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आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास

सूची आधुनिक हिंदी पद्य का इतिहास

आधुनिक काल १८५० से हिंदी साहित्य के इस युग को भारत में राष्ट्रीयता के बीज अंकुरित होने लगे थे। स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और जीता गया। छापेखाने का आविष्कार हुआ, आवागमन के साधन आम आदमी के जीवन का हिस्सा बने, जन संचार के विभिन्न साधनों का विकास हुआ, रेडिओ, टी वी व समाचार पत्र हर घर का हिस्सा बने और शिक्षा हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार। इन सब परिस्थितियों का प्रभाव हिंदी साहित्य पर अनिवार्यतः पड़ा। आधुनिक काल का हिंदी पद्य साहित्य पिछली सदी में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा। जिसमें अनेक विचार धाराओं का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। जहां काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग,नयी कविता युग और साठोत्तरी कविता इन नामों से जाना गया, छायावाद से पहले के पद्य को भारतेंदु हरिश्चंद्र युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी युग के दो और युगों में बांटा गया। इसके विशेष कारण भी हैं। .

37 संबंधों: डॉ. पद्मेश गुप्त, डॉ. महेन्द्र वर्मा, डॉ. कृष्ण कुमार, तेजेंद्र शर्मा, तोषी अमृता, नरेश भारतीय, निखिल कौशिक, प्रतिभा डावर, प्राण शर्मा, भारतेन्दु विमल, भक्ति काल, महावीर शर्मा, मोहन राणा, रमेश पटेल, रीति काल, शैल अग्रवाल, सत्येन्द्र श्रीवास्तव, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सोहन राही, हिन्दी साहित्य का इतिहास, हिन्दी कवि, हिन्दी की साहित्यिक प्रवृत्तियाँ, हिंदी साहित्य, जयशंकर प्रसाद, गौतम सचदेव, गोविन्द शर्मा, आदिकाल, आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास, आधुनिक काल, कादंबरी मेहरा, काव्य, कविता की परिभाषा, कैलाश बुधवार, अचला शर्मा, उषा राजे सक्सेना, उषा वर्मा

डॉ. पद्मेश गुप्त

डॉ॰ पद्मेश गुप्त ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। डॉ॰ पद्मेश गुप्त ने यू॰के॰ हिन्दी समिति एवं `पुरवाई' पत्रिका के माध्यम से हिन्दी को इस देश में प्रतिष्ठित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे स्वयं मूलत: कवि हैं लेकिन बीच-बीच में कहानियां भी लिख लेते हैं। कथा यू॰के॰ की कथा गोष्ठी में कहानी पाठ भी कर चुके हैं। कृति यू॰के॰ द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में (जिसके निर्णायक भारत और अमरीका से थे) डॉ॰ पद्मेश गुप्त को कविता में प्रथम एवं कहानी में द्वितीय स्थान मिला। पद्मेश की कविताओं की विशेषता यह है कि वे पढ़ने में भी उतना ही प्रभावित करती हैं जितनी कि सुनने में। उनकी कविताएं समकालीन विषयों को उठाती हैं और बहुत से नए बिम्ब भी प्रस्तुत करती हैं। .

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डॉ. महेन्द्र वर्मा

डॉ॰ महेन्द्र वर्मा ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। यॉर्क विश्वविद्यालय में डॉ॰ महेन्द्र वर्मा हिन्दी का बीड़ा उठाए हुए हैं। 1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन के कर्णधारों में से एक महेन्द्र वर्मा कविता भी करते हैं। वे ब्रिटेन के एकमात्र ऐसे प्राध्यापक हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय में हिन्दी के कथाकारों को निमंत्रित करके वहां कार्यशालाएं करवाई हैं। स्थानीय हिन्दी लेखक एवं विद्यार्थियों के बीच यह एक अनूठा अनुभव पैदा करता है। .

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डॉ. कृष्ण कुमार

डॉ॰ कृष्ण कुमार बर्मिंघम मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। में डॉ॰ कृष्ण कुमार एक लम्बे अर्से से भारतीय भाषाओं की ज्योति `गीतांजलि बहुभाषी समाज' के माध्यम से जगाये हुए हैं। गीतांजलि ब्रिटेन की एकमात्र ऐसी संस्था है जो भारत की तमाम भाषाओं को साथ लेकर चलने का प्रयास करती है। डॉ॰ कुमार 1999 के विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन के अध्यक्ष भी थे। डॉ॰ कुमार की कविताएं गहराई और अर्थ का संगीतमय मिश्रण होती हैं। विचार उनकी कविताओं पर हावी रहता है। उन्हें एक अर्थ में यदि कवियों का कवि कहा जाय तो शायद गलत न होगा क्योंकि गीतांजलि के माध्यम से वे बर्मिंघम के कवियों कवयित्रियों को एक नई राह भी दिखा रहे हैं। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गीतांजलि के सदस्यों में विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवि शामिल हैं। अजय त्रिपाठी, स्वर्ण तलवार, रमा जोशी, चंचल जैन, विभा केल आदि काफी अर्से से कविता लिख रहे हैं। प्रियंवदा देवी मिश्र की रचनाओं में महादेवी वर्मा का प्रभाव साफ महसूस किया जा सकता है। .

