4 संबंधों: ऐकीपिट्रीडाए, रामचिरैया, घरेलू गौरैया, खैर मुनिया।
ऐकीपिट्रीडाए
ऐकीपिट्रीडाए (Accipitridae) पक्षियों के ऐकीपिट्रीफ़ोर्मीस गण के चार कुलों में से एक है। इसमें छोटे से बड़े आकार की अंकुशाकार चोंच रखने वाली कई जातियाँ हैं। महाश्येन (ईगल), चील, बाज़ और पूर्वजगत गिद्ध इस कुल के सदस्य हैं। .
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रामचिरैया
रामचिरैया (Kingfisher) एक छोटे से मध्य आकार की रंग-बिरंगी पक्षी जातियों का समूह है। यह नाम कभी तो एक ही कुल ऐल्सेनिनिडाए (Alcedinidae) के लिए और कभी तीन कुलों को सम्मिलित करने वाले ऐल्सेडिनीस (Alcedines) नामक उपगण के लिए प्रयोगित है। रामचिरैया की लगभग ९० जातियाँ ज्ञात हैं। सभी जातियों के बड़े सिर, लम्बी व नोकीली चोंच, छोटी टांग और छोटी दुम हैं। नर और मादा में रंग लगभग एक समान ही होता है। .
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घरेलू गौरैया
घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस) एक पक्षी है जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया और अमरीका के अधिकतर स्थानों, अफ्रीका के कुछ स्थानों, न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया तथा अन्य नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया। शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। .
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खैर मुनिया
खैर मुनिया श्येन परिवार का एक शिकारी पक्षी है जो संसार के अनेक देशों में पाया जाता है। भारत में यह हिमालय में काफी ऊँचाई तक देखा जाता है। यह जाड़ों में पहाड़ों से नीचे उतर कर सारे देश में फैल जाता है और जाड़ा समाप्त होने पर फिर उत्तर की ओर पहाड़ों में लौट जाता है। इसकी एक जाति नीलगिरि के आसपास पायी जाती है जो जाड़ों में त्रिवांकुर तक फैल जाती है। यह खुले मैदानों, खेतों और झाड़ियों वाले ऐसे स्थानों में रहता है जहाँ इसे कीड़े-मकोड़े, टिड्डे, चूहे, छिपकली तथा अन्य छोटे जंतु खाने को मिल सकें। यह छोटी मोटी चिड़ियों को भी आसानी से पकड़ लेता है। यह अपना अधिक समय आकाश में उड़ते हुए बिताता है। हवा में चक्कर लगाते हुए यदि जमीन पर कोई शिकार दिखाई पड़ जाए तो वह ऊपर से सीधे नीचे तीर की तरह आता है और झपट्टा मार कर उसे पकड़ लेता है। अपनी इस आदत के कारण यह आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके नर के सिर का ऊपर का भाग और गरदन के अगल बगल के हिस्से राखीपन लिए स्लेटी और महीन काली रेखाओं से भरे रहते हैं। चोंच की जड़ के पास से गले तक एक सिलेटी पट्टी होती है; चेहरे के दोनों भाग सफेद और गाढ़ी भूरी धारियों के बने होते हैं। शरीर के नीचे का भाग हलका ललछौंह लिए भूरा और सीने और बाजुओं पर भूरी बिंदियाँ और लकीरें होती हैं। मादा के शरीर का ऊपरी भाग चटक ललछौंह भूरा होता है। श्रेणी:पक्षी श्रेणी:भारत के पक्षी.
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