसका सम्पादन पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी ने किया I .

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हिन्दी पुस्तकों की सूची/अ

कोई विवरण नहीं।

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हिन्दी कवि

हिन्दी साहित्य राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी कविता परम्परा बहुत समृद्ध है। .

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गंगा नदी

गंगा (गङ्गा; গঙ্গা) भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर २,५१० किलोमीटर (कि॰मी॰) की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। २,०७१ कि॰मी॰ तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। १०० फीट (३१ मी॰) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ तथा देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौन्दर्य और महत्त्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किये गये हैं। इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाये जाते हैं। यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित ज़रूरतों को पूरा करती हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा सका है। फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,२००८ में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा इलाहाबाद और हल्दिया के बीच (१६०० किलोमीटर) गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है। .

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आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास

आधुनिक काल १८५० से हिंदी साहित्य के इस युग को भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी पद्य साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहां काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग,नयी कविता युग और साठोत्तरी कविता इन नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को भारतेंदु हरिश्चंद्र युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के दो और युगों में बांटा गया। इसके विशेष कारण भी हैं। .

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आधुनिक काल

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। सं 1800 वि.

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अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा एवं साहित्य तथा देवनागरी का प्रचार-प्रसार को समर्पित एक प्रमुख सार्वजनिक संस्था है। इसका मुख्यालय प्रयाग (इलाहाबाद) में है जिसमें छापाखाना, पुस्तकालय, संग्रहालय एवं प्रशासनिक भवन हैं। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ही सर्वप्रथम हिंदी लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी रचनाओं पर पुरस्कारों आदि की योजना चलाई। उसके मंगलाप्रसाद पारितोषिक की हिंदी जगत् में पर्याप्त प्रतिष्ठा है। सम्मेलन द्वारा महिला लेखकों के प्रोत्साहन का भी कार्य हुआ। इसके लिए उसने सेकसरिया महिला पारितोषिक चलाया। सम्मेलन के द्वारा हिंदी की अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवं साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवं संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है जिनकी संख्या डेढ़-दो सौ के करीब है। सम्मेलन के हिंदी संग्रहालय में हिंदी की हस्तलिखित पांडुलिपियों का भी संग्रह है। इतिहास के विद्वान् मेजर वामनदास वसु की बहुमूल्य पुस्तकों का संग्रह भी सम्मेलन के संग्रहालय में है, जिसमें पाँच हजार के करीब दुर्लभ पुस्तकें संगृहीत हैं। .

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उपालम्भ काव्य

उपालम्भ काव्य का विवरण। उपालम्भ काव्य का विवरण प्राचीन संस्कृत हिंदी काव्याचार्यों के मतानुसार उपालंभ काव्य मुख्यत: शृंगारकाव्य का एक भेद, जिसमें नायिका की विश्वस्त सखी उपालंभ (उलाहना) देकर नायक को नायिका के अनुकूल करती है। लेकिन सर्वत्र सखी द्वारा ही नायिका नायक को उपालंभपूर्ण संदेश नहीं देती, बल्कि संयोग शृंगार में नायिका स्वयं ही नायक को उपालंभ देती है। कहीं-कहीं नायिका, पक्षी, मेघ अथवा पवन द्वारा भी नायक को उपालंभ भेजती है। ऐसा प्राय: वियोग शृंगार में देख पड़ता है। लोककाव्य में विरहिणी नायिका कागा आदि पक्षियों के माध्यम से अथवा प्रवासी पति के नगरादि से आए पथिक के माध्यम से उपालंभ देती है। नवपरिणीता युवती मायके के आत्मीय जनों की अभावजन्य वेदना तथा बहन भाई की कल्पित उपेक्षा का उपालंभ देती देख पड़ती है। इष्टदेव के प्रति दास्य भाव रखनेवाले भक्त कवियों ने (यथा सूरदास) भी उपालंभ का आश्रय लिया है। किंतु यह परिभाषा अपने में पूर्ण नहीं है। उपालंभ में मात्र उलाहना नहीं होता या प्रियपात्र की निंदा ही नहीं होती; इसका मुख्य भाव है, किसी प्रकार प्रिय साहचर्य की अनुभूति या चेष्टा, सहयोगाकांक्षाजन्य विकलता और मिलन की अभिलाषा। परिभाषा के इसी वैशिष्ट्य के कारण उपालंभ काव्य केवल शृंगार तक ही सीमित नहीं माना जा सकता। हिंदी भक्तिकाव्य में उपालंभ पर्याप्त मात्रा में मिलता है। राधा तथा गोपियों के उपालंभ के साथ माता यशोदा का कृष्ण के प्रति मधुर उपालंभ, कृष्ण का यशोदा तथा बलराम के प्रति उपालंभ तथा विनयभावना के अंतर्गत भक्तों का अपने आराध्य के प्रति उपालंभ भी भक्तिकाव्य के सुंदर प्रसंग हैं। कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद जब नंद, यशोदा, राधा, गोप, गोपियाँ सब अत्यंत दु:खी हैं, उसी समय उद्धव कृष्ण की ओर से गोपियों को समझाने-बुझाने आते हैं। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में गोपियों द्वारा उद्धव को उपलक्ष्य बनाकर कृष्ण को उपालंभ देने का अत्यंत सुंदर वर्णन है। इसी प्रसंग को काव्य में "भ्रमरगीत" के नाम से अभिहित किया गया है। मैथिल कवि विद्यापति, चंडीदास, सूरदास, नंददास आदि प्राचीन कवियों ने; भारतेंदु हरिश्चंद्र और जगन्नाथदास रत्नाकर आदि इधर के कवियों ने उपालंभ काव्य का पर्याप्त प्रयोग किया है। कुछ हास्यरस के कवियों ने भी यत्र-तत्र उपालंभ का सहारा लिया है। श्रेणी:काव्य श्रेणी:साहित्य.

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२१ जून

21 जून ग्रेगोरी कैलंडर के अनुसार वर्ष का 172वाँ (लीप वर्ष में 173 वाँ) दिन है। साल में अभी और 193 दिन बाकी हैं। २१जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भी भी मनाया जाता है जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में रखकर की जिसकी स्वीकृति संयुक्त राष्ट्र ने ११ दिसंबर २०१४ को दे दी। भारत में योग का प्रतिनिधित्व योगगुरु बाबा रामदेव करते है जिन्होंने लाखो गरीब लोगो को निशुल्क योग शिविर लगा कर कई गंभीर बीमारियों से निजात दिलाई है। योग मन की शांति का एक मार्ग है। .

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यहां पुनर्निर्देश करता है:

जगन्नाथ दास रत्नाकर, जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

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