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तेजेंद्र शर्मा

तेजेंद्र शर्मा (जन्म २१ अक्टूबर १९५२) ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि लेखक एवं नाटककार है। इनका जन्म 21 अक्टूबर 1952 में पंजाब के जगरांव शहर में हुआ। तेजेन्द्र शर्मा की स्कूली पढ़ाई दिल्ली के अंधा मुग़ल क्षेत्र के सरकारी स्कूल में हुई। दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. तथा कम्प्यूटर में डिप्लोमा करने वाले तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू तथा गुजराती भाषाओं का ज्ञान रखते हैं। उनके द्वारा लिखा गया धारावाहिक 'शांति' दूरदर्शन से १९९४ में अंतर्राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। अन्नू कपूर निर्देशित फ़िल्म 'अमय' में नाना पाटेकर के साथ उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई है। वे इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट के संस्थापक तथा हिंदी साहित्य के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मान इन्दु शर्मा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान प्रदान करनेवाली संस्था 'कथा यू॰के॰' के सचिव हैं। .

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तोषी अमृता

तोषी अमृता ब्रिटेन मे बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। तोषी अमृता शृंगार रस की कवयित्री हैं। उनके गीतों में प्रेम एवं शृंगार मुखर रूप से दिखाई देते हैं। उनकी भाषा सरल, पठनीय एवं सुरीली होती है। वैसे उन्होंने कुछ छुटपुट कहानियां भी लिखी हैं लेकिन मूलत: वे गीतकार हैं और हिन्दी साहित्य को कुछ सुन्दर से प्रेमगीत देने की तैयारी में हैं। .

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नरेश भारतीय

नरेश भारतीय (नरेश अरोड़ा) ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। एक लम्बे अर्से से बी.बी.सी. रेडिया हिन्दी सेवा से जुड़े रहे। उनके लेख भारत की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। पुस्तक रूप में उनके लेख संग्रह `उस पार इस पार' के लिए उन्हें पद्मानंद साहित्य सम्मान (2002) प्राप्त हो चुका है। उनके इस संकलन की विशेषता यह है कि उनके जो लेख पहले पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे उन्होंने संकलन में आवश्यक बदलाव करने में कोई गुरेज़ नहीं किया। हिन्दी लेखकों के लिए यह एक अनुकरणीय कदम है। वर्ष 2003 में आतंकवाद पर उनकी पुस्तक `आतंकवाद' प्रकाशित हुई है। नरेश भारतीय कविता भी लिखते हैं किन्तु लेख उनकी प्रिय विधा है। नरेशजी किसी भी प्रकार की साहित्यिक राजनीति से दूर निरंतर लेखन में व्यस्त रहते हैं। उनके पहले उपन्यास दिशाए बदल गई का विमोचन भारत की राजधानी दिल्ली में किया गया। .

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निखिल कौशिक

निखिल कौशिक ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। वेल्स निवासी निखिल कौशिक पेशे से डॉक्टर हैं लेकिन उनका व्यक्तित्व कवितामय ही है। उनके अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी कविताओं में नॉस्टेलजिया मौजूद है तो इस देश की समस्याओं की पूरी पकड़ भी। उनकी कविताओं में व्यंग्य की एक पैनी धार महसूस की जा सकती है। निखिल कवि सम्मेलनों में अपनी कविताओं को अपनी सुरीली आवाज़ में गाकर भी सुनाते हैं। निखिल सिनेमा को भी साहित्य की एक धारा ही मानते हैं। हाल ही में उन्होंने एक चलचित्र का निर्माण भी किया है जिसके वे निर्माता, निर्देशक, लेखक, गीतकार सभी कुछ हैं। .

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प्रतिभा डावर

प्रतिभा डावर ब्रिटेन में बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। लंदन में प्रतिभा डावर ने दो उपन्यासों की रचना की है: `वह मेरा चांद' एवं `दो चम्मच चीनी के'। .

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प्राण शर्मा

प्राण शर्मा ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। कॉवेन्टरी के प्राण शर्मा ब्रिटेन में हिन्दी ग़ज़ल के उस्ताद शायर हैं। प्राणजी बहुत शिद्दत के साथ ब्रिटेन के ग़ज़ल लिखने वालों की ग़ज़लों को पढ़कर उन्हें दुरुस्त करने में सहायता करते हैं। हिन्दी ग़ज़ल पर उनका एक लंबा लेख चार-पांच किश्तों में ‘पुरवाई’ में प्रकाशित हो चुका है। कुछ लोगों का कहना है कि ब्रिटेन में पहली हिन्दी कहानी शायद प्राण शर्मा ने ही लिखी थी। भारत के साहित्य से पत्रिकाओं के जरिए रिश्ता बनाए रखने वाले प्राण शर्मा अपने मित्र एवं सहयोगी श्री रामकिशन के साथ कॉवेन्टरी में कवि सम्मेलन एवं मुशायरा भी आयोजित करते हैं। उन्हें कविता, कहानी और उपन्यास की गहरी समझ है। .

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भारतेन्दु विमल

भारतेन्दु विमल ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। उपन्यास `सोन मछली' के लेखक भारतेन्दु विमल बी.बी.सी. रेडियो से जुड़े हैं। कमलेश्वरजी ने इस उपन्यास को गटर गंगा की संज्ञा देते हुए इस उपन्यास की भूमिका में इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। भारतेन्दु विमल ग़ज़ल एवं कविता भी लिखते हैं। मुंबई के फिल्म जगत से जुड़े विमलजी को वर्ष 2003 के लिए अपने उपन्यास `सोन मछली' के लिए पद्मानंद साहित्य सम्मान प्राप्त हो चुका है। वे किसी भी गुटबाज़ी या वाद-विवाद का हिस्सा नहीं बनते और किसी शांत कोने में आराम से अपना काम करते रहते हैं। विमलजी ब्रिटेन भर के बहुत से कवि सम्मेलनों का कुशल संचालन भी कर चुके हैं। .

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भक्ति काल

हिंदी साहित्य में भक्ति काल अपना एक अहम और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आदिकाल के बाद आये इस युग को पूर्व मध्यकाल भी कहा जाता है। जिसकी समयावधि 1375 ईo से 1700 ईo तक की मानी जाती है। यह हिंदी साहित्य का श्रेष्ठ युग है। जिसको जॉर्ज ग्रियर्सन ने स्वर्णकाल, श्यामसुन्दर दास ने स्वर्णयुग, आचार्य राम चंद्र शुक्ल ने भक्ति काल एवं हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लोक जागरण कहा। सम्पूर्ण साहित्य के श्रेष्ठ कवि और उत्तम रचनाएं इसी युग में प्राप्त होती हैं। दक्षिण में आलवार बंधु नाम से कई प्रख्यात भक्त हुए हैं। इनमें से कई तथाकथित नीची जातियों के भी थे। वे बहुत पढे-लिखे नहीं थे, परंतु अनुभवी थे। आलवारों के पश्चात दक्षिण में आचार्यों की एक परंपरा चली जिसमें रामानुजाचार्य प्रमुख थे। रामानुजाचार्य की परंपरा में रामानंद हुए। उनका व्यक्तित्व असाधारण था। वे उस समय के सबसे बड़े आचार्य थे। उन्होंने भक्ति के क्षेत्र में ऊंच-नीच का भेद तोड़ दिया। सभी जातियों के अधिकारी व्यक्तियों को आपने शिष्य बनाया। उस समय का सूत्र हो गयाः महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पुष्टि-मार्ग की स्थापना की और विष्णु के कृष्णावतार की उपासना करने का प्रचार किया। उनके द्वारा जिस लीला-गान का उपदेश हुआ उसने देशभर को प्रभावित किया। अष्टछाप के सुप्रसिध्द कवियों ने उनके उपदेशों को मधुर कविता में प्रतिबिंबित किया। इसके उपरांत माध्व तथा निंबार्क संप्रदायों का भी जन-समाज पर प्रभाव पड़ा है। साधना-क्षेत्र में दो अन्य संप्रदाय भी उस समय विद्यमान थे। नाथों के योग-मार्ग से प्रभावित संत संप्रदाय चला जिसमें प्रमुख व्यक्तित्व संत कबीरदास का है। मुसलमान कवियों का सूफीवाद हिंदुओं के विशिष्टाद्वैतवाद से बहुत भिन्न नहीं है। कुछ भावुक मुसलमान कवियों द्वारा सूफीवाद से रंगी हुई उत्तम रचनाएं लिखी गईं। संक्षेप में भक्ति-युग की चार प्रमुख काव्य-धाराएं मिलती हैं.

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महावीर शर्मा

महावीर शर्मा महावीर शर्मा (२० अप्रैल १९३३-१७ नवम्बर २०१०) आप्रवासी हिंदी लेखक थे, जिन्होंने ब्रिटेन को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। उन्होंने हिंदी में एम.ए. किया तथा लंदन यूनिवर्सिटी तथा ब्राइटन यूनिवर्सिटी में मॉडर्न गणित, ऑडियो विज़ुअल एड्स तथा स्टटिस्टिक्स की शिक्षा ली। उन्होंने उर्दू भी पढ़ी थी और वे कुशल गजलकार के रूप में भी जाने जाते थे। .

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मोहन राणा

मोहन राणा का जन्म 1964 में दिल्ली में हुआ। वे ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के हिंदी कवि हैं और बाथ (इंग्लैंड की समरसेट काउंटी में एक रोमन शहर) में निवासी हैं। उनकी कविताओं में जीवन के सूक्ष्म अनुभव महसूस किये जा सकते हैं। बाज़ार संस्कृति की शक्तियों के विरुद्ध उनकी सोच भी कविता में उभरकर सामने आती है। उनकी कविताएँ स्थितियों पर तात्कालिक प्रतिक्रिया मात्र नहीं होती हैं। वे पहले अपने भीतर के कवि और कविता के विषय में एक तटस्थ दूरी पैदा कर लेते हैं। फिर होता है सशक्त भावनाओं का नैसर्गिक विस्फोट। उनकी कविता पढ़कर महसूस होता है कि जैसे वे सच की एक निरंतर खोज यात्रा कर रहे हों। कवि-आलोचक नंदकिशोर आचार्य के अनुसार - हिंदी कविता की नई पीढ़ी में मोहन राणा की कविता अपने उल्लेखनीय वैशिष्टय के कारण अलग से पहचानी जाती रही है, क्योंकि उसे किसी खाते में खतियाना संभव नहीं लगता। यह कविता यदि किसी विचारात्मक खाँचे में नहीं अँटती तो इसका यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए कि मोहन राणा की कविता विचार से परहेज करती है – बल्कि वह यह जानती है कि कविता में विचार करने और कविता के विचार करने में क्या फर्क है। मोहन राणा के लिए काव्य रचना की प्रक्रिया अपने में एक स्वायत्त विचार प्रक्रिया भी है। .

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रमेश पटेल

रमेश पटेल ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। वर्ष 2006 में अपने जीवन के 70 वर्ष पूरे करने वाले रमेश पटेल प्रेमोर्मी ब्रिटेन में भारतीय संगीत और कला के सच्चे राजदूत माने जा सकते हैं। `नव कला' नामक संस्था की स्थापना कर लंदन में भारतीय कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका दे चुके हैं। उनका रचित काव्य संग्रह `हृदय गंगा' नौ भाषाओं में प्रकाशित हो चुका है। उसके अतिरिक्त उनका एक गीत संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। रमेश पटेल के गीतों में प्रेम एवं भक्ति रस की प्रधानता है। .

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रीति काल

सन् १७०० ई. के आस-पास हिंदी कविता में एक नया मोड़ आया। इसे विशेषत: तात्कालिक दरबारी संस्कृति और संस्कृत साहित्य से उत्तेजना मिली। संस्कृत साहित्यशास्त्र के कतिपय अंशों ने उसे शास्त्रीय अनुशासन की ओर प्रवृत्त किया। हिंदी में 'रीति' या 'काव्यरीति' शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और रस, अलंकार आदि के निरूपक बहुसंख्यक लक्षणग्रंथों को ध्यान में रखते हुए इस समय के काव्य को 'रीतिकाव्य' कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, फारसी और हिंदी के आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं। इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में शृंगार की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया कवित्त, सवैये और दोहे इस युग में लिखे गए। कवि राजाश्रित होते थे इसलिए इस युग की कविता अधिकतर दरबारी रही जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु कविता साधारण जनता से विमुख भी हो गई। रीतिकाल के अधिकांश कवि दरबारी थे। केशवदास (ओरछा), प्रताप सिंह (चरखारी), बिहारी (जयपुर, आमेर), मतिराम (बूँदी), भूषण (पन्ना), चिंतामणि (नागपुर), देव (पिहानी), भिखारीदास (प्रतापगढ़-अवध), रघुनाथ (काशी), बेनी (किशनगढ़), गंग (दिल्ली), टीकाराम (बड़ौदा), ग्वाल (पंजाब), चन्द्रशेखर बाजपेई (पटियाला), हरनाम (कपूरथला), कुलपति मिश्र (जयपुर), नेवाज (पन्ना), सुरति मिश्र (दिल्ली), कवीन्द्र उदयनाथ (अमेठी), ऋषिनाथ (काशी), रतन कवि (श्रीनगर-गढ़वाल), बेनी बन्दीजन (अवध), बेनी प्रवीन (लखनऊ), ब्रह्मदत्त (काशी), ठाकुर बुन्देलखण्डी (जैतपुर), बोधा (पन्ना), गुमान मिश्र (पिहानी) आदि और अनेक कवि तो राजा ही थे, जैसे- महाराज जसवन्त सिंह (तिर्वा), भगवन्त राय खीची, भूपति, रसनिधि (दतिया के जमींदार), महाराज विश्वनाथ, द्विजदेव (महाराज मानसिंह)। रीतिकाव्य रचना का आरंभ एक संस्कृतज्ञ ने किया। ये थे आचार्य केशवदास, जिनकी सर्वप्रसिद्ध रचनाएँ कविप्रिया, रसिकप्रिया और रामचंद्रिका हैं। कविप्रिया में अलंकार और रसिकप्रिया में रस का सोदाहरण निरूपण है। लक्षण दोहों में और उदाहरण कवित्तसवैए में हैं। लक्षण-लक्ष्य-ग्रंथों की यही परंपरा रीतिकाव्य में विकसित हुई। रामचंद्रिका केशव का प्रबंधकाव्य है जिसमें भक्ति की तन्मयता के स्थान पर एक सजग कलाकार की प्रखर कलाचेतना प्रस्फुटित हुई। केशव के कई दशक बाद चिंतामणि से लेकर अठारहवीं सदी तक हिंदी में रीतिकाव्य का अजस्र स्रोत प्रवाहित हुआ जिसमें नर-नारी-जीवन के रमणीय पक्षों और तत्संबंधी सरस संवेदनाओं की अत्यंत कलात्मक अभिव्यक्ति व्यापक रूप में हुई। .

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शैल अग्रवाल

शैल अग्रवाल (जन्म २१ जनवरी १९४७)) ब्रिटेन मे बसी भारतीय मूल की हिंदी लेखक है। उनका जन्म बनारस में हुआ था। वे गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखती हैं। उनके लेखन का कैनवस अत्यंत विस्तृत है। उनकी कहानियां मानव मन की सूक्ष्म अभिव्यंजना प्रस्तुत करती हैं तो कविताएं अपनी एक विशेष छाप छोड़ती हैं। उनके लेखन में बनारस की ताज़गी और ब्रिटेन की समझ दोनों की झलक देखी जा सकती है। उनका एक कहानी संग्रह 'ध्रुवतारा' और एक कविता संग्रह 'समिधा' प्रकाशित हो चुका है। .

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सत्येन्द्र श्रीवास्तव

एक लेखक क सबसे बडा आयुध है उसका किताब और कलम सत्येन्द्र श्रीवास्तव ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। युनाइटेड किंगडम में हिन्दी के वरिष्ठतम लेखक हैं। कविता, नाटक एवं लेख उनकी प्रिय विधाएं हैं। हिन्दी के अतिरिक्त उनके तीन कविता संग्रह अंग्रेजी भाषा में भी प्रकाशित हो चुके हैं। सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने टोरोंटो एवं लंदन विश्वविद्यालयों में अध्यापन के बाद पच्चीस वर्षों तक केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य पढ़ाया है। केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से सेवा निवृत्ति के पश्र्चात सत्येन्द्र श्रीवास्तव ने दक्षिण अफ्रीका, जापान, केन्या, जाम्बिया आदि देशों की यात्रा करते हुए वहां व्याख्यान दिये हैं व कविता पाठ किये हैं। सत्येन्द्र श्रीवास्तव के लेखन की एक विशेषता यह भी है कि उनका लेखन केवल नॉस्टेलजिक साहित्य नहीं है। वे केवल भारत के साथ भावनात्मक रिश्तों को ही नहीं भुनाते, वे युनाइटेड किंगडम की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं पर भी गहरी नज़र रखते हैं। उन्हें अपनी पुस्तक टेम्स में बहती गंगा की धार के लिए पहले पद्मानंद साहित्य सम्मान से अलंकृत किया गया। सत्येन्द्र श्रीवास्तव की कविताओं में गहराई है तो लेखों में विषय की पकड़ एवं भाषा का निर्वाह। मिसेज जोन्स और वह गली एवं विन्सटन चर्चिल मेरी मां को जानते थे जैसे उदाहरण इस बात का सबूत है कि सत्येन्द्र श्रीवास्तव सही मायने में ब्रिटिश हिन्दी साहित्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। .

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सुमित्रानन्दन पन्त

सुमित्रानंदन पंत (२० मई १९०० - २९ दिसम्बर १९७७) हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। उनका जन्म कौसानी बागेश्वर में हुआ था। झरना, बर्फ, पुष्प, लता, भ्रमर-गुंजन, उषा-किरण, शीतल पवन, तारों की चुनरी ओढ़े गगन से उतरती संध्या ये सब तो सहज रूप से काव्य का उपादान बने। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक व बिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। गौर वर्ण, सुंदर सौम्य मुखाकृति, लंबे घुंघराले बाल, सुगठित शारीरिक सौष्ठव उन्हें सभी से अलग मुखरित करता था। .

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (२१ फरवरी, १८९९ - १५ अक्टूबर, १९६१) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं किन्तु उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण ही है। .

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सोहन राही

सोहन राही ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। सर्रे निवासी सोहन राही इंगलैण्ड में गीत और ग़ज़ल विधा के बेहतरीन कलाकार हैं। वे इस देश के पहले साहित्यकार हैं जिनकी ग़ज़लों एवं गीतों के कैसेट एवं सी.

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हिन्दी साहित्य का इतिहास

हिन्दी साहित्य पर यदि समुचित परिप्रेक्ष्य में विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास अत्यंत विस्तृत व प्राचीन है। सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डॉ० हरदेव बाहरी के शब्दों में, हिन्दी साहित्य का इतिहास वस्तुतः वैदिक काल से आरम्भ होता है। यह कहना ही ठीक होगा कि वैदिक भाषा ही हिन्दी है। इस भाषा का दुर्भाग्य रहा है कि युग-युग में इसका नाम परिवर्तित होता रहा है। कभी 'वैदिक', कभी 'संस्कृत', कभी 'प्राकृत', कभी 'अपभ्रंश' और अब - हिन्दी। आलोचक कह सकते हैं कि 'वैदिक संस्कृत' और 'हिन्दी' में तो जमीन-आसमान का अन्तर है। पर ध्यान देने योग्य है कि हिब्रू, रूसी, चीनी, जर्मन और तमिल आदि जिन भाषाओं को 'बहुत पुरानी' बताया जाता है, उनके भी प्राचीन और वर्तमान रूपों में जमीन-आसमान का अन्तर है; पर लोगों ने उन भाषाओं के नाम नहीं बदले और उनके परिवर्तित स्वरूपों को 'प्राचीन', 'मध्यकालीन', 'आधुनिक' आदि कहा गया, जबकि 'हिन्दी' के सन्दर्भ में प्रत्येक युग की भाषा का नया नाम रखा जाता रहा। हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास के सम्बन्ध में प्रचलित धारणाओं पर विचार करते समय हमारे सामने हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का प्रश्न दसवीं शताब्दी के आसपास की प्राकृताभास भाषा तथा अपभ्रंश भाषाओं की ओर जाता है। अपभ्रंश शब्द की व्युत्पत्ति और जैन रचनाकारों की अपभ्रंश कृतियों का हिन्दी से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जो तर्क और प्रमाण हिन्दी साहित्य के इतिहास ग्रन्थों में प्रस्तुत किये गये हैं उन पर विचार करना भी आवश्यक है। सामान्यतः प्राकृत की अन्तिम अपभ्रंश-अवस्था से ही हिन्दी साहित्य का आविर्भाव स्वीकार किया जाता है। उस समय अपभ्रंश के कई रूप थे और उनमें सातवीं-आठवीं शताब्दी से ही पद्य-रचना प्रारम्भ हो गयी थी। साहित्य की दृष्टि से पद्यबद्ध जो रचनाएँ मिलती हैं वे दोहा रूप में ही हैं और उनके विषय, धर्म, नीति, उपदेश आदि प्रमुख हैं। राजाश्रित कवि और चारण नीति, शृंगार, शौर्य, पराक्रम आदि के वर्णन से अपनी साहित्य-रुचि का परिचय दिया करते थे। यह रचना-परम्परा आगे चलकर शौरसेनी अपभ्रंश या 'प्राकृताभास हिन्दी' में कई वर्षों तक चलती रही। पुरानी अपभ्रंश भाषा और बोलचाल की देशी भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता गया। इस भाषा को विद्यापति ने देसी भाषा कहा है, किन्तु यह निर्णय करना सरल नहीं है कि हिन्दी शब्द का प्रयोग इस भाषा के लिए कब और किस देश में प्रारम्भ हुआ। हाँ, इतना अवश्य कहा जा सकता है कि प्रारम्भ में हिन्दी शब्द का प्रयोग विदेशी मुसलमानों ने किया था। इस शब्द से उनका तात्पर्य 'भारतीय भाषा' का था। .

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हिन्दी कवि

हिन्दी साहित्य राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी कविता परम्परा बहुत समृद्ध है। .

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हिन्दी की साहित्यिक प्रवृत्तियाँ

यहाँ पर हिंदी (खड़ी बोली) की साहित्यिक प्रवृत्तियों का विवरण है। .

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हिंदी साहित्य

चंद्रकांता का मुखपृष्ठ हिन्दी भारत और विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में से एक है। उसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा में तलाशी जा सकती हैं। परंतु हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ और इसने अपनी शुरुआत कविता के माध्यम से जो कि ज्यादातर लोकभाषा के साथ प्रयोग कर विकसित की गई।हिंदी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है। गद्य पद्य और चम्पू। हिंदी की पहली रचना कौन सी है इस विषय में विवाद है लेकिन ज़्यादातर साहित्यकार देवकीनन्दन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता को हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना मानते हैं। .

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जयशंकर प्रसाद

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1890 - 15 नवम्बर 1937)अंतरंग संस्मरणों में जयशंकर 'प्रसाद', सं०-पुरुषोत्तमदास मोदी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी; संस्करण-2001ई०,पृ०-2(तिथि एवं संवत् के लिए)।(क)हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-10, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; संस्करण-1971ई०, पृ०-145(तारीख एवं ईस्वी के लिए)। (ख)www.drikpanchang.com (30.1.1890 का पंचांग; तिथ्यादि से अंग्रेजी तारीख आदि के मिलान के लिए)।, हिन्दी कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी। आधुनिक हिन्दी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। कवि के रूप में वे निराला, पन्त, महादेवी के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं; नाटक लेखन में भारतेंदु के बाद वे एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे जिनके नाटक आज भी पाठक न केवल चाव से पढ़ते हैं, बल्कि उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता भी दिनानुदिन बढ़ती ही गयी है। इस दृष्टि से उनकी महत्ता पहचानने एवं स्थापित करने में वीरेन्द्र नारायण, शांता गाँधी, सत्येन्द्र तनेजा एवं अब कई दृष्टियों से सबसे बढ़कर महेश आनन्द का प्रशंसनीय ऐतिहासिक योगदान रहा है। इसके अलावा कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई यादगार कृतियाँ दीं। विविध रचनाओं के माध्यम से मानवीय करुणा और भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों का उद्घाटन। ४८ वर्षो के छोटे से जीवन में कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचनात्मक निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाएँ की। उन्हें 'कामायनी' पर मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। उन्होंने जीवन में कभी साहित्य को अर्जन का माध्यम नहीं बनाया, अपितु वे साधना समझकर ही साहित्य की रचना करते रहे। कुल मिलाकर ऐसी बहुआयामी प्रतिभा का साहित्यकार हिंदी में कम ही मिलेगा जिसने साहित्य के सभी अंगों को अपनी कृतियों से न केवल समृद्ध किया हो, बल्कि उन सभी विधाओं में काफी ऊँचा स्थान भी रखता हो। .

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गौतम सचदेव

गौतम सचदेव (८ जून १९३९-२९ जून २०१२)ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। गौतम सचदेव ब्रिटेन में बसने से पहले बाल साहित्य में भारतीय राष्ट्रपति से सम्मान पा चुके थे। प्रेमचन्द की कहानियों पर उनकी डॉक्टरेट की थीसिस पुस्तक रूप में प्रकाशित हो चुकी थी। गौतम सचदेव ने हिन्दी साहित्य की प्रत्येक विधा में अपना हाथ आजमाया है। कविता, ग़ज़ल, लेख, कहानी, व्यंग्य, आलोचना सभी विधाओं में समान रूप से लिखते हैं और इन सभी विधाओं में उनके संकलन भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी बहुत सी कहानियों में विभाजन की पीड़ा, त्रासदी, दुख, टूटन देखे जा सकते हैं। उनके व्यंग्य आमतौर पर राजनीतिक, सामाजिक स्थितियों पर टिप्पणियां करते हैं। व्यंग्य लेखन में वे पात्रों एवं घटनाओं का इस्तेमाल नहीं करते। बी.बी.सी. रेडियो हिन्दी सेवा से वर्षों से जुड़े रहे गौतम सचदेव के लेखन में भाषा की पकड़, स्थितियों की समझ, कथानक का विकास, शिल्प के प्रयोग सभी उच्च श्रेणी के हैं। .

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गोविन्द शर्मा

गोविन्द शर्मा लंदन में बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। श्री गोविन्द शर्मा को हाल ही में लंदन के हाउस ऑफ़ लार्डस में उनकी फ़िल्मी पटकथा पर लिखी गई पुस्तक के लिये पद्मानंद साहित्य सम्मान 2006 से सम्मानित किया गया। गोविन्द शर्मा ने हिन्दी फ़िल्मों पर लिखे अपने लेखों को साहित्यक स्तर प्रदान करने का भरपूर एवं सफल प्रयास किया है। उनका मानना है कि बॉलीवुड का पटकथा लेखन हॉलीवुड से एकदम भिन्न है। .

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आदिकाल

आदिकाल सन 1000 से 1325 तक हिंदी साहित्य के इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्लने वीरगाथा काल तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे वीरकाल नाम दिया है। इस काल की समय के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले मिश्र बंधुओं ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बीजवपन काल। डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको चारण-काल कहा है और राहुल संकृत्यायन ने सिद्ध-सामंत काल। इस समय का साहित्य मुख्यतः चार रूपों में मिलता है.

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आधुनिक हिंदी गद्य का इतिहास

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल भारत के इतिहास के बदलते हुए स्वरूप से प्रभावित था। स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीयता की भावना का प्रभाव साहित्य में भी आया। भारत में औद्योगीकरण का प्रारंभ होने लगा था। आवागमन के साधनों का विकास हुआ। अंग्रेजी और पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव बढा और जीवन में बदलाव आने लगा। ईश्वर के साथ साथ मानव को समान महत्व दिया गया। भावना के साथ-साथ विचारों को पर्याप्त प्रधानता मिली। पद्य के साथ-साथ गद्य का भी विकास हुआ और छापेखाने के आते ही साहित्य के संसार में एक नई क्रांति हुई। आधुनिक हिन्दी गद्य का विकास केवल हिन्दी भाषी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं रहा। पूरे भारत में और हर प्रदेश में हिन्दी की लोकप्रियता फैली और अनेक अन्य भाषी लेखकों ने हिन्दी में साहित्य रचना करके इसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। हिन्दी गद्य के विकास को विभिन्न सोपानों में विभक्त किया जा सकता है- .

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आधुनिक काल

हिंदी साहित्य का आधुनिक काल तत्कालीन राजनैतिक गतिविधियों से प्रभावित हुआ। इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ। सं 1800 वि.

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कादंबरी मेहरा

कादंबरी मेहरा का नाम ब्रिटेन के उन प्रवासी कथाकारों के साथ लिया जाता हैं जिन्होंने पिछले दशक में अपनी उपस्थिति से समस्त हिंदी साहित्यकारों का ध्यान अपनी ओर खींच। उनके लेखन की शुरुआत वाराणसी के 'आज' अखबार से हुई और बाद में वे स्कूल व कॉलेज की साहित्यिक गतिविधियों से जुडी रहीं। अंग्रेजी साहित्य से स्नातकोत्तर उपाधि लेने के बाद वे लंदन चली गयीं जहां अध्यापन को अपना कार्यक्षेत्र बनाया और 25 वर्षों तक इससे जुडी रहीं। अवकाश प्राप्ति के बाद अब फिर से कहानी और उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया है। 'कुछ जग की' शीर्षक से उनका एक कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। .

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काव्य

काव्य, कविता या पद्य, साहित्य की वह विधा है जिसमें किसी कहानी या मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में कविता का इतिहास और कविता का दर्शन बहुत पुराना है। इसका प्रारंभ भरतमुनि से समझा जा सकता है। कविता का शाब्दिक अर्थ है काव्यात्मक रचना या कवि की कृति, जो छन्दों की शृंखलाओं में विधिवत बांधी जाती है। काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो। अर्थात् वहजिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। रसगंगाधर में 'रमणीय' अर्थ के प्रतिपादक शब्द को 'काव्य' कहा है। 'अर्थ की रमणीयता' के अंतर्गत शब्द की रमणीयता (शब्दलंकार) भी समझकर लोग इस लक्षण को स्वीकार करते हैं। पर 'अर्थ' की 'रमणीयता' कई प्रकार की हो सकती है। इससे यह लक्षण बहुत स्पष्ट नहीं है। साहित्य दर्पणाकार विश्वनाथ का लक्षण ही सबसे ठीक जँचता है। उसके अनुसार 'रसात्मक वाक्य ही काव्य है'। रस अर्थात् मनोवेगों का सुखद संचार की काव्य की आत्मा है। काव्यप्रकाश में काव्य तीन प्रकार के कहे गए हैं, ध्वनि, गुणीभूत व्यंग्य और चित्र। ध्वनि वह है जिस, में शब्दों से निकले हुए अर्थ (वाच्य) की अपेक्षा छिपा हुआ अभिप्राय (व्यंग्य) प्रधान हो। गुणीभूत ब्यंग्य वह है जिसमें गौण हो। चित्र या अलंकार वह है जिसमें बिना ब्यंग्य के चमत्कार हो। इन तीनों को क्रमशः उत्तम, मध्यम और अधम भी कहते हैं। काव्यप्रकाशकार का जोर छिपे हुए भाव पर अधिक जान पड़ता है, रस के उद्रेक पर नहीं। काव्य के दो और भेद किए गए हैं, महाकाव्य और खंड काव्य। महाकाव्य सर्गबद्ध और उसका नायक कोई देवता, राजा या धीरोदात्त गुंण संपन्न क्षत्रिय होना चाहिए। उसमें शृंगार, वीर या शांत रसों में से कोई रस प्रधान होना चाहिए। बीच बीच में करुणा; हास्य इत्यादि और रस तथा और और लोगों के प्रसंग भी आने चाहिए। कम से कम आठ सर्ग होने चाहिए। महाकाव्य में संध्या, सूर्य, चंद्र, रात्रि, प्रभात, मृगया, पर्वत, वन, ऋतु, सागर, संयोग, विप्रलम्भ, मुनि, पुर, यज्ञ, रणप्रयाण, विवाह आदि का यथास्थान सन्निवेश होना चाहिए। काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं। गद्य काव्य के भी दो भेद किए गए हैं- कथा और आख्यायिका। चंपू, विरुद और कारंभक तीन प्रकार के काव्य और माने गए है। .

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कविता की परिभाषा

"कविता" की परिभाषा को कविता के माध्यम से समझें। युवा शायर और कवि बाग़ी विकास (इलाहाबाद) कहते हैं कि, " 'कविता' राजा-रानी के सिंहासन का गुणगान नहीं 'कविता' चंदरबरदाई की पीढ़ी का अभियान नहीं 'कविता' नारी के शरीर की सुन्दरता का शोध नहीं 'कविता' केवल कुछ शब्दों की तुकबंदी का बोध नहीं...

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कैलाश बुधवार

कैलाश बुधवार ब्रिटेन मे बसे भारतीय मूल के हिंदी लेखक है। अब तक के एकमात्र भारतीय हैं जो बी.बी.सी.

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अचला शर्मा

अचला शर्मा लंदन में रहने वाली भारतीय मूल की हिंदी लेखिका है। उनका जन्म भारत के जालंधर शहर में हुआ तथा शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वे लंदन प्रवास से पूर्व भारत में ही कहानीकार एवं कवि के रूप में स्थापित हो गई थीं। रेडियो से भी वे भारत में ही जुड़ चुकी थीं, बाद में वे लंदन में बी.बी.सी. रेडियो की हिन्दी सेवा से जुड़ीं और अध्यक्ष के पद तक पहुँचीं। बीबीसी से जुड़ने के पश्चात उनके व्यस्त जीवन में कहानी और कविता जहाँ पीछे छूटते गये, वहीं हर वर्ष एक रेडियो नाटक लिखना उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन गया। इन रेडियो नाटकों के दो संकलन `पासपोर्ट' एवं `जड़ें' के लिए उन्हें वर्ष २००४ के पद्मानंद साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। ‘पासपोर्ट’ में बीबीसी हिन्दी सेवा से प्रसारित उन नाटकों को संकलित किया गया है जिनमें ब्रिटेन में बसे भारतीय मूल के प्रवासी अपनी पहचान को लेकर संभ्रम में दिखाई देते हैं और दोहरी या चितकबरी संस्कृति जीतने पर विवश दिखाई देते हैं, जबकि ‘जड़ें’ में बीबीसी से प्रसारित उन नाटकों को संकलित किया गया है जिनकी केन्द्रीय समस्याओं का सम्बन्ध भारत से है। अचला शर्मा के लेखन की विशेषता है स्थितियों की सही समझ, चरित्रों की सही मानसिकता की पकड़ और एक ऐसी भाषा का प्रयोग जो चरित्रों और स्थितियों के अनुकूल होती है। उनके रेडियो नाटकों में प्रवासी भारतीयों की दूसरी एवं तीसरी पीढ़ी की मानसिकता एवं संघर्ष का भी सटीक चित्रण देखने को मिलता है। बर्दाश्त बाहर, सूखा हुआ समुद्र तथा मध्यांतर उनके चर्चित कहानी संग्रह हैं। सूरीनाम विश्व हिन्दी सम्मेलन में अचला शर्मा को ब्रिटेन के हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया। .

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उषा राजे सक्सेना

उषा राजे सक्सेना युनाइटेड किंगडम मे बसी भारतीय मूल की लेखक है। वे भारत में भी काफी लोकप्रिय है। लक्ष्मीमल सिंघवी, कमलेश्वर, शिवमंगल सिंह 'सुमन', रामदरश मिश्र, हिमांशु जोशी, अशोक चक्रधर, चित्रा मुद्गल एवं हरीश नवल जैसे साहित्यकारों ने समय-समय पर उषा राजे के साहित्य की सराहना की है। कहानी, कविता, लेख जैसी विधाओं में उषा राजे ने अपनी एक शैली विकसित की है। किन्चित आलोचको के अनुसार्, उनकी कहानियों की एक पहचान है कि उन्हें यात्रा में कोई चरित्र मिलता है जो उन्हें या तो अपनी कहानी सुनाता है या वो कुछ ऐसा कर जाता है जिससे उषा राजे को कहानी मिल जाती है। किन्तु उनकी कहानी इससे भी कुछ अधिक है| प्रवास मे भारतीय सोच, जो सन्कीर्णताओ से मुक्त किन्तु शाश्वत सत्यो से गुंथी हुई है, सौम्यता, सहोदरता और विश्व-बन्धुत्व को साधारण से विशिष्ट होते हुए पात्रो के माध्यम से अभिव्यक्त करती है| उनकी कहानी मे सदयता के साथ, मानवीय सत्ता के प्रति विश्वास् और विपरीत परिस्थिति मे साहस उत्तर आधुनिक काल मे एक प्रकाश-स्तम्भ की भाति उभरते है| मिट्टी की सुगंध नामक कहानी संग्रह संपादित कर उषा राजे सक्सेना ने युनाइटेड किंगडम के कथाकारों को पहली बार एक संगठित मंच प्रदान किया। वे `पुरवाई' पत्रिका की सह-संपादिका हैं। उषा राजे सक्सेना के साहित्य पर भारत में एम.

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उषा वर्मा

उषा वर्मा ब्रिटेन में बसी भारतीय मूल की लेखक है। राजधानी लंदन की चहल-पहल से दूर यॉर्क जैसे छोटे शहर में रहते हुए साहित्य साधना में लगी हुई उषा वर्मा का रचना संसार छोटा है, पर वह मानव मनोविज्ञान से सुपरिचित एक सिद्धार्थ लेखिका हैं। उनकी सिद्धि का आधार मानवीय करुणा और अन्याय के प्रति तीका विरोध का भाव है। उनकी कविताएं तथा कहानियां सजीव और सस्पंद हैं, जिनमें प्रश्न है, पीड़ा है और एक ईमानदार पारदर्शी अभिव्यक्ति है। साहित्य अमृत, समकालीन भारतीय साहित्य, आजकल, कथन, कादम्बिनी आदि पत्रिकाओं में आपकी कविताएं तथा कहानियां छपती रहती हैं। आप `पुरवाई' में समीक्षा कॉलम लिखती हैं। उनके द्वारा संपादित कहानी संग्रह सांझी कथा यात्रा की काफ़ी चर्चा रही है। .

